54. खतरे के बीच

ली शिन, चीन

सन 2011 के दिसंबर महीने में, कई कलीसियाओं के भाई-बहनों को एक-के-बाद-एक गिरफ्तार कर लिया गया था। इससे आई मुश्किलों से निपटने की जिम्मेदारी हमारी कलीसिया ने बहन चेन शी, बहन लियांग शिन और मुझे अलग-अलग सौंपी थी। 25 दिसंबर को लंच के ठीक बाद मुझे फोन आया। उधर से बहन बहुत व्यग्रता से बोल रही थी, “ली शिन, बुरी खबर है!” चेन शी को यह कहते सुनकर मेरा कलेजा मुँह को आ गया। उसने मुझसे सांकेतिक भाषा में कहा कि लियांग शिन को पुलिस ने सुबह गिरफ्तार कर लिया, कलीसिया की धनराशि भी जब्त कर ली। चेन शी ने बताया कि शायद उसका भी पीछा किया जा रहा है, इसलिए उसने मुझसे हालात से निपटकर जल्द निकल जाने को कहा।

मैं सोफे पर बैठ गई, सोचने लगी, “पुलिस काफी समय से हमारा पीछा और निगरानी करती रही होगी, तभी वे तैयारी से आए थे। मुझे पता था कि कलीसिया की किताबें और संपत्ति छिपाने की एक जगह है। चेन शी और लियांग शिन दोनों वहाँ जा चुकी थीं। मुझे उन चीजों को जल्द किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देना चाहिए, वरना पुलिस कभी भी जब्त कर सकती है।” मगर फिर मैंने मन ही मन सोचा, “शायद पुलिस को भी उस जगह का पता चल गया होगा, अगर मैं अभी वहां गई तो क्या यह खुद को उनके हवाले कर देना नहीं होगा? पकड़े जाने पर पुलिस यकीनन मुझे यातना देगी। अगर मैं यातना न सह सकी और परमेश्वर को धोखा दे दिया, तो मेरा अंत और मंजिल अच्छी नहीं होगी, है न?” मैंने इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतनी ही ज्यादा डर गई। लगा, बेहतर होगा जहां हूँ वहीं रहूँ और मामला शांत होने तक इंतज़ार करूँ। लेकिन मैं खासी परेशान थी, क्योंकि कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचा था, और उनकी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी थी। ऐसे वक्त मैं डरपोक कैसे हो सकती थी? मन में अपनी सुरक्षा और कलीसिया के हितों के बीच द्वंद्व चल रहा था, समझ नहीं आया क्या करूँ। मगर फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो, तब तुम अपने हितों, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा, अपने परिवार के सदस्यों के बारे में ही सोच रहे होते हो। तुमने कब मेरे लिए क्या किया है? तुमने कब मेरे बारे में सोचा है? तुमने कब अपने आप को, हर कीमत पर, मेरे लिए और मेरे कार्य के लिए समर्पित किया है? मेरे साथ तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी वफ़ादारी की वास्तविकता कहाँ है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने सटीकता से मेरी हालत का खुलासा किया। बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और सताए जाने के खतरे के सामने, मेरा ध्यान परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होने या कलीसिया के हितों की रक्षा करने पर नहीं था। इसके बजाय मेरा ध्यान सिर्फ अपने हितों पर था। मैं गिरफ्तारी और यातना से डरी हुई थी, मुझे इस बात का और भी ज्यादा डर था कि यातना से टूट जाऊंगी, यहूदा बन जाऊंगी, और इस तरह मैं अपना अच्छा अंत और मंजिल कभी हासिल नहीं कर पाऊँगी। मेरा सारा डर सिर्फ अपने हितों की सुरक्षा को लेकर था। इस संकट की इस घड़ी में, खुद को बचाने के लिए मैंने कलीसिया के हितों की अनदेखी की और अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहा। मैं