दो हजार वर्षों से, परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास बाइबल पर आधारित रहा है, और प्रभु यीशु के आगमन ने बाइबल के पुराने नियम को नकारा नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जब अंतिम दिनों में न्याय के अपने कार्य को कर लिया होगा, तो हर कोई जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करता है, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने पर ध्यान केन्द्रित करेगा और शायद ही कभी बाइबल को पढ़ेगा। मुझे जिसकी जानकारी लेनी है वह यह है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करने के बाद, बाइबल के प्रति सही दृष्टिकोण क्या है, और इसका इस्तेमाल कैसे करना चाहिए? किसी व्यक्ति के लिए परमेश्वर पर विश्वास करने का आधार क्या होना चाहिए, ताकि वह परमेश्वर पर विश्वास करने के मार्ग पर चल सके और परमेश्वर के उद्धार को हासिल कर सके?

13 मार्च, 2021

उत्तर: बाइबल परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों का वास्तविक आलेख है। दूसरे शब्दों में, यह परमेश्वर के कार्य के उन पहले दो चरणों की गवाही है, जिसमें स्वर्ग, पृथ्वी तथा मानव सहित सभी चीज़ों की रचना के बाद इंसान के मार्गदर्शन और उद्धार को निश्चित किया गया है। बाइबल को पढ़ने से, हर कोई यह समझ सकता है कि व्यवस्था के युग में किस तरह परमेश्वर ने मनुष्य का नेतृत्व किया और उन्हें उसके सामने जीवन जीना और उसकी आराधना करना सिखाया। हम यह भी समझ सकते हैं कि अनुग्रह के युग में किस तरह परमेश्वर ने इंसान को छुटकारा दिलाया और उन सभी को उनके पिछले पापों के लिए माफ़ कर दिया, साथ ही उनके लिए शांति, आनन्द और सभी प्रकार का अनुग्रह प्रदान किया। इससे न केवल लोग यह समझ सकते हैं कि परमेश्वर ने इंसान की रचना की थी, बल्कि यह कि उसने उनका निरंतर मार्गदर्शन किया और फिर उन्हें छुटकारा भी दिलाया। इसी दौरान, परमेश्वर ने इंसान के लिए प्रावधान किया है और उनकी सुरक्षा भी की है। इसके अलावा, हम बाइबल की भविष्यवाणियों में पढ़ सकते हैं कि अंत के दिनों में, परमेश्वर के वचन उसकी प्रजा का न्याय करने और उन सब को शुद्ध करने के लिए आग की तरह जलेंगे। वे इंसान को समस्त पापों से बचाएंगे और हमें शैतान के अंधेरे प्रभाव से बच निकलने में मदद करेंगे ताकि हम पूरी तरह से परमेश्वर की ओर लौट जाएँ और अंततः उसके आशीर्वाद और उसके वादों की विरासत को पा सकें। परमेश्वर का यही तात्पर्य था जब उसने कहा था, "यह वही है जो मेरी गवाही देता है"। इसलिए, जिस किसी ने भी सच्चाई से बाइबल को पढ़ा है, वह परमेश्वर के कुछ कार्यों को समझ सकता है और उसके अस्तित्व, उसकी सर्वशक्तिमत्ता और उसके ज्ञान को पहचान सकता है, जिसके द्वारा परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी पर सब कुछ रचा है, जिसके द्वारा वह सभी चीज़ों पर अपना प्रभुत्व रखता है और सब कुछ नियंत्रित करता है। इस प्रकार, परमेश्वर पर विश्वास करने में, परमेश्वर को जानने में और विश्वास के मार्ग पर यानी जीवन के उचित मार्ग पर कदम रखने में, बाइबल लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो कोई ईमानदारी से परमेश्वर पर विश्वास करता है और सत्य से प्रेम करता है, वह बाइबल पढ़ कर जीवन में एक लक्ष्य और दिशा पा सकता है, और परमेश्वर में विश्वास करना, उस पर भरोसा करना, उसकी आज्ञा मानना और उसकी आराधना करना सीख सकता है। ये सब परमेश्वर के लिए बाइबल की गवाही के प्रभाव हैं; यह एक निर्विवाद तथ्य है।

