प्रश्न 2: इन दिनों आपकी सहभागिता और गवाही को सुनकर, मुझे यह स्पष्ट हो गया है कि अंत के दिनों में प्रभु का दूसरा आगमन, यहाँ न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण है। लेकिन हम देह धारण के सत्य को नहीं समझते हैं और इसलिए आसानी से सीसीपी सरकार तथा धार्मिक संसार के पादरियों और एल्डर्स की अफवाहों और झूठों से छले जाते हैं। नतीजतन, हम देहधारी परमेश्वर को सिर्फ़ एक मनुष्य समझ लेते हैं और यहाँ तक कि उनका विरोध और तिरस्कार भी करते हैं। इसलिए, मैं देह धारण के सत्य के बारे में आप लोगों से पूछना चाहता हूँ। देह धारण क्या है? देहधारी मसीह और परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों के बीच क्या अंतर है?
उत्तर: देह धारण क्या है और मसीह क्या है, इस सवाल पर आप लोग कह सकते हैं कि यह सत्य का एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई भी विश्वासी नहीं समझता। हालांकि विश्वासियों ने हज़ारों सालों से यह जाना है कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर हैं, देह धारण और देह धारण के वास्तविक सार को कोई भी नहीं समझता। सिर्फ़ अब जबकि अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ गए हैं, सत्य के रहस्य का यह पहलू लोगों के बीच प्रकट हुआ है। आइये देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर इसके बारे में क्या कहते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "'देहधारण' परमेश्वर का देह में प्रकट होना है; परमेश्वर सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, सबसे पहले देह बनना होता है, सामान्य मानवता वाला देह; यह सबसे मौलिक आवश्यकता है। वास्तव में, परमेश्वर के देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, वह मनुष्य बन जाता है।" "सामान्य मानवता वाला मसीह ऐसा देह है जिसमें आत्मा साकार हुआ है, जिसमें सामान्य मानवता है, सामान्य बोध है और मानवीय विचार हैं। 'साकार होने' का अर्थ है परमेश्वर का मानव बनना, आत्मा का देह बनना; इसे और स्पष्ट रूप से कहें, तो यह तब होता है जब स्वयं परमेश्वर सामान्य मानवता वाले देह में वास करके उसके माध्यम से अपने दिव्य कार्य को व्यक्त करता है—यही साकार होने या देहधारी होने का अर्थ है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार)।
"देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है और मसीह परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की गई देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है; वह आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियां बनाए रखती है, जबकि उसकी दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य अभ्यास में लाती है। चाहे यह उसकी मानवता हो या दिव्यता, दोनों स्वर्गिक परमपिता की इच्छा को समर्पित हैं। मसीह का सार पवित्र आत्मा, यानी दिव्यता है। इसलिए, उसका सार स्वयं परमेश्वर का है; यह सार उसके स्वयं के कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं करेगा और वह संभवतः कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता, जो उसके स्वयं के कार्य को नष्ट करता हो, न ही वह ऐसे वचन कहेगा, जो उसकी स्वयं की इच्छा के विरुद्ध जाते हों" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से, यह स्पष्ट है कि देह धारण का मतलब है कि परमेश्वर की आत्मा देह रूप में साकार हुई है। परमेश्वर के आत्मा ने शरीर रूपी वस्त्र को धारण किया है और वह एक साधारण मनुष्य का पुत्र बना है ताकि उनके वचन और कार्यों को पृथ्वी पर लाया जा सके और मनुष्य के बीच प्रकट किया जा सके। जिसका मतलब यह है कि स्वर्ग के परमेश्वर मानव संसार के भीतर, वचन बोलने, अपना कार्य करने और मनुष्य को छुटकारा दिलाने और बचाने