जब यीशु लौटेंगे तो वे वास्तव में कौनसा कार्य करेंगे?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)।
"यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)।
"क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)।
"इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, 'मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है'" (प्रकाशितवाक्य 5:5)।
"अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे। बहुत से देशों के लोग आएँगे, और आपस में कहेंगे: 'आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएँ; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।' क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे" (यशायाह 2:2-4)।
"देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है" (प्रकाशितवाक्य 22:12)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
जब यीशु मनुष्य के संसार में आया, तो उसने अनुग्रह के युग में प्रवेश कराया और व्यवस्था का युग समाप्त किया। अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर एक बार फिर देहधारी बन गया, और इस देहधारण के साथ उसने अनुग्रह का युग समाप्त किया और राज्य के युग में प्रवेश कराया। उन सबको, जो परमेश्वर के दूसरे देहधारण को स्वीकार करने में सक्षम हैं, राज्य के युग में ले जाया जाएगा, और इससे भी बढ़कर वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत
वर्तमान देहधारण में परमेश्वर का कार्य मुख्य रूप से ताड़ना और न्याय के द्वारा अपने स्वभाव को व्यक्त करना है। इस नींव पर निर्माण करते हुए वह मनुष्य तक अधिक सत्य पहुँचाता है और उसे अभ्यास करने के और अधिक तरीके बताता है और ऐसा करके मनुष्य को जीतने और उसे उसके भ्रष्ट स्वभाव से बचाने का अपना उद्देश्य हासिल करता है। यही वह चीज़ है, जो राज्य के युग में परमेश्वर के कार्य के पीछे निहित है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत
अंत के दिनों के दौरान देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर मुख्य रूप से वचन बोलने के लिए ही आया है। जब यीशु आया, तो उसने स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार फैलाया, और उसने सलीब पर चढ़कर छुटकारा दिलाने का कार्य संपन्न किया। उसने व्यवस्था के युग का अंत किया और उस सबको मिटा दिया, जो पुराना था। यीशु के आगमन से व्यवस्था के युग का अंत हो गया और अनुग्रह का युग आरंभ हुआ; अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर का आगमन अनुग्रह के युग का अंत करने आया है। वह मुख्य रूप से अपने वचन बोलने, मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करने, मनुष्य को रोशन और प्रबुद्ध करने, और मनुष्य के हृदय के भीतर से अज्ञात परमेश्वर का स्थान हटाने के लिए आया है। यह कार्य का वह चरण नहीं है, जो यीशु ने तब किया था, जब वह आया था। जब यीशु आया, तब उसने कई चमत्कार किए, उसने बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, और सलीब पर चढ़कर छुटकारा दिलाने का कार्य किया। परिणामस्वरूप, लोग अपनी धारणाओं के अनुसार यह मानते हैं कि परमेश्वर को ऐसा ही होना चाहिए। क्योंकि जब यीशु आया, उसने मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर की छवि हटाने का कार्य नहीं किया; जब वह आया, उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, उसने बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, और उसने स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार फैलाया। एक दृष्टि से, अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर का देहधारण मनुष्य की धारणाओं में अज्ञात परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए गए स्थान को हटाता है, ताकि मनुष्य के हृदय में अज्ञात परमेश्वर की छवि अब और न रहे। अपने वास्तविक कार्य और वास्तविक वचनों, समस्त देशों में अपने आवागमन, और मनुष्यों के बीच वह जो असाधारण रूप से वास्तविक और सामान्य कार्य करता है, उस सबके माध्यम से वह मनुष्य के लिए परमेश्वर की वास्तविकता जानने का निमित्त बनता है, और मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर का स्थान हटाता है। दूसरी दृष्टि से, परमेश्वर अपने देह द्वारा कहे गए वचनों का उपयोग मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए, और समस्त कामों को पूरा करने के लिए करता है। अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर यही कार्य संपन्न करेगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना
अंत के दिनों का कार्य वचन बोलना है। वचनों के माध्यम से मनुष्य में बड़े परिवर्तन किए जा सकते हैं। इन वचनों को स्वीकार करने पर लोगों में अब जो परिवर्तन हुए हैं, वे उन परिवर्तनों से बहुत अधिक बड़े हैं, जो चिह्न और चमत्कार स्वीकार करने पर अनुग्रह के युग में लोगों में हुए थे। क्योंकि अनुग्रह के युग में हाथ रखकर और प्रार्थना करके दुष्टात्माओं को मनुष्य से निकाला जाता था, परंतु मनुष्य के भीतर का भ्रष्ट स्वभाव तब भी बना रहता था। मनुष्य को उसकी बीमारी से चंगा कर दिया जाता था और उसके पाप क्षमा कर दिए जाते थे, किंतु जहाँ तक इस बात का संबंध था कि मनुष्य को उसके भीतर के शैतानी स्वभावों से कैसे मुक्त किया जाए, तो यह कार्य अभी किया जाना बाकी था। मनुष्य को उसके विश्वास के कारण केवल बचाया गया था और उसके पाप क्षमा किए गए थे, किंतु उसका पापी स्वभाव उसमें से नहीं निकाला गया था और वह अभी भी उसके अंदर बना हुआ था। मनुष्य के पाप देहधारी परमेश्वर के माध्यम से क्षमा किए गए थे, परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य के भीतर कोई पाप नहीं रह गया था। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए जा सकते हैं, परंतु मनुष्य इस समस्या को हल करने में पूरी तरह असमर्थ रहा है कि वह आगे कैसे पाप न करे और कैसे उसका भ्रष्ट पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया और रूपांतरित किया जा सकता है। मनुष्य के पाप क्षमा कर दिए गए थे और ऐसा परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से हुआ था, परंतु मनुष्य अपने पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीता रहा। इसलिए मनुष्य को उसके भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से पूरी तरह से बचाया जाना आवश्यक है, ताकि उसका पापी स्वभाव पूरी तरह से मिटाया जा सके और वह फिर कभी विकसित न हो पाए, जिससे मनुष्य का स्वभाव रूपांतरित होने में सक्षम हो सके। इसके लिए मनुष्य को जीवन में उन्नति के मार्ग को समझना होगा, जीवन के मार्ग को समझना होगा, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझना होगा। साथ ही, इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता होगी, ताकि उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल सके और वह प्रकाश की चमक में जी सके, ताकि वह जो कुछ भी करे, वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो, ताकि वह अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, और इसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा। जिस समय यीशु अपना कार्य कर रहा था, उसके बारे में मनुष्य का ज्ञान तब भी अनिश्चित और अस्पष्ट था। मनुष्य ने हमेशा उसे दाऊद का पुत्र माना, और उसके एक महान नबी और उदार प्रभु होने की घोषणा की, जिसने मनुष्य को पापों से छुटकारा दिलाया। कुछ लोग अपने विश्वास के बल पर केवल उसके वस्त्र के किनारे को छूकर ही चंगे हो गए; अंधे देख सकते थे, यहाँ तक कि मृतक भी जिलाए जा सकते थे। कितु मनुष्य अपने भीतर गहराई से जड़ जमाए हुए भ्रष्ट शैतानी स्वभाव का पता लगाने में असमर्थ रहा, न ही वह यह जानता था कि उसे कैसे दूर किया जाए। मनुष्य ने बहुत अनुग्रह प्राप्त किया, जैसे देह की शांति और खुशी, एक व्यक्ति के विश्वास करने पर पूरे परिवार को आशीष, बीमारी से चंगाई, इत्यादि। शेष मनुष्य के भले कर्म और उसकी ईश्वर के अनुरूप दिखावट थी; यदि कोई इनके आधार पर जी सकता था, तो उसे एक स्वीकार्य विश्वासी माना जाता था। केवल ऐसे विश्वासी ही मृत्यु के बाद स्वर्ग में प्रवेश कर सकते थे, जिसका अर्थ था कि उन्हें बचा लिया गया है। परंतु अपने जीवन-काल में इन लोगों ने जीवन के मार्ग को बिलकुल नहीं समझा था। उन्होंने सिर्फ इतना किया कि अपना स्वभाव बदलने के किसी मार्ग को अपनाए बिना बस एक निरंतर चक्र में पाप किए और उन्हें स्वीकार कर लिया : अनुग्रह के युग में मनुष्य की स्थिति ऐसी थी। क्या मनुष्य ने पूर्ण उद्धार पा लिया है? नहीं! इसलिए, उस चरण का कार्य पूरा हो जाने के बाद भी न्याय और ताड़ना का कार्य बाकी रह गया था। यह चरण वचन के माध्यम से मनुष्य को शुद्ध बनाने और उसके परिणामस्वरूप उसे अनुसरण हेतु एक मार्ग प्रदान करने के लिए है। यह चरण फलदायक या अर्थपूर्ण न होता, यदि यह दुष्टात्माओं को निकालने के साथ जारी रहता, क्योंकि यह मनुष्य की पापपूर्ण प्रकृति को दूर करने में असफल रहता और मनुष्य केवल अपने पापों की क्षमा पर आकर रुक जाता। पापबलि के माध्यम से मनुष्य के पाप क्षमा किए गए हैं, क्योंकि सलीब पर चढ़ने का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है और परमेश्वर ने शैतान को जीत लिया है। किंतु मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव अभी भी उसके भीतर बना रहने के कारण वह अभी भी पाप कर सकता है और परमेश्वर का प्रतिरोध कर सकता है, और परमेश्वर ने मानवजाति को प्राप्त नहीं किया है। इसीलिए कार्य के इस चरण में परमेश्वर मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने के लिए वचन का उपयोग करता है और उससे सही मार्ग के अनुसार अभ्यास करवाता है। यह चरण पिछले चरण से अधिक अर्थपूर्ण और साथ ही अधिक लाभदायक भी है, क्योंकि अब वचन ही है जो सीधे तौर पर मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करता है और मनुष्य के स्वभाव को पूरी तरह से नया होने में सक्षम बनाता है; कार्य का यह चरण कहीं अधिक विस्तृत है। इसलिए, अंत के दिनों में देहधारण ने परमेश्वर के देहधारण के महत्व को पूरा किया है और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन-योजना का पूर्णतः समापन किया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)
अंत के दिनों का कार्य सभी को उनके स्वभाव के आधार पर पृथक करना और परमेश्वर की प्रबंधन योजना का समापन करना है, क्योंकि समय निकट है और परमेश्वर का दिन आ गया है। परमेश्वर उन सभी को, जो उसके राज्य में प्रवेश करते हैं—वे सभी, जो बिलकुल अंत तक उसके वफादार रहे हैं—स्वयं परमेश्वर के युग में ले जाता है। फिर भी, स्वयं परमेश्वर के युग के आगमन से पूर्व, परमेश्वर का कार्य मनुष्य के कर्मों को देखना या मनुष्य के जीवन की जाँच-पड़ताल करना नहीं, बल्कि उसकी अवज्ञा का न्याय करना है, क्योंकि परमेश्वर उन सभी को शुद्ध करेगा, जो उसके सिंहासन के सामने आते हैं। वे सभी, जिन्होंने आज के दिन तक परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण किया है, वे लोग हैं, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने आते हैं, और ऐसा होने से, हर वह व्यक्ति, जो परमेश्वर के कार्य को उसके अंतिम चरण में स्वीकार करता है, परमेश्वर द्वारा शुद्ध किए जाने लायक है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के कार्य को उसके अंतिम चरण में स्वीकार करने वाला हर व्यक्ति परमेश्वर के न्याय का पात्र है।
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... "न्याय" शब्द का जिक्र होने पर संभवत: तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे, जो यहोवा ने सभी स्थानों पर कहे थे और फटकार के जो वचन यीशु ने फरीसियों से कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के बावजूद, ये वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय नहीं थे; बल्कि वे विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात् विभिन्न संदर्भों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं। ये वचन मसीह द्वारा अंत के दिनों में मनुष्यों का न्याय करते हुए कहे जाने वाले शब्दों से भिन्न हैं। अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
आज परमेश्वर मुख्य रूप से "वचन के देह में प्रकट होने" का कार्य पूरा करने, मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचन का उपयोग करने, और मनुष्य से वचन के व्यवहार और शुद्धिकरण को स्वीकार करवाने के लिए देह बना है। अपने वचनों से वह तुम्हें पोषण और जीवन प्राप्त करवाने का कारण बनता है; उसके वचनों में तुम उसके कार्य और कर्मों को देखते हो। परमेश्वर तुम्हें ताड़ना देने और शुद्ध करने के लिए वचन का उपयोग करता है, और इस प्रकार यदि तुम्हें कठिनाई सहनी पड़ती है, तो वह भी परमेश्वर के वचन के कारण है। आज परमेश्वर तथ्यों के साथ नहीं, बल्कि वचनों के साथ कार्य करता है। केवल जब उसके वचन तुम पर आ जाएँ, तभी पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर कार्य कर सकता है, और तुम्हें पीड़ा भुगतने या मिठास का अनुभव करने का कारण बन सकता है। केवल परमेश्वर का वचन ही तुम्हें वास्तविकता में ला सकता है, और केवल परमेश्वर का वचन ही तुम्हें पूर्ण बनाने में सक्षम है। और इसलिए, तुम्हें कम से कम यह समझना चाहिए : अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य मुख्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण बनाने और मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए अपने वचन का उपयोग करना है। जो कुछ भी कार्य वह करता है, वह सब वचन के द्वारा किया जाता है; तुम्हें ताड़ना देने के लिए वह तथ्यों का उपयोग नहीं करता। ऐसे अवसर आते हैं, जब कुछ लोग परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। परमेश्वर भारी असुविधा उत्पन्न नहीं करता, तुम्हारी देह को ताड़ना नहीं दी जाती, न ही तुम कठिनाइयाँ सहते हो—किंतु जैसे ही उसका वचन तुम पर आता है और तुम्हें शुद्ध करता है, तो यह तुम्हारे लिए असहनीय होता है। क्या ऐसा नहीं है? सेवाकर्मियों के समय के दौरान परमेश्वर ने मनुष्य को अतल गड्ढे में डालने के लिए कहा था। क्या मनुष्य वास्तव में अतल गड्ढे में पहुँच गया? मनुष्य को शुद्ध करने हेतु वचनों के उपयोग के माध्यम से ही मनुष्य ने अतल गड्ढे में प्रवेश कर लिया। और इसलिए, अंत के दिनों में जब परमेश्वर देहधारी होता है, तो सब-कुछ संपन्न और स्पष्ट करने के लिए वह मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह क्या है; केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह स्वयं परमेश्वर है। जब देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह वचन बोलने के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं करता—इसलिए तथ्यों की कोई आवश्यकता नहीं है; वचन पर्याप्त हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह मुख्य रूप से इसी कार्य को करने के लिए आया है, ताकि मनुष्य को अपने वचनों का सामर्थ्य और सर्वोच्चता देखने दे, ताकि मनुष्य को यह देखने दे कि वह कैसे विनम्रतापूर्वक अपने आपको अपने वचनों में छिपाता है, और ताकि मनुष्य को अपने वचनों से अपनी समग्रता जानने दे। उसका समस्त स्वरूप उसके वचनों में है, उसकी बुद्धि और चमत्कारिकता उसके वचनों में है। इसमें तुम्हें वे कई तरीके दिखाए जाते हैं, जिनके द्वारा परमेश्वर अपने वचन बोलता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है
राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरुआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिए काम करने के लिए अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोण से बोल सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, उसकी बुद्धि और चमत्कार को जान सके। इस तरह का कार्य मनुष्य को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल करने के लिए किया जाता है। वचन के युग में वचन के उपयोग का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को मनुष्य के सार और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए, यह जाना जा सकता है। वचन के युग में परमेश्वर जिन सभी कार्यों को करना चाहता है, वे वचन के द्वारा संपन्न होते हैं। वचन के द्वारा ही मनुष्य की असलियत का पता चलता है, उसे नष्ट किया जाता है और परखा जाता है। मनुष्य ने वचन देखा है, सुना है और वचन के अस्तित्व को जाना है। इसके परिणामस्वरूप वह परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, मनुष्य परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने और उसकी बुद्धि पर, साथ ही साथ मनुष्य के लिए परमेश्वर के हृदय के प्रेम और मनुष्य को बचाने की उसकी इच्छा पर विश्वास करता है। यद्यपि "वचन" शब्द सरल और साधारण है, देहधारी परमेश्वर के मुख से निकला वचन संपूर्ण ब्रह्माण्ड को झकझोरता है; और उसका वचन मनुष्य के हृदय को रूपांतरित करता है, मनुष्य के सभी विचारों और पुराने स्वभाव और समस्त संसार के पुराने स्वरूप में परिवर्तन लाता है। युगों-युगों से केवल आज के दिन का परमेश्वर ही इस प्रकार से कार्य करता है और केवल वही इस प्रकार से बोलता और मनुष्य का उद्धार करता है। इसके बाद मनुष्य वचन के मार्गदर्शन में, उसकी चरवाही में और उससे प्राप्त आपूर्ति में जीवन जीता है। वह वचन के संसार में जीता है, परमेश्वर के वचन के कोप और आशीषों के बीच जीता है, तथा और भी अधिक लोग अब परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के अधीन जीने लगे हैं। ये वचन और यह कार्य सब कुछ मनुष्य के उद्धार, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने और पुरानी सृष्टि के संसार के मूल स्वरूप को बदलने के लिए है। परमेश्वर ने संसार की सृष्टि वचन से की, वह समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य की अगुवाई वचन के द्वारा करता है, उन्हें वचन के द्वारा जीतता और उनका उद्धार करता है। अंत में, वह इसी वचन के द्वारा समस्त प्राचीन जगत का अंत कर देगा। तभी उसके प्रबंधन की योजना पूरी होगी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, राज्य का युग वचन का युग है