बहुत स्वार्थी और घिनौनी थी! पुलिस जितनी भी दुष्ट हो, अब भी परमेश्वर के हाथ में थी, परमेश्वर की इजाजत के बिना, वह मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकती थी। यह सोचकर मुझे सुकून मिला, डर कम हुआ। मैंने सोचा कि संपूर्ण मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करने के लिए प्रभु यीशु को किस तरह सूली पर चढ़ा दिया गया था। प्रभु यीशु परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए दृढ़तापूर्वक अपना जीवन क्यों दे पाया? इससे जुड़े परमेश्वर के वचनों के अंशों पर मैंने नजर डाली, जिनमें कहा गया था : “यीशु परमेश्वर का आदेश—समस्त मानवजाति के छुटकारे का कार्य—पूरा करने में समर्थ था, क्योंकि उसने अपने लिए कोई योजना या व्यवस्था किए बिना परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखाई। इसलिए वह परमेश्वर का अंतरंग—स्वयं परमेश्वर भी था, एक ऐसी बात, जिसे तुम सभी लोग अच्छी तरह से समझते हो। (वास्तव में, वह स्वयं परमेश्वर था, जिसकी गवाही परमेश्वर के द्वारा दी गई थी। मैंने इसका उल्लेख मुद्दे को उदहारण के साथ समझाने हेतु यीशु के तथ्य का उपयोग करने के लिए किया है।) वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना को बिल्कुल केंद्र में रखने में समर्थ था, और हमेशा स्वर्गिक पिता से प्रार्थना करता था और स्वर्गिक पिता की इच्छा जानने का प्रयास करता था। उसने प्रार्थना की और कहा : ‘परमपिता परमेश्वर! जो तेरी इच्छा हो, उसे पूरा कर, और मेरी इच्छाओं के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी योजना के अनुसार कार्य कर। मनुष्य कमज़ोर हो सकता है, किंतु तुझे उसकी चिंता क्यों करनी चाहिए? मनुष्य, जो कि तेरे हाथों में एक चींटी के समान है, तेरी चिंता के योग्य कैसे हो सकता है? मैं अपने हृदय में केवल तेरी इच्छा पूरी करना चाहता हूँ, और चाहता हूँ कि तू वह कर सके, जो तू अपनी इच्छाओं के अनुसार मुझमें करना चाहता है।’ यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मेरा दिल छू लिया। शैतान की सत्ता में रहने वाली मानवजाति के छुटकारे के लिए, प्रभु यीशु सूली पर चढ़ गया, भयानक दर्द और अपमान सहन करते हुए वह मानवजाति के लिए पाप बलि बन गया। उसने बिना किसी शर्त या बहाने के, परमेश्वर के आदेश को सबसे आगे रखा, अपना नफा-नुकसान नहीं देखा। लेकिन, जब मेरे कर्तव्य निभाने की बारी आयी, तो मैंने न परमेश्वर के इरादों पर विचार किया और न ही अपनी जिम्मेदारी पूरी की। मैंने सिर्फ अपनी सुरक्षा और आखिरी मंजिल के बारे में सोचा। उस पल, मैंने शर्मिंदगी महसूस की, खासा पछतावा और परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस किया। मैंने तुरंत घुटने टेक दिए, पश्चात्ताप के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की।

उस पल, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया, जो मैं अक्सर गाया करती थी। यह भजन पतरस की प्रार्थना थी जो वह अपने परीक्षण के दौरान भयंकर यंत्रणा में होने पर करता था,

मैं अपना पूरा जीवन परमेश्वर को समर्पित करना चाहता हूँ

1  ... तू जानता है कि मैं क्या कर सकता हूँ, और तू यह भी जानता है कि मैं क्या भूमिका निभा सकता हूँ। मैं खुद को तेरे आयोजनों की दया पर रखना चाहता हूँ और मेरे पास जो कुछ भी है, वह सब मैं तुझे समर्पित कर दूँगा।

2  केवल तू ही जानता है कि मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ। यद्यपि शैतान ने मुझे बहुत मूर्ख बनाया और मैंने तेरे विरुद्ध विद्रोह किया, किंतु मुझे विश्वास है कि तू मुझे उन अपराधों के लिए स्मरण नहीं करता, और कि तू मेरे साथ उनके आधार पर व्यवहार नहीं करता। मैं अपना संपूर्ण जीवन तुझे समर्पित करना चाहता हूँ। मैं कुछ नहीं माँगता, और न ही मेरी अन्य आशाएँ या योजनाएँ हैं; मैं केवल तेरे इरादों के अनुसार कार्य करना चाहता हूँ और तेरी इच्छा के अनुसार चलना चाहता हूँ। मैं तेरे कड़वे कटोरे में से पीऊँगा और मैं तेरे आदेश के लिए हूँ।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस ने यीशु को कैसे जाना

पतरस की प्रार्थना ने मेरे दिल को छू लिया और मुझे प्रेरित किया। परमेश्वर जानता था कि मेरा आध्यात्मिक कद क्या है, और मैं कौन-से कर्तव्य निभा सकती हूँ; चूँकि यह कर्तव्य मुझे दिया गया था, इसलिए मुझे पता था यह मुझे बेझिझक पूरा करना चाहिए। तब मैंने अपने निजी हितों को किनारे कर परमेश्वर के इरादों पर विचार करने की ठान ली। अगले ही दिन, मैं किताबें और संपत्ति सही जगह पहुँचाने निकल पड़ी। तब मुझे बड़ी फिक्र हुई। डर था रास्ते में कुछ गलत न हो जाए, इसलिए परमेश्वर से लगातार प्रार्थना करती रही। मुझे परमेश्वर का वचन याद आया : “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के इन वचनों ने तुरंत मुझे आस्था दी। मैं पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में थी, रास्ते में खतरा होना न होना, परमेश्वर के ऊपर निर्भर था। मुझे अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ अपना काम पूरा करना था। परमेश्वर के साथ होने से मुझे डरने की जरूरत नहीं थी। फिर, जब किताबों और संपत्ति को सुरक्षित स्थान पहुंचा दिया गया, तब आखिरकार मेरा दिल शांत हुआ।

एक साल बाद, दिसंबर 2012 में, ऐसा समय आया जब सुसमाचार चारों ओर बड़े जोर-शोर से फैल रहा था, देश भर में बहुत सारे लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार रहे थे। कम्युनिस्ट पार्टी आगबबूला हो गई थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर हमले कर उसे बदनाम करने के लिए उसने अपनी मीडिया का इस्तेमाल किया, भाई-बहनों का अंधाधुंध दमन कर उन्हें गिरफ्तार किया। मैं जिस कस्बे में रहती थी, वहां के दस से ज्यादा भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया था। एक दिन, जब मैं एक सभा के लिए कस्बे से बाहर गई हुई थी, एकाएक बहन तियान हुई का फोन आया। उसने घबराहट से कहा, “बुरी खबर है, कुछ हो गया...।” मैं समझ गई कि शायद वह फोन पर साफ-साफ नहीं बता पा रही थी, तो मैं फोन काटकर तुरंत वापस चल पड़ी। तियान हुई से मिलकर मुझे पता चला कि पुलिस सुसमाचार फैलाने वाली दो बहनों को तलाश रही है। पुलिस ने प्रचार तख्तों, टेलीफोन खंभों, कारखानों के दरवाजों, सड़कों में सभी जगह पर उनके पोस्टर लगा दिए थे। उनकी फोटो लेकर काउंटी दोराहों-चौराहों पर, आती-जाती गाड़ियों और पैदल चलने वालों की बारी-बारी जांच कर रही थी। तियान हुई ने बताया कि भाई-बहनों ने इन दोनों बहनों को किसी अस्थाई जगह छिपा दिया था। मगर, हमारे भाई-बहनों के कई परिवार वालों ने यह खबर सुनी थी कि सरकार विश्वासियों को गिरफ्तार करने के अपने अभियान को तेज कर रही है, उन्हें बड़ी फिक्र थी कि उनके परिवार वालों को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा, इसलिए उन्होंने भाई-बहनों को घर में रोक लिया और सभाओं में जाने की अनुमति नहीं दी। मैंने तियान हुई से इस बारे में चर्चा की और हमने फैसला किया कि भाई-बहनों के लिए अलग से सिंचन और सहारे की तैयारी की जाए, ताकि सब सत्य समझ सकें, बड़े लाल अजगर की काली ताकतों के आगे बेबस न रहें, और ऐसे माहौल में भी डट कर खड़े रहें।

एक दिन, मैं एक बहन का साथ देने गई, हमारी संगति पूरी होते-होते आधी रात पार हो गई। मैं खाली सड़क पर चुपचाप और अकेली चलते हुए सोचने लगी, “मुझे इतनी देर रात इस बहन को सहारा देना पड़ा, और अभी भी बहुत-से भाई-बहनों को सिंचन और सहारे की जरूरत है। अभी माहौल बहुत ख़राब है, अगर इस तरह घर-घर दौड़ती-भागती रही और मुझे पकड़ लिया गया, तो पुलिस जाने मुझे कैसी यातना देगी। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर के विश्वासियों से नफ़रत करती है, तो क्या वह मुझे पीट-पीटकर मार डालेगी? अगर मुझे पीटकर मार डाला गया, तो क्या मैं राज्य के आगमन की सुंदरता देख पाऊँगी? यह कर्तव्य निभाना बेहद खतरनाक है! किसी ने भी अभी भाई-बहनों को मेरे इस तरह सहारा देने की स्पष्ट व्यवस्था नहीं की है, तो मैं यह खतरा क्यों मोल ले रही हूँ?” इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, मैं उतना ही ज्यादा डर गई। घर पहुँचने पर मुझे एक बहन का पत्र मिला। सुसमाचार का प्रचार करने के कारण, उसके साथ दर्जन भर से ज्यादा दूसरे भाई-बहन गिरफ्तार हो गए थे। वह अभी-अभी रिहा हुई थी। उसने पत्र में लिखा था कि जेल में कैद भाई-बहनों ने कहा है कि हम उनकी फिक्र न करें। हालांकि वे गिरफ्तार होकर जेल में हैं और कुछ तकलीफें झेल रहे हैं, मगर उन्हें लगता है सुसमाचार का प्रचार करने के लिए सताया जाना सम्मान की बात है। बहन ने यह भी कहा कि कुछ समय बाद यह यकीन हो जाने पर कि पुलिस ने उसका पीछा और निगरानी बंद कर दी है, वह फिर से सुसमाचार का प्रचार करेगी। उसका पत्र पढ़ने के बाद, मुझे बड़ा अपराध-बोध हुआ। ये भाई-बहन जेल में तकलीफ झेल रहे थे, मगर शिकायत करने के बजाय उन्हें सुसमाचार का प्रचार करने के लिए सताया जाना गर्व की बात लगी। फिर मैंने अपने बारे में सोचा। मैं भाई-बहनों को महज सहारा दे रही थी, और गिरफ्तारियों के बाद का थोड़ा काम संभाल रही थी, लेकिन हमेशा फिक्र करती थी कि गिरफ्तार हो जाऊंगी, मुझे पीट-पीट कर मार डाला जाएगा। मैं सिर्फ अपने हितों, अंत और मंजिल के बारे में ही सोचती थी। इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतना ही ज्यादा मुझे पछतावा हुआ और खुद को दोष दिया। मैं इतनी स्वार्थी और घिनौनी हूँ, परमेश्वर के सिंचन और पोषण के लायक नहीं हूँ। ऐसे समय में, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “मैं पहाड़ियों में खिलती कुमुदिनी की प्रशंसा करता हूँ; ढलानों पर फूलों और घास का तो फैलाव होता है, लेकिन वसंत ऋतु के आने से पहले कुमुदिनी पृथ्वी पर मेरी महिमा को चार चाँद लगा देती है—क्या मनुष्य ऐसी चीज़ें हासिल कर सकता है? क्या वह पृथ्वी पर मेरी वापसी से पहले मेरी गवाही दे सकता है? क्या वह बड़े लाल अजगर के देश में मेरे नाम की खातिर खुद को समर्पित कर सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। मैंने एक और अंश भी पढ़ा : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शोधित किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मुझे परमेश्वर के इरादे की थोड़ी समझ आई। हमारी आस्था और समर्पण को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर बड़े लाल अजगर को हमें सताने की इजाजत देता है। अंत के दिनों में, परमेश्वर लोगों के एक समूह को पूर्ण कर विजेता बनाता है, जो हालात के बेहद खतरनाक और डरावना होने के बावजूद अपना कर्तव्य निभाते रह सकें, सत्य पर अमल कर सकें और गवाही में अडिग रह सकें। यही वो समय था जब मुझे परमेश्वर की गवाही में अडिग रहना था, लेकिन अपनी सुरक्षा की खातिर मैं अपना कर्तव्य छोड़कर इन हालात से भाग जाना चाहा। मैं सच में स्वार्थी और घिनौनी थी! फिर मैंने सड़क किनारे के फूलों-पौधों के बारे में सोचा। सर्दी या गर्मी जितनी भी कड़ाके की हो, माहौल जितना भी बुरा हो, अगर परमेश्वर ने यह नियत किया है कि वे उस मौसम में बढ़ें, तो वे फलते-फूलते हैं, सृजनकर्ता के कर्मों की गवाही देते हैं। तो हालात के थोड़ा मुश्किल होते ही मैं दुखी और कमजोर क्यों हो गयी? मैं एक सृजित प्राणी का छोटा-सा कर्तव्य भी क्यों नहीं निभा सकी? मैं सचमुच सड़क किनारे के फूलों-पौधों से भी कमतर थी। मैं परमेश्वर की मौजूदगी में जीने लायक कैसे हो सकती हूँ? मुझे बहुत पछतावा हुआ, तो मैंने आत्मचिंतन किया : हर बार बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और सताए जाने की बात से मेरा सामना होने पर जब मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना होता था, तो मैंने सिर्फ अपने हितों का ही ख्याल क्यों रखा और कलीसिया के कार्य की सुरक्षा के लिए खड़े रहने में क्यों नाकामयाब रही?

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर हमेशा सर्वोच्च और आदरणीय है, जबकि मनुष्य हमेशा नीच और निकम्मा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर हमेशा मनुष्यों के लिए बलिदान करता रहता है और उनके लिए खुद को समर्पित करता है; जबकि मनुष्य हमेशा लेता है और सिर्फ अपने लिए प्रयास करता है। परमेश्वर सदा से मानवजाति के अस्तित्व के लिए कष्ट उठा रहा है, लेकिन मनुष्य कभी भी न्याय या प्रकाश की खातिर कोई योगदान नहीं करता, और अगर मनुष्य कुछ समय के लिए प्रयास करता भी है, तो भी वह हलके-से झटके का भी सामना नहीं कर सकता, क्योंकि मनुष्य का प्रयास केवल अपने लिए होता है, दूसरों के लिए नहीं; मनुष्य हमेशा स्वार्थी होता है, जबकि परमेश्वर हमेशा निस्स्वार्थ होता है; परमेश्वर उस सबका स्रोत है, जो धार्मिक, अच्छा और सुंदर है, जबकि मनुष्य समस्त गंदगी और बुराई को अभिव्यक्त करने वाला है; परमेश्वर कभी अपने न्याय और सुंदरता का सार नहीं बदलेगा, जबकि मनुष्य किसी भी समय और किसी भी स्थिति में न्याय से विश्वासघात करने और परमेश्वर से दूर जाने में पूरी तरह से सक्षम है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर के वचनों के इस अंश ने मेरे दिल को गहराई तक छू लिया। मनुष्य को शैतान की सत्ता से बचाने के लिए परमेश्वर दो बार देहधारी हुआ, और कितने भी अपमान या कष्ट झेले हों, उसने हमेशा सत्य व्यक्त किया, लोगों के उद्धार के लिए कार्य किया, और लोगों को बचाने के अपने लक्ष्य को कभी नहीं छोड़ा। उसका सार निःस्वार्थ और नेक है। मगर, मैं “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “बिना पुरस्कार के कभी कोई काम मत करो,” जैसे शैतानी फलसफों के अनुसार जीती रही, और हर चीज में पहले निजी हितों का ध्यान रखती, मैंने कलीसिया के कार्य का जरा भी ध्यान नहीं रखा। जब किसी काम में ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पड़ती, भविष्य और मंजिल दाँव पर न लगा होता, तो मैं खुद को कम ही खपाती या थोड़ा ही त्याग करती। लेकिन गिरफ्तारी और सताए जाने की की स्थिति का सामना होने पर, मैं लगातार पकड़े जाने, पीट-पीट कर मार दिए जाने, और कभी अच्छा अंत और मंजिल न मिलने से डरने लगती। बार-बार अपना काम छोड़ देना चाहती। मैंने अपने भाई-बहनों की नकारात्मकता और कमजोरी के बारे में नहीं सोचा, न ही परमेश्वर की चिंताओं के बारे में सोचा। मैंने सिर्फ अपने हितों के बारे में विचार किया। कैसे कहा जा सकता है कि मुझमें जमीर है? ये सब सोचकर मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई, तो मैंने घुटने टेककर परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं स्वार्थी हूँ, घिनौनी हूँ, मुझमें मानवता नहीं है। मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ, अपने भाई-बहनों को सिंचन और सहारा देना चाहती हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और भजन याद आया :

सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए

1  तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए।

2  तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मैं अंदर तक हिल गई। अगर किसी दिन मुझे सचमुच गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाए, या यातना देकर मार डाला जाए, तो भी यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने के लिए हुई शहादत ही होगी, जो कि सम्मान की बात है। मृत्यु के बंधन से ऊपर उठकर एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने लायक होना एक जोरदार, शानदार गवाही होगी, जो कि अपने भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीते रहने और एक तुच्छ अस्तित्व के साथ घिसटते रहने से सौ गुना बेहतर है। इन बातों का एहसास होने के बाद, मैंने राहत की गहरी सांस ली।

अगले दिन, हमने कुछ भाई-बहनों को एक साथ सभा करने का आमंत्रण दिया। परमेश्वर के वचनों पर संगति के जरिये सब समझ गए कि परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों के आधार पर चलती है, परमेश्वर हमारी आस्था को पूर्ण करने के लिए, उत्पीड़न और दुख-दर्द को हमारे पास आने की इजाजत देता है, और बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के कार्य में सिर्फ एक सेवा करने वाला है। इस संगति के बाद, सभी लोग दूसरे भाई-बहनों को सहारा देने के लिए अपने कर्तव्य पूरे करने को तैयार हो गए। भाई-बहनों को नकारात्मकता और कमजोरी से उबरकर मजबूत होते देखना मेरे दिल को छू गया। मैं समझ गई कि कोई भी विरोधी शक्ति परमेश्वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को दबा नहीं सकती। उत्पीड़न और गिरफ्तारियों के इस दौर का अनुभव करने के बाद, सबके मन में परमेश्वर के प्रति ज्यादा आस्था थी, मैं जान गई कि यह सब परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ है। मुझे परमेश्वर का यह वचन याद आया : “बड़े लाल अजगर के उत्तरोत्तर ढहने का सबूत परमेश्वर के लोगों की निरंतर परिपक्वता में देखा जा सकता है; इसे कोई भी स्पष्ट रूप से देख सकता है। परमेश्वर के लोगों की परिपक्वता दुश्मन की मृत्यु का संकेत है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10)। बड़े लाल अजगर की अंधाधुंध गिरफ्तारियों का इस्तेमाल परमेश्वर ने अपनी सेवा में अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण करने के लिए किया। इस उत्पीड़न के जरिये, परमेश्वर ने भाई-बहनों की आस्था और समर्पण को पूर्ण किया, और सबने अपने जीवन में तरक्की की। यही प्रभाव परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य होता है। जब मैंने परमेश्वर के वचनों को साकार होते देखा, तो मेरी आस्था बढ़ गई, और अपना कर्तव्य निभाने की मेरी प्रेरणा पहले से कहीं ज्यादा हो गई।

इस घटना के कुछ ही समय बाद, मुझे खबर मिली कि पुलिस ने टेलीफोन निगरानी के जरिये उस कस्बे का पता लगा लिया है जहां तलाशी जा रही बहनें छिपी हुई थीं, और वह घर-घर जाकर उन्हें ढूँढ़ रही थी। पुलिस ने सड़क पर भी नाकाबंदी कर रखी थी। कुछ भाई-बहनों ने खतरा मोल लेकर दोनों बहनों को कस्बे के बाहर एक गुफा वाले आवास में पहुँचा दिया। दो दिन से मौसम बहुत सर्द था, दोनों बहनें छिपने और भागते रहने से थक चुकी थीं, उन्हें खाने को कुछ नहीं मिल रहा था, और लंबे समय तक गुफा में रहना उनके लिए मुश्किल था। इसलिए उन्हें बचाना जरूरी था। मुझे लगा, “पूरी सड़क पर बहनों के पोस्टर लगे हैं, पुलिस आती-जाती गाड़ियों की जाँच कर रही है। अगर हम बहनों को गाड़ी में बिठाकर ले जाने की कोशिश करें और पुलिस ने पकड़ लिया, तो हम पर भगोड़ों को शरण देने का आरोप लगेगा। पुलिस हमें गिरफ्तार कर लेगी, तो हमें पीट-पीट कर भुरता बना दिया जाएगा, और इतनी मार खाकर मेरी मौत हो गई, तो मैं सत्य का अनुसरण कैसे करूंगी, कैसे बचाई जाउंगी?” जब मन में यह विचार कौंधा, तो मुझे अपने स्वार्थी और घिनौनी होने का एहसास हुआ, मैं फिर से सिर्फ अपने बारे में सोच रही थी; मैंने फौरन मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, और उससे अपने दिल की रक्षा करने की विनती की, ताकि निजी हितों का ध्यान दिए बिना उसके साथ खड़ी हो सकूँ। उस पल, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “मनुष्य के कर्तव्य और वह धन्य है या शापित, इनके बीच कोई सह-संबंध नहीं है। कर्तव्य वह है, जो मनुष्य के लिए पूरा करना आवश्यक है; यह उसकी स्वर्ग द्वारा प्रेषित वृत्ति है, जो प्रतिफल, स्थितियों या कारणों पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। केवल तभी कहा जा सकता है कि वह अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है। धन्य होना उसे कहते हैं, जब कोई पूर्ण बनाया जाता है और न्याय का अनुभव करने के बाद वह परमेश्वर के आशीषों का आनंद लेता है। शापित होना उसे कहते हैं, जब ताड़ना और न्याय का अनुभव करने के बाद भी लोगों का स्वभाव नहीं बदलता, ऐसा तब होता है जब उन्हें पूर्ण बनाए जाने का अनुभव नहीं होता, बल्कि उन्हें दंडित किया जाता है। लेकिन इस बात पर ध्यान दिए बिना कि उन्हें धन्य किया जाता है या शापित, सृजित प्राणियों को अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए; वह करते हुए, जो उन्हें करना ही चाहिए, और वह करते हुए, जिसे करने में वे सक्षम हैं। यह न्यूनतम है, जो व्यक्ति को करना चाहिए, ऐसे व्यक्ति को, जो परमेश्वर की खोज करता है। तुम्हें अपना कर्तव्य केवल धन्य होने के लिए नहीं करना चाहिए, और तुम्हें शापित होने के भय से अपना कार्य करने से इनकार भी नहीं करना चाहिए। मैं तुम लोगों को यह बात बता दूँ : मनुष्य द्वारा अपने कर्तव्य का निर्वाह ऐसी चीज़ है, जो उसे करनी ही चाहिए, और यदि वह अपना कर्तव्य करने में अक्षम है, तो यह उसकी विद्रोहशीलता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर)। अपना कर्तव्य निभाना सृजित प्राणी का काम है, और ऐसा करने में हमें कोई शर्त नहीं रखनी चाहिए। माहौल जितना भी खतरनाक क्यों न हो, हमें अच्छा अंत और मंजिल मिले न मिले, हमें अपना कर्तव्य पूरा करना ही चाहिए। एक सृजित प्राणी के पास यह विवेक होना चाहिए। अपनी बहनों को बचाना मेरा कर्तव्य था। बहनों को बचाते वक्त मुझे गिरफ्तार कर पीट-पीटकर मार डाला जाए, तो भी सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने की खातिर जान दूंगी, जो कि गर्व की बात होगी! परमेश्वर के इरादे की समझ होने पर, मैं अन्य लोगों के साथ दोनों बहनों को बचाने के लिए निकल पड़ी। हमने उन्हें कार की डिकी में छुपा दिया, और पुलिस की नजरों से बचने के लिए, मुख्य सड़कों पर न जाकर हम जंगल की एक पतली सड़क से निकल गए। मैं पूरे सफर के दौरान परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, हमारी रक्षा करने की विनती करती रही। करीब एक घंटे बाद, हम अपनी बहनों को सफलतापूर्वक उनकी मंजिल तक ले आए, लगा मानो बहुत भारी बोझ उतर गया हो। काउंटी की ओर वापस जाते समय पुलिस ने हमारी कार रोक ली, लेकिन कार में वे लोग नहीं थे जिन्हें वे खोज रहे थे, तो उन्होंने हमें जाने दिया। मैं बाल-बाल बच गई थी!

अपने अनुभव के जरिए मैं समझ पाई कि परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने, उसके विश्वासियों को दबाने और गिरफ्तार करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी पागलपन की हद तक पहुँच चुकी है, मगर वह कितनी भी उन्मत्त क्यों न हो जाए, वह अब भी परमेश्वर की संप्रभु व्यवस्थाओं के अधीन है, वह परमेश्वर के हाथों में सिर्फ एक सेवा करने वाली है। आखिरकार मैं यह भी समझ गई कि परमेश्वर की इन बातों का क्या अर्थ है : “मेरी सभी योजनाओं में बड़ा लाल अजगर मेरी विषमता, मेरा शत्रु और साथ ही मेरा सेवक भी है; इसलिए मैंने उससे अपनी ‘अपेक्षाओं’ को कभी भी शिथिल नहीं किया है। इसलिए मेरे देहधारण के कार्य का अंतिम चरण उसके घराने में पूरा होता है—यह बड़ा लाल अजगर द्वारा मेरी उचित तरीके से सेवा करने में अधिक सहायक है, जिसके माध्यम से मैं उस पर विजय पाऊँगा और अपनी योजना पूरी करूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 29)। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि अंत के दिनों में, परमेश्वर अपना कार्य बड़े लाल अजगर की माँद, चीन में कर रहा है। हमारी आस्था को पूर्ण करने और लोगों के एक समूह को पूर्ण कर विजेता बनाने के लिए परमेश्वर बड़े लाल अजगर की सेवा इस्तेमाल करता है। परमेश्वर सच में बुद्धिमान है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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