3. बाइबल में, पौलुस ने कहा था, "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे, क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है, और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे" (रोमियों 13:1-2)। पौलुस के शब्दों के अनुसार अभ्यास करते हुए, हमें सभी चीजों में शासक शक्तियों के अधीन रहना चाहिए। और फिर भी, नास्तिक CCP सरकार ने अपने पूरे इतिहास में धार्मिक विश्वास को सताया है। यह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है, और यह न केवल हमें प्रभु में विश्वास करने से रोकती है, बल्कि यह उन लोगों को भी कैद करती और सताती है, जो सुसमाचार फैलाते हैं और परमेश्वर की गवाही देते हैं। अगर हम चीनी कम्युनिस्ट सरकार के सामने झुक जाते हैं, प्रभु पर विश्वास करना बंद कर देते हैं, और सुसमाचार का प्रसार करना और परमेश्वर की गवाही देना बंद कर देते हैं, तो क्या हम प्रभु का विरोध करके तथा उसकी ओर पीठ करके शैतान के साथ खड़े नहीं होंगे? मैं वास्तव में यह समझ नहीं पा रहा हूँ: सत्ताधारी शक्तियों के मामलों में, प्रभु की इच्छा के अनुरूप होने के लिए आखिर मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर :
पौलुस ने कहा : "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे, क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है, और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे" (रोमियों 13:1-2)। क्योंकि पौलुस ने ये शब्द कहे थे, इसलिए बहुत-से प्रभु के विश्वासी सोचते हैं कि शासन करने वाले अधिकारी परमेश्वर द्वारा नियुक्त किए गए हैं, और उनका आज्ञापालन करना परमेश्वर का आज्ञापालन करना है। यहाँ तक कि कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि चाहे अधिकारी परमेश्वर में उनके विश्वास को बाधित करने और दबाने की कितनी भी कोशिश करें, लोगों को तब भी उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए, और उनकी अवहेलना करना परमेश्वर का विरोध करना है। क्या ऐसे विचार सही हैं? क्या वे परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं? वास्तव में, व्यवस्था के युग से लेकर अनुग्रह के युग तक, परमेश्वर ने कभी लोगों को सत्ताधारियों के प्रति समर्पण करने के लिए नहीं कहा है। व्यवस्था के युग में, इस्राएलियों का शत्रु मिस्र का फिरौन था; सत्ता उसी के पास थी। और परमेश्वर ने उसके साथ क्या किया? जब फिरौन ने इस्राएलियों को मिस्र छोड़ने से रोका, तब परमेश्वर ने उस पर दस विपत्तियाँ बरसाईं। यदि उसने इस्राएलियों को जाने नहीं दिया होता, तो परमेश्वर उसे नष्ट कर देता। जब मिस्र की सेना इस्राएलियों का पीछा कर रही थी, लाल सागर बीच से बँट गया, और फिर इसने पीछा करते हुए सैनिकों को डुबा दिया और नष्ट कर दिया। व्यवस्था के युग में, परमेश्वर का विरोध करने वाले शैतानों के सभी राजा अंततः परमेश्वर द्वारा नष्ट कर दिए गए थे। अब अनुग्रह के युग पर एक नजर डालो : प्रभु यीशु प्रचार करने के लिए मंदिरों में जाने के बजाय जंगल में और लोगों के बीच क्यों गया? क्योंकि अधिकारी और धार्मिक जगत के सभी अगुआ परमेश्वर का विरोध करते थे और सभी प्रभु के प्रति शत्रुतापूर्ण थे, इस कारण प्रभु यीशु के पास जंगल में और लोगों के बीच प्रचार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। यदि प्रभु यीशु के शिष्यों ने अधिकारियों का आज्ञापालन किया होता, तो क्या तब भी उन्होंने उसका अनुसरण किया होता? और क्या प्रभु तब भी उनकी प्रशंसा करता? इन सबसे प्रभु में सच्चा विश्वास करने वालों को दिख जाना चाहिए कि परमेश्वर के हृदय के अनुरूप होने के लिए उनका सीसीपी के अधिकारियों के प्रति कैसा दृष्टिकोण होना चाहिए। यदि लोगों ने कई वर्षों से प्रभु में विश्वास किया है, फिर भी यह नहीं पहचान सकते हैं कि सत्ताधारी परमेश्वर के शत्रु हैं, तो क्या ये लोग वास्तव में शास्त्रों को समझते हैं? और क्या वे सचमुच प्रभु को जानते हैं? बहुत-से लोगों में कोई विवेक नहीं है और वे चीजों की वास्तविकता नहीं देख पाते क्योंकि बाइबल में पौलुस के ये शब्द पढ़ने के बाद वे नहीं समझ पाते कि करना क्या है। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि शासकीय अधिकारियों के प्रति आज्ञाकारिता प्रभु के प्रति आज्ञाकारिता है, और इन सत्ताओं का विरोध करना परमेश्वर के आदेश का विरोध करना और अपने ऊपर दंड लाना है। क्या ऐसे विचार पूरी तरह गलत नहीं हैं? क्या वे एक गंभीर गलतफहमी और परमेश्वर की अवज्ञा नहीं हैं? ये गलत विचार हैं जो लोगों को भ्रमित करते और नुकसान पहुँचाते हैं!
हम सभी जानते हैं कि सीसीपी एक नास्तिक राजनीतिक दल है—और जहाँ नास्तिकता सत्ता में होती है, वहाँ शैतान सत्ता में होता है। सीसीपी ने हमेशा परमेश्वर को दुश्मन माना है। मसीह के प्रकटन और काम के प्रति इसका दृष्टिकोण है, "जब तक शुद्धिकरण पूरा नहीं हो जाता है तब तक फौज हटायी नहीं जाएगी।" वह मसीह को सूली पर चढ़ाने के लिए जो बन पड़े वो करेगी। जब से सीसीपी सत्ता में आई है, उसने खुले आम परमेश्वर को नकारा है, उसकी निंदा की है, और परमेश्वर के खिलाफ ईशनिंदा की है। ईसाई धर्म को शी जियाओ घोषित कर दिया गया है, बाइबल को शी जियाओ साहित्य मानकर जब्त कर लिया और जला दिया जाता है, और धार्मिक समूहों पर शी जियाओ का ठप्पा लगाकर उन्हें सताया और उत्पीड़ित किया जाता है। विशेष रूप से, सीसीपी ने सच्चे परमेश्वर में विश्वास करने वाले और परमेश्वर का प्रचार और उसकी गवाही देने वाले ईसाइयों को अमानवीय क्रूरता और यातना के अधीन करते हुए उनका प्रचण्ड दमन किया है, उन्हें गिरफ्तार और उत्पीड़ित किया है, जिससे कई लोग घायल और अपंग हो गए हैं। कुछ तो खुद पर हुए दुर्व्यवहार से पीड़ित हो कर मर भी गए हैं। सीसीपी मसीह के प्रति इतनी शत्रुतापूर्ण क्यों है, और वह उन लोगों को क्यों उत्पीड़ित करती है जो सच्चे परमेश्वर में विश्वास करते हैं? उसका उद्देश्य क्या है? उसे सबसे ज्यादा डर इस बात का है कि चीनी लोग परमेश्वर में विश्वास करने लगेंगे और उसका अनुसरण करने लगेंगे। उसे डर है कि लोग सत्य का अनुसरण करेंगे और परमेश्वर द्वारा बचा लिए जाएँगे—ऐसी स्थिति में सीसीपी के पास गुलाम बनाने के लिए कोई नहीं बचेगा, उसकी सेवा करने वाला कोई नहीं रहेगा। और इसलिए, सीसीपी का शैतानी शासन, परमेश्वर का काम मिटाने, धार्मिक विश्वास को निर्मूल करने, और चीन को परमेश्वर रहित देश में बदलने की व्यर्थ आशा में ईसाइयों के साथ नृशंस व्यवहार करने और प्रताड़ित करने के हर साधन को काम में लाते हुए उन्मत्त रूप से मसीह को पकड़ना चाहता है, ताकि शैतानी सीसीपी की तानाशाही चीन में शाश्वत और अपरिवर्तित रहेगी। यह साबित करता है कि दुनिया में कोई भी सच्चाई से उतनी नफरत और परमेश्वर से उतनी घृणा नहीं करता जितना कि सीसीपी का शैतानी, दुष्ट शासन करता है। वे शैतानों की मंडली हैं जो परमेश्वर की अवहेलना करते हैं! जहाँ सीसीपी शासन करती है, वहाँ शैतान शासन करता है! इसलिए जब हम सीसीपी को अस्वीकार करते हैं और उससे मुँह मोड़ लेते हैं, तो क्या यह पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं है?
वास्तव में, यह बहुत पहले प्रभु यीशु द्वारा प्रकट किया गया था : "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। "और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे" (यूहन्ना 3:19)। बाइबल कहती है, "सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है" (1 यूहन्ना 5:19)। प्रभु यीशु दुनिया के अंधकार और बुराई के असली चेहरे और स्रोत को उजागर करने के लिए सीधे मुद्दे पर आता है। समस्त मानवजाति, शैतान के प्रभाव में रहती है, वह परमेश्वर के अस्तित्व और सत्य के प्रति असहिष्णु है। धार्मिक समुदाय में, कोई भी कलीसियाओं में परमेश्वर के देहधारण की खुले तौर पर गवाही देने की हिम्मत नहीं करता है, वे मसीह द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों की कलीसियाओं में या लोगों के बीच गवाही देने की हिम्मत तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं। किसी भी संप्रदाय में, जो लोग देहधारी मसीह की गवाही देते हुए पाए जाते हैं, उन्हें पकड़ा और निंदित किया जाता है—उन्हें कलीसिया से निकाल दिया जाता है, और यहाँ तक कि अधिकारियों के हवाले कर दिया जाता है। क्या यह मानवजाति बुराई के शिखर पर नहीं पहुँच चुकी है? दुनिया में हर जगह परमेश्वर को नकारा जाता है, सत्य को नकारा जाता है और मसीह की निंदा गूंजती है, क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि वे शैतानी, दुष्ट ताकतें जो परमेश्वर का विरोध करती हैं, दुनिया में हावी हैं? दो हजार साल पहले का समय देखो : जैसे ही प्रभु यीशु पैदा हुआ था, रोमन सरकार उसकी खोज में लग गई थी; काम करते और प्रचार करते हुए, उसे रोमन अधिकारियों के सहयोग से यहूदी अगुआओं द्वारा सूली पर चढ़ा दिया गया था; और जब चीन में उसके सुसमाचार का प्रचार किया गया, तो इसने भी चीनी सरकार की उन्मादी निंदा और प्रतिरोध का सामना किया—कौन जानता है कि चीन में कितने धर्म-प्रचारकों को यातनाएँ दी गईं और मार डाला गया। सीसीपी के सत्ता में आने के बाद, और अनगिनत ईसाइयों को सीसीपी द्वारा गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया गया। सूची लंबी है। ये तथ्य क्या दर्शाते हैं? सीसीपी उन लोगों से इतना अधिक नफरत क्यों करती है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं? क्यों ईसाइयों की पीढ़ियों ने इस तरह के अमानवीय उत्पीड़न का सामना किया है? मनुष्य के बीच सत्य को हमेशा अस्वीकृति और निंदा क्यों मिलती है? परमेश्वर की इच्छा पृथ्वी पर और दुनिया के हर देश में पूरी क्यों नहीं की जा सकती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि पूरी दुनिया दुष्ट, शैतान के अधिकार क्षेत्र में है, क्योंकि शैतान की दुष्ट ताकतें पृथ्वी पर सत्ता में हैं, और वे सभी ऐसे नास्तिक राजनीतिक शासन हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं; सीसीपी शासन, विशेष रूप से, शैतान की दुष्ट ताकतों का आदर्शरूप है। यही मानवजाति की अत्यधिक बुराई और अंधकार का कारण है। यह एक मान्य तथ्य है! लेकिन पौलुस के शब्दों—"हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे"—की वजह से कुछ लोगों का मानना है कि अधिकारियों की आज्ञाकारिता परमेश्वर की आज्ञाकारिता है। हम तुमसे यहपूछते हैं : जब शैतानी सीसीपी शासन परमेश्वर के प्रति हमारे विश्वास और हमारी आराधना में बाधा डालता है और उसे प्रतिबंधित करता है, तब भी क्या हमें आज्ञापालन करना चाहिए? जब सीसीपी ईसाइयों को गिरफ्तार और उन पर अत्याचार करती है, उन्हें पश्चाताप के बयान लिखने के लिए मजबूर करती है, उन्हें परमेश्वर को अस्वीकार करने और धोखा देने को बाध्य करती है, और यहाँ तक कि उन्हें परमेश्वर को कोसने और उसकी निंदा करने के लिए मजबूर करती है, क्या तब भी हम आज्ञापालन कर सकते हैं? जब सीसीपी हमें, सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने की अनुमति नहीं देती है, जब यह हमें प्रभु और हमारे साथी विश्वासियों को धोखा देने, इसका सहपराधी और दौड़ने वाला कुत्ता होने के लिए मजबूर करती है, क्या हम तब भी आज्ञापालन कर सकते हैं? यदि हम सीसीपी के शैतानी शासन का पालन करते, तो क्या हम, परमेश्वर का विरोध और विश्वासघात करते हुए शैतान के पक्ष में खड़े नहीं होते? आओ हम फिर से पौलुस के शब्द देखें : "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे," "इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है, और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे।" क्या ऐसे वचन व्यावहारिक हैं? क्या वे सत्य के अनुरूप हैं? क्या पौलुस वास्तव में इस अंधकारमय और बुरे युग की वास्तविकता नहीं देख सकता था? पौलुस को भी सुसमाचार फैलाने के लिए गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। तर्कसंगत रूप से कहें, तो उसे शैतान की दुष्ट शक्तियों का सार अधिक स्पष्ट रूप से देखने में हमसे ज्यादा सक्षम होना चाहिए था, फिर भी उसने वे शब्द कहे—यकीन नहीं होता!
हम सभी को इस बात से अवगत होना चाहिए कि परमेश्वर द्वारा शैतान को मानवजाति को भ्रष्ट करने की अनुमति देने और दुष्ट शैतान को पृथ्वी पर सत्ता धारण करने की अनुमति देने में परमेश्वर की बुद्धि और व्यवस्थाएँ निहित हैं। परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार मुख्य रूप से शैतान को हराने, और शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके लोगों से परमेश्वर की आज्ञा मनवाने और आराधना करवाने के लिए है। केवल तभी शैतान पूरी तरह से पराजित और अपमानित होगा, और उसके भाग्य का अंत हो सकता है। और इसलिए, जब परमेश्वर शैतान को शक्ति का उपयोग करने और मानवजाति को भ्रष्ट करने देता है, तो उसकी इच्छा है कि मानवजाति शैतान को समझ जाये, शैतान के सार की सच्चा प्रकृति का पता लगाए, ताकि लोग शैतान से नफरत करें, और उससे मुँह मोड़ लें; फिर भी परमेश्वर ने कभी नहीं कहा कि लोग शैतान की आज्ञा का पालन करें, उसने यह तो बिल्कुल भी नहीं कहा है कि किसी भी शैतानी शासन की अवहेलना करना स्वयं पर दंड लाना होगा। तो पौलुस के दृष्टिकोण के अनुसार, क्या संतों की पीढ़ियाँ जिनका शैतानी सरकारों द्वारा शिकार और उत्पीड़न किया गया था, और जो प्रभु के लिए शहीद भी हुए थे, वे अपने ऊपर दंड लाए थे क्योंकि उन्होंने शासक शक्तियों की अवहेलना की थी? क्या संतों की कई पीढ़ियों की कैद का तथ्य प्रभु के प्रति एक सुंदर और जबर्दस्त गवाही नहीं है? पौलुस के दृष्टिकोण के अनुसार, संतों की इन पीढ़ियों की गिरफ्तारी और यहाँ तक कि हत्या भी सुंदर गवाही नहीं थी—वे तो अपने ऊपर दंड ला रहे थे क्योंकि उन्होंने अधिकारियों की अवहेलना की थी। और बात ऐसी ही है तो क्या सुसमाचार फैलाने के कारण पौलुस द्वारा भुगती गई कैद की पीड़ा भी व्यर्थ नहीं थी? तो पौलुस ने दूसरों को उस पीड़ा की गवाही क्यों दी जो उसने भुगती थी? क्या यह एक विरोधाभास नहीं था? प्रभु में हमारा विश्वास और हमारा प्रभु का प्रचार करना और प्रभु के सुसमाचार की गवाही देना स्वर्ग द्वारा आदेशित और पृथ्वी द्वारा स्वीकृत है; इस बीच, शैतान की सरकारें, ईसाइयों को क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित करने, परमेश्वर के सुसमाचार के काम के प्रसार में बाधा डालने और परमेश्वर की इच्छा पूरी की जाने से रोकने के लिए कुछ भी करेंगी—–यह उनके राक्षसी सार को प्रकट करता है, एक ऐसा सार जो सत्य से नफरत करता है और परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है। जब लोगों को सच्चे मार्ग पर बने रहने और प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करने और गवाही देने के लिए शैतान की सरकारों द्वारा क्रूरता से उत्पीड़ित किया जाता है, तो उन्हें धार्मिकता के वास्ते उत्पीड़ित किया जाता है, और प्रभु के गुणगान से अधिक सार्थक कुछ नहीं है। फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि वे अपने ऊपर दंड लाते हैं? प्रभु यीशु ने एक बार स्पष्ट रूप से कहा था कि, "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5:10)। क्या ऐसा हो सकता है कि पौलुस प्रभु यीशु के इन वचनों से अवगत नहीं था? पौलुस द्वारा बोले गए शब्द स्पष्ट रूप से प्रभु यीशु के वचनों के प्रतिकूल हैं। वे मौलिक रूप से सत्य के विपरीत हैं, और हमारे कार्यों का आधार नहीं बन सकते हैं। हम परमेश्वर द्वारा बनाए गए थे, और हम परमेश्वर के हैं, इसलिए यह स्वर्ग द्वारा आदेशित और पृथ्वी द्वारा स्वीकृत कि हमें सभी चीजों में परमेश्वर की बात सुननी चाहिए और परमेश्वर के अधिकार का आज्ञापालन करना चाहिए!