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बाइबल का मूल्य पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों के आलेख में निहित है। इसमें यदि लोग परमेश्वर के कथनों और कार्यों के बारे में पढ़ सकते हैं, और जिस सर्वशक्तिमत्ता और ज्ञान से परमेश्वर हर वस्तु का सर्जन कर उस पर शासन करता है, उस पर लोग विश्वास कर उसकी जानकारी रख सकते हैं, तो लोगों के लिए परमेश्वर को जानने, उसका पालन करने और उसकी आराधना करने में इसका गहरा महत्व होगा। इसी कारण से, बाइबल केवल परमेश्वर के कार्य की गवाही है, और यह विश्वासियों को एक नींव बनाने में मदद कर सकती है। बेशक, परमेश्वर पर विश्वास करने वाले हर व्यक्ति के लिए इस पुस्तक को पढ़ना आवश्यक है। इंसान को बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों को समझने और पहचानने में बाइबल लोगों की मदद कर सकती है, साथ ही, सत्य की उनकी समझ और जीवन में उनके प्रवेश के मामले में यह अत्यंत हितकारी है। हालांकि, यह अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की जगह नहीं ले सकती, उसके आज के कथनों की बात तो हम छोड़ ही दें; यह केवल परमेश्वर के कार्य के पहले दो चरणों को समझने में और उसके स्वभाव, उसकी सर्वशक्तिमत्ता और उसके ज्ञान को जानने में हमारी मदद कर सकती है। यह बाइबल को देखने का एकमात्र तरीका है जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है, और मेरा मानना है कि यही बाइबल के हर लेखक और संकलनकर्ता की सर्वनिष्ठ इच्छा थी।

— ऊपर से संगति से उद्धृत

बाइबल परमेश्‍वर के कार्य का एक अभिलेख, और परमेश्‍वर की गवाही मात्र है; यद्यपि यह मानवजाति की आध्‍यात्मिक उन्‍नति के लिए बहुत लाभकारी है, फ़िर भी किसी भी स्थिति में यह पवित्र आत्‍मा के कार्य का स्‍थान लेने योग्‍य नहीं है। परमेश्‍वर में आस्‍थावान हम लोगों के लिए उद्धार प्राप्‍त करना पवित्र आत्‍मा के कार्य पर ही आधारित होना चाहिए। यदि हम बिना पवित्र आत्‍मा के कार्य के सिर्फ़ बाइबल का ही अनुसरण करें, तो हम अपने ही मार्ग पर अवनत हो जाएंगे। फरीसियों का परमेश्‍वर में विश्‍वास होते हुए भी उनका विरोध करना इस बात का एक अच्‍छा उदाहरण प्रस्‍तुत करता है कि अपनी आस्‍था पवित्र आत्‍मा के कार्य पर नहीं वरन् मात्र बाइबल पर ही आधारित करना गलत है। कई लोगों ने बाइबल पर कई वर्षों तक शोध किया है, परन्‍तु उनमें पवित्र आत्‍मा की प्रबुद्धता और रोशनी का अभाव रहा है, तथा अंत में वे सत्‍य की समझ या परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्‍त करने में असमर्थ रहे हैं। इसलिए, हमें, जिन्‍हें परमेश्‍वर में आस्‍था है, बाइबल के प्रति हमारा दृष्टिकोण उचित रखते हुए, तद्नुसार बाइबल का उपयोग करना चाहिए। हमें न तो कभी बाइबल पर अंधश्रद्धा रखनी चाहिए और न ही कभी उसकी आराधना करनी चाहिए। हम बाइबल में परमेश्‍वर के वचन देख सकते हैं, साथ ही यह भी देख सकते हैं कि परमेश्‍वर किस तरह मनुष्‍य को बचाने का अपना कार्य करते हैं, परन्‍तु इस विषय में, विशेषकर परमेश्‍वर के वचन से संबंधित, हमारी समझ सदा बहुत ही सीमित रहेगी। पवित्र आत्‍मा की प्रबुद्धता तथा रोशनी के बिना, हम परमेश्‍वर के वचनों को अक्षरश: याद रख सकते हैं, परन्‍तु हम तब भी सत्‍य को नहीं समझ पाएंगे। सम्‍पूर्ण इतिहास में, परमेश्‍वर के कार्यों का अनुभव जिन्‍हें हुआ है, ऐसे अनगिनत संतो द्वारा इसकी पुष्टि की गई है। ऐसे कई धार्मिक लोग हैं जो बाइबल में अंधी-आस्‍था रखते तथा उसकी आराधना करते हैं, परन्‍तु उनके हृदय परमेश्‍वर के प्रति श्रद्धापूर्ण नहीं है, एवं वे अपनी ही धारणाओं और कल्‍पनाओं से परमेश्‍वर को सीमांकित करते हैं। जब अंत के दिनों के देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर अपने उस न्‍याय-कार्य को संपादित करते और सत्‍य की अभिव्‍यक्ति करते हैं, जो मनुष्‍य को शुद्ध करेगा और बचाएगा, तब ऐसे लोग परमेश्‍वर की वाणी को नहीं पहचानते। इसके बजाय, वे बेपरवाही से परमेश्‍वर की आलोचना करते और ईशनिंदा करते हुए उनका तिरस्‍कार और विरोध करते हैं। जब वे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की कलीसिया के सदस्‍यों को अपनी सभाओं में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन खाते-पीते, तथा बाइबल पर सिर्फ़ उनके खाली समय में ही विचार करते देखते हैं, तो वे और अधिक निंदा तथा आलोचना करते हैं। क्‍या वे वाकई सत्‍य को समझते या परमेश्‍वर को जानते हैं? बिल्‍कुल भी नहीं! वे बाइबल पूजक हैं जो परमेश्‍वर का ठीक फरीसियों की तरह ही विरोध करते हैं। जब फरीसियों ने देखा कि प्रभु यीशु के अनुयायी अपनी सभाओं में केवल प्रभु यीशु के कार्य और वचनों पर ही सहभागिता करते थे, तो फरीसियों ने उनकी यह कहते हुए आलोचना करी, कि उन्‍होंने पवित्र शास्‍त्र का नहीं वरन केवल प्रभु यीशु के वचनों का ही अध्‍ययन किया था। यह आधुनिक समय के पादरियों और एल्‍डर्स द्वारा जो कहा जाता है उसके सदृश ही है; वे सभी बिना यह जाने कि परमेश्‍वर का अनुसरण करना या उनके कार्यों का अनुभव करने का अर्थ क्‍या है, परमेश्‍वर के कार्य की निंदा करते हैं। वे मात्र बाइबल की व्‍याख्‍या, धार्मिक अनुष्‍ठानों का आयोजन तथा धार्मिक नियमों के पालन के अतिरिक्‍त और कुछ नहीं कर सकते। यदि, अनुग्रह के युग में, प्रभु के विश्‍वासियों ने अपनी सभाओं में सिर्फ़ पुराने विधान का ही अध्‍ययन किया होता, तो क्‍या वे प्रभु यीशु का अनुमोदन प्राप्‍त कर पाते? अब प्रभु यीशु पुन: लौटे हैं, उन्‍होंने सत्‍य व्‍यक्‍त किए हैं, तथा वे अन्‍त के दिनों में न्‍याय का कार्य करते हैं। क्‍या हम बाइबल की रीतियों और नियमों से चिपके रहते हुए अंत के दिनों के परमेश्‍वर के वचन और कार्य को बेकार समझ कर छोड़ सकते हैं? परमेश्‍वर में विश्‍वास करने का वास्‍तविक अर्थ क्‍या होता है? अगर कोई विश्‍वासी परमेश्‍वर के वर्तमान वचनों को खाता, पीता और अनुभव नहीं करता है, तो क्‍यायह वाकई परमेश्‍वर में आस्‍था हुई? कई धार्मिक लोगों में परमेश्‍वर के विश्‍वास को लेकर बहुत आधारभूत ज्ञान और सत्‍यों तक का अभाव होता है। वे महसूस करते हैं कि पूरी बाइबल ही परमेश्‍वर के वचन है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी, सभी को सदैव बाइबल का ही अनुसरण करते रहना चाहिए, और यह कि बाइबल पर अवलंबित रहना परमेश्‍वर में आस्‍था रखने के समकक्ष है। क्‍या यह परमेश्‍वर में आस्‍था के सत्‍यानुरूप है? परमेश्‍वर का कार्य सदा आगे बढ़ता और विकसित होता रहता है, तथा सहस्‍त्राब्‍दी राज्‍य के युग में भी, परमेश्‍वर अपने वचनों का उपयोग मानवजाति का नेतृत्‍व करने के लिए करेंगे। परमेश्‍वर नियमों का पालन नहीं करते—परमेश्‍वर नित-नूतन हैं तथा कभी प्राचीन नहीं होते, एवं उनके वचन और कार्य अविराम सदा आगे बढ़ते रहते हैं, तो भी कई लोग इस बात को समझ नहीं पाते। क्‍या ऐसे लोग बेतुके नहीं हैं? ऐसे कई लोग हैं, जो अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य को स्‍वीकार करने के बाद अभी भी अस्‍पष्‍ट हैं कि किस प्रकार परमेश्‍वर की इच्‍छा के अनुरूप बाइबल से पेश आया जाए। इस मसले पर सत्‍य को सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने स्‍पष्‍ट रूप से व्‍यक्‍त किया है, तो आइए उनके वचनों के कुछ अंश पढ़ते हैं।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "आज, मैं इस तरह से बाइबल का विश्लेषण कर रहा हूँ लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि मैं इससे नफ़रत करता हूँ या सन्दर्भ के लिए इसके महत्व को नकारता हूँ। तुम्हें अंधकार में रखे जाने से रोकने के लिए मैं तुम्हें बाइबल के अंतर्निहित मूल्य और इसकी उत्पत्ति समझा रहा हूँ और स्पष्ट कर रहा हूँ। क्योंकि बाइबल के बारे में लोगों के इतने अधिक विचार हैं, और उनमें से अधिकांश ग़लत हैं; इस तरह बाइबल पढ़ना न केवल उन्हें वह प्राप्त करने से रोकता है जो उन्हें प्राप्त करना ही चाहिए, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह कि यह उस कार्य में भी बाधा डालता है जिसे मैं करना चाहता हूँ। यह भविष्य के कार्य में अत्यधिक हस्तक्षेप करता है और इसमें दोष ही दोष हैं, लाभ तो कोई है ही नहीं। इस प्रकार, मैं तुम्हें बाइबल का सार और उसकी अंतर्कथा बता रहा हूँ। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम बाइबल मत पढ़ो या तुम चारों तरफ यह ढिंढोरा पीटते फिरो कि यह मूल्यविहीन है, मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि तुम्हें बाइबल का सही ज्ञान और तुम्हारे पास सही दृष्टि हो। तुम्हारी दृष्टि एकतरफा न हो! यद्यपि बाइबल इतिहास की पुस्तक है जो मनुष्यों के द्वारा लिखी गई थी, लेकिन इसमें कई ऐसे सिद्धांत भी लिपिबद्ध हैं जिनके अनुसार प्राचीन संत और नबी परमेश्वर की सेवा करते थे, और साथ ही इसमें परमेश्वर की सेवा-टहल करने के आजकल के प्रेरितों के अनुभव भी अंकित हैं—यह सब इन लोगों ने सचमुच देखा और जाना था, जो सच्चे मार्ग का अनुसरण करने में इस युग के लोगों के लिए सन्दर्भ का काम कर सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))

"बाइबल हज़ारों साल से इंसानी इतिहास का हिस्सा रही है। इतना ही नहीं, लोग इसे परमेश्वर की तरह मानते हैं। यहाँ तक कि अंत के दिनों में इसने परमेश्वर की जगह ले ली है, जिससे परमेश्वर अप्रसन्न है। इसलिए, जब समय मिला, परमेश्वर ने बाइबल की अंदरूनी कहानी और उसकी उत्पत्ति को स्पष्ट करना ज़रूरी समझा। अगर वह ऐसा न करता, तो बाइबल लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान बनाए रखती, और लोग परमेश्वर के कर्मों को मापने और उनका खंडन करने के लिए बाइबल के वचनों का इस्तेमाल करते रहते। बाइबल के सार, उसकी संरचना और उसकी कमियों की व्याख्या करके परमेश्वर किसी भी तरह से न तो बाइबल के अस्तित्व को नकार रहा था, न ही वह उसकी निंदा कर रहा था; बल्कि वह तो एक उपयुक्त और उचित विवरण मुहैया करा रहा था, जिससे बाइबल की मौलिक छवि बहाल हो सके। उसने बाइबल से संबंधित लोगों की गलतफहमियों को दूर किया और उनके सामने बाइबल की सही दृष्टि प्रस्तुत की, ताकि वे अब बाइबल की आराधना करके और भ्रमित न हों; जिसका तात्पर्य है कि, ताकि वे बाइबल में अपने अंधविश्वास को परमेश्वर में विश्वास और परमेश्वर की आराधना मानने की गलती न करें, और उसकी सच्ची पृष्ठभूमि और कमियों का सामना करने मात्र से भयभीत न हों। एक बार लोगों में बाइबल की विशुद्ध समझ पैदा हो जाए, तो वे बिना किसी खेद के इसे दरकिनार कर देंगे और परमेश्वर के नए वचनों को हिम्मत के साथ स्वीकार करेंगे। इन अनेक अध्यायों में परमेश्वर का यही लक्ष्य है। जो सत्य परमेश्वर लोगों को बताना चाहता है, वह यह है कि कोई भी सिद्धांत या तथ्य परमेश्वर के आज के कार्य और वचनों की जगह नहीं ले सकता, और कोई भी चीज़ परमेश्वर का स्थान नहीं ले सकती। अगर लोग बाइबल के फंदे से नहीं निकल सके, तो वे कभी भी परमेश्वर के सामने नहीं आ पाएँगे। अगर वे परमेश्वर के सामने आना चाहते हैं, तो उन्हें अपने दिल से हर वो चीज़ साफ करनी होगी, जो परमेश्वर की जगह ले सकती हो; तभी वे परमेश्वर के लिए संतोषजनक होंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कलीसियाओं में जाकर बोले गए मसीह के वचन, परिचय)

"यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे। तुम्हें यह समझना चाहिए कि आज तुमसे बाइबल न पढ़ने के लिए क्यों कहा जा रहा है, क्यों एक अन्य कार्य है जो बाइबल से अलग है, क्यों परमेश्वर बाइबल में कोई अधिक नवीन और अधिक विस्तृत अभ्यास नहीं देखता, इसके बजाय बाइबल के बाहर अधिक पराक्रमी कार्य क्यों है। यही सब है, जो तुम लोगों को समझना चाहिए। तुम्हें पुराने और नए कार्य के बीच का अंतर जानना चाहिए, और भले ही तुम बाइबल को न पढ़ते हो, फिर भी तुम्हें उसकी आलोचना करने में सक्षम होना चाहिए; यदि नहीं, तो तुम अभी भी बाइबल की आराधना करोगे, और तुम्हारे लिए नए कार्य में प्रवेश करना और नए परिवर्तनों से गुज़रना कठिन होगा। जब एक उच्चतर मार्ग मौजूद है, तो फिर निम्न, पुराने मार्ग का अध्ययन क्यों करते हो? जब यहाँ अधिक नवीन कथन और अधिक नया कार्य उपलब्ध है, तो पुराने ऐतिहासिक अभिलेखों के मध्य क्यों जीते हो? नए कथन तुम्हारा भरण-पोषण कर सकते हैं, जिससे साबित होता है कि यह नया कार्य है; पुराने अभिलेख तुम्हें तृप्त नहीं कर सकते, या तुम्हारी वर्तमान आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर सकते, जिससे साबित होता है कि वे इतिहास हैं, और यहाँ का और अभी का कार्य नहीं हैं। उच्चतम मार्ग ही नवीनतम कार्य है, और नए कार्य के साथ, भले ही अतीत का मार्ग कितना भी ऊँचा हो, वह अभी भी लोगों के चिंतनों का इतिहास है, और भले ही संदर्भ के रूप में उसका कितना भी महत्व हो, वह फिर भी एक पुराना मार्ग है। भले ही वह 'पवित्र पुस्तक' में दर्ज किया गया हो, फिर भी पुराना मार्ग इतिहास है; भले ही 'पवित्र पुस्तक' में नए मार्ग का कोई अभिलेख न हो, फिर भी नया मार्ग यहाँ का और अभी का है। यह मार्ग तुम्हें बचा सकता है, और यह मार्ग तुम्हें बदल सकता है, क्योंकि यह पवित्र आत्मा का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))

परमेश्‍वर द्वारा व्‍यवस्‍था के युग के अपने कार्य का समापन करने पर पुराना विधान आया, एवं नया विधान तब आया जब प्रभु यीशु ने अपना छुटकारे का कार्य समाप्‍त किया। विगत 2,000 वर्षों में, बाइबल जितने व्‍यापक रूप से और कोई शास्‍त्र न तो प्रकाशित हुआ है और न ही पढ़ा गया है, एवं मनुष्य ने बाइबल से बहुत अधिक आध्‍यात्मिक उन्‍नति पाई है। चूँकि परमेश्‍वर द्वारा अपने कार्य के समय बोले गये वचन बाइबल में अभिलिखित हैं, एवं परमेश्‍वर द्वारा उपयोग में लाए गए लोगों के अनुभवों और गवाहियों के लेखे-जोखे के रूप में भी वह काम में आती है, उससे लोग परमेश्‍वर के अस्तित्‍व के साथ-साथ परमेश्‍वर के प्रकटन और कार्य को भी देख सकते हैं। उससे, वे लोग यह तथ्‍य भी स्‍वीकार कर सकते हैं कि परमेश्‍वर ही सभी चीजों के सृजनकार और अधिपति हैं, तथा मानवजाति के सृजन के बाद परमेश्‍वर द्वारा किए गए व्‍यवस्‍था के युग और अनुग्रह के युग के दोनों चरणों के कार्य को भी वे जान सकते हैं। यह बाइबल में दर्ज़ अनुग्रह के युग के संबंध में विशेष तौर पर सही है, जब प्रभु यीशु ने व्‍यक्तिगत रूप से अपने छुटकारे के कार्य का संचालन किया था, अपना विपुल अनुग्रह मानवजाति को प्रदान किया था, तथा कई सत्‍य व्‍यक्‍त किए थे। इससे हम मानवजाति के प्रति परमेश्‍वर के सच्चे प्रेम को देख सकते हैं, हम यह समझ सकते हैं कि जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए मनुष्‍य को परमेश्‍वर पर श्रद्धा रखकर परमेश्‍वर की अधीनता स्‍वीकार करनी चाहिए, और जब हम सत्‍य को ही हमारे सम्‍पूर्ण जीवन के रूप में प्राप्‍त करते हैं, केवल तब ही हम परमेश्‍वर से उद्धार और उनका अनुमोदन प्राप्‍त कर सकते हैं। ये वे परिणाम हैं जो परमेश्‍वर के कार्य के इन दो चरणों ने मानवता पर हासिल किए हैं। बाइबल में दिए गए अभिलेख नहीं होते तो मानवजाति के लिए परमेश्‍वर के पिछले कार्यों को समझ पाना बहुत मुश्किल होता। इसी कारणवश परमेश्‍वर में हम आस्‍थावान लोगों के लिए बाइबल एक आवश्‍यक पाठ्य सामग्री है। तथापि, बाइबल चाहे कितनी ही मूल्‍यवान क्‍यों न हो, हमें उसे परमेश्‍वर के समतुल्‍य नहीं रखना चाहिए, इससे भी अधिक महत्‍वपूर्ण यह है कि हमें इसे परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्‍व करने या परमेश्‍वर के कार्य का स्‍थान लेने के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए। अत: हमें बाइबल के साथ उचित तरीके से व्‍यवहार करते हुए, कभी भी उस पर अंध-श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए या उसकी आराधना नहीं करनी चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, कौन से वचन परमेश्‍वर के हैं और कौन से शब्‍द मनुष्‍य के, इस मुद्दे पर, बाइबल स्‍पष्‍ट रूप से परमेश्‍वर के कथनों और मनुष्‍य के कथनों को इंगित करती है; यह एक सरसरी नज़र डालने पर ही स्‍पष्‍ट हो जाता है। तब भी, जब प्रेरितों की पत्रियों तथा मनुष्‍य के अनुभवों एवं गवाहियों वाले अंशों की बात आती है, तो कई लोगों में इस विवेक का अभाव होता है। कुछ लोग तो यह भी विश्‍वास करते हैं कि पवित्र आत्‍मा की प्रबुद्धता से प्रकट होने वाले वचन, या ऐसे वचन जो परमेश्‍वर के सत्‍य के अनुरूप हैं, वे परमेश्‍वर के वचन हैं। लेकिन क्‍या यह निरर्थक नहीं है? क्‍या मनुष्‍य परमेश्‍वर के वचन व्‍यक्‍त कर सकता है? जब पवित्र आत्‍मा मनुष्‍य को प्रबुद्ध और रोशन करता है, और मनुष्‍य को किंचित मात्रा में ज्‍योति प्राप्‍त होती है, तो क्‍या इसका यह अर्थ होता है कि पवित्र आत्‍मा मनुष्‍य को परमेश्‍वर के वचन प्रकट कर रहा है या उसे उन वचनों द्वारा प्रेरित कर रहा है? पवित्र आत्‍मा के कार्य का अभीष्‍ट परिणाम मनुष्‍य को सत्‍य की समझ कराना और सत्‍यता में प्रवेश कराना है। क्‍या यह हो सकता है कि सत्‍य को समझने की तथा इसकी वास्तविकता में प्रवेश करने की मनुष्‍य की गवाहियाँ वास्तव में परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त वचन हों? हमें बहुत स्‍पष्‍ट होना चाहिए कि भले ही जब मनुष्‍य के कथन सत्‍य के अनुरूप होते हैं, तब भी वे वस्‍तुत: स्‍वयं सत्‍य, अथवा परमेश्‍वर के वचन नहीं माने जा सकते हैं। मनुष्‍य के शब्‍दों और परमेश्‍वर के वचनों का उल्‍लेख एक ही वाक्‍य में नहीं किया जा सकता है क्‍योंकि केवल परमेश्‍वर के वचन ही सत्‍य हैं; केवल परमेश्‍वर के वचन ही मनुष्‍य को छुटकारा दिला सकते हैं, उसे बचा सकते हैं और उसका जीवन बन सकते हैं। मनुष्‍य के कथन सिर्फ़ उसके स्‍वयं के अनुभवों और समझ को दर्शा सकते हैं, और वे सिर्फ संदर्भ के लिए होते हैं। वे लोगों के लिए सहायक और आध्‍यात्मिक रूप से शिक्षाप्रद हो सकते हैं, लेकिन वे परमेश्‍वर के वचनों का स्‍थान कतई नहीं ले सकते। बाइबल में परमेश्‍वर के वचन कभी भी विरोधाभासी नहीं हैं, और यदि आप बाइबल में मनुष्‍य के शब्‍दों की परमेश्‍वर के वचनों के साथ तुलना करें, तो उनमें कुछ अंतर्विरोध उत्‍पन्‍न होना लाजमी है। हालांकि, परमेश्‍वर के कार्यों और उनके वचनों में युगों-युगों से कोई विसंगति नहीं है। बाइबल में दर्ज़ यहोवा परमेश्‍वर के वचन, प्रभु यीशु के वचन, एवं अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन-इन सभी वचनों का उद्गम, एक ही परमेश्‍वर का कार्य है। वे सभी पवित्र आत्‍मा के वचनों से उत्‍पन्‍न होते हैं। यह एक ऐसा तथ्‍य है जिसका कोई भी खण्‍डन नहीं कर सकता। तब भी, कई धार्मिक लोग बहुधा बाइबल से मनुष्‍य के कथन लेकर उनका परमेश्‍वर के वर्तमान वचनों के साथ मिलान करते हैं। प्रभु यीशु के वचनों के साथ जाँच और तुलना करने के लिए सदैव पवित्र शास्‍त्रों के शब्‍दों का उपयोग करना, यही तो फरीसियों ने भी किया था। नतीजतन, प्रभु यीशु का अस्‍वीकार करने के लिए फरीसियों ने बड़ी संख्‍या में कारण खोज लिए, और पागलों की तरह उनका विरोध तथा तिरस्‍कार किया, यहाँ तक कि उन्‍हें सूली पर चढ़ाने की हद तक चले गए। तो, यहाँ समस्‍या क्‍या है? वर्तमान में भी कई लोग हैं जो इस बात को स्‍पष्‍ट रूप से नहीं समझते। परमेश्‍वर का कार्य कभी भी बाइबल पर आधारित नहीं रहा, इसके अतिरिक्‍त परमेश्‍वर बाइबल तक ही सीमित नहीं हैं। यदि हम परमेश्‍वर का अध्‍ययन सदैव बाइबल के आधार पर करते हैं, या परमेश्‍वर के वर्तमान कार्य को उस प्रकार से मापते हैं, तो हम बारम्‍बार असफल होंगे, और हमारा पतन और अधिक विकट होता जाएगा। इस समय, कई धार्मिक लोग बाइबल के वचनों का उपयोग सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों तथा अंत के दिनों के उनके कार्यों का अध्‍ययन करने के लिए करते हैं, यहां तक कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की निंदा एवं उनका विरोध करने के लिए वे बाइबल को अप्रसांगिक रूप से उद्धृत भी करते हैं। वे बाइबल के वचन, विशेष रूप से मनुष्‍य के कथन को लेते हैं, और उनका उपयोग परमेश्‍वर के वचनों की जगह करते हैं। इसके अतिरिक्‍त, वे परमेश्‍वर के वचनों का गलत अर्थ लगाते हैं, तथा अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य का तिरस्‍कार एवं विरोध करने के लिए मनुष्‍य के शब्‍दों का दुरुपयोग करते हैं। य‍ह ठीक ऐसा ही है जैसा फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध करने के लिए किया था, तो इसका परिणाम क्‍या होगा? वे परमेश्‍वर द्वारा उसी प्रकार श्रापित किए जाएँगे। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं: "धिक्कार है उन लोगों को, जो परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। यदि हम बाइबल के सिद्धांतों का उपयोग परमेश्‍वर का विरोध करने के लिए करते रहते हैं, तो हम मसीह-विरोधियों के रूप में प्रकट किए जाएंगे और परमेश्‍वर द्वारा श्रापित किए जाएंगे। क्‍या यह तथ्‍य नहीं है?

इन धार्मिक फरीसियों की परमेश्‍वर में आस्‍था में असफलता हमें यह सिखाती है कि जब परमेश्‍वर नया कार्य करते हैं, तो मनुष्‍य को मौजूदा शास्‍त्रों के बाहर देख कर परमेश्‍वर के वर्तमान वचनों और कार्य को स्‍वीकार कर उनके प्रति समर्पण करना चाहिए। यह ठीक वैसा ही है, कि किस प्रकार व्‍यवस्‍था के युग में, मनुष्‍य को परमेश्‍वर के आशीष पाने के लिए यहोवा परमेश्‍वर द्वारा जारी नियमों और आज्ञाओं का पालन करना पड़ा था। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु अपना छुटकारे का कार्य करने के लिए आए, एवं मनुष्‍य को व्‍यवस्‍था के बाहर जाकर प्रभु यीशु के वचनों और कार्य को स्‍वीकार करना तथा उनकी अधीनता स्‍वीकार करनी पड़ी ताकि वे उनका अनुमोदन प्राप्‍त कर सकें। अंत के दिनों में परमेश्‍वर के घर से प्रारंभ कर सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर न्‍याय का कार्य करते हैं। उन्‍होंने अनुग्रह के युग का समापन तथा राज्‍य के युग का सूत्रपात कर दिया है। अतः हमें अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के कार्य को स्‍वीकार करना चाहिए और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों पर अमल कर उनका अनुभव करना चाहिए, ताकि हम पवित्र आत्‍मा के कार्य को पा सकें, सत्‍य को अपने जीवन के रूप में स्‍वीकार कर सकें, एवं ऐसे मनुष्‍य बन सकें जो परमेश्‍वर को जानते हैं, उनके प्रति समर्पित तथा श्रद्धालु हैं, और जो परमेश्‍वर द्वारा उनके उद्धार से प्राप्‍त किए जाते हैं। यही एकमात्र मार्ग है जिससे मनुष्‍य उनके राज्‍य में प्रवेश पा सकता है। इससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर में हमारी आस्‍था परमेश्‍वर के कार्य के अनुरूप होनी चाहिए तथा हमें पवित्र आत्‍मा का कार्य प्राप्‍त करना चाहिए, क्‍योंकि तभी हम सत्‍य को समझ सकते हैं, परमेश्‍वर को जान सकते हैं, और सत्‍य की वास्‍तविकता में प्रवेश कर सकते हैं। अगर हमारी आस्‍था सिर्फ़ बाइबल के अध्‍ययन करने और उसके शब्दों का सख्‍ती से अनुपालन करने पर ही आधारित है, तो हम परमेश्‍वर के कार्यों के जरिए हटा दिए जाएंगे और बेकार समझ कर छोड़ दिए जाएंगे, ठीक फरीसियों की ही तरह, जिन्‍होंने केवल शास्‍त्रों का पालन तो किया परन्‍तु परमेश्‍वर का विरोध किया, और इस प्रकार स्‍वयं पर परमेश्‍वर का अभिशाप आमंत्रित किया। क्‍या बाइबल का अनुपालन परमेश्‍वर पर हमारी आस्‍था की बुनियाद है? अगर परमेश्‍वर में हमारी आस्‍था में पवित्र आत्‍मा के कार्य का अभाव है, तो हम पहले ही सच्‍चे मार्ग से विचलित हो चुके हैं, तथा परमेश्‍वर का उद्धार पाने का हमारे पास कोई मार्ग नहीं है। इसलिए, हमारी आस्‍था बाइबल का सख्‍ती से अनुपालन करने पर आधारित नहीं हो सकती; हमें परमेश्‍वर के कार्य के अनुरूप चलना चाहिए, परमेश्‍वर के वर्तमान वचनों का अध्‍ययन करना और पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त करना चाहिए। यह परमेश्‍वर में हमारी आस्‍था की बुनियाद एवं उसका सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण पहलू है। विश्‍वासियों के रूप में हमें बाइबल के प्रति क्‍या दृष्टिकोण रखना चाहिए और परमेश्‍वर पर हमारी आस्‍था किस बात पर आधारित होनी चाहिए ताकि हम आस्‍था के मार्ग पर चलते हुए परमेश्‍वर का अनुमोदन पा सकें, इस बारे में हमें अब स्‍पष्‍टता होनी चाहिए, है ना?

— 'पटकथा-प्रश्नों के उत्तर' से उद्धृत

पिछला: बाइबल परमेश्वर के कार्य का प्रमाण है; केवल बाइबल पढ़ने के द्वारा ही प्रभु पर विश्वास करने वाले लोग यह जान सकते हैं कि परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी और सभी चीजों को बनाया और इसी से वे परमेश्वर के अद्भुत कार्यों, उसकी महानता और सर्वशक्तिमानता को देख सकते हैं। बाइबल में परमेश्वर के बहुत सारे वचन और मनुष्य के अनुभवों की बहुत सारी गवाहियाँ हैं; यह मनुष्य के जीवन के लिए प्रावधान कर सकती है और मनुष्य के लिए बहुत लाभदायक हो सकती है, इसलिए मुझे जिसकी खोज करनी है वह यह है कि क्या हम वास्तव में बाइबल पढ़ने के द्वारा अनन्त जीवन को प्राप्त कर सकते हैं? क्या बाइबल के भीतर वास्तव में अनन्त जीवन का कोई मार्ग नहीं है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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बाइबल में, पौलुस ने कहा था "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), पौलुस के वचन बाइबल में हैं। इसीलिए, वे परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित थे; वे परमेश्‍वर के वचन हैं। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। चाहे कोई भी विचारधारा क्‍यों न हो, यदि वह बाइबल से भटकती है, तो वह विधर्म है! हम प्रभु में विश्वास करते हैं, इसीलिए हमें सदा बाइबल के अनुसार कार्य करना चाहिए, अर्थात्, हमें बाइबल के वचनों का पालन करना चाहिए। बाइबल ईसाई धर्म का मूलभूत सिद्धांत है, हमारे विश्वास की नींव है। बाइबल को त्‍यागना प्रभु में अविश्‍वास करने के समान है; यदि हम बाइबल को त्‍याग देते हैं, तो हम प्रभु में कैसे विश्वास कर सकते हैं? बाइबल में प्रभु के वचन लिखे हैं। क्या कहीं और भी ऐसी जगह है जहां हम उनके वचनों को पा सकते हैं? यदि प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित नहीं है, तो इसका आधार क्या है?

उत्तर: आप कहती हैं कि चूंकि पौलुस के वचन बाइबल में हैं, वे प्रभु द्वारा प्रेरित हैं; इसीलिए वे प्रभु के वचन हैं। यह वास्तव में उचित नहीं...

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