82. पूछताछ-कक्ष की यातना

शाओ मिन, चीन

2012 में सुसमाचार के प्रचार के दौरान मुझे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने गिरफ्तार कर लिया। 13 सितंबर की शाम को मैं हमेशा की तरह अपने घर वापस लौटी, बाहर अपना इलेक्ट्रिक स्‍कूटर खड़ा किया और घंटी का बटन दबाया। मैं चकित रह गई कि जैसे ही दरवाजा खुला, वैसे ही चार मोटे-तगड़े आदमी मुझ पर भेडि़यों की तरह झपट पड़े। उन्‍होंने मेरे हाथ पीछे मोड़े और मुझे हथकड़ियाँ पहना दीं, फिर मुझे एक कुर्सी की ओर धकेला और उस पर जकड़ दिया। तुरंत ही कई पुलिसवाले मेरे थैले की तलाशी लेने लगे। इस आकस्मिक और क्रूर बल-प्रयोग के सामने मैं आतंक के मारे हक्की-बक्की रह गई और क्रूर भेडि़यों द्वारा घेर ली गई एक ऐसी दयनीय नन्ही भेड़ जैसा महसूस करने लगी, जिसमें किसी तरह का प्रतिरोध करने की ताकत नहीं होती। इसके बाद उन्‍होंने मुझे बाहर ले जाकर एक काली सेडान कार में बैठा दिया। कार के भीतर, अपनी ही कामयाबी के नशे में चूर किसी बौने दयनीय इंसान की तरह दिखता पुलिस का मुखिया मेरी ओर मुड़ा और कुटिल ढंग से मुसकराते हुए बोला, "हह! तू जानती है, हमने तुझे कैसे पकड़ा?" इस डर से कि कहीं मैं भाग न जाऊँ, दो पुलिसवालों ने मुझे दोनों ओर से इस तरह जकड़ लिया, मानो मैं कोई खतरनाक अपराधी थी। मैंने गुस्‍सा और डर एक-साथ महसूस किया, और अनुमान नहीं लगा पाई कि पुलिस मुझे किस तरह की सजा और पीड़ा देने वाली है। मुझे इस बात का बहुत गहरा डर सता रहा था कि मैं उनके द्वारा दी जाने वाली यातना सह नहीं सकूँगी और एक यहूदा बनकर परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात कर बैठूँगी। लेकिन फिर मैंने परमेश्‍वर के इन वचनों पर विचार किया : "जब तक तुम अकसर मेरे सामने प्रार्थना और अनुनय करते हो, तब तक मैं तुम लोगों पर पूरा विश्वास रखूँगा। सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होग" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे आस्‍था और बल प्रदान किया और धीरे-धीरे मुझे शांत होने में मदद की। "हाँ," मैंने सोचा, "पुलिस के लोग कितने भी बर्बर, जंगली और दुष्‍ट क्‍यों न हों, वे परमेश्‍वर के हाथों के मोहरे और परमेश्‍वर की योजना का हिस्‍सा हैं। जब तक मैं प्रार्थना करती रहूँगी और सच्‍चे हृदय से परमेश्‍वर को पुकारती रहूँगी, तब तक परमेश्‍वर मेरे साथ होगा, इसलिए चिंता करने की कोई बात नहीं है। अगर ये दुष्‍ट पुलिसवाले मुझे क्रूरतापूर्वक यातना देते हैं और पीटते हैं, तो इसका सिर्फ इतना ही मतलब होगा कि परमेश्‍वर मेरी आस्‍था की परीक्षा लेना चाहता है। वे मेरे शरीर को कितनी भी पीड़ा पहुँचा लें, लेकिन मेरे हृदय को परमेश्‍वर का ध्‍यान करने और उसे पुकारने से नहीं रोक सकते। अगर वे मेरे शरीर की हत्‍या भी कर दें, तो भी वे मेरी आत्‍मा की हत्‍या नहीं कर कर सकते, क्‍योंकि मेरा होना सर्वथा परमेश्‍वर के हाथों में है।" जैसे ही मैंने यह सोचा, मेरे मन से शैतान का भय जाता रहा और मैं परमेश्‍वर की गवाही देने के लिए कृतसंकल्‍प हो गई। इसलिए मैंने मन ही मन पुकारा, "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! आज वे लोग मेरे साथ जो भी करें, मैं उस सबका सामना करने को तैयार हूँ। हालाँकि मेरा शरीर कमजोर है, फिर भी मैं तुझ पर निर्भर रहते हुए जीना चाहती हूँ और शैतान को अपना शोषण करने का एक भी अवसर नहीं देना चाहती। कृपया मेरी रक्षा कर, ताकि मैं तेरे साथ विश्‍वासघात न करूँ, और एक शर्मनाक यहूदा न बन जाऊँ।" रास्ते भर मैं अपने मन में कलीसिया का एक भजन गाती रही : "उनकी पवित्र योजना और प्रभुसत्ता से, मैं अपने इम्तहानों का सामना करता हूँ। मैं कैसे हार मान लूँ या छिपने की कोशिश करूं? सबसे पहले जो है वो है परमेश्वर की महिमा। संकट की घड़ियों में, परमेश्वर के वचन राह दिखायें मुझे और पूरी करें मेरी आस्था। मैं हूँ पूरा निष्ठा में डूबा हुआ, परमेश्वर को समर्पित, मौत के भय के बिना। हमेशा सबसे ऊपर है उनकी इच्छा" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'मैं बस इतना चाहूँ कि परमेश्वर को संतुष्टि मिले')। मन में यह भजन गाने से मेरे हृदय में बल आ गया, और मैंने गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए परमेश्‍वर पर भरोसा करने का दृढ़ निश्‍चय कर लिया।

