3. कैथलिक विश्वासी पादरियों को सुनते हैं, पादरी बिशप को सुनते हैं, और बिशप पोप को सुनते हैं। चाहे आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य पर कितनी भी अच्छी तरह से सहभागिता करें, जब तक कि पोप और पादरी लोग परमेश्वर के आगमन की घोषणा नहीं करते, हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं—हम कैथलिक पादरियों और पोप की बात सुनते हैं।

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है" (प्रेरितों 5:29)

"तौभी ये लोग अपने मारनेवाले की ओर नहीं फिरे और न सेनाओं के यहोवा की खोज करते हैं। इस कारण यहोवा इस्राएल में से सिर और पूँछ को, खजूर की डालियों और सरकंडे को, एक ही दिन में काट डालेगा। पुरनिया और प्रतिष्‍ठित पुरुष तो सिर हैं, और झूठी बातें सिखानेवाला नबी पूँछ है; क्योंकि जो इन लोगों की अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नष्‍ट हो जाते हैं" (यशायाह 9:13-16)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। बल्कि वे शक्ति और सम्पत्तियों में आनन्दित होते हैं; इस प्रकार के लोग शक्ति के खोजी कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनरी से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालंकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे आधा विश्वास करते हैं; और वे अपने दिलो-दिमाग को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं, वे मुख से तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, किन्तु उनकी नज़रें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं, और वे मसीह की ओर दूसरी नजर भी नहीं डालते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिक गए हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा मामूली व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है कि एक इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बनाबना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज़ लोग परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हँसते। उनका मानना है कि यदि परमेश्वर ने ऐसे नाचीज़ों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वास करने से अधिक, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल पद, प्रतिष्ठा और सत्ता को महत्व देते है और केवल बड़े समूहों और सम्प्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उनके लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे गद्दार हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुँह मोड़ लिया है।

तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो जो संसार की कीचड़ में लोट लगाते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, किन्तु उन मुरदों की तारीफ़ करते हो जो चढ़ावों को हड़प लेते हैं और अय्याशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, परन्तु उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालाँकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, उनकी हैसियत की ओर, उनके प्रभाव की ओर मुड़ता है। फिर भी तुम ऐसा रवैया बनाये रखते हो जहाँ तुम मसीह के कार्य को गले से उतारना कठिन पाते हो और उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ़ इसलिए किया, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और चारा नहीं था। तुम्हारे हृदय में हमेशा बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम न तो उनके हर वचन और कर्म को, और न ही उनके प्रभावशाली वचनों और हाथों को भूल सकते हो। तुम सबके हृदय में वे हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक हैं। किन्तु आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा आदर के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह उत्कृष्ट तो बिल्कुल नहीं है।

बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य का सम्मान नहीं करते हैं वे सभी अविश्वासी और सत्य के प्रति गद्दार हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अधिक अविश्वास है, और मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमको इस तरह से शिक्षा देता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, तो तुम्हें सम्पूर्ण हृदय से खुद को समर्पित कर देना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अधूरे मन वाले न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, उन सबका जो उसकी आराधना करते हैं, और उन सबका है जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?

हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, "हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।" देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस के प्रकार के ही हैं। ...

पहले, हो सकता है परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग किसी व्यक्ति का अनुसरण करते हों, या उन्होंने परमेश्वर की इच्छाओं को पूरा न किया हो; इस अंतिम चरण में, उन्हें परमेश्वर के सामने आना होगा। यदि तुम्हारी नींव कार्य के इस चरण का तुम्हारा अनुभव है, फिर भी तुम किसी व्यक्ति का अनुसरण करते रहते हो, तो तुम अक्षम्य हो, और तुम्हारा अंजाम भी वही होने वाला है जो पौलुस का हुआ था।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

जो सत्य को नहीं समझते, वे हमेशा दूसरों का अनुसरण करते हैं : यदि लोग कहते हैं कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो तुम भी कहते हो कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है; यदि लोग कहते हैं कि यह दुष्टात्मा का कार्य है, तो तुम्हें भी संदेह हो जाता है, या तुम भी कहते हो कि यह किसी दुष्टात्मा का कार्य है। तुम हमेशा दूसरों के शब्दों को तोते की तरह दोहराते हो, और स्वयं किसी भी चीज़ का अंतर करने में असमर्थ होते हो, न ही तुम स्वयं सोचने में सक्षम होते हो। ऐसे व्यक्ति का कोई दृष्टिकोण नहीं होता, वह अंतर करने में असमर्थ होता है—ऐसा व्यक्ति बेकार अभागा होता है! तुम हमेशा दूसरों के वचनों को दोहराते हो : आज ऐसा कहा जाता है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु संभव है, कल कोई कहे कि यह पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, और कि यह असल में यह मनुष्य के कर्मों के अतिरिक्त कुछ नहीं है—फिर भी तुम इसे समझ नहीं पाते, और जब तुम इसे दूसरों के द्वारा कहा गया देखते हो, तो तुम भी वही बात कहते हो। यह वास्तव में पवित्र आत्मा का कार्य है, परंतु तुम कहते हो कि यह मनुष्य का कार्य है; क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य की ईशनिंदा करने वालों में से एक नहीं बन गए हो? इसमें, क्या तुमने परमेश्वर का इसलिए विरोध नहीं किया है, क्योंकि तुम अंतर नहीं कर सकते? शायद किसी दिन कोई मूर्ख प्रकट होकर कहे कि "यह किसी दुष्टात्मा का कार्य है," और इन शब्दों को सुनकर तुम हैरान रह जाओ, और एक बार फिर तुम दूसरों के शब्दों में बँध जाओगे। हर बार जब कोई गड़बड़ी करता है, तो तुम अपने दृष्टिकोण पर अडिग रहने में असमर्थ हो जाते हो, और यह सब इसलिए होता है क्योंकि तुम्हारे पास सत्य नहीं है। परमेश्वर पर विश्वास करना और परमेश्वर को जानना आसान बात नहीं है। ये चीज़ें एक-साथ इकट्ठे होने और उपदेश सुनने भर से हासिल नहीं की जा सकतीं, और तुम केवल ज़ुनून के द्वारा पूर्ण नहीं किए जा सकते। तुम्हें अपने कार्यों को अनुभव करना और जानना चाहिए, और उनमें सैद्धांतिक होना चाहिए, और पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करना चाहिए। जब तुम अनुभवों से गुज़र जाओगे, तो तुम कई चीजों में अंतर करने में सक्षम हो जाओगे—तुम भले और बुरे के बीच, धार्मिकता और दुष्टता के बीच, देह और रक्त से संबंधित चीज़ों और सत्य से संबंधित चीज़ों के बीच अंतर करने में सक्षम हो जाओगे। तुम्हें इन सभी चीजों के बीच अंतर करने में सक्षम होना चाहिए, और ऐसा करने में, चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, तुम कभी भी नहीं खोओगे। केवल यही तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं

जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। किसी व्यक्ति को ऊँचा न ठहराओ, न किसी पर श्रद्धा रखो; परमेश्वर को पहले, जिनका आदर करते हो उन्हें दूसरे और ख़ुद को तीसरे स्थान पर मत रखो। किसी भी व्यक्ति का तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और तुम्हें लोगों को—विशेषकर उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य या उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए

परमेश्वर का अनुसरण करने में प्रमुख महत्व इस बात का है कि हर चीज़ आज परमेश्वर के वचनों के अनुसार होनी चाहिए: चाहे तुम जीवन प्रवेश का अनुसरण कर रहे हो या परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति, सब कुछ आज परमेश्वर के वचनों के आसपास ही केंद्रित होना चाहिए। यदि जो तुम संवाद और अनुसरण करते हो, वह आज परमेश्वर के वचनों के आसपास केंद्रित नहीं है, तो तुम परमेश्वर के वचनों के लिए एक अजनबी हो और पवित्र आत्मा के कार्य से पूरी तरह से परे हो। परमेश्वर ऐसे लोग चाहता है जो उसके पदचिह्नों का अनुसरण करें। भले ही जो तुमने पहले समझा था वह कितना ही अद्भुत और शुद्ध क्यों न हो, परमेश्वर उसे नहीं चाहता और यदि तुम ऐसी चीजों को दूर नहीं कर सकते, तो वो भविष्य में तुम्हारे प्रवेश के लिए एक भयंकर बाधा होंगी। वो सभी धन्य हैं, जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलते थे, फिर भी वो आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं और जो परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँभी ले जाए वो उसका अनुसरण करते हैं—ये वो लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज वो सभी जो परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पालन करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह में हैं; जो लोग आज परमेश्वर के वचनों से अनभिज्ञ हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह से बाहर हैं और ऐसे लोगों की परमेश्वर द्वारा सराहना नहीं की जाती। ... "पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण" करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञापालन करने में सक्षम होना और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल यही ऐसा है, जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा के प्रवाहमें है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने में सक्षम हैं बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं और परमेश्वर के नवीनतम कार्य से मनुष्य की अवधारणाओं और अवज्ञा को, मनुष्य की प्रकृति और सार को जान सकते हैं; इसके अलावा, वो अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं, जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं और जो सचमुच में सच्चा मार्ग पा चुके हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो

उन लोगों के लिए, जो परमेश्वर का अनुसरण करने का दावा करते हैं, अपनी आँखें खोलना और इस बात को ध्यान से देखना सर्वोत्तम रहेगा कि दरअसल वे किसमें विश्वास करते हैं: क्या यह वास्तव में परमेश्वर है जिस पर तू विश्वास करता है, या शैतान है? यदि तू जानता कि जिस पर तू विश्वास करता है वह परमेश्वर नहीं है, बल्कि तेरी स्वयं की प्रतिमाएँ हैं, तो फिर यही सबसे अच्छा होता यदि तू विश्वासी होने का दावा नहीं करता। यदि तुझे वास्तव में नहीं पता कि तू किसमें विश्वास करता है, तो, फिर से, यही सबसे अच्छा होता यदि तू विश्वासी होने का दावा नहीं करता। वैसा कहना कि तू विश्वासी था ईश-निंदा होगी! तुझसे कोई ज़बर्दस्ती नहीं कर रहा कि तू परमेश्वर में विश्वास कर। मत कहो कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हो, मैं ऐसी बहुत सी बातें बहुत पहले खूब सुन चुका हूँ और उन्हें दुबारा सुनने की इच्छा नहीं है, क्योंकि तुम जिनमें विश्वास करते हो वे तुम लोगों के मन की प्रतिमाएँ और तुम लोगों के बीच के स्थानीय गुण्डे हैं। जो लोग सत्य को सुनकर अपनी गर्दन ना में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं; और नष्ट कर दी जाने वाली वस्तुएँ हैं। ऐसे कई लोग कलीसिया में मौजूद हैं, जिनमें कोई विवेक नहीं है। और जब कुछ कपटपूर्ण घटित होता है, तो वे अप्रत्याशित रूप से शैतान के पक्ष में जा खड़े होते हैं। जब उन्हें शैतान का अनुचर कहा जाता है तो उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। यद्यपि लोग कह सकते हैं कि उनमें विवेक नहीं है, वे हमेशा उस पक्ष में खड़े होते हैं जहाँ सत्य नहीं होता है, वे संकटपूर्ण समय में कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े नहीं होते हैं, वे कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े होकर दलील पेश नहीं करते हैं। क्या उनमें सच में विवेक का अभाव है? वे अनपेक्षित ढंग से शैतान का पक्ष क्यों लेते हैं? वे कभी भी एक भी शब्द ऐसा क्यों नहीं बोलते हैं जो निष्पक्ष हो या सत्य के समर्थन में तार्किक हो? क्या ऐसी स्थिति वाकई उनके क्षणिक भ्रम के परिणामस्वरूप पैदा हुई है? लोगों में विवेक की जितनी कमी होगी, वे सत्य के पक्ष में उतना ही कम खड़ा हो पाएँगे। इससे क्या ज़ाहिर होता है? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि विवेकशून्य लोग बुराई से प्रेम करते हैं? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि वे शैतान की निष्ठावान संतान हैं? ऐसा क्यों है कि वे हमेशा शैतान के पक्ष में खड़े होकर उसी की भाषा बोलते हैं? उनका हर शब्द और कर्म, और उनके चेहरे के हाव-भाव, यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे सत्य के किसी भी प्रकार के प्रेमी नहीं हैं; बल्कि, वे ऐसे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं। शैतान के साथ उनका खड़ा होना यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि शैतान इन तुच्छ इब्लीसों को वाकई में प्रेम करता है जो शैतान की खातिर लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं। क्या ये सभी तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं? यदि तू वाकई ऐसा व्यक्ति है जो सत्य से प्रेम करता है, तो फिर तेरे मन में ऐसे लोगों के लिए सम्मान क्यों नहीं हो सकता है जो सत्य का अभ्यास करते हैं, तो फिर तू तुरंत उनके मात्र एक इशारे पर ऐसे लोगों का अनुसरण क्यों करता है जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं? यह किस प्रकार की समस्या है? मुझे परवाह नहीं कि तुझमें विवेक है या नहीं। मुझे परवाह नहीं कि तूने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। मुझे परवाह नहीं कि तेरी शक्तियाँ कितनी बड़ी हैं और न ही मुझे इस बात की परवाह है कि तू एक स्थानीय गुण्डा है या कोई ध्वज-धारी अगुआ। यदि तेरी शक्तियाँ अधिक हैं, तो वह शैतान की ताक़त की मदद से है। यदि तेरी प्रतिष्ठा अधिक है, तो वह केवल इसलिए है क्योंकि तेरे आस-पास बहुत से ऐसे लोग हैं जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं; यदि तू निष्कासित नहीं किया गया है, तो इसलिए कि अभी निष्कासन-कार्य का समय नहीं है; बल्कि यह समय अलग किए जाने का है। तुझे निष्कासित करने की अभी कोई जल्दी नहीं है। मैं तो बस उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, जब हटा दिए जाने के बाद, मैं तुझे दंडित करूंगा। जो कोई भी सत्य का अभ्यास नहीं करता है, उसे हटा दिया जायेगा!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी

पिछला: 2. हमारा मानना है कि मृत्यु के बाद मनुष्य के पापों को पाप-मोचक नरक में शुद्ध किया जाता है, जिसके बाद लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। फिर भी आप गवाही देते हैं कि जो लोग अंतिम दिनों के न्याय के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, उन्हें शुद्ध नहीं किया जाएगा, और इसलिए वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य नहीं होंगे। इससे आपका क्या तात्पर्य है? वास्तव में, लोग स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?

अगला: 1. लोगों को परमेश्वर पर विश्वास क्यों करना चाहिए?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

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