इस युग के दौरान परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य मुख्य रूप से मनुष्य के जीवन के लिए वचनों का पोषण देना; मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव और उसकी प्रकृति के सार को उजागर करना; और धर्म संबंधी धारणाओं, सामंती सोच, पुरानी पड़ चुकी सोच, और मनुष्य के ज्ञान और संस्कृति को समाप्त करना है। इन सभी चीजों को परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर करने के माध्यम से शुद्ध किया जाना है। अंत के दिनों में, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर चिह्नों और चमत्कारों का नहीं, वचनों का उपयोग करता है। वह मनुष्य को उजागर करने, उसका न्याय करने, उसे ताड़ना देने और उसे पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, ताकि परमेश्वर के वचनों में मनुष्य परमेश्वर की बुद्धि और मनोरमता देखने लगे, और परमेश्वर के स्वभाव को समझने लगे, और ताकि परमेश्वर के वचनों के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर के कर्मों को निहारे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना
युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का स्वभाव ताड़ना और न्याय का है, जिसमें वह वो सब प्रकट करता है जो अधार्मिक है, ताकि वह सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय कर सके और उन लोगों को पूर्ण बना सके, जो सच्चे दिल से उसे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ें उनके प्रकार के अनुसार अलग की जाएँगी और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाएँगी। यही वह क्षण है, जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को उजागर करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जा सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंग दिखाता है, जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरे को बुरे के साथ रखा जाएगा, भले को भले के साथ, और समस्त मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार अलग किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, ताकि बुरे को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँ। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से पूरा करना होगा। चूँकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपांतरित कर सकता है और उसे पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दंडित कर सकता है। इसलिए, इसी तरह का स्वभाव युग के महत्व के साथ व्याप्त होता है, और प्रत्येक नए युग के कार्य की खातिर उसके स्वभाव का प्रकटन और प्रदर्शन अभिव्यक्त किया जाता है। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर अपने स्वभाव को मनमाने और निरर्थक ढंग से प्रकट करता है। मान लो अगर, अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का परिणाम प्रकट करने में परमेश्वर अभी भी मनुष्य पर असीम करुणा बरसाता रहता और उससे प्रेम करता रहता, उसे धार्मिक न्याय के अधीन करने के बजाय उसके प्रति सहिष्णुता, धैर्य और क्षमा दर्शाता रहता, और उसे माफ़ करता रहता, चाहे उसके पाप कितने भी गंभीर क्यों न हों, उसे रत्ती भर भी धार्मिक न्याय के अधीन न करता : तो फिर परमेश्वर के समस्त प्रबंधन का समापन कब होता? कब इस तरह का कोई स्वभाव सही मंज़िल की ओर मानवजाति की अगुआई करने में सक्षम होगा? उदाहरण के लिए, एक ऐसे न्यायाधीश को लो, जो हमेशा प्रेममय है, एक उदार चेहरे और सौम्य हृदय वाला न्यायाधीश। वह लोगों को उनके द्वारा किए गए अपराधों के बावजूद प्यार करता है, और वह उनके प्रति प्रेममय और सहिष्णु रहता है, चाहे वे कोई भी हों। ऐसी स्थिति में, वह कब न्यायोचित निर्णय पर पहुँचने में सक्षम होगा? अंत के दिनों के दौरान, केवल धार्मिक न्याय ही मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार पृथक् कर सकता है और उन्हें एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धार्मिक स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)
परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य का मूलभूत उद्देश्य मानवता को शुद्ध करना है और उन्हें उनके अंतिम विश्राम के लिए तैयार करना है; इस शुद्धिकरण के बिना संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन अवज्ञाकारी तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। ... बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है। यदि परमेश्वर ने दुष्टों का नाश नहीं किया होता, बल्कि उन्हें बचा रहने देता तो प्रत्येक मनुष्य अभी भी विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होता और परमेश्वर समस्त मानवता को एक बेहतर क्षेत्र में नहीं ला पाता। ऐसा कार्य पूर्ण नहीं होता। जब वह अपना कार्य समाप्त कर लेगा, तो संपूर्ण मानवता पूर्णतः पवित्र हो जाएगी। केवल इसी तरीक़े से परमेश्वर शांतिपूर्वक विश्राम में रह सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?