सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है, एक राक्षसी समूह, जो परमेश्वर और सत्य के सबसे अधिक विरुद्ध है। राक्षस शैतान का मनुष्य रूप है। शैतान और दुष्ट आत्माओं का पुनर्जन्म है राक्षस, जोकि परमेश्वर का कट्टर दुश्मन है। इसलिए जब अंत के दिनों में परमेश्वर चीन में देहधारी होकर कार्य करते हैं, तो सीसीपी सरकार द्वारा वे जिस पागल दमन और उत्पीड़न को झेलते हैं, वह अवश्यंभावी है। परंतु धार्मिक समुदाय के अधिकतर पादरी और एल्डर्स परमेश्वर के सेवक हैं, जो बाइबल से परिचित हैं| न सिर्फ वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को खोज कर उसका अध्ययन नहीं करते, इसकी बजाय वे उस पर अपनी राय थोप कर, उसकी निंदा कर, प्रचंडता से विरोध करते हैं। यह अविश्वसनीय है! इसमें कोई अचरज नहीं कि सीसीपी सरकार परमेश्वर के कार्य की निंदा करती है। धार्मिक पादरी और एल्डर्स भी परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा क्यों करते हैं?
उत्तर: परमेश्वर दो बार देहधारी हुए। दो बार उन्होंने धार्मिक समुदाय और दुनिया की सरकारों द्वारा सामूहिक विरोध, निंदा और उत्पीड़न झेला है। यह साबित करता है कि "प्राचीन काल से ही सच्चे मार्ग को उत्पीड़ित किया जाता रहा है।" अधिकतर लोग इस मामले को समझ नहीं पाते। वे धार्मिक नेताओं द्वारा परमेश्वर के कार्य की व्यग्र निंदा को ख़ास तौर से अविश्वसनीय महसूस करते हैं। वास्तव में, इसमें कुछ भी विचित्र नहीं है। पुराने ज़माने में, जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए प्रकट हुए, पहले यहूदी धर्म के मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों द्वारा उनकी व्यग्रता से निंदा की गयी, उनकी ईश-निंदा की गयी, और उनको गिरफ्तार किया गया। बाइबल में इन तथ्यों का स्पष्ट उल्लेख है। उन मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों को बाइबल की शिक्षा देनी चाहिए थी और परमेश्वर की सेवा करनी चाहिए थी। उन्होंने देहधारी प्रभु यीशु की निंदा कर, उनका पीछा कर, उनका उत्पीड़न क्यों किया? क्या परमेश्वर में उनका विश्वास प्रभु यीशु के आने पर उनको सूली पर चढ़ा देने के उद्देश्य से था? बिल्कुल नहीं! उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध ऐसे काम क्यों किये? सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने रहस्य को यहाँ उजागर किया है। आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचनों को पढ़ें।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन-सत्य की खोज नहीं की। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के नाम के साथ व्यर्थ ही चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या ये दृष्टिकोण हास्यास्पद और बेतुके नहीं हैं? मैं तुम लोगों से आगे पूछता हूँ : क्या तुम लोगों के लिए वो ग़लतियां करना बेहद आसान नहीं, जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थीं, क्योंकि तुम लोगों के पास यीशु की थोड़ी-भी समझ नहीं है? क्या तुम सत्य का मार्ग जानने योग्य हो? क्या तुम सचमुच विश्वास दिला सकते हो कि तुम मसीह का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते कि तुम मसीह का विरोध करोगे या नहीं, तो मेरा कहना है कि तुम पहले ही मौत की कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे, वे सभी यीशु का विरोध करने, यीशु को अस्वीकार करने, उसे बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते, वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उसे बुरा-भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान द्वारा किए गए धोखे की तरह देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटे यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता? जिसका तुम लोग सामना करते हो, वह पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा होगी, कलीसियाओं के लिए कहे गए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु द्वारा व्यक्त किए गए समस्त वचनों को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो, तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम हठपूर्वक अपनी ग़लतियां मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग उसके कार्य को कैसे समझ सकते हो? मैं तुम लोगों को यह बताता हूँ : जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, फिर भी अंधों की तरह श्वेत बादलों पर यीशु के आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा करेंगे और ये वे वर्ग हैं, जो नष्ट किए जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)।
"ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)।
"हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।' देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अनुसरण करना ही परमेश्वर में सच्चे अर्थ में विश्वास करना है')।
"मनुष्य द्वारा परमेश्वर के विरोध का कारण, एक ओर तो मनुष्य का स्वभाव भ्रष्ट है, दूसरी ओर, परमेश्वर के प्रति अज्ञानता, उन सिद्धांतों की जिनसे परमेश्वर कार्य करता है और मनुष्य के लिए उसकी इच्छा की समझ की कमी है। ये दोनों पहलू मिलकर परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध के इतिहास को बनाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने, फरीसियों, धार्मिक पादरियों और एल्डर्स द्वारा परमेश्वर के विरोध के मूल कारण के बारे में स्पष्ट तौर पर कहा है। धार्मिक पादरी और एल्डर्स सिर्फ बाइबल के ज्ञान और धर्मसैद्धांतिक सिद्धांतों की खोज करते हैं, सत्य की खोज नहीं करते। पादरी और एल्डर्स सत्य से हतोत्साहित और उसके प्रति विद्वेषपूर्ण होते हैं। जब वे देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अभिव्यक्तियाँ केवल सत्य होती हैं, तो वे विद्वेष से भर जाते हैं, और परमेश्वर पर अपनी राय थोप कर उनका विरोध और निंदा करने लगते हैं। जब यहूदी धर्म के फरीसियों ने प्रभु यीशु का वचन सुना, तो उन्होंने खुले तौर पर माना कि प्रभु यीशु का वचन आधिकारिक और शक्तिशाली है, जो परमेश्वर से उपजा है। फिर भी उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा की, उनको कैद किया और सूली पर चढ़ाया? तर्क के आधार पर कहें, तो चूंकि उन्होंने जान लिया था कि प्रभु यीशु का वचन सत्य है, इसलिए उन्हें जवाब के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए थी: क्या प्रभु यीशु मसीह हैं? परमेश्वर अवश्य उनको प्रबुद्ध करते। लेकिन उन्होंने न तो परमेश्वर से प्रार्थना की, न ही जवाब जानना चाहा। उन्होंने सीधे प्रभु यीशु का ईश-निन्दा करने के लिए तिरस्कार किया। विशेष तौर पर, उन्होंने प्रभु यीशु से बार-बार पूछा, "क्या आप मसीह हैं?" जब प्रभु यीशु ने उनको सीधे जवाब दिया, तो उन्होंने विश्वास करने से मना कर दिया। यह ये साबित करने के लिए काफी है कि फरीसी बहुत अहंकारी थे! वे बाइबल की बहुत अधिक आराधना करते थे! उनमें सत्य व्यक्त करने वाले मसीह के प्रति कोई आदर भाव नहीं था। उनका तर्क था कि प्रभु यीशु चाहे जितना सत्य व्यक्त कर लें, प्रभु द्वारा व्यक्त वचन कितना भी आधिकारिक और शक्तिशाली क्यों न रहा हो, जब तक उनको मसीह नहीं कहा जाता, वे तब तक प्रभु यीशु की निंदा और विरोध करेंगे और यहाँ तक कि उनको सूली पर चढ़ा देंगे। क्या आप लोग कहेंगे कि यहूदी धर्म के वे अगुवा सत्य से घृणा करने वाले राक्षस थे? यदि प्रभु यीशु सत्य को व्यक्त न कर पाते, तो क्या उनके मन में उनके लिए इतनी नफ़रत होती? इससे सत्य से नफ़रत करने वाले फरीसियों की शैतानी प्रवृत्ति पूरी तरह से उजागर हो गयी थी। प्रभु यीशु के प्रति फरीसियों के विरोध का मूल कारण यही है! जिस प्रकार प्रभु यीशु ने फरीसियों का भंडाफोड़ किया: "परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिसने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना; …यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो" (यूहन्ना 8:40, 46-47)। हम साफ़ तौर पर समझ रहे हैं कि यहूदी अगुवाओं ने प्रभु यीशु का विरोध और ह्त्या क्यों की। तो फिर धार्मिक पादरी और एल्डर्स अंत के दिनों में इतनी व्यग्रता से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा क्यों करते हैं, यह समझना मुश्किल नहीं है। हममें से जिन लोगों ने परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है, वे समझ सकेंगे कि सत्य से नफ़रत करने वाले लोग आवश्यक रूप से परमेश्वर पर अपनी राय थोपते, उनकी निंदा और विरोध करते हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय कार्य मनुष्य की शैतानी प्रवृत्ति को शुद्ध करना है। मनुष्य के साथ न्याय कर उसको शुद्ध करने के लिए, सत्य को व्यक्त करके। सत्य को स्वीकार करनेवाले लोग शुद्धिकरण और उद्धार प्राप्त करेंगे। सत्य को अस्वीकार करनेवालों की शैतानी प्रवृत्ति नहीं बदली जायेगी। वे अब भी परमेश्वर का विरोध करेंगे और उनको धोखा देंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में, जो कुछ लोग सत्य से हतोत्साहित और उसके विरोधी थे, उनकी पूरी पोल खुल गयी। उन अविश्वासियों और मसीह-विरोधियों की सफाई कर उन्हें निकाल बाहर किया गया है। धार्मिक पादरियों और एल्डर्स की बात करें, तो वे जानबूझ कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और ईश-निंदा क्यों करते हैं? क्या इसलिए नहीं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अनेक सत्य व्यक्त करते हैं, और उन्होंने लोगों के एक समूह पर विजय पा कर उनकी रक्षा की है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य ने उनकी पोल खोल दी है, इसलिए वे परमेश्वर से घृणा और उनकी निंदा करते हैं। उनकी शैतानी प्रवृत्ति का पूरा खुलासा हो चुका है। परमेश्वर इन पोल खुले मसीह-विरोधियों से क्यों घृणा कर उन्हें श्राप देते हैं? इसलिए कि वे परमेश्वर की भेड़ों पर मजबूती से कब्जा कर के परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उनसे स्पर्धा करते हैं, और लोगों को सच्चे मार्ग का अध्ययन कर उसको पाने से रोकते हैं। वे एक स्वतंत्र राज्य निर्माण में जुट जाते हैं और मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने और उसको निगल जाने वाले राक्षस बन जाते हैं। परमेश्वर के स्वभाव को आघात पहुंचाने के लिए, उनको परमेश्वर द्वारा निंदित और शापित किया जाता है।
पादरियों और एल्डर्स द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा का आधार क्या है? पहले तो, वे बाइबल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के उल्लेख का अभाव देखते हैं। वे बस यह मानते हैं कि परमेश्वर के सारे वचन बाइबल में लिखे हुए हैं, और परमेश्वर का वचन बाइबल के बाहर है ही नहीं। इसलिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को नकारते हैं। दूसरे, वे नहीं समझते कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ साकार कैसे होती हैं। फरीसियों की तरह वे केवल नियमों का पालन करते हैं। प्रभु यीशु का धर्मोपदेश जितना भी गूढ़ और आधिकारिक क्यों न रहा हो, उनके पास कितना भी सत्य हो, जब तक प्रभु को मसीह न कहा गया, वे उनकी निंदा करेंगे, विरोध करेंगे और प्रभु यीशु को सूली पर भी चढ़ा देंगे। तीसरे, वे मसीह को देह रूप में नहीं पहचानते, न ही वे यह स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर देहधारी होंगे। प्रेरित यूहन्ना के अनुसार, वे मसीह-विरोधी हैं। चौथे, वे सीसीपी सरकार द्वारा फैलाई गयी अफवाहों और गढ़ी गयी झूठी बातों पर चल कर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को नकार कर उनकी निंदा करते हैं। वे सीसीपी की तरफदारी भी करते हैं। वे सीसीपी द्वारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर पूरी पाबंदी लगाने तक का इंतज़ार नहीं कर सकते। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि, उपदेश देते और अपना कार्य करते समय प्रभु यीशु आराधनालय में क्यों नहीं जाते थे? उन्होंने ऐसे किसी को क्यों ढूँढ़ा, जो बियाबान में परमेश्वर से दिल लगा रहा था? अगर प्रभु यीशु आराधानालय जाते, तो उन्हें अवश्य निष्कासित कर दिया जाता। तो यहूदी नेता निश्चित तौर पर उनको ले जा कर सत्ताधारियों को सौंप देते। अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देने के लिए कलीसिया जाएँ, तो क्या परिणाम होगा? वे निश्चित रूप से पुलिस को खबर कर देंगे। जिस तरह से धार्मिक पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध करते हैं, वह उस ज़माने में फरीसियों द्वारा प्रभु यीशु के विरोध के सामान ही है। तो हम नहीं समझ पाते कि वे सत्य से घृणा करने वाले दुष्ट सेवक और मसीह-विरोधी हैं। वे राक्षस हैं, जो हमें स्वर्ग के राज्य में जाने से रोकते हैं!
"जोखिम भरा है मार्ग स्वर्ग के राज्य का" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?