64. समझने का दिखावा करने के परिणाम

सु यू, चीन

मैं कलीसिया में वीडियो बनाती हूँ। प्रशिक्षण की शुरुआत में जब कोई चीज समझ में नहीं आती थी तो मैं दूसरों से मदद माँग लेती थी। धीरे-धीरे मैंने कुछ सिद्धांतों को समझना शुरू कर दिया और यहाँ तक कि कुछ वीडियो अपने आप बनाने लगी। सबने कहा कि मैं तेजी से सीख रही हूँ और सुपरवाइजर ने भी कहा कि मेरे वीडियो नवोन्मेषी और विचारपूर्ण हैं। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने सोचा कि मुझमें वीडियो निर्माण के लिए कुछ विशेष गुण और क्षमता है। इसके बाद मैंने वीडियो बनाते समय मुश्किल से ही दूसरों से मदद माँगी और ज्यादातर समय मैंने खुद ही समस्याओं पर अच्छी तरह सोच-विचार और इनका समाधान करने की कोशिश की। एक बार मैं एक कठिन वीडियो बना रही थी और थोड़ी उलझन में थी इसलिए मैंने सोचा कि टीम अगुआ से कहूँ कि वह मुझे कोई सरल-सा वीडियो दे दे। लेकिन फिर मैंने सोचा, “चूँकि मैंने यह वीडियो चुना है अगर मैं टीम अगुआ से कहूँगी कि मैं इसे नहीं बना सकती तो क्या वह मुझे हेय दृष्टि से देखेगी? छोड़ो भी, यह वीडियो पेचीदा हो सकता है लेकिन अगर मैं कड़ी मेहनत करूँ तो शायद इसे पूरा कर सकती हूँ।” इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और बस सिर झुकाकर शोध और माथापच्ची करती रही। बहुत सोचने के बाद भी मुझे इसके बनाने का कोई उपाय नहीं सूझा और मैंने किसी और से मदद माँगने के बारे में सोचा लेकिन लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैं काफी समय से प्रशिक्षण ले रही हूँ। अगर मैं अब भी दूसरों से मदद माँगती हूँ तो क्या वे सोचेंगे कि मुझमें काबिलियत की कमी है? नहीं मैं खुद इसे समझने की कोशिश करती हूँ।” उसी समय टीम अगुआ ने मुझसे पूछा, “वीडियो कैसा चल रहा है? अगर तुम्हें परेशानी हो रही है तो तुम कोई दूसरा आसान वीडियो ले सकती हो।” मैंने मन ही मन में सोचा, “अब मैं इसे बदल नहीं सकती। अगर मैंने ऐसा किया तो क्या मैं अक्षम नहीं लगूँगी?” इसलिए मैंने शांत भाव अपनाया और कहा, “मैं इसे समझने की कोशिश कर रही हूँ। इसे बदलने की जरूरत नहीं है।” यह कहने के बाद मुझे अंदर से बेचैनी महसूस हुई। इस वीडियो पर मैंने बहुत समय लगाया और फिर भी इसे शुरू करने पर कोई विचार नहीं मिला। यह मेरी क्षमता की सीमा थी मैंने महसूस किया कि इस समस्या को जबरन हल करने की कोशिश इसका समाधान नहीं थी लेकिन फिर भी मैंने टीम अगुआ को नहीं बताया। दो-तीन दिनों तक मैंने वीडियो पर कोई प्रगति नहीं की और अंत में मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था और मुझे किसी और से मदद माँगनी पड़ी। जल्द ही मैंने एक नए प्रारूप में वीडियो बनाना शुरू किया। यूँ तो मैंने पहले ही इस दृष्टिकोण पर सबके साथ चर्चा कर ली थी, फिर भी निर्माण प्रक्रिया में मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और मैंने फिर से टीम अगुआ से बात करने के बारे में सोचा। लेकिन फिर मुझे लगा, “हम पहले ही इस पर चर्चा कर चुके हैं। अगर मैं फिर से पूछूँ तो क्या टीम अगुआ सोचेगा कि मुझमें काबिलियत नहीं है और एक वीडियो बनाने के लिए मुझे बार-बार समझाना पड़ता है?” सब लोग यह न देख लें कि वीडियो निर्माण प्रक्रिया की कुछ चीजों को मैं समझ या कर नहीं पा रही हूँ, इसलिए मैंने दिखावा किया कि जो मैं कर रही हूँ जानती हूँ और बस अपने कंप्यूटर पर कार्य करती रही लेकिन इस पर कई दिन खपाने के बाद भी मैं वीडियो पूरा नहीं कर पाई और अंततः मुझे टीम अगुआ से मदद माँगनी पड़ी। इन दो असफलताओं ने मुझे