19. मैंने खुलकर बोलने की हिम्मत क्यों नहीं की
2021 की मई के मध्य में हमारी अगुआ जेन ने मुझसे लौरा का मूल्यांकन लिखवाया था। उसने कहा कि लौरा घमंडी और आत्म-तुष्ट है, और हमेशा अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आलोचना करती है। वह एक सही इंसान नहीं है। लौरा के बारे में जेन का मूल्यांकन मुझसे अलग था। पहले जब लौरा के साथ मेरी बातचीत होती थी, तो वह वैसी नहीं थी जैसी जेन ने कहा था। लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मैंने सच बोला, तो जेन कहेगी कि मुझमें विवेक की कमी है और उसके मन में मेरी बुरी छवि बन जाएगी। फिर हो सकता है, वह मुझे भविष्य में महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट न सौंपे। इसलिए मैंने जेन की इच्छा के आगे झुककर, उसका मूल्यांकन स्वीकारते हुए कह दिया कि लौरा मनमाने ढंग से दूसरों की आलोचना करती है। जल्दी ही लौरा को बदल दिया गया। बाद में मुझे पता चला कि लौरा ने जेन की वास्तविक काम करने में विफल रहने और नकली अगुआ होने की रिपोर्ट की थी, जिसके कारण जेन ने यह दावा करते हुए उसे दबाया और दंडित किया कि वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आलोचना करती है। अंततः जेन एक नकली अगुआ के रूप में उजागर कर बदल दी गई। इस बारे में सुनने के बाद मैंने मूल्यांकन लिखने में अपने व्यवहार पर विचार किया और खेद महसूस किया। परमेश्वर के वचन पढ़कर और आत्मचिंतन करके मुझे एहसास हुआ कि मैं अगुआ पर अच्छी छाप छोड़ने के लिए झूठ बोलने और लौरा की निंदा करने में उसका साथ देने को तैयार थी। मुझमें वास्तव में मानवता की कमी थी। जितना ज्यादा मैंने विचार किया, उतनी ही ज्यादा अरुचि और घृणा मुझे अपने प्रति महसूस हुई। मैंने इस विफलता पर एक निबंध लिखने की सोची, ताकि इसे एक चेतावनी के रूप में भाई-बहनों के साथ साझा कर सकूँ। लेकिन मेरी अपनी चिंताएँ थीं। मैंने सोचा, “अगर मैंने मूल्यांकन के दौरान अपनी भ्रष्टता और गलत मंशाओं के बारे में सब-कुछ लिख दिया, तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अगर उन्होंने मेरा अनादर कर मुझे ठुकरा दिया, तो मेरी प्रतिष्ठा शून्य हो जाएगी और मुझे फिर से उन्हें अपना चेहरा दिखाने में बहुत शर्म आएगी।” मैंने यह भी सोचा कि कैसे लौरा मेरे काफी करीब हुआ करती थी और समस्याएँ होने पर कैसे वह अक्सर मुझ पर विश्वास किया करती थी। अगर उसे पता चला कि मैंने उसका मूल्यांकन भ्रष्ट स्वभाव के साथ किया था, तो वह क्या सोचेगी? क्या वह मुझसे निराश होकर संबंध नहीं तोड़ लेगी? अगर ऊपरी अगुआओं को पता चल गया, तो क्या वे मेरा चरित्र खराब बताकर मुझे कोई अलग कर्तव्य नहीं सौंप देंगे? यह सब सोचकर मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने सचमुच शर्मनाक काम किया था, जिसके बारे में बात करना भी मुश्किल था। मैंने जो किया था, मैं उसका सामना नहीं करना चाहती थी; बस आगे बढ़ना चाहती थी। मैं इस बारे में लिखना नहीं चाहती थी।
बाद में मैं इस मामले पर विचार करने लगी। मैं इस असफलता का जिक्र करने के लिए तैयार क्यों नहीं हूँ? मैं खुलकर खुद को उजागर करने के लिए तैयार क्यों नहीं हूँ? कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव मुझे बेबस कर रहा है? एक दिन, अनुभवात्मक गवाही का एक वीडियो देखते हुए, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा : “चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपनी साख, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और अगाध प्रेम खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मसीह-विरोधी दिखावा करने में माहिर होते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई उनका स्याह पक्ष देखे, और वे अपनी भ्रष्टता और विद्रोह के बारे में खुलकर नहीं बोलते। वे अपनी असफलताओं और त्रुटियों के बारे में बोलने से भी हमेशा बचते हैं, इसके बजाय वे एक सकारात्मक, दृढ़ और प्रभावशाली होने का मुखौटा पहनते हैं, ताकि लोगों का सम्मान और उनके दिलों में जगह पा सकें। मुझे एहसास हुआ कि जो कुछ मैंने किया है और जो कुछ प्रकट किया है, वह किसी मसीह-विरोधी से अलग नहीं है। लौरा की निंदा करने में नकली अगुआ का साथ देने से मैं अपना भ्रष्ट स्वभाव पहचान गई थी, लेकिन मैं हर किसी को खुलकर बताने को तैयार नहीं थी, क्योंकि यह एक असफलता थी। अगर मैं उस दौरान अपनी मंशाएं और भ्रष्टता सार्वजनिक कर देती, तो सब देख लेते कि कैसे मुझमें विवेक की कमी है और कैसे मैं आसानी से झुक गई मुझे डर था कि हर कोई मेरा अपमान कर मुझे ठुकरा देगा, और मेरा कर्तव्य भी छिन सकता है। मैंने देखा कि कैसे मैंने प्रतिष्ठा और हैसियत को सत्य का अभ्यास करने और ईमानदार होने पर तरजीह दी। मुझे सत्य या सकारात्मक चीजें पसंद ही नहीं थीं। इसके बजाय, मुझे मसीह-विरोधी की तरह प्रतिष्ठा और हैसियत से प्यार था और मैं दिखावा करने में माहिर थी। मैं एक धोखेबाज इंसान थी।
बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों के दो और अंश मिले : “सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने आप को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार, और उनकी भ्रष्टता के असली चेहरे को पहचान जाते हो, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही तुम दूसरों की गलतियों के करण उनके बारे में गलत धारणा बनाते हो—तुम दोनों का सही ढंग से सामना करते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और मूर्खतापूर्ण काम नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं, और वे हमेशा पर्दे के पीछे चोरी-छिपे अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर देर तक बात किया करते हैं। यह देखना घृणास्पद है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। “जब लोग हमेशा मुखौटा लगाए रहते हैं, हमेशा खुद को अच्छा दिखाते हैं, हमेशा खास होने का ढोंग करते हैं जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें, और अपने दोष या कमियाँ नहीं देख पाते, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह एक दुष्ट स्वभाव है। शैतानी शासन के सदस्यों को लें : वे अंधेरे में कितना भी लड़ें-झगड़ें या हत्या तक कर दें, किसी को भी उनकी शिकायत करने या उन्हें उजागर करने की अनुमति नहीं होती। वे डरते हैं कि लोग उनका राक्षसी चेहरा देख लेंगे, और वे इसे छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं। सार्वजनिक रूप से वे यह कहते हुए खुद को पाक-साफ दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे लोगों से कितना प्यार करते हैं, वे कितने महान, गौरवशाली और अमोघ हैं। यह शैतान की प्रकृति है। शैतान की प्रकृति की सबसे प्रमुख विशेषता धोखाधड़ी और छल है। और इस धोखाधड़ी और छल का उद्देश्य क्या होता है? लोगों की आँखों में धूल झोंकना, लोगों को अपना सार और असली रंग न देखने देना, और इस तरह अपने शासन को दीर्घकालिक बनाने का उद्देश्य हासिल करना। साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और हैसियत की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि लोग उनके पक्ष में राय रखें और उन्हें खूब सम्मान की दृष्टि से देखें और अपने दिल में उन्हें ऊँचे स्थान पर रखें। यह भ्रष्ट स्वभाव होता है, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि कोई भी पूर्ण नहीं है; हम सभी में कमियाँ हैं, हम गलतियाँ कर सकते हैं और अपना भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर सकते हैं। जिन लोगों में वास्तव में मानवता और तर्कशीलता होती है, वे अपनी कमियों और समस्याओं का ठीक से सामना कर सकते हैं। गलतियाँ करने के बाद वे उनका सामना करने और अपनी भ्रष्टता दूर करने के लिए सत्य की तलाश करने में सक्षम होते हैं। कपटी और धोखेबाज वे होते हैं, जो गलतियाँ करने और अपनी भ्रष्टता प्रकट करने के बाद अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाते या अपनी गलतियाँ नहीं स्वीकार पाते, अपना असली व्यक्तित्व छिपाने और अपना चरित्र बेदाग दिखाने के लिए हमेशा दिखावा करते हैं। मुझे शैतान ने बहुत भ्रष्ट कर दिया था और मैं तमाम तरह के भ्रष्ट स्वभावों से घिरी हुई थी। भटकाव अनुभव करना और भ्रष्टता प्रकट करना सामान्य बात है। अगर मैं न खुलती, वे भ्रष्ट स्वभाव अभी भी भीतर ही छिपे रहते, तो क्या मैं अभी भी एक भ्रष्ट इंसान न होती? जब मैंने लौरा का मूल्यांकन किया, तो मैंने उसकी आलोचना और निंदा करने में नकली अगुआ का अनुसरण किया, ताकि अगुआ की नजरों में अपनी छवि बनाए रख सकूँ; इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अगर मुझमें मानवता और तर्कशीलता होती, तो मैंने इस समस्या का सामना किया होता, दूसरों पर प्रकट किया होता कि कैसे मैंने भ्रष्टता दिखाई थी, कैसे मुझे परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर कर मेरा न्याय किया गया, और अपने भ्रष्ट स्वभाव के बारे में मैंने क्या सीखा, ताकि हर कोई मेरी असलियत देख सके। लेकिन मैंने हमेशा भ्रष्टता दिखाने के बाद दिखावा किया, दूसरों के मन में अपनी प्रतिष्ठा और छवि की रक्षा करने की उम्मीद की। मैं कितनी शर्मनाक और घिनौनी थी! मैं हमेशा यही सोचती थी कि अगर मेरे द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता सिर्फ एक छोटी-सी समस्या होती—एक स्पष्ट भ्रष्ट स्वभाव जो बहुत लोगों में आम होता है—तो भले ही मैं खुल जाती, फिर भी शायद इससे मेरी प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान न पहुँचता, इसलिए मैं लोगों के सामने खुद को उजागर कर सकती थी। लेकिन इस बार मैंने किसी की निंदा करने में नकली अगुआ का साथ दिया था। यह एक गंभीर अपराध था—इसे प्रकट करना आसान बात नहीं थी। इससे लोगों को दिख जाता कि मेरा चरित्र खराब है और मैं गरिमाहीन हूँ, और मेरी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुँचता। इसलिए मैं खुलने को तैयार नहीं थी। इसके बजाय मैंने दूसरों के साथ माइंड गेम खेले और इसके बारे में चुप रही—मैं वास्तव में धोखेबाज थी! तभी मुझे एहसास हुआ कि अपनी भ्रष्टता खुलकर बताने की मेरी अनिच्छा न केवल मेरे घमंड और गर्व की प्रतीक है, बल्कि वह मेरा छिपा हुआ धोखेबाज और दुष्ट शैतानी स्वभाव भी प्रकट करती है।
बाद में, मैं इस समस्या पर चिंतन करती रही और मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “जब कुछ होता है, तो हो सकता है कि वे कुछ न बोलें या हलकेपन से कोई विचार व्यक्त न करें, बल्कि हमेशा चुप ही रहें। इसका यह मतलब नहीं कि ऐसे लोग सही हैं; इसके विपरीत, यह दर्शाता है कि वह भली-भाँति छद्मवेश धारण किए हुए है, कि उसने बातें छिपा रखी हैं, कि उसकी धूर्तता गहरी है। अगर तुम किसी और के सामने नहीं खुलते, तो क्या परमेश्वर के सामने खुल सकते हो? और अगर तुम परमेश्वर के साथ भी सच्चे नहीं हो, और उसके सामने खुल नहीं सकते, तो क्या तुम अपना दिल उसे दे सकते हो? निश्चित रूप से नहीं। तुम परमेश्वर के साथ दिल से एक नहीं हो सकते, बल्कि अपने दिल को उससे अलग रख रहे हो! क्या तुम लोग दूसरों के साथ संगति करते समय खुलकर वह कह पाते हो, जो वास्तव में तुम्हारे दिल में होता है? अगर कोई हमेशा वही कहता है जो वास्तव में उसके दिल में होता है, अगर वह ईमानदारी से बात करता है, अगर वह सरलता से बोलता है, अगर वह ईमानदार है, और अपने कर्तव्य का पालन करते हुए बिल्कुल भी असावधान नहीं होता, और अगर वह उस सत्य का अभ्यास कर सकता है जिसे वह समझता है, तो इस व्यक्ति के पास सत्य प्राप्त करने की आशा है। अगर व्यक्ति हमेशा अपने आपको ढक लेता है और अपने दिल की बात छिपा लेता है ताकि कोई उसे स्पष्ट रूप