94. परमेश्वर पर भरोसा करना सबसे बड़ी बुद्धिमानी है

मा होंग, चीन

2011 की पतझड़ में, मैं अपने गाँव की एक महिला फांग मिन से मिली, जो अच्छी इंसानियत वाली और बहुत दयालु थी। वह 20 से भी ज्यादा वर्षों से प्रभु पर विश्वास कर रही थी, वह हमेशा सभाओं में जाती और बाइबल पढ़ती थी। वह एक सच्ची विश्वासी थी, इसलिए मैं उसके साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार साझा करना चाहती थी। उस समय, मुझे परमेश्वर पर विश्वास करते ज्यादा समय नहीं हुआ था, और मैं सत्य बहुत कम समझती थी, इसलिए मैंने एक बहन, सॉन्ग जियायिन से फांग मिन को अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की गवाही देने को कहा। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य पर संगति द्वारा और उसके वचन पढ़ने के द्वारा, फांग मिन ने आगे जाँच-पड़ताल करना तय कर लिया। उस समय, मैं बहुत खुश हुई। पर कुछ दिन बाद जब मैं फांग मिन से मिलने गई, तो उसने बताया कि वह जाँच-पड़ताल जारी नहीं रखना चाहती। उसने कहा, “मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े और वे मुझे अच्छे लगे, इसलिए मैंने अपनी माँ को फोन करके उसे प्रभु के लौटने की खुशखबरी दी। मेरी माँ ने कहा कि तुम लोग जिसमें विश्वास करते हो वह चमकती पूर्वी बिजली है, और मुझे इस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। हमारे प्रचारक अक्सर कहते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में हैं, परमेश्वर का कोई वचन और कार्य बाइबल के बाहर नहीं है। वे कहते हैं कि चमकती पूर्वी बिजली के उपदेश बाइबल से अलग हैं, और यह प्रभु की वापसी नहीं हो सकती।” मैंने देखा कि फांग मिन अपनी माँ और अपनी कलीसिया के प्रचारकों द्वारा गुमराह और बाधित कर दी गई है, इसलिए मैंने व्यग्रता से कहा, “अगर धर्मावलंबी यह मानते हैं कि परमेश्वर के वचन और कार्य सिर्फ बाइबल में हैं, बाइबल के बाहर नहीं, तो क्या यह परमेश्वर को धर्मग्रंथों के कथनों तक सीमित करना नहीं है? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर बाइबल के बाहर नया कार्य नहीं कर सकता, और कोई नए वचन नहीं कह सकता? परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, जीवन का स्रोत है। वह बहुत सर्वशक्तिमान, बुद्धिमान और प्रचुर है। क्या बाइबल अकेले समूचे प्रभु का प्रतिनिधित्व कर सकती है? परमेश्वर के वचन और कार्य सिर्फ वही कैसे हो सकते हैं, जो बाइबल में दर्ज हैं? परमेश्वर का कार्य हमेशा नया होता है, पुराना नहीं। उसके कार्य का हर चरण पिछले चरण पर निर्मित होता है, और वह हर चरण में नया और पहले से ऊंचा कार्य करता है। उदाहरण के लिए, पुराने व्यवस्थान में व्यवस्था के युग में पृथ्वी पर रहने में लोगों की अगुआई करने के लिए परमेश्वर ने व्यवस्थाएँ जारी की। लेकिन नए व्यवस्थान में, अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने व्यवस्था के युग का कार्य नहीं दोहराया। इसके बजाय, उसने व्यवस्था के युग के अपने कार्य के आधार पर पूरी मानवजाति का क्रूस पर चढ़ने के द्वारा छुटकारे का कार्य किया। क्या यह नया कार्य पुराने विधान में दर्ज है? नहीं। जो लोग पुराने विधान से चिपके रहे, उन्होंने प्रभु यीशु का नया कार्य नहीं स्वीकारा, और उन सबको परमेश्वर ने त्यागकर हटा दिया। अंत के दिनों के कार्य के इस चरण के बारे में भी यही सच है। उद्धार के कार्य की अपनी योजना के आधार पर, परमेश्वर लोगों की जरूरतों के अनुसार न्याय का कार्य करता है, ताकि लोगों के पाप की समस्या पूरी तरह हल कर लोगों को शुद्ध कर सके। मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करके और परमेश्वर का नया कार्य स्वीकार करके ही हम परमेश्वर का उद्धार और उसके राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। तुम्हारी माँ ने परमेश्वर के नए वचन नहीं पढे हैं—वह नहीं समझती इसीलिए उसने ऐसा कहा। तुम पहले जाँच-पड़ताल कर सकती हो, आँख मूंदकर फैसला मत करो। अगर तुम प्रभु की वापसी से चूक गई, तो तुम्हें परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका नहीं मिलेगा।” पर मैंने जैसे भी समझाया, वह नहीं मानी। मैं चाहती थी कि कोई दूसरी बहन फांग मिन के साथ संगति करे, पर वह किसी से मिलने को तैयार नहीं थी। उसने यह भी कहा कि कुछ दिनों में वह अपने गृहनगर लौट रही है और ट्रेन की टिकट ले चुकी है। मुझे बहुत चिंता थी—वह बहुत परेशान थी और पहले ही डगमगा गई थी। गृहनगर लौटने पर क्या उसका पादरी और प्रचारक उसे और परेशान नहीं करेंगे? लेकिन फांग मिन फैसला कर चुकी थी और मैं जानती थी कि वह इस समय मेरी बात नहीं सुनेगी, इसलिए मैं चली आई।

घर पहुँचकर मैं सोचने लगी कि अब जबकि फांग मिन गृहनगर जा रही है तो उसे समझाने की कितनी कम आशा है। मुझमें थोड़ी ही आस्था थी और सुसमाचार साझा करना बहुत मुश्किल लगता था। मैंने जितना सोचा, मुझे उतना ही बुरा लगा। मैं नकारात्मक महसूस कर ही रही थी कि मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “अनुग्रह के युग में, यीशु में मनुष्यों के लिए दया और अनुग्रह था। यदि सौ में से एक भेड़ खो जाए, तो वह निन्यानबे को छोड़कर एक को खोजता था। यह पंक्ति कोई यांत्रिक कार्य नहीं दर्शाती, न ही कोई विनियम दर्शाती है, बल्कि यह मानव जाति के उद्धार को लेकर परमेश्वर के गहरे इरादे, और मानव जाति के लिए परमेश्वर के गहरे प्रेम को दर्शाता है। यह कोई काम करने का तरीका नहीं है, बल्कि यह उसका स्वभाव है और उसकी मानसिकता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन बहुत मार्मिक थे। अगर सौ में से एक भी भेड़ खो जाए, तो परमेश्वर निन्यानवे को भूलकर उसी एक खोई भेड़ को ढूंढ़ेगा। मैंने देखा कि लोगों को बचाने की परमेश्वर की इच्छा कितनी गंभीर और सच्ची है। परमेश्वर किसी भी ऐसे को खोना नहीं चाहता जिसे उसमें सच्चा विश्वास है, लोगों के लिए उसका प्रेम इतना महान है। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मुझे शर्म आई। भ्रष्ट मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर देहधारण करके पृथ्वी पर आया और एक बड़ी कीमत चुकाई, इस उम्मीद में कि परमेश्वर के सच्चे विश्वासी परमेश्वर के सामने आकर उसका उद्धार स्वीकार करेंगे। पर जब मुझे सुसमाचार के प्रचार में मुश्किल का सामना करना पड़ा, तो मैं नकारात्मक हो गई और हाथ पीछे खींच लिए। मैंने परमेश्वर के इरादे पर जरा भी ध्यान नहीं दिया। हालांकि फांग मिन गुमराह हो गई थी और परेशान थी, और धार्मिक धारणाएँ रखती थी, पर वह परमेश्वर की सच्ची विश्वासी थी। मुझे उसके साथ सत्य पर संगति करने पर पूरा जोर लगाना चाहिए था, ताकि उसकी धारणाओं को दूर कर सकूँ और उसे परमेश्वर के सामने ला सकूँ। यह मेरा कर्तव्य था। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया : “मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। सभी चीजें परमेश्वर के हाथ में हैं, लोगों के विचार और भाव भी। मनुष्य की नजर में, फांग मिन अब परेशान थी, अपने गृहनगर जाने वाली थी, और उसे सुसमाचार सुनाए जाने की उम्मीद बहुत कम थी। लेकिन परमेश्वर की हर चीज पर संप्रभुता है, अगर वह परमेश्वर की भेड़ है, तो वह परमेश्वर की वाणी समझेगी। मैं सिर्फ इतना कर सकती थी कि भरसक प्रयास करूँ, और मसला हल होने तक आसानी से पीछे न हटूँ। यह समझ आने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! फांग मिन बाधित कर दी गई है और अब उसमें सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने की हिम्मत नहीं है। मैं उसे तुम्हारे हाथों में सौंपती हूँ। अगर वह तुम्हारी भेड़ है, तो मैं उसे सुसमाचार सुनाने की पूरी कोशिश करूंगी।” बाद में मुझे पता चला कि फांग मिन का खयाल था कि उसकी ट्रेन रात के 9:10 की है, जबकि वह सुबह के 9:10 की थी। इसलिए वह जा नहीं पाई। मैंने देखा कि लोगों के दिल और आत्माएँ परमेश्वर के हाथ में हैं, और वही हर चीज का आयोजन और व्यवस्था करता है। मैंने दिल में बार-बार परमेश्वर को धन्यवाद दिया, और मुझमें फांग मिन को सुसमाचार सुनाने की ज्यादा आस्था आ गई।

इसके बाद, मैं फांग मिन से मिलने गई, और उसे अब भी अपनी धारणाओं से चिपकी देख उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम परमेश्वर के इरादों, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि ‘परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।’ और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिल्कुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिल्कुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, और हर व्यक्ति को इसे पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए : मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने उसके साथ संगति की, “अगर हम प्रभु की वापसी का स्वागत करना चाहते हैं, तो हमें अपनी धारणाएँ छोड़नी होंगी। तुम जानती हो, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से परे हैं। परमेश्वर मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार कार्य नहीं करता। ‘परमेश्वर के सभी वचन और कार्य बाइबल में हैं, और बाइबल के बाहर कुछ नहीं है’—क्या परमेश्वर के वचनों में इसका कोई आधार है? नहीं। प्रभु यीशु ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा, न ही पवित्र आत्मा ने इसकी गवाही दी है। तो क्या यह मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं पर आधारित नहीं है? जब प्रभु यीशु कार्य करने आया था, तो फरीसियों ने यह नहीं देखा कि प्रभु यीशु ने कितना सत्य व्यक्त किया है। इसके बजाय, वे पुराने विधान से चिपके रहे, और सोचते रहे कि प्रभु यीशु के वचन और कार्य बाइबल से परे हैं। वे इसे बहाना बनाकर प्रभु यीशु की निंदा करते रहे, और आखिरकार उसे सलीब पर चढ़ाने का भयंकर पाप कर बैठे। हमें फरीसियों की नाकामी से सबक सीखने की जरूरत है! परमेश्वर के वचन और कार्य किसी व्यक्ति या चीज द्वारा विवश नहीं किए जा सकते, बाइबल द्वारा तो बिल्कुल भी नहीं। परमेश्वर अपनी प्रबंधन योजना और मानवजाति के जरूरतों के अनुसार, हमेशा नए वचन कहता है और नया कार्य करता है। इसलिए, यह तय करने के लिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है या नहीं, हम यह नहीं देख सकते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य बाइबल से परे हैं या नहीं। हमें यह देखना चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं या नहीं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को बचाने का कार्य कर सकता है या नहीं, क्योंकि सिर्फ परमेश्वर ही सत्य, मार्ग और जीवन है, और वही मानवजाति को बचा सकता है। तुमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े हैं, और तुम उसके वचनों का अधिकार और शक्ति स्वीकारती हो। और फिर, उसके वचन परमेश्वर की छह-हजार वर्षीय प्रबंधन योजना, बाइबल के रहस्य, कौन स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है, और मानवजाति की भावी मंजिल प्रकट करते हैं। सत्य के ये रहस्य कोई व्यक्ति नहीं जानता, सिर्फ परमेश्वर ही इन्हें प्रकट कर सकता है...।” पर संगति पूरी करने से पहले ही फांग मिन ने मुझे टोक दिया और मुझे और कुछ नहीं कहने दिया। मैंने सोचा कि इसका कारण यह है कि मेरी संगति स्पष्ट नहीं थी, तो मैं चाहती थी कि जियायिन फांग मिन को और संगति दे, पर फांग मिन तैयार नहीं थी। मैं चिंता में पड़ गई। मुझे परमेश्वर पर विश्वास करते ज्यादा समय नहीं हुआ था, और मैं थोड़ा सत्य समझती थी, और उस पर मेरी संगति ज्यादातर अस्पष्ट थी। मुझे लगा कि उसकी समस्याएँ नहीं सुलझा सकती थी। इन मुश्किलों को देखते हुए मैं पीछे हटना चाहती थी। मैंने सोचा, “अगर यह सच में नहीं हो सकता, तो मैं छोड़ दूँगी। यह बहुत मुश्किल है!” मैंने जितना सोचा, उतना ही नकारात्मक महसूस किया, घर लौटते समय मेरे पास बिल्कुल भी प्रेरणा नहीं थी।

एक सभा में भाई-बहनों को मेरी हालत पता चली, तो उन्होंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया : “यह ‘विश्वास’ शब्द किस चीज को संदर्भित करता है? विश्वास सच्चा भरोसा और ईमानदार हृदय है, जो मनुष्यों के पास तब होना चाहिए जब वे किसी चीज को देख या छू न सकते हों, जब परमेश्वर का कार्य मनुष्यों की धारणाओं के अनुरूप न होता हो, जब वह मनुष्यों की पहुँच से बाहर हो। मैं इसी विश्वास की बात करता हूँ। कठिनाई और शोधन के समय लोगों को विश्वास की आवश्यकता होती है, और विश्वास वह चीज है जिसके बाद शोधन होता है; शोधन और विश्वास को अलग नहीं किया जा सकता। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, तुम जीवन का अनुसरण करने, सत्य की खोज करने, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान को तलाशने, उसके क्रियाकलापों की समझ रखने और सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो। ऐसा करना ही सच्चा विश्वास रखना है, ऐसा करना यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है। तुम केवल तभी परमेश्वर में सच्चा विश्वास रख सकते हो, जब तुम शोधन द्वारा सत्य का अनुसरण करते रहने में समर्थ होते हो, जब तुम सच में परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होते हो और उसके बारे में संदेह विकसित नहीं करते, जब तुम उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो चाहे वह कुछ भी करे, और जब तुम गहराई में उसके इरादों का पता लगाने में समर्थ होते हो और उसके इरादों के प्रति विचारशील होते हो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद एक बहन ने संगति की, “सुसमाचार के प्रचार में मुश्किलें आने पर अगर हम नकारात्मक हो जाएँ और पीछे हट जाएँ, तो इसका मुख्य कारण यह होता है कि हम परमेश्वर का इरादा नहीं समझते। दरअसल, परमेश्वर हम पर ये मुश्किलें इसलिए आने देता है, ताकि हमारी आस्था पूर्ण की जा सके और हम परमेश्वर पर भरोसा करना सीख सकें, और साथ ही, इन मुश्किलों के जरिये हम सत्य से लैस होकर परमेश्वर के कार्य की गवाही देना सीख पाएँ।” परमेश्वर के वचनों पर उसकी संगति से मैंने जाना कि सुसमाचार के प्रचार में हमारे आगे आने वाली मुश्किलों के पीछे परमेश्वर के अच्छे इरादे होते हैं। परमेश्वर इसके जरिये हमारी आस्था पूर्ण बनाना और हमें और अधिक सत्य समझाना चाहता है। पर मुश्किलें आने पर, फांग मिन की धारणाएँ हल करने और उसे उसे परमेश्वर के सामने लाने के लिए सत्य की खोजने और परमेश्वर पर भरोसा करने के बजाय, मैं मुश्किल में ही अटक गई और पीछे हटने और हार मानने की सोचने लगी। मैं और प्रयास करना या और कीमत चुकाना नहीं चाहती थी, और मुझे परमेश्वर के इरादे का जरा भी खयाल नहीं था। जब तथ्यों ने मुझे प्रकट किया, तो आखिरकार मैंने देखा कि मेरी परमेश्वर में कोई भी आस्था नहीं है, और मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “लोग जितना अधिक सहयोग करते हैं, और वे जितना अधिक परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, पवित्र आत्मा का कार्य उतना ही अधिक बड़ा होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वास्तविकता को कैसे जानें)। यह सच है, लोग जितना ज्यादा सहयोग करते हैं, उतना ही ज्यादा उन्हें पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त होता है। हालांकि फांग मिन 20 सालों से प्रभु पर विश्वास कर रही थी और उसे बाइबल की जानकारी थी, लेकिन मेरे पास सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन थे। परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वे सभी की समस्याएँ हल कर सकते हैं। इसे समझने के बाद, मैं परमेश्वर पर सच में भरोसा करने और कीमत चुकाने को तैयार थी, और उसकी धारणाओं को सुलझाने का सर्वोत्तम प्रयास करूँगी।

इसके बाद, मैंने फांग मिन की धारणाओं के बारे में सत्य समझने वाले भाई-बहनों से बात की, और उन्होंने मुझे परमेश्वर के वचनों के संबंधित अंश ढूंढ़ने में मदद की। फिर मैं दोबारा फांग मिन के घर गई, और उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़कर सुनाए : “क्या परमेश्वर के कार्य पर विनियमों को लागू किया जाना आवश्यक हैं? और क्या परमेश्वर के कार्य का नबियों के पूर्वकथनों के अनुसार होना आवश्यक है? आखिरकार कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर को बाइबल के अनुसार कार्य क्यों करना चाहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त के प्रकाश में और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना था, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता था, तो उसने इन विनियमों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। “यदि तुम व्यवस्था के युग के कार्य को देखना चाहते हो, और यह देखना चाहते हो कि इस्राएली किस प्रकार यहोवा के मार्ग का अनुसरण करते थे, तो तुम्हें पुराना विधान पढ़ना चाहिए; यदि तुम अनुग्रह के युग के कार्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें नया विधान पढ़ना चाहिए। पर तुम अंतिम दिनों के कार्य को किस प्रकार देखते हो? तुम्हें आज के परमेश्वर की अगुआई स्वीकार करनी चाहिए, और आज के कार्य में प्रवेश करना चाहिए, क्योंकि यह नया कार्य है, और किसी ने पूर्व में इसे बाइबल में दर्ज नहीं किया है। आज परमेश्वर देहधारी हो चुका है और उसने चीन में अन्य चुनिंदा चुने हुए लोगों को छाँट लिया है। परमेश्वर इन लोगों में कार्य करता है, वह पृथ्वी पर अपना काम जारी रख रहा है, और अनुग्रह के युग के कार्य से आगे जारी रख रहा है। आज का कार्य वह मार्ग है जिस पर मनुष्य कभी नहीं चला, और ऐसा तरीका है जिसे किसी ने कभी नहीं देखा। यह वह कार्य है, जिसे पहले कभी नहीं किया गया—यह पृथ्वी पर परमेश्वर का नवीनतम कार्य है। इस प्रकार, जो कार्य पहले कभी नहीं किया गया, वह इतिहास नहीं है, क्योंकि अभी तो अभी है, और वह अभी अतीत नहीं बना है। लोग नहीं जानते कि परमेश्वर ने पृथ्वी पर और इस्राएल के बाहर पहले से बड़ा और नया काम किया है, जो पहले ही इस्राएल के दायरे के बाहर और नबियों के पूर्वकथनों के पार जा चुका है, वह भविष्यवाणियों के बाहर नया और अद्भुत, और इस्राएल के परे नवीनतर कार्य है, और ऐसा कार्य, जिसे लोग न तो समझ सकते हैं और न ही उसकी कल्पना कर सकते हैं। बाइबल ऐसे कार्य के सुस्पष्ट अभिलेखों को कैसे समाविष्ट कर सकती है? कौन आज के कार्य के प्रत्येक अंश को, बिना किसी चूक के, अग्रिम रूप से दर्ज कर सकता है? कौन इस अति पराक्रमी, अति बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य को, जो परंपरा के विरुद्ध जाता है, इस पुरानी घिसी-पिटी पुस्तक में दर्ज कर सकता है? आज का कार्य इतिहास नहीं है, और इसलिए, यदि तुम आज के नए पथ पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें बाइबल से विदा लेनी चाहिए, तुम्हें बाइबल की भविष्यवाणियों या इतिहास की पुस्तकों के परे जाना चाहिए। केवल तभी तुम नए मार्ग पर उचित तरीके से चल पाओगे, और केवल तभी तुम एक नए राज्य और नए कार्य में प्रवेश कर पाओगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (1))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने उसके साथ संगति की, “तुम मानती हो कि चूँकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य बाइबल में नहीं हैं, इसलिए वह लौटा हुआ प्रभु नहीं है। यह परमेश्वर को बाइबल के कथनों तक सीमित करना है, उसे सीमाओं में बाँधना है। पहले परमेश्वर आया या बाइबल? जब परमेश्वर ने स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों की रचना की, क्या तब बाइबल थी? अब्राहम के पास बाइबल नहीं थी। वह बाइबल के अनुसार परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता था। क्या हम कह सकते हैं कि अब्राहम को परमेश्वर पर विश्वास नहीं था? हमें समझना चाहिए कि बाइबल परमेश्वर के कार्य का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भर है। वह परमेश्वर का कार्य पूरा होने और बाद की पीढ़ियों द्वारा संकलित किए जाने के बाद रची गई थी। जब प्रभु यीशु कार्य करने आया था, तब नया विधान नहीं था। लोगों ने सिर्फ पुराना विधान पढ़ा था। प्रभु यीशु के कार्य करने के सदियों बाद पुराना और नया विधान अस्तित्व में आए। इससे साबित होता है कि परमेश्वर के वचन और कार्य पहले आए, और फिर बाइबल लिखी गई। यह एक तथ्य है। परमेश्वर अंत के दिनों में प्रकट होकर कार्य करता है, तो उसके वचन और कार्य बाइबल में पहले से कैसे दर्ज हो सकते हैं? अगर हमें प्रभु का स्वागत करना है, तो हमें बाइबल से आगे जाना होगा और परमेश्वर के वर्तमान वचन और कार्य की जांच करनी और उन्हें स्वीकारना होगा। परमेश्वर के पदचिह्नों के अनुसरण का यही एकमात्र रास्ता है।” जब मैंने फांग मिन से इन चीजों की संगति की, तो वह इनमें से कुछ समझती प्रतीत हुई, पर वह अब भी उलझन में थी, और बोली, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कहना सही है। यह सच है कि परमेश्वर का कार्य पहले आया, बाइबल बाद में, और मैं समझती हूँ कि परमेश्वर बाइबल से बड़ा है। पर मैं बरसों से बाइबल पढ़ रही हूँ, और मैं उसे यों ही छोड़ नहीं सकती। मेरे लिए बाइबल पढ़ना अब भी जरूरी है।” इसके बाद फांग मिन ने मुझसे कई नए सवाल किए। उन्हें सुनकर मेरा दिमाग चकरा गया—मुझे समझ नहीं आया कि उनका जवाब देने के लिए सत्य के किन पहलुओं पर संगति करूँ। घर लौटकर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मुझे प्रबुद्ध कर राह दिखाए। तब मुझे एहसास हुआ, भले ही मैं स्पष्ट रूप से संगति न कर सकूँ, लेकिन मैं उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुना सकती थी। इसलिए मैं फांग मिन के साथ दोबारा संगति करना चाहती थी। एक दिन मैं फांग मिन के घर गई, तो मैंने खिड़की के पास बाइबल और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की किताब, दोनों ही खुली देखी। मैं समझ गई कि भले ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के के कार्य को स्वीकार न करने की बात कहती हो, पर वह इसकी जाँच करना चाहती थी, और मुझे उसके लिए कुछ आशा दिखी।

बाद में, फांग मिन बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो गई। मैंने अपनी नौकरी से छुट्टी लेकर उसकी देखभाल की और उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाए। मुझे अक्सर छुट्टी लेते देख बॉस जानबूझकर मुझे डांटने के बहाने ढूँढ़ने लगा। पहले तो मैं इसे सहन करती रही। हालाँकि मुझे थोड़ी तकलीफ हो रही थी, लेकिन अगर फांग मिन सच्चा मार्ग स्वीकार कर पाती, तो ठीक था। पर उसे कई बार परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने के बाद भी वह जाँच-पड़ताल करने के लिए राजी नहीं हुई। उस समय, मैं फिर से थोड़ी निराश हो गई। मुझे लगा, मैंने इतनी कीमत चुकाई है, पर वह मान ही नहीं रही। आखिर मुझे उसे मनाने की कब तक कोशिश करनी होगी? मैंने जितना सोचा, मैं उतनी ही मायूस हुई, और मैं सहयोग नहीं करना चाहती थी। इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : “क्या तू अपने कंधों के बोझ, अपने आदेश और अपने उत्तरदायित्व से अवगत है? ऐतिहासिक मिशन का तेरा बोध कहाँ है? तू अगले युग में प्रधान के रूप में सही ढंग से काम कैसे करेगा? क्या तुझमें प्रधानता का प्रबल बोध है? तू समस्त पृथ्वी के प्रधान का वर्णन कैसे करेगा? क्या वास्तव में संसार के समस्त सजीव प्राणियों और सभी भौतिक वस्तुओं का कोई प्रधान है? कार्य के अगले चरण के विकास हेतु तेरे पास क्या योजनाएं हैं? तुझे चरवाहे के रूप में पाने हेतु कितने लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या तेरा कार्य काफी कठिन है? वे लोग दीन-दुखी, दयनीय, अंधे, भ्रमित, अंधकार में विलाप कर रहे हैं—मार्ग कहाँ है? उनमें टूटते तारे जैसी रोशनी के लिए कितनी ललक है जो अचानक नीचे आकर उन अंधकार की शक्तियों को तितर-बितर कर दे, जिन्होंने वर्षों से मनुष्यों का दमन किया है। कौन जान सकता है कि वे किस हद तक उत्सुकतापूर्वक आस लगाए बैठे हैं और कैसे दिन-रात इसके लिए लालायित रहते हैं? उस दिन भी जब रोशनी कौंधती है, भयंकर कष्ट सहते, रिहाई से नाउम्मीद ये लोग, अंधकार में कैद रहते हैं; वे कब रोना बंद करेंगे? ये दुर्बल आत्माएँ बेहद बदकिस्मत हैं, जिन्हें कभी विश्राम नहीं मिला है। सदियों से ये इसी स्थिति में क्रूर बधंनों और अवरुद्ध इतिहास में जकड़े हुए हैं। उनकी कराहने की आवाज किसने सुनी है? किसने उनकी दयनीय दशा को देखा है? क्या तूने कभी सोचा है कि परमेश्वर का हृदय कितना व्याकुल और चिंतित है? जिस मानवजाति को उसने अपने हाथों से रचा, उस निर्दोष मानवजाति को ऐसी पीड़ा में दुःख उठाते देखना वह कैसे सह सकता है? आखिरकार मानवजाति को विष देकर पीड़ित किया गया है। यद्यपि मनुष्य आज तक जीवित है, लेकिन कौन यह जान सकता था कि उसे लंबे समय से दुष्टात्मा द्वारा विष दिया गया है? क्या तू भूल चुका है कि शिकार हुए लोगों में से तू भी एक है? परमेश्वर के लिए अपने प्रेम की खातिर, क्या तू उन जीवित बचे लोगों को बचाने का इच्छुक नहीं है? क्या तू उस परमेश्वर को प्रतिफल देने के लिए अपना सारा ज़ोर लगाने को तैयार नहीं है जो मनुष्य को अपने शरीर और लहू के समान प्रेम करता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुझे अपने भविष्य के मिशन से कैसे पेश आना चाहिए?)। परमेश्वर के वचनों से मैं उसकी प्रबल इच्छा महसूस कर सकी। जो लोग शैतान की सत्ता में जी रहे हैं और परमेश्वर के सामने नहीं आए हैं, परमेश्वर उनके लिए चिंतित और व्याकुल है, और उम्मीद करता है कि उसमें सच्चा विश्वास करने वाले अंत के दिनों में उद्धार प्राप्त कर पाएँगे। परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार करने वाली होने के नाते, मैं जानती थी कि जो लोग परमेश्वर के सामने नहीं आए हैं, मुझे उन्हें उसका उद्धार स्वीकारने के लिए उसके घर में लाना है। यह मेरा बाध्यकारी कर्तव्य था। अनुग्रह के युग में बहुत लोग सुसमाचार का प्रचार करते हुए शहीद हो गए, और अंततः सुसमाचार दुनिया के कोने-कोने में फैल गया, हर कोई उसके बारे में जान गया। मैंने नूह के बारे में भी सोचा। उसने जहाज बनाने का परमेश्वर का आदेश मानने के लिए, 120 वर्षों तक लगातार मुश्किलें, उपहास और लांछन सहने के बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार, उसने परमेश्वर का आदेश पूरा किया और उसकी स्वीकृति पाई। नूह की परमेश्वर में ऐसी जबरदस्त आस्था थी। हालांकि सुसमाचार के प्रचार में मुझे थोड़ी मुश्किलें आईं और कुछ कष्ट झेलने पड़े, पर वे युगों-युगों में महान संतों द्वारा चुकाई गई कीमत के सामने कुछ भी नहीं थे। मुझे याद आया कि जब भाई-बहनों ने मुझे सुसमाचार सुनाया था। मैंने भी बार-बार इनकार किया था। और मेरे स्वीकारने से पहले उन्हें बार-बार प्रेम से कोशिश करनी पड़ी थी। तो अब मैं फांग मिन से अधिक प्यार से क्यों नहीं पेश आ सकती? वह अभी भी सत्य नहीं समझी थी, और धार्मिक धारणाओं के चंगुल में थी, इसलिए क्या उसका प्रतिरोध स्वाभाविक नहीं था? सिर्फ थोड़ा मुश्किल होने की वजह से मैं हार नहीं मान सकती थी। यह सोचकर मुझे बहुत पछतावा हुआ और मैंने परमेश्वर के सामने अपना संकल्प लिया : सुसमाचार के प्रचार में मेरे सामने चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, मैं सुसमाचार फैलाने में भरसक सहयोग करूँगी—यह मेरी जिम्मेदारी थी और कर्तव्य भी।

बाद में, मैं फांग मिन का ध्यान रखकर उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाती रही। एक दिन उसने मुझसे कहा, “इस दौरान तुमने मुझे परमेश्वर के जो वचन पढ़कर सुनाए, उनसे मेरी समझ में आया है कि परमेश्वर को बाइबल में लिखे हुए तक सीमित नहीं करना चाहिए। परमेश्वर का काम हमेशा नया होता है, पुराना नहीं, और बाइबल में परमेश्वर का पिछला काम है। अगर परमेश्वर लौटकर आता और बाइबल में लिखी चीजें ही करता, तो परमेश्वर के कार्य को दोहराना होता। तब इसका कोई अर्थ न रह जाता। जब परमेश्वर बाइबल से परे नया काम करता है, लोगों को न्याय से गुजरने, प्रभु यीशु का छुटकारे का काम स्वीकारने के आधार पर, शुद्ध होने में समर्थ बनाता है, तभी उन्हें सचमुच बचाया जा सकता है। अगर मैं अब भी परमेश्वर के पुराने काम से चिपकी रही, तो पूरी जिंदगी बाइबल पढ़ती रहकर भी मैं सत्य और जीवन हासिल नहीं कर पाऊँगी। मुझे परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण कर अंत के दिनों का परमेश्वर का उद्धार स्वीकारना चाहिए।” आखिरकार फांग मिन को राय बदलते देख मैं बहुत खुश हुई। मैंने यह भी देखा कि परमेश्वर की भेड़ें उसकी वाणी सुनती हैं। शैतान चाहे उन्हें कितना भी परेशान करे या उनमें कितनी भी धारणाएँ हों, अंत में वे सत्य स्वीकारकर परमेश्वर के सामने आएंगी। इसके बाद, फांग मिन सक्रियता से परमेश्वर के वचन पढ़ने और सभाओं में भाग लेने लगी, और उसकी बीमारी भी धीरे-धीरे ठीक होने लगी। बाद में फांग मिन की मुश्किलें और धारणाएँ सुलझाने के लिए जियायिन ने परमेश्वर के वचनों पर उसके साथ कई बार संगति की, और फांग मिन जल्दी ही अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को लेकर आश्वस्त हो गई। उसने मुझसे यह भी कहा, “जब तुम पहले मुझे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाती थी, तो हालाँकि मैं ऊपर से अनदेखा करती थी, पर असल में थोड़ा-बहुत सुनती थी। मैं महसूस करती थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में सत्य है, पर डरती थी कि मैं गलत विश्वास न करने लगूँ, इसलिए इसे स्वीकार नहीं करती थी। अब मैं समझ गई हूँ और स्वीकारने को तैयार हूँ!” फांग मिन को परमेश्वर के कार्य से आश्वस्त देख मुझे बड़ी खुशी हुई, और मुझे गहराई से एहसास हुआ कि कैसे परमेश्वर यह तय करता है कि कोई इंसान परमेश्वर के घर में कब लौटेगा, और परमेश्वर पर सच्चा भरोसा हो, तो हम उसके कर्म देख सकते हैं। बाद में, फांग मिन ने अपने दोस्तों और परिचितों में सुसमाचार फैलाने की पेशकश की। सहयोग की एक अवधि के बाद, चौदह लोगों ने अंत के दिनों का परमेश्वर का उद्धार स्वीकार लिया।

सुसमाचार फैलाने के इस अनुभव से मैंने सच में परमेश्वर के कर्म देखे। इस अवधि में हालाँकि मेरे सामने कई मुश्किलें आईं, और कभी-कभी मैं नकारात्मक होकर पीछे भी हटी, पर मुझे एहसास हुआ कि कैसे परमेश्वर ने इसका इस्तेमाल करके मेरी आस्था और प्रेम पूर्ण किया, और मुझे और अधिक सत्य से लैस होने में मदद की। मैंने यह भी अनुभव किया कि परमेश्वर पर भरोसा करना और उससे उम्मीद रखना सबसे बड़ी समझदारी है। तब से मैंने सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए और भी दृढ़-संकल्प कर लिया।

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