महान श्वेत सिंहासन का न्याय शुरू हो चुका है

28 अक्टूबर, 2020

विश्वासी बनने के बाद, मैंने सीखना शुरू किया कि कैसे प्रार्थना करें और बाइबल पढ़ें, मैंने दैनिक जीवन में प्रभु के वचनों का पालन करने की पूरी कोशिश की। फिर मैंने अंत के दिनों में न्याय के बारे में बहुत सारे वीडियो ऑनलाइन देखे। उनमें प्रकाशित-वाक्य की इस भविष्यवाणी का ज़िक्र किया गया था : "फिर मैं ने एक बड़ा श्‍वेत सिंहासन और उसको, जो उस पर बैठा हुआ है, देखा; उसके सामने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उनके लिये जगह न मिली। फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के सामने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गईं; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात् जीवन की पुस्तक; और जैसा उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, वैसे ही उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया" (प्रकाशितवाक्य 20:11-12)। अंत के दिनों में, प्रभु यीशु सफ़ेद वस्त्रों में महान श्वेत सिंहासन पर विराजमान होते हैं और हर कोई उनके सामने घुटने टेकता है। व्यक्ति द्वारा अपने जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार वे प्रत्येक व्यक्ति का न्याय करते हैं। पाप करने वाले दंड भोगने के लिए नरक में जाते हैं, पाप न करने वालों का राज्य में स्वर्गारोहण होता है। इन वीडियो से मेरा मन प्रभु के न्याय की छवियों से भर गया। मैंने मान लिया कि अंत के दिनों में उनका न्याय वीडियो में बताये गए अनुसार ही होगा। मैंने प्रभु की शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लिया ताकि जब वे हमारा न्याय करने के लिए लौटें, तो राज्य में मेरा स्वागत करें।

2004 में, इंडोनेशिया में एक भयानक सुनामी आई थी जिसमें 2,00,000 से अधिक लोग मारे गए थे। मुझे एहसास हुआ कि यह परमेश्वर का कोप था, वे हमें चेतावनी दे रहे हैं कि जल्द ही न्याय का दिन आएगा। मेरी आस्था के वर्षों के दौरान, मैंने प्रभु की शिक्षाओं का अभ्यास करने की पूरी कोशिश की, लेकिन मैं उनके वचनों को अभ्यास में न ला सकी और न ही दूसरों से अपनी तरह प्रेम कर सकी। जब मेरी सास मेरी ननद से मेरी आलोचना करती तो मुझे गुस्सा आ जाता और मैं उनसे इस बात पर नाराज़ हो जाती। मुझे पैसे का लोभ था और मैं सांसारिक प्रवृत्तियों के पीछे भागा करती थी। बाइबल कहती है : "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। परमेश्वर पवित्र हैं और अपवित्र इंसान परमेश्वर का चेहरा नहीं देख सकता। लेकिन मैं हमेशा पाप करके कबूल करती रहती थी, खुद को पाप से मुक्त नहीं किया था। क्या लौटकर आए प्रभु मेरा न्याय करेंगे और मुझे नरक में भेज देंगे? इसलिए मैंने कुछ पादरियों से पूछा कि पाप करते रहने की इस समस्या को कैसे हल किया जाए। उन्होंने बताया, "अगर हम प्रभु से प्रार्थना करके पाप कबूल करते हैं और पश्चाताप करते हैं, वे हमें हमारे पापों को क्षमा कर देंगे।" इससे मेरी समस्या हल नहीं हुई। मैं पहले की तरह पाप करती रही और कबूल करती रही। जब भी मैं पाप करती, मुझे डर लगता। एक-एक करके कर्मों के आधार पर हमारा न्याय करने के लिए अंत के दिनों में प्रभु आएंगे। अगर मैं पाप करती रही, तो मेरा न्याय करके मुझे दोषी ठहराया जाएगा। मैं राज्य में कैसे पहुँच पाऊँगी? मुझे बहुत चिंता हुई।

फरवरी 2018 में, मेरे पति ने ऑनलाइन सभाओं में शामिल होना शुरू कर दिया। हर रोज़ वे बहुत खुश दिखते और अपनी आस्था में बहुत अधिक व्यस्त हो गए थे। इससे मुझे जिज्ञासा हुई कि वे अपनी सभाओं में किस बारे में बात करते हैं। एक दिन, मेरे पति ने कहा, "प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौट आए हैं। वे न्याय का कार्य कर रहे हैं।" मैं अचरज में पड़ गई। यदि प्रभु यीशु लौट आए हैं, तो वे आकाश में एक महान श्वेत सिंहासन पर बैठे होंगे और एक-एक करके हमारा न्याय कर रहे होंगे। यह नज़ारा तो दिखाई नहीं दिया, तो अंत के दिनों का न्याय कैसे शुरू हो सकता है? जब मैंने अपने पति से यह बात कही तो हँसते हुए बोले, "अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय का कार्य हमारी कल्पना के अनुसार नहीं होगा। परमेश्वर देह धारण करके पृथ्वी पर आए हैं और हमारा न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहे हैं।" मेरी शंकाएँ बढ़ती गईं और मैं सोचने लगी : वचनों को व्यक्त करके प्रभु कैसे हमारा न्याय कर सकते हैं? मैंने कभी किसी पादरी या एल्डर के मुख से ऐसी बात नहीं सुनी थी। मेरे पति ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को हाल ही में स्वीकार किया था, इसलिए वे भी मुझे अच्छी तरह से समझा नहीं पाए, तो उन्होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के लोगों से मिलने के लिए कहा। पहले-पहल तो मेरा मिलने का मन नहीं किया, फिर सोचा कि मेरे पति विचारशील और अपनी आस्था के पक्के इंसान हैं, उन्हें विश्वास है कि प्रभु लौट आए हैं और अपना न्याय का कार्य कर रहे हैं, मैंने मान लिया कि यकीनन उनके पास कोई उचित कारण होगा। यह पता लगाने के लिए कि वास्तव में प्रभु लौट आए हैं या नहीं, मैं उनकी सभाओं में शामिल होने के लिए राज़ी हो गई।

एक सभा में, कलीसिया की बहन लियू ने मेरे सवाल पर यह सहभागिता की : महान श्वेत सिंहासन का न्याय प्रकाशित-वाक्य का एक दर्शन है जिसे यूहन्ना ने पतमुस नामक टापू में देखा था, इसमें अंत के दिनों में परमेश्वर जो कार्य करेंगे उस बारे में भविष्यवाणी की गई है। यह परमेश्वर के कार्य के तथ्यों को नहीं दिखाता। हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार इस भविष्यवाणी को समझने की चेष्टा नहीं कर सकते। बाइबल कहती है : 'पर पहले यह जान लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती, क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई, पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे' (2 पतरस 1:20-21)। जब हम भविष्यवाणियों की बात करते हैं, तो हमारे मन में परमेश्वर का भय होना चाहिए। भविष्यवाणियाँ परमेश्वर से आती हैं और रहस्यमयी होती हैं, इसलिए केवल परमेश्वर ही उनके अर्थ को प्रकट कर सकते हैं। उनके पूरा होने के बाद ही लोग उन्हें समझ पाते हैं। यदि हम उनकी शाब्दिक व्याख्या करने लगें, तो हम परमेश्वर के कार्य को सीमांकित करने और परमेश्वर को अपमानित करने की गुस्ताखी कर सकते हैं। फरीसियों ने बाइबल के शाब्दिक अर्थ को मानते हुए, यह कल्पना की कि मसीहा एक महल में जन्म लेगा और सत्ता में आएगा। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। प्रभु ने महल में जन्म नहीं लिया, वे एक बढ़ई के बेटे के रूप में एक नाँद में जन्मे, और वे वास्तव में सत्ता में नहीं आए। फरीसी हठपूर्वक अपनी धारणाओं पर अड़े रहे और प्रभु को मसीहा मानने से इनकार कर दिया। वे देख सकते थे कि उनके वचनों और कार्यों में अधिकार और सामर्थ्य है और वे परमेश्वर से आये हैं, फिर भी उन्होंने उनका विरोध किया और उनकी निंदा की। अंत में उन्होंने प्रभु को सूली पर चढ़ा दिया। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया और उन्हें परमेश्वर द्वारा शापित और दण्डित किया गया। हमें फरीसियों से सबक सीखना चाहिए और अपनी धारणाओं से भविष्यवाणियों को समझने की और परमेश्वर के कार्य को सीमांकित करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए।"

मुझे लगा कि इस बहन ने जो कहा वह बहुत प्रबोधक और बाइबल के अनुरूप है। भविष्यवाणियाँ परमेश्वर से आती हैं, और मनुष्य की तुलना में परमेश्वर के विचार उन्नत होते हैं। परमेश्वर की बुद्धि भी मनुष्य की तुलना में उत्कृष्ट है। भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होनी हैं, इसका विवरण केवल परमेश्वर जानते हैं। भला मनुष्य को परमेश्वर के कार्य की थाह कैसे मिल सकती है? मुझे एहसास हुआ कि मैं अपनी धारणाओं से परमेश्वर के कार्य को परिसीमित नहीं कर सकती। मैंने बहन से पूछा, "आप गवाही देती हैं कि परमेश्वर ने देहधारण की है और अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने के लिए, पृथ्वी पर आए हैं। इसका क्या मतलब है? इसका बाइबल के महान श्वेत सिंहासन के न्याय से क्या संबंध है?"

बहन ने बाइबल के इन पदों का संदर्भ लिया : "फिर मैं ने एक और स्वर्गदूत को आकाश के बीच में उड़ते हुए देखा, जिसके पास पृथ्वी पर रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार था। उसने बड़े शब्द से कहा, 'परमेश्‍वर से डरो, और उसकी महिमा करो, क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है'" (प्रकाशितवाक्य 14:6-7)। "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन्ना 5:22)। "वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:27)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। और 1 पतरस में लिखा है: "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। फिर उन्होंने यह सहभागिता की : "इन पदों में लिखा है 'जिसके पास पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा,' 'क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है,' और 'न्याय की शुरुआत परमेश्वर के घर से होनी चाहिए।' हम देख सकते हैं कि परमेश्वर अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। एक में यह भी लिखा है, 'परन्‍तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।' 'पुत्र' और 'मनुष्य का पुत्र' का मतलब है कोई ऐसा जो मनुष्य से पैदा हुआ हो और जिसमें सामान्य मानवता हो। प्रभु यीशु की तरह, भले ही वे देखने में साधारण लगें, उनके पास परमेश्वर का आत्मा है और उनके भीतर एक दिव्य सार है। न तो परमेश्वर का आत्मा और न ही उनके आध्यात्मिक शरीर को मनुष्य का पुत्र कहा जा सकता है। ये पद साबित करते हैं कि सत्य को व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर अंत के दिनों में मनुष्य के पुत्र के रूप में देह धारण करेंगे, और यह न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है। इसका मतलब है कि जो लोग परमेश्वर की वाणी सुनते हैं और उनके सिंहासन के समक्ष आते हैं, उनका न्याय पहले किया जाएगा।"

उन्होंने तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़े : "परमेश्वर एक-एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता, एक-एक करके उनकी परीक्षा नहीं लेता; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मनुष्यजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या पूरी मनुष्यजाति का सार समान नहीं है? न्याय किया जाता है इंसान के भ्रष्ट सार का, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए इंसानी सार का, और इंसान के सारे पापों का। परमेश्वर मनुष्य के छोटे-मोटे और मामूली दोषों का न्याय नहीं करता। न्याय का कार्य निरूपक है, और किसी व्यक्ति-विशेष के लिए कार्यान्वित नहीं किया जाता। बल्कि यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मनुष्यजाति के न्याय का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। देहधारी परमेश्वर लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को कार्यान्वित करके, इस कार्य का उपयोग संपूर्ण मनुष्यजाति के कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है, जिसके बाद यह धीरे-धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य ऐसा ही है। परमेश्वर किसी व्यक्ति-विशेष या लोगों के किसी समूह-विशेष का न्याय नहीं करता, बल्कि संपूर्ण मनुष्यजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है—उदाहरण के लिए, परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, या उसके प्रति मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में व्यवधान इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वो है इंसान का परमेश्वर-विरोधी सार, और यह कार्य अंत के दिनों का विजय-कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य और वचन जिनकी गवाही इंसान देता है, वे अंत के दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसकी कल्पना इंसान के द्वारा अतीत में की गई थी। देहधारी परमेश्वर द्वारा वर्तमान में किया जा रहा कार्य वास्तव में बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है)। "आज का विजय कार्य यह स्पष्ट करने के लिए अभीष्ट है कि मनुष्य का अन्त क्या होगा। मैं क्यों कहता हूँ कि आज की ताड़ना और न्याय, अंत के दिनों के महान श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है? क्या तुम यह नहीं देखते हो? विजय का कार्य अन्तिम चरण क्यों है? क्या यह इस बात को प्रकट करने के लिए नहीं है कि मनुष्य के प्रत्येक वर्ग का अन्त कैसा होगा? क्या यह प्रत्येक व्यक्ति को, ताड़ना और न्याय के विजय कार्य के दौरान, अपना असली रंग दिखाने और फिर उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करने के लिए नहीं है? यह कहने के बजाय कि यह मनुष्यजाति को जीतना है, यह कहना बेहतर होगा कि यह उस बात को दर्शाना है कि व्यक्ति के प्रत्येक वर्ग का अन्त किस प्रकार का होगा। यह लोगों के पापों का न्याय करने के बारे में है और फिर मनुष्यों के विभिन्न वर्गों को उजागर करना और इस प्रकार यह निर्णय करना है कि वे दुष्ट हैं या धार्मिक हैं। विजय-कार्य के पश्चात धार्मिक को पुरस्कृत करने और दुष्ट को दण्ड देने का कार्य आता है। जो लोग पूर्णत: आज्ञापालन करते हैं अर्थात जो पूर्ण रूप से जीत लिए गए हैं, उन्हें सम्पूर्ण कायनात में परमेश्वर के कार्य को फैलाने के अगले चरण में रखा जाएगा; जिन्हें जीता नहीं गया उनको अन्धकार में रखा जाएगा और उन पर महाविपत्ति आएगी। इस प्रकार मनुष्य को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, दुष्कर्म करने वालों को दुष्टों के साथ समूहित किया जाएगा और उन्हें फिर कभी सूर्य का प्रकाश नसीब नहीं होगा, और धर्मियों को रोशनी प्राप्त करने और सर्वदा रोशनी में रहने के लिए भले लोगों के साथ रखा जाएगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई(1)')। "बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि 'ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है' अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन का सच्चा मार्ग बताता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

फिर बहन ने यह सहभागिता की, "परमेश्वर अंत के दिनों में अपना न्याय हमारी कल्पना के अनुसार नहीं करते, जैसे कि सब घुटने टेककर बैठ जाएं और परमेश्वर एक-एक करके हमारे पापों को प्रकट करें, और फिर निर्णय करें कि हम ऊपर स्वर्ग में जाएँगे या नीचे अग्निकुंड में। यदि परमेश्वर ने इस तरह से मनुष्य का न्याय किया, तो कोई भी राज्य में प्रवेश करने के लायक नहीं होगा। शैतान ने हमें बहुत गहराई से भ्रष्ट करके शैतानी स्वभाव से भर दिया है, इसलिए प्रभु पर आस्था होने के बाद शायद हम कुछ अच्छे कर्म करें, दयालुता से पेश आएँ, सुसमाचार का प्रसार करें और प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करें, लेकिन हमारे अंतर की पापी प्रकृति का अंत नहीं होता। हम पाप करके कबूल करते रहते हैं और प्रभु की शिक्षाओं का पालन नहीं कर सकते। जब प्रभु हमारा मनचाहा काम नहीं करते, तो हम उन्हें दोष देते हैं। हम अपने हितों और प्रतिष्ठा की खातिर झूठ बोलते और धोखा देते हैं। जब हमारे हित प्रभावित होते हैं, तो हम लोगों से घृणा करते हैं और उनसे बदला लेते हैं... बाइबल कहती है : 'उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। क्या हम जैसे पापी लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं? यदि परमेश्वर ने हमारे वर्तमान व्यवहार के आधार पर हमारा न्याय किया और हमें दोषी ठहराया, तो क्या हम सब दण्डित नहीं होंगे और हमें खत्म नहीं कर दिया जाएगा? मानवजाति को सदा के लिए पाप से बचाने के लिए, परमेश्वर ने एक बार फिर मनुष्य के पुत्र के रूप में देह धारण की है और अंत के दिनों में गुप्त रूप से आए हैं। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, जो सत्य को व्यक्त करते हैं और मानव जाति के न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करते हैं। यही प्रकाशित-वाक्य में महान श्वेत सिंहासन का न्याय है। मनुष्य को शुद्ध करने और बचाने के लिए और विजेताओं का समूह तैयार करने के लिए परमेश्वर न्याय का अपना कार्य पहले देहधारी बनकर और सत्य को व्यक्त करके करते हैं। फिर वे महान आपदाएँ लाते हैं, नेक को पुरस्कृत और दुष्टों को दण्डित करते हैं, और इस बुरे बुढ़ापे को नष्ट करते हैं। अंत में, वे सार्वजनिक रूप से प्रकट होते हैं और फिर उनका न्याय का कार्य समाप्त होता है। महान आपदाओं की बारिश महान श्वेत सिंहासन का न्याय शुरू होने पर नहीं होती, बल्कि उसके अंत में होती है। उस समय, परमेश्वर की सुरक्षा के कारण आपदाओं से वही बचेंगे जिनके भ्रष्ट स्वभाव परमेश्वर के गुप्त कार्य के दौरान, उनके वचनों के न्याय द्वारा शुद्ध हो चुके हैं, और वे उन्हें अपने राज्य में ले जाएँगे। गुप्त कार्य के दौरान सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकारने और उनकी निंदा करने वाले, अभूतपूर्व आपदाओं से घिर जाएँगे, रोते-बिलखते और दांत पीसते हुए दण्डित होंगे।"

उनकी सहभागिता से मेरा दिल रोशन हो गया। पता चला कि अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय-कार्य वैसा नहीं है जैसी मैंने कल्पना की थी, जिसमें एक महान श्वेत सिंहासन पर बैठे परमेश्वर एक-एक करके लोगों का न्याय कर रहे थे और उन्हें ऊपर स्वर्ग में या नीचे नरक में भेज रहे थे। परमेश्वर का न्याय कार्य कई चरणों में किया जाता है। पहले, वह मनुष्य की पापी प्रकृति को जड़ से उखाड़ने, उसे शुद्ध करने और बचाने के लिए सत्य को व्यक्त करते हैं, उसे पश्चाताप करने और बदलने का मौका देते हैं। फिर वे नेकी को पुरस्कृत करने और बुराई को दण्डित करने के लिए खुलकर सामने आते हैं। महान श्वेत सिंहासन की जो छवि मेरे मन में थी वह परमेश्वर के न्याय के कार्य का अंतिम दृश्य होगा। यदि अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने के लिए मैंने तब तक इंतज़ार किया, तो बहुत देर हो जाएगी और शायद उद्धार करवाने का मेरा अवसर हाथ से निकल जाए। मुझे एहसास हुआ कि मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को देखना चाहिए। तो मैंने बहन से पूछा, "परमेश्वर अपने वचनों से कैसे लोगों का न्याय करके उन्हें शुद्ध करते हैं?"

उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

उन्होंने यह कहते हुए सहभागिता की, "न्याय और शुद्धिकरण के अपने कार्य को करने के लिए सत्य व्यक्त करते हुए, परमेश्वर चंद वचन नहीं कहते या कुछेक अंश नहीं लिखते। इसके बजाय, वे उन सभी सत्यों को व्यक्त करते हैं जो मानवजाति को शुद्ध करते हैं और उसे बचाते हैं। वे ऐसे सत्य प्रकट करते हैं, जैसे कि शैतान मनुष्य को कैसे भ्रष्ट करता है, परमेश्वर मनुष्य को कैसे बचाते हैं, परमेश्वर किसे आशीर्वाद देते हैं, किसे समाप्त करते हैं, किसे बचाया जा सकता है और कौन राज्य में प्रवेश पा सकता है, वगैरह-वगैरह। वे विशेष रूप से मनुष्य की परमेश्वर- विरोधी शैतानी प्रकृति को उजागर करके उसका विश्लेषण करते हैं, वे हमारे भीतर के शैतानी स्वभाव और विषों को खोलकर बताते हैं। हम परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन और न्याय में, शैतान द्वारा हमारी अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को देख सकते हैं। हमें अपनी पापी, परमेश्वर-विरोधी प्रकृति और उसके मूल कारण का पता चलता है, हम देखते हैं कि अहंकार, छल, बुराई, और सत्य का तिरस्कार जैसे शैतानी स्वभाव ने, हमारे भीतर कितनी गहरी जड़ें जमा ली हैं। उदाहरण के लिए, भले ही हम खुद को प्रभु के लिये खपा सकते हैं, नास्तिकों के उपहास और लांछन को सहन कर सकते हैं, हम प्रभु को नहीं नकारते या जेल भेजे जाने पर भी राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना बंद नहीं करते, पर जब विपत्ति आती है और हमें अपने भविष्य की संभावनाएँ धूमिल दिखाई देती हैं, तब हम शिकायत करते हैं और परमेश्वर को दोष देते हैं, हम अपने किए गए प्रयासों पर पछताते हैं, हम परमेश्वर को नकार कर उसे धोखा भी दे सकते हैं। हम देखते हैं कि हमने सारे प्रयास केवल परमेश्वर की कृपा और आशीष पाने के लिए, मुकुट और पुरस्कार पाने के लिए किए थे। ऐसे प्रयास अशुद्ध होते हैं। हम केवल परमेश्वर के साथ सौदेबाज़ी कर रहे हैं और प्रभु को धोखा दे रहे हैं। तभी हमें पता चलता है कि शैतान ने हमें कितना भ्रष्ट किया हुआ है, हम परमेश्वर का आदर नहीं करते और हममें विवेक या समझ नहीं है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को अनुभव करके, हम परमेश्वर के धार्मिक, प्रतापी स्वभाव को जानना शुरू करते हैं। हम परमेश्वर का आदर करने लगते हैं, वास्तव में खुद से नफ़रत करने लगते हैं, अपने शरीर को त्यागने और सत्य का अभ्यास करने के लिए तैयार हो जाते हैं। हमारी भ्रष्टता शुद्ध होकर खत्म होने लगती है और हम एक सच्चे इंसान की तरह जीवन जीने लगते हैं। जिनका बरसों से परमेश्वर के वचनों द्वारा न्याय किया गया है वे अपने दिल की गहराइयों से जानते हैं कि परमेश्वर का न्याय वास्तव में लोगों को शुद्ध करके उन्हें बदल सकता है, और यह मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम और उद्धार है।"

मैंने उनकी सहभागिता से समझा कि परमेश्वर का न्याय कार्य कितना व्यावहारिक है। परमेश्वर वास्तव में हमारा न्याय करने और हमारी भ्रष्टता और पापों के मूल कारण का खुलासा करने के लिए वचन व्यक्त करते हैं, वे हमें बदलने, शुद्ध होने और बचाए जाने का रास्ता दिखाते हैं। पहले मैं जब भी पाप करती, प्रभु से क्षमा माँग लेती और फिर दोबारा पाप करती थी क्योंकि मैंने अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय को स्वीकार नहीं किया था। आखिरकार, अब मुझे पाप-मुक्त और शुद्ध होने का मार्ग मिल गया है।

उसके बाद मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत सारे वचनों और भाई-बहनों द्वारा लिखी कई गवाहियों को पढ़ा। मुझे विश्वास हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वे लोगों को शुद्ध करके बदल सकते हैं। मैंने मान लिया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आए प्रभु यीशु हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया। पीछे मुड़कर देखने पर मैंने पाया, मैं अपने कल्पनालोक में जी रही थी, महान श्वेत सिंहासन के न्याय के लिए प्रभु के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। मुझे नहीं पता था कि सत्य को व्यक्त करने और परमेश्वर के घर से शुरू होने वाले न्याय का कार्य शुरू करने के लिए परमेश्वर गुप्त रूप में आ चुके हैं। मैं अंत के दिनों के परमेश्वर के उद्धार को चूकने से बाल-बाल बची! मैं परमेश्वर को उनकी दया और उदारता के लिए धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने मुझे अपनी वाणी सुनने की, उनके सिंहासन के समक्ष उन्नत किए जाने की अनुमति दी, मैंने मसीह के सिंहासन के सामने उसके न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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मैं घर आ गया हूँ

लेखक: चू कीन पोंग प्रभु में मेरी आस्था को दस साल से भी अधिक हो गये थे और दो साल मैं कलीसिया में सेवारत था। फिर काम की वजह से विदेश जाने के...

धर्म में रहकर सत्य नहीं मिल सकता

मेक्षीयंग, ताइवान जब मैं बच्ची थी, तो अपने माता-पिता की तरह मैं भी प्रभु में पूरे उत्साह से आस्था रखती थी। मैं कलीसिया की सभी गतिविधियों...

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