406 तुम्हारा विश्वास वास्तव में कैसा है?

1

तुम्हारे दिल में बस पैसे और लालसाएँ हैं।

बस भौतिक इच्छाएँ हैं तुम्हारे दिमाग में।

हर दिन यह सोचते हो,

ईश्वर से चीज़ें हासिल कैसे करूँ?

हर दिन पाए पैसों और चीजों की गिनती करते हो।


हर दिन और आशीष बरसने का इंतज़ार करते हो,

ताकि तुम उनका और आनंद ले सको।

अधिक ऊँचे स्तर की चीज़ों का आनंद लेना चाहो।

हर दिन और आशीष पाने का इंतज़ार करते हो।


तुम्हारा मुँह भरा है कपट और गंदगी से,

विश्वासघात और घमंड से।

ईश्वर से कही गयी तुम्हारी बातें झूठी, अपवित्र हैं;

उसके वचनों का अनुभव करके भी

तुमने उसके प्रति समर्पण के शब्द न कहे।

तो तुम्हारा विश्वास कैसा है?


2

तुम्हारे ख्यालों में जो रहे हर पल, वो ईश्वर नहीं,

न ही वो सत्य है जो उससे आता है,

पर रहे हमेशा तुम्हारा पति या बीवी और बच्चे,

और तुम जो खाते और पहनते।


तुम और आनंद पाने के तरीके सोचते।

तुम्हारा पेट भरा है, पर क्या तुम लाश नहीं?

इतने सुंदर कपड़े पहनकर भी क्या तुम

जीवन रहित चलती-फिरती लाश नहीं?


तुम्हारा मुँह भरा है कपट और गंदगी से,

विश्वासघात और घमंड से।

ईश्वर से कही गयी तुम्हारी बातें झूठी, अपवित्र हैं;

उसके वचनों का अनुभव करके भी

तुमने उसके प्रति समर्पण के शब्द न कहे।

तो तुम्हारा विश्वास कैसा है?


3

तुम अपने पेट के लिए काम करते हो,

जब तक तुम्हारे बाल नहीं पक जाते,

पर ईश-कार्य के लिए कोई अपना एक बाल भी न त्यागे।

हर वक्त चलते रहते हो,

अपने देह और अपने बच्चों के लिए,

अपने दिमाग दौड़ाते रहते हो,

पर ईश-इच्छा की तुममें से किसी को भी परवाह नहीं।

तुम अभी भी क्या पाने की आशा करते ईश्वर से?


तुम्हारा मुँह भरा है कपट और गंदगी से,

विश्वासघात और घमंड से।

ईश्वर से कही गयी तुम्हारी बातें झूठी, अपवित्र हैं;

उसके वचनों का अनुभव करके भी

तुमने उसके प्रति समर्पण के शब्द न कहे।

तो तुम्हारा विश्वास कैसा है?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं से रूपांतरित

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