जब वे मुझे पूछताछ-कक्ष में ले गए, तो मुझे यह देखकर आश्‍चर्य हुआ कि मेरी ही तरह कलीसिया का कर्तव्य निभाने वाली एक बहन और कलीसिया का एक अगुआ भी वहाँ मौजूद थे। वे सब भी पकड़े गए थे! एक पुलिस अधिकारी ने मुझे कलीसिया की अपनी बहनों की ओर ताकते हुए देखा, तो मुझ पर अपनी नजरें गड़ा दीं और मुझे घुड़कते हुए बोला, "तू किसे घूर रही है? वहाँ चल!" हमें एक-दूसरे से बात करने से रोकने के लिए पुलिस ने हमें अलग-अलग पूछताछ-कक्षों में बंद कर दिया। उन्‍होंने भद्दे ढंग से मेरी तलाशी ली, मेरी बेल्‍ट खोली और मुझे नीचे से ऊपर तक टटोला। यह मुझे बेहद अपमानजनक लगा, और मैंने देखा कि सीसीपी सरकार के ये राक्षस मातहत वास्‍तव में कितने दुरात्‍मा, घृणित और ओछे हैं! मुझे बहुत ज्यादा ग़ुस्‍सा आया, लेकिन मुझे अपने ग़ुस्‍से पर काबू करना पड़ा, क्‍योंकि दैत्‍यों के उस अड्डे में बहस के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। कलीसिया का नया इलेक्ट्रिक स्‍कूटर और मेरे पास के 600 युआन जब्‍त करने के बाद उन्‍होंने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिया, "तेरा नाम क्‍या है? कलीसिया में तेरा पद क्‍या है? तेरा अगुआ कौन है? वे लोग अभी कहाँ हैं?" मैंने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए पुलिसवाला मुझ पर गुर्राया, "तू क्‍या सोचती है कि अगर तू हमें नहीं बताएगी तो हम पता नहीं लगा पाऍंगे? तुझे अंदाजा भी नहीं है कि हम क्‍या कर सकते हैं! तुझे मालूम होना चाहिए कि हमने तेरे उच्‍चस्‍तरीय नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया है!" इसके बाद उन्‍होंने कुछ नाम बताए और पूछा कि क्‍या मैं उन्हें जानती हूँ, और उन्‍होंने मुझसे सवाल पूछना जारी रखा, "तेरी कलीसिया का सारा पैसा कहाँ पर रखा हुआ है? बता हमें!" मैंने उनकी हर बात यह कहते हुए नकार दी कि "मैं किसी को नहीं जानती! मैं कुछ नहीं जानती!" जब उन्‍होंने देखा कि उनकी पूछताछ का पहला दौर नाकामयाब रहा है, तो उन्‍होंने अपना तुरुप का पत्‍ता चलने का फैसला किया, और मुझे थका डालने के लिए वे एक-एक कर मुझसे पूछताछ करने लगे और मुझे सताने लगे। चूँकि पहले दिन पुलिसवाले मुझसे वह जानकारी हासिल नहीं कर सके जो वे चाहते थे, इसलिए वे अपमान के मारे क्रोधित हो उठे, और उनके मुखिया ने सख्त लहजे में कहा, "मैं इसके अक्‍खड़पन के सामने हथियार डालने वाला नहीं हूँ। इसको यातना दो!" पुलिस ने मेरे हथकड़ी-बँधे हाथों को, जो अभी भी मेरे पीछे मुड़े हुए थे, पकड़ा और उन्हें एक टूटी हुई मेज से लटका दिया, इसके बाद उन्‍होंने मुझे आधा-उकड़ूँ रहने को बाध्‍य किया। उन्‍होंने मुझे आक्रामक ढंग से घूरते हुए अपने सवालों का दबाव डाला, "कहाँ है तेरा अगुआ? कलीसा का सारा पैसा कहॉं पर है?" वे मुझे यातना के दबाव से तोड़ने और अपने आगे आत्‍मसमर्पण करवाने के लिए बेचैन हो रहे थे। जब उस क्रूर पुलिस ने लगभग आधा घंटे तक मुझे उसी तरह सताना जारी रखा, तो मेरे पैर दुखने और काँपने लगे। मेरा दिल जोर से धड़क रहा था और मेरे हाथ भी बुरी तरह दर्द कर रहे थे। मैं अपनी सहनशीलता की हद पर पहुँच चुकी थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अब एक क्षण भी और नहीं टिक सकूँगी, इसलिए मैंने सच्‍चे हृदय से पुकार लगाई : "हे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर! मुझे बचा ले। अब मैं और नहीं सह सकती। मैं यहूदा की तरह तेरे साथ विश्‍वासघात नहीं करना चाहती। मुझे बल दे।" ठीक तभी, मेरे मन में परमेश्‍वर के ये वचन आए : "परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है। ... जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में संघर्ष करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए, और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और