प्रश्न 3: लेकिन प्रभु यीशु, जिनमें हम विश्वास करते हैं, वे देहधारी परमेश्वर हैं। प्रभु यीशु ने परमेश्वर का छुटकारे का कार्य पूरा किया, कोई भी इससे इनकार करने की हिम्मत नहीं करता, लेकिन ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर जिनमें आप लोग विश्वास करते हैं, अनिवार्य रूप से परमेश्वर का देह धारण नहीं हैं, क्योंकि बाइबल में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कोई भी उल्लेख नहीं है। तो इसलिए, धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि आप लोग जिनमें विश्वास करते हैं, वे सिर्फ़ एक मनुष्य हैं, यह कि आप लोगों को मूर्ख बनाया गया है। सिर्फ़ प्रभु यीशु, जिनमें हम विश्वास करते हैं, वे ही मसीह हैं, परमेश्वर के पुत्र हैं! आप लोग जिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे सिर्फ़ एक मनुष्य हैं, यह अन्यथा कैसे हो सकता है?
उत्तर: परमेश्वर के देह धारण के रूप में प्रभु यीशु में आप लोगों का विश्वास झूठा नहीं है। लेकिन आप लोग प्रभु यीशु में विश्वास क्यों करते हैं? क्या आप लोगों को सचमुच लगता है कि प्रभु यीशु परमेश्वर हैं? आप लोग बाइबल में दर्ज़ बातों के कारण और पवित्र आत्मा के कार्य के कारण प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं। लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप लोग क्या कहते हैं, अगर आप लोगों ने प्रभु यीशु को आमने-सामने नहीं देखा है, तो क्या आप सचमुच यह कहने की हिम्मत करते हैं कि आप लोग प्रभु यीशु को जानते हैं? प्रभु में अपने विश्वास में, आप लोग सिर्फ़ पतरस के शब्दों को प्रतिध्वनित करते हैं, जिन्होंने कहा कि प्रभु यीशु ही मसीह हैं, जीवित परमेश्वर के पुत्र हैं, लेकिन क्या आप लोग यह मानते हैं कि प्रभु यीशु परमेश्वर का स्वरूप हैं, स्वयं परमेश्वर हैं? क्या आप यह कहने की हिम्मत करते हैं कि आप लोग प्रभु यीशु के दिव्य सार को जानते हैं? क्या आप इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि अगर प्रभु यीशु सत्य को व्यक्त करने के लिए फिर से आते, तो आप लोग उनकी वाणी को पहचान जाते? प्रभु यीशु में आप लोगों का विश्वास सिर्फ़ इन शब्दों "प्रभु यीशु" में विश्वास से ज्यादा कुछ भी नहीं है। आप लोग सिर्फ़ उनके नाम में विश्वास करते हैं। आप लोगों लोगों को प्रभु यीशु के दिव्य सार की समझ नहीं है। अगर आप लोगों को यह समझ है, तो आप लोग परमात्मा की वाणी को कैसे नहीं पहचान पाते हैं? आप लोग यह स्वीकार क्यों नहीं करते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो सत्य व्यक्त करते हैं वह परमेश्वर की ओर से आता है और वह पवित्र आत्मा के वचन और वाणी है? आज मैंने जो कुछ भी देखा है, उससे आप लोग परमेश्वर की वाणी को कैसे अस्वीकार कर सकते हैं और परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये जाने वाले सत्य से कैसे इनकार कर सकते हैं, मुझे पूरा यकीन है कि आप लोग देहधारी परमेश्वर को नहीं जानते हैं। अगर आप लोगों का जन्म दो हज़ार वर्ष पहले, उस युग में हुआ होता जब प्रभु यीशु उपदेश दे रहे थे और अपना कार्य कर रहे थे, तो आप लोग निश्चित रूप से प्रभु यीशु की निंदा करने में यहूदी प्रधान पादरियों, लेखकों और फरीसियों में शामिल हो जाते। क्या ऐसा नहीं है? यहूदी प्रधान पादरियों, लेखकों और फरीसियों ने कई वर्षों से एकमात्र परमेश्वर में विश्वास किया था, लेकिन ऐसा क्यों है कि वे प्रभु यीशु को नहीं पहचान पाये? उन्होंने उनको क्रूस पर क्यों चढ़ा दिया? मामला क्या था? ऐसा क्यों है कि अंत के दिनों में धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर्स पवित्र आत्मा की वाणी को नहीं सुन पाये? फिर भी वे अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य की निंदा क्यों करते हैं? मैं आप लोगों से पूछना चाहूँगा: क्या वह जो परमेश्वर में विश्वास करता है लेकिन देहधारी परमेश्वर को स्वीकार नहीं करता है, एक मसीह-विरोधी नहीं है? यहूदी नेताओं ने देहधारी परमेश्वर, प्रभु यीशु का विरोध किया और उनकी निंदा की। वे सभी मसीह-विरोधी थे जिनका खुलासा परमेश्वर के कार्य से हुआ। जहाँ तक अंत के दिनों में धार्मिक संसार के पादरियों और एल्डर्स की बात है, जो देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और उनकी निंदा करते हैं, क्या वे भी ऐसे मसीह विरोधी नहीं हैं जिनका खुलासा परमेश्वर के कार्य से हुआ? हम सब सीधे तौर पर यह समझ सकते हैं कि धार्मिक संसार के ज्यादातर पादरी और एल्डर्स अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा करते हैं, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की सच्चाई को देखे बिना ही देखते हैं, वे उनके वचनों के सत्य को सुने बिना ही सुनते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति के शुद्धिकरण और बचाव के लिए सभी सत्य व्यक्त किये हैं। उन्होंने मानवजाति को जीता, बचाया और विजेताओं का एक समूह बनाया है। राज्य का सुसमाचार पूरी दुनिया में फ़ैल रहा है, यह अनवरत है! क्या धार्मिक संसार के पादरियों और नेताओं ने संभवतः परमेश्वर के कार्य के तथ्यों को नहीं देखा होगा? फिर भी वे ऐसी बेतुकी बात कैसे कह सकते हैं, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना एक मनुष्य में विश्वास करना है"? इस पर विचार करते हुए, मुझे तत्काल यह बात याद आती है कि कैसे जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आये थे, तो यहूदी प्रधान पादरियों, लेखकों और फरीसियों ने उनका विरोध, निंदा और तिरस्कार किया था। क्या उन्होंने यह नहीं कहा था कि प्रभु यीशु में विश्वास करना सिर्फ़ एक मनुष्य में विश्वास करना था? यहाँ समस्या क्या है? इससे यह पता चलता है कि ऐसे कई लोग हैं जो ऊंचे स्वर्ग के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें देहधारी परमेश्वर की जानकारी है। प्रभु यीशु ने उन फरीसियों की निंदा क्यों की थी जिन्होंने उनका विरोध किया था? क्योंकि वे सिर्फ़ ऊंचे स्वर्ग के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करते थे, लेकिन देहधारी परमेश्वर की निंदा की थी और उनका विरोध किया था।
प्रधान पादरियों, लेखकों और फरीसियों ने प्रभु यीशु के वचनों और कार्य के अधिकार और सामर्थ्य को स्पष्ट रूप से देखा था। फिर भी वे ढिठाई से प्रभु यीशु का विरोध, निंदा और तिरस्कार कैसे कर सके थे? उन्होंने कहा कि वे शैतानों के प्रधान, बालज़बूब के जरिए शैतानों को बाहर करते थे, और उनका उद्देश्य मनुष्य को धोखा देना था, और यहाँ तक कि उन्हें जीवित ही सूली पर चढ़ा दिया, इससे क्या पता चलता है? क्या यह सब इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने प्रभु यीशु को एक सामान्य मनुष्य के रूप में देखा और यह सब कर डाला? जैसा कि उन्होंने कहा था, "क्या वह एक बढ़ई का बेटा, नासरी नहीं है?" फरीसियों की अवधारणा में, देहधारी परमेश्वर के शरीर में अलौकिक गुण होने चाहिए। उन्हें एक विशाल कद-काठी और शक्तिशाली डील-डौल वाला होना चाहिए, वे एक नायक के गुणों और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले होना चाहिए। उनके वचनों में दुनिया को हिलाकर रख देने वाली और गगनभेदी झंकार होनी चाहिए, उन्हें मनुष्य के मन में भय पैदा करना चाहिए, ताकि कोई भी उन पर पहुँचने का साहस न कर सके। अन्यथा, उन्हें परमेश्वर नहीं माना जा सकता। असल में, उन्हें इस बात की ज़रा सी भी समझ नहीं थी कि देह धारण का क्या मतलब है और उन्होंने प्रभु यीशु के वचन की खोज नहीं की और सत्य के लिए काम नहीं किया, जिससे कि परमेश्वर के स्वभाव और परमेश्वर के अस्तित्व की खोज की जा सके। उन्होंने प्रभु यीशु को एक साधारण मनुष्य की तरह समझा, अपनी कल्पनाओं और अवधारणाओं के आधार पर उनका आकलन और तिरस्कार किया। इससे यह साबित होता है कि परमेश्वर में विश्वास करते हुए, वे उन्हें नहीं जानते थे और यहाँ तक कि उनका विरोध भी करते थे। अब, धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि जिस पर हम विश्वास करते हैं वह केवल मनुष्य है। यह उससे अलग नहीं है जिस तरह यहूदी प्रधान पादरियों, लेखकों और फरीसियों ने प्रभु यीशु के अनुयायियों की निंदा की थी। जैसा कि आप लोग देख सकते हैं, धार्मिक संसार के अधिकांश पादरी और एल्डर्स पूर्व के ढोंगी फरीसियों से अलग नहीं हैं, वे सभी परमेश्वर में विश्वास करने के साथ-साथ उनका विरोध भी करते हैं। वे लोग नीच हैं जो सिर्फ़ ऊंचे स्वर्ग के अस्पष्ट परमेश्वर को स्वीकार करते हैं जबकि स्वयं मसीह को नकार देते हैं! उन्हें मसीह को स्वीकार करने और उनका आज्ञापालन करने वालों की निंदा करने का क्या अधिकार है?
अंत के दिनों में, परमेश्वर एक बार फिर से देह धारण करके अपने वचन अभिव्यक्त करने और अपना कार्य करने मनुष्यों के बीच आए हैं। इस बार वे देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में आये हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, अपने बाहरी स्वरूप से बिलकुल एक साधारण मनुष्य की तरह लगते हैं, वे व्यावहारिक रूप से मनुष्यों के साथ रहते हैं, उनके बीच रहते हैं, और उनके जीवन में हिस्सा लेते हैं। वे मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुसार सत्य को व्यक्त करते हैं और परमेश्वर के लोगों से शुरू करते हुए न्याय का कार्य करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्यों को अनुभव करने में, हमने खुद अपने कानों से सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुना है। हमने उन्हें अपनी आँखों से परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्यों पर से परदा हटाते देखा है, यह मनुष्यजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के तीन चरणों के कार्य की अंदरूनी कहानी है, इसमें परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य, देह धारण के रहस्य, कैसे शैतान मनुष्यजाति को भ्रष्ट करता है, शैतान के द्वारा मनुष्य के भ्रष्टाचार के सार और सत्य, कैसे परमेश्वर मनुष्य के शुद्धिकरण, बचाव और पूर्ण करने का काम करते हैं, परमेश्वर के न्याय के कार्य का अर्थ और उद्देश्य, किन लोगों को परमेश्वर प्रेम करते हैं और किन लोगों को शाप देते हैं, किन लोगों को बचाया जाएगा और किन लोगों को नष्ट किया जाएगा, मनुष्य के गंतव्य, सभी प्रकार के मनुष्यों के अंत, और कैसे परमेश्वर का राज्य इस धरती पर आयेगा, आदि के बारे में बताया गया है। इन सत्यों को व्यक्त करते हुए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य के शैतानी स्वभाव और परमेश्वर के प्रति विरोध की उसकी प्रकृति तथा सार को भी परखते और उजागर करते हैं। इससे शैतान के द्वारा हमें पूरी तरह से भ्रष्ट किये जाने की सच्चाई और सार को समझने में मदद मिलती है, हम यह समझ पाते हैं कि हम कितने अभिमानी और आत्ममुग्ध, कितने विश्वासघाती और स्वार्थी बन गए हैं, कैसे हममें इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं है, कैसे हम परमेश्वर के समक्ष निरर्थक होकर जी रहे हैं। और तब भी परमेश्वर ने देह धारण की, लालची और भ्रष्ट लोगों के बीच शांति से अपनी पहचान छिपाकर रहे, मनुष्य को परखने, उजागर करने और बचाने के लिए सत्य को अभिव्यक्त करते रहे। हमने हृदय की गहराइयों से महसूस किया है कि परमेश्वर के जीवन का सार कितना दयालु और आदरणीय है। मनुष्यजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा है! वचन के द्वारा परमेश्वर के न्याय को अनुभव करने में, हम परमेश्वर के धार्मिक, पवित्र और अपमान-अयोग्य स्वभाव से अच्छी तरह परिचित हुए, हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के अधिकार और सामर्थ्य को महसूस किया। अनजाने में, परमेश्वर के प्रति हमारे दिलों में श्रद्धा बढ़ गई, हमने सत्य की खोज करना शुरू कर दिया, और हमारा जीवन स्वभाव बदलने लगा। ठीक इसी समय हमने वास्तव में यह जाना कि देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने हमारे शुद्धिकरण और बचाव के लिए सभी सत्य व्यक्त किये हैं, इससे हम अपने अहंकार, विश्वासघात और हमारे शैतानी स्वभाव से छुटकारा पाने और एक ईमानदार व्यक्ति की तरह जीवन जीने में सक्षम हुए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कलीसियाओं में घूमते हुए, हमारे बीच रहते हैं। बाहरी स्वरूप से, वे सिर्फ़ एक साधारण मनुष्य हैं, फिर भी वे सत्य को व्यक्त करते हैं और परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव तथा परमेश्वर के अस्तित्व को स्पष्ट करते हैं। जिन लोगों ने उनका अनुसरण किया और उनके कार्यों को अनुभव किया, उन्हें सत्य, मार्ग और जीवन मिला। वे समझते हैं कि परमेश्वर के कार्य करने का तरीका कितना व्यावहारिक और बुद्धिमान है। वे समझते हैं कि परमेश्वर कितने विनम्र और अप्रत्यक्ष हैं, वे कितने प्यारे हैं, परमेश्वर में कोई अहंकार नहीं है, परमेश्वर का स्वभाव भ्रष्ट नहीं है। तर्कसंगत तो यह होता कि परमेश्वर जो सर्वोच्च हैं, वे अपने आपको काफ़ी ऊंचे और शक्तिशाली डील-डौल वाले व्यक्ति के रूप में दिखाते, जिनका शरीर ऐसा होता कि मनुष्य उनकी आराधना करने पर मजबूर हो जाता। मगर परमेश्वर ने ऐसा नहीं किया। भ्रष्ट मनुष्य को बचाने के लिए, परमेश्वर ने अपने आपको एक साधारण शरीर में दिखाया, उन्होंने एक साधारण मनुष्य का स्वरूप लिया और हम भ्रष्ट मनुष्यों के साथ रहने आ गये। वे वचन बोलते हैं, न्याय करते हैं और हमारी आवश्यकताओं के अनुसार हमें आपूर्ति करते हैं। परमेश्वर ने एक मामूली व्यक्ति के रूप में देह धारण की और वे पहले से ही बहुत अपमान और पीड़ा सहन कर चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने भ्रष्ट मनुष्यों द्वारा बदनामी, निंदा और अस्वीकार के साथ-साथ सीसीपी सरकार द्वारा तलाशी और उत्पीड़न का भी सामना किया है, और तब भी, परमेश्वर सत्य को व्यक्त करने और मानवजाति को बचाने के कार्य को पूरा करने की इच्छा की अथाह शक्ति के साथ अपने मार्ग पर डटे हुये हैं। मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर ने अविश्वसनीय पीड़ा का सामना किया! मानवजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम बहुत ही सच्चा है! इससे, हमें पता चलता है कि परमेश्वर पवित्र और महान हैं। उनका वर्णन शब्दों से परे है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमें परमेश्वर के करीब लाते हैं, वे हमें परमेश्वर के आमने-सामने लाकर खड़ा कर देते हैं, ताकि हम उन्हें देख सकें, जान सकें, और उनसे सच्चा प्रेम कर सकें, और ऐसा करने में, हम परमेश्वर की पूर्णता प्राप्त कर सकेंगे, ताकि हम सचमुच परमेश्वर की आराधना और उनका आज्ञापालन कर सकें। हम सभी ने अपने दिलों में यह स्वीकार किया है कि जिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर हम विश्वास करते हैं, वे शरीर रूप में लौटे प्रभु यीशु हैं। वे मनुष्य हैं, लेकिन परमेश्वर भी हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर एकमात्र परमेश्वर हैं, स्वर्ग, पृथ्वी और सारी चीज़ों के रचयिता! धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर्स यह सोचकर हमारी निंदा करते हैं कि हम सिर्फ़ एक मनुष्य में विश्वास करते हैं। अब मैं आपसे पूछता हूँ: पूरी मानवजाति में ऐसा कौन है जो सत्य और परमेश्वर की वाणी को अभिव्यक्त करने में सक्षम है? मनुष्यों में कौन ऐसा है जो इतने व्यावहारिक रूप से मानवजाति के शुद्धिकरण और बचाव का कार्य कर सकता है? मनुष्यों में कौन ऐसा है जो परमेश्वर के कार्य को अनुभव करके भ्रष्ट मनुष्य को परमेश्वर के सच्चे जानकार और आज्ञा पालन करने वाले में बदलने की गुंजाइश दे सकता है? कोई भी नहीं, एक भी नहीं! सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही इस तरह के व्यावहारिक कार्य को पूरा करने में सक्षम हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, संसार के उद्धारकर्ता का स्वरूप हैं। वे व्यावहारिक देहधारी परमेश्वर हैं। सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही मानवजाति को बचा सकते हैं और मानवजाति को एक बेहतर मंज़िल प्रदान कर सकते हैं!
"भक्ति का भेद - भाग 2" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश