983 हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है
तुम्हारा हर दिन अहम है तुम्हारी नियति और मंज़िल के लिए।
है जो कुछ तुम्हारे पास उसे संजो के रखो, हर गुज़रते पल को सहेजकर रखो,
अपना अधिकतम समय दो जिससे महानतम लाभ मिले,
ताकि व्यर्थ न जाए जीवन तुम्हारा।
1
ईश्वर ऐसे वचन क्यों बोलेगा ये सोचकर शायद तुम सब उलझन में पड़ जाओ।
सच कहूँ तो, तुम सभी के आचरण से नाख़ुश है ईश्वर।
उसे तुमसे ये उम्मीद न थी, तुम वैसे दिखोगे जैसे आज हो।
तुम सभी ख़तरे के मुहाने पे हो।
मदद की तुम्हारी गुहार, सत्य और रोशनी की
खोज की उम्मीदें अब ख़त्म होने को हैं।
ईश्वर को कभी इस प्रतिफल की आशा न थी।
ईश्वर कभी सच के ख़िलाफ न बोले, उसे बेहद निराश किया है तुमने।
शायद तुम सच का सामना करना या उसे स्वीकारना न चाहो,
फिर भी ईश्वर तुमसे गंभीरता से पूछे:
इतने बरस क्या भरा रहा तुम्हारे दिल में? किसके लिए वफादार रहा वो?
तुम्हारा हर दिन अहम है तुम्हारी नियति और मंज़िल के लिए।
है जो कुछ तुम्हारे पास उसे संजो के रखो, हर गुज़रते पल को सहेजकर रखो,
अपना अधिकतम समय दो जिससे महानतम लाभ मिले,
ताकि व्यर्थ न जाए जीवन तुम्हारा।
2
ईश्वर तुम सभी को अच्छी तरह जाने; वो बहुत परवाह करे तुम्हारी,
तुम्हारे आचरण और कर्मों पर वो कितना अधिक ध्यान दे।
इसलिए वो तुमसे लगातार हिसाब माँगे, कितनी ज़्यादा तकलीफ सहे।
फिर भी बदले में तुम उसे बेरुख़ी दिखाते, मजबूरी में स्वीकारते।
तुम सब ईश्वर के प्रति कितने लापरवाह हो।
क्या तुम्हें लगे वो अनजान है इससे?
इससे पता चले तुम उससे दया से पेश नहीं आते।
तुम रेत में मुँह छिपा रहे हो।
बड़े चालाक हो, जानते नहीं क्या कर रहे हो,
तो उसे हिसाब देते वक्त तुम किस चीज़ का प्रयोग करोगे?
तुम्हारा हर दिन अहम है तुम्हारी नियति और मंज़िल के लिए।
है जो कुछ तुम्हारे पास उसे संजो के रखो, हर गुज़रते पल को सहेजकर रखो,
अपना अधिकतम समय दो जिससे महानतम लाभ मिले,
ताकि व्यर्थ न जाए जीवन तुम्हारा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो? से रूपांतरित