ऐसा समय है, जब परमेश्वर चाहता है कि तुम उसके लिए गवाही दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे जाग्रत कर दिया और मुझे यह समझने में सक्षम बनाया कि शैतान मुझे परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात करने और सत्‍य की तलाश छोड़ देने के लिए सता रहा है। यह आध्‍यात्मिक क्षेत्र में छिड़ा युद्ध था : यह शैतान था जो मुझे बहकाने की कोशिश कर रहा था, और इसी के साथ यह मेरी परीक्षा लेने का परमेश्‍वर का ढंग भी था। यह ठीक वह क्षण था, जब परमेश्‍वर को मेरी गवाही की जरूरत थी। परमेश्‍वर की मुझसे अपेक्षाएँ थीं और इस वक्त बहुत-से देवदूत मुझ पर उसी तरह निगाह रखे हुए थे, जिस तरह शैतान रखे हुए था, और वे सब प्रतीक्षा कर रहे थे कि मैं अपना दृष्टिकोण घोषित करूँ। मैं यूँ ही हार मानकर नहीं बैठ सकती थी और शैतान के समक्ष आत्‍मसमर्पण नहीं कर सकती थी; मैं जानती थी कि मुझे परमेश्‍वर की इच्‍छा पूरी करने की खातिर परमेश्‍वर को मेरे माध्‍यम से अपना कार्य पूरा करने देना था। एक अटल सिद्धांत के तौर पर, यह वह कर्तव्‍य था, जिसका निर्वाह मुझे एक सृजित प्राणी के रूप में करना चाहिए था—यह मेरा आह्वान था। इस निर्णायक मोड़ पर मेरे रवैये और मेरे आचरण का सीधा असर परमेश्‍वर की विजयी गवाही देने की मेरी योग्‍यता पर पड़ना था, और उससे भी ज्यादा सीधा असर पड़ना था मेरी उस योग्‍यता पर, जिससे मैं परमेश्‍वर द्वारा शैतान को पराजित किए जाने और उसके द्वारा अपनी महिमा हासिल किए जाने की साक्षी बन सकती थी। मैं जानती थी कि मैं परमेश्‍वर को दुखी या निराश नहीं कर सकती थी, और मैं शैतान की वे चालाक योजनाएँ लागू नहीं होने दे सकती थी, जिन्होंने सफल होने के लिए मुझे पीड़ा पहुँचाई थी। इन बातों पर विचार करते हुए सहसा मेरे हृदय में बल उत्‍पन्‍न हुआ और मैंने दृढ़तापूर्वक कहा, "तुम चाहो तो मुझे पीट-पीटकर मार डालो, लेकिन मैं अभी भी कुछ नहीं जानती!" ठीक उसी वक्त एक महिला पुलिस अधिकारी कमरे में आई। उसने मुझे देखा और कहा, "इसे तुरंत नीचे आने दो। तुम क्‍या करने की कोशिश कर रहे हो, क्या इसे मारना चाहते हो? अगर इसे कुछ हुआ, तो उसके लिए तुम जि़म्‍मेदार होगे!" मैं अपने हृदय में यह जानती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने मेरी प्रार्थनाएँ सुन ली थीं और उसने खतरे की इस घड़ी में मुझे बचा लिया, ताकि मुझे कोई हानि न पहुँचे। जब उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मुझे नीचे आ जाने दिया, तो मैं तुरंत फर्श पर जा गिरी। मैं खड़ी नहीं रह सकी, मेरे हाथ और पैर पूरी तरह सुन्न हो गए थे। मुझमें साँस लेने की भी ताकत नहीं रह गई थी और मैं अपने चारों अंगों को बिलकुल भी महसूस नहीं कर पा रही थी। मैं उस वक्त बेहद भयभीत महसूस कर रही थी और मेरी आँखों से धाराप्रवाह आँसू बह रहे थे। मैंने सोचा : "क्‍या मैं अपंग होने वाली हूँ?" लेकिन इसके बावजूद उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मुझे तब भी नहीं जाने दिया। उनमें से दो मेरी दोनों ओर आए, मेरी बाँहें पकड़ीं और मुझे एक लाश की तरह घसीटते हुए एक टूटी हुई कुर्सी तक ले गए, और मुझे उस कुर्सी में धकेल दिया। उनमें से एक पुलिसवाले ने क्रूरतापूर्वक कहा, "अगर ये मुँह नहीं खोलती, तो इसे रस्‍सी से लटका दो!" दूसरे दुष्‍ट पुलिसवाले ने बहुत फुर्ती से नायलॉन की एक रस्‍सी ली और उससे मेरे हथकड़ी-बँधे हाथों को एक गरम पाइप से लटका दिया। मेरी बाँहें तुरंत सीधी खिंच गईं, और मेरी पीठ और कंधे जल्‍दी ही दुखने लगे। उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मुझसे पूछताछ जारी रखते हुए कहा, "क्‍या तू हमें वह बताने जा रही है, जो हम जानना चाहते हैं?" अभी भी मैंने कोई जवाब नहीं दिया। वे इतने नाराज हो उठे कि उन्‍होंने मेरे चेहरे पर एक कप पानी फेंकते हुए कहा कि इसका उद्देश्‍य तुझे जगाना है। अब तक मुझे पहले ही इस हद तक यातना दी जा चुकी थी कि मुझमें जरा-सी भी ताकत बाकी नहीं रह गई थी, और मेरी आँखें इतनी थक चुकी थीं कि मैं उन्हें खोल तक नहीं पा रही थी। यह देखकर कि मैं खामोश बनी हुई हूँ, एक दुष्‍ट पुलिसवाले ने नीचता और बेशर्मी के साथ अपने हाथों से जबरदस्‍ती मेरी आँखें खोलीं और मेरा मजाक उड़ाया। कई घंटों की पूछताछ और यातना में उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने अपनी हर संभव युक्ति अपनाई, लेकिन मुझसे बुलवाने की उनकी कोशिशें नाकामयाब रही।

दुष्‍ट पुलिसवालों ने पूछताछ में मुझसे कुछ भी हासिल होता न देख एक शैतानी यु‍क्ति इस्‍तेमाल करने का फैसला किया : उन्‍होंने मुझसे निपटने के लिए शहर से किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया, जो खुद को "पूछताछ-विशेषज्ञ" कहता था। वे मुझे दूसरे कमरे में ले गए और मुझे लोहे की एक कुर्सी पर बैठने का आदेश दिया, और फिर उन्‍होंने मेरे टखने कुर्सी के पायों से और मेरे हाथ उसके हत्‍थों से कसकर बाँध दिए। कुछ देर बाद सभ्‍य-सा दिखने वाला एक चश्‍माधारी आदमी एक ब्रीफकेस लिए हुए अंदर आया। वह मेरी ओर देखकर खुलकर मुसकराया और भलमनसाहत का ढोंग करते हुए उसने वे जंजीरें खोल दीं, जिनसे मेरे हाथ और टखने कुर्सी से बँधे हुए थे, और मुझे कमरे में एक ओर पड़ी खाट पर बैठने की इजाजत दी। क्षण भर बाद ही वह मेरे लिए कप में पानी भर रहा था, और फिर मुझे मिठाइयाँ पेश कर रहा था। वह मेरे पास आया और दोस्‍ताना लहजे का स्‍वाँग करता हुआ बोला, "इस तरह तकलीफ क्‍यों भोग रही हो? तुम बहुत तकलीफ भोग चुकी हो, लेकिन यह कोई इतना बड़ा मसला नहीं है। हम जो जानना चाहते हैं वह हमें बता दो, और सब-कुछ ठीक हो जाएगा...।" इस नई परिस्थिति के सामने आने पर मुझे समझ नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए, इसलिए मैंने जल्‍दी से मन ही मन परमेश्‍वर से प्रार्थना कर उससे प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्रदान करने का अनुरोध किया। तभी मैंने परमेश्‍वर के इन वचनों पर विचार किया : "तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का रास्‍ता दिखाया और यह समझने में मेरी मदद की कि शैतान हमेशा शैतान ही रहेगा, और शैतान कभी भी परमेश्‍वर का विरोध और उससे घृणा करने वाले अपने सार को बदल नहीं सकता। वे चाहे कठोर युक्तियाँ अपनाएँ या नर्म, उनका लक्ष्‍य हमेशा मुझे परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने और सत्‍य का मार्ग त्‍यागने के लिए प्रेरित करना होता है। परमेश्‍वर के वचनों की चेतावनी की बदौलत मुझमें शैतान की चालाक योजनाओं को पहचानने का कुछ विवेक पैदा हुआ, मेरा दिमाग साफ हुआ, और मैं एक दृढ़ रुख अपनाने में सक्षम हुई। इसके बाद उस पूछताछकर्ता ने मुझसे कहा, "सीसीपी सरकार लोगों को परमेश्‍वर में विश्‍वास करने से मना करती है। अगर तुम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करना जारी रखती हो, तो तुम्‍हारे पूरे परिवार को फँसा लिया जाएगा, जिससे तुम्‍हारे परिवार के बच्‍चों के भविष्‍य, रोजगार की उम्‍मीदों और सरकारी नौकरी की संभावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बेहतर होगा कि तुम इस पर ध्यानपूर्वक विचार करो...।" उसके यह कहने के बाद मेरे भीतर एक लड़ाई छिड़ गई, और मेरी मानसिक अशांति दुगुनी हो गई। ठीक जिस वक्त मैं लाचार महसूस कर रही थी, तभी मैंने सहसा पतरस के उस समय के अनुभवों के बारे में सोचा, जब उसने शैतान के समक्ष सफलतापूर्वक गवाही दी थी; पतरस ने परमेश्‍वर को हमेशा उन कुटिल चालों के माध्‍यम से समझने का प्रयास किया था, जो शैतान ने उसके साथ चली थीं। इसलिए मैंने अपने हृदय की गहराई में परमेश्‍वर को खोजा और सब-कुछ उसके भरोसे छोड़ दिया, और परमेश्‍वर की इच्‍छा जाननी चाही। अनजाने ही सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के ये वचन मेरे मन में आए : "परमेश्वर ने इस संसार की सृष्टि की, उसने इस मानवजाति को बनाया, और इतना ही नहीं, वह प्राचीन यूनानी संस्कृति और मानव-सभ्यता का वास्तुकार भी था। केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति को सांत्वना देता है, और केवल परमेश्वर ही रात-दिन इस मानवजाति का ध्यान रखता है। मानव का विकास और प्रगति परमेश्वर की संप्रभुता से जुड़ी है, मानव का इतिहास और भविष्य परमेश्वर की योजनाओं में निहित है। यदि तुम एक सच्चे ईसाई हो, तो तुम निश्चित ही इस बात पर विश्वास करोगे कि किसी भी देश या राष्ट्र का उत्थान या पतन परमेश्वर की योजनाओं के अनुसार होता है। केवल परमेश्वर ही किसी देश या राष्ट्र के भाग्य को जानता है और केवल परमेश्वर ही इस मानवजाति की दिशा नियंत्रित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)। परमेश्‍वर के वचनों ने मुझे प्रकाश से भर दिया। "हाँ!" मैंने सोचा, "परमेश्‍वर सर्जक है और मानव-जाति के रूप में हमारी नियति परमेश्‍वर के हाथों में है। दुष्ट शैतान उनमें से है, जो परमेश्‍वर की अवज्ञा करते हैं। अगर वे स्‍वयं नरक जाने के लिए अभिशप्‍त अपनी नियति नहीं बदल सकते, तो फिर वे मनुष्‍य की नियति पर शासन कैसे कर सकते हैं? मनुष्‍य की नियति परमेश्‍वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है, और भविष्‍य में मेरे बच्‍चे क्‍या काम करेंगे और उनकी संभावनाएँ किस तरह की होंगी, यह सब परमेश्‍वर पर निर्भर है—शैतान का इन चीजों पर कोई नियंत्रण नहीं है।" यह सोचते हुए मैं इसे और भी स्‍पष्‍टता के साथ देख सकी कि शैतान और दैत्‍य कितने घिनौने और निर्लज्‍ज हैं। इसलिए वह मुझे परमेश्‍वर को नकारने और उसका तिरस्‍कार करने के लिए बाध्‍य करते हुए मुझे फुसलाकर ठगने के उद्देश्‍य से इन धूर्ततापूर्ण और घृणित चालों—इन "दिमागी खेलों"—का इस्‍तेमाल कर रहा था। अगर समय रहते सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्राप्‍त न हुआ होता, तो मैं अब तक शैतान के हाथों पराजित होकर उसके द्वारा बंधक बना ली गई होती। अब यह जान लेने के बाद कि दुष्‍ट शैतान कितना घिनौना है, उसकी धूर्त योजनाओं के सामने न झुकने का मेरा आत्‍मविश्‍वास और भी मजबूत हो गया था। अंत में जब वह दुष्‍ट पुलिसवाला उलझन में पड़ गया और उसे और कुछ नहीं सूझा, तो वह निराश होकर चला गया।

तीसरे दिन क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड के मुखिया ने पाया कि वे लोग मुझसे कोई जानकारी हासिल नहीं कर पाए हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने मातहतों की नाकाबिलियत की शिकायत करने लगा। वह मेरे पास आया और चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुसकराहट के साथ तंज कसते हुए बोला, "तूने अब तक सब-कुछ कबूल क्‍यों नहीं किया? तू अपने आप को क्‍या समझती है, ल्यू हूलन? तू क्‍या सोचती है कि हम जितना बुरे से बुरा कर सकते थे, वह कर चुके, इसलिए तुझे कोई डर नहीं है, हुँह? तेरा सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर तुझे बचाने क्‍यों नहीं आता?" यह कहते हुए वह मुझे डराने के लिए मेरी आँखों के सामने एक छोटा बिजली का डंडा घुमा रहा था, जो चिटचिटाता था और जिससे नीली रोशनी चमकती थी। फिर उसने बिजली के एक बड़े डंडे की ओर इशारा किया, जो फिलहाल चार्ज हो रहा था, और मुझे धमकाते हुए बोला, "उसे देखती हो? इस छोटे डंडे की बिजली जल्‍दी ही खत्‍म हो जाएगी। पल भर बाद मैं तुझे बिजली के झटके देने के लिए उस पूरी तरह चार्ज्‍ड बड़े डंडे का इस्‍तेमाल करूँगा, और तब हम देखेंगे कि तू बोलती है या नहीं! मैं जानता हूँ कि उसके बाद तू बोलने लगेगी!" मैंने उस बड़े डंडे की ओर देखा, तो दहशत में आए बिना नहीं रह सकी : "यह दुष्‍ट पुलिस वाला बहुत ही भयानक और हैवान है। क्‍या यह मेरी हत्‍या कर देगा? क्‍या मैं यह यातना झेल पाऊँगी? क्‍या मुझे बिजली का करंट देकर मार डाला जाएगा?" उस क्षण मैंने महसूस किया कि मेरा दिमाग कमजोरी, कायरता, पीड़ा और बेबसी से भर उठा है। मैंने जल्‍दी से परमेश्‍वर से मदद की गुहार लगाई : "हे परमेश्वर, कृपया मेरी रक्षा कर और मुझे विश्वास और बल दे।" तभी परमेश्‍वर के वचनों के एक भजन की कई पंक्तियाँ मेरे दिमाग में तैरने लगीं : "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'बीमारी की शुरुआत परमेश्वर का प्रेम है')। प्रभु ईशु के ये वचन भी मेरे ध्यान में आए : "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। परमेश्‍वर के ये वचन ध्यान में आने से मेरे आँसू उन्‍मुक्‍त होकर बहने लगे—मैंने अत्यधिक द्रवित महसूस किया। मेरे हृदय की शक्ति प्रचंड अग्नि की तरह थी। "मैं अगर आज मर भी जाऊँ," मैंने सोचा, "तो भी डरने की क्‍या बात है? परमेश्‍वर की खातिर मरना गौरव की बात है, और मैं मरते दम तक शैतान से लड़ने के लिए हर चीज त्‍याग दूँगी!" ठीक उसी क्षण परमेश्‍वर के वचनों के एक और भजन की कुछ पंक्तियाँ मेरे ध्यान में आईं : "यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'प्रभु यीशु का अनुकरण करो')। मैं मन ही मन लगातार गाती रही, और मेरे आँसू अनवरत मेरे गालों पर बहते रहे। प्रभु ईशु मसीह को सलीब पर लटकाए जाने का दृश्‍य साक्षात मेरी आँखों के सामने घटित हो रहा था : फरीसियों द्वारा प्रभु ईशु का मखौल उड़ाया जा रहा था, उसे धिक्‍कारा और लांछित किया जा रहा था, वधिक उस पर तब तक तक लोहे की मूठ वाला कोड़ा बरसाते रहे, जब तक कि उसकी देह घावों और खरोंचों से भर नहीं गई, जब तक कि अंतत: उसे क्रूरतापूर्वक सलीब पर कीलों से नहीं ठोंक दिया गया, और तब भी उसने एक बार भी कोई आवाज नहीं की। प्रभु ईशु जिन यातनाओं से गुजरा था, उनमें से एक-एक यातना उसने मानव-जाति के प्रति अपने प्रेम की खातिर सही थी, और इस प्रेम ने उसके अपने जीवन के प्रति प्रेम पर विजय पाई थी। उस क्षण मेरा हृदय परमेश्‍वर के प्रेम से विभोर और द्रवित था, मैं जबरदस्त शक्ति और आस्था से भर गई। मुझे किसी बात का भय नहीं रहा और मुझे लगा कि परमेश्‍वर की खातिर मर जाना गौरव की बात होगी, जबकि एक यहूदा बन जाना सबसे बड़ा कलंक होगा। मैं आश्‍चर्यचकित थी कि जब मैंने यह निश्‍चय किया कि मैं अपने जीवन की कीमत पर भी परमेश्‍वर की गवाही दूँगी, तभी एक दुष्‍ट पुलिसवाला यह कहता हुआ तेजी से कमरे में आया कि "नगर के चौक में हंगामा हो गया है, उसको कुचलने के लिए और सार्वजनिक कानून-व्‍यवस्‍था बरकरार रखने के लिए हमें पुलिस बल को ले जाना होगा!" वे दुष्‍ट पुलिसवाले फुर्ती से बाहर निकल गए। जब तक वे वापस आए, तब तक काफी रात हो चुकी थी, और उनमें मुझसे और पूछताछ करने की ऊर्जा शेष नहीं रह गई थी। उन्‍होंने मुझसे क्रूरतापूर्वक कहा, "चूँकि तू बोलेगी नहीं, इसलिए हम तुझे नजरबंदी-गृह भेज देंगे!" चौथे दिन सुबह उन दुष्‍ट पुलिसवालों ने मेरी तसवीर खींची और मेरे गले में एक बड़ी चौकोर तख्ती लटका दी, जिस पर ब्रश से मेरा नाम लिखा हुआ था। मैं एक बदनाम अपराधी की तरह थी, जिसका दुष्‍ट पुलिस द्वारा मजाक उड़ाया जा रहा था और फजीहत की जा रही थी। मुझे लग रहा था, जैसे मैं घोर अपमान की पात्र बनाई जा रही हूँ, और मैं अंदर से बहुत कमजोर महसूस कर रही थी। मुझे समझ में आ गया था कि मेरी मानसिक अवस्‍था ठीक नहीं है, इसलिए मैंने जल्‍दी से अपने हृदय में चुपचाप परमेश्‍वर को पुकारा : "हे परमेश्‍वर! मेरे हृदय की रक्षा कर और मुझे अपनी इच्‍छा को समझने और शैतान की कुटिल योजनाओं का शिकार न होने का सामर्थ्य प्रदान कर।" जब मैंने प्रार्थना कर ली, तो मेरे मन में परमेश्‍वर के वचनों का एक अंश आया : "तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे इस बात को समझने का अवसर दिया कि एक सृजित प्राणी के रूप में सत्‍य की खोज में सक्षम होना, और परमेश्‍वर की आराधना करना और उसे संतुष्ट करना ही सबसे सार्थक और उचित जीवन है। आज परमेश्‍वर में अपने विश्‍वास की खातिर पकड़े जाने और नजरबंद किए जाने लायक होना, इस सारे अपमान और पीड़ा को सहना, तथा मसीह के क्लेशों को साझा करने में सक्षम होना कोई शर्मनाक बात नहीं है, बल्कि गौरव की बात है। शैतान परमेश्‍वर की आराधना नहीं करता; इसके विपरीत, वह परमेश्‍वर के कार्य में दखल देने और बाधा डालने का वह हर संभव प्रयत्‍न करता है, और यही सबसे ज्यादा निंदनीय और घृणित है। इन बातों पर विचार करते हुए मैं शक्ति और आनंद से भर उठी। दुष्‍ट पुलिसवालों ने मेरे चेहरे पर मुसकराहट देखी, तो मुझे विस्‍मय से देखते हुए बोले, "तू किस बात से प्रसन्‍न है?" मैंने ईमानदारी से और बलपूर्वक जवाब दिया, "परमेश्‍वर में विश्‍वास करना और उसकी आराधना करना पूरी तरह से उचित है। ऐसा करने में सर्वथा कुछ भी गलत नहीं है। मुझे प्रसन्‍न क्‍यों नहीं होना चाहिए?" मेरी बातें सुनकर उन्होंने कुछ नहीं कहा। परमेश्‍वर के वचनों के मार्गदर्शन में मैं एक बार फिर परमेश्‍वर पर भरोसा करने और शैतान पर विजय हासिल करने में सक्षम रही थी।

फिर मुझे निगरानी-गृह ले जाया गया। उस जगह की हर चीज और भी मनहूस तथा डरावनी थी, और मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी नरक में आ पहुँची हूँ। भोजन में मुझे हर बार भाप में पकी हुई ब्रेड का एक स्‍याह टुकड़ा और एक कटोरा खाली पानी का सूप दिया जाता था, जिसकी सतह पर चीनी पत्ता-गोभी की कुछ पत्तियाँ तैरती रहती थीं। मैं हर रोज दिन भर इस कदर भूखी रहती थी कि मेरा पेट भोजन के लिए तड़पता रहता था। लेकिन, इसके बावजूद मुझे बोझा ढोने वाले टट्टू की तरह काम में जुते रहना पड़ता था, और अगर मैं अपने हिस्‍से का काम पूरा नहीं कर पाती थी, तो मुझे पीटा जाता था या सजा के तौर पर पहरेदारी करते हुए खड़े रहना पड़ता था। चूँकि दुष्ट पुलिसवालों ने मुझे कई दिनों तक बेरहमी से प्रताड़ित किया था, इसलिए मैं पहले ही सिर से पैर तक खरोंचों और जख्‍़मों से भर गई थी, और मेरे लिए चलना तक मुश्किल हो गया था, लेकिन तब भी सुधारक अधिकारी ने मुझे ताँबे के तारों का भारी बोझा ढोने के लिए बाध्‍य किया। इस भारी काम की वजह से मेरी घायल पीठ में असहनीय पीड़ा होने लगी, और मेरी हालत यह हो गई कि मैं हर रोज दिन के अंत में सिर्फ रेंगते हुए अपने बिस्‍तर पर जा पाती थी। इसके बावजूद दुष्‍ट सुधारक अधिकारी रात के समय मुझे पहरेदारी के लिए खड़ा रखता था, जिससे मुझे बहुत थकावट महसूस होती थी। एक रात जब मैं पहरा दे रही थी, तो मैंने दुष्‍ट सुधारक अधिकारी की अनुपस्थिति का फायदा उठाया और थोड़ा-सा विश्राम करने की उम्‍मीद में चुपके से घुटने मोड़कर बैठ गई। लेकिन मेरी उम्‍मीद के विपरीत, दुष्‍ट सुधारक अधिकारी ने मुझे निगरानी-कक्ष में स्क्रीन पर देख लिया और धड़धड़ाता हुआ मेरे पास आकर गरजा, "तुझसे किसने कहा था कि तू बैठ सकती है?" एक अन्‍य कैदी ने फुसफुसाते हुए मुझसे कहा, "जल्‍दी-से उससे माफी माँग ले, नहीं तो वह तुझे 'लकड़ी के बिस्‍तर पर' सोने को मजबूर कर देगा।" इससे उसका आशय उस यातना से था, जिसमें लकड़ी का एक तख्‍ता कैदी की कोठरी में लाया जाता है, उसमें कैदी की टाँगें और पैर जंजीर से बाँध दिए जाते हैं, और उसकी कलाइयाँ उसमें रस्‍सी से कस दी जाती हैं। इस तरह कैदी को उस तख्‍ते से बाँध दिया जाता है, और फिर उसे दो हफ्तों तक हिलने-डुलने नहीं दिया जाता। यह सुनकर मैं क्रोध और नफरत से भर उठी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं रत्‍ती भर भी प्रतिरोध नहीं दर्शा सकती—मैं सिर्फ इतना ही कर सकती थी कि अपने ग़ुस्‍से को पी जाती और खामोश बनी रहती। इस तरह की दबंगई और यातना मुझे असहनीय प्रतीत हुई। उस रात मैं इस सारे अन्‍याय पर रोती हुई अपने बर्फ जैसे ठंडे बिस्‍तर पर पड़ी रही, मेरा हृदय परमेश्‍वर के प्रति फरियादों और तकाजों से भरा हुआ था, और मैं सोच रही थी : "इसका अंत कब होगा? इस नारकीय जगह पर तो एक दिन बिताना भी बहुत भारी है।" फिर मैंने परमेश्‍वर के इन वचनों पर विचार किया : "अगर तुम मानवीय जीवन के महत्व को समझते हो, और तुमने मानवीय जीवन के सही मार्ग को अपनाया है, और अगर भविष्य में परमेश्वर तुमसे जैसा भी व्यवहार करे, तुम बिना किन्हीं शिकायतों या विकल्पों के परमेश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित हो जाओगे, और तुम्हें परमेश्वर से कोई मांगें भी नहीं रहेंगी, इस रीति से तुम महत्व से युक्त एक व्यक्ति होगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए)। परमेश्‍वर के इन वचनों ने मुझे अपने