59. एक तूफ़ान के बीच बड़ी होना

मिक्षुए, चीन

मार्च 2013 में एक दिन, मैं कुछ बहनों के साथ एक सभा से घर लौट रही थी, घर पहुँचते ही देखा कि सब कुछ बिखरा हुआ है। हमने अंदाज़ा लगाया कि शायद पुलिस ने घर की तलाशी ली होगी, इसलिए हम तुरंत वहां से दूसरी जगह चले गये। हमारे वहां पहुँचते ही पास के कुछ लोग पुलिस को लेकर तेज़ी से अंदर घुस आये। पुलिस ने हमें लिविंग रूम में एक तरफ घेरकर जगह की तलाशी ली। जब कोई नहीं देख रहा था, तब मैंने जेब में पड़ा सिम कार्ड तोड़ दिया। एक पुलिसवाले ने देख लिया और उसने जबरन मेरी मुट्ठी खोली, टूटा हुआ कार्ड देखकर वह गुस्से से चिल्लाया, "यह छोटी दिखती है, लेकिन शातिर है। इसे पूछताछ के लिए ले चलो।" उसने एक महिला अफसर से मेरी तलाशी लेने को कहा, फिर हमें पुलिस कार में डाल दिया। मैं बहुत डरी हुई थी, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मुझे नहीं पता ये लोग मुझे कहाँ ले जा रहे हैं या मुझे कैसी यातना देंगे। मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे आस्था दो। मैं चाहे जितने कष्ट झेलूँ, मैं यहूदा नहीं बन सकती। मैं तुम्हें धोखा नहीं दे सकती।" प्रार्थना करने के बाद धीरे-धीरे मैं शांत हो गयी। थाने में पुलिस मुझे पूछताछ कक्ष में ले गयी, वहां मुझे अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर उकड़ू बैठने को कहा। कुछ ही मिनटों में मेरे हाथ जवाब देने लगे, मेरे पाँव कांपने लगे और मेरे सीने में कसाव महसूस होने लगा। मैं गिर पड़ी। फिर पुलिस ने मुझे एक टाइगर कुर्सी पर बिठाकर कुर्सी के पायों के साथ मेरे पैरों को कस के बाँध दिया। थोड़ी देर बाद, एक मोटी दुष्ट पुलिसवाली कुछ दस्तावेज़ लेकर कमरे में आई, और मुझसे बोली, "हम एक बड़ा राष्ट्रव्यापी गिरफ़्तारी अभियान चला रहे हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को लपेट रहे हैं। तेरे तमाम अगुआ हमारे पास हैं, और हमने तेरी कलीसिया तोड़ दी है। हमें बताने से इनकार करने से क्या फायदा? बस बोल दे, फिर तू जा सकेगी।" यह सुनकर, मैं समझ गई कि यह शैतान की चालों में से एक है, यह मुझे एक यहूदा बनाने की कोशिश कर रही है। मैं इसमें नहीं फंस सकती। भले ही बहुत-से भाई-बहन गिरफ़्तार हो चुके हों, फिर भी ये लोग परमेश्वर के कार्य को इतनी आसानी से ख़त्म नहीं कर सकते। मैंने जवाब दिया, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है')। इस पर वह चिढ़कर चली गयी। फिर एक दूसरे अफसर ने पूछताछ शुरू की : "तू धार्मिक कब बनी? तू इस इलाके में कब से रह रही है? तू किन लोगों के संपर्क में रही है? तू कहाँ रहती है?" जब मैं एक भी शब्द नहीं बोली, तो उसने मुझे धमकी दी, "अगर तू नहीं बोलेगी, तो हम पीट-पीटकर मार डालेंगे, और तेरी लाश पहाड़ों में फेंक देंगे।" मैंने सोचा ये लोग इंसानों को यूं मारते हैं जैसे कि मुर्गे हों, उनके लिए इंसानी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं। क्या ये लोग सचमुच मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे। मैंने बहुत डरकर परमेश्वर से मन-ही-मन प्रार्थना की, और फिर उसके इन वचनों को याद किया : "डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 26')। मैं यह सच जानती थी कि परमेश्वर मेरा कवच है, और वह सभी पर शासन करता है। मेरा शरीर और आत्मा उसके हाथ हैं, इसलिए यह पुलिस के बस में नहीं कि वे मुझे पीट-पीटकर मार डालें। इस विचार ने मुझे आस्था और शक्ति दी। पुलिस लगातार मुझसे पूछताछ करती रही, लेकिन मैंने उन्हें कुछ भी नहीं बताया।