बेहद शर्मिंदा कर दिया लेकिन मैंने आत्म-चिंतन नहीं किया और दिखावा करना जारी रखा, इसके परिणामस्वरूप मेरे कर्तव्य में कोई परिणाम नहीं निकला। मैं नकारात्मक हो गई और वीडियो निर्माण के लिए खुद को कम काबिल और अनुपयुक्त समझने लगी। मैंने खुद को बहुत दबा हुआ और पीड़ित महसूस किया। कभी-कभी मैं अपनी स्थिति के बारे में किसी से बात करना चाहती थी लेकिन मुझे डर था कि अगर दूसरों ने मेरी कमजोरियों और कमियों को देखा तो वे मुझे कम आँकेंगे, इसलिए मैं खुलने के लिए तैयार नहीं थी।

एक बार टीम अगुआ ने मुझे सुझाव दिया और कहा, “तुम सभाओं में परमेश्वर के वचनों के प्रति अपनी अनुभवजन्य समझ पर संगति नहीं करती हो, न ही अपनी भ्रष्टता या कमियों के बारे में बात करती हो और न ही अपने कर्तव्य में आई कठिनाइयों के बारे में। ऐसा लगता है कि तुम सिर्फ दिखावे के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल रही हो।” मैंने देखा कि टीम अगुआ ने मेरी दशा अच्छी तरह भाँप ली है और मैं बहुत शर्मिंदा हो गई। मेरा चेहरा लाल हो गया और मैंने सिर झुकाकर कुछ नहीं कहा। बाद में टीम अगुआ ने मेरी मदद के लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा। परमेश्वर कहता है : “लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते। हालाँकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे और हैसियत वाले लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी साधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या असाधारण व्यक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, या कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, ‘जल्दी ही, जल्दी ही!’ लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, ‘मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!’ यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं। वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी या सामान्य लोग नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, असाधारण व्यक्ति या कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक सामान्य मानवता के भीतर की कमजोरियों, कमियों, अज्ञानता, मूर्खता और समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैंने समझा कि मनुष्य सृजित प्राणी हैं और उनमें कई कमियाँ और कमजोरियाँ होती हैं। कोई व्यक्ति कितना भी सक्षम क्यों न हो, खुद हर चीज संभाल और कर पाना असंभव है। अपनी कमियों और कमजोरियों को सही तरीके से स्वीकार न करना और बार-बार खुद को छिपाना नासमझी, अज्ञानता, घमंड और तर्कहीनता है। मैंने सोचा कि जब मैंने अभी वीडियो निर्माण सीखना शुरू किया ही है और सिद्धांत बखूबी नहीं समझे हैं तो जटिल वीडियो न बना पाना मेरे लिए सामान्य है। लेकिन मैंने अपनी सीमित क्षमताओं को नहीं पहचाना और कुछ वीडियो बनाने के बाद जब भाई-बहनों ने मुझे थोड़ी प्रशंसा और प्रोत्साहन दिया तो मुझे लगने लगा कि मुझमें खूब काबिलियत है, मुझमें क्षमता और पेशेवर कौशल हैं। जब मुझे ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा जिन्हें मैं नहीं कर सकती थी या समझ नहीं सकती थी तो मैंने मदद माँगना बंद कर दिया और बस अपनी कमियों को छिपाया, मुझे भय था कि अगर दूसरों ने मेरी कमजोरियों को देखा तो उनका मेरे प्रति अच्छा विचार बदल जाएगा। टीम अगुआ ने मेरी परेशानियों को देखा और सक्रिय रूप से मेरी मदद करने की पेशकश की लेकिन मैंने मुखौटा पहने रखा और उसकी मदद ठुकरा दी, मैंने अपनी परेशानियों के बारे में खुलकर बात करने के बजाय गुपचुप शोध करना और समय बर्बाद करना पसंद किया। इसके परिणामस्वरूप मैंने वीडियो बनाने में देरी कर दी। जब मैंने एक नए प्रारूप में वीडियो बनाया तब भी मैंने यही किया। भले ही मुझे स्पष्ट रूप से पता नहीं था कि क्या करना है मैंने जानबूझकर दिखावा किया कि मैं इस पर कार्य कर रही हूँ ताकि दूसरों को धोखा दे सकूँ। मैंने बहुत समय बर्बाद किया और फिर भी वीडियो तैयार नहीं हुआ। दूसरों की नजरों में अपनी अच्छी छवि बनाए रखने के लिए मैंने अपनी परेशानियों और कमजोरियों को छिपा दिया और इन पर किसी की नजर नहीं पड़ने दी। यहाँ तक कि जब मैं नकारात्मक महसूस कर रही थी तब भी मैंने किसी को नहीं बताया। मैं बार-बार खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करती रही मानो मैं सब कुछ कर सकती हूँ और हर चीज में दूसरों से बेहतर हूँ। मैं बहुत घमंडी थी और पूरी तरह से आत्म-जागरूकता से रहित थी! लेकिन मैं इस बात की असलियत नही जान पा रही थी और बस खुद को छिपाती रही। जब मैंने समस्याओं या कठिनाइयों का सामना किया तो मैंने मदद माँगने के लिए खुलकर बात नहीं की जिससे समस्याएँ अनसुलझी रहीं, इससे न केवल मेरी दशा बिगड़ गई, बल्कि वीडियो निर्माण में भी देरी हुई। जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी मूर्ख थी! तभी मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ यानी अपनी कठिनाइयाँ उजागर करना नहीं चाहते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि खुद को न छिपाना, सरल, स्पष्टवादी और ईमानदार रहना और अपनी भ्रष्टता, कठिनाइयों और कमियों को संगति में रखकर सत्य खोजना एक बुद्धिमान व्यक्ति की पहचान है और सिर्फ ऐसे लोग ही सत्य समझ सकते हैं और मुक्ति पा सकते हैं। लेकिन मैं स्पष्ट रूप से कई क्षेत्रों में कमजोर थी और विशेष रूप से नए प्रारूप में वीडियो बनाने में मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था फिर भी मुझमें यह कहने की भी हिम्मत नहीं थी कि “मैं यह नहीं कर सकती” या “मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है।” इसके बजाय मैंने खुद को लुकाने-छिपाने की पूरी कोशिश की, मुझे भय था कि अगर सबने मेरी असलियत देख ली तो वे मुझे तुच्छ समझेंगे, इससे मेरा जीवन थका देने वाला और कठिन हो गया। मैंने यह सोचकर बार-बार खुद को छिपाया कि मैं चतुर हूँ और दूसरों को मूर्ख बना सकती हूँ लेकिन वास्तविकता में सभी मेरी सच्ची क्षमताओं को पहले ही देख चुके थे मैं न केवल अपनी छवि को बचाने में विफल रही बल्कि और भी बड़ी मूर्खता का प्रदर्शन कर बैठी। ऐसे खुद को छिपाने और छद्म रूप से पेश करने के कारण और अपना दिल खोलकर संगति में सहायता न माँगने के कारण मैं पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी को प्राप्त नहीं कर पाई और मेरे कार्य की कठिनाइयों का समाधान नहीं हो सका जिससे कलीसिया के कार्य में बाधा आई और नुकसान पहुँचा। ये सारी चीजें समझने के बाद मैंने संगति में भाई-बहनों के सामने खुलकर बात की और अपनी भ्रष्टता और कमियाँ उजागर कीं और उन्होंने मुझे हेय समझने के बजाय मेरे साथ संगति की और मेरी मदद की। मुझे बेहद उलझन और शर्मिंदगी हुई। इसके बाद जब भी मैं किसी वीडियो निर्माण कार्य को संभालने में असमर्थ होती तो मैं सक्रिय रूप से भाई-बहनों से मदद माँगती। कुछ समय तक इस का अभ्यास करने के बाद मैं अपने तकनीकी कौशलों में कुछ निखार ले आई और अपने कार्यों में और भी निपुण बन गई। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी थी!

बाद में कलीसिया ने मुझे नए विश्वासियों को सींचने की जिम्मेदारी सौंपी। कुछ समय के प्रशिक्षण के बाद मैंने कुछ सिद्धांतों को समझ लिया और नए विश्वासियों की समस्याओं और कठिनाइयों को हल करने में सक्षम हो गई। भाई-बहनों ने कहा कि मैं अपने कार्य में मेहनती, जिम्मेदार और कठिनाइयों को सहने में सक्षम हूँ। सभी की प्रशंसा सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई और मुझे लगा कि मैं अच्छा कार्य कर रही हूँ और बिना जाने मैं फिर से छद्मवेश अपनाने लगी। एक शाम कुछ मैं नए विश्वासियों द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्नों को समझ नहीं पा रही थी और काफी देर तक उन पर विचार करने के बाद भी मुझे कोई समाधान नहीं सूझा और मैंने सोचा कि मैं सो जाऊँ। तभी मेरी सहयोगी बहन झांग जिंग ने मुझसे पूछा, “तुम अभी तक जाग रही हो? क्या तुम्हें किसी मदद की जरूरत है?” मुझे ख्याल आया कि झांग जिंग लंबे समय से नए विश्वासियों का सिंचन कर रही थी और उसके पास कुछ कार्य अनुभव था, इसलिए मैं उससे बात करना चाहती थी। लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैं हर चीज के लिए उससे पूछती रहूँगी तो क्या वह सोचेगी कि मैं इतनी अयोग्य हूँ कि अपनी समस्याओं का समाधान भी नहीं कर सकती? क्या वह मुझे कमतर आँकेगी? नहीं मैं खुद इसे समझ जाऊँगी। इस तरह वह अभी भी मुझे एक ऐसी अच्छी छवि वाली इंसान समझेगी जो देर तक जागने, कठिनाइयाँ सहने और मूल्य चुकाने के लिए तैयार है।” इसलिए मैंने हिम्मत जुटाई और उससे कहा कि मैं चीजों को सँभाल सकती हूँ और उसे सो जाना चाहिए। उस रात मैं 2 बजे तक जागती रही और फिर भी यह नहीं समझ पाई कि कुछ समस्याओं का समाधान कैसे करना है। मैंने न केवल समय बर्बाद किया बल्कि कार्य में भी देरी कर दी और मुझे अपने भीतर एक अजीब तरह की दमन की भावना और बेचैनी महसूस हुई। मैं अपने आप से बहुत नाराज थी और सोच रही थी, “मैं ईमानदारी से यह क्यों नहीं कह पाती हूँ कि मुझे मदद चाहिए? मुझे क्यों यह बहादुरी दिखाने और दिखावा करने की जरूरत है कि मैं हर चीज कर सकती हूँ?” लेकिन मैंने फिर भी आत्म-चिंतन नहीं किया। बाद में मेरी जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ गया और इसके साथ ही मेरे कार्य में समस्याएँ और कठिनाइयाँ बढ़ती गईं लेकिन सत्य की मेरी समझ सतही थी और मुझे मुद्दों को स्पष्ट रूप से देखने और उन्हें हल करने में संघर्ष करना पड़ा। कभी-कभी सिंचनकर्ता की दशा खराब होती थी और उनके कर्तव्य में कोई नतीजा नहीं निकल रहा होता था लेकिन मैं उनकी समस्याओं को हल करने का तरीका नहीं जानती थी। दूसरों को अपनी कमजोरियाँ और कमियाँ न दिखाने के लिए मैं बस अपने मन में चीजों पर विचार करती और जब कोई समस्या हल नहीं हो पाती तो इतनी नकारात्मक हो जाती कि छुपकर रोने लगती। लेकिन फिर भी मैं जिद पर अड़ी रही। एक कार्य समीक्षा के दौरान मैंने देखा कि जिस कार्य के लिए मैं जिम्मेदार थी उसके परिणाम बहुत खराब थे और पुरानी समस्याएँ सुलझी नहीं थीं और नई समस्याएँ उभर आई थीं। उस पल मैं इसे और सहन नहीं कर पाई और रो पड़ी। आँसुओं के बीच मैंने अपनी पूरी दशा झांग जिंग बहन को बताई। मेरी उम्मीद के विपरीत उसने कहा, “मुझे हमेशा लगता था कि तुम बहुत अच्छा कर रही हो, अगर तुमने आज खुलकर बात नहीं की होती तो मुझे यह पता नहीं चलता कि तुम्हें इतनी समस्याएँ हैं।” मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई क्योंकि यह वह नकली छवि थी जो मैंने खुद को छिपाकर और दूसरों को धोखा देकर बनाई थी। अगले कुछ दिनों तक मैंने अक्सर सोचा, “ऐसा क्यों है कि जब भी मैं कठिनाइयों का सामना करती हूँ तो दूसरों के साथ खुलकर बात और संगति करने की अनिच्छुक होती हूँ? मैं हमेशा खुद को छिपाने और नकली छवि बनाने के लिए इतनी उत्सुक क्यों रहती हूँ?”

बाद में मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपना गरूर और गर्व बरकरार रखना चाहते हैं, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और अगाध प्रेम खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे। ... जो भी लोग खुद को निष्कलंक और पवित्र समझते हैं, वे सभी ढोंगी हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि वे सभी ढोंगी हैं? मुझे बताओ, क्या भ्रष्ट मनुष्यों में कोई निर्दोष है? क्या वाकई कोई पवित्र है? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं है। मनुष्य निर्दोष कैसे हो सकता है जब उसे शैतान ने इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है? इसके अलावा, इंसान सहज रूप से सत्य से युक्त नहीं होता है। सिर्फ परमेश्वर पवित्र है; सारी भ्रष्ट मानवता मलिन है। अगर कोई व्यक्ति किसी पवित्र व्यक्ति का रूप धारण करता है और कहता है कि वह निष्कलंक है, तो वह व्यक्ति कैसा होगा? वह एक दुष्ट व्यक्ति, एक शैतान, एक महादूत होगा—वह पक्के तौर पर मसीह-विरोधी होगा। सिर्फ कोई मसीह-विरोधी ही निर्दोष और पवित्र व्यक्ति होने का दावा करेगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस))। परमेश्वर के वचन उजागर करते हैं कि अपने रुतबे और छवि को लोगों के दिलों में बनाए रखने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर खुद को छिपाते हैं, वे अपनी कमियों और कमजोरियों को ढकते हैं और यह दिखावा करते हैं कि उनमें कोई भ्रष्टता या खामियाँ नहीं हैं और जैसे वे सब कुछ करने में सक्षम हैं ताकि लोग उनका आदर करें और उनकी आराधना करें। मैंने अपने व्यवहार पर विचार किया। जब मेरे कर्तव्यों में कुछ परिणाम आए तो मैंने महसूस किया कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ और लोगों के दिलों में अपनी अच्छी छवि बनाए रखने और उन्हें यह दिखाने के लिए कि मेरी काबिलियत, कार्यक्षमता अच्छी है और कि वो मेरा आदर करें मैंने मदद नहीं माँगी और इसके बजाय जब मुझे कार्य में समस्याएँ और कठिनाइयाँ आईं और यह स्पष्ट था कि मेरे पास अनुभव की कमी है और मैं चीजों की असलियत जानने या हल करने में सक्षम नहीं थी तब भी मैंने अपनी कमियों को छिपाने और ढकने की भरसक कोशिश की। जब दूसरों ने सक्रिय रूप से मेरी मदद करने की पेशकश की तो मुझे डर था कि मेरी कमजोरियाँ और कमियाँ उजागर हो जाएँगी, इसलिए मैंने दूसरों की मदद स्वीकारने के बजाय खुद रातभर जागकर कार्य करना पसंद किया, यहाँ तक कि मैंने यह दिखावा भी किया कि मैं शिकायत के बिना कठिनाइयाँ सहने के लिए तैयार हूँ ताकि लोग सोचें कि मैं अपने कर्तव्यों के प्रति वफादार हूँ और कठिनाइयाँ झेल सकती हूँ और मूल्य चुका सकती हूँ। लेकिन अंत में मैंने खुद को इतना सताया कि मुझे दबाव और पीड़ा महसूस हुई, मैं छुप-छुपकर रोती रही और बोलने की हिम्मत नहीं कर पाई, इस भय से कि भाई-बहन मेरे वास्तविक आध्यात्मिक कद को देख लेंगे और मेरा आदर नहीं करेंगे। मैं वास्तव में एक पाखंडी और नकली थी। जब मैंने पीछे मुड़कर सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि कलीसिया ने मुझसे कभी यह अपेक्षा नहीं की थी कि मैं अपने कर्तव्यों में हर चीज को भली-भाँति समझने या हर कठिनाई