से न देख सके, अगर वह दूसरों को धोखा देने के लिए झूठी छवि बनाता है, तो वह गंभीर खतरे में है, वह बहुत परेशानी में है, उसके लिए सत्य प्राप्त करना बहुत मुश्किल होगा। तुम व्यक्ति के दैनिक जीवन और उसकी बातों और कामों से देख सकते हो कि उसकी संभावनाएँ क्या हैं। अगर यह व्यक्ति हमेशा दिखावा करता है, खुद को दूसरों से बेहतर दिखाता है, तो यह कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य को स्वीकार करता है, और उसे देर-सवेर बेनकाब करके हटा दिया जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर ने बताया कि कैसे दिखावा करने वाले अपनी समस्याओं का सामना नहीं कर पाते, गलतियाँ करने पर खुलते नहीं, और हमेशा दूसरों को धोखा देकर उन्हें ढकते हैं। उनके दिल बंद होते हैं। ऐसे लोग विशेष रूप से दुष्ट होते हैं—वे पूरे धोखेबाज होते हैं। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद और धोखेबाजों से घृणा करता है। धोखेबाज लोग अंततः उजागर कर हटा दिए जाएँगे। मैं सोचा करती थी कि दिखावा करना केवल प्रतिष्ठा और हैसियत की लालसा का संकेत है, जिसका मतलब यह नहीं होता कि वह बुरा व्यक्ति या मसीह-विरोधी है, जो कुकर्म करता है, कलीसिया का कार्य बाधित करता है और दूसरों को नुकसान पहुँचाता है। मैंने नहीं सोचा था कि इससे मुझे हटा दिया जाएगा। लेकिन परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि ये सब सिर्फ मेरी धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं और चीजों के बारे में मेरा दृष्टिकोण विकृत है। मैंने नकली अगुआ के साथ लौरा की निंदा करने में अपने विवेक की उपेक्षा की, इस प्रकार एक कुकर्मी को उकसाया। परमेश्वर मेरा अपराध पहले से बखूबी जानता था, पर मैं फिर भी उसे सामने लाने के लिए तैयार नहीं थी, और मैंने दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए ढोंग करने की कोशिश की। इसने प्रकट किया कि कैसे मैंने सत्य से प्रेम और वास्तव में पश्चात्ताप नहीं किया। मैंने सत्य का अभ्यास नहीं किया और धोखेबाजी और धोखाधड़ी में भी शामिल रही : परमेश्वर मुझसे घृणा क्यों नहीं करेगा? अगर मैं ऐसा ही करती रही, तो जरूर उजागर कर हटा दी जाऊँगी। चिंतन के जरिये मैंने जाना कि कैसे ईमानदारी बरतने में विफल रहने और न खुलने के गंभीर परिणाम होते हैं। मुझे काफी डर लगा, इसलिए मैंने जल्दी से चीजें बदलनी चाहीं।
बाद में, मुझे परमेश्वर के और वचन मिले : “तुम्हें चिंतन कर खुद को जानने में समर्थ होना चाहिए। तुम्हें भाई-बहनों की मौजूदगी में खुद को खोलकर पेश करने और अपनी सच्ची दशा के बारे में संगति करने की हिम्मत दिखानी चाहिए। अगर तुम खुल कर पेश नहीं आ सकते, या अपने भ्रष्ट स्वभाव का विश्लेषण नहीं कर सकते; अगर तुम अपनी गलतियाँ मानने की हिम्मत नहीं रखते, तो तुम सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हो, खुद को जाननेवाला व्यक्ति होना तो दूर की बात है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास)। “चाहे लोग कोई भी कर्तव्य निभाएँ या कुछ भी करें, ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है—उनका मिथ्याभिमान और दंभ, या परमेश्वर की महिमा? लोगों को किसे चुनना चाहिए? (परमेश्वर की महिमा।) क्या ज्यादा महत्वपूर्ण हैं—तुम्हारे दायित्व, या तुम्हारे स्वार्थ? तुम्हारी जिम्मेदारियाँ ही सबसे महत्वपूर्ण हैं, और तुम उनके प्रति कर्तव्यबद्ध हो। ... जब तुम सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करते हो, तो एक सकारात्मक प्रभाव होगा, और तुम परमेश्वर की गवाही दोगे, जो शैतान को शर्मिंदा करने और परमेश्वर की गवाही देने का एक तरीका है। परमेश्वर की गवाही देने और शैतान को उसके खिलाफ विद्रोह करने और उसे अस्वीकार करने का अपना दृढ़ संकल्प दिखाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करना : यह शैतान को शर्मसार करना