प्रश्न 2: एल्‍डर्स (गुरूजनों) तथा पादरियों को पता लगा है कि आप हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देते रहे हैं। वे चारों ओर पाखंड और झूठ फैला रहे हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा कर रहे हैं। उन्होंने कलीसिया को बंद कर दिया और हमारे भाईयों और बहनों जो कि आपके उपदेश सुनने की कोशिश करते हैं, को परेशान करना और रोकना शुरू कर दिया है। वे हमें अपनी आंख के कांटों के रूप में देखते हैं और हमसे सबसे अधिक घृणा करते हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि वे सभी जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, कलीसिया से निष्कासित कर दिये जायेंगे। कलीसिया स्पष्ट रूप से दो वर्गों में विभाजित हो चुकी है। कुछ भाई बहन हमारे साथ सत्य के मार्ग का अध्ययन करना चाहते हैं। अन्य लोग चमकती पूर्वी बिजली का विरोध और निंदा करने में पादरियों और एल्‍डर्स (गुरूजनों) का अनुसरण कर रहे हैं। वे हमारे साथ अपने शत्रुओं जैसा व्यवहार भी करते हैं। इन थोड़े ही दिनों में कलीसिया इतनी ज्यादा कैसे बदल गई है?

उत्तर: अब हम जो अनुभव कर रहे हैं, वह एक आध्यात्मिक युद्ध है! मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? दरअसल, हर बार जब अपना कार्य करने के लिए परमेश्वर अवतरण लेकर प्रगट होते हैं, शैतान की दुष्ट शक्तियां कट्टरतापूर्वक उनका विरोध और निंदा करेंगी। इससे स्वाभाविकरूप से आध्यात्मिक युद्ध का मार्ग प्रशस्त होता है। यह धार्मिक समुदाय की असलियत को उजागर करती है और बांटती है। यह वैसा ही है जैसा अनुग्रह के युग के दौरान हुआ था। प्रभु यीशु के पाप से मुक्ति के कार्य ने समस्त यहूदी विश्‍वास में हलचल मचा दी थी। कई लोगों ने प्रभु यीशु का उनके वचनों और कार्यों की वजह से अनुसरण करना शुरू कर दिया। लेकिन यहूदी नेताओं ने क्या किया? जब उन्होंने प्रभु यीशु के वचनों और कार्य के अधिकार और शक्ति देखी, तो वे भयभीत हो गए। क्योंकि वे बहुत स्पष्ट रूप से जानते थे कि यदि उन्होंने प्रभु यीशु को उसी तरह उपदेश देने और अपना कार्य करने दिया, तो, सभी विश्वासी प्रभु यीशु का अनुसरण करेंगे। और यहूदी विश्वास शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा। इसीलिए, यहूदी धर्म को बचाने के लिए और अपनी खुद के रूतबे और रोजीरोटी की सुरक्षा के लिए उन्होंने वह सब कुछ किया जो वे कर सकते थे ताकि विश्वासियों को प्रभु यीशु को स्वीकारने से रोका जा सके। इन परिस्थितियों में, ऐसे लोग जिन्होंने परमेश्वर में विश्वास किया, कई अलग-अलग वर्गों में विभाजित हो गए। कुछ लोगों ने सत्य से घृणा की और परमेश्वर के कार्य का विरोध किया और निंदा की; वे परमेश्वर के शत्रु बन गए उनमें से कुछ में कोई विवेक नहीं था और वे निष्क्रिय प्रेक्षक बन गए। कुछ और लोग भी थे जिन्होंने परमेश्वर की वाणी को सुना और वे उनके कार्य का अध्ययन करने और स्वीकारने में समर्थ थे। ये वे लोग हैं जो सही मायने में परमेश्वर के कार्य का पालन करते हैं। जब धार्मिक समुदाय का परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से सामना होता है, तो उसके पीछे पीछे एक धार्मिक युद्ध अनिवार्य रूप से होगा। स्वाभाविक रूप से विभाजन होंगे। उस समय के प्रभु यीशु के वचनों और कार्य ने यहूदी धर्म के प्रचलित व्‍यवस्‍था को तहस नहस कर दिया था। उन्होंने यहूदी धर्म की असलियत को उजागर किया और बांट दिया। यह कुछ ऐसा है जिसे देखने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

अब हर कोई पहले से ही जानता है कि प्रभु यीशु लौट आए है, और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अवतार है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सभी सत्यों को अभिव्यक्त किया है जिससे मानवता शुद्ध हो सकती है और बच सकती है। उन्‍होंने अपने घर से शुरू कर, न्याय का कार्य किया है, जो धार्मिक संसार में अपनी तरंगों से हलचल मचा देता है। सभी विभिन्न संप्रदायों से कई अच्छी और मुख्य भेड़ें (सदस्‍यगण) देख चुके हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं और शाक्ति व अधिकार रखते हैं। वे सभी परमेश्वर की वाणी को पहचानते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास लौट आए हैं। अब धार्मिक समुदाय में पादरी और एल्डर्स (गुरूजन) आवेश में हैं। वे डरे हुए हैं कि सभी विश्वासीगण सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को देखकर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास लौट जायेंगे। यह उनके अलग-थलग हो जाने का कारण बनेगा। इसीलिए, अपने खुद के रूतबे, रोजीरोटी के बचाव के लिए तथा धार्मिक संसार पर चिरकालिक नियंत्रण के लिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का जोरदार विरोध करने तथा निंदा करने के लिए, एकजुट हो गये हैं। वे विश्वासियों को सत्य के मार्ग को तलाशने और अध्ययन करने से रोकते हैं। इससे एक अन्य युद्ध का मार्ग प्रशस्त होता है। इससे बाइबल की भविष्यवाणियां पूरी तरह से पूरी होती हैं: "यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ; मैं मिलाप कराने नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ" (मत्ती 10:34)। "मैं चरवाहों के विरुद्ध हूँ; और मैं उनसे अपनी भेड़-बकरियों का लेखा लूँगा, और उनको फिर उन्हें चराने न दूँगा; वे फिर अपना अपना पेट भरने न पाएँगे। मैं अपनी भेड़-बकरियाँ उनके मुँह से छुड़ाऊँगा कि आगे को वे उनका आहार न हों" (यहेजकेल 34:10)। इस आध्यात्मिक युद्ध के दौरान हम में से प्रत्येक विश्वासी को एक विकल्प का सामना कराया जायेगा। ऐसे लोग जो परमेश्वर के सत्य और प्रकटीकरण की लालसा करते हैं, उन्‍होंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की खोज तथा अध्ययन करने के माध्यम से परमेश्वर की वाणी सुनी है, और आश्वस्त हो गये हैं कि प्रभु यीशु की वापसी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रकटीकरण है। वे सभी धार्मिक समुदायों की यीशु-विरोधी ताकतों के प्रतिबंधों एवं नियंत्रणों से मुक्त हो गये हैं। शुद्धता और उद्धार को स्वीकारने तथा सिद्ध होने के लिए, उन्हें परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष स्वर्गारोहित किया गया है। ये लोग वे हैं जिन्हें परमेश्वर अंत के दिनों में विजेता बनायेगा। वे लोग जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अस्वीकारने, विरोध करने और निंदा करने में धार्मिक रहनुमाओं का अनुसरण करते हैं, उन कुत्‍तों और जंगली घास के समान है जिन्‍हें परमेश्‍वर अंत के दिनों में निकाल चुके हैं। वे अविश्वासी और यीशु-विरोधी हैं। वे पहले से ही परमेश्वर द्वारा त्यागे जा चुके हैं और अंधकार में गिर गये हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रकटीकरण और कार्य अंत के दिनों में धार्मिक संसार के लिए अत्यधिक सूखा लेकर आया है; हर चीज उजागर हो गई है। आध्यात्मिक युद्ध के दौरान गेहूँ और चारा, भेड़ें और बकरियां, बुद्धिमान और मूर्ख कुँवारियाँ, और अच्छे व बुरे सेवकों को पृथक व वर्गीकृत कर दिया गया है। इससे, हम परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता और उसके कर्मों के आश्चर्य देख सकते हैं।

अब हम सब समझते हैं कि जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अपने अंत के दिनों में न्याय का कार्य किया उन्हें धार्मिक समुदाय में शैतानी सीसीपी शासन और पादरियों एवं एल्डर्स (गुरूजनों) से निरंतर कट्टर प्रतिरोध और क्रूर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा इस भ्रष्ट मानव जाति में ऐसे अधिक लोग नहीं हैं जो वास्तव में सत्य से प्रेम करते हों। सम्‍पूर्ण धार्मिक संसार में भी ऐसे अधिक लोग नहीं हैं जो वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति की कामना करते हैं। इससे प्रभु यीशु की भविष्यवाणी पूर्णत: पूरी होती है: "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। धार्मिक समुदाय में शैतानी सीसीपी और दुष्ट यीशु-विरोधी ताकतें चाहे उन्हें कितना भी सतायें या उनकी निंदा करें, इससे कोई फर्क नहीं पड्ता, परमेश्वर से जो आता है वो अंततः जीतेगा। यह संदेह से परे है! देखो, केवल 20 