तीसरे दिन सुबह बड़ी जल्दी, उनमें से एक ने कहा, "अब बताने को तैयार है?" मैंने एक भी शब्द नहीं कहा। आगबबूला होकर उसने मेरा कॉलर पकड़ा और ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया, मेरे कान बजने लगे और मेरा चेहरा जलने लगा। फिर जब मैं ध्यान नहीं दे रही थी, तो उसने कागजों को लपेटकर मेरी आँख पर दे मारा, मुझे इतना दर्द हुआ मानो आँखें बाहर गिर जाएँगी। सहज ही मेरी आँखें बंद हो गयीं। एक अफसर ने गुस्से से कहा, "खोल अपनी आँखें!" मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं, पर कुछ देख नहीं पा रही थी। दस मिनट बाद ही मैं कुछ चीज़ें देख पायी। आँखों में इतना दर्द था कि मैं उन्हें बंद ही रखना चाहती थी, इसलिए मुझे उनींदा मानकर, पुलिस ने मेरे सिर पर पानी की बोतल दे मारी, कभी सिर पर तो कभी हाथ पर लात मारे। मुझे जगाये रखने के लिए उन्होंने मेरे बालों और हाथों को टाइगर कुर्सी के पीछे वेल्क्रो से चिपका दिया। इससे मुझे अपना सिर ऊपर ही रखना पड़ा। दर्द से छुटकारा पाने के लिए मैं टाइगर कुर्सी पर पीठ टिकाने का संघर्ष करती रही। मुझे चक्कर आ रहा था, शरीर में दर्द था, दिल तेज़ी से धड़क रहा था, बहुत बुरा हाल था। मुझे डर था कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी, इसलिए मैंने परमेश्वर को रो पुकारा, "हे परमेश्वर, मुझे कष्ट सहने का संकल्प दो, मुझे आस्था दो। मैं कभी शैतान के आगे नहीं झुकूंगी!" अपने दर्द में, मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?')। इन वचनों से मैंने समझा कि कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर की शत्रु है, वह उससे और सत्य से घृणा करती है। वह हमें परमेश्वर में विश्वास रखने से दूर करने, उसे धोखा दिलवाने के लिए कुछ भी करती है, मैं बड़े लाल अजगर के देश में पैदा हुई, इसलिए यह कष्ट तो मुझे झेलना ही पड़ेगा। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के दमन द्वारा मैंने देखा कि यह कितनी दुष्ट है, सार रूप से परमेश्वर की विरोधी है। मैं शैतान को ठुकराकर परमेश्वर की ओर मुड़ना, आस्था हासिल कर गवाही देना, शैतान को शर्मसार कर उसे नाकामयाब होते देखना चाहती हूँ, परमेश्वर की गवाही देने का यह मौक़ा उसका आशीष था, एक विशेष कृपा थी। इस समझ से मुझे आस्था मिली, और मुझे यह बहुत मुश्किल नहीं लगी।

इसके बाद उन्होंने फिर से पूछताछ शुरू कर दी, जब मैं चुप रही, तो उन्होंने मुझे धमकी दी, "जितनी जल्दी बोलेगी, उतना ही आसान होगा। हम तुझे पांच मिनट देते हैं।" फिर उन्होंने मेरे सामने एक टाइमर रख दिया, समय को हर मिनट, हर सेकंड आगे बढ़ते देख, मैंने परमेश्वर से लगातार प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैं नहीं जानती ये दानव मेरे साथ क्या करेंगे। मेरी रक्षा करो। जो भी हो, मैं अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूंगी।" पांच मिनट बाद जब मैं नहीं बोली, उनमें से एक ने मेरे हाथ पीठ के पीछे करके हथकड़ी लगा दी, मेरा कॉलर पकड़कर मुझे अपने पास खींचा, फिर मुझसे भयानक ढंग से पूछा कि कलीसिया का अगुआ कौन है, मैं किस-किसके संपर्क में थी। मैं अब भी चुप रही, तो वह सिगरेट जलाकर मेरे चेहरे पर धुआँ छोड़ने लगा। धुएँ के कारण मुझे उल्टी-सी आने लगी, मेरा चेहरा आंसुओं से भीग गया। फिर उसने मुझे बहुत ज़ोर से थप्पड़ मारा, दायें कान पर वार से मुझे सुनाई देना बंद हो गया। मुझे अब भी बोलता न देखकर, उसकी आँखें गुस्से से फ़ैल गयीं, उसने दोनों हाथों से मेरा गला दबाते हुए कहा, "तू बोलेगी या नहीं? नहीं बोलेगी, तो मैं गला दबा दूंगा। तू मुझे कभी भूल नहीं पायेगी, हर रात मुझसे पिटने के डरावने सपने आयेंगे।" उसने मेरा गला इतनी ज़ोर से दबाया कि मैं साँस नहीं ले पायी, लगा जैसे मरने वाली हूँ। मैंने कहा कि वो मेरा गला घोंट भी दे, तो भी मेरे पास बताने को कुछ नहीं है। फिर एक लंबा अफसर अंदर आया, उसने मेरा गला दबा रहे अफसर को इशारा कर सुरक्षा कैमरे दिखाए और मुझे पीटने के लिए कोने में ले जाने को कहा। आखिरकार मैं साँस ले पायी। उसने मुझे टाइगर कुर्सी से बाहर घसीटा, मेरी हथकड़ियाँ पकड़कर खींचते हुए कोने में धकेल दिया, फिर मेरा सिर दीवार पर दे मारा। मुझे याद नहीं उसने कितनी बार ऐसा किया, आख़िरी बार तो उसने मेरा सिर दीवार पर टंगे पट्टे पर दे मारा। ऐसा लगा जैसे मेरे सिर की हर चीज़ पीट-पीट कर बाहर निकाल दी गयी हो, मैं फर्श पर गिर गयी। सब कुछ घूम रहा था, लगा जैसे मेरे सिर में विस्फोट हो जाएगा, मेरा दिल फट जाएगा। मैं आँखें नहीं खोल पा रही थी, लगा जैसे दम घुट रहा हो। यह बहुत ही दर्दनाक था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मेरे प्राण ले लो, ताकि अब मुझे यह यातना न सहनी पड़े।" थोड़ी देर बाद, मैं बहुत मुश्किल से अपनी आँखें खोल पायी, मैंने सोचा, "मैं मरी क्यों नहीं?" फिर मुझे एहसास हुआ कि मुझे परमेश्वर से मेरे प्राण लेने को नहीं कहना चाहिए था, यह एक बेतुकी विनती थी। वह चाहता है कि मैं ज़िंदा रहूँ, गवाही दूँ और शैतान को शर्मसार करूँ। लेकिन मैं उस यातना से बचने के लिए मरना चाहती थी। यह गवाही देना नहीं था। यह सोचकर मुझे अपराध-बोध महसूस हुआ।

तभी, मैंने एक पुलिसवाले को चिल्लाते सुना, "उठ! उठ!" मेरे न उठने पर उसने मुझे एक लात जमायी और बोला, "मरने का नाटक कर रही है?" मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, ये दानव मुझे यातना दे रहे हैं कि मैं तुम्हें धोखा दूँ। मुझे आस्था दो। मेरी जान चली भी जाए तो भी मैं गवाही दूँगी।" उनमें से एक ने मेरे कपड़े पकड़कर मुझे थोड़ा ऊपर खींचा, फिर मुझे ज़ोर से फर्श पर पटक दिया। लगातार हथकड़ी लगे होने के कारण मेरे हाथों और पीठ में दर्द हो रहा था, इसलिए दर्द को थोड़ा कम करने की कोशिश में, फर्श पर एक गोले की तरह सिमट गयी। एक अफसर ने मुझे दीवार के सहारे टिका दिया, सीधे खड़े होने पर मजबूर किया, मैं कुछ करूँ इससे पहले ही उसने मेरी बायीं जांघ में लात मारी। दर्द से मेरा बुरा हाल हो गया, वह मुझ पर भौंका, "खड़ी हो!" लेकिन इतना दर्द हो रहा था कि मैं खड़ी हो ही नहीं सकती थी। फिर उसने मेरी कमर में लात मारी, एक पल के लिए मेरी साँस रुक गयी। लगा जैसे छुरी भोंक दी हो। एक दूसरे पुलिसवाले ने वापस एक कोने में घसीटकर ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया, मेरे मुँह के किनारों से खून रिसने लगा। फिर एक सिगरेट जलाकर बोला, "अगर तूने मुंह नहीं खोला, तो मैं इस सिगरेट से तेरा चेहरा जला दूंगा, तू बदसूरत हो जाएगी।" फिर वह सिगरेट मेरे चेहरे के करीब ले आया। सिगरेट की गर्मी महसूस कर मैं सच में डर गयी, सोचने लगी, "अगर इसने सच में जला दिया तो मेरे चेहरे पर भयानक दाग बन जाएंगे, जहां भी जाऊंगी, लोग मुझे घूरेंगे, मेरा मज़ाक उड़ायेंगे।" लोगों के इशारा करने और पीठ पीछे बातें करने का ख़याल बहुत बुरा था। फिर मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : "राज्य के अच्छे सैनिक उन लोगों के समूह के रूप में प्रशिक्षित नहीं होते जो मात्र वास्तविकता की बातें करते हैं या डींगें मारते हैं; बल्कि वे हर समय परमेश्वर के वचनों को जीने के लिए प्रशिक्षित होते हैं, ताकि किसी भी असफलता को सामने पाकर वे झुके बिना लगातार परमेश्वर के वचनों के अनुसार जी सकें और वे फिर से संसार में न जाएँ। इसी वास्तविकता के विषय में परमेश्वर बात करता है; और मनुष्य से परमेश्वर की यही अपेक्षा है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है')। वचनों से, मैं यह समझ पायी कि कुछ भी हो जाए, एक सच्चा विश्वासी परमेश्वर में अपनी आस्था में डटा रहता है, काली ताकतों के आगे नहीं झुकता, परमेश्वर को धोखा नहीं देता। पुलिस मुझे बदसूरत बना देने की धमकी दे रही थी ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ, मुझे इसमें नहीं फंसना चाहिए। इतना ही नहीं, अगर मुझे बदसूरत बना भी दिया गया, तो भी अगर मैं यहूदा न बनकर गवाही दूँ, तो मुझे परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकेगी, मेरे दिल को सुकून मिल सकेगा। अगर मैंने खुद को बचाने के लिए परमेश्वर को धोखा दिया, तो मैं नीच बनकर घिसटती रहूँगी, मेरे ज़मीर को कभी सुकून नहीं मिलेगा। यह सह पाना बहुत मुश्किल होगा। मैंने कलीसिया के भजन का एक अंश याद किया : "हमारे सर फट जाएँ, खून बह जाए, फिर भी परमेश्वर के लोगों की पीठ नहीं झुकेगी।" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है')। मैंने अफसरों की यातना सहने के लिए आस्था और साहस का उफान महसूस किया। मैंने अपनी आँखें बंद करके प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! ये मुझे चाहे जैसी यातना दें, मेरा चेहरा जला दें, तो भी मैं गवाही दूँगी। मुझे इसे सहने के लिए आस्था और शक्ति दो।" फिर मैंने अपने दांत पीसे और मुट्ठियाँ कस लीं। मुझे डरी हुई समझकर, पुलिसवाले पागलों की तरह हंसने लगे। मैंने अपनी आँखें खोलकर उसे तीखी नज़रों से देखा, उसने एक ठंडी मुस्कान के साथ कहा, "मैंने अपना मन बदल लिया है। मैं तेरी जीभ जलाऊँगा, ऐसा जलाऊँगा कि तू कभी बात न कर सके।" यह कहकर उसने मेरा मुँह खोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन खोल नहीं पाया। गुस्से से वह मेरे कंधे पकड़कर मेरे पैरों पर कूदा, उछलकर फिर एक बार कूदा और पैरों को आगे-पीछे रगड़ा। फिर उसने मेरी हथकड़ियाँ पकड़ीं और आगे-पीछे खींचा, मुझे अपने पैर के पंजों के बल खड़ा कर दिया। मेरी कलाइयों में बहुत दर्द हो रहा था, लगा जैसे वे हाथों से अलग हो जाएंगे। उसने मेरा उपहास करते हुए कहा, "तेरा परमेश्वर तो सर्वशक्तिमान है न? बुला उसे, तुझे बचाने के लिए!" मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसे पुकारती रही, और उन लोगों के प्रति घृणा से भर गयी।

जब वह थक गया, तो मेज़ पर टिककर सिगरेट पीने लगा। मैं सोचने लगी कि ये लोग मुझ पर यातना के जाने कौन-से तरीके इस्तेमाल करेंगे, क्या आखिरकार मैं मर जाऊंगी। अगर ऐसा है, तो काश कि यह जल्दी हो, क्योंकि वे मुझे जिस ज़िंदा नरक में डाल रहे थे, वह सहा नहीं जा रहा था। मैं नहीं जानती थी कि यह सब कब ख़त्म होगा। इस बारे में जितना सोचा, मुझे उतना ही डर लगा, मैंने सोचा, "मैं कलीसिया के अगुआओं या भाई-बहनों को धोखा नहीं दे सकती, क्यों न मैं उन्हें अपने विश्वासी बनने के बारे में बताकर बात ख़त्म करूँ, ताकि वे मुझे पीटना बंद कर दें।" फिर मैंने सोचा, "मेरे माँ-बाप विश्वासी हैं। अगर मैंने इनसे बात की, तो वे और साथ ही कुछ भाई-बहन भी फंस जाएंगे। इससे मैं यहूदा बन जाऊँगी और परमेश्वर मुझे दंड देगा।" फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का ये भजन याद आया : "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे। शैतान अपने विचारों को हम तक पहुँचाने में हर संभव प्रयास कर रहा है। हमें हर पल परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें अपने प्रकाश से रोशन करे, अपने भीतर मौजूद शैतान के ज़हर से छुटकारा पाने के लिए हमें हर पल परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। हमें हमेशा अपनी आत्मा के भीतर यह अभ्यास करना चाहिए कि हम परमेश्वर के निकट आ सकें और हमें अपने सम्पूर्ण अस्तित्व पर परमेश्वर का प्रभुत्व होने देना चाहिए" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'बीमारी की शुरुआत परमेश्वर का प्रेम है')। मुझे एहसास हुआ कि कायर बनकर उनसे बात करने की सोचना शैतान की चालों में फंस जाना है। मैं समझ गयी कि मुझमें परमेश्वर में आस्था की कमी थी, कष्ट सहने का संकल्प भी नहीं था। इस मुकाम तक मैं अपने आध्यात्मिक कद के कारण नहीं बल्कि परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण टिक पायी थी। उस मुकाम पर, मुझे सच में परमेश्वर के सहारे होकर आस्था रखनी थी, वे मुझे चाहे जैसी यातना दें, मुझे परमेश्वर को धोखा नहीं देना। मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैं अपना जीवन आपके हवाले कर रही हूँ, मैं आपकी व्यवस्थाएं स्वीकार करूँगी। भले ही इनकी यातना से मैं मर जाऊँ, मैं यहूदा नहीं बनूँगी।" फिर, मुझे अचरज हुआ कि पुलिसवालों के अधिकारी ने उन्हें बुला लिया। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर का धन्यवाद किया।

थोड़ी देर बाद एक अफसर ने बरामदे में आकर मेरा फोटो खींचा, और बोला, "मैं तेरा फोटो ऑनलाइन डाल कर तुझे मशहूर करनेवाला हूँ, ताकि तेरे यार-दोस्त, रिश्तेदार और सब लोग देख सकें कि तू कैसी दिखती है, और देखें कि तुम विश्वासी पागल हो।" इन बातों से मुझे ज़रा-भी डर नहीं लगा, मैंने जवाब दिया, "आप लोगों ने ही मेरी सूरत ऐसी बनाई है ना? उस फोटो को ऑनलाइन डालने से सबको पता चलेगा कि आप ईसाइयों को कैसे सताते हैं।" एक महिला अफसर ने कहा, "हाँ, मुझे यकीन है। मुझे नहीं पता कि तेरा वो परमेश्वर कैसा है, या तुझे ये ताकत कहाँ से मिलती है। इन सबके बावजूद तू अपनी आस्था में अडिग है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी कम उम्र की लड़की इतनी हिम्मतवाली हो सकती है।" उसकी यह बात सुनकर मैंने परमेश्वर का मन-ही-मन धन्यवाद किया। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी अन्य शक्ति से जीत सकती है; इससे भी अधिक, यह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन अनंत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसकी जीवन शक्ति को किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है')। इन सारे दिनों में, जब वे मुझे पीट-पीटकर सता रहे थे, मैंने कायरता और कमज़ोरी का अनुभव किया, मर कर इससे बचना चाहा, लेकिन परमेश्वर मेरे साथ था, मेरी रक्षा कर रहा था, और उसके वचन ही मुझे आस्था और शक्ति दे रहे थे, उस बर्बर यातना पर विजय पाने का रास्ता दिखा रहे थे। मैंने परमेश्वर का दिल से धन्यवाद किया।

थोड़ी देर बाद, जब एक अफसर मुझे बाथरूम ले गयी, तो उसने कहा, "जल्दी ही वे तुझसे फिर पूछताछ करेंगे, तुझे बता देना चाहिए। वरना सालों-साल जेल में पड़ी रहेगी, वहाँ रहने के बाद तू लूली-लंगड़ी होकर ही बाहर निकलेगी। जानती है कैदियों से कैसा बर्ताव किया जाता है? औरतें दूसरी औरतों को पीटती हैं, वे तुझे टांगों के बीच लकड़ी के छड़ों से मारेंगी। अगर तू उनके हाथ पड़ी तो तू तबाह हो जाएगी।" उसकी बात सुनकर घृणा भी हुई और डर भी लगा, बीस की उम्र में अपाहिज होने की संभावना देखकर समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके बाद क्या करूंगी। मेरे भाई बहन तो थे नहीं, मेरे अपंग हो जाने से मेरे माता-पिता किसके भरोसे जियेंगे। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "अब्राहम ने इसहाक को बलिदान किया—तुमने किसे बलिदान किया है? अय्यूब ने सब-कुछ बलिदान किया—तुमने क्या बलिदान किया है? इतने सारे लोगों ने अपना जीवन दिया है, अपने सिर कुर्बान किए हैं, अपना खून बहाया है, सही राह तलाशने के लिए। क्या तुम लोगों ने वह कीमत चुकाई है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ')। अब्राहम ने अपना इकलौता बेटा अर्पित किया, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ, उसने सब-कुछ गँवा दिया, उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गये, उसके दोस्तों ने उसकी हँसी उड़ायी, पत्नी ने भी मज़ाक बनाया, मगर उसने कभी परमेश्वर को दोष नहीं दिया। उसने गवाही दी। अय्यूब और अब्राहम को परमेश्वर पर सच्ची आस्था थी, उन्होंने परीक्षणों के दौरान ज़बरदस्त गवाही दी। मुझे उनके कदमों पर चलना होगा, चाहे कितने भी कष्ट झेलूँ, शैतान को नीचा दिखाने के लिए गवाही देनी होगी। मैंने मन-ही-मन यह प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मुझे विश्वास है कि सभी चीज़ों पर तुम्हारा ही शासन है, मेरा अपंग होना न होना तुम्हारे हाथ में है| मेरे साथ कुछ भी हो जाए, मैं कितने भी कष्ट झेलूँ, मैं गवाही देने और तुम्हें संतुष्ट करने के लिए तैयार हूँ।" इसलिए मैंने अफसर से कहा, "ऐसा करना बिल्कुल अनुचित होगा। अपने भाई-बहनों को धोखा देकर मेरे ज़मीर को कभी शांति नहीं मिलेगी। भले ही मुझे सज़ा हो जाए, मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी जो गलत है।" इससे शर्मिंदा होकर वह बिना कुछ बोले मुझे वापस पूछताछ कक्ष में ले गयी। 1 अप्रैल की सुबह, पुलिस मुझसे पूछताछ करने आयी, मगर मैं कुछ नहीं बोली। उस दोपहर करीब 2 बजे, वे मुझे गाड़ी में डालकर मत परिवर्तन के अड्डे ले गये। पूरे रास्ते मैं मन-ही-मन परमेश्वर के वचनों का यह भजन गाती रही : "यदि लोगों में आत्मविश्वास नहीं है, तो उनके लिए इस मार्ग पर चलते रहना आसान नहीं है। अब हर कोई देख सकता है कि परमेश्वर का कार्य लोगों की अवधारणाओं के अनुरूप जरा सा भी नहीं है। परमेश्वर ने इतना अधिक कार्य किया है और इतने सारे वचनों को कहा है, जो इंसानी अवधारणाओं से पूर्णत: भिन्न हैं। इसलिए लोगों में उस चीज के साथ खड़े होने का आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति होनी चाहिए, जिसे वे पहले ही देख चुके हैं और अपने अनुभवों से प्राप्त कर चुके हैं। भले ही परमेश्वर लोगों में कुछ भी कार्य करे, उन्हें वह बनाए रखना चाहिए जो उनके पास है, उन्हें परमेश्वर के सामने ईमानदार होना चाहिए, और उसके प्रति बिलकुल अंत तक समर्पित रहना चाहिए। यह मनुष्य का कर्तव्य है। लोगों को जो करना चाहिए, उसे उन्हें बनाए रखना चाहिए" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'तुम्हें दृढ़ता से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए')। मैं पहले से जानती थी कि आस्था रखने का अर्थ दमन और कष्ट सहना है, मैंने संकल्प लिया था कि दमन या कष्ट होने पर भी, मैं गवाही दूंगी, परमेश्वर को संतुष्टि दूँगी, लेकिन इन्हें सामने पाकर, एहसास हुआ कि गवाही देना उतना सरल नहीं जितना मैंने सोचा था। इसके लिए सिर्फ जोश काफी नहीं है, इसके लिए चाहिए विश्वास और कष्ट सहने का संकल्प। परमेश्वर मेरी आस्था पूर्ण करने, मुझे शुद्ध करने और बचाने के लिए इस क्रूर माहौल द्वारा मेरी परीक्षा ले रहा था, मुझे विश्वास था कि चाहे कुछ भी हो जाए परमेश्वर मेरा मार्गदर्शन करेगा। भजन गाते हुए मेरी आस्था बढ़ गयी, मैं जान गयी कि वे मुझे चाहे जैसी यातना दें, मुझे परमेश्वर के सहारे रहकर अंत तक उसका अनुसरण करना होगा।

जब हम कानूनी शिक्षा अहाते में पहुंचे, तो पुलिस ने चौबीसों घंटे मुझ पर निगरानी रखने, मुझसे कलीसिया के बारे में सवाल करने, मेरी सोच बदलने, और अपनी आस्था छोड़ने की बात लिखवाने के लिए दो अफसर रखे। तीसरी सुबह उन्होंने कहा कि वे मेरे शहर में फिल्माया गया एक वीडियो दिखायेंगे। यह सुनकर मेरा दिल मुंह को आ गया, मैंने सोचा कहीं उन्होंने मेरे घर की तलाशी तो नहीं ली, कहीं मेरे माता-पिता मुसीबत में तो नहीं। मुझे चिंता हुई कि कलीसिया के कुछ भाई-बहन प्रभावित हुए होंगे। मुझे बहुत डर लगने लगा। मैं अपनी कुर्सी में इधर-उधर डोले बिना नहीं रह सकी, लगा जैसे मेरे हाथ-पाँव सुन्न हो गये हैं। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। वीडियो में, मेरे डैड पीले-से दिख रहे थे, उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा करने और गवाही देने को प्रोत्साहित करते हुए कुछ बातें कहीं, यह सुनकर, मेरा चेहरा आंसुओं से भीग गया, मैंने बहुत बुरा महसूस किया। मैं ये भी समझ गई कि पुलिस मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए मेरे साथ खेल रही थी, मैं पूरे मन से कम्युनिस्ट पार्टी से घृणा करने लगी। मैंने परमेश्वर के इस वचन को याद किया : "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'कार्य और प्रवेश (8)')। कम्युनिस्ट पार्टी धार्मिक आज़ादी का दिखावा करती है, लेकिन असल में, वह ईसाइयों को अंधाधुंध गिरफ़्तार कर सताती है, क्रूर यातनाएं देती है, बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें सज़ा देती है। अनगिनत ईसाई भागते रहने को मजबूर हैं, वे न तो माता-पिता को देख पाते हैं, न ही बच्चों की देखभाल कर पाते हैं। ये तमाम चीज़ें कम्युनिस्ट पार्टी ही करती है। ईसाई घरों को तोड़नेवाली मुख्य कसूरवार यह पार्टी ही है। मुझे रोता देख सारे अफसर एक तरफ खड़े होकर मेरी खिल्ली उड़ाने लगे, सोच रहे थे कि इसके बाद तो मैं ज़रूर बोल पडूँगी। लेकिन जब मैंने अब भी अपना मुंह नहीं खोला, तो वे मुझे कोसने लगे, फिर मुड़कर चले गये।

एक महीने बाद कुछ अफसर दोबारा पूछताछ करने आये, उन्होंने मुझे फोटो दिखाकर भाई-बहनों की पहचान करने को कहा। एक ने मुझसे कहा, "अगर तूने कबूल नहीं किया, तो दूसरों के अपराधों के लिए जेल जाएगी, देखता हूँ तुझे कितना दंड दिला सकता हूँ। 8-10 साल की सज़ा होगी, तब देखेंगे कि तू कितनी हिम्मतवाली है!" दूसरे अफसर ने मुझे प्रलोभन देने की कोशिश करते हुए कहा, "हमारी बात मान ले, और बयान लिख दे कि तूने अपना धर्म छोड़ दिया है, फिर तू जो चाहेगी, हम वो करेंगे।" मैं टस से मस नहीं हुई, तो उसने मुझे फिर से ललचाने की कोशिश की : "मैं जानता हूँ कि तू अपने माँ-बाप की इकलौती है, उन्होंने तुझे बड़ा करने के लिए कड़ी मेहनत की है। तुझे अभी लंबी सज़ा कुछ नहीं लग रही, लेकिन जब वह दिन आयेगा, तो तू बहुत दुखी होगी, तब पछताने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। तेरे पास दो विकल्प हैं : 1. अपना धर्म छोड़ दे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को नकार दे, फिर हम तुझे सीधे तेरे घर ले जाएंगे। 2. अपनी आस्था पर कायम रखने पर अड़ी रह और जेल जा। बेहतर होगा, तू अच्छी तरह सोच ले।" मैं बड़े पशोपेश में थी। आस्था न रखने का बयान देना तो परमेश्वर के साथ धोखा होगा, लेकिन अगर मैं अपनी आस्था को चुनूँ तो मैं जेल में डाल दी जाऊंगी। क्या मैं दोबारा अपने माता-पिता को देख पाऊँगी? अगर मैं जेल गयी तो लोग यकीनन मेरे माता-पिता के बारे में बुरा सोचेंगे, और उनके अविश्वासी प्रियजन उनकी आलोचना करेंगे। वे बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। वीडियो में मेरे डैड का चेहरा सूजा हुआ और पीला दिख रहा था। क्या उनकी सेहत ठीक नहीं है? इस ख़याल ने मुझे और ज़्यादा दुखी कर दिया और मैं परेशान हो गयी, मैंने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, मैं न तुम्हें धोखा दे सकती हूँ, न अपने माता-पिता को छोड़ सकती हूँ। हे परमेश्वर, बताओ मैं क्या करूँ?" उसी वक्त मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन कौंध गये : "चाहे और कोई भी भाग जाए, तुम नहीं भाग सकते। अन्य लोग विश्वास नहीं करते, पर तुम्हें करना चाहिए। अन्य लोग परमेश्वर का त्याग करते हैं, लेकिन तुम्हें परमेश्वर का समर्थन करना चाहिए और उसकी गवाही देनी चाहिए। दूसरे लोग परमेश्वर की बदनामी करते हैं, लेकिन तुम नहीं कर सकते। ... तुम्हें उसके प्रेम का प्रतिदान देना चाहिए, और तुम्हारे पास एक अंतरात्मा होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर निर्दोष है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ')। "तुम्हारे पास एक अंतरात्मा होनी चाहिए," ये वचन मेरे कानों में गूंजते रहे। कई वर्षों की अपनी आस्था में, मुझे परमेश्वर का ढेर सारा अनुग्रह और आशीष मिला। मैंने कुछ सत्य और कैसा इंसान बनना है, ये सीखा। मैंने परमेश्वर से बहुत कुछ हासिल किया। उसे धोखा देना मेरे लिए बहुत अनुचित होगा। लेकिन एक ओर परमेश्वर और दूसरी ओर अपने माता-पिता के बारे में सोचकर फैसला लेना बहुत दुख देनेवाला था। मेरे दिल में घमासान मचा हुआ था। मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की, परमेश्वर से मार्गदर्शन और आस्था मांगी। प्रार्थना के बाद ये वचन मेरे मन में कौंध गये : "क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। ... अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? इस क्षण तुम्हारा चुनाव क्या है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'तुम किसके प्रति वफादार हो?')। मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे ही साथ है, मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है। मैं जानती थी कि रिश्तों और पारिवारिक शांति के लिए मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, और मेरे माता-पिता की सेहत और जीवन उसके हाथ है। उनके बारे में लगातार फ़िक्र करने का मतलब था कि मैं परमेश्वर में आस्था नहीं रखती। शायद हम एक-दूसरे को न देख पायें, लेकिन मैं जानती थी कि परमेश्वर के सहारे रहने पर वह हमारा मार्गदर्शन करेगा। इस विचार ने मेरी आस्था लौटा दी और मैं उसे संतुष्ट करने के लिए अपना देह-सुख छोड़ने को तैयार हो गयी। मैंने प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, मैं अपने माता-पिता को तुम्हारे हवाले करने और तुम्हारी व्यवस्थाएं मानने को तैयार हूँ।" इसलिए मैं अपनी मुट्ठियाँ कसी और बोली, "मैंने फैसला कर लिया है, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ रहूँगी। वही एक सच्चा परमेश्वर है जिसने स्वर्ग, पृथ्वी, और सारी चीज़ों का सृजन किया, और वही वापस लौटा हुआ प्रभु यीशु है। मैं कभी भी परमेश्वर को नहीं नकारूँगी।" यह कह लेने के बाद मेरा मन पूरी तरह से शांत हो गया। अगर वचनों का मार्गदर्शन न मिला होता, तो मैं शैतान की चालों पर विजय पाने के लिए सच में संघर्ष करती रहती। मेरा दृढ़ संकल्प देखते ही अफसर ने अपना भयानक रूप दिखाया। कागज़ों का एक भारी पुलिंदा मेज पर पटकते हुए मुझे ज़ोर से थप्पड़ मारा, फिर मुझ पर चिल्लाया, "तू तो गई काम से। तू सोचती है कि तू नहीं बतायेगी तो हम कुछ नहीं जान पायेंगे? मैं एक बात साफ़ कर दूं—हम तीन महीने से तुम सबका पीछा कर रहे हैं, तू सोचती है हमें तेरे बारे में सब नहीं पता? हम बस यह देखना चाहते हैं कि तेरा रवैया अच्छा रहता है या नहीं, सोच ले।" मैंने कहा, "मैं परमेश्वर को नहीं नकारूँगी, जेल होती है तो हो जाए, मैं उसे धोखा नहीं दूंगी।" इसके बाद वे मुझे म्युनिसिपल डिटेंशन हाउस ले गये।

मुझे अक्सर तेज़ बुखार आता और मेरे हाथ-पैर सूज जाते, वे मुझे हर दिन दो घंटे पालथी मारकर बैठाये रखते। पूछताछ के दौरान मेरी कमर में लात मारी गयी थी, जिससे मेरी किडनी को नुकसान पहुंचा था, मेरी कमर में इतना दर्द था कि सीधे बैठ नहीं पाती थी। हर दिन काटना बहुत मुश्किल था, अक्सर मुझे रात की पाली में काम करना पड़ता था। कुछ हफ़्ते बाद, मुझे पेशाब करने में दिक्कत होने लगी, मेरा पेट सूज गया, पेट और कमर में बहुत दर्द था। फिर हर दिन शाम 6-7 बजे, मेरा बुखार बहुत बढ़ जाता और मेरा चेहरा लाल हो जाता। डॉक्टर ने जांच करके कहा कि बायीं किडनी में एक इंच चौड़ी एक सिस्ट है, जो सूजी हुई है। इसमें जब बहुत दर्द होता, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती, उसके करीब जाती, और उसके गुणगान के भजन गाती, फिर मैं दर्द को भूल जाती।

27 दिन तक डिटेंशन हाउस में रहने के बाद, उन्होंने मुझे मुकदमे से पहले जमानत पर छोड़ दिया, मुझे लगा कि मैं सच में घर जा सकूंगी। लेकिन देख कर अचरज हुआ कि मेरे शहर की पुलिस और सरकारी अफसर मुझे सीधे 48 दिनों के मत परिवर्तन के लिए एक सोच बदलाव केंद्र ले गये, फिर वे मेरा नाम दर्ज करने स्थानीय पुलिस थाने ले गये। पुलिस चीफ ने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाकर कहा, "तू अब जमानत पर है, तेरा मामला अभी लंबित है। एक साल के लिए, तू शहर की सीमा से बाहर नहीं जा सकती, आसपास के इलाकों में कुछ छोटे-मोटे काम करने भी हों, तो पहले यहाँ आकर बताना होगा और अनुमति मांगनी होगी, तुझे किसी भी पल यहाँ हाज़िर होने के लिए तैयार रहना होगा।" मैं घर आ गयी थी, मगर मुझे कोई आज़ादी नहीं थी, शहर जाती तो कोई-न-कोई मेरा पीछे करता। कुछ महीनों बाद, एक कर्तव्य के लिए घर से जाना ही पड़ा। पुलिस ने मुझे ढूँढ़ने और मेरी धार्मिक स्थिति के बारे में पूछने के लिए किसी को मेरे घर भेजा, मेरे परिवार से कहा कि आस्था का अभ्यास करते रहने पर वे मुझे फिर से गिरफ़्तार कर लेंगे और मुझे पुलिस थाने जाना होगा। ये सुनकर मैं आग बबूला हो गयी। मैंने सोचा, "बेशक मैं आस्था रखती हूँ, यही नहीं, मैं इन सबके बावजूद सुसमाचार साझा करूंगी और गवाही दूंगी! मैं परमेश्वर पर भरोसा करके यकीनन आगे बढ़ती रहूँगी।" परमेश्वर का धन्यवाद!

फुटनोट :

क. किनारे पर वापस लौटने की इच्छा : एक चीनी कहावत, जिसका मतलब है "अपने बुरे कामों से विमुख होना; अपने बुरे काम छोड़ना।"

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