और परमेश्वर की गवाही देना है—यह सकारात्मक है और परमेश्वर के इरादों के अनुसार है” (परमेश्वर की संगति)। परमेश्वर के वचनों के भीतर से मुझे अभ्यास का एक मार्ग मिला। जो भी भ्रष्टता हम प्रकट करते हैं या जो भी गलतियाँ हम करते हैं, हमें उन्हें बहादुरी से स्वीकारना चाहिए, खुलकर बोलना चाहिए और दूसरों के साथ संगति में अपने भ्रष्ट स्वभाव का गहन विश्लेषण करना चाहिए। यह शैतान से संबंध तोड़ने, वास्तविक कर्मों का उपयोग कर उसे लज्जित करने और परमेश्वर के लिए गवाही देने का तरीका है। यह सच्चा पश्चात्ताप दिखाता है। खुलकर बताने के बाद चाहे हमारे घमंड, गर्व, प्रतिष्ठा और हैसियत को कितना भी नुकसान पहुँचे, हमें अहं के विरुद्ध विद्रोह कर सत्य का अभ्यास करना चाहिए और परमेश्वर की गवाही देने को तरजीह देनी चाहिए। लौरा के अपने मूल्यांकन में मैंने तथ्य झुठलाए थे और उसकी निंदा करने में एक नकली अगुआ का साथ दिया था। इस अनुभव के जरिये, मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ प्राप्त हुई। मैं जान गई कि मुझे खुलकर बोलना और भाई-बहनों के सामने खुद को उजागर करना चाहिए। यही है, जो मुझे करना चाहिए। अगर मैं अपने घमंड और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए सबके सामने खुलने में विफल और परमेश्वर के वचन पढ़ने से सीखे सबकों की गवाही देने में असमर्थ रही, तो मैं शैतान की साजिश में फँसकर अपनी गवाही खो दूँगी। साथ ही, मेरी पहले यह भ्रामक धारणा थी कि अपनी विफलताओं पर चर्चा करना शर्मनाक है और यह कोई गवाही नहीं है। बाद में, मैं समझ गई कि अगर मैं अपना घमंड और अभिमान छोड़ पाऊँ, अपने भ्रष्ट स्वभाव से बँधकर न रहूँ, अपनी असफलता के बारे में संगति में खुलकर बोलूँ और वास्तव में पश्चात्ताप कर सकूँ, तो यह वास्तव में एक तरह की गवाही होगी। जब मुझे यह पता चला, तो मेरी सारी चिंताएँ दूर हो गईं।
इसके बाद, मैंने संगति में अपने अनुभव के बारे में सभी को खुलकर बताया और आश्चर्य की बात है कि भाई-बहनों ने कहा : “आपके अनुभव के बारे में सुनना बहुत मददगार है। हम भी अक्सर इस तरह का भ्रष्ट स्वभाव दिखाते हैं, बस हम तुरंत ध्यान नहीं देते और यह अनदेखा रह जाता है। इस बारे में आपकी संगति कि आपने अपनी भ्रष्टता कैसे पहचानी और परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से उसके सार की समझ प्राप्त की, हमारे लिए बहुत ही शिक्षाप्रद रहा है।” बाद में, भाई-बहनों ने परमेश्वर के वचनों के दो अंशों पर मेरे साथ संगति की। उन्होंने मेरे द्वारा लोगों का निष्पक्ष मूल्यांकन न करने के सार और परिणामों की गहरी समझ हासिल करने में मेरी मदद की। लोगों का निष्पक्ष मूल्यांकन करने में विफल रहना उन पर झूठा आरोप लगाने या उन्हें फँसाने जैसा ही है; यह बाहर निकलने और दबाने का ही एक रूप है। अगर मैं मनमाने ढंग से किसी की निंदा करती हूँ और इससे वह नकारात्मक हो जाता है, या कोई नकली अगुआ उस निंदा के आधार पर किसी को दंडित करता है, उसे अपने कर्तव्य में बने रहने से रोक देता है और उसका जीवन-प्रवेश बाधित कर देता है, तो मैंने बुराई की है। मुझे इस बात की भी स्पष्ट समझ प्राप्त हुई कि लोगों का मूल्यांकन करते समय किन सिद्धांतों का अभ्यास करना चाहिए। बाद में, जब लौरा को यह सब पता चला, तो उसने मेरे बारे में बुरा नहीं सोचा; जब मैं उसके पास प्रश्न लेकर जाती, तो वह उनका पहले की तरह ही ईमानदारी से उत्तर देती। कलीसिया ने न तो मेरा काम बदला, न ही मुझे बर्खास्त किया। इन नतीजों ने मेरी मूल धारणाएँ और कल्पनाएँ पूरी तरह से उलट दीं। मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। इन सारी बातों ने मुझे परमेश्वर की विश्वसनीयता और धार्मिकता के बारे में और ज्यादा जागरूक किया। अगर हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करते हैं, तो हमारे पास एक मार्ग होगा। परमेश्वर को धन्यवाद!