262 क्या तुमने सर्वशक्तिमान को आहें भरते सुना है?

1

भोर का एक तारा उदित होता पूरब में।

ये है एक नया तारा, शांत नभ रोशन करे,

लोगों के दिलों की बुझी रोशनी फिर जलाए।

ताकि वे अब अकेले या अंधेरे में न रहें।

सिर्फ तुम ही रात के आगोश में हो सोए,

न तुम आवाज़ सुनते, न रोशनी देखते,

देख नहीं पाते कि नई शुरुआत हो रही,

नया युग, नई धरती, नया स्वर्ग आ रहा।


तुम्हारा "पिता" कहे तुमसे,

अभी रात है, बाहर ठंड है,

बाहर जाओगे, तो तलवार बेध देगी आँखें तुम्हारी।

पिता की बातें मान लेते, क्योंकि वो

तुमसे बड़ा है, तुम्हें प्यार करता है।


2

इस प्यार, के कारण तुम रोशनी का होना नकारते।

दुनिया में सत्य होने, न होने की परवाह नहीं करते।

ईश-उद्धार पाने या रोशनी देखने की

आशा नहीं करते, जो है उसी से संतुष्ट रहते।

तुम्हारे लिए सुंदर चीज़ों का वजूद न हो सके;

इंसान का कल, उसका भविष्य शापित है, गुम है।

पिता से चिपके हुए उसके संग कष्ट झेलने में खुश हो,

डरते हो, यात्रा की दिशा और साथी न खो दो।


इस अस्पष्ट, विशाल दुनिया ने तुम जैसे कई बनाए हैं,

जो अपनी भूमिकाओं में निडर, निर्भीक हैं।

इसने बनाए कई "योद्धा" जो मृत्यु से नहीं डरते,

कई सुन्न इंसान जो अपने बनाए जाने का

कारण भी न जानते, कारण भी न जानते।


3

ईश्वर इस पीड़ित मानवजाति को देखे।

कष्ट झेलते लोगों की कराह सुने;

वो देखे वे कितने बेशर्म लगते, उनकी बेबसी,

उद्धार खोने का उनका भय महसूस करे।

इंसान उसकी देखभाल छोड़ अपने रास्ते जाए।

शत्रु संग कड़वाहट चखना ज़्यादा पसंद करे।

ईश्वर की आह न सुनाई दे,

उसके हाथ इंसान को अब न छूते।

वो उसे बार-बार प्राप्त कर फिर खो दे।


वो थकने लगे, फिर अपना काम बंद कर दे।

अब वो लोगों के बीच न घूमे।

लोग नहीं देख पाते ये बदलाव,

न उसका आना और जाना,

न उसका गहरा दुख;

ईश्वर आह भर रहा, आह भर रहा है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह से रूपांतरित

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