आप सब परमेश्वर में विश्वास करते हैं; और मैं मार्क्स और लेनिन में। मैंने, तरह-तरह की धार्मिक आस्थाओं पर शोध किया है। अपने कई सालों के शोधकार्य के जरिये, मैंने एक समस्या देखी है। सभी धर्म किसी न किसी, परमेश्वर में विश्वास करते हैं। लेकिन परमेश्वर के तमाम विश्वासियों में से किसी ने भी, परमेश्वर को नहीं देखा है। उनकी आस्था सिर्फ भावनाओं की बुनियाद पर टिकी है। इसलिए, मैं धार्मिक आस्था के बारे में, इस नतीजे पर पहुंचा हूँ: धर्म विशुद्ध रूप से, काल्पनिक और अंधविश्वास है जिसका विज्ञान में, कोई आधार नहीं है। आज के समाज में विज्ञान बहुत विकसित है। गलतियाँ न करें इसके लिए हर चीज़ को, विज्ञान पर आधारित होना चाहिए। कम्युनिस्ट पार्टी इसमें विश्वास करती है। हम परमेश्वर में विश्वास नहीं करते। दी इंटरनेशनेल में लिखा है: "कभी भी दुनिया का उद्धार करनेवाला कोई नहीं हुआ, न देवता, न सम्राट, जिन पर भरोसा किया जा सके। मानवजाति को खुश रहने के लिए, खुद अपने भरोसे रहना होगा!" दी इंटरनेशनेल में साफतौर से लिखा है, "कभी भी दुनिया का उद्धार करनेवाला कोई नहीं हुआ।" हमारे पूर्वज परमेश्वर में जिस वजह से विश्वास करते थे, वह मुख्य रूप से यह है कि उस वक्त वे सूर्य, चंद्रमा और तारे जैसे अजूबों से रूबरू थे, जिनकी कोई वैज्ञानिक व्याख्या नहीं थी। इसलिए उनके दिलो-दिमाग में, अति-प्राकृतिक शक्तियों को लेकर डर और अचरज पैदा हो गया। इस तरह से धर्म की शुरुआती धारणाएं बनीं। यही नहीं, जब इंसान कुदरती तबाहियों और बीमारियों जैसी मुश्किलें हल नहीं कर पाये, तब उन्होंने परमेश्वर को आदर देकर आध्यात्मिक सहूलियत खोजी। यह है धर्म का उद्भव। हम देख सकते हैं कि यह तार्किक, या वैज्ञानिक नहीं था। आजकल हम ज़्यादा विकसित हैं विज्ञान ने बड़ी तरक्की की है। उड़ान और अंतरिक्ष उद्योग, बायोटेक्नॉलॉजी, जेनेटिक इंजिनियरिंग, और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में, मानवजाति ने बहुत तरक्की की है। पहले हम नहीं समझते थे और हमारे पास समस्याएँ हल करने के तरीके नहीं थे। लेकिन अब हम हर चीज़ को विज्ञान के जरिये समझा सकते हैं, और हल के लिए हम विज्ञान पर भरोसा करते हैं। विज्ञान और टेक्नॉलॉजी के इस युग में, परमेश्वर में विश्वास करना, क्या यह अज्ञानी होना, नहीं है? क्या आपको नहीं लगता आप पीछे छूट जाएंगे? हम सिर्फ विज्ञान में विश्वास कर सकते हैं, बस।
उत्तर: आप कहते हैं कि हमारी आस्था लोगों के विज्ञान को न समझने के कारण है, और अतिप्राकृतिक शक्तियों का सामना करने के डर और अचरज से पैदा होती है और यह अंधविश्वास है। यह सही नहीं है और निराधार है। धर्म और अंधविश्वास, जिसकी आप बात करते हैं दोनों अलग-अलग हैं। आप कम्युनिस्ट, धार्मिक आस्था को सिर्फ अंधविश्वास कह कर उसकी निंदा करते हैं और उस पर बंदिश लगाते हैं। मेरे ख्याल से यह बेतुका है। दुनिया के मुख्य धर्मों में, यहूदी धर्म, कैथोलिक धर्म और ईसाई धर्म, ये सभी परमेश्वर और प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं। सिर्फ यही है असली धार्मिक आस्था। तीन हज़ार साल पहले, व्यवस्था के युग में, परमेश्वर के कार्य ने यहूदी धर्म को जन्म दिया। इस्राएली लोगों ने परमेश्वर की वाणी को सुना, और उनका नाम जाना। उन्होंने हमेशा यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की, और यहोवा द्वारा घोषित आदेशों का पालन किया। उन सबने यहोवा परमेश्वर की आराधना की। हम इसकी जांच कर सकते हैं कि यहूदी धर्म व्यवस्था के युग में परमेश्वर के कार्य की वजह से शुरू हुआ। जब अनुग्रह का युग आया, तब परमेश्वर प्रभु यीशु के रूप में देहधारी हुए, और कार्य शुरू किया। सूली पर चढ़ा देने पर, उन्होंने मानवजाति के लिए प्रायश्चित किया। बहुत-से लोगों ने उनमें आस्था प्रकट की और तब प्रभु यीशु की कलीसिया बनी। सैकड़ों साल बाद, ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म, और पूर्वी रूढ़िवादी कलीसिया का विकास हुआ। ये संसार के सबसे बड़े धर्म हैं। ये सभी प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से पैदा हुए। अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य व्यक्त किया है और न्याय किया है, और बहुत-से लोगों पर विजय पायी और उन्हें बचाया है। जो लोग सच्चा विश्वास करते हैं, उन्होंने उनकी वाणी को सुना है, और वे परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष आये हैं। इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का आगमन हुआ। इन सच्चाइयों से साबित होता है कि धार्मिक आस्था पूरी तरह से परमेश्वर के प्रकट होने और कार्य से पैदा हुई। अनगिनत ईसाइयों के जीवन अनुभवों द्वारा परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की जांच होती है। कोई भी ताकत, परमेश्वर की कलीसिया, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को, गिरा नहीं सकती या उन्हें रोक नहीं सकती। यह एक तथ्य है। इतिहास की शुरुआत से ही, परमेश्वर इंसानों को रास्ता दिखाने, छुटकारा दिलाने और उन्हें बचाने का कार्य करते रहे हैं। परमेश्वर का प्रकटन और कार्य आगे बढ़ने के लिए हम सबकी अगुवाई करता है। कोई भी इन सच्चाइयों को नकार नहीं सकता। धार्मिक आस्था पर शोध करना आपकी विशेषज्ञता है। आपको ये बातें समझनी चाहिए। आप ये कहकर कि धार्मिक आस्था अज्ञानता से पैदा हुई है, ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ क्यों कर रहे हैं? क्या ऐसा कहना बेतुका नहीं है?
आपने इतने सालों तक धार्मिक आस्था का अध्ययन किया है। आप तो अंधविश्वास और धर्म में भी फर्क नहीं कर पा रहे हैं। इससे पता चलता है कि आप धर्म को नहीं समझते। इन दिनों, ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं। दुनिया की एक-तिहाई आबादी से भी ज़्यादा लोग विश्वास करते हैं। दुनिया के महानतम वैज्ञानिक ईसाई रहे हैं, जैसे कि न्यूटन, गैलीलियो, और कोपरनिकस। क्या आप इन लोगों को अंधविश्वासी कहेंगे? वे विज्ञान में विश्वास नहीं करते थे? विज्ञान भौतिक संसार के अनुसंधान के नतीजे पैदा करता है, लेकिन उसमें आध्यात्मिक क्षेत्र की खोजबीन करने की ताकत नहीं है। परमेश्वर में हमारी आस्था विज्ञान की बुनियाद पर नहीं है। बल्कि हमारी आस्था परमेश्वर के वचनों और कार्य की बुनियाद पर है। पवित्र बाइबल परमेश्वर के कार्य की गवाही है, और परमेश्वर के कार्य के मानवजाति के अनुभव का ऐतिहासिक दस्तावेज है। बाइबल में नबियों ने हज़ारों साल पहले भविष्यवाणी कर दी थी कि अंत के दिनों में क्या होगा। ये भविष्यवाणियाँ सच साबित हो रही हैं, जो हमें दर्शाता है कि परमेश्वर का प्रकटन और कार्य वास्तविक है, और परमेश्वर ही मानवजाति और पूरे ब्रह्मांड पर शासन करते हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता।
आपका दावा है, कि अगर लोग परमेश्वर को नहीं देख सकते, तो उनका अस्तित्व नहीं है। लेकिन जब आप नकली पैसे जला कर कब्रिस्तानों में बंदगी करते हैं, तब क्या आपको मरे हुए इंसान की आत्मा नज़र आती है? भविष्य जानने के लिए बुरी आत्माओं के पीछे भागकर, क्या आप मृत आत्माओं की दुनिया देख सकते हैं? अगर नहीं, तो फिर आप नकली पैसे क्यों जलाते हैं, बंदगी करते हैं, और ज्योतिषियों को खोजते-फिरते हैं? आप बार-बार कहते हैं, कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है, और एक बड़े पैमाने पर नास्तिकता का उपदेश देते हैं, लेकिन निजी ज़िंदगी में, आप नकली परमेश्वरों में विश्वास करते हैं, और बुरी आत्माओं की आराधना करते हैं। क्या आप अपनी इन हरकतों से झूठ फैलाकर अपने लोगों को धोखा नहीं दे रहे हैं? आप साफ़ देखते हैं कि सच्चे परमेश्वर के वचन और कार्य सत्य हैं, और वे मानवजाति को प्रकाश और उद्धार देते हैं। फिर भी आप जिद पर अड़कर नास्तिकता के नाम पर, सच्चे परमेश्वर में आस्था को नकारते, और उसका विरोध करते हैं, और धार्मिक आस्था को दबा, कर ईसाइयों पर अत्याचार करते हैं। आखिरकार, क्या यह एक समस्या नहीं है? परमेश्वर आत्मा हैं; हालांकि हम उनके आध्यात्मिक शरीर को नहीं देख सकते, परंतु हम परमेश्वर को अपने वचन बोलते हुए सुन सकते हैं, और उनके कार्य को देख सकते हैं। इन तथ्यों का खंडन नहीं किया जा सकता। हज़ारों सालों से, परमेश्वर बोलते आ रहे हैं, वो इंसानो को राह दिखा रहे हैं, और उन्हें बचाते आ रहे हैं, और सब इंसानों के भाग्य पर शासन करते आये हैं। परमेश्वर ने बहुत-से कार्य भी प्रकट किये हैं। इंसानी अनुभवों और इन चीज़ों के व्यवहारिक ज्ञान ने, कई कहावतों को जन्म दिया है, जैसे कि "स्वर्ग की इच्छा पर भरोसा करें," "ईश्वर की इच्छा के आगे, मनुष्य दुर्बल है," "इंसान बीज बो सके है, पर फसल ईश्वर भरोसे है," "ईश्वर हमेशा राह दिखाये," "ईश्वर की योजना के आगे हमारी एक न चले," "इंसान का भविष्य सितारों में लिखा होता है," वगैरह। इस सबसे यह साबित होता है, कि एक शासक है, जो हमारी पूरी दुनिया को सजाता, और उसका प्रबंध करता है, मानवजाति की अगुवाई करते हुए, उसे आशीर्वाद, और पोषण देता है। बार-बार, सुनी जानेवाली ऐसी कहावतें भी हैं, "ऊपरवाला देख रहा है," "जैसे लोग काम करें, वैसे ऊपरवाला देखे," और "जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।" इस सबसे साबित होता है, कि परमेश्वर,सृजन के प्रभु हैं, और परमेश्वर ने हमेशा से सभी चीज़ों पर शासन किया है। परमेश्वर सब पर, निगरानी रखते हैं। परमेश्वर लोगों के कारनामों के मुताबिक़ उन्हें सज़ा देते हैं, और उनकी किस्मत का फैसला करते हैं।
आपका कहना है कि चूंकि परमेश्वर दिखाई नहीं देते, इसलिए उनका अस्तित्व नहीं है। यह सही नहीं है। क्या आपने परमेश्वर के कार्य की खोज की है? क्या आपने पवित्र बाइबल और वचन देह में प्रकट होता है को पढ़ा है? बाइबल में कहा गया है, "आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था" (यूहन्ना 1:1)। हालांकि इंसानों ने परमेश्वर के आत्मा को नहीं देखा है, वे परमेश्वर की वाणी को सुन सकते हैं, परमेश्वर द्वारा,व्यक्त वचनों को, देख सकते हैं, और परमेश्वर के कार्यों को अनुभव कर सकते हैं। हज़ारों सालों में, परमेश्वर ने, तीन चरणों में कार्य किया है। इस्राएइल में, उन्होंने व्यवस्था के युग का कार्य किया था, और इस्राएलियों के सामने, अपनी व्यवस्थाओं, और आदेशों की घोषणा की थी। अनुग्रह के युग में, देहधारी परमेश्वर ने, छुटकारे का कार्य किया। आस्था के जरिये बहुत-से लोगों के पाप माफ़ कर दिये गये। उन्होंने परमेश्वर की मौजूदगी में, ज़िंदगी बितायी, और उनकी शांति और खुशी का आनंद लिया। राज्य के युग में, परमेश्वर ने, फिर से देहधारण किया है, सत्य बोलने, और न्याय का कार्य करने शुद्ध करने और बचाने के लिए। परमेश्वर ने बहुत-से काम किये हैं। लोगों को ये काम नज़र क्यों नहीं आते? लोग अभी भी ये दावा कैसे कर सकते हैं, कि परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है? परमेश्वर में विश्वास के लिए, हम सिर्फ आँखों के भरोसे नहीं रहते। हमारी आस्था मुख्य रूप से परमेश्वर के कार्य पर आधारित होती है। देहधारी परमेश्वर ने बहुत-से वचन कहे हैं। परमेश्वर के वचन, लोगों के कथनों से अलग होते हैं। कोई इंसान ऐसे वचन नहीं कह सकता। परमेश्वर के वचनों में, अधिकार और सामर्थ्य होता है। वे हर दिन पूरे होते हैं। परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण बहुतों को बचाता है, और उन्हें परमेश्वर के समक्ष लाता है, ताकि वे उनके अस्तित्व को समझ सकें, और उनके स्वभाव को जान सकें। इन्हीं कारणों से ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग परमेश्वर की शरण में आते हैं। आप इस वास्तविकता को कैसे नहीं समझ पाते? तो मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचन साझा करूंगा। जब आप ये वचन सुनेंगे, तब आप परमेश्वर द्वारा हर चीज़ के सृजन, और उस पर शासन के बारे में, बेहतर ढंग से समझ सकेंगे।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "ब्रह्मांड और आकाश की विशालता में अनगिनत जीव रहते और प्रजनन करते हैं, जीवन के चक्रीय नियम का पालन करते हैं, और एक अटल नियम का अनुसरण करते हैं। जो मर जाते हैं, वे अपने साथ जीवित लोगों की कहानियाँ लेकर चले जाते हैं, और जो लोग जी रहे हैं, वे खत्म हो चुके लोगों के त्रासद इतिहास को ही दोहराते हैं। और इसलिए, मानवजाति खुद से पूछे बिना नहीं रह पाती : हम क्यों जीते हैं? और हमें मरना क्यों पड़ता है? इस संसार को कौन नियंत्रित करता है? और इस मानवजाति को किसने बनाया? क्या मानवजाति को वास्तव में प्रकृति माता ने बनाया? क्या मानवजाति वास्तव में अपने भाग्य की नियंत्रक है? ... मानवजाति यह नहीं जानती कि ब्रह्मांड और सभी चीज़ों का संप्रभु कौन है, और मानवजाति के प्रारंभ और भविष्य के बारे में तो वह बिलकुल भी नहीं जानती। मानवजाति केवल इस व्यवस्था के बीच विवशतापूर्वक जीती है। इससे कोई बच नहीं सकता और इसे कोई बदल नहीं सकता, क्योंकि सभी चीज़ों के बीच और स्वर्ग में अनंतकाल से लेकर अनंतकाल तक वह एक ही है, जो सभी चीज़ों पर अपनी संप्रभुता रखता है। वह एक ही है, जिसे मनुष्य द्वारा कभी देखा नहीं गया है, वह जिसे मनुष्य ने कभी नहीं जाना है, जिसके अस्तित्व पर मनुष्य ने कभी विश्वास नहीं किया है—फिर भी वह एक ही है, जिसने मनुष्य के पूर्वजों में साँस फूँकी और मानवजाति को जीवन प्रदान किया। वह एक ही है, जो मानवजाति का भरण-पोषण करता है और उसका अस्तित्व बनाए रखता है; और वह एक ही है, जिसने आज तक मानवजाति का मार्गदर्शन किया है। इतना ही नहीं, वह और केवल वह एक ही है, जिस पर मानवजाति अपने अस्तित्व के लिए निर्भर करती है। वह सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है और ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों पर राज करता है। वह चारों मौसमों पर नियंत्रण रखता है, और वही है जो हवा, ठंड, हिमपात और बारिश लाता है। वह मानवजाति के लिए सूर्य का प्रकाश लाता है और रात्रि का सूत्रपात करता है। यह वही था, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी की व्यवस्था की, और मनुष्य को पहाड़, झीलें और नदियाँ और उनके भीतर के सभी जीव प्रदान किए। उसके कर्म सर्वव्यापी हैं, उसकी सामर्थ्य सर्वव्यापी है, उसकी बुद्धि सर्वव्यापी है, और उसका अधिकार सर्वव्यापी है। इन व्यवस्थाओं और नियमों में से प्रत्येक उसके कर्मों का मूर्त रूप है और प्रत्येक उसकी बुद्धिमत्ता और अधिकार को प्रकट करता है। कौन खुद को उसके प्रभुत्व से मुक्त कर सकता है? और कौन उसकी अभिकल्पनाओं से खुद को छुड़ा सकता है? सभी चीज़ें उसकी निगाह के नीचे मौजूद हैं, और इतना ही नहीं, सभी चीज़ें उसकी संप्रभुता के अधीन रहती हैं। उसके कर्म और उसकी सामर्थ्य मानवजाति के लिए इस तथ्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं छोड़ती कि वह वास्तव में मौजूद है और सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है)।
"जिस दिन से मनुष्य अस्तित्व में आया है, परमेश्वर ने ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हुए, सभी चीज़ों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को निर्देशित करते हुए हमेशा ऐसे ही काम किया है। सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश तथा ओस द्वारा पोषित होता है; सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)।
"यद्यपि मानवजाति यह नहीं स्वीकारती कि परमेश्वर है, न ही इस तथ्य को स्वीकार करती है कि सृजनकर्त्ता ने ही हर चीज़ को बनायी है और हर चीज़ उसी के नियन्त्रण में है, और यही नहीं सृजनकर्त्ता के अधिकार के अस्तित्व को भी नहीं स्वीकारती, फिर भी मानव-विज्ञानी, खगोलशास्त्री और भौतिक-विज्ञानी इसी खोज में लगे हुए हैं कि इस सार्वभौम में सभी चीज़ों का अस्तित्व, और वे सिद्धान्त और प्रतिमान जो उनकी गति को निर्धारित करते हैं, वे सभी एक व्यापक और अदृश्य गूढ़ ऊर्जा द्वारा शासित और नियन्त्रित होते हैं। यह तथ्य मनुष्य को बाध्य करता है कि वह इस बात का सामना करे और स्वीकार करे कि इन गतियों के स्वरूपों के बीच एकमात्र शक्तिशाली परमेश्वर ही है, जो हर एक चीज़ का आयोजन करता है। उसका सामर्थ्य असाधारण है, और यद्यपि कोई भी उसके असली स्वरूप को नहीं देख पाता, फिर भी वह हर क्षण हर एक चीज़ को संचालित और नियन्त्रित करता है। कोई भी व्यक्ति या ताकत उसकी संप्रभुता से परे नहीं जा सकती। इस सत्य का सामना करते हुए, मनुष्य को यह अवश्य पहचानना चाहिए कि वे नियम जो सभी चीज़ों के अस्तित्व को संचालित करते हैं उन्हें मनुष्यों द्वारा नियन्त्रित नहीं किया जा सकता, किसी के भी द्वारा बदला नहीं जा सकता; साथ ही उसे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि मानवजाति इन नियमों को पूरी तरह से नहीं समझ सकती, और वे प्राकृतिक रूप से घटित नहीं हो रही हैं, बल्कि एक परम सत्ता उनका निर्धारण कर रही है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)।
"साम्यवाद का झूठ" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?