780 परमेश्वर उन्हें पाना चाहता है जिन्हें उसका सच्चा ज्ञान है
1
ईश्वर के स्वभाव और स्वरूप के ज्ञान से इंसान में भरोसा पैदा होता है,
वो ईश्वर का भय मानता, आज्ञापालन करता है,
न तो आँख मूंदकर उसके पीछे चलता, न उसकी पूजा करता है।
ईश्वर को मूर्ख नहीं, उसके स्वभाव की साफ़ समझ रखने वाले चाहिए।
वे ईश्वर के गवाह बन सकते हैं।
उसका स्वरूप, धार्मिकता, प्रियता देखकर, वे कभी त्यागेंगे नहीं उसे।
ईश्वर की सच्ची समझ से ही
इंसान पा सके सच्ची आस्था, बन सके सच्चा अनुयायी,
बन सके सच्चा आज्ञाकारी, दिखा सके सच्ची श्रद्धा।
वही अर्पित कर सके, खोल सके सच्चा दिल सामने उसके!
यही चाहिए ईश्वर को, उसकी सोच, और कार्य ईश्वर की परीक्षा
का सामना कर सकें, गवाही दे सकें।
2
अगर दिल में स्पष्टता नहीं है,
ईश्वर के अस्तित्व या स्वभाव पर, इंसान को बचाने की
उसकी योजना पर उलझन है, तो प्रशंसा नहीं पाएगी तुम्हारी आस्था।
ईश्वर को नहीं चाहिए ऐसा अनुयायी। वो पसंद न करे अपने सामने ऐसों को।
वे न समझें उसे, वे दे न सकें दिल अपना उसे,
उनका दिल बंद होता उसके लिए,
दूषित होती आस्था उनकी, अंध-अनुयायी होते हैं वे।
ईश्वर की सच्ची समझ से ही
इंसान पा सके सच्ची आस्था, बन सके सच्चा अनुयायी,
बन सके सच्चा आज्ञाकारी, दिखा सके सच्ची श्रद्धा।
वही अर्पित कर सके, खोल सके सच्चा दिल सामने उसके!
यही चाहिए ईश्वर को, उसकी सोच, और कार्य ईश्वर की परीक्षा
का सामना कर सकें, गवाही दे सकें।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III से रूपांतरित