वर्षों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार पूरे चीन में फैल गया है। यह बहुत पहले इस देश में सामान्‍य ज्ञान बन गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचन - वचन देह में प्रकट होता है - काफी लम्बे समय पहले इंटरनेट पर प्रकाशित किया गया था। प्रत्येक देश और जगह में ज्यादा से ज्यादा लोग जो परमेश्वर के प्रकटीकरण की चाह रखते हैं और सत्य से प्रेम करते हैं अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का अध्ययन करने के लिए ऑनलाइन खोज कर रहे हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य पूर्व से पश्चिम तक चमकती बिजली की तरह हैं। यह प्रभु यीशु के वचनों को पूरा करना है: "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। यह हमें दर्शाता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य अंत के दिनों में परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है, प्रभु यीशु के दूसरे आगमन का कार्य! परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के परिणामों में अधिक से अधिक लो्गों द्वारा स्‍वीकारे जाने, प्रसारित किए जाने और उनके विषय में गवाही दिए जाने से सिर्फ सुधार ही आएगा। समय और तथ्य इस सबको प्रमाणित करेंगे। यह सिर्फ प्रभु यीशु के कार्य की तरह है। शुरूआत में, किसी ने भी नहीं स्वीकारा कि यह परमेश्वर का कार्य था, लेकिन बाद में, जब सुसमाचार फैला, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों ने इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया। अंत के दिनों तक, यह पृथ्वी के छोर तक फैल चुका था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य भी वैसा ही है। अब जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन चारों ओर फैल गए हैं, ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें स्वीकार कर रहे हैं और मान रहे हैं कि वे परमेश्वर के वचन हैं। यह पर्याप्त प्रमाण है कि परमेश्वर के वचन सर्वशक्तिमान है और प्रत्येक वाक्य पूरा किया जायेगा! परमेश्वर के वचन सब कुछ सम्पादित कर सकते हैं!

आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों पर एक नज़र डालें: "मैं पूरे ब्रह्मांड में अपना कार्य कर रहा हूँ, और पूरब से असंख्य गर्जनाएं निरंतर गूँज रही हैं, जो सभी राष्ट्रों और संप्रदायों को झकझोर रही हैं। यह मेरी वाणी है जो सभी मनुष्यों को वर्तमान में लाई है। मैं अपनी वाणी से सभी मनुष्यों को जीत लेता हूँ, उन्हें धारा में बहाता और अपने सामने समर्पण करवाता हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले पूरी पृथ्वी से अपनी महिमा को वापस लेकर इसे नये सिरे से पूरब में जारी किया है। भला कौन मेरी महिमा को देखने के लिए लालायित नहीं है? कौन बेसब्री से मेरे लौटने का इंतज़ार नहीं कर रहा है? किसे मेरे पुनः प्रकटन की प्यास नहीं है? कौन मेरी सुंदरता को देखने के लिए तरस नहीं रहा है? कौन प्रकाश में नहीं आना चाहता? कौन कनान की समृद्धि को नहीं देखना चाहता? किसे उद्धारकर्ता के लौटने की लालसा नहीं है? कौन उसकी आराधना नहीं करता जो सामर्थ्य में महान है? मेरी वाणी पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगी; मैं अपने चुने हुए लोगों के सामने आकर और अधिक वचन बोलूँगा। मैं पूरे ब्रह्मांड के लिए और पूरी मानवजाति के लिए अपने वचन बोलता हूँ, उन शक्तिशाली गर्जनाओं की तरह जो पर्वतों और नदियों को हिला देती हैं। इस प्रकार, मेरे मुँह से निकले वचन मनुष्य का खज़ाना बन गए हैं, और सभी मनुष्य मेरे वचनों को सँजोते हैं। बिजली पूरब से चमकते हुए दूर पश्चिम तक जाती है। मेरे वचन ऐसे हैं कि मनुष्य उन्हें छोड़ना बिलकुल पसंद नहीं करता, पर साथ ही उनकी थाह भी नहीं ले पाता, लेकिन फिर भी उनमें और अधिक आनंदित होता है। सभी मनुष्य खुशी और आनंद से भरे होते हैं और मेरे आने की खुशी मनाते हैं, मानो किसी शिशु का जन्म हुआ हो। अपनी वाणी के माध्यम से मैं सभी मनुष्यों को अपने समक्ष ले आऊँगा। उसके बाद, मैं औपचारिक तौर पर मनुष्य जाति में प्रवेश करूँगा ताकि वे मेरी आराधना करने लगें। मुझमें से झलकती महिमा और मेरे मुँह से निकले वचनों से, मैं ऐसा करूँगा कि सभी मनुष्य मेरे समक्ष आएंगे और देखेंगे कि बिजली पूरब से चमकती है और मैं भी पूरब में 'जैतून के पर्वत' पर अवतरित हो चुका हूँ। वे देखेंगे कि मैं बहुत पहले से पृथ्वी पर मौजूद हूँ, यहूदियों के पुत्र के रूप में नहीं, बल्कि पूरब की बिजली के रूप में। क्योंकि बहुत पहले मेरा पुनरुत्थान हो चुका है, और मैं मनुष्यों के बीच से जा चुका हूँ, और फिर अपनी महिमा के साथ लोगों के बीच पुनः प्रकट हुआ हूँ। मैं वही हूँ जिसकी आराधना असंख्य युगों पहले की गई थी, और मैं वह शिशु भी हूँ जिसे असंख्य युगों पहले इस्राएलियों ने त्याग दिया था। इसके अलावा, मैं वर्तमान युग का संपूर्ण-महिमामय सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ! सभी लोग मेरे सिंहासन के सामने आएँ और मेरे महिमामयी मुखमंडल को देखें, मेरी वाणी सुनें और मेरे कर्मों को देखें। यही मेरी संपूर्ण इच्छा है; यही मेरी योजना का अंत और उसका चरमोत्कर्ष है, यही मेरे प्रबंधन का उद्देश्य भी है : कि सभी राष्ट्र मेरी आराधना करें, हर ज़बान मुझे स्वीकार करे, हर मनुष्य मुझमें आस्था रखे और सभी लोग मेरी अधीनता स्वीकार करें!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सात गर्जनाएँ होती हैं—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा)

जिस किसी ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है, वह स्वीकारता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य, परमेश्वर की वाणी हैं। यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। क्‍योंकि हम प्रभु में विश्वास करते हैं और प्रभु का अनुसरण करते हैं, इसीलिए हमें प्रभु यीशु की वापसी को स्वीकार करना चाहिए। इसका अर्थ ऐसा व्यक्ति बनना है जो मेम्ने के पदचिन्हों का अनुसरण करता है। यदि लोग प्रभु के लौटने को स्वीकारते और मानते नहीं हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे चाहे कितने ही समय से उनमें विश्वास कर रहे हों, वे प्रभु द्वारा त्याग दिए जायेंगे। प्रभु यीशु की वापसी वास्तव में लोगों को प्रकट करेगी। केवल वे जो दूल्हे की आवाज सुनती हैं और इसे स्वीकार कर सकती हैं, बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं। केवल वे लोग जो मेम्ने के विवाह भोज में सम्मिलित होते हैं, परमेश्वर की स्वीकृति पाने, शुद्ध होने और मसीहा के राज्य में प्रवेश पाने का अवसर रखते हैं। यदि लोग केवल प्रभु यीशु के नाम में विश्वास करते हैं, उनकी वापसी को स्वीकार नहीं करते, और उस सत्य को नहीं स्वीकारते जिसे अंत के दिनों का मसीहा अभिव्यक्त करता है, तो प्रभु यीशु उन्हें कैसे स्वीकार कर सकते हैं? प्रभु यीशु निश्चित रूप से उनकी निंदा करेंगे और कहेंगे, "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:23)। वे ठीक वैसे ही हैं जैसे फरीसी होते थे; वे केवल यहोवा में विश्वास करते थे, और उन्होंने अवतरित प्रभु यीशु को नहीं स्वीकारा; बल्कि कट्टरतापूर्वक प्रभु यीशु के विरोध करने तथा निंदा करने को चुना। क्या परमेश्वर में उनके विश्वास ने उनकी स्वीकृति अर्जित की? न केवल वे परमेश्वर द्वारा स्वीकृत नहीं किये गये, बल्कि वे उनके द्वारा श्रापित और दण्डित भी किये गये। इसीलिए, वे लोग जो केवल नाम के लिए प्रभु में विश्वास रखते हैं, वे जो स्वर्ग में अज्ञात परमेश्वर में विश्वास रखते हैं लेकिन अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का पालन नहीं करते, और अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, द्वारा अभिव्यक्त सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, वे ठीक फरीसियों की तरह हैं। वे दोनों ही केवल नाम के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं, यथार्थ में परमेश्वर का विरोध करते हैं और उन्‍हें धोखा देते हैं। परमेश्वर द्वारा उन सभी को अवश्य त्याग दिया जाना चाहिए। प्रभु यीशु की वापसी सभी लोगों की असलियत को उजागर करेगी। यह कुछ ऐसा है जिसे हमें स्पष्ट रूप से समझना चाहिए!

"परमेश्वर में आस्था" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 1: बाइबल में, पौलुस ने कहा है कि हमें अधिकारियों की आज्ञा माननी चाहिए। अगर हम पौलुस के शब्दों को व्‍यवहार में लाते हैं, तो हमें सत्तारूढ़ शासन की बात हमेशा सुननी चाहिए। परन्तु नास्तिक सीसीपी हमेशा धार्मिक लोगों को सताती है और परमेश्वर के शत्रु के रूप में काम करती है। सीसीपी न केवल हमें प्रभु में विश्वास करने से रोकती है, वह उन लोगों को भी पकड़ती और सताती है जो परमेश्वर का सुसमाचार फैलाते हैँ। अगर हम इसका आज्ञापालन करते हैं और प्रभु में विश्वास नहीं करते हैं या उनका सुसमाचार नहीं फैलाते हैं, तो क्या हम प्रभु का विरोध करने और उनके साथ विश्वासघात करने में शैतान का पक्ष नहीं ले रहे हैं? क्या हम तब वह नहीं बन जायेंगे जिनके भाग्य में मरना लिखा है? मैं वास्तव में यह समझ नहीं पा रहा हूँ। जब बात यह आती है कि हम सत्‍ताधारियों के साथ कैसा व्यवहार करें, हमें ऐसा क्या करना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो कि हम परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हैं?

अगला: प्रश्न 3: जब से हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अध्ययन शुरू किया है, धार्मिक पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अधिक व्यग्रता से निंदा करने लगे हैं, हमें सच्चे मार्ग का अध्ययन करने से रोकने के लिए जो भी हो सके सब करते हुए। यहूदी फरीसियों ने प्रभु यीशु का जैसा विरोध और निंदा की थी, उससे बिल्कुल भी अलग नहीं! इन दिनों मैं सोचता रहा हूँ कि, परमेश्वर ने कार्य करने के लिए दो बार देहधारण क्यों किया, और दो बार धार्मिक समुदाय और नास्तिक सरकार द्वारा सामूहिक निंदा और उत्पीड़न क्यों झेला? अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए, बोल कर और कार्य कर सत्य व्यक्त करने के लिए प्रकट होते और कार्य करते हैं। धार्मिक समुदाय और चीन की कम्युनिस्ट सरकार मसीह के विरुद्ध इतनी विद्वेषपूर्ण क्यों है कि वे मसीह की निंदा और तिरस्‍कार और ईशनिंदा करने, उनको घेरने और नष्ट कर देने के लिए मीडिया कंपनियों और सशक्त पुलिस बल तक को जुटा लेते हैं? यह मुझे याद दिलाता है कि जब राजा हेरोदस ने सुना कि यहूदियों के राजा यानी प्रभु यीशु का जन्म हुआ है, तब उसने बैतलहम में दो वर्ष से छोटे सभी नर शिशुओं की हत्या का आदेश दे दिया। उन्हें मसीह को छोड़ने की बजाय हज़ारों मासूम बच्चों की हत्या अधिक जंच रही थी। जब परमेश्वर मानवजाति के उद्धार के लिए देहधारी हुए, तो धार्मिक समुदाय और सरकार ने उनके आने का स्वागत क्यों नहीं किया, लेकिन व्यग्रता के साथ परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा की और उनको गाली दी? उन्होंने किसी भी कीमत पर मसीह को सूली पर चढ़ा देने के लिए पूरे देश के संसाधनों को क्यों जाया कर दिया? मानवजाति क्यों इतनी दुष्ट और विद्वेषपूर्ण ढंग से परमेश्वर के विरुद्ध है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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