864 वह बड़ी पीड़ा क्या है जो परमेश्वर सहन करता है?
1
कुछ को हमदर्दी है मसीह की दुर्दशा से,
क्योंकि कहा गया है बाइबल के पद में :
"लोमड़ियों के भट होते, परिंदों के बसेरे;
मगर मानव-पुत्र को न मिले जगह सिर रखने की।"
इसे वे दिल से लगाते, मानते
है ये ईश्वर, मसीह की सबसे बड़ी पीड़ा।
मगर सच में, ईश्वर जिन मुश्किलों को झेलता,
वो उन्हें पीड़ा नहीं मानता।
अपनी पीड़ा के कारण अन्याय के खिलाफ़,
वो कभी नहीं चीखा-चिल्लाया;
उसने इंसान से कभी न प्रतिफल माँगा, न इनाम चाहा।
जब ईश्वर इंसान की सारी बुराई,
और उसका भ्रष्ट जीवन देखे,
जब इंसान को शैतान के चंगुल में फँसा देखे,
पाप में जीता, सत्य से अनजान देखे,
तो इंसान के लिए उसकी नफ़रत बढ़ती जाए,
वो उनके पापों को सह न पाए,
मगर फिर भी वो ये सब झेलता जाए।
यही बड़ी पीड़ा है ईश्वर की।
2
ईश्वर अनुयायियों के सामने अपने दिल की न कह पाए,
और कोई उसकी पीड़ा को न समझ पाए।
कोई उसके दिल को न समझे, न दिलासा दे पाए,
यही दिन-ब-दिन, साल-दर-साल उसकी पीड़ा है।
ईश्वर जो देता, उसके बदले में कुछ न चाहे,
पर अपने सार के कारण,
वो इंसान के पाप सह न पाए।
उसे नफ़रत है इंसान की बुराई और भ्रष्टता से,
और यही है उसकी अनंत पीड़ा।
क्या ये देखा है तुममें से किसी ने?
लगता तो नहीं किसी ने देखा होगा,
क्योंकि तुममें से कोई ईश्वर को समझ नहीं सकता।
जब ईश्वर इंसान की सारी बुराई,
और उसका भ्रष्ट जीवन देखे,
जब इंसान को शैतान के चंगुल में फँसा देखे,
पाप में जीता, सत्य से अनजान देखे,
तो इंसान के लिए उसकी नफ़रत बढ़ती जाए,
वो उनके पापों को सह न पाए,
मगर फिर भी वो ये सब झेलता जाए।
यही बड़ी पीड़ा है ईश्वर की।
जब ईश्वर इंसान की सारी बुराई,
और उसका भ्रष्ट जीवन देखे,
जब इंसान को शैतान के चंगुल में फँसा देखे,
पाप में जीता, सत्य से अनजान देखे,
तो इंसान के लिए उसकी नफ़रत बढ़ती जाए,
वो उनके पापों को सह न पाए,
मगर फिर भी वो ये सब झेलता जाए।
यही बड़ी पीड़ा है ईश्वर की।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित