863 देहधारी परमेश्वर काफ़ी समय तक मनुष्यों के बीच रहा है

1 जब परमेश्वर देहधारी हुआ और लंबे समय तक मनुष्यों के बीच रहा, तो लोगों की विभिन्न जीवन-शैलियों का अनुभव करने और उन्हें देखने के बाद, उसने यह नहीं सोचा कि किस प्रकार एक अच्छा जीवन पाया जाए या वह किस प्रकार से अधिक स्वतंत्रता और आराम से जी सकता है। इसके बजाय अपने प्रामाणिक मानव-जीवन के अनुभव से, उसने यह भी अनुभव किया कि भ्रष्टता के बीच जी रहे लोग कितने असहाय हैं, और उसने पाप में जीने वाले मनुष्यों की दुर्दशा को देखा और अनुभव किया, जो शैतान और बुराई द्वारा दी गई यातना में हर दिशा खो बैठे थे। उसके द्वारा देखी गई हर चीज़ ने उसे उस कार्य का महत्व और आवश्यकता महसूस कराई, जिसे उसने उस समय हाथ में लिया था, जब वह देह में रहा था।

2 इस प्रक्रिया के दौरान, प्रभु यीशु ने उस कार्य को और अधिक स्पष्टता से समझना आरंभ कर दिया था, जो उसे करने की आवश्यकता थी और जो उसे सौंपा गया था। वह उस कार्य को पूरा करने के लिए अधिकाधिक उत्सुक भी हो गया, जो उसे करना था—मानवजाति के समस्त पाप ग्रहण करना, मनुष्यों के लिए प्रायश्चित करना ताकि वे अब पाप में न जीएँ, और साथ ही परमेश्वर पापबलि की वजह से मनुष्य के पाप क्षमा कर सके, जिससे उसे मानवजाति को बचाने का अपना कार्य आगे बढ़ाने की अनुमति मिले। अपने हृदय में प्रभु यीशु अपने आप को मानवजाति के लिए अर्पित करने, अपना बलिदान करने के लिए तैयार था। वह एक पापबलि के रूप में कार्य करने, सूली पर चढ़ाए जाने के लिए भी तैयार था। जब उसने मानव-जीवन की दयनीय दशा देखी, तो वह बिना एक भी क्षण या क्षणांश की देरी के, जल्दी से जल्दी अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए और अधिक इच्छुक हो गया।

3 ऐसी अत्यावश्यकता महसूस करते हुए उसने यह भी नहीं सोचा कि उसका अपना दर्द कितना भयानक होगा, न ही उसने कोई और आशंका पाली कि उसे कितना अपमान सहना होगा। उसके हृदय में बस एक ही दृढ़ विश्वास था : यदि वह अपने को अर्पित करेगा, यदि वह पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ जाएगा, तो परमेश्वर की इच्छा पूरी हो जाएगी और परमेश्वर अपना नया कार्य शुरू कर पाएगा। मनुष्य का जीवन और पाप में उसके अस्तित्व की स्थिति पूर्णत: रूपांतरित हो जाएगी। उसका दृढ़ विश्वास और जो कुछ करने के लिए वह कृतसंकल्प था, वे मनुष्य को बचाने से संबंध रखते थे, और उसका एक ही उद्देश्य था : परमेश्वर की इच्छा पर चलना, ताकि वह अपने कार्य के अगले चरण की सफलतापूर्वक शुरुआत कर सके। उस समय प्रभु यीशु के मन में बस यही था।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित

पिछला: 862 देहधारी परमेश्वर सबसे प्रिय है

अगला: 864 वह बड़ी पीड़ा क्या है जो परमेश्वर सहन करता है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

418 प्रार्थना के मायने

1प्रार्थनाएँ वह मार्ग होती हैं जो जोड़ें मानव को परमेश्वर से,जिससे वह पुकारे पवित्र आत्मा को और प्राप्त करे स्पर्श परमेश्वर का।जितनी करोगे...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें