बाइबल परमेश्वर के कार्य का प्रमाण है; केवल बाइबल पढ़ने के द्वारा ही प्रभु पर विश्वास करने वाले लोग यह जान सकते हैं कि परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी और सभी चीजों को बनाया और इसी से वे परमेश्वर के अद्भुत कार्यों, उसकी महानता और सर्वशक्तिमानता को देख सकते हैं। बाइबल में परमेश्वर के बहुत सारे वचन और मनुष्य के अनुभवों की बहुत सारी गवाहियाँ हैं; यह मनुष्य के जीवन के लिए प्रावधान कर सकती है और मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक हो सकती है, इसलिए मुझे जिसकी खोज करनी है वह यह है कि क्या हम वास्तव में बाइबल पढ़ने के द्वारा अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकते हैं? क्या बाइबल के भीतर वास्तव में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है?

13 मार्च, 2021

उत्तर: बाइबल पढ़ने से हम यह समझ पाए कि परमेश्‍वर सभी चीजों का सृष्टिकर्ता है और हमने उसके चमत्कारिक कर्मों को पहचानना शुरू कर दिया। इसका कारण यह है कि बाइबल परमेश्वर के कार्य के प्रथम दो चरणों की गवाही है। यह परमेश्‍वर के वचनों और कार्य का अभिलेख है और व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान मनुष्य की गवाही है। इसलिए, हमारे विश्वास के लिए बाइबल बहुत महत्वपूर्ण है इसके बारे में सोचो, यदि बाइबल नहीं होती, तो मनुष्य कैसे परमेश्‍वर और परमेश्‍वर के वचनों को समझ पाता? और किस तरह से मनुष्‍य परमेश्‍वर के कर्मों की गवाही दे पाता और परमेश्‍वर में सच्‍चा विश्‍वास करना शुरू कर पाता? अगर मनुष्य बाइबल नहीं पढ़े, तो वह हर युग में परमेश्‍वर की आज्ञापालन करने वाले सभी संतों की असली गवाही का और कैसे गवाह बनेगा? इसलिए, विश्वास का अभ्यास करने के लिए बाइबल को पढ़ना आवश्यक है, और प्रभु के किसी भी विश्वासी को कभी भी बाइबिल से नहीं भटकना चाहिए। आप कह सकते हैं, जो बाइबल से भटक जाता है वह प्रभु में विश्वास नहीं कर सकता है। यह सभी युगों के संतों के अनुभवों में सत्यापित होता है। कोई भी विश्‍वास का अभ्यास करने में बाइबल को पढ़ने के मूल्य और अर्थ से इंकार करने की हिम्मत नहीं करता है। इसलिए, सभी युगों भर मे संतों और विश्वासियों ने बाइबल की पढ़ाई को एक महत्‍वपूर्ण विषय के रूप में देखा है। कुछ लोग यहाँ तक कह सकते हैं, कि बाइबल और प्रार्थना पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना कि चलने के लिए हमारे दोनों पैर जरूरी हैं, जिसमें से एक के भी बिना हम आगे बढ़ने में विफल रहते हैं। लेकिन प्रभु यीशु ने कहा है, "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)। ठीक है, कुछ लोग भ्रमित हैं, उन्हें लगता है, यह देखते हुए कि बाइबल परमेश्‍वर के वचन और मनुष्यों की गवाही का एक अभिलेख है, बाइबल पढ़ने से मनुष्य को शाश्‍वत जीवन मिलना चाहिए! तो ऐसा क्यों है कि प्रभु यीशु ने कहा कि बाइबल में कोई शाश्‍वत जीवन नहीं है? दरअसल, यह ऐसा मुश्किल विचार नहीं है। जब तक हम व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्‍वर के वचनों और कार्य के अंदर की कहानी और सार को और साथ ही उनके माध्यम से प्राप्त प्रभाव को समझते हैं, तब हम स्वाभाविक रूप से महसूस करेंगे कि ऐसा क्यों है कि कोई बाइबल को पढ़कर शाश्‍वत जीवन प्राप्त नहीं कर सकता है। सबसे पहले, हम व्यवस्था के युग पर विचार करें। इस युग के दौरान, यहोवा मुख्‍य तौर पर मनुष्य द्वारा पालन किए जाने के लिये व्यवस्थाओं, आज्ञाओं और अध्‍यादेशों को लागू करने बारे में चिंतित था। उनके वचन ज्यादातर मानवता के पृथ्वी पर रहने के लिए एक प्रकार के मार्गदर्शक थे, जो अभी भी अपनी शैशवावस्था में हैं। इन वचनों में मनुष्य के जीवन स्वभाव को बदलना शामिल नहीं था। इसलिए व्‍यवस्‍था के युग के दौरान परमेश्‍वर के सभी वचनों का उद्देश्य लोगों से कानूनों और आज्ञाओं का पालन करवाना था। यद्यपि ये वचन सत्‍य थे, वे बहुत अल्पविकसित सत्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु के वचन और कार्य छुटकारे के कार्य पर केंद्रित थे। जो वचन उन्होंने दिये वे छुटकारे के सत्‍य के बारे में थे और लोगों को सिखाया कि उन्हें अपने पापों को स्वीकार करना और पश्चाताप करना चाहिये और पाप और दुष्टता करने से दूर रहना चाहिए। इन वचनों ने प्रभु की प्रार्थना करने का उचित तरीका भी लोगों को सिखाया और माँग की कि मनुष्य को अपने समस्त हृदय और आत्मा के साथ प्रभु से प्रेम अवश्य करना चाहिए, अपने पड़ोसी को अपने जैसा प्रेम करना चाहिए सहिष्णु और धैर्यवान बनना चाहिए, और दूसरों को सत्‍तर बार, सात बार माफ कर देना चाहिए। ये सभी पश्चाताप के तरीकों में शामिल हैं। इसलिए, बाइबल पढ़ने के माध्यम से, हम केवल व्‍यवस्‍था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्‍वर के कार्य को समझ सकते हैं। हमें पता चलता है कि सभी चीजें परमेश्‍वर ने बनाई हैं और यह सीखते हैं कि पृथ्वी पर कैसे रहें और परमेश्‍वर की आराधना कैसे करें। हमें समझते हैं कि पाप क्या है, कौन परमेश्‍वर द्वारा धन्य किए गए हैं और किन्हें परमेश्‍वर ने अभिशाप दिया है। हम जान जाते हैं कि कैसे अपने पापों को स्‍वीकार करें और परमेश्‍वर से पश्चाताप करें। हम मानवता, सहनशीलता और क्षमा करना सीख जाते हैं, और जानते हैं कि हमें प्रभु का अनुसरण करने के लिये क्रॉस उठाना चाहिए। हम प्रभु यीशु की असीमित दया और करुणा स्‍वयं देखते हैं, और समझते हैं कि केवल प्रभु यीशु के सामने विश्वास में आने से ही हम उनके प्रचुर अनुग्रह और सत्‍य का आनंद ले पाएँगे। व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान बाइबल में अभिलिखित परमेश्‍वर के वचन और कार्य उस समय मानवजाति को बचाने और मानवजाति की जरूरतों की योजना के अनुसार परमेश्वर के द्वार व्‍यक्‍त किये गये सत्‍य थे। ये सत्‍य मनुष्‍य को केवल कुछ सतही अच्छे व्यवहारों को अपनाने का कारण बनने में सक्षम थे लेकिन मनुष्य के पापों की जड़ों का पूरी तरह से समाधान करने, मनुष्य के जीवन स्वभाव को बदलने, और मनुष्य को शुद्धिकरण, उद्धार, और परिपूर्णता प्राप्त करने की अनुमति देने में असमर्थ थे। इस प्रकार, अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के द्वारा दिए गये वचन केवल पश्चाताप का मार्ग कहे जा सकते हैं, लेकिन शाश्‍वत जीवन का मार्ग नहीं।

