332 चार सूक्तियाँ
1 मनुष्य मुझे "प्यार करता है", इसलिए नहीं कि मेरे लिए उसका प्यार जन्मजात है, बल्कि इसलिए कि उसे ताड़ना से डर लगता है। मनुष्यों में ऐसा कौन है जो मुझे जन्म से प्रेम करता है? क्या कोई भी ऐसा है जो मेरे साथ वैसा व्यवहार करता है जैसा वह अपने दिल के साथ करता है? और इसलिए मैं इस बात को मानव जगत के लिए एक कहावत के साथ पूरा करता हूँ : मनुष्यों में, कोई भी ऐसा नहीं जो मुझे प्रेम करता है। मैं मनुष्य से अनंत काल तक प्रेम कर सकता हूँ, और मैं उससे अनंत काल तक नफरत भी कर सकता हूँ, और यह कभी नहीं बदलेगा, क्योंकि मुझमें दृढ़ता है। पर मनुष्य में ऐसी दृढ़ता नहीं है, वह हमेशा मेरे प्रति कभी जोश तो कभी ठंडापन दिखाता है। इस प्रकार, मैं इसे एक और सूत्र के रूप में रखता हूँ: लोग दृढ़ता विहीन हैं, और इस तरह वे मेरे दिल को परिपूर्ण करने में असमर्थ हैं।
2 आज, मैं अभी भी यह नहीं जानता कि मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन क्यों नहीं करता, वह यह क्यों नहीं जानता कि उसका आध्यात्मिक कद कितना बड़ा है। लोग यह भी नहीं जानते कि इसका वज़न कई ग्राम है या कई लियांग। और इसलिए, वे अभी भी मुझे फुसलाते हैं। ऐसा लगता है जैसे कि मेरा सारा कार्य बेकार रहा है, जैसे कि मेरे वचन ऊँचे पहाड़ों की गूँज भर हैं, और कोई भी कभी भी मेरे वचनों और कथनों के मूल को नहीं समझ सका है। मैं इसका उपयोग तीसरी सूक्ति का सार प्रस्तुत करने के लिए करता हूं : "लोग मुझे नहीं जानते, क्योंकि वे मुझे नहीं देखते।"
3 मेरे वचनों के कारण लोग गिड़गिडाते हैं, उनकी याचना में हमेशा मेरी बेरहमी के बारे में शिकायतें होती हैं। लगता है जैसे वे लोगों के प्रति मेरे सच्चे "प्यार" को खोज रहे हों—लेकिन मेरे कठोर वचनों में वे मेरा प्यार कैसे पा सकते हैं? परिणामस्वरूप, मेरे वचनों की वजह से वे हमेशा उम्मीद खो बैठते हैं। लोग हमेशा मेरे बारे में शिकायत ही क्यों करते हैं? इस प्रकार, मैं मानव-जीवन के लिए चौथी सूक्ति का सार प्रस्तुत करता हूँ: लोग मेरे प्रति केवल थोड़े-से ही आज्ञाकारी होते हैं, इसलिए वे हमेशा मुझसे नफ़रत करते हैं।
4 जब मैं लोगों से माँगें करता हूँ, तो वे चकित हो जाते हैं: उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि परमेश्वर, जो इतने वर्षों तक अच्छे स्वभाव का और दयालु रहा है, ऐसे वचनों को कह सकता है, ऐसे वचन जो निर्मम और अन्यायपूर्ण हैं, और इसलिए वे अवाक् रह जाते हैं। ऐसे समय में, मैं देखता हूँ कि लोगों के हृदय में मेरे लिए नफ़रत एक बार फिर पनप जाती है, क्योंकि उन्होंने फिर से शिकायत करने का कार्य शुरू कर दिया है। वे हमेशा पृथ्वी पर आरोप लगाते हैं और स्वर्ग को कोसते हैं। फिर भी उनके वचनों में, मुझे खुद को कोसने जैसा कुछ नहीं मिलता है क्योंकि उनका स्वयं के लिए प्यार बहुत अधिक है। इस प्रकार मैं मानव जीवन के प्रयोजन का संक्षेप करता हूँ: क्योंकि लोग स्वयं से बहुत अधिक प्यार करते हैं, इसलिए उनके पूरे जीवन दुःखमय और खोखले होते हैं, और मेरे लिए अपनी घृणा की वजह से वे अपने विनाश का कारण खुद ही बनते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन से रूपांतरित