vi. क्य़ा धार्मिक जगत के फरीसियों और मसीह-विरोधी लोगों से धोखा खाए और उनके द्वारा नियंत्रित लोग परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं

बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन

“वे अंधे मार्गदर्शक हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे” (मत्ती 15:14)

“क्योंकि जो इन लोगों की अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नष्‍ट हो जाते हैं” (यशायाह 9:16)

“मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्‍ट हो गई” (होशे 4:6)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं? जो लोग परमेश्वर के सामने अपने आपको बड़ा मूल्य देते हैं, वे सबसे अधिक अधम लोग हैं, जबकि जो खुद को तुच्छ समझते हैं, वे सबसे अधिक आदरणीय हैं। जो लोग यह सोचते हैं कि वे परमेश्वर के कार्य को जानते हैं, और दूसरों के आगे परमेश्वर के कार्य की धूमधाम से उद्घोषणा करते हैं, जबकि वे सीधे परमेश्वर को देखते हैं—ऐसे लोग बेहद अज्ञानी होते हैं। ऐसे लोगों में परमेश्वर की गवाही नहीं होती, वे अभिमानी और अत्यंत दंभी होते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं

व्यवस्था के युग के वे यहूदी फरीसी, मुख्य पादरी, और धर्मशास्त्री, नाममात्र के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते थे, लेकिन उन्होंने उसके मार्ग को पीठ दिखाई, और देहधारी परमेश्वर को सूली पर भी चढ़ा दिया। तो क्या उनकी आस्था को परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती थी? (नहीं।) परमेश्वर ने उन्हें पहले ही यहूदी आस्था के लोगों के रूप में, एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में नामित कर रखा था। और इसी तरह आज परमेश्वर यीशु में विश्वास रखनेवाले लोगों को एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में देखता है, इस अर्थ में कि वह उन्हें अपनी कलीसिया के सदस्यों के रूप में या अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता। परमेश्वर धार्मिक जगत की इस प्रकार निंदा क्यों करता होगा? इसलिए कि धार्मिक समूहों के सभी सदस्यों, विशेष तौर पर विभिन्न सम्प्रदायों के उच्च-स्तरीय अगुआओं के मन में परमेश्वर का भय नहीं होता, न ही वे परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करनेवाले होते हैं। वे सब गैर-विश्वासी हैं। वे सत्य को स्वीकार करना तो दूर रहा, देहधारण में भी विश्वास नहीं रखते। वे कभी खोजते नहीं, सवाल नहीं पूछते, जाँच नहीं करते, या अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य या उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य को स्वीकार नहीं करते, इसके बजाय वे अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर के कार्य की निंदा और तिरस्कार करते हैं। इसमें स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि वे परमेश्वर में नाममात्र के लिए विश्वास रख सकते हैं, मगर परमेश्वर उन्हें अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता; वह कहता है कि वे दुष्कर्मी हैं, उनके किए किसी भी काम का उसके उद्धार कार्य से जरा भी संबंध नहीं है, वे अविश्वासी हैं, जो उसके वचनों से बाहर के लोग हैं। अगर तुम परमेश्वर में अब जैसा विश्वास रखते हो, तो क्या वह दिन नहीं आएगा जब तुम भी बस धर्म-समर्थक बन कर नहीं रह जाओगे? धर्म के भीतर रहकर परमेश्वर में आस्था रखने से उद्धार प्राप्त नहीं हो सकता—ऐसा आखिर क्यों है? अगर तुम लोग नहीं बता सकते कि ऐसा क्यों है, तो यह दर्शाता है कि न तो तुम लोग सत्य को समझते हो, न ही कम-से-कम उसकी इच्छा को। परमेश्वर में आस्था के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यही हो सकती है कि वह धर्म बनकर रह जाए और उसे परमेश्वर निकालकर दूर डाल दे। मनुष्य के लिए यह अकल्पनीय है, और जो लोग सत्य को नहीं समझते, वे इस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। बताओ भला, जब एक कलीसिया परमेश्वर की दृष्टि में धीरे-धीरे धर्म में तब्दील हो जाए, और अपनी स्थापना के बाद अनेक वर्षों के दौरान एक संप्रदाय बन जाए, तो क्या इसमें समाहित लोग परमेश्वर के उद्धार के उम्मीदवार हैं? क्या वे उसके परिवार के सदस्य हैं? (नहीं।) वे सदस्य नहीं हैं। वे किस मार्ग पर चलते हैं, ये लोग जो सच्चे परमेश्वर में नाममात्र को विश्वास रखते हैं, फिर भी वह उन्हें धार्मिक लोग मानता है? जिस मार्ग पर वे चलते हैं उस पर वे परमेश्वर में आस्था की पताका लिए होते हैं, फिर भी वे कभी उसके मार्ग का अनुसरण नहीं करते; यह ऐसा रास्ता है जिस पर वे उसमें विश्वास तो रखते हैं फिर भी उसकी आराधना नहीं करते, यहाँ तक कि वे उसे त्याग देते हैं; यह ऐसा है जिस पर वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी उसका प्रतिरोध करते हैं, परमेश्वर के नाम में, सच्चे परमेश्वर में नाममात्र का विश्वास रखते हैं, फिर भी दानवी शैतान की आराधना करते हैं, और इंसानी कामकाज से जुड़ते और एक स्वतंत्र मानवी राज्य की स्थापना करते हैं। यही वो मार्ग है जिस पर वे चलते हैं। उनके चलने का मार्ग देखने से यह स्पष्ट है कि वे गैर-विश्वासियों का जत्था हैं, मसीह-विरोधियों का गैंग, शैतानों और दानवों का समूह, जो स्पष्ट रूप से परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके कार्य को बाधित करने के लिए निकल पड़े हैं। धार्मिक जगत का यही सार है। क्या ऐसे लोगों के समूह का मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना से कोई सरोकार है? (नहीं।) परमेश्वर के विश्वासी रहे ऐसे लोगों, चाहे वे जितने भी हों, की आस्था की विधि को एक बार परमेश्वर ने एक सम्प्रदाय या एक समूह के रूप में परिभाषित कर दिया, तो उन्हें भी परमेश्वर यूँ परिभाषित कर देता है जिन्हें बचाया नहीं जा सकता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? परमेश्वर के कार्य या मार्गदर्शन से रिक्त एक समूह जो बिल्कुल भी न उसके सामने समर्पण करता है न उसकी आराधना करता है, वह उसमें नाममात्र को विश्वास रख सकता है, लेकिन वह धर्म के पादरियों और एल्डरों का ही अनुसरण और पालन करता है, और धर्म के पादरी और एल्डर अपने सार से ही शैतानी और पाखंडी होते हैं। इसलिए, वे जिसका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं। वे अपने दिलों में परमेश्वर में आस्था का अभ्यास करते हैं, लेकिन दरअसल, मनुष्य उनके साथ हेर-फेर करता है, वे इंसानी आयोजनों और प्रभुत्व के अधीन होते हैं। तो, अनिवार्यत: वे जिनका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं, परमेश्वर का प्रतिरोध करनेवाली दुराचारी शक्तियाँ हैं, और परमेश्वर के शत्रु हैं। क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के गिरोह को बचाएगा? (नहीं।) क्यों नहीं? देखो, क्या ऐसे लोग प्रायश्चित्त करने में सक्षम हैं? नहीं; वे प्रायश्चित्त नहीं करेंगे। वे परमेश्वर में विश्वास की पताका के नीचे इंसानी कामकाज और उद्यमों से जुड़ जाते हैं, जोकि मनुष्य के उद्धार की परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विपरीत है, जिसका अंतिम परिणाम यह होता है कि परमेश्वर उनसे घृणा कर उन्हें ठुकरा देगा। परमेश्वर का इन लोगों को बचाना असंभव है; वे प्रायश्चित्त करने में सक्षम नहीं हैं, और चूंकि शैतान उन्हें उठा ले गया है, इसलिए परमेश्वर इन लोगों को उसे ही सौंप देता है। ... तुमने चाहे जितने भी धर्मसंदेश सुने हों, जितने भी सत्य समझ लिए हों, कोई फर्क नहीं पड़ता—अगर तुम अभी भी मनुष्य का अनुसरण करते हो, अभी भी शैतान का अनुसरण करते हो, और अंत में परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में सक्षम नहीं हो पाते हो, न ही उसका भय मान पाते हो, और बुराई से दूर रह पाते हो, तो ऐसे लोगों से परमेश्वर घृणा कर उन्हें ठुकरा देता है। संभव है धर्म के लोग बाइबल के विशाल ज्ञान का प्रचार करने में सक्षम हों, और वे कुछ आध्यात्मिक धर्म-सिद्धांत को समझते हों, लेकिन वे परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण नहीं कर पाते, उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव नहीं कर पाते, या सच्चे दिल से उसकी आराधना नहीं कर पाते, न ही वे उसका भय मान पाते हैं और न बुराई से दूर रहते हैं। वे सब पाखंडी हैं, वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सच्चे दिल से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं। परमेश्वर की दृष्टि में, ऐसे लोगों को किसी सम्प्रदाय के व्यक्ति, एक इंसानी समूह, एक इंसानी गिरोह, और शैतान के बसेरे के रूप में परिभाषित किया जाता है। सामूहिक रूप में, वे शैतान के गिरोह हैं, मसीह-विरोधियों का राज्य हैं, और परमेश्वर उनसे घृणा कर उन्हें पूरी तरह ठुकरा देता है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है

जो लोग परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे परमेश्वर की उपस्थिति से वंचित रहते हैं, और, इससे भी बढ़कर, वे परमेश्वर के आशीषों और सुरक्षा से रहित होते हैं। उनके अधिकांश वचन और कार्य पवित्र आत्मा की पुरानी अपेक्षाओं को थामे रहते हैं; वे सिद्धांत हैं, सत्य नहीं। ऐसे सिद्धांत और विनियम यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इन लोगों का एक-साथ इकट्ठा होना धर्म के अलावा कुछ नहीं है; वे चुने हुए लोग या परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य नहीं हैं। उनमें से सभी लोगों की सभा को मात्र धर्म का महासम्मेलन कहा जा सकता है, उन्हें कलीसिया नहीं कहा जा सकता। यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। उनके पास पवित्र आत्मा का नया कार्य नहीं है; जो कुछ वे करते हैं वह धर्म का द्योतक प्रतीत होता है, जैसा जीवन वे जीते हैं वह धर्म से भरा हुआ प्रतीत होता है; उनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति और कार्य नहीं होता, और वे पवित्र आत्मा का अनुशासन या प्रबुद्धता प्राप्त करने के लायक तो बिल्कुल भी नहीं हैं। ये समस्त लोग निर्जीव लाशें और कीड़े हैं, जो आध्यात्मिकता से रहित हैं। उन्हें मनुष्य की विद्रोहशीलता और विरोध का कोई ज्ञान नहीं है, मनुष्य के समस्त कुकर्मों का कोई ज्ञान नहीं है, और वे परमेश्वर के समस्त कार्य और परमेश्वर की वर्तमान इच्छा के बारे में तो बिल्कुल भी नहीं जानते। वे सभी अज्ञानी, अधम लोग हैं, और वे कूडा-करकट हैं जो विश्वासी कहलाने के योग्य नहीं हैं! वे जो कुछ भी करते हैं, उसका परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के साथ कोई संबंध नहीं है, और वह परमेश्वर के कार्य को बिगाड़ तो बिल्कुल भी नहीं सकता। उनके वचन और कार्य अत्यंत घृणास्पद, अत्यंत दयनीय, और एकदम अनुल्लेखनीय हैं। जो लोग पवित्र आत्मा की धारा में नहीं हैं, उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य का पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ कोई लेना-देना नहीं है। इस वजह से, चाहे वे कुछ भी क्यों न करें, वे पवित्र आत्मा के अनुशासन से रहित होते हैं, और, इससे भी बढ़कर, वे पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से रहित होते हैं। कारण, वे सभी ऐसे लोग हैं, जिन्हें सत्य से कोई प्रेम नहीं है, और जिन्हें पवित्र आत्मा ने तिरस्कृत कर दिया है। उन्हें कुकर्मी कहा जाता हैं, क्योंकि वे देह के अनुसार चलते हैं, और परमेश्वर के नाम की तख्ती के नीचे जो उन्हें अच्छा लगता है, वही करते हैं। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो वे जानबूझकर उसके प्रति शत्रुता रखते हैं और उसकी विपरीत दिशा में दौड़ते हैं। परमेश्वर के साथ सहयोग करने में मनुष्य की असफलता अपने आप में चरम रूप से विद्रोही है, इसलिए क्या वे लोग, जो जानबूझकर परमेश्वर के प्रतिकूल चलते हैं, विशेष रूप से अपना उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं करेंगे?