प्रति शर्मिंदा कर दिया। मैंने सोचा कि मैं किस तरह हमेशा यह कहती रही थी कि मैं पतरस की तरह परमेश्‍वर की आज्ञा मानने की कोशिश करूँगी, भले ही पीड़ा या मुसीबत चाहे जितनी बड़ी हो, और मैं अपनी खातिर कोई निर्णय नहीं करूँगी, न ही कोई माँग करूँगी। लेकिन जब मैं उत्‍पीड़न और मुश्किलों की शिकार हुई, और मुझे दुख भोगना पड़ा और कीमत चुकानी पड़ी, तो मैं बच निकलने का रास्ता खोजने लगी। मुझमें जरा भी आज्ञाकारिता नहीं थी! सिर्फ तभी मैं आखिकार परमेश्‍वर के नेक इरादों को समझ सकी : परमेश्‍वर मुझ पर इन मुसीबतों का पहाड़ इसलिए टूटने दे रहा था, ताकि दुख भोगने का मेरा संकल्‍प मजबूत हो सके, और मुझे यह सीख मिल पाए कि दुख के क्षणों में आज्ञापालन कैसे किया जाए, ताकि मैं परमेश्‍वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकूँ और उसका वादा हासिल करने योग्‍य बन सकूँ। परमेश्‍वर जो कुछ भी मेरे साथ कर रहा था, वह मेरे प्रति उसके प्रेम की वजह से किया जा रहा था, वह मुझे बचाने के लिए किया जा रहा था। इसके बाद मेरा हृदय मुक्त हो गया, और मैं अपकृत और पीड़ित महसूस नहीं कर रही थी। मैं अब केवल परमेश्‍वर के आयोजनों और व्‍यवस्‍थाओं के प्रति समर्पित होना, गवाही देना और शैतान को शर्मिंदा करना चाहती थी।

एक महीने बाद मुझे छोड़ दिया गया। लेकिन उन्‍होंने मुझे "कानून के प्रवर्तन में बाधा डालने और और शी जियाओ संगठन में भाग लेने" का आरोपी बना दिया, ताकि वे मेरी निजी स्‍वतंत्रता प्रतिबंधित कर सकें। एक साल तक मुझे अपना शहर या प्रांत छोड़ने की इजाजत नहीं थी, और जब भी पुलिस चाहती, मुझे उसके आदेशों के पालन के लिए तैयार रहना था। घर वापस आने के बाद ही मुझे पता चला कि मैंने अपना जो भी सामान घर पर रखा हुआ था, वह सब पुलिस ने लूटकर अपने कब्जे में कर लिया था। इसके अलावा, दुष्‍ट पुलिस ने मेरे घर को लुटेरों की तरह छान डाला था, और मेरे परिवार को यह कहते हुए धमकाया था कि जब तक वे उन्हें 25,000 युआन नहीं देंगे, तब तक वे मुझे रिहा नहीं करेंगे। मेरी सास इस सारे आतंक को सह नहीं सकी, उसे दिल का दौरा पड़ गया और वह अस्‍पताल में भर्ती होने और इलाज कराने के बाद ही स्‍वस्‍थ हो सकी, जिस पर 2,000 युआन खर्च हो गए। अंत में, मेरे परिवार को अपने हर परिचित से पैसे उधार माँगकर पुलिस को देने के लिए 3,000 युआन जुटाने पड़े, और तब जाकर मुझे रिहा किया गया। दुष्‍ट पुलिस द्वारा मुझे दी गई क्रूर यातनाओं की वजह से मेरे शरीर को गंभीर परिणाम भोगने पड़े : क़ैद के दौरान मेरी बाँहों और टाँगों पर जो कठोर दबाव डाला गया था, उसकी वजह से वे अकसर सूज जाया करते हैं; मैं ढाई किलो वजन की सब्जियाँ तक नहीं उठा पाती, न अपने कपड़े ही धो पाती हूँ, और मेरी काम करने की क्षमता पूरी तरह से खत्म हो गई है।

गिरफ्तार किए जाने और सताए जाने के उस अनुभव ने मुझे कम्युनिस्ट पार्टी की, उसके बुरे, शैतानी चेहरे की स्पष्ट समझ दे दी, जो सत्य से घृणा और परमेश्वर से नफरत करता है। इसने शैतान और राक्षसी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति मेरी घृणा बढ़ा दी, जो पूरी तरह से स्वर्ग के विपरीत चलती है। मुझे इसका वास्तविक अनुभव हुआ कि परमेश्वर का काम कितना व्यावहारिक और बुद्धिमत्तापूर्ण है। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार किए जाने और सताए जाने से मेरा विवेक विकसित हुआ; इससे मेरा संकल्प भी मजबूत हुआ और इसने मेरी आस्था को पूर्ण किया, जिससे मैं यह सीख पाई कि परमेश्वर का सम्मान और उस पर भरोसा कैसे करना है। यह देखकर कि परमेश्वर के वचन हमेशा हमारी मदद का स्रोत बन सकते हैं, मुझे उनकी शक्ति और अधिकार का भी स्वाद मिला। मैंने देखा कि केवल परमेश्वर ही मनुष्य से प्रेम करता है और केवल परमेश्वर ही मनुष्य को बचा सकता है। अपने दिल में मैं परमेश्वर के करीब हो गई। कठिनाइयों और परीक्षणों से गुजरकर मुझे ये पुरस्कार मिले। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ!

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