परमेश्वर का नाम वाकई रहस्यमयी है
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "प्रत्येक युग में परमेश्वर नया कार्य करता है और उसे एक नए नाम से बुलाया जाता है; वह भिन्न-भिन्न युगों में एक ही कार्य कैसे कर सकता है? वह पुराने से कैसे चिपका रह सकता है? यीशु का नाम छुटकारे के कार्य के वास्ते लिया गया था, तो क्या जब वह अंत के दिनों में लौटेगा, तब भी उसे उसी नाम से बुलाया जाएगा? क्या वह अभी भी छुटकारे का कार्य करेगा? ऐसा क्यों है कि यहोवा और यीशु एक ही हैं, फिर भी उन्हें भिन्न-भिन्न युगों में भिन्न-भिन्न नामों से बुलाया जाता है? क्या यह इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं? क्या केवल एक नाम परमेश्वर का उसकी संपूर्णता में प्रतिनिधित्व कर सकता है? ऐसा होने पर, परमेश्वर को भिन्न युग में भिन्न नाम से ही बुलाया जाना चाहिए, और उसे युग को परिवर्तित करने और युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस नाम का उपयोग करना चाहिए। क्योंकि कोई भी एक नाम पूरी तरह से स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, और प्रत्येक नाम केवल एक दिए गए युग में परमेश्वर के स्वभाव के उस समय से संबंधित पहलू का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है; उसे केवल उसके कार्य का प्रतिनिधित्व ही करना है। इसलिए, समस्त युग का प्रतिनिधित्व करने के लिए परमेश्वर ऐसे किसी भी नाम को चुन सकता है, जो उसके स्वभाव के अनुकूल हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि किसी युग में उसके अपनाए हुए हर नाम का एक मतलब है। हर नाम एक युग को, कार्य के एक चरण को दर्शाता है। परमेश्वर के नाम उसके कार्य की ज़रूरतों के मुताबिक बदलते रहते हैं, लेकिन चाहे उसके नाम किसी भी तरह बदलें, उसका स्वभाव और सार कभी नहीं बदलते। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर होता है। मैं बाइबल के पदों के शाब्दिक अर्थों से चिपका रहता था। अपनी अवधारणाओं में फँसा हुआ, मैं सोचता था कि प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं बदल सकता। फिर मैंने एक फ़िल्म देखी और परमेश्वर के नामों के रहस्यों को जाना, मेमने के नक्शेकदमों पर चलने की अपनी धारणाओं को छोड़ दिया।
मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ था, और बचपन से मेरे परिवार ने मुझे बताया था कि प्रभु यीशु ही सच्चा परमेश्वर है, वह हमारा उद्धारक है, उसके नाम पर प्रार्थना करके ही मैं स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ। जब मैं बड़ा हुआ, तो मैं डिविनिटी स्कूल गया, और हमारे पादरी हमसे अक्सर कहते थे, "यीशु मसीह हमारा उद्धारक है। उसका नाम कभी नहीं बदलेगा। क्योंकि बाइबल में लिखा है 'यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है' (इब्रानियों 13:8)। इसलिए हमें हर वक़्त प्रभु यीशु के नाम को कायम रखना होगा और उसके आने पर यकीनन हमें स्वर्गारोहित किया जाएगा।" इन शब्दों ने प्रभु में मेरी आस्था को और भी मज़बूत बनाया और मैंने पूरे उत्साह से खुद को खपाया ताकि जब प्रभु आए, तो मुझे अपने राज्य में ले जाए।
अप्रैल 2015 में डिविनिटी स्कूल से स्नातक करने के बाद मैंने स्थानीय विश्वासियों को मार्ग दिखाना शुरू कर दिया। लेकिन सेवाओं में बेहद कम लोग आते थे, कलीसिया के प्रबंधक ने देखा कि चढ़ावा कम होता जा रहा है और उससे खर्चे तक नहीं निकल पा रहे, इसलिए उन्होंने विश्वासियों को कर्ज़ देना शुरू कर दिया। जब वे ब्याज समेत पैसे नहीं चुका पाते थे, तो वित्तीय अधिकारी उनसे झगड़ा करते थे फिर तो वे सेवाओं में बिल्कुल शामिल नहीं होना चाहते थे।
कलीसिया में नई जान डालने की कोशिश में, मैंने सुसमाचार को स्थानीय लोगों तक पहुँचाना शुरू कर दिया। मैंने विश्वासियों के घरों का दौरा किया और उनके लिए सभाएँ रखी। साथ ही, मैं हफ़्ते में दो या तीन बार व्रत रखता और प्रार्थना करता, प्रभु से मेरे काम को बढ़ाने में मेरा मार्गदर्शन करने के लिए कहता। लेकिन मेरी सारी मेहनत के बावजूद, कलीसिया में अभी भी कम लोग आते थे। कलीसिया को ऐसी सूनी हालत में देखकर मेरा दिल कमज़ोर हो गया और मेरी आस्था कम होती चली गई। फिर मैंने प्रार्थना करने, धर्मग्रंथ पढ़ने, और व्रत रखने में अपनी मेहनत दोगुनी कर दी। साथ ही, मैंने कुछ धार्मिक फ़िल्में डाउनलोड करके देखी, लेकिन फिर भी मैं पवित्र आत्मा के कार्य को महसूस नहीं कर सका। मैं तब भी आध्यात्मिक रूप से खाली और अँधेरे में डूबा हुआ महसूस करता था। दुख के मारे, मैंने प्रभु को पुकारा: "हे प्रभु! बाइबल में लिखा है कि अगर हम तुम्हारे नाम पर माँगेंगे, तो तुम हमें ज़रूर दोगे। कलीसिया दिन-ब-दिन सूनी होती जा रही है। मैं तुम्हारे नाम पर प्रार्थना करता आया हूँ, फिर भी मैं तुम्हारी मौजूदगी को महसूस क्यों नहीं कर पा रहा हूँ? प्रभु, तुम कहाँ हो?" शुक्र है, परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली।
फ़रवरी 2016 में, एक दिन मुझे यूट्यूब पर 'बाइबल के बारे में रहस्य का खुलासा' नाम की एक फ़िल्म मिली। उसमें बहुत अच्छे से बाइबल के रहस्य के बारे में समझाया गया था। उसे देखकर मैं बाइबल को एक नए सिरे से समझ पाया और मेरा दिल खुशी से भर गया। लेकिन मुझे इस बात की हैरानी हुई कि वे वचन कहाँ से आए थे। वे बाइबल में नहीं थे! बाद में मैंने वह वीडियो डाउनलोड करके कई बार और देखी, मैंने उसे जितना ज़्यादा देखा, मुझे वह उतनी ज़्यादा अच्छी लगी। संगति पूरी तरह बाइबल के मुताबिक थी। मुझे पता चला कि उसे चमकती पूर्वी बिजली ने बनाया था, इसलिए मैं चमकती पूर्वी बिजली की फ़िल्में ढूँढता रहा और मुझे 'परमेश्वर का नाम बदल गया है?!' नाम की फ़िल्म मिली। उस शीर्षक ने मुझे बहुत आकर्षित किया, मैंने उसी वक़्त उसे डाउनलोड किया और देखा। तकरीबन आधी फ़िल्म के बाद उसमें कहा गया कि जब अंत के दिनों में परमेश्वर आएगा, तो उसका नाम यीशु नहीं होगा बल्कि कुछ और होगा। वह मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था। मैंने सोचा, "यह सच नहीं हो सकता! बाइबल में एकदम साफ़ लिखा है 'यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है' (इब्रानियों 13:8)। परमेश्वर का नाम कैसे बदल सकता है? पिछले दो हजार सालों से हर विश्वासी प्रभु यीशु के नाम पर प्रार्थना और काम कर रहा है। यह कभी नहीं बदला। चमकती पूर्वी बिजली कैसे कह सकती है कि परमेश्वर का नाम बदल गया है?"