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। इसके बजाय, वे सामर्थ्य और संपत्तियों में आनंदित होते हैं; ऐसे लोग सामर्थ्य चाहने वाले कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली संप्रदायों को, और सेमिनरीज से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालाँकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे केवल अर्ध-विश्वासी हैं; वे अपने दिलो-दिमाग पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ हैं, वे कहने को तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, लेकिन उनकी नजरें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर गड़ी रहती हैं, और वे मसीह की ओर फेर कर नहीं देखते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिके रहते हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा छोटा व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है, कि इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज लोग परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि अगर ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार के पात्र होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उनका मानना है कि अगर परमेश्वर ने ऐसे नाचीज लोगों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वासी होने से भी बढ़कर, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और सामर्थ्य को महत्व देते हैं, और केवल बड़े समूहों और संप्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उन लोगों के लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है, जिनकी अगुआई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे विश्वासघाती हैं, जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से मुँह मोड़ लिया है।

तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, लेकिन खुद को उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से फेंक देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनकी हैसियत, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम ऐसा रवैया बनाए रखते हो, जिससे मसीह के कार्य को गले से उतारना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है और तुम उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा भय के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है।

बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते, वे सभी गैर-विश्वासी और सत्य के प्रति विश्वासघाती हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अविश्वास है, और तुममें मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमसे यह आग्रह करता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, इसलिए तुम्हें खुद को संपूर्ण हृदय से समर्पित करना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अनमने न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार का या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, जो उसकी आराधना करते हैं, और जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?

परमेश्वर द्वारा चयनित लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें चाहिए कि वे उनको पहचानें, उनको बेनकाब करें, उनकी सूचना दें, और उनको बाहर निकालें। मसीह-विरोधी भले ही अगुआ की स्थिति में क्यों न हो, वह सर्वदा परमेश्वर का विरोध करता है। तुम्हें मसीह-विरोधी की अगुवाई स्वीकार नहीं करनी चाहिए, और तुम्हें उसको अपना अगुआ भी नहीं मानना चाहिए, क्योंकि वह जो करता है उससे तुम परमेश्वर के वचनों में प्रवेश नहीं करते; वह तुम्हें नरक में घसीटना चाहता है और तुम्हें मसीह-विरोधियों के रास्ते पर ले जाना चाहता है जिसपर वह ख़ुद चल रहा है। वह परमेश्वर का विरोध करने और परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट करने में तुम्हें अपने साथ शामिल करना चाहता है। वह तुम्हें खींचता-घसीटता है ताकि तुम भी उसके साथ दलदल में फँस जाओ। क्या तुम इसकी सहमति दोगे? यदि तुम सहमत होते हो, और उसके साथ समझौता करते हो, उससे दया की भीख माँगते हो, या उसके द्वारा जीत लिए जाते हो, तो तुमने गवाही नहीं दी है, और तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों को धोखा देता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता है। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और उसे पूरी तरह से त्यागने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे धोखा खाने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और अभिप्रेत लक्ष्य देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनसे धोखा नहीं खाओगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। यदि तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा धोखा देकर अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। हक़ीक़त में, ये चीज़ें कलीसिया में मौजूद हैं; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। यदि तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों के हाथों धोखा खा चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम उसे छोड़ दोगे, यह कहते हुए, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है; परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई धार्मिकता या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, यदि तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। यदि तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से चिढ़ता है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे रास्ते में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। यदि तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम उनके जाल में फँस सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग धोखे खाए हुए और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए वे धोखा खा सकते हैं और मसीह-विरोधी का अनुसरण कर सकते हैं। यह परिणाम अपरिहार्य है।

कुछ ऐसे हैं जो खुद को सत्य का खोजी बताते हैं और कहते हैं कि वे मसीह-विरोधियों से नहीं डरते—क्या यह महज शेखी बघारना नहीं है? जब तुम अपने विषैले दांत दिखाते और अपने नुकीले पंजे लहराते एक मसीह-विरोधी से टकराते हो, जो मानवता से दरिद्र है और बुराई पर उतारू है, तो तुम उन्हें निश्चित ही पहचान लेते हो। लेकिन अगर कोई मसीह-विरोधी काफी धर्मनिष्ठ लगता हो और लोगों की धारणाओं पर खरा उतरता हो, जिसकी मानवता श्रेष्ठ स्तर की हो, जिसकी बोलचाल और हरकतों में व्यवहार-कुशलता, शिष्टता और विनम्रता दिखाई देती हो, तो तुम उसकी असलियत नहीं भाँप पाओगे—लेकिन उनका व्यवहार, उनके विचार और धारणाएँ, और साथ ही उनके काम करने के तरीके और सत्य को समझने के उनके तरीके भी तुम पर अपना प्रभाव छोड़ेंगे। उनके इस प्रभाव की सीमा क्या है? वे तुम्हारे व्यवहार के तौर-तरीके को, उस रास्ते को जिस पर तुम चलते हो, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रभावित कर सकते हैं; और आखिर में, वे तुम्हारे आराध्य बन जाएंगे और तुम्हारे दिल में जगह बना लेंगे और तुम उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब तुम इस सीमा तक प्रभावित हो जाते हो, तो तुम्हारे उद्धार की उम्मीद बहुत कम रह जाती है। अगर तुम लोग इसी सीमा तक परमेश्वर और सत्य को कार्य करने दो, तो यह बहुत स्वागत योग्य और अच्छी बात होगी, लेकिन इस सीमा तक एक ऐसे व्यक्ति के नियंत्रण में रहना जो शैतान या उसके जैसों द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका हो—तुम्हारे लिए एक विनाश होगा या वरदान? यह तुम्हारे लिए विनाश ही होगा, न कि वरदान। भले ही वे तुम्हें एक अस्थायी रास्ता दिखा पाएँ या