परमेश्वर की परीक्षाओं के बारे में आशंकाएँ मत रखो

30 मई, 2020

अय्यूब की परीक्षाएँ समाप्त होने पर उसकी गवाही मिलने के बाद, परमेश्वर ने संकल्प लिया कि वह अय्यूब के समान लोगों का एक समूह—या एक से अधिक समूह—प्राप्त करेगा, इसके अतिरिक्त उसने संकल्प लिया कि वह शैतान को फिर कभी, परमेश्वर से होड़ करते हुए, उन्हीं साधनों का उपयोग करके जिनके द्वारा उसने अय्यूब को लुभाया था, उस पर आक्रमण और उसके साथ दुर्व्यवहार किया था, किसी अन्य व्यक्ति पर आक्रमण या उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करने देगा; परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी मनुष्य के साथ, जो कमज़ोर, मूर्ख और अज्ञानी है, ऐसी चीज़ें नहीं करने दीं—बस इतना काफ़ी था कि शैतान ने अय्यूब को लुभाया था! शैतान को लोगों के साथ चाहे जैसा मनचाहा दुर्व्यवहार नहीं करने देना यह परमेश्वर की अनुकंपा है। परमेश्वर के लिए, इतना काफ़ी था कि अय्यूब ने शैतान के प्रलोभन और दुर्व्यवहार झेले थे। परमेश्वर ने शैतान को फिर कभी ऐसी चीज़ें करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं उनका जीवन और सब कुछ परमेश्वर द्वारा शासित और आयोजित किया जाता है, और शैतान परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इच्छानुसार बहकाने का अधिकारी नहीं है—तुम लोगों को यह बात स्पष्ट होनी चाहिए! परमेश्वर मनुष्य की कमज़ोरी का ध्यान रखता है, और उसकी मूर्खता तथा अज्ञान को समझता है। यद्यपि, इसलिए कि मनुष्य को पूरी तरह बचाया जा सके, परमेश्वर को उसे शैतान के हाथों में सौंपना पड़ता है, परंतु परमेश्वर मनुष्य को कभी शैतान द्वारा मूर्ख मानकर छले जाते और प्रताड़ित होते देखने का इच्छुक नहीं है, और वह मनुष्य को हमेशा कष्ट भुगतते देखना नहीं चाहता है। मनुष्य परमेश्वर द्वारा सृजित किया गया था, और यह पूरी तरह न्यायोचित है कि परमेश्वर मनुष्य से संबंधित सब कुछ शासित और व्यवस्थित करे; यह परमेश्वर का उत्तरदायित्व है, और यह वह अधिकार है जिसके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है! परमेश्वर शैतान को मनुष्य के साथ मनमाने ढंग से दुर्व्यवहार और बुरा बर्ताव नहीं करने देता है, वह मनुष्य को भटकाने के लिए शैतान को नानाविध साधनों का प्रयोग नहीं करने देता है, और इससे भी बढ़कर, वह मनुष्य पर परमेश्वर की संप्रभुता में शैतान को हस्तक्षेप नहीं करने देता है, न ही वह शैतान को उन विधि-विधानों को कुचलने और नष्ट करने देता है जिनके द्वारा परमेश्वर सभी चीज़ों पर शासन करता है, मनुष्यजाति का प्रबंधन करने और बचाने के परमेश्वर के महान कार्य की तो बात ही छोड़ दें! वे जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, और वे जो परमेश्वर की गवाही देने में समर्थ हैं, परमेश्वर की छह हज़ार वर्षीय प्रबंधन योजना का मर्म और साकार रूप हैं, साथ ही उसके छह हज़ार वर्षों के कार्य के उसके प्रयासों इनाम है। परमेश्वर इन लोगों को यूँ ही शैतान को कैसे दे सकता है?

लोग परमेश्वर के परीक्षणों को लेकर प्रायः चिंतित और भयभीत रहते हैं, तो भी वे हर समय शैतान के फंदे में रह रहे होते हैं, और ख़तरों से भरे क्षेत्र में रह रहे होते हैं जिसमें उन पर शैतान द्वारा आक्रमण और दुर्व्यवहार किया जाता है—मगर वे नहीं जानते भय क्या है, और अविचलित रहते हैं। चल क्या रहा है? परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास केवल उन चीज़ों तक ही सीमित है जिन्हें वह देख सकता है। उसमें मनुष्य के लिए परमेश्वर के प्रेम और सरोकार की, या मनुष्य के प्रति उसकी सहृदयता और सोच-विचार की रत्ती भर भी सराहना नहीं है। यदि परमेश्वर की परीक्षाओं, न्याय और ताड़ना, तथा प्रताप और कोप के प्रति थोड़ी-सी घबराहट और डर को छोड़ दें, तो मनुष्य को परमेश्वर के अच्छे अभिप्रायों की रत्ती भर भी समझ नहीं है। परीक्षाओं का उल्लेख होने पर, लोगों को लगता है मानो परमेश्वर के छिपे हुए इरादे हैं, और कुछ तो यह तक मानते हैं कि परमेश्वर बुरे षडयंत्रों को प्रश्रय देता है, इस बात से अनभिज्ञ कि परमेश्वर वास्तव में उनके साथ क्या करेगा; इस प्रकार, परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता के बारे में चीखने-चिल्लाने के साथ-साथ, वे मनुष्य के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता और मनुष्य के लिए उसकी व्यवस्थाओं को रोकने और उनका विरोध करने के लिए जो कुछ कर सकते हैं सब करते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि यदि वे सावधान नहीं रहे तो उन्हें परमेश्वर द्वारा गुमराह कर दिया जाएगा, कि यदि वे अपने भाग्य पर पकड़ नहीं बनाए रखते हैं तो जो कुछ उनके पास है वह सब परमेश्वर द्वारा ले लिया जा सकता है, और यहाँ तक कि उनका जीवन भी समाप्त किया जा सकता है। मनुष्य शैतान के खेमे में है, परंतु वह शैतान द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने की कभी चिंता नहीं करता है, और उसके साथ शैतान द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है परंतु वह शैतान द्वारा बंधक बनाए जाने से भी कभी नहीं डरता है। वह कहता रहता है कि वह परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करता है, मगर उसने परमेश्वर में कभी भरोसा नहीं किया है या विश्वास नहीं किया है कि परमेश्वर सचमुच मनुष्य को शैतान के पंजों से बचाएगा। यदि, अय्यूब के समान, मनुष्य परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर पाता है, और अपना संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर के हाथों में सौंप सकता है, तो क्या मनुष्य का अंत अय्यूब के समान ही नहीं होगा—परमेश्वर के आशीषों की प्राप्ति? यदि मनुष्य परमेश्वर का शासन स्वीकार और उसके प्रति समर्पण कर पाता है, तो इसमें खोने के लिए क्या है? इस प्रकार, मैं सुझाव देता हूँ कि तुम लोग अपने कार्यकलापों में सावधान रहो, और उस सब के प्रति चौकन्ने रहो जो तुम लोगों पर आने ही वाला है। तुम लोग उतावले या आवेगी न बनो, और परमेश्वर तथा लोगों, विषयों, और वस्तुओं के साथ, जिनकी उसने तुम लोगों के लिए व्यवस्था की है, अपने गर्म खून या अपनी स्वाभाविकता पर निर्भर करते हुए, या अपनी कल्पनाओं और अवधारणाओं के अनुसार व्यवहार मत करो; परमेश्वर के कोप को भड़काने से बचने के लिए, तुम लोगों को अपने कार्यकलापों में सचेत होना ही चाहिए, और अधिक प्रार्थना तथा खोज करनी चाहिए। यह याद रखो!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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