फिर मैंने फ़िल्म में बहन यांग की यह संगति सुनी : "बाइबल में लिखा है 'यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है।' इसका मतलब है कि परमेश्वर का स्वभाव और उसका सार शाश्वत है और यह बदलता नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि उसका नाम कभी नहीं बदलेगा।" उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश भी पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "ऐसे लोग हैं, जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तशील है। यह सही है, किंतु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह तथ्य कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तनशील है, तो क्या वह अपनी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना पूरी करने में सक्षम होगा? तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा अपरिवर्तशील है, किंतु क्या तुम यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता? यदि परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तनशील है, तो क्या वह मानवजाति की आज के दिन तक अगुआई कर सकता था? यदि परमेश्वर अपरिवर्तशील है, तो ऐसा क्यों है कि उसने पहले ही दो युगों का कार्य कर लिया है? ... और इसलिए, 'परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता' वचन उसके कार्य को संदर्भित करते हैं, और 'परमेश्वर अपरिवर्तशील है' उसे संदर्भित करते हैं, जो परमेश्वर का अंतर्निहित स्वरूप है। इसके बावज़ूद, तुम छह-हज़ार-वर्ष के कार्य को एक बिंदु पर आधारित नहीं कर सकते, या उसे केवल मृत शब्दों के साथ सीमित नहीं कर सकते। मनुष्य की मूर्खता ऐसी ही है। परमेश्वर इतना सरल नहीं है, जितना मनुष्य कल्पना करता है, और उसका कार्य किसी एक युग में रुका नहीं रह सकता। उदाहरण के लिए, यहोवा हमेशा परमेश्वर का नाम नहीं हो सकता; परमेश्वर यीशु के नाम से भी अपना कार्य कर सकता है। यह इस बात का संकेत है कि परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे की ओर प्रगति कर रहा है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। फिर बहन यांग ने कहा : "मानव जाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य के दौरान, वह अलग-अलग तरह के कार्य करता है और अलग-अलग युगों में अलग-अलग नाम अपनाता है। लेकिन परमेश्वर का सार कभी नहीं बदलता। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा। इसका मतलब है, इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का नाम यहोवा है या यीशु, उसका सार वही रहता है। हमेशा एक ही परमेश्वर कार्य कर रहा होता है। यहूदी फरीसी नहीं जानते थे कि अलग-अलग युग में परमेश्वर का कार्य बदलने के साथ-साथ उसका नाम भी बदल जाएगा। उन्होंने सोचा कि उनका परमेश्वर, उनका उद्धारक सिर्फ़ यहोवा है। कई पीढ़ियों तक वे यही मानते रहे कि 'केवल यहोवा ही परमेश्वर है; यहोवा ही एकमात्र उद्धारक है।' इसलिए जब परमेश्वर ने यीशु के नाम पर अपना छुटकारे का कार्य किया, तो उन्होंने पागलों की तरह उसकी निंदा करके उसका विरोध किया और आख़िरकार उसे क्रूस पर चढ़ा दिया। उन्होंने एक घिनौना गुनाह किया था और परमेश्वर ने उन्हें दण्ड दिया। कोई भी परमेश्वर की बुद्धि की थाह नहीं पा सकता है, और कोई भी परमेश्वर को सीमाओं में नहीं बांध सकता। अंत के दिनों में, अगर हम परमेश्वर के सार को या एकमात्र परमेश्वर के किए गए कार्य को इसलिए नकारते हैं क्योंकि उसने अपना कार्य और नाम बदल लिया है, तो यह बेतुकी और नासमझी वाली बात है! हर युग में परमेश्वर के अपनाए हुए नाम का एक मतलब होता है और वह मनुष्य का बहुत उद्धार करता है।"
फ़िल्म के इस बिंदु पर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर का नाम बदल सकता है, और बाइबल में लिखे "यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एक–सा है" का मतलब परमेश्वर के कभी ना बदलने वाले सार और स्वभाव से है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर का नाम और कार्य कभी नहीं बदलेंगे। परमेश्वर के नाम उसके कार्य की ज़रूरतों के मुताबिक बदलते रहते हैं। मैं चीज़ों को बाइबल के सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ से समझता आ रहा था, और सोचता था कि परमेश्वर का नाम कभी नहीं बदलेगा—मैंने देखा कि वह मेरी कोरी कल्पना थी! फरीसियों ने ज़ोर दिया कि उनका परमेश्वर यहोवा है और यहोवा नाम कभी नहीं बदलेगा। इसलिए जब प्रभु यीशु कार्य करने आया, तो उनका मानना था कि जिसका नाम मसीहा नहीं है वह परमेश्वर नहीं है। उन्होंने बेरहमी से प्रभु यीशु का विरोध करके उसकी निंदा की, और आख़िर में उसके उद्धार से वंचित रह गए। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने नज़रिए को एक तरफ़ रखकर फ़िल्म की संगति को ध्यान से सुनना होगा ताकि मैं फरीसियों की तरह अपनी कल्पनाओं की वजह से प्रभु का विरोध ना करूँ।
फिर मुख्य किरदार ने एक और सवाल उठाया: "तो फिर हर युग में परमेश्वर के नाम का क्या मतलब है?" मैंने सोचा, "यह एक बढ़िया सवाल है, और यह मुझे भी नहीं पता। उन्होंने सिर्फ़ यह संगति साझा की थी कि हर युग के लिए परमेश्वर के नाम का एक मतलब है और यह मानव जाति का उद्धार करता है, तो परमेश्वर के नामों का मतलब आख़िर क्या है?" ईसाई धर्म के प्रचारकों में से एक, बहन फ़ेंग ने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। "'यहोवा' वह नाम है, जिसे मैंने इस्राएल में अपने कार्य के दौरान अपनाया था, और इसका अर्थ है इस्राएलियों (परमेश्वर के चुने हुए लोगों) का परमेश्वर, जो मनुष्य पर दया कर सकता है, मनुष्य को शाप दे सकता है, और मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन कर सकता है; वह परमेश्वर, जिसके पास बड़ा सामर्थ्य है और जो बुद्धि से भरपूर है। 'यीशु' इम्मानुएल है, जिसका अर्थ है वह पाप-बलि, जो प्रेम से परिपूर्ण है, करुणा से भरपूर है, और मनुष्य को छुटकारा दिलाता है। उसने अनुग्रह के युग का कार्य किया, और वह अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और वह प्रबंधन-योजना के केवल एक भाग का ही प्रतिनिधित्व कर सकता है। ... यीशु का नाम अनुग्रह के युग के लोगों को पुनर्जन्म दिए जाने और बचाए जाने के लिए अस्तित्व में आया, और वह पूरी मानवजाति के उद्धार के लिए एक विशेष नाम है। इस प्रकार, 'यीशु' नाम छुटकारे के कार्य को दर्शाता है और अनुग्रह के युग का द्योतक है। 'यहोवा' नाम इस्राएल के उन लोगों के लिए एक विशेष नाम है, जो व्यवस्था के अधीन जीए थे। प्रत्येक युग में और कार्य के प्रत्येक चरण में मेरा नाम आधारहीन नहीं है, बल्कि प्रातिनिधिक महत्व रखता है : प्रत्येक नाम एक युग का प्रतिनिधित्व करता है। 'यहोवा' व्यवस्था के युग का प्रतिनिधित्व करता है, और उस परमेश्वर के लिए सम्मानसूचक है, जिसकी आराधना इस्राएल के लोगों द्वारा की जाती है। 'यीशु' अनुग्रह के युग का प्रतिनिधित्व करता है और उन सबके परमेश्वर का नाम है, जिन्हें अनुग्रह के युग के दौरान छुटकारा दिया गया था। यदि मनुष्य अब भी अंत के दिनों के दौरान उद्धारकर्ता यीशु के आगमन की अभिलाषा करता है, और उसके अब भी उसी छवि में आने की अपेक्षा करता है जो उसने यहूदिया में अपनाई थी, तो छह हज़ार सालों की संपूर्ण प्रबंधन-योजना छुटकारे के युग में रुक गई होती, और आगे प्रगति न कर पाती। इतना ही नहीं, अंत के दिनों का आगमन कभी न होता, और युग का समापन कभी न किया जा सकता। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उद्धारकर्ता यीशु सिर्फ मानवजाति के छुटकारे और उद्धार के लिए है। 'यीशु' नाम मैंने अनुग्रह के युग के सभी पापियों की खातिर अपनाया था, और यह वह नाम नहीं है जिसके द्वारा मैं पूरी मानवजाति को समापन पर ले जाऊँगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "उद्धारकर्ता पहले ही एक 'सफेद बादल' पर सवार होकर वापस आ चुका है")।
फिर बहन फ़ेंग ने संगति करते हुए कहा, "व्यवस्था के युग में, परमेश्वर का नाम यहोवा था। वह उसके प्रतापी स्वभावों, क्रोध, शाप और दया को दर्शाता था जो उसने उस युग के लोगों पर व्यक्त किया था। परमेश्वर ने अपना कार्य व्यवस्था के युग में यहोवा नाम से शुरू किया था। उसने नियम बनाए और आज्ञाएँ जारी कीं और पृथ्वी पर मानव जाति के जीवन को राह दिखाई। उसने उनसे सख्ती से नियम का पालन करने और उसकी आराधना और स्तुति करने को कहा। नियम का पालन करने वालों पर परमेश्वर की कृपा और अनुग्रह होता, जबकि नियम तोड़ने वालों को पत्थर फेंक-फेंककर मार दिया जाता या स्वर्गिक आग से जला दिया जाता। इसलिए व्यवस्था के तहत आने वाले इस्राएलियों ने उसे पूरी तरह कायम रखा और यहोवा के नाम को पवित्र माना, और हज़ारों सालों तक यहोवा की दिखाई राह पर चलते रहे। व्यवस्था के युग के अंत तक, लोग अधिक से अधिक भ्रष्ट और पापी बन चुके थे और नियम का पालन नहीं कर पा रहे थे। हर किसी पर नियम तोड़ने के लिए दण्ड पाने का खतरा लगातार मंडरा रहा था। इसलिए परमेश्वर ने यीशु के नाम से छुटकारे के कार्य का चरण शुरू किया। उसने व्यवस्था का युग खत्म करके अनुग्रह का युग शुरू किया। अनुग्रह के युग में, यीशु ने प्रेम और दया का स्वभाव व्यक्त किया। उसने मनुष्य पर असीम अनुग्रह बरसाया, आख़िर में मनुष्य को शैतान से छुटकारा दिलाने के लिए उसे क्रूस पर चढ़ा दिया गया। उसके बाद, मनुष्य ने यीशु के नाम पर प्रार्थना करना, यीशु के नाम को पवित्र मानकर आराधना करना, और परमेश्वर से क्षमा और असीम अनुग्रह पाना शुरू कर दिया। परमेश्वर के कार्यों के पिछले दो चरणों से हम देख सकते हैं कि हर युग में परमेश्वर के अपनाए हुए नाम का ख़ास मतलब है। वे उस युग में परमेश्वर के कार्य और उसके व्यक्त किए हुए स्वभाव को दिखाते हैं। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर के आने पर अगर उसे यीशु के बजाय यहोवा कहा जाता, तो परमेश्वर का कार्य व्यवस्था के युग के साथ ही रूक जाता। भ्रष्ट मानव जाति को कभी भी परमेश्वर के हाथों छुटकारा नहीं मिलता, बल्कि नियम का उल्लंघन करने के लिए उसकी निंदा की जाती और उसे दण्ड मिलता। उसी तरह, अगर अंत के दिनों में प्रभु का नाम यीशु ही रहता, तो भ्रष्ट मानव जाति को सिर्फ़ अपने पापों के लिए माफ़ी मिलती। इंसान कभी शुद्ध होकर परमेश्वर के राज्य में नहीं जा पाता। ऐसा इसलिए क्योंकि मानव जाति के पापों को प्रभु यीशु के हाथों छुटकारे के ज़रिए माफ़ कर दिया गया है, लेकिन उसकी पापी प्रकृति वैसी ही है। लोग लगातार पाप करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं उन्हें परमेश्वर ने पूरी तरह प्राप्त नहीं किया है। इसलिए अंत के दिनों में परमेश्वर दोबारा देह धारण करता है और नए चरण का कार्य करके प्रभु यीशु के कार्य की बुनियाद पर मानव जाति का न्याय करता है और उसे स्वच्छ बनाता है—ताकि मनुष्य को पापों से पूरी तरह बचाया जा सके। उसने राज्य का युग शुरू करके अनुग्रह का युग खत्म कर दिया है। परमेश्वर का कार्य आगे बढ़ गया है और युग बदल गया है। अब उसका कार्य अलग है। उसका नाम भी उसी हिसाब से बदल गया है।"
तब मैंने सोचा, "तो जब परमेश्वर हर युग में नया नाम अपनाता है, उसके पीछे कोई मतलब होता है। हर नाम एक युग को दर्शाता है। व्यवस्था के युग में परमेश्वर का अपनाया हुआ नाम, यहोवा, परमेश्वर के प्रतापी स्वभावों, क्रोध, शाप और दया को दर्शाता है। अनुग्रह के युग में उसका अपनाया हुआ नाम, यीशु, उसकी दयालुता और प्रेमपूर्ण स्वभावों को दर्शाता है। अंत के दिनों में, परमेश्वर शुद्धिकरण और मानव जाति के पूर्ण उद्धार का कार्य करने आता है। जब परमेश्वर का कार्य बदलता है, तो उसका नाम भी बदल जाता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि परमेश्वर के नामों में इतने सारे रहस्य छुपे हैं।" मेरी दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी, इसलिए मैंने वीडियो देखना जारी रखा।
उसके बाद, बहन फ़ेंग ने संगति करते हुए कहा कि अंत के दिनों में परमेश्वर का नाम सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और प्रकाशित-वाक्य 1:8 का संदर्भ दिया: "प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्तिमान है, यह कहता है, 'मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ।'" साथ ही, प्रकाशित-वाक्य 11:16-17 कहता है: "तब चौबीसों प्राचीन जो परमेश्वर के सामने अपने अपने सिंहासन पर बैठे थे, मुँह के बल गिरकर परमेश्वर को दण्डवत् करके यह कहने लगे, 'हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था, हम तेरा धन्यवाद करते हैं कि तू ने अपनी बड़ी सामर्थ्य को काम में लाकर राज्य किया है।'" प्रकाशित-वाक्य में और भी कई भविष्यवाणियाँ हैं जैसे कि 4:8, 16:7, और 19:6 जो कहती हैं कि अंत के दिनों में परमेश्वर का नया नाम "सर्वशक्तिमान" होगा, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी है।
मैंने पक्का करने के लिए इसे सुनते हुए अपनी बाइबल के पन्ने पलटे, और पता चला, उन सभी में "सर्वशक्तिमान" नाम है। हैरान होकर मैंने सोचा, "तो अंत के दिनों में परमेश्वर का नाम बाइबल में बहुत पहले से साफ़-साफ़ लिखा हुआ था, और प्रकाशित वाक्य में, चार जीवित प्राणी रात-दिन परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहते रहते थे, 'पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु परमेश्वर, सर्वशक्तिमान, जो था और जो है और जो आनेवाला है' (प्रकाशितवाक्य 4:8)। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की स्तुति कर रहे थे! 'सर्वशक्तिमान' नाम का ज़िक्र और भी कई जगहों पर है। अंत के दिनों में 'सर्वशक्तिमान परमेश्वर' नाम प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणियों से बिल्कुल मेल खाता है! मैं इतने साल से प्रभु में विश्वास करता रहा हूँ और बाइबल को इतना अधिक पढ़ा है—इन सब रहस्यों पर मेरा ध्यान कैसे नहीं गया?"
मैंने देखना जारी रखा और सुसमाचार फैलाने वाले एक किरदार को यह कहते हुए देखा: "परमेश्वर एक बुद्धिमान परमेश्वर है, और उसके किए हुए हर एक काम का बहुत महत्व होता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर नाम अंत के दिनों में उसके कार्य और उसके व्यक्त किए हुए स्वभाव को पूरी तरह दर्शाता है। जब तक परमेश्वर खुद हमारे सामने ये रहस्य उजागर नहीं करता, तब तक हम इन्हें समझ नहीं सकते, चाहे हमने कितने भी साल बाइबल पढ़ी हो।" फिर उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "उद्धारकर्ता पहले ही एक 'सफेद बादल' पर सवार होकर वापस आ चुका है")।
फिर उसने संगति करते हुए कहा, "अंत के दिनों में, परमेश्वर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से राज्य के युग का अपना न्याय का कार्य करता है। वह पाप करने और परमेश्वर का विरोध करने की मनुष्य की शैतानी प्रकृति को उजागर करने के लिए, और हमारी अवज्ञा और अधार्मिकता का न्याय करने के लिए सत्य को अभिव्यक्त करता है ताकि इन वचनों के ज़रिए हम अपनी प्रकृति और अपने सार को जान सकें, यह देख सकें कि शैतान ने हमें कितना अंदर तक भ्रष्ट कर दिया है, हम अपने भ्रष्टाचार की मूल वजह को समझ सकें, और परमेश्वर के स्वभाव को जान सकें जो धार्मिक है और जिसका अपमान नहीं किया जा सकता। वह हमारे स्वभावों को बदलने का तरीका भी बताता है ताकि हम बुराई को छोड़ सकें, सत्य की राह पर चल सकें, अपने स्वभावों को बदल सकें, और परमेश्वर हमें बचा सके। परमेश्वर मानव जाति का न्याय और शुद्धिकरण करने, हमें हमारी किस्म के आधार पर बाँटने, अच्छे लोगों को इनाम देने और बुरे लोगों को दण्ड देने, भ्रष्ट मानव जाति को पाप से पूरी तरह बचाने और परमेश्वर की 6,000 साल की प्रबंधन योजना को पूरा करने आया है। अंत के दिनों में परमेश्वर अपने धार्मिक, प्रतापी, क्रोधी स्वभाव के साथ आया है जो अपमान को बर्दाश्त नहीं करेगा। उसने खुलकर दिखा दिया है कि उसका अंतर्निहित स्वभाव क्या है, और उसके पास क्या है और सभी के लिए वह क्या है। वह मानव जाति की सारी भ्रष्टता और अधार्मिकता का न्याय करने और ताड़ना देने, हमें पाप से पूरी तरह बचाने और मनुष्य को वापस मूल स्वरूप में लाने के लिए आया है। वह चाहता है सब देखें कि उसने न सिर्फ़ सभी चीज़ें बनाई हैं, बल्कि वह सभी चीज़ों पर राज भी करता है। वह सिर्फ़ मानव जाति की पाप-बलि नहीं था, बल्कि वह हमें पूर्ण करने, बदलने, और शुद्ध बनाने में भी सक्षम है। वही पहला है, और वही आख़िरी भी है। कोई भी उसकी चमत्कारी शक्ति या उसके कर्मों की थाह नहीं पा सकता। इसलिए अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर नाम ही सबसे सही है। उसके नाम से प्रार्थना करने वाला और उसके वचनों को पढ़ने वाला कोई भी इंसान पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और कार्य पा सकता है, और ज़िंदगी भर के लिए परमेश्वर के भरपूर पोषण और सिंचन का आनंद पा सकता है। धार्मिक दुनिया अब सूनी होने की कगार पर है। लोगों की आस्था कम हो रही है, वे कमज़ोर हैं और धर्मनिरपेक्ष चीज़ों की चाह रखते हैं, उपदेशकों के पास कुछ नहीं बचा, और लोग प्रार्थना करने नहीं आते। ऊपर से, ज़्यादा से ज़्यादा लोग दुनिया की मोह-माया में फँसते जा रहे हैं। वे मेमने के साथ-साथ नहीं चले और जीवन के जल का पोषण नहीं पा सकते। वे अंधकार में चले गए और राह से भटक गए।"