के लिए मानव संसार के भीतर मनुष्य बने हैं। उनमें सामान्य मानवता और पूर्ण दिव्यता दोनों है। सिर्फ़ अपने प्रकटन से, परमेश्वर का देह धारण ठीक एक साधारण और सामान्य मनुष्य की तरह प्रतीत होता है। किसी सी अन्य सामान्य मनुष्य की तरह उनके पास जीवन के वही नियम हैं और वे उन्हीं गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। उनके पास किसी भी अन्य सामान्य मनुष्य जैसी ही भावनाएं हैं: वे मनुष्य के साथ व्यावहारिक ढंग से और वास्तविक रूप से रहते हैं। अपने बाहरी स्वरूप से, वे किसी भी अन्य व्यक्ति से अलग नहीं दिखते हैं। लेकिन देहधारी परमेश्वर का सच्चा सार उनकी दिव्यता है। वे परमेश्वर के स्वभाव, परमेश्वर के अस्तित्व को व्यक्त कर सकते हैं। वे मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुसार, सत्य को व्यक्त कर सकते हैं ताकि किसी भी समय और किसी भी स्थान पर मनुष्य को जीवन की आपूर्ति की जा सके और उसे बचाया जा सके। वे स्वयं परमेश्वर का कार्य कर सकते हैं, जो पूरी सृष्टि में कोई अन्य कर पाने में सक्षम नहीं है। हम सब जानते हैं कि प्रभु यीशु परमेश्वर का देह धारण हैं, मसीह हैं। अपने बाहरी स्वरूप में, वे ठीक हमारी तरह, ठीक एक साधारण और सामान्य मनुष्य की तरह दिखते हैं। फिर भी, प्रभु यीशु सत्य को व्यक्त कर सकते हैं और मनुष्य को पश्चाताप का मार्ग प्रदान कर सकते हैं। उनके पास मनुष्य के पापों को क्षमा करने और मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करने के लिए सूली पर चढ़ जाने का अधिकार है। कोई भी मनुष्य ऐसा करने में सक्षम नहीं है। प्रभु यीशु संकेत और चमत्कार भी दिखा सकते हैं। वे हवाओं और समुद्र को शांत कर सकते हैं, रोटी के सिर्फ़ पाँच टुकड़ों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को खिला सकते हैं, और मरे हुए को पुनर्जीवित कर सकते हैं। प्रभु यीशु उपदेश देने के लिए काफ़ी दूर-दूर तक भी गए। मनुष्य की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार, उन्होंने जीवन की आपूर्ति करने के लिए सत्य को व्यक्त किया और किसी भी समय और स्थान पर मनुष्य की अगुवाई की, जिससे मनुष्य यह समझ पाया कि कैसे उनके वचन और कार्य वास्तविक और व्यावहारिक परमेश्वर के कार्य थे। प्रभु यीशु के वचन और कार्य परमेश्वर के जीवन स्वभाव और परमेश्वर के अस्तित्व की अभिव्यक्ति हैं। किसी भी सृजित मनुष्य में यह गुण नहीं है और कोई भी ऐसी उपलब्धियों को हासिल कर पाने में समर्थ नहीं है। यह इस बात का प्रमाण है कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर हैं। हालांकि उनमें सामान्य मानवता है, मगर उनका सार दिव्य है। इस तरह, वे सत्य और परमेश्वर की वाणी को व्यक्त कर पाने में सक्षम हैं। वे परमेश्वर का कार्य करने के लिए परमेश्वर की तरह कार्य कर सकते हैं। इसलिये अगर हम सिर्फ़ मसीह की सामान्य मानवता को ही देखें, तो हम उनको एक साधारण व्यक्ति की तरह ही समझेंगे; लेकिन अगर हमें यह पता चल जाये कि मसीह जो कुछ भी कहते हैं वह सत्य है, और जो कुछ भी वे व्यक्त करते हैं, वह परमेश्वर का स्वभाव और परमेश्वर का अस्तित्व है, तथा अगर हम उनके देह रूप में भी परमेश्वर के कार्यों को देखें तो ही, हम उस स्तर पर पहुंचते हैं जिस स्तर पर हमें मसीह के दिव्य सार का पता चल पाता है।
मसीह के दिव्य सार को जानना हम विश्वासियों के लिए महत्वपूर्ण है! अगर हम मसीह के दिव्य सार को नहीं समझते हैं, तो हम मसीह को एक साधारण मनुष्य समझेंगे और उन पैगंबरों और प्रेरितों को भी स्वयं परमेश्वर समझेंगे जिनका इस्तेमाल परमेश्वर करते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है! तो अब हम मसीह और परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किये गए प्रेरितों एवं पैगंबरों के बीच के अंतर के बारे में संवाद करते हैं। हर कोई जानता है कि बाहरी स्वरूप में, देहधारी परमेश्वर में सामान्य मानवता है और वे एक साधारण एवं सामान्य मनुष्य हैं, लेकिन वास्तविकता में, वे शरीर रूप में साकार हुई परमेश्वर की आत्मा हैं, उनका सार दिव्य है। यही कारण है कि वे स्वयं परमेश्वर का कार्य करने, सत्य को व्यक्त करने में सक्षम हैं, वे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर परमेश्वर के स्वभाव, और मानवजाति के प्रति उनकी इच्छा और मांगों को व्यक्त करने में सक्षम हैं। वे मनुष्य को परखने, उजागर करने और यहाँ तक कि शापित करने में भी सक्षम हैं, ठीक उसी तरह जैसे वे मनुष्य के छुटकारे, शुद्धिकरण और बचाव का काम कर सकते हैं। भविष्यद्वक्ता और प्रेरित ऐसे लोग हैं जिनका परमेश्वर इस्तेमाल करते हैं। उनमें सिर्फ़ सामान्य मानवता होती है, लेकिन उनमें परमेश्वर का दिव्य सार नहीं होता है। इस तरह, वे सिर्फ़ मनुष्य का कार्य कर पाने में सक्षम हैं। परमेश्वर की प्रबंधन योजना में, वे मनुष्य के कर्तव्यों को पूरा करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। उनमें से कोई भी सत्य को व्यक्त नहीं कर सकता, स्वयं परमेश्वर का कार्य तो वे बिलकुल भी नहीं कर सकते। हालांकि उनके संवादों में पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और प्रकाश निहित है और वे सत्य के अनुरूप हैं, लेकिन वे अपने आप में सत्य नहीं हैं, बल्कि वे सिर्फ़ परमेश्वर के वचन की उनकी खुद की समझ और अनुभव की अभिव्यक्ति हैं। अगर हम अनुग्रह के युग के प्रेरितों पर विचार करें, उनके सभी संवाद मुख्य रूप से प्रभु यीशु के वचनों और कार्य की उनकी अपनी समझ और अनुभव की अभिव्यक्ति थे, उन्होंने परमेश्वर के कार्य को अनुभव करने की गवाही प्रस्तुत की। जब हम प्रेरितों के काव्यपत्रों को देखते हैं, तो हम यह समझ सकते हैं कि वे साफ़ तौर पर मनुष्य के द्वारा लिखे गए थे, वे उनके अपने अनुभवों और गवाही के प्रवचन हैं। इन काव्यपत्रों का कोई भी शब्द उस सत्य से युक्त नहीं है जो परमेश्वर व्यक्त करते हैं। इन काव्यपत्रों के किसी भी शब्द में प्रभु यीशु के वचन का अधिकार और सामर्थ्य नहीं है। जैसा कि हम देख सकते हैं, प्रेरितों के शब्द और प्रभु यीशु के वचन में बहुत फर्क है, हम उन्हें एक ही रोशनी में नहीं देख सकते। वास्तव में, जब भविष्यद्वक्ता परमेश्वर के वचन बोलते हैं, वे ऐसा सिर्फ़ इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें परमेश्वर द्वारा उनके वचन व्यक्त करने का आदेश दिया गया है। भविष्यद्वक्ता परमेश्वर की पहचान का उपयोग करके परमेश्वर का वचन व्यक्त नहीं कर सकते, वे प्रथम पुरुष में नहीं बोल सकते। वे अपनी इच्छा से सत्य को व्यक्त करने में भी असमर्थ हैं। इसका कारण यह है कि वे सिर्फ़ मनुष्य हैं जिनका परमेश्वर इस्तेमाल करते हैं, वे स्वयं परमेश्वर नहीं हैं। वे सिर्फ़ परमेश्वर का वचन बता रहे हैं और वे जो कुछ बताने में सक्षम हैं, वह बहुत ही सीमित है। इसलिए, जब भविष्यद्वक्ता परमेश्वर के वचन बोलते हैं, तो वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वे परमेश्वर का वचन बोल रहे हैं, यह उनका अपना शब्द नहीं है। इन सबसे यह साबित होता है कि भविष्यद्वक्ता और प्रेरित सिर्फ़ मनुष्य हैं जिनका परमेश्वर इस्तेमाल करते हैं, वे परमेश्वर का देह धारण नहीं हैं। परमेश्वर के देह धारण को परमेश्वर कहा जा सकता है क्योंकि उनमें दिव्य सार मौजूद है। भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों में सिर्फ़ मानवता है। उनमें दिव्य सार की कमी है, इस तरह, उन्हें सिर्फ़ मनुष्य माना जा सकता है। यही देहधारी परमेश्वर और भविष्यद्वक्ता्ओं एवं प्रेरितों के बीच सार का अंतर है।
"भक्ति का भेद—भाग 2" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश