प्रश्न 1: बाइबल में, पौलुस ने कहा है कि हमें अधिकारियों की आज्ञा माननी चाहिए। अगर हम पौलुस के शब्दों को व्यवहार में लाते हैं, तो हमें सत्तारूढ़ शासन की बात हमेशा सुननी चाहिए। परन्तु नास्तिक सीसीपी हमेशा धार्मिक लोगों को सताती है और परमेश्वर के शत्रु के रूप में काम करती है। सीसीपी न केवल हमें प्रभु में विश्वास करने से रोकती है, वह उन लोगों को भी पकड़ती और सताती है जो परमेश्वर का सुसमाचार फैलाते हैँ। अगर हम इसका आज्ञापालन करते हैं और प्रभु में विश्वास नहीं करते हैं या उनका सुसमाचार नहीं फैलाते हैं, तो क्या हम प्रभु का विरोध करने और उनके साथ विश्वासघात करने में शैतान का पक्ष नहीं ले रहे हैं? क्या हम तब वह नहीं बन जायेंगे जिनके भाग्य में मरना लिखा है? मैं वास्तव में यह समझ नहीं पा रहा हूँ। जब बात यह आती है कि हम सत्ताधारियों के साथ कैसा व्यवहार करें, हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो कि हम परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं?
उत्तर: बाइबल में, पौलुस कहते हैं कि हमें अधिकारियों का आज्ञापालन करना चाहिए। उनके शब्द निम्नानुसार थे: "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे, क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है, और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे" (रोमियो 13:1-2)। पौलुस के शब्दों के कारण, प्रभु में विश्वास करने वाले बहुत से लोग सोचते हैं कि शासकीय प्राधिकरण परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया गया है। इस प्रकार, शासकीय प्रशासन का आज्ञापालन करना परमेश्वर का आज्ञापालन करना है। कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि अधिकारी चाहे कैसे भी परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को रोकें और प्रतिबंधित करें, उनका आज्ञापालन होना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि सरकार का विरोध करना परमेश्वर का विरोध करना है। क्या ये विचार वास्तव में सही हैं? क्या वे वास्तव में परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं? तो फिर हमें इस मामले के बारे में वास्तव में क्या सोचना चाहिए? दरअसल, व्यवस्था के युग से अनुग्रह के युग तक, परमेश्वर ने कभी नहीं कहा कि मनुष्य को शासकीय प्रशासनों का आज्ञापालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए व्यवस्था के युग को लें। इस्त्राएल के कट्टर शत्रु, मिस्र का फिरौन, एक शासक था, परमेश्वर ने उसके साथ कैसे व्यवहार किया? उसने इस्राएलियों को मिस्र छोड़ने से रोका, और परमेश्वर ने उस पर विपत्तियां भेजीं। यदि उसने इस्राएलियों को उसके बाद जाने नहीं दिया होता, तो परमेश्वर ने उसे नष्ट कर दिया होता। जब मिस्र की सेना इस्राएलियों का पीछा कर रही थी, तो लाल सागर खुल गया था। तब जिन मिस्र के सैनिकों ने इस्राएलियों का पीछा किया था; वे समुद्र में डूब गए थे। व्यवस्था के युग में, वे सभी शैतानी शासक जिन्होंने परमेश्वर का विरोध किया था, उन्हें अंत में नष्ट कर दिया गया था। अब हम अनुग्रह के युग को देखते हैं। प्रभु यीशु उपदेश देने के लिए यहूदी आराधनालय क्यों नहीं गए? प्रभु यीशु ने जंगल में और आम लोगों के बीच प्रचार क्यों किया? क्योंकि शासकीय प्रशासन और धार्मिक अग्रणी परमेश्वर का विरोध कर रहे थे। उन सभी ने प्रभु को अपने दुश्मन के रूप में लिया। यही कारण है कि प्रभु यीशु केवल जंगल में और आम लोगों के बीच प्रचार कर सकते थे। यदि प्रभु यीशु के शिष्यों ने अधिकारियों का पालन किया होता, तो क्या वे उनका अनुसरण कर पाए होते? क्या वे अभी भी उनकी प्रशंसा प्राप्त कर पाए होते? इस से, हर कोई जो वास्तव में प्रभु में विश्वास करता है, यह बताने में सक्षम होना चाहिए कि हमें परमेश्वर के प्रयोजन के अनुसार सीसीपी से कैसे व्यवहार करना चाहिए। यदि किसी ने प्रभु में इतने सालों तक विश्वास किया है, फिर भी अभी तक यह नहीं देख सका कि शासकीय प्रशासन परमेश्वर का शत्रु है, तो क्या वह व्यक्ति वास्तव में बाइबल को समझता है? क्या वे वास्तव में प्रभु को जानते हैं? बहुत से लोग भेदभाव नहीं करते हैं। वे इस बात के आरपार नहीं देख सकते हैं। क्योंकि वे बाइबल में पौलुस के शब्दों को पढ़ते हैं, उन्हें नहीं पता कि क्या करना है। कुछ लोगों को यह भी लगता है कि शासकीय प्रशासन का आज्ञापालन करना प्रभु का आज्ञापालन करना है, और यह कि जो लोग प्रशासन के खिलाफ विद्रोह करते हैं वे परमेश्वर की आज्ञा का विरोध करते हैं, वे सिर्फ दंड मांग रहे हैं। क्या यह राय यथार्थत: पूरी तरह गलत नहीं है? क्या यह परमेश्वर के प्रति गंभीर गलतफहमी और प्रतिरोध नहीं है? यह एक पथभ्रष्ट दृष्टिकोण है जो लोगों को धोखा देता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है! हम सभी को मालूम है, सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है। नास्तिक सत्ता में हैं और इसका मतलब है कि शैतान सत्ता में है। सीसीपी परमेश्वर को शत्रु के रूप में देखती है। जैसे ही वे मसीह को आते और अपना कार्य करते देखेंगे, वे सशस्त्र बलों को भेजेंगे और तब तक वापस नहीं हटेंगे जब तक मसीह के कार्य को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर देते। और तब तक नहीं रुकेंगे जब तक कि वे मसीह को क्रूस पर चढ़ा न दें! जब से सीसीपी सत्ता में आई है, वे सार्वजनिक रूप से परमेश्वर को नकारती है, परमेश्वर की निंदा करती है और ईश-निंदा करती है। उन्होंने ईसाई धर्म पर एक दुष्ट धर्म-संप्रदाय का और बाइबल पर एक दुष्ट किताब का ठप्पा लगा दिया है; वे इसे जब्त करते हैं और इसे जला देते हैं! उन्होंने धार्मिक समूहों को कुपंथों के रूप में घोषित किया है और उन्हें उत्पीड़न और अत्याचार का शिकार बनाया है। खासकर जब उन ईसाईयों की बात आती है जो सच्चे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और उनकी गवाही देते हैं, सीसीपी हमेशा उन्हें कट्टरता से दबाती, पकड़ती और सताती रहती है। वे अमानवीय यातनाएं देते हैं और क्रूर नुकसान पहुंचाते हैं। यह वास्तव में क्रूर, अनुचित नरसंहार है!
सीसीपी का दानव स्वर्ग और परमेश्वर की इच्छा का विरोध करता है। परमेश्वर का विरोध करते हुए इसने न जाने कितने दुष्ट बर्ताव और पाप किए हैं। तथ्यों से यह साफ ज़ाहिर होता है कि सीसीपी एक दुष्ट शैतानी शक्ति है और परमेश्वर की शत्रु है। सीसीपी उन लोगों से क्यों नफरत करती है और उनको सताती है जो सच्चे परमेश्वर में इतना विश्वास करते हैं? इसका उद्देश्य क्या है? उसे यह डर है कि चीनी लोग परमेश्वर पर विश्वास करना और उनका अनुसरण करना शुरू कर देंगे। उसे यह डर है कि लोग सत्य का अनुसरण करेंगे और उद्धार प्राप्त करेंगे। उस मामले में, किसी भी व्यक्ति को सीसीपी द्वारा बंदी नहीं बनाया जायेगा और किसी को उसकी सेवा नहीं करनी पड़ेगी। इसलिए शैतानी सीसीपी ईसाइयों को सताने के लिए किसी भी माध्यम का उपयोग करती है। वह परमेश्वर के कार्य पर प्रतिबंध लगाना और ईसाई धर्म को रोकना चाहती है; वह चीन को एक अधर्मी भूमि में बदलने की कोशिश कर रही है, ताकि यह हज़ारों पीढ़ियों के लिए चीन के तानाशाह के रूप में अपनी जगह सुरक्षित कर ले। इससे साफ ज़ाहिर है कि सीसीपी एक दुष्ट शैतानी सत्ता है जो सबसे ज़्यादा सच्चाई से नफरत और परमेश्वर से घृणा करती है। वह एक शैतानी संगठन है जो परमेश्वर का विरोध करती है! सीसीपी का शासन शैतान का शासन है।
सीसीपी के प्रशासन के इन वर्षों के दौरान, उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और उसके चुने हुए लोगों को सताया। क्या उन्होंने लगातार पाप नहीं किये हैं? सीसीपी सरकार अनगिनत ईसाइयों को चोट पहुँचाने और मारने के लिए सभी प्रकार के तरीकों का उपयोग करती है! क्या वे अनगिनत ईसाई परिवारों पर विपदा नहीं लाए हैं? इन तथ्यों के अनुसार, हम पुष्टि कर सकते हैं कि सीसीपी सरकार दुनिया में सबसे दुष्ट शैतानी शासन है। यह शैतानों का एक समूह है जो परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करता है, तो हम उन्हें अस्वीकार करते हैं और उनकी ओर से मुंह फेर लेते हैं। क्या यह परमेश्वर के प्रयोजन के अनुरूप नहीं है? दरअसल, प्रभु यीशु ने हमें यह बहुत पहले ही बता दिया था। "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। "और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे" (यूहन्ना 3:19)। बाइबल यह भी कहती है, "और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है" (1 यूहन्ना 5:19)। प्रभु यीशु इस मामले की तह तक जाते हैं और इस दुनिया के बुरे अन्धकार के स्रोत और सच्चे राज्य को उजागर करते हैं। सारी मानवता शैतान के प्रभाव में रहती है। परमेश्वर या सत्य के अस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं है। धार्मिक समुदायों में, कोई भी कलीसिया में परमेश्वर के देह-धारण की सार्वजनिक तौर पर गवाही देने की हिम्मत नहीं करता है। निश्चित रूप से ऐसे लोग नहीं हैं जो कलीसिया में या सार्वजनिक रूप से लोगों को उस सत्य के बारे में बताने की हिम्मत करेंगे जो मसीह व्यक्त करते हैं। अगर किसी भी संप्रदाय में कोई भी देहधारी मसीह के बारे में गवाही देते पाए जाते हैं, वे पाप करने के दोषी ठहराए जायेंगे। वे कलीसिया से बाहर कर दिए जाएंगे या फिर सरकार को सौंप दिए जायेंगे। क्या यह मानवता उतनी बुरी नहीं है जितनी हो सकती है? पृथ्वी का हर कोना परमेश्वर को अस्वीकार करने की, सत्य को अस्वीकार करने की या मसीह को दोषी ठहराए जाने की आवाज़ से भरा हुआ है। क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि इस दुनिया पर उन बुरी शैतानी शक्तियों का शासन है जो परमेश्वर का विरोध करती हैं? 