मैं बीस साल से अधिक समय से बाइबल का अध्ययन करता रहा हूँ। मैंने जाना है कि हालाँकि बाइबल अलग-अलग समय में 40 से अधिक अलग-अलग लेखकों द्वारा लिखी गई थी, इसमें एक भी भूल नहीं है। इससे साबित होता है कि परमेश्वर बाइबल का वास्तविक लेखक है, और यह कि समस्त पवित्र शास्त्र पवित्र आत्मा से आता है।
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह अठारह वर्ष का था, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम नहुश्ता था, जो यरूशलेम के एलनातान की बेटी थी" (2 राजाओं 24:8)।
"जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का था, और तीन महीने और दस दिन तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसने वह किया, जो परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है" (2 इतिहास 36:9)।
"यीशु ने उससे कहा, 'मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही रात को मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझ से मुकर जाएगा'" (मत्ती 26:34)।
"यीशु ने उससे कहा, 'मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही इसी रात को मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझ से मुकर जाएगा'" (मरकुस 14:30)।
"उसने कहा, 'हे पतरस, मैं तुझ से कहता हूँ कि आज मुर्ग़ बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि तू मुझे नहीं जानता'" (लूका 22:34)।
"यीशु ने उत्तर दिया, 'क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच सच कहता हूँ कि मुर्ग़ बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा'" (यूहन्ना 13:38)।
"वह उन सिक्कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फाँसी दी" (मत्ती 27:5)।
"उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया, और सिर के बल गिरा और उसका पेट फट गया और उसकी सब अन्तड़ियाँ निकल पड़ीं" (प्रेरितों 1:18)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबियों की अनेक भविष्यवाणियों के साथ उस समय यहोवा के कार्य के बारे में उसके कुछ कथनों को लिपिबद्ध करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को पवित्र (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। निस्संदेह, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग इस तरह से इस पुस्तक का उल्लेख केवल इसलिए करते हैं क्योंकि परमेश्वर की रचनाएँ अपने रचयिता के प्रति इतनी श्रृद्धालु और प्रेममयी हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक दिव्य पुस्तक कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसका नाम नहीं रखा था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना का मार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का लेखक परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। पवित्र बाइबल केवल सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य ने दिया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार-विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि यह पुस्तक यहोवा ने नहीं लिखी, यीशु ने तो कदापि नहीं। इसके बजाय, यह अनेक प्राचीन नबियों, प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं द्वारा दिया गया लेखा-जोखा है, जिसे बाद की पीढ़ियों ने प्राचीन लेखों की ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया जो लोगों को विशेष रूप से पवित्र प्रतीत होती है, ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गहन रहस्य हैं जो भावी पीढ़ियों द्वारा बाहर लाए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। इस रूप में, लोग यह मानने को और भी अधिक तत्पर हैं कि यह एक दिव्य पुस्तक है। चार सुसमाचारों और प्रकाशितवाक्य की पुस्तक को जोड़ लें, तो इसके प्रति लोगों का मनोभाव किसी भी अन्य पुस्तक के प्रति उनके मनोभाव से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस "दिव्य पुस्तक" का विश्लेषण करने का साहस नहीं करता है—क्योंकि यह "परमपावन" है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4)
आज, तुम लोगों में से कौन यह कहने का साहस कर सकता है कि पवित्र आत्मा के द्वारा उपयोग किए गए लोगों द्वारा कहे गए सभी वचन पवित्र आत्मा से आये थे? क्या किसी में ऐसी चीज़ें कहने का साहस है? यदि तुम ऐसी चीज़ें कहते हो, तो फिर क्यों एज्रा की भविष्यवाणी की पुस्तक को नामंज़ूर कर दिया गया था, और क्यों यही उन प्राचीन संतों और भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों के साथ किया गया था? यदि वे सभी पवित्र आत्मा से आयी थीं, तो तुम लोग क्यों ऐसे स्वेच्छाचारी चुनाव करने का साहस करते हो? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य को चुनने के योग्य हो? इस्राएल की बहुत सारी कहानियों को भी नामंज़ूर कर दिया दिया गया था। और यदि तुम मानते हो कि अतीत के ये सभी लेख पवित्र आत्मा से आये, तो फिर क्यों कुछ पुस्तकों को नामंज़ूर क्यों कर दिया गया था? यदि वे सभी पवित्र आत्मा से आये, तो उन सब को सुरक्षित रखा जाना चाहिए था, और पढ़ने के लिए कलीसियाओं के भाइयों और बहनों को भेजा जाना चाहिए था। उन्हें मानवीय इच्छा के अनुसार नहीं चुना या नामंज़ूर किया जाना चाहिए था; ऐसा करना ग़लत है। यह कहना कि पौलुस और यूहन्ना के अनुभव उनकी व्यक्तिगत अंतर्दृष्टियों के साथ घुल-मिल गए थे इसका यह मतलब नहीं है कि उनके अनुभव और ज्ञान शैतान से आये थे, बल्कि बात केवल इतनी है कि उनके पास ऐसी चीज़ें थीं जो उनके व्यक्तिगत अनुभवों और अंतर्दृष्टियों से आई थीं। उनका ज्ञान उस समय के उनके वास्तविक अनुभवों की पृष्ठभूमि के अनुसार था, और कौन आत्मविश्वास के साथ कह सकता था कि यह सब पवित्र आत्मा से आया था। यदि चारों सुसमाचार पवित्र आत्मा से आये, तो ऐसा क्यों था कि मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना प्रत्येक ने यीशु के कार्य के बारे कुछ भिन्न कहा? यदि तुम लोग इस पर विश्वास नहीं करते हो, तो फिर तुम बाइबल के विवरणों में देखो कि किस प्रकार पतरस ने प्रभु को तीन बार नकारा था: वे सब भिन्न हैं, और उनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएँ हैं। बहुत से अज्ञानी लोग कहते हैं, "देहधारी परमेश्वर भी एक मनुष्य है, तो क्या जो वचन वह कहता है, वे पूरी तरह से पवित्र आत्मा से आ सकते हैं? जब पौलुस और यूहन्ना के वचन मानवीय इच्छा के साथ मिले हुए थे, तो क्या जिन वचनों को वो कहता है वे वास्तव में मानवीय इच्छा के साथ मिले हुए नहीं हैं?" जो लोग ऐसी बातें करते हैं वे अन्धे और अज्ञानी हैं! चारों सुसमाचारों को ध्यानपूर्वक पढ़ो; पढ़ो कि उन्होंने उन चीज़ों के बारे में क्या दर्ज किया है जो यीशु ने की थीं, और उन वचनों को पढ़ो जो उसने कहे थे। प्रत्येक विवरण, एकदम सरल रूप में भिन्न है और प्रत्येक का अपना परिप्रेक्ष्य है। यदि इन पुस्तकों के लेखकों के द्वारा जो कुछ लिखा गया था, वह सब पवित्र आत्मा से आया, तो यह सब एक समान और सुसंगत होना चाहिए। तो फिर उनमें विसंगतियाँ क्यों हैं? क्या मनुष्य अत्यंत मूर्ख नहीं है जो इसे देखने में असमर्थ है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में
नए नियम में मत्ती का सुसमाचार यीशु की वंशावली दर्ज करता है। प्रारंभ में वह कहता है कि यीशु दाऊद और अब्राहम का वंशज और यूसुफ का पुत्र था; आगे वह कहता है कि वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, और कुँआरी से जन्मा था—जिसका अर्थ है कि वह यूसुफ का पुत्र या अब्राहम और दाऊद का वंशज नहीं था। यद्यपि वंशावली यीशु का संबंध यूसुफ से जोड़ने पर ज़ोर देती है। आगे वंशावली उस प्रक्रिया को दर्ज करना प्रारंभ करती है, जिसके तहत यीशु का जन्म हुआ था। वह कहती है कि यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, उसका जन्म कुँआरी से हुआ था, और वह यूसुफ का पुत्र नहीं था। फिर भी वंशावली में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि यीशु यूसुफ का पुत्र था, और चूँकि वंशावली यीशु के लिए लिखी गई है, अत: वह उसकी बयालीस पीढ़ियों को दर्ज करती है। जब वह यूसुफ की पीढ़ी पर जाती है, तो वह जल्दी से कह देती है कि यूसुफ मरियम का पति था, ये वचन यह साबित करने के लिए दिए गए हैं कि यीशु अब्राहम का वंशज था। क्या यह विरोधाभास नहीं है? वंशावली साफ-साफ यूसुफ की वंश-परंपरा को दर्ज करती है, वह स्पष्ट रूप से यूसुफ की वंशावली है, किंतु मत्ती दृढ़ता से कहता है कि यह यीशु की वंशावली है। क्या यह यीशु के पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आने के तथ्य को नहीं नकारता? इस प्रकार, क्या मत्ती द्वारा दी गई वंशावली मानवीय विचार नहीं है? यह हास्यास्पद है! इस तरह से तुम जान सकते हो कि यह पुस्तक पूरी तरह से पवित्र आत्मा से नहीं आई थी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)
आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। और इस प्रकार, नए नियम में पौलुस के धर्मपत्र वे धर्मपत्र हैं, जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था, और वे पवित्र आत्मा की अभिप्रेरणाएँ नहीं हैं, न ही वे पवित्र आत्मा के प्रत्यक्ष कथन हैं। वे महज प्रेरणा, सुविधा और प्रोत्साहन के वचन हैं, जिन्हें उसने अपने कार्य के दौरान कलीसियाओं के लिए लिखा था। इस प्रकार वे पौलुस के उस समय के अधिकांश कार्य के अभिलेख भी हैं। वे प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाई-बहनों के लिए लिखे गए थे, ताकि उस समय कलीसियाओं के भाई-बहन उसकी सलाह मानें और प्रभु यीशु द्वारा बताए गए पश्चात्ताप के मार्ग पर बने रहें। किसी भी तरह से पौलुस ने यह नहीं कहा कि, चाहे वे उस समय की कलीसियाएँ हों या भविष्य की, सभी को उसके द्वारा लिखी गई चीज़ों को खाना और पीना चाहिए, न ही उसने कहा कि उसके सभी वचन परमेश्वर से आए हैं। उस समय की कलीसियाओं की परिस्थितियों के अनुसार, उसने बस भाइयों एवं बहनों से संवाद किया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था, और उन्हें उनके विश्वास में प्रेरित किया था, और उसने बस लोगों में प्रचार किया था या उन्हें स्मरण दिलाया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था। उसके वचन उसके स्वयं के दायित्व पर आधारित थे, और उसने इन वचनों के जरिये लोगों को सहारा दिया था। उसने उस समय की कलीसियाओं के प्रेरित का कार्य किया था, वह एक कार्यकर्ता था जिसे प्रभु यीशु द्वारा इस्तेमाल किया गया था, और इस प्रकार कलीसियाओं की ज़िम्मेदारी लेने और कलीसियाओं का कार्य करने के लिए उसे भाइयों एवं बहनों की स्थितियों के बारे में जानना था—और इसी कारण उसने प्रभु में विश्वास करने वाले सभी भाइयों एवं बहनों के लिए धर्मपत्र लिखे थे। यह सही है कि जो कुछ भी उसने कहा, वह लोगों के लिए शिक्षाप्रद और सकारात्मक था, किंतु वह पवित्र आत्मा के कथनों का प्रतिनिधित्व नहीं करता था, और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता था। यह एक बेहद गलत समझ और एक ज़बरदस्त ईश-निंदा है कि लोग एक मनुष्य के अनुभवों के अभिलेखों और धर्मपत्रों को पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं को बोले गए वचनों के रूप में लें! यह पौलुस द्वारा कलीसियाओं के लिए लिखे गए धर्मपत्रों के संबंध में विशेष रूप से सत्य है, क्योंकि उसके धर्मपत्र उस समय प्रत्येक कलीसिया की परिस्थितियों और उनकी स्थिति के आधार पर भाइयों एवं बहनों के लिए लिखे गए थे, और वे प्रभु में विश्वास करने वाले भाइयों एवं बहनों को प्रेरित करने के लिए थे, ताकि वे प्रभु यीशु का अनुग्रह प्राप्त कर सकें। उसके धर्मपत्र उस समय के भाइयों एवं बहनों को जाग्रत करने के लिए थे। ऐसा कहा जा सकता है कि यह उसका स्वयं का दायित्व था, और यह वह दायित्व भी था, जो उसे पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया था; आखिरकार, वह एक प्रेरित था जिसने उस समय की कलीसियाओं की अगुआई की थी, जिसने कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे और उन्हें प्रोत्साहित किया था—यह उसकी जिम्मेदारी थी। उसकी पहचान मात्र काम करने वाले एक प्रेरित की थी, और वह मात्र एक प्रेरित था जिसे परमेश्वर द्वारा भेजा गया था; वह नबी नहीं था, और न ही भविष्यवक्ता था। उसके लिए उसका कार्य और भाइयों एवं बहनों का जीवन अत्यधिक महत्वपूर्ण था। इस प्रकार, वह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था। उसके वचन पवित्र आत्मा के वचन नहीं थे, और उन्हें परमेश्वर के वचन तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पौलुस परमेश्वर के एक प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं था, और वह परमेश्वर का देहधारण तो निश्चित रूप से नहीं था। उसकी पहचान यीशु के समान नहीं थी। यीशु के वचन पवित्र आत्मा के वचन थे, वे परमेश्वर के वचन थे, क्योंकि उसकी पहचान मसीह—परमेश्वर के पुत्र की थी। पौलुस उसके बराबर कैसे हो सकता है? यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है? तो, तुम क्या कहते हो—क्या वे धर्मपत्र, जिन्हें उसने कलीसियाओं के लिए लिखा था, उसके स्वयं के विचारों से दूषित नहीं हो सकते? वे मानवीय विचारों द्वारा दूषित कैसे नहीं हो सकते? उसने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और अपने ज्ञान के आधार पर कलीसियाओं के लिए धर्मपत्र लिखे थे। उदाहरण के लिए, पौलुस ने गलातियाई कलीसियाओं को एक धर्मपत्र लिखा, जिसमें एक निश्चित राय थी, और पतरस ने दूसरा धर्मपत्र लिखा, जिसमें दूसरा विचार था। उनमें से कौन-सा पवित्र आत्मा से आया था? कोई निश्चित तौर पर नहीं कह सकता। इस प्रकार, सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि उन दोनों ने कलीसियाओं के लिए दायित्व वहन किया था, फिर भी उनके पत्र उनके आध्यात्मिक कद का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे भाइयों एवं बहनों के लिए उनके पोषण एवं समर्थन का, और कलीसियाओं के प्रति उनके दायित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, और वे केवल मनुष्य के कार्य का प्रतिनिधित्व करते हैं; वे पूरी तरह से पवित्र आत्मा के नहीं थे। यदि तुम कहते हो कि उसके धर्मपत्र पवित्र आत्मा के वचन हैं, तो तुम बेतुके हो, और तुम ईश-निंदा कर रहे हो! पौलुस के धर्मपत्र और नए नियम के अन्य धर्मपत्र बहुत हाल की आध्यात्मिक हस्तियों के संस्मरणों के बराबर हैं : वे वाचमैन नी की पुस्तकों या लॉरेंस आदि के अनुभवों के समतुल्य हैं। सीधी-सी बात है कि हाल ही की आध्यात्मिक हस्तियों की पुस्तकों को नए नियम में संकलित नहीं किया गया है, फिर भी इन लोगों का सार एकसमान था : वे पवित्र आत्मा द्वारा एक निश्चित अवधि के दौरान इस्तेमाल किए गए लोग थे, और वे सीधे परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते थे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3)
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?