तुम्हारा अस्थायी तौर पर भरण-पोषण कर पाएँ, तुम्हारी मदद करें या तुम्हें शिक्षा दें, इत्यादि, और भले ही तुम्हें इसमें अपनी भलाई प्रतीत हो, पर जैसे ही वे तुम्हारे दिल में अपनी एक खास जगह बना लेंगे, और तुम्हारे विचारों और धारणाओं को नियंत्रित और संचालित करने लगेंगे, इतना कि वे तुम्हारी आगे की दिशा भी तय कर सकें, तो तुम मुसीबत में घिर जाओगे—फिर तुम शैतान के नियंत्रण में आ जाओगे। ऐसे लोग भी हैं, जो किसी मसीह-विरोधी के बारे में कहते हैं, “वह शैतान नहीं है! वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति है जो सत्य की खोज करता है!” क्या यह एक वैध वक्तव्य है? वास्तव में सत्य की सच्ची खोज करने वाला कोई भी व्यक्ति तुम्हें जो मार्गदर्शन, मदद और पोषण प्रदान करता है या तुम पर उसका जो प्रभाव पड़ता है या तुम्हें जो लाभ पहुँचाता है, वह तुम्हें परमेश्वर के सम्मुख लाता है, ताकि तुम उसके वचनों और सत्य को प्राप्त कर सको, और तुम परमेश्वर के सम्मुख आकर उस पर निर्भर करना और उससे कामना करना सीख सको, और परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध घनिष्ठ-से-घनिष्ठ होता जाता है। अगर, इसके विपरीत, उस व्यक्ति के साथ तुम्हारा संबंध घनिष्ठ-से-घनिष्ठ होता जाता है, तो क्या हो रहा है? तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो वह अब उल्टा हो जाता है, और तुम गलत रास्ते पर चलने लगते हो। इसका क्या परिणाम होता है? मनुष्य के सम्मुख लाए जाने के कारण तुम परमेश्वर से बहुत दूर हो जाओगे, और जैसे ही परमेश्वर कुछ ऐसा करेगा जो तुम्हारे द्वारा पूजे जाने वाले व्यक्ति के हित में नहीं होगा, तुम सीधे विद्रोह पर उतर आओगे। यह एक आम घटना है। जब कुछ अगुआ बदल दिए जाते हैं, या कुछ मामलों में, निष्कासित कर दिए जाते हैं, तो उनके अनुयायी भी उनके साथ चले जाते हैं और विश्वास करना छोड़ देते हैं। क्या यह एक आम घटना नहीं है? उन्होंने विश्वास करना कैसे छोड़ दिया? वे कहते हैं, “अगर मेरे अगुआ को नहीं बचाया जा सकता तो मैं क्या उम्मीद रख सकता हूँ?” क्या यह नासमझी की बात नहीं है? वे इस तरह की बात कैसे कह सकते हैं? उनके अगुआ ने उन्हें धोखा दिया है। इस तरह धोखा खाने का क्या परिणाम होता है? यह कि वे पहले से ही अपने अगुआ के नियंत्रण में हैं। अपने अगुआ की हर कथनी और करनी को, हर कर्म और गतिविधि को और उसके किसी भी तरह के विचारों को वे अंधाधुंध स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें मापदंडों और उदाहरणों की तरह इस्तेमाल करते हैं और उन्हें सर्वोच्च सत्य की तरह देखते हैं। इसलिए वे यह सहन नहीं कर पाते कि कोई उनके अगुआ के शब्दों, कृत्यों या विचारों को गलत ठहराए, या उनके बारे में कोई नकारात्मक बात कहे, या उनकी निंदा करे और उनके बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचे। जैसे ही अगुआ को निष्कासित या बर्खास्त किया जाता है, वे सभी लोग उसके साथ चले जाते हैं जिन पर उसका नियंत्रण होता है, उनका दृढ़ विश्वास टस-से-मस नहीं होता, उन्हें लाख समझाकर भी वापस नहीं लाया जा सकता। क्या वे अपने अगुआ के नियंत्रण में नहीं हैं? सिर्फ उनके नियंत्रण में ही तुम उनकी तरफ से न्याय के लिए लड़ते हो, या उनकी चिंताओं, उनके विचारों, उनके आंसुओं और उनकी शिकायतों को साझा करते हो, यहाँ तक कि तुम अब परमेश्वर का भी संज्ञान नहीं लेते हो। उनका लक्ष्य तुम्हारा प्रभु, तुम्हारा परमेश्वर बनना है, जिस चीज पर तुम निर्भर करते हो, ताकि तुम अपने हृदय की गहराइयों से उनकी अधीनता स्वीकार करते हुए उनकी आज्ञा का पालन करो और उनका अनुसरण करो, और तुम परमेश्वर के प्रति एक अस्वीकृति का रवैया अपना लेते हो। तुम लोग एक मसीह-विरोधी को परमेश्वर मानने लगोगे, और तुम उन्हें अपना प्रभु और अपना परमेश्वर बना चुके होगे, तुम्हारे लिए, परमेश्वर कुछ भी नहीं होगा—तो यह होता है इसका परिणाम। यह कहने का कोई लाभ नहीं है कि तुम्हें किसी मसीह-विरोधी से धोखा खाने की चिंता नहीं है, और तुम्हें उसका अनुसरण करने से डर नहीं लगता, क्योंकि अगर तुम जिस रास्ते पर चलते हो वह गलत है, तो अंतत: यह अपरिहार्य परिणाम है। तुम इससे बच नहीं सकते और तुम इस तथ्य को बदल नहीं सकते। जब तुम अपने चुने हुए रास्ते पर चलते हो तो यह परिणाम थोड़ा-थोड़ा करके सतह पर उभरने लगता है और अपने-आपको प्रस्तुत कर देता है; यह अपरिहार्य होता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं

तुम लोगों को मसीह-विरोधियों को पहचानना होगा। अगर तुम इसे कभी गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम्हारे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं होगा कि तुम उनके द्वारा किस तरह की स्थिति में भटकाए जा सकते हो, और यह भी हो सकता है कि बिना यह तक जाने कि क्या हो रहा है, भ्रम की धुंध में तुम मसीह-विरोधियों का अनुसरण कर रहे हो। जब तुमने उनका अनुसरण करना शुरू किया, तो तुम्हें यह एहसास नहीं हुआ कि कुछ गलत है, और तुम्हें यह भी लग सकता है कि मसीह-विरोधी जो कह रहा है, वह सही है। अनजाने ही तुम्हें भटका दिया गया है। एक बार जब तुम धोखे में आ गए, तो परमेश्वर अब तुम्हें नहीं चाहता। कुछ लोग सामान्य रूप से अच्छा करते प्रतीत होते हैं, और वे अस्थायी रूप से किसी मसीह-विरोधी द्वारा भरमा दिए जाते हैं, इसलिए कलीसिया उन्हें चेतावनी देकर और उनके साथ सहभागिता करके अंततः उन्हें वापस ले सकती है। लेकिन कुछ लोग कभी वापस नहीं आते, चाहे उन्हें किसी भी प्रकार की सहभागिता प्राप्त हो; इसके बजाय वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने पर अड़े रहते हैं। क्या यह बरबाद होना नहीं है? आखिर वे वापस क्यों नहीं आते? ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर ऐसा नहीं होने देता। कुछ लोग बहुत नेक नीयत से कहते हैं, “ओह, लेकिन वह इतना अच्छा इंसान है। उसने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया है और बहुत त्याग किया और खुद को खपाया है। वह वास्तव में सीधा है और वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहा है, साथ ही परमेश्वर में उसकी आस्था जबरदस्त है। वह एक सच्चा विश्वासी है।” लोगों के अच्छे इरादों के आधार पर ऊपर से ऐसा ही दिखता है, लेकिन तुम उस व्यक्ति के हृदय के अंतरतम में नहीं देख सकते। तुम नहीं देख सकते कि वह वास्तव में किस तरह का व्यक्ति है, उसका सार क्या है। इसके अतिरिक्त, तुम अपने दिल की अच्छाई से उसे बचाने की कोशिश कर सकते हो, लेकिन तुम चाहे कैसे भी सहभागिता करो, वह वापस नहीं मुड़ेगा, और तुम नहीं जानते कि इसके पीछे क्या कारण है। वास्तव में, कारण यह है कि परमेश्वर उसे अब और नहीं चाहता। परमेश्वर उसे अब और क्यों नहीं चाहता? इसका एक अत्यंत स्पष्ट और आसानी से देखा जा सकने वाला कारण है। कुछ मसीह-विरोधी बहुत स्पष्ट रूप से दुष्ट आत्माएँ हैं, जबकि कुछ मसीह-विरोधी इस हद तक नहीं जाते कि स्वयं को दुष्टात्माओं के रूप में प्रस्तुत करें, इसलिए उन्हें इस रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता। जब कोई उन मसीह-विरोधियों का अनुसरण करता है जो स्पष्ट रूप से बुरी आत्माएँ हैं, तो जैसा कि परमेश्वर का सार और स्वभाव है, उसके अनुसार क्या वह उस व्यक्ति को स्वीकार करेगा? परमेश्वर पवित्र है, और वह ईर्ष्यालु परमेश्वर है—वह उन लोगों को अस्वीकार कर देता है, जिन्होंने बुरी आत्माओं का अनुसरण किया है। भले ही ऊपर से वह व्यक्ति तुम्हें अच्छा प्रतीत होता हो, परमेश्वर उस पहलू को नहीं देख रहा। “ईर्ष्यालु” क्या होता है? यहाँ “ईर्ष्यालु” का क्या अर्थ है? यदि यह शब्द से ही स्पष्ट नहीं है, तो देखो कि क्या तुम लोग मेरी व्याख्या से समझ सकते हो। जब से परमेश्वर द्वारा किसी व्यक्ति को चुना जाता है, तब से जब तक वे यह निर्धारित नहीं कर लेते कि परमेश्वर सत्य है, कि वह धार्मिकता, बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता है, कि एकमात्र केवल वही है—जब वे यह सब समझ जाते हैं, तो वे अपने दिल की गहराई में परमेश्वर के स्वभाव और सार के साथ-साथ उसके स्वरूप की एक बुनियादी समझ हासिल कर लेते हैं। यह बुनियादी समझ तब उनका विश्वास बन जाती है, और यही उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने, स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित करती है। यह उनका आध्यात्मिक कद है, है ना? (हाँ।) इन चीजों ने पहले ही उनके जीवन में जड़ें जमा ली हैं और वे फिर कभी परमेश्वर को नहीं नकारेंगे। लेकिन अगर उन्हें मसीह या व्यावहारिक परमेश्वर का सच्चा ज्ञान नहीं है, तो वे फिर भी किसी मसीह-विरोधी की आराधना और उसका अनुसरण कर सकते हैं। ऐसा व्यक्ति अभी भी खतरे में है। वे अभी भी किसी दुष्ट मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए देहधारी मसीह से मुँह मोड़ सकते हैं; यह खुले तौर पर मसीह को नकारना और परमेश्वर से संबंध तोड़ना होगा। इसका निहितार्थ है : “मैं अब तुम्हारे पीछे नहीं चलूँगा, बल्कि मैं शैतान का अनुसरण कर रहा हूँ। मैं शैतान से प्यार करता हूँ और उसकी सेवा करना चाहता हूँ; मैं शैतान का अनुसरण करना चाहता हूँ, और चाहे वह मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे, वह कैसे भी मुझे बरबाद करे, रौंदे और भ्रष्ट करे, मैं सहर्ष तैयार हूँ। तुम चाहे कितने भी धार्मिक और कितने भी पवित्र हो, मैं अब तुम्हारा अनुसरण नहीं करना चाहता। इस तथ्य के बावजूद कि तुम परमेश्वर हो, मैं तुम्हारा अनुसरण नहीं करना चाहता।” और वे ऐसे ही छोड़कर चले जाते हैं, और किसी ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करने लगते हैं जिसका उनसे कोई लेना-देना नहीं होता, ऐसे व्यक्ति का जो परमेश्वर का शत्रु है, या जो एक बुरी आत्मा भी है। क्या परमेश्वर अब भी इस तरह के व्यक्ति को चाहेगा? क्या उसे ठुकराना परमेश्वर के लिए उचित होगा? यह बिलकुल उचित होगा। सामान्य ज्ञान से, सभी लोग जानते हैं कि परमेश्वर एक ईर्ष्यालु परमेश्वर है, कि वह पवित्र है, लेकिन क्या तुम वास्तव में इसके पीछे की वास्तविक स्थिति को समझते हो? क्या मैं यहाँ जो कह रहा हूँ, वह सही नहीं है? (है।) यदि ऐसा है, तो क्या परमेश्वर द्वारा उस व्यक्ति का त्याग करना उसकी क्रूरता माना जाएगा? परमेश्वर सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है—अगर तुम जानते हो कि परमेश्वर कौन है लेकिन तुम उसका अनुसरण नहीं करना चाहते, और तुम जानते हो कि शैतान कौन है और तुम अभी भी उसका अनुसरण करना चाहते हो, तो मैं जोर नहीं दूँगा। मैं तुम्हें हमेशा के लिए शैतान का अनुसरण करने दूँगा और तुम्हें वापस आने के लिए नहीं कहूँगा, बल्कि मैं तुम्हें छोड़ दूँगा। परमेश्वर का यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह हठ है? क्या वह भावनाओं में बहकर काम कर रहा है या गौरवान्वित हो रहा है? यह गौरव नहीं है, न ही हठ है, बल्कि परमेश्वर की “ईर्ष्या” का हिस्सा है। अर्थात्, अगर एक सृजित प्राणी के रूप में तुम भ्रष्ट होने में प्रसन्न हो, तो परमेश्वर क्या कह सकता है? अगर तुम भ्रष्ट होना चाहते हो, तो यह तुम्हारी व्यक्तिगत पसंद है—अंततः तुम ही परिणाम भुगतोगे, और दोषी तुम खुद ही होगे। लोगों के साथ व्यवहार करने के परमेश्वर के सिद्धांत अपरिवर्तनीय हैं, इसलिए अगर तुम भ्रष्टता से खुश हो, तो तुम्हारा अपरिहार्य अंत दंडित किया जाना है। चाहे तुमने पहले कितने भी वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया हो; अगर तुम भ्रष्ट होना चाहते हो, तो परमेश्वर चुनने में तुम्हारी मदद करेगा, न ही वह तुम्हें मजबूर करेगा। तुम स्वयं शैतान का अनुसरण करने के लिए, शैतान द्वारा गुमराह और अशुद्ध किए जाने के लिए तैयार हो, और इसलिए अंत में तुम्हें परिणाम भुगतने होंगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

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