761 क्या तुममें परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम है?
1
तन की सुख-शांति के लिए
अगर तुम करते प्रेम ईश्वर से,
तो शायद तुम्हारा प्रेम अपने शिखर पर पहुंचे
जहां तुम और न मांगो,
फिर भी तुम वो कलंकित प्रेम खोजते
जो ईश्वर को पसंद नहीं।
नीरस जीवन और दिल को भरने के लिए ही
जो प्रेम करते ईश्वर से,
आसान जीवन का लालच करते हैं वे,
ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं खोजते।
जबर्दस्ती का ये प्रेम मन बहलाने के लिए है।
ईश्वर को इसकी ज़रूरत नहीं।
तुम्हारा प्रेम है कैसा? क्यों करते तुम प्रेम ईश्वर से?
अभी तुममें सच्चा प्रेम कितना है ईश्वर के लिए?
2
तुम लोगों में से बहुत से करते वैसा प्रेम
जिसे ईश्वर ठुकराए।
ये प्रेम टिक नहीं सकता, जड़ें जमा नहीं सकता,
है ऐसा फूल जो खिले और मुरझाए, फल न दे।
ईश्वर से ऐसा प्रेम करते हो अगर तुम, और तुम्हें आगे
ले जाने वाला कोई नहीं तो गिर पड़ोगे तुम।
अगर अभी ईश्वर से प्रेम करते हो,
पर जीवन-स्वभाव को बदलते नहीं,
तो तुम शैतान के चंगुल से बच सकते नहीं।
ऐसा कोई इंसान ईश्वर को प्राप्त न हो सकेगा;
शरीर, प्राण और आत्मा से वे शैतान के ही रहेंगे।
3
जो ईश्वर को प्राप्त न हो सकें
वो लौट जाएंगे वहीं जहां से आए थे,
आग की झील में ईश्वर के दंड को पाने।
जिन्हें ईश्वर प्राप्त करेगा वे वो हैं
जो शैतान को छोड़कर उससे बचते।
वे राज्य के लोगों में
आधिकारिक रूप से गिने जाते हैं।
इस तरह राज्य के लोग अस्तित्व में आते हैं।
क्या तुम तैयार हो ऐसा इंसान बनने के लिए?
क्या तुम तैयार हो ईश्वर को प्राप्त होने को?
शैतान से बचकर ईश्वर के पास लौटने को?
तुम शैतान के हो, या गिने जाते हो
राज्य के लोगों में?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए से रूपांतरित