यह देखना मेरे लिए बहुत रोमांचक था—सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने वचन वाकई बहुत अधिकार से कहे हैं, ख़ासकर यह: "ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे।" ये वचन परमेश्वर के प्रताप और उसकी धार्मिकता से भरे हैं। परमेश्वर के अलावा कोई भी इतनी भरी-पूरी बात अधिकार और प्रताप के साथ नहीं कह सकता। मुझे पता था यह परमेश्वर की वाणी है, कि प्रभु यीशु सच में लौट आया है! मैंने बहुत जी-जान से सेवा की थी और घरों के दौरे किए थे ताकि विश्वासी प्रभु की बात सुनें और सेवाओं में आएँ। मैंने हफ़्ते में दो या तीन बार व्रत भी रखे और प्रार्थना भी की, लेकिन कलीसिया में कोई सुधार नहीं हुआ। मेरी खुद की आस्था भी कम होने लगी थी और मैं प्रभु को अपने साथ महसूस नहीं कर पा रहा था। अब मुझे पता है सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से परमेश्वर मानव जाति का न्याय और शुद्धिकरण करने के लिए एक नए चरण पर कार्य कर रहा है। प्रभु के हम विश्वासी लोग परमेश्वर के नए कार्य से अनजान थे। हमें परमेश्वर के मौजूदा वचनों का पोषण या पवित्रात्मा का मार्गदर्शन नहीं मिला था। हम अंधकार में चले गए थे। सिर्फ़ अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को अपनाकर उसके नाम पर प्रार्थना करके और उसके वचनों को पढ़कर ही हम पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और कार्य पा सकते हैं।
फ़िल्म के आख़िर में उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा। "यहोवा के कार्य से लेकर यीशु के कार्य तक, और यीशु के कार्य से लेकर इस वर्तमान चरण तक, ये तीन चरण परमेश्वर के प्रबंधन के पूर्ण विस्तार को एक सतत सूत्र में पिरोते हैं, और वे सब एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। दुनिया के सृजन से परमेश्वर हमेशा मानवजाति का प्रबंधन करता आ रहा है। वही आरंभ और अंत है, वही प्रथम और अंतिम है, और वही एक है जो युग का आरंभ करता है और वही एक है जो युग का अंत करता है। विभिन्न युगों और विभिन्न स्थानों में कार्य के तीन चरण अचूक रूप में एक ही पवित्रात्मा का कार्य हैं। इन तीन चरणों को पृथक करने वाले सभी लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हैं। अब तुम्हारे लिए यह समझना उचित है कि प्रथम चरण से लेकर आज तक का समस्त कार्य एक ही परमेश्वर का कार्य है, एक ही पवित्रात्मा का कार्य है। इस बारे में कोई संदेह नहीं हो सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। तब मुझे और ज़्यादा समझ आया कि यहोवा, यीशु, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर सभी एक ही परमेश्वर हैं। हर युग में परमेश्वर का नाम अलग है, और वह अलग कार्य करता है, लेकिन वह हमेशा लोगों की ज़रूरतों के मुताबिक कार्य करता है। सिर्फ़ परमेश्वर ही इन रहस्यों को सामने ला सकता है और मुझे पूरा यकीन था कि प्रभु यीशु सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में लौटकर आया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम को अपनाने का मतलब प्रभु यीशु को धोखा देना नहीं है, बल्कि इसका मतलब मेमने के नक्शेकदमों पर चलते रहना है। जैसा कि प्रकाशित-वाक्य में कहा गया है, "ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं" (प्रकाशितवाक्य 14:4)।
मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों से मिला। उनके साथ इकट्ठे होकर और संगति करके, मैंने कुछ सत्यों को समझा, और मेरी आस्था में जो बहुत-सी उलझनें थीं वे सुलझ गईं। मुझे बहुत सारा आध्यात्मिक पोषण मिला है। मुझे वाकई लगता है कि मुझे सिंहासन के सामने ले जाया गया है और मैं मेमने की दावत में शामिल हुआ हूँ। मैं दिल से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?