196  जैसे ही मैं कोहरे में जागी

1

मैं देखती हूँ कि वचन देह में प्रकट हो रहा है, परमेश्वर ने नए स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण करके,

छह सहस्राब्दियों की कठिनाइयों और बेचैनियों का अंत कर दिया है।

देहधारी परमेश्वर इंसान के लिए सत्य को व्यक्त करते हुए, प्रकाश ला रहा है।

इंसान को पूर्ण बनाने के लिये परमेश्वर का कार्य करना एक ऐसा अवसर है जो जीवन में एक बार ही आता है, मैं कितनी भाग्यशाली हूँ।

उसके वचन इंसान का न्याय करते, उसे ताड़ना देते और उसके भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करते हैं।

मैं आख़िरकार जान गई हूँ कि शैतान की भ्रष्टता के कारण इंसान ने अपना ज़मीर गँवा दिया है।

इंसान पाखंडी है, सतही तौर पर नैतिकता की बात करता है, जबकि वह वास्तव में बहुत पहले ही इंसानियत गँवा चुका है।

प्रसिद्धि और फ़ायदे के लिए एक-दूसरे के खिलाफ़ योजना बनाते और लड़ाई करते हुए, पाप में जीता है।


2

इंसान का कपटी हृदय इतना भ्रष्ट है कि देखने लायक नहीं है।

इंसान खुद को जानबूझकर भ्रष्ट और मलिन कर रहा है, उसे अपने आप से प्यार नहीं है।

वह अपनी सत्यनिष्ठा और गरिमा की आख़िरी झलक कहाँ पा सकता है?

इंसान का हृदय बहुत कुटिल और कपटी है, इंसान परमेश्वर के सामने आने लायक नहीं है।

बेचैन हृदय लेकर, भय और पीड़ा से ग्रस्त, मैं अपने पूरे अस्तित्व को तेरे सामने अर्पित करती हूँ।

इंसान होना कितना मुश्किल है, मैं इस बात को अब जानकर जान पायी इसलिए आहें भरती हूँ।

मैं इतनी भ्रष्ट हूँ कि जब तक मैं न्याय और शुद्धिकरण से न गुज़रूँ, मुझे बचाया नहीं जा सकता।

मैं भ्रम से जागती हूँ, मैं इतनी शर्मिंदा हूँ कि परमेश्वर के चेहरे का सामना नहीं कर सकती।

न्याय से प्रबुद्ध होकर, मैं सब-कुछ तुरंत जान गई कि इंसान कैसे बना जाता है।

सत्य और जीवन आसानी से नहीं आए हैं, यह सब परमेश्वर की करुणा है।

परमेश्वर की प्रियता को जानकर उसके प्रति मेरा प्रेम और भी अधिक जाग उठा है।

मुझे परिशोधन का कष्ट मिले और मैं शुद्ध हो जाऊँ ताकि मैं परमेश्वर से सच्चा प्रेम और उसे संतुष्ट कर सकूँ।

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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