2000 वर्ष के पहले का सोचो जब प्रभु यीशु का अवतरण हुआ था, रोमन सरकार उनके पीछे पड़ गई थी। जब प्रभु यीशु धर्मोपदेश दे रहे थे और अपना कार्य कर रहे थे, तब उन्हें यहूदी नेताओं और रोमन अधिकारियों के एक गठबंधन ने सलीब पर चढ़ा दिया। जब प्रभु यीशु के उपदेशों का आगमन चीन में हुआ, तब उन्हें चीनी सरकार की कट्टर निंदा और जबर्दस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। हम यह भी नहीं जानते कि कितने मिशनरियों को सताया गया या उनकी हत्या कर दी गई। सीसीपी द्वारा सत्ता पर कब्जा ज़माने के बाद से, पकड़े गए या मारे गए ईसाइयों की संख्या की गिनती करना भी कठिन है ... यह सब क्या साबित करता है? सीसीपी विश्वासियों से इतनी नफरत क्यों करती है? संपूर्ण इतिहास में ईसाइयों को इतना क्यों सताया गया है? क्यों मनुष्यगण हमेशा सत्य को अस्वीकारते और उसकी निंदा करते हैं? परमेश्वर की इच्छा को संपूर्ण धरती पर और संपूर्ण विश्व के देशों में क्यों नहीं लागू किया जा सकता है? क्योंकि शैतान मानवता को नियंत्रित कर रहा है। क्योंकि संपूर्ण विश्व शैतान के प्रभाव क्षेत्र में है। क्योंकि धरती पर शैतान की दुष्ट शक्तियों का राज है और नास्तिक सत्ताओं का भी जो परमेश्वर का विरोध करती हैं। सीसीपी शासन शैतान की दुष्ट शक्तियों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यही कारण है कि मानवता दुष्टता और अन्धकार से भरी हुई है। क्या यह सामान्य रूप से स्वीकृत तथ्य नहीं है? हालांकि, कुछ लोग अभी भी पौलुस के वचनों का अनुसरण करते हैं, "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे।" वे सोचते हैं कि अधिकारियों की बातें मानना परमेश्वर का आदेश मानने के समान हैं। तब, मैं आप लोगों से पूछता हूँ: दुष्ट सीसीपी हमें परमेश्वर में आस्था रखने या उनकी उपासना करने से मना करती है; क्या हमें उनका भी आदेश मानना चाहिए? सीसीपी ईसाईयों को पकड़ कर उन्हें दंडित करती है; वह हमें पश्चाताप की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश करती है; वह हमें परमेश्वर को अस्वीकार करने, परमेश्वर का तिरस्कार करने, और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए मजबूर करती है। यहाँ तक कि वह ईसाइयों को परमेश्वर को श्राप देने और परमेश्वर की निन्दा करने के लिए भी मजबूर करती है। क्या हमें ऐसे शासन की आज्ञा माननी चाहिए जो ऐसी गतिविधियों में संलग्न है? सीसीपी हमें ईसाई धर्म का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने से रोकती है, हमें अपने प्रभु और अपने कलीसिया को बेचने के लिए बाध्य करती है, और हमें अपने सह-अपराधी और आज्ञा मानने वाले कुत्तों के रूप में उनके साथ बने रहने के लिए विवश करती है क्या हमें उनकी आज्ञा माननी चाहिए? अगर हम शैतानी सीसीपी की आज्ञा का पालन करते हैं, तो क्या हम शैतान के पक्ष में परमेश्वर का विरोध और उनके साथ विश्वासघात करते हुए नहीं खड़े हैं। आइए अब हम पौलुस ने जो कहा था उस पर एक नजर डालें, "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे।" क्या हम इन वचनों को व्यवहार में ला सकते हैं? क्या वे सत्य के अनुकूल हैं? विशेष रूप से पौलुस ने कहा था, "इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है: और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे" (रोमियों 13:2)। अब, पौलुस के वचनों को देखकर, यह स्पष्ट है कि वे ठीक नहीं हैं; वे बहुत संदिग्ध हैं! क्या ऐसा हो सकता है कि पौलुस बुराई और अंधेरे के युग का स्वभाव नहीं जान सका? पौलुस को सुसमाचार का प्रसार करने के कारण एक बार गिरफ्तार कर कैद कर दिया गया था। तर्कानुसार, उसके पास शैतानी शासन के दुष्ट तत्वों के बारे में हमसे अधिक अंतर्दृष्टि होनी चाहिए। हालांकि, पौलुस द्वारा कहे गए वे वचन वास्तव में समझ से परे हैं!
हम सभी को जानना चाहिए कि परमेश्वर शैतान को मानवता को पथभ्रष्ट करने और पृथ्वी पर शासन करने की अनुमति देते हैं। यह परमेश्वर की बुद्धिमानी और योजना का ही एक हिस्सा है। मानवता को बचाने हेतु परमेश्वर का मुख्य उद्देश्य शैतान को पराजित करना है, और शैतान द्वारा भ्रष्ट हो चुके लोगों को परमेश्वर की आज्ञा मानने और उनकी उपासना करने वाले लोगों में परिवर्तित करना है। यह शैतान को पूर्ण रूप से हराने और अपमानित करने का मार्ग है, और अंततः उसकी पराजय को सुनिश्चित करना है। इसलिए, परमेश्वर शैतान को मानवता को पथभ्रष्ट करने और पृथ्वी पर शासन करने देते हैं।। परमेश्वर चाहते हैं कि इंसान अपने आप से शैतान की पहचान करें; वे चाहते हैं कि वे सभी शैतान का सार देखें। परमेश्वर चाहते हैं कि मानव जाति शैतान से घृणा करें और उसे त्याग दे, और परमेश्वर ने कभी नहीं कहा कि मनुष्य को शैतान की आज्ञा माननी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने निश्चित रूप से कभी नहीं कहा कि शैतान के शासन के विरूद्ध विद्रोह करने का मतलब सज़ा की मांग करना है। पौलुस के दृष्टिकोण के अनुसार, जिन संतों का शैतानी शासन ने शिकार कर उन्हें सताया या जिन्हें प्रभु के लिए शहीद कर दिया गया वे मानों इसकी मांग कर रहे थे क्योंकि उन्होंने सत्ताधारियों के विरूद्ध विद्रोह किया था? ऐसा है क्या? संतों ने अपना समय जेल में तो बिताया। क्या यह प्रभु के प्रति सुंदर, जबर्दस्त गवाही नहीं है? हालाँकि, पौलुस के वचनों के अनुसार संपूर्ण युगों के दौरान इन संतों का उत्पीड़न और संहार परमेश्वर के प्रति कांतिमय गवाही नहीं थी; वे सज़ा की मांग कर रहे थे क्योंकि उन्होंने सत्ताधारियों के खिलाफ विद्रोह किया था। इसी तरीके से, खुद पौलुस को सुसमाचार फैलाने के लिए जेल भेजा गया था। क्या यह निरर्थक नहीं है? फिर दूसरों के साथ चर्चा करते हुए पौलुस ने अपनी पीड़ा की गवाही क्यों दी? क्या ये अंतर्निहित रूप से विरोधाभासी नहीं है? हम प्रभु में विश्वास करते हैं, प्रभु के सुसमाचार की गवाही देते हुए उसका प्रचार करते हैं, यह स्वर्ग का आदेश है। परंतु शैतानी सरकारें ईसाईयों को सताने से किसी कारण नहीं रूकती। वे सुसमाचार फ़ैलाने और परमेश्वर की इच्छा को क्रियान्वित होनें से रोकती हैं। यह पूरी तरह से उनकी शैतानी मानसिकता को उजागर करता है: वे सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर के दुश्मन हैं। लोगों को शैतानी शासन द्वारा क्रूर रूप से सताया जाता है क्योंकि वे सच्चे रास्ते पर चलते हैं और प्रभु का सुसमाचार फैलाते हैं। धार्मिकता के कारण सताये जाने का यही अर्थ है और यह प्रभु द्वारा सबसे ज्यादा अनुमोदित है। हम कैसे कह सकते हैं कि वे सज़ा की मांग कर रहे हैं? प्रभु यीशु ने इसे बहुत स्पष्ट किया था जब उन्होंने एक बार कहा था, "धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का ह" (मत्ती 5:10)। क्या पौलुस को नहीं पता कि प्रभु यीशु ने क्या कहा? जैसा कि आप लोग देख सकते हैं, पौलुस के वचन प्रभु यीशु के वचनों के प्रत्यक्षत: विरोधी हैं! इसलिए, पौलुस ने जो कहा था वह सब कुछ प्रभु यीशु के कथनों के अनुसार नहीं है। यह सत्य के अनुरूप नहीं है। हम इसका उपयोग अपने व्यवहार के निदेशन के लिए नहीं कर सकते। हमारी रचना परमेश्वर ने की थी; हम परमेश्वर के हैं। हमें हमेशा परमेश्वर की बातें सुननी चाहिए और चाहे जो कुछ हो, हमें केवल उनका अधिकार मानना चाहिए। यह न्यायसंगत और सही है!
"परमेश्वर में आस्था" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश