25. महामारी के दौरान सुसमाचार का प्रसार

लू मिंग, चीन

मई 2023 में एक दिन बहन झाओ फेई ने मुझे अपने साथ प्रभु के एक विश्वासी को परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार फैलाने के लिए आमंत्रित किया। विश्वासी का नाम ली हाओ था। उसने पहले एक कलीसिया में युवा सभाओं की अगुआई की थी लेकिन हाल के वर्षों में कलीसिया में उपस्थिति कम होती गई थी और युवा सांसारिक रुझानों की ओर खिंचे हुए भौतिक वस्तुओं और पैसे की चमक-दमक से आकर्षित हो रहे थे। विश्वासी के रूप में कलीसिया में केवल बुजुर्ग ही रह गए थे। ली हाओ की आस्था घटने लगी; उसने सभाओं में जाना बंद कर दिया और वह घर पर सिर्फ बाइबल पढ़ती थी। वह जानती थी कि आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति स्पष्ट रूप से संकेत था कि प्रभु जल्द आने वाला है और वह लगातार उसकी वापसी का इंतजार कर रही थी। यह महसूस करके कि ली हाओ एक सच्ची विश्वासी है और प्रभु की वापसी के लिए तरस रही है, मैं उसे सुसमाचार सुनाने को और ज्यादा उत्सुक हो गई।

मुलाकात के बाद हमने आस्था में अपने अनुभवों और विश्वास में अपनी उम्मीदों को लेकर चर्चा की। हमने मौजूदा दुनिया में विभिन्न प्रकार की बुराई और अंधकारमय घटनाओं, मानवजाति की भ्रष्टता और पतन, परमेश्वर के उद्धार के बिना मनुष्य का क्या होगा आदि के बारे में भी बात की। ली हाओ ने सहमति जताते हुए कहा, “लोग इन दिनों सचमुच बहुत भ्रष्ट हैं और फायदे और प्राप्ति के लिए कुछ भी कर सकते हैं। यदि परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए नहीं आता तो वे नष्ट हो जाएँगे।” उसके बाद मैंने उसे परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के बारे में गवाही दी। मैंने इस बारे में बात की कि कैसे व्यवस्था के युग के बाद के दिनों में लोगों ने अधिक से अधिक पाप किए, उनके पास चढ़ाने के लिए पर्याप्त पाप-बलि नहीं थीं और उन सभी पर व्यवस्था द्वारा दोषी ठहराए जाने और शापित होने का खतरा मँडरा रहा था। फिर अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य करने के लिए परमेश्वर ने देहधारण किया। प्रभु यीशु को मानवजाति के लिए पाप-बलि के रूप में सूली पर चढ़ाया गया, ताकि मनुष्य को शैतान के चंगुल से छुटकारा दिलाकर उसका अस्तित्व सुनिश्चित किया जा सके। हमने इस बारे में भी बात की कि भले ही विश्वासियों के बतौर लोगों को उनके पापों के लिए माफ कर दिया जाता है और वे कई आशीषों और अनुग्रह का आनंद लेते हैं, लेकिन कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता कि उन्हें अभी भी पाप की बेड़ियों से मुक्त होना है और वे सभी पाप करने और स्वीकारोक्ति के निरंतर चक्र में जीते हैं, प्रभु के वचनों का अभ्यास करने में असमर्थ होते हैं। दूसरों के साथ धैर्य और सहनशीलता बनाए रखने में उनकी असमर्थता, उनका झूठ, धोखा, स्वार्थ, दुष्टता और लालच—वे इस भ्रष्टता को त्याग नहीं पाते। भाई-बहन एक दूसरे से ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा करते हैं, गुट बनाते हैं और जब व्यक्तिगत लाभ की बात आती है तो वे पीठ पीछे एक-दूसरे की आलोचना करते हैं और एक-दूसरे पर हमला करते हैं। परमेश्वर कहता है : “इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ(लैव्यव्यवस्था 11:45)। मैंने पूछा, “क्या भ्रष्टता से भरे लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं?” ली हाओ ने कहा, “अशुद्ध लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते लेकिन हम शुद्ध कैसे हो सकते हैं?” मैंने यह कहकर जवाब दिया, “हम स्वयं को शुद्ध नहीं कर सकते, हमें परमेश्वर ही बचाएगा। अगर परमेश्वर हमें बचाने नहीं आता तो हम स्वयं ही पाप मुक्त नहीं हो पाएँगे। प्रभु में विश्वास करने से हमारे पाप क्षमा कर दिए जाते हैं लेकिन हमारी पापी प्रकृति अभी भी हमारे भीतर गहराई से जड़ जमाए रहती है। यदि हम मूल समस्या का समाधान नहीं करते तो हम पाप करते रहेंगे, ठीक वैसे ही जैसे खरपतवार कटने के बाद फिर से उग आती है। यह दर्शाता है कि हम अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन जीते हैं और असल में परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किए गए हैं। मानवजाति को पाप से पूरी तरह से बचाने, उसे शैतान के अंधेरे प्रभाव की पकड़ से छुड़ाने और उन्हें बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति देने के लिए प्रभु यीशु अंत के दिनों में छुटकारे के कार्य की नींव पर वचनों के जरिए न्याय और शुद्धिकरण का कार्य करने के लिए लौटा है। वह मनुष्य के पापों के मूल कारण—मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव और सार—को उजागर करने और उसका न्याय करने के लिए सत्य व्यक्त करता है। केवल उसके वचनों के न्याय के माध्यम से ही हमें एहसास होता है कि हम शैतान द्वारा काफी गहराई से भ्रष्ट किए जा चुके हैं और हम में मानवीय सादृश्यता नहीं है और तभी हम खुद से घृणा और विद्रोह करना शुरू करते हैं और सत्य का अनुसरण करने, सच्चे मानव के सादृश्य जीने और बचाए जाने के इच्छुक होते हैं। यह प्रभु के वचनों को पूरा करता है : ‘मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)।” तब ली हाओ ने कहा, “मैं समझती हूँ कि सिर्फ प्रभु में विश्वास करने मात्र से ही हम अपने पापों से मुक्त नहीं हो गए हैं, अभी भी हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने योग्य नहीं हैं। शुद्ध होने के लिए हमें अभी भी परमेश्वर के न्याय और उद्धार को स्वीकार करने की जरूरत है।” मैंने उससे कहा, “हाँ, मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर ने व्यवस्था के युग, अनुग्रह के युग और राज्य के युग में कार्य के तीन चरण पूरे किए, जैसे खेती में व्यक्ति को जुताई, रोपाई और कटाई करनी होती है, कार्य केवल तीन चरणों के बाद ही पूरा होता है और किसी एक को भी छोड़ा नहीं जा सकता। सिर्फ प्रभु यीशु द्वारा छुटकारा पा लेना ही पर्याप्त नहीं है। केवल अंत के दिनों में न्याय के कार्य को स्वीकार करके ही हमारे भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध किए जा सकते हैं, जिससे हमें जीवित रहने और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है।” हमने उसे यह भी गवाही दी कि कैसे कार्य के सभी तीन चरण एक ही परमेश्वर द्वारा किए गए थे, जिनमें से प्रत्येक पिछले चरण के कार्य को आगे बढ़ाता और गहरा करता जाता है और सभी का लक्ष्य मनुष्य को बचाना और उसे परमेश्वर के राज्य में ले जाना होता है। ली हाओ ने यह सब समझकर और उत्साहित होकर कहा, “प्रभु यीशु हमें बचाने के लिए वापस आ गया है? कितनी बड़ी खुशखबरी है!”

कुछ दिन बाद एक रात हम ली हाओ के घर फिर से गए। लेकिन जैसे ही हम घुसे, वह घबराई हुई दिखी और हमसे बोली, “आप लोगों को तुरंत चले जाना चाहिए। मैं यहाँ आपकी मेजबानी नहीं कर सकती!” मैं भ्रमित थी और इसलिए मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने बेचैनी से जवाब दिया, “मुझे कोविड हो गया है, मैं कुछ भी खा नहीं पा रही हूँ, मुझे दस्त हो गए हैं और कमजोरी महसूस हो रही है। मुझे लगता है कि मैं ज्यादा दिन नहीं जी पाऊँगी। आपको तुरंत चले जाना चाहिए, मैं आपको संक्रमित नहीं करना चाहती।” जब मैंने देखा कि वह कितनी दुबली और कमजोर हो गई है तो मैंने उसके साथ रहना चाहा और इस स्थिति में कैसे अनुभव करना है, इस पर उससे संगति करना चाहा, लेकिन मुझे यह चिंता भी थी कि अगर मैं रुकी तो शायद संक्रमित हो सकती हूँ। हाल के दिनों में कोविड से कई लोग मरे थे और मुझे डर था कि अगर मैं उसके निकट संपर्क में आई तो मैं भी संक्रमित हो सकती हूँ। मुझे रहना चाहिए या चले जाना चाहिए? मैं तय नहीं कर पा रही थी। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और उसके वचनों का एक अंश याद किया : “परमेश्वर ने हर चीज़ की रचना की है और रचना करने के बाद, सभी चीज़ों पर उसका प्रभुत्व है। सभी चीज़ों के ऊपर प्रभुत्व रखने के अतिरिक्त, हर चीज़ पर उसका नियन्त्रण भी है। यह विचार कि ‘परमेश्वर का हर चीज़ पर नियन्त्रण है,’ इसका अर्थ क्या है? इसकी व्याख्या कैसे की जा सकती है? यह वास्तविक जीवन में किस प्रकार लागू होता है? इस सत्य को समझते हुए कि ‘परमेश्वर का हर चीज़ पर नियन्त्रण है’ उसके अधिकार के बारे में कैसे समझा जा सकता है? ‘परमेश्वर का हर चीज़ पर नियन्त्रण है,’ इस वाक्यांश का आशय यह है कि परमेश्वर जो नियंत्रित करता है वह ग्रहों का एक भाग नहीं है, न ही सृष्टि का एक भाग है, वह मानवजाति का एक भाग भी नहीं है, बल्कि सब-कुछ है : अति विशालकाय से लेकर अतिसूक्ष्म तक, प्रत्यक्ष से लेकर अदृश्य तक, ब्रह्माण्ड के सितारों से लेकर पृथ्वी के जीवित प्राणियों तक, और अति सूक्ष्मजीवों तक, जिन्हें आँखों से नहीं देखा जा सकता और ऐसे प्राणियों तक जो अन्य रूपों में विद्यमान हैं। यह ‘सब-कुछ’ की सही परिभाषा है जिस पर परमेश्वर का ‘नियन्त्रण है,’ और यह उसके अधिकार का दायरा है, उसकी संप्रभुता और शासन का विस्तार है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर का सभी चीजों पर प्रभुत्व है और इसमें महामारियाँ और वायरस भी शामिल हैं। यह देखते हुए कि ली हाओ एक सच्ची विश्वासी थी और उसकी समझ मिलावट रहित थी, मुझे उसे परमेश्वर के वचनों की गवाही देनी थी क्योंकि वह कोविड से जूझ रही थी। परमेश्वर के वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं। केवल परमेश्वर के वचनों से ही हमें समुचित समर्थन मिलता है। उनके बिना वह यह नहीं जान पाती कि कैसे अनुभव करना है और आपदाओं में असहाय महसूस करती। जहाँ तक मेरे संक्रमित होने या न होने की बात थी तो यह परमेश्वर पर निर्भर था। अगर मैं संक्रमित हो भी जाती तो भी मैं परमेश्वर की अनुमति के बिना न मरती। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में था और अगर बहन को सच्चा मार्ग स्वीकार कराने के दौरान मुझे कोविड हो भी जाता तो मैं समर्पण करती। मैंने ली हाओ से कहा, “चिंता मत करो, परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीजों पर है। अब हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात परमेश्वर पर भरोसा करना और उसके वचनों को पढ़ना है। परमेश्वर के अलावा कोई भी हमें नहीं बचा सकता।” मैंने उसके साथ परमेश्वर के अधिकार के बारे में संगति की और बताया कि कैसे महामारी और सूक्ष्मजीव सभी परमेश्वर के प्रभुत्व के अंतर्गत हैं और कैसे शैतान परमेश्वर की अनुमति के बिना हमारे जीवन को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। मेरी संगति सुनने के बाद उसने हमें अंदर आने के लिए आमंत्रित किया।

हमने उसके साथ संगति जारी रखी और कहा, “प्रभु यीशु ने बाइबल में भविष्यवाणी की है कि उसके आगमन पर बड़ी आपदाएँ आएँगी। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक भी भविष्यवाणी करती है कि दुनिया के अंत के दौरान बड़ी आपदाएँ आएँगी। अब जबकि आपदाएँ और भी बड़ी हो गई हैं तो परमेश्वर का इरादा क्या है?” ली हाओ ने उत्तर देते हुए कहा, “प्रलय आ रही है और परमेश्वर मानवजाति को नष्ट करने वाला है।” मैंने कहा, “क्या आपदाओं का एकमात्र उद्देश्य मानवजाति को नष्ट करना है? चलो देखते हैं कि परमेश्वर के वचन इस पर क्या कहते हैं। परमेश्वर कहता है : ‘परमेश्वर दुनिया भर में वर्तमान घटनाओं का उपयोग ऐसे अवसरों के तौर पर करता है जिससे मनुष्य घबरा जाएँ, उन्हें परमेश्वर की तलाश करने के लिए प्रेरित करता है ताकि वे उसके समक्ष लौट सकें। इस प्रकार परमेश्वर कहता है, “यह मेरे कार्य करने के तरीक़ों में से एक है, और यह निस्संदेह मानवता के उद्धार का एक कार्य है, और जो मैं उन्हें देता हूँ वह अब भी एक प्रकार का प्रेम ही है”(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10)। इससे हम देखते हैं कि परमेश्वर आपदाओं का उपयोग लोगों को सच्चा मार्ग खोजने को प्रेरित करने और उन्हें यह दिखाने के लिए करता है कि वह आ चुका है ताकि वे जाग सकें और जल्दी से प्रभु का स्वागत कर पाएँ। कुकर्मियों के लिए आपदाएँ दंड और विनाश होती हैं लेकिन सच्चे विश्वासियों के लिए जो खोजने के लिए तैयार हैं, वे चेतावनी और उद्धार होती हैं।” ली हाओ ने जवाब दिया, “मैं समझती हूँ। लोग केवल तभी परमेश्वर को खोजते हैं जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं। इस सब में परमेश्वर के अच्छे इरादे झलकते हैं!” मैंने कहा, “हाँ, लेकिन जब धार्मिक दुनिया में कई लोगों ने प्रभु की वापसी के बारे में सुना तो उन्होंने खोजने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, यह सोचा कि भले ही बड़ी आपदाएँ आएँ, प्रभु उनकी रक्षा करेगा और वे बच जाएँगे। उन्हें लगता है कि जैसे ही प्रभु आएगा, उन्हें सीधे स्वर्ग के राज्य में आरोहण कराया जाएगा। ये सब उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं। परमेश्वर ने अपने घर से शुरू करके न्याय का कार्य किया है। यदि कोई केवल कलीसिया में प्रतीक्षा करता रहे तो क्या वह वास्तव में प्रभु का स्वागत कर पाएगा? यह बिलकुल वैसा ही है जैसे जब प्रभु यीशु आया तो बहुत से लोग सिर्फ मंदिर में ही रहे, यहोवा की आराधना करते रहे और प्रभु यीशु के उपदेश सुनने के लिए नहीं गए। फिर वे पश्चात्ताप का मार्ग और प्रभु का अनुग्रह कैसे प्राप्त कर सकते थे? उस समय प्रभु यीशु मंदिर में काम नहीं करता था। वह पहाड़ों की चोटियों और जंगलों में अनुयायियों को अपने उपदेश देता था। उस समय प्रभु का अनुसरण करने वाले पतरस, यूहन्ना और कुछ अन्य लोगों के अलावा मंदिर में अधिकांश लोग प्रभु यीशु का प्रतिरोध और निंदा करने में मुख्य पुजारियों और फरीसियों का अनुसरण करते थे। वे सभी परमेश्वर द्वारा त्याग दिए गए और हटा दिए गए और आखिरकार उन्होंने उसके दंड और शाप का सामना किया। वही बात अब हो रही है। जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य कर रहा है, तो धार्मिक दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को तो सुनते हैं लेकिन प्रभु की तलाश या उसका स्वागत नहीं करते। यहाँ तक कि कुछ लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसकी निंदा करने के लिए खूब मेहनत भी करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन परमेश्वर की वाणी नहीं सुनते या सत्य को स्वीकार नहीं करते, फिर भी वे स्वर्ग जाना चाहते हैं। वे जरूर सपने देख रहे होंगे। आपदाएँ तेजी से प्रलयकारी होती जा रही हैं और अगर हम समय रहते पश्चात्ताप नहीं करते तो हम भी ठीक अविश्वासियों की तरह आपदाओं में नष्ट हो जाएँगे। अनुग्रह का द्वार जल्द ही बंद हो जाएगा लेकिन परमेश्वर ने अभी भी हमें पश्चात्ताप करने का मौका दिया है। वे सभी जो प्रभु का स्वागत करते हैं और अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं और जिनके भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो जाते हैं, आपदाओं के दौरान परमेश्वर द्वारा उनकी रक्षा की जाएगी।” फिर हमने कुछ सुसमाचार गवाही वीडियो देखे, जिनमें दिखाया गया था कि कैसे भाई-बहन परमेश्वर की वाणी खोजते हैं और उसे सुनते हैं और प्रभु का स्वागत करते हैं। काफी कमजोर और बीमार होने के बावजूद ली हाओ स्क्रीन से चिपकी हुई थी और जाँच करते रहने के लिए तैयार थी। उस दिन उसके साथ संगति करने के बाद मुझे लगा कि उसे सुसमाचार सुनाने के लिए मुझे जो भी कीमत चुकानी पड़ी, वह जायज थी।

कुछ दिन बाद जब ली हाओ के साथ एक बार फिर संगति करने का समय आया तो झाओ फेई ने मुझे बताया कि ली हाओ और उसका पति दोनों काफी बीमार थे और उन्हें इंजेक्शन से दवा दी जा रही थी, ली हाओ के पति को पता था कि हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का प्रसार कर रहे थे और उसने उसे यह स्वीकार करने से मना किया। उसने सार्वजनिक रूप से बाहर जाकर कई पड़ोसियों से कहा कि हमने उनमें कोविड फैलाया है जैसे ही मैंने यह सुना तो सोचा, “वह ऐसा कैसे कह सकता है? मुझे कोविड नहीं है तो मैं इसे उनमें कैसे फैला सकती हूँ? ली हाओ इतनी बीमार थी पर उसने मुझे संक्रमित नहीं किया और अब उसका पति यह कह रहा है। कितना सरासर झूठ है, एक बेबुनियाद आरोप है!” मैंने यह भी सोचा, “अब जबकि ली हाओ के पति ने कहा है कि मैंने उनमें कोविड फैलाया है तो कहीं ऐसा न हो कि दूसरे गाँव वाले मुझे देखकर पुलिस को बुला लें और मुझे गिरफ्तार करवा दें? मुझे पहले भी एक बार सुसमाचार फैलाने के लिए गिरफ्तार किया जा चुका है, अगर मैं फिर से गिरफ्तार की गई तो क्या सीसीपी वाकई मुझ पर नरमी बरतेगी?” यह सब सोचकर मुझमें ली हाओ को सुसमाचार सुनाने का आत्मविश्वास नहीं बचा और मैंने झाओ फेई से कहा कि मैं हालात पर नजर रखूँगी और जब संभव होगा तब वहाँ जाऊँगी। हालाँकि उसके बाद मुझे यह सोचकर अपराधबोध हुआ, “ली हाओ ने परमेश्वर के वचनों को ज्यादा नहीं पढ़ा है। अगर अफवाहों पर विश्वास करने के लिए उससे चाल चली गई तो क्या होगा? यह देखते हुए कि वह अभी भी ठीक नहीं हुई है, उसे अब पहले से कहीं ज्यादा संगति, समर्थन और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने की जरूरत है। मेरे लिए न जाना सही नहीं है लेकिन मैं यह कैसे करूँ?” बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश देखा : “सुसमाचार फैलाते समय व्यक्ति अक्सर ऐसे उपहास, ताने, तिरस्कार, और बदनामी का सामना करता है, या यहाँ तक कि कुछ लोग खुद को खतरनाक स्थितियों में भी पा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ भाई-बहनों की दुष्ट लोगों द्वारा निंदा की जाती है या उनका अपहरण कर लिया जाता है, और कुछ के लिए पुलिस बुला ली जाती है जिन्हें सरकार को सौंप दिया जाता है। कुछ को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है, जबकि अन्य को पीट-पीटकर मार भी डाला जा सकता है। ये सब चीजें होती हैं। लेकिन अब जबकि हम इन चीजों के बारे में जानते हैं, तो क्या हमें सुसमाचार फैलाने के कार्य के प्रति अपना रवैया बदल देना चाहिए? (नहीं।) सुसमाचार फैलाना हर किसी की जिम्मेदारी और दायित्व है। किसी भी समय, चाहे हम जो कुछ भी सुनें या जो कुछ भी देखें, या चाहे जिस भी प्रकार के व्यवहार का सामना करें, हमें सुसमाचार फैलाने का यह दायित्व हमेशा निभाना चाहिए। नकारात्मकता या दुर्बलता के कारण किसी भी परिस्थिति में हम इस कर्तव्य को तिलांजलि नहीं दे सकते। सुसमाचार फैलाने के कर्तव्य का निर्वहन सुचारु और आसान नहीं होता, अपितु खतरों से भरा होता है। जब तुम लोग सुसमाचार का प्रसार करोगे, तब तुम्हारा सामना देवदूतों या दूसरे ग्रहों के प्राणियों या रोबोटों से नहीं होगा। तुम लोगों का सामना केवल दुष्ट और भ्रष्ट मनुष्यों, जीवित दानवों, जानवरों से होगा—वे सब मनुष्य हैं जो इस बुरे स्थान पर, इस बुरे संसार में रहते हैं, जिन्हें शैतान ने गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है, और जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसलिए सुसमाचार के प्रसार की प्रक्रिया में निश्चित रूप से सभी प्रकार के खतरे हैं, क्षुद्र लांछनों, उपहासों और गलतफहमियों की तो बात छोड़ ही दें, जो सामान्य घटनाएँ हैं। यदि तुम सुसमाचार फैलाने को सचमुच अपनी जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व और कर्तव्य मानते हो, तो तुम इन चीजों पर सही ढंग से ध्यान दे पाओगे और इन्हें सही ढंग से सँभाल भी पाओगे। तुम अपनी जिम्मेदारी और अपने दायित्व को तिलांजलि नहीं दोगे, और न ही इन चीजों के कारण तुम सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने के अपने मूल मंतव्य से भटकोगे, और तुम कभी इस जिम्मेदारी से हार नहीं मानोगे, क्योंकि यह तुम्हारा कर्तव्य है। इस कर्तव्य को कैसे समझना चाहिए? यह मानव-जीवन का मूल्य और मुख्य दायित्व है। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का शुभ समाचार और परमेश्वर के कार्य का सुसमाचार फैलाना मानव-जीवन का मूल्य है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह एहसास दिलाया कि सच्चे मार्ग पर हमेशा से अत्याचार किए गए हैं। सुसमाचार का प्रसार करते समय हमेशा खतरे और कठिनाइयाँ आएँगी। जब प्रभु यीशु के शिष्यों ने उसका सुसमाचार फैलाया तो कुछ की पत्थर मार कर जान ले ली गई, कुछ को आरे से काट दिया गया, कुछ को घोड़ों से चीर दिया गया जबकि अन्य को सूली पर चढ़ा दिया गया। उन्होंने सभी प्रकार की भीषण मौत का अनुभव किया, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के लिए गवाही दी और शैतान को अपमानित किया। अंत के दिनों में परमेश्वर ने फिर से देहधारण किया है और मानवजाति को बचाने के लिए मनुष्यों के बीच आया है, लोगों का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने के लिए वह सत्य व्यक्त कर रहा है। शैतान यह देखकर संतुष्ट नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर का अनुसरण कर रहा है और बचाया जा रहा है, इसलिए वह परमेश्वर के कार्य में रुकावट डालने और उसे बाधित करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। न केवल सरकार बल्कि संपूर्ण धार्मिक जगत परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध करने का प्रयास करता है और परमेश्वर को बदनाम करने और उसकी निंदा करने के लिए सभी प्रकार की अफवाहें गढ़ता है। इसके अलावा हमारे परिवार और पड़ोसी शैतान के शासन के शैतानी शब्दों के असर में आकर परमेश्वर को नकारते और उसका प्रतिरोध करते हैं, हमारा मजाक उड़ाते हैं और हमें बदनाम करते हैं और यहाँ तक कि उनमें से कुछ हमारी खबर करके हमें गिरफ्तार तक करवाते हैं। यह सब सुसमाचार के प्रसार में एक बड़ी बाधा है। ली हाओ के पति को ही ले लो, उसने सीसीपी द्वारा फैलाई गई अफवाहें सुनी और हमें ली हाओ को सुसमाचार नहीं सुनाने दिया। मुझे चिंता थी कि मेरी शिकायत कर दी जाएगी और मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा, इसलिए मैंने उसे सुसमाचार सुनाने की हिम्मत नहीं की। मैंने देखा कि मैं मुश्किलों के सामने काँप जाती हूँ और परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं हूँ। मैं केवल अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थी, मैंने ली हाओ के जीवन के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई और अपने कर्तव्य को गंभीरता से नहीं लिया। क्या मैंने एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कार्य नहीं खो दिया था? सुसमाचार का प्रसार करना मेरा दायित्व और मेरा मिशन है। सृष्टिकर्ता की गवाही देने के लिए जीना सबसे सार्थक प्रयास है। चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो, मैं अपना कर्तव्य नहीं त्याग सकती थी। ली हाओ को परमेश्वर के वचन पढ़ाने का रास्ता निकालने के लिए मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना था। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे ज्ञान और बुद्धि देने के लिए कहा ताकि मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकूँ। प्रार्थना के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं जब तक ली हाओ के घर नहीं जा सकती, तब तक मैं परमेश्वर के वचनों को लिखकर किसी और से उसे देने के लिए कह सकती हूँ।

थोड़ी देर बाद मैंने कहा कि मैं ली हाओ से मिलना चाहती हूँ लेकिन झाओ फेई ने घबराहट में मुझसे कहा, “कोविड से हालात अभी बहुत खराब हैं, ली हाओ के परिवार में एक के बाद एक चार लोगों की मौत हो गई है और उसकी माँ का भी निधन हो गया है। वह अभी किसी से नहीं मिलना चाहती।” उस समय मुझे नहीं पता था कि मैं क्या करूँ। न केवल ली हाओ का पति नहीं चाहता था कि मैं उनके घर जाऊँ बल्कि ली हाओ खुद भी मुझसे नहीं मिलना चाहती थी। मुझे क्या करना चाहिए था? साथ ही कोविड के इतने बुरे हालात के कारण मुझे डर था कि गाँव वाले मेरी शिकायत कर देंगे, इसलिए मैंने जाने का विचार छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद मुझे एक अनुभवात्मक गवाही लेख मिला जिसका शीर्षक था “जब मैंने मोर्चे पर धर्मप्रचार किया” इसने मुझ पर गहरा असर डाला। लेख के लेखक भाई ने कुछ समय बाद ही परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार कर लिया था, उसने युद्ध के मोर्चे वाले एक गाँव में सुसमाचार फैलाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली थी। खतरे का सामना करने पर कुछ कमजोरी दिखाने के बावजूद भाई ने सुसमाचार फैलाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया। उस अनुभव के जरिए उसने बहुत सारे लोगों को वापस परमेश्वर के समक्ष लाने में परमेश्वर की सुरक्षा और उसके कर्मों की गवाही दी। जब मैंने अपने अनुभव की तुलना उस भाई के अनुभव से की तो मुझे अपमानित महसूस हुआ। वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास करने और परमेश्वर के इतने सारे वचनों को खाने-पीने के बावजूद मैं सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ थी। यह सुनते ही कि ली हाओ के पति ने बुरी बातें कहीं और मुझे अपने घर जाने से मना किया और यह जानना कि ली हाओ खुद मुझसे नहीं मिलना चाहती थी, मैं उसे सुसमाचार सुनाने के लिए तैयार नहीं थी। मैंने देखा कि मेरी आस्था बहुत दुर्बल है।

मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला : “तो, जो कोई सच्चे मार्ग की जाँच कर रहा हो, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? अगर वह सुसमाचार फैलाने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप है, तो हमारा दायित्व है कि हम उसके साथ इसका प्रचार करें; भले ही उसका वर्तमान रवैया खराब और स्वीकार न करने वाला हो, हमें धैर्य से काम लेना चाहिए। हमें कब तक और किस हद तक धैर्य रखना चाहिए? जब तक वह तुम्हें नकार न दे और तुम्हें अपने घर न आने दे, और कोई चर्चा काम न आए, न ही उसे बुलाना या किसी दूसरे का उसे जाकर आमंत्रित करना काम आए, और वह तुम्हें स्वीकार न करे। ऐसी स्थिति में, उस तक सुसमाचार फैलाने का कोई तरीका नहीं है। तभी तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी की होगी। अपना कर्तव्य निभाने का यही अर्थ है। हालाँकि, जब तक थोड़ी-सी भी आशा बची हो, तो तुम्हें हर संभव उपाय करने के बारे में सोचना चाहिए और उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने और उसके कार्य की गवाही देने का भरसक प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो, तुम दो या तीन साल से किसी के संपर्क में रहे हो। तुमने उसके सामने कई बार सुसमाचार फैलाने और परमेश्वर की गवाही देने की कोशिश की है, लेकिन उसका इसे स्वीकार करने का कोई इरादा नहीं है। फिर भी, उसकी समझ बहुत अच्छी है और वह वास्तव में एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता है। ऐसे में तुम्हें क्या करना चाहिए? सबसे पहले, तुम्हें उससे बिल्कुल भी निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके साथ सामान्य बातचीत करते रहना चाहिए, और उसे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाना और उसके कार्य की गवाही देना जारी रखना चाहिए। उससे निराश मत हो; अंत तक धैर्य रखो। किसी अज्ञात दिन, वह जागेगा और महसूस करेगा कि यह सच्चे मार्ग की जाँच करने का समय है। इसीलिए धैर्य रखना और अंत तक दृढ़ता से डटे रहना सुसमाचार फैलाने का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है। और ऐसा क्यों करना है? क्योंकि यह सृजित प्राणी का कर्तव्य है। चूँकि तुम उसके संपर्क में हो, इसलिए तुम पर उसे परमेश्वर का सुसमाचार सुनाने का दायित्व और जिम्मेदारी है। परमेश्वर के वचन और सुसमाचार पहली बार सुनने से लेकर उसके बदल जाने के बीच कई प्रक्रियाएँ शामिल होंगी, और इसमें समय लगता है। यह अवधि तुमसे उस दिन तक धैर्य रखने और प्रतीक्षा करने की माँग करती है, जब तक कि वह खुद को बदल न ले और तुम उसे परमेश्वर के सामने, उसके घर में वापस न ले आओ। यह तुम्हारा दायित्व है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों के जरिए मैंने जाना कि जब तक कोई व्यक्ति सुसमाचार प्राप्त करने के सिद्धांतों का पालन करता है और सत्य को समझ सकता है, तब तक चाहे वह कितनी भी कठिनाइयों का सामना करे या हमारे प्रति उसका रवैया कैसा भी हो, हमें उसे यूँ ही नहीं त्याग देना चाहिए। हम उसे सुसमाचार सुनाने के लिए प्रेमपूर्वक जो कुछ भी कर सकते हैं, करना चाहिए। यह परमेश्वर का इरादा है और यह हमारी जिम्मेदारी है। ली हाओ का वास्तव में परमेश्वर में विश्वास था, सत्य को समझ पाती थी और उसमें अच्छी मानवता थी, ये सभी बातें उसे संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता के योग्य बनाती थीं। वह केवल अपने पति की रुकावट, अपने परिवार में मौतों और सीसीपी की फैलाई गई अफवाहों के कारण अपने दिल में कमजोर हो गई थी। मुझे उसके साथ संगति करने और उसकी मदद के लिए वह सब कुछ करना था जो मैं कर सकती थी। लेकिन मैं उसके पति द्वारा रिपोर्ट किए जाने के डर से उसे सुसमाचार नहीं सुनाना चाहती थी। मेरी जिम्मेदारी की भावना कहाँ थी? मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “अब यह बहुत सरल है : मुझे अपने दिल से देखो, तुम्हारी आत्मा तुरंत मजबूत हो जाएगी। तुम्हारे पास अभ्यास करने का मार्ग होगा और मैं हर कदम पर तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगा। मेरा वचन हर समय और हर स्थान पर तुम्हारे लिए प्रकट किया जाएगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहाँ या कब, या वातावरण कितना प्रतिकूल है, मैं तुम्हें स्पष्टता से दिखाऊंगा और मेरा दिल तुम्हारे लिए प्रकट किया जाएगा, यदि तुम मेरी ओर अपने दिल से देखते हो; इस तरह, तुम रास्ते में आगे निकल जाओगे और कभी अपने रास्ते से नहीं भटकोगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। मुझे अपने कर्तव्य में परमेश्वर से प्रार्थना करनी थी और उस पर भरोसा करना था। ली हाओ बहुत बीमार थी लेकिन फिर भी मुझे उससे कोविड नहीं हुआ। और जहाँ तक उसके पति की बात है, क्या उसके विचार भी परमेश्वर के हाथों में नहीं थे? परमेश्वर की अनुमति के बिना वह मेरे साथ कुछ नहीं कर सकता था। मुझे ली हाओ को सुसमाचार सुनाने और अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। इस एहसास के बाद मैंने अपना कर्तव्य निभाने के लिए आस्था और शक्ति को वापस पा लिया।

मुझे ताज्जुब हुआ कि ली हाओ के पति ने हमें देखकर कुछ नहीं कहा और ली हाओ ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया। इससे मैं परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचने लगी : “मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर की मुट्ठी में होते हैं और उसके जीवन की हर चीज परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह सब मानो या न मानो, एक-एक चीज चाहे वह सजीव हो या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही इधर से उधर होगी, बदलेगी, नवीनीकृत और गायब होगी। परमेश्वर इसी तरह सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। बाइबल भी यही कहती है : “राजा का मन नालियों के जल के समान यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको मोड़ देता है” (नीतिवचन 21:1)। इससे अधिक सही क्या हो सकता है! परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है और सब कुछ चाहे वह जीवित हो या मृत, उसके हाथों में होता है। एक बार जब मैं सहयोग करने को तैयार हो गई तो पूरे हालात बदल गए। मैं बहुत खुश थी और मैंने उससे पूछा, “क्या तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े जिनकी मैंने तुम्हारे लिए नकल की थी?” उसने जवाब देते हुए कहा, “हाँ, मैंने पढ़े थे। मुझे वाकई लगता था कि मैं बच नहीं पाऊँगी। लेकिन फिर मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : ‘परमेश्वर के वचन गुणकारी दवा हैं!’ ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर एक सर्वशक्तिशाली चिकित्सक है!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। इससे मुझे आस्था और शक्ति मिली। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बचा लिया।” उस बैठक के दौरान मैंने बड़े लाल अजगर और धार्मिक दुनिया की ओर से फैलाई गई अफवाहों के संदर्भ में आध्यात्मिक लड़ाई के बारे में बात की। परमेश्वर का कार्य जहाँ भी जाता है, वहाँ शैतान की अशांति और उत्पीड़न उसके पीछे-पीछे जाते हैं। जब प्रभु यीशु अपना कार्य कर रहा था तो लोगों ने उसके बारे में भी अफवाहें फैलाईं, उसकी निंदा की और यहाँ तक कि उसे सूली पर चढ़ा दिया। अंत के दिनों में कार्य करते समय परमेश्वर का जो उत्पीड़न हुआ, वह और भी बुरा रहा है। यह प्रभु यीशु की भविष्यवाणी पूरी करता है : “परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ(लूका 17:25)। अपने वचन व्यक्त करने और न्याय का कार्य करने के लिए अंत के दिनों में लौटने पर प्रभु लगातार धार्मिक दुनिया और शैतानी सीसीपी सरकार के उत्पीड़न को झेलता रहा है लेकिन परमेश्वर अपनी बुद्धि का प्रयोग शैतान की तिकड़मों के आधार पर करता है और वह अपने कार्य की सेवा में शैतान के उत्पीड़न का उपयोग करता है। उसने सच्चे विश्वासियों से झूठे विश्वासियों को अलग कर उन्हें उजागर किया और कायरों और उन लोगों को भी उजागर किया जो बस अपनी पेट-पूजा में दिलचस्पी रखते हैं। सच्ची आस्था वाले और सत्य से सच्चा प्रेम करने वाले सभी लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर का करीब से अनुसरण करते हैं, उसके वचनों को खाते-पीते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, चाहे उन्हें कितनी भी कठिनाई और उत्पीड़न क्यों न झेलना पड़े, वे कभी भी सच्चा मार्ग नहीं छोड़ते और परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, परीक्षणों और शोधन का अनुभव करने के जरिए वे आखिरकार अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देते हैं और परमेश्वर द्वारा पूर्ण कर प्राप्त कर लिए जाते हैं। प्रकाशितवाक्य उन्हें इस तरह से चित्रित करता है : “ये वे हैं, जो उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्‍वेत किए हैं(प्रकाशितवाक्य 7:14)। कायर, डरपोक, झूठे विश्वासियों को बेनकाब कर हटा दिया जाता है। उत्पीड़न और कठिनाई के बिना सच्चे विश्वासियों को झूठे विश्वासियों से अलग करना असंभव होगा। ली हाओ ने कहा, “परमेश्वर सचमुच बुद्धिमान है! मुझे एहसास नहीं था कि जब प्रभु अपना कार्य करने के लिए वापस आएगा तो वह इस तरह से प्रत्येक को किस्म के अनुसार अलग करेगा।”

फिर हमने अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के बारे में कुछ अंश साथ-साथ पढ़े। उनमें से एक अंश यह था : “अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर के इरादों, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैंने और अधिक संगति की, “अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय का कार्य करने के लिए कई सत्य व्यक्त किए हैं। उसने परमेश्वर की प्रबंधन योजना का रहस्य, कार्य के तीन चरणों की अंदरूनी कहानी, देहधारण का रहस्य, परमेश्वर के नाम का अर्थ आदि को स्पष्ट रूप से समझाया है। उसने यह भी स्पष्ट रूप से समझाया है कि कैसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर मानवजाति को बचाता है और किस तरह मनुष्य को पाप की बेड़ियों से मुक्त होने, बचाए जाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए प्रयास करना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्य के पाप की जड़, मनुष्य की प्रकृति के परमेश्वर-विरोधी पहलुओं, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव और सभी शैतानी विषों को भी उजागर किया। यदि परमेश्वर सत्य व्यक्त करने के लिए नहीं आता तो हम कभी भी अपनी भ्रष्टता की जड़ के बारे में नहीं जान पाते। हम कभी भी शुद्ध नहीं हो पाते, भले ही हमने जीवन भर धार्मिक दुनिया में आस्था रखी हो। न्याय का कार्य परमेश्वर की प्रबंधन योजना में कार्य का अंतिम चरण है, परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार में अंतिम कार्य है, इसलिए अंत के दिनों का परमेश्वर का न्याय स्वीकार करना ही एकमात्र तरीका है जिससे मानवजाति शुद्धिकरण और उद्धार प्राप्त कर सकती है और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकती है। जो लोग अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को स्वीकार नहीं करते और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध और निंदा भी करते हैं, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने वर्षों से प्रभु में विश्वास किया है लेकिन फिर भी वे पाप में जीते हैं और जिनके भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध और रूपांतरित नहीं किया गया है, वे बचाए नहीं जाएँगे और सभी अंत के दिनों की बड़ी आपदाओं में नष्ट हो जाएँगे। परमेश्वर का छह हजार साल का प्रबंधन कार्य समाप्त हो रहा है और सभी तरह के विनाश सामने आ रहे हैं। जो लोग अंत के दिनों में प्रभु का स्वागत नहीं करते और उसके न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार नहीं करते, उनके पास परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का कोई मौका नहीं होगा। अनुग्रह का द्वार बंद होने वाला है। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हम परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य से जुड़ पाए हैं। यही परमेश्वर का अनुग्रह है।” ली हाओ ने उत्साह से भरकर उत्तर दिया, “मुझे न त्यागने और तुम्हारे माध्यम से कार्य करते हुए मुझे अंत के दिनों का सुसमाचार सुनाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद ताकि मैं प्रभु का स्वागत कर सकूँ। मैं परमेश्वर के कार्य से जुड़ पाने के कारण बहुत धन्य हूँ। मुझे वास्तव में परमेश्वर के वचनों को लगन से पढ़ना चाहिए!”

ली हाओ के साथ सुसमाचार साझा करते समय मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता के साथ-साथ उसकी अद्भुत सुरक्षा को भी देखा। ली हाओ से दो घंटे तक आमने-सामने बात करने के बाद भी मुझे कोविड नहीं हुआ। इससे मुझे और अधिक एहसास हुआ कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है और इसने मुझे सुसमाचार फैलाने में और भी ज्यादा आस्था दी!

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