तो शाश्‍वत जीवन का मार्ग क्या है? शाश्‍वत जीवन का मार्ग सत्य का वह मार्ग है जो मनुष्य को हमेशा के लिए जीवित रहने देता है, जिसका मतलब है, कि यह वह तरीका है जो मनुष्य को उसकी पापमयी प्रकृति के बंधनों और अवरोधों को त्‍यागने, उसके जीवन स्वभाव को बदलने की अनुमति देता है, और उसे जीवन के रूप में सत्य को प्राप्त करने, पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से मुक्त होने और मसीह के अनुकूल होने की अनुमति देता है। यह मनुष्य को जानने, आज्ञापालन करने और परमेश्‍वर का आदर करने की अनुमति देता है ताकि फिर कभी दुबारा परमेश्‍वर का विरोध या उनसे विश्‍वासघात करने का पाप ना करे। केवल वही मार्ग जो ऐसा प्रभाव प्राप्त कर सकता है, उसे ही शाश्‍वत जीवन का मार्ग कहा जा सकता है। मनुष्य, पाप के परिणामस्वरूप मरता है। अगर मनुष्य सत्य को जीवन के रूप में प्राप्त करता है और उन सभी पापों का समाधान कर लेता है जो उसे त्रस्त करते हैं, तो परमेश्‍वर उसे शाश्‍वत जीवन का आशीर्वाद देंगे। तो, केवल अंतिम दिनों में परमेश्‍वर का उद्धार प्राप्त करके हम शाश्‍वत जीवन के उस मार्ग का आनंद ले सकते हैं जो परमेश्‍वर मानवजाति को देते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्‍वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा, और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्‍वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा" (यूहन्ना 11:25-26)। यह दर्शाता है कि मनुष्‍य का जीवन और मृत्‍यु परमेश्‍वर के हाथों में हैं। यह परमेश्‍वर का अधिकार है, और कोई भी मनुष्‍य अपना भाग्‍य नहीं बदल सकता। केवल वे ही अनंत जीवन प्राप्‍त कर सकते हैं, जो अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य को स्‍वीकार कर उद्धार पाएंगे और सत्‍य को अपने जीवन के रूप में स्‍वीकार करेंगे। यह एक पूर्ण निश्चितता है। तो, जब प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में अपना छुटकारे का कार्य पूरा किया, तब उन्‍होंने यह वचन दिया कि वे वापिस लौटेंगे, और उस समय उन्‍होंने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। लौट कर आये प्रभु यीशु द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सत्‍य अनन्‍त जीवन का एकमात्र मार्ग हैं, और यह दिखाता है कि मसीह ही सत्‍य, मार्ग और जीवन है। बाइबल में अनन्‍त जीवन का मार्ग समाहित क्‍यों नहीं है? यह मुख्‍य रूप से इसलिए है क्‍यों बाइबल परमेश्‍वर के पूर्वकालिक दो चरणों के कार्य का लेखाजोखा रखती है, परंतु इसमें अंत के दिनों में मनुष्‍य को शुद्ध करने और बचाने के लिए परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किए गए सभी सत्‍य समाहित नहीं हैं। इसलिए, बाइबल में अनन्‍त जीवन का मार्ग समाहित नहीं है। इससे, हालाँकि, परमेश्‍वर की गवाही के रूप में या पाठकों पर पड़ने वाले इसके असर के मान से बाइबल कमतर नहीं हो जाती है। क्‍योंकि बाइबल में दी गई परमेश्‍वर की गवाही सच है, क्‍योंकि परमेश्‍वर द्वारा स्‍वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन सच है, और क्‍योंकि संतों की कई परम्‍पराओं द्वारा परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता और निष्‍ठा की गवाहियाँ सच हैं, ठीक इसी कारण मनुष्‍य के हृदय में बाइबल का स्‍थान कभी डिगा नहीं। यह कहा जा सकता है कि संतों की कई परम्‍पराएं बाइबल से प्राप्‍त उपदेशों के कारण ही विकसित और परिपक्‍व हुईं। इस तथ्‍य के बावजूद कि मनुष्‍यगण का भ्रष्‍ट स्‍वभाव उनमें निरंतर बना रहा था, उनकी शैतानी प्रकृति तब भी उनमें बनी रही थी, और उनका पूरी तरह शुद्धिकरण नहीं हुआ था, तब भी, परमेश्‍वर के प्रति संतों की आस्‍था और निष्‍ठा अडिग रही। कई लोग प्रभु के लिए शहीद हुए, और उन्‍होंने उनके लिए सुंदर तथा ज़बर्दस्‍त गवाहियां दीं। व्‍यवस्‍था के युग में और अनुग्रह के युग में किए गए परमेश्‍वर के कार्य के ये परिणाम हैं। हम सभी को यह स्‍पष्‍ट है कि प्रभु में आस्‍था रखने वाले लोग अनगिनत हैं, और भले ही उनका शुद्धिकरण नहीं हुआ है, उनका जीवन स्‍वभाव परिवर्तित नहीं हुआ है, और उनमें परमेश्‍वर की सच्‍ची समझ का अभाव है, फिर भी, उनकी आस्‍था सच्‍ची है। परमेश्‍वर ने इन लोगों को त्‍याग नहीं दिया है, बल्कि वे लोग अंत के दिनों में प्रभु के पुनरागमन की प्रतीक्षा करते हैं, जब उन्‍हें उनके सम्‍मुख ऊपर उठाकर, उनका शुद्धिकरण कर उन्‍हें पूर्ण किया जाएगा। इस प्रकार, वे सभी जिनमें प्रभु के प्रति सच्‍ची आस्‍था है और जो सत्‍य से प्रेम करते हैं, वे अंत के दिनों में परमेश्‍वर द्वारा दिए जाने वाले अनन्‍त जीवन का मार्ग पा जाएँगे। बाइबल क्‍यों अनन्‍त जीवन प्रदान नहीं कर सकती, इस विषय को अब हम समझते हैं, है ना?

— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत

अगला: दो हजार वर्षों से, परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास बाइबल पर आधारित रहा है, और प्रभु यीशु के आगमन ने बाइबल के पुराने नियम को नकारा नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जब अंतिम दिनों में न्याय के अपने कार्य को कर लिया होगा, तो हर कोई जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करता है, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने पर ध्यान केन्द्रित करेगा और शायद ही कभी बाइबल को पढ़ेगा। मुझे जिसकी जानकारी लेनी है वह यह है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करने के बाद, बाइबल के प्रति सही दृष्टिकोण क्या है, और इसका इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? किसी व्यक्ति के लिए परमेश्वर पर विश्वास करने का आधार क्या होना चाहिए, ताकि वह परमेश्वर पर विश्वास करने के मार्ग पर चल सके और परमेश्वर के उद्धार को हासिल कर सके?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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पौलुस ने 2 तिमुथियस में यह बात बिलकुल साफ़ कर दी है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश" (तीमुथियुस 3:16)। इसका मतलब है कि बाइबल का प्रत्येक वचन परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। बाइबल से दूर जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना! प्रभु में हमारा विश्वास केवल हमसे बाइबल पर अवलंबित रहने की मांग करता है। भले ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, हमें तब भी मुक्ति मिलेगी और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

उत्तर: धार्मिक जगत का ज्यादातर हिस्सा पौलुस के इन शब्दों पर भरोसा करता है कि "सारा धर्मशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिया गया है" जिससे यह...

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उत्तर: धर्म में, वे सभी लोग जो प्रभु पर विश्वास करते हैं, उनका मानना है कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में निहित हैं। बाइबल में...

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