को हल करने में सक्षम रहूँ। मैं बस पाखंड करती रही, हमेशा मजबूत होने का दिखावा करती रही, घमंडी बनकर खुद को नुकसान पहुँचाती रही और चीजों को न समझने के बावजूद समझने का दिखावा करती रही। मैंने खुद को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया और इसके परिणामस्वरूप कलीसिया के कार्य में देरी की और खुद को बहुत कष्ट दिए। चूँकि मैंने दूसरों के सामने हमेशा खुद को एक सक्रिय और सकारात्मक व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, इसलिए कुछ भाई-बहन मेरे दिखावे से भ्रमित हो गए और सोचने लगे कि मैं कष्ट सह सकती हूँ, कार्यक्षमता रखती हूँ और मुझे बहुत मानते थे। एक बहन ने मुझसे कहा, “इतना बड़ा बोझ अकेले उठाना मुश्किल होना चाहिए, मैं तुमसे सीखना चाहती हूँ।” बहन की मेरे बारे में इतनी ऊँची राय सिर्फ इसलिए थी क्योंकि मैंने हमेशा मुखौटा लगाए रखा और अपनी कमजोरियों या कठिनाइयों को कभी उजागर नहीं किया। मैं दूसरों को भ्रमित करने और धोखा देने में बहुत माहिर थी, जो दूसरों के लिए ही नहीं, खुद मेरे लिए भी हानिकारक था। मैंने अपने दिल की गहराइयों से अपने कार्यों और आचरण के लिए घृणा महसूस की और मैं अब खुद को और छिपाना या इस गलत मार्ग पर आगे बढ़ना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने पश्चात्ताप करते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की और अभ्यास का मार्ग माँगा।

इसके बाद मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन-प्रवेश करने की दिशा में सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जांच करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएंगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधाओं या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “और इसलिए, तुम्‍हारी हालत कैसी भी क्‍यों न हो, चाहे तुम नकारात्‍मक हो, या मुश्किल में हो, तुम्‍हारे उद्देश्‍य या योजनाएँ चाहे जो भी हों, छानबीन के माध्यम से तुमने जो कुछ भी क्‍यों न जाना या समझा हो, तुम्‍हें खुलकर बात कहना और संगति करना सीखना ही होगा, और जैसे ही तुम संगति करते हो, पवित्र आत्‍मा काम करता है। और पवित्र आत्‍मा अपना काम कैसे करता है? वह तुम्‍हें प्रबुद्ध और रोशन करता है और समस्‍या की गंभीरता समझने देता है, वह तुम्‍हें समस्‍या की जड़ और सार से अवगत कराता है, फिर तुम्हें थोड़ा-थोड़ा करके सत्य और अपने इरादे समझाता है, और तुम्हें अभ्यास का मार्ग देखने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने देता है। जब व्यक्ति खुलकर संगति कर सकता है, तो इसका मतलब है कि उसका सत्य के प्रति ईमानदार रवैया है। कोई व्यक्ति ईमानदार है या नहीं, यह सत्य के प्रति उसके दृष्टिकोण से मापा जाता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने अभ्यास का एक मार्ग दिखाया जिसमें अपने अभिमान को त्यागना, ईमानदार व्यक्ति बनना, सक्रिय रूप से अपनी कठिनाइयों और कमियों के बारे में खुलकर बात करना, खुद को परमेश्वर और दूसरों के सामने सच्चाई से प्रस्तुत करना, धोखे या छिपाने का अभ्यास न करना और वास्तविक और सच्चा होना शामिल था। एक ईमानदार व्यक्ति अपना दिल परमेश्वर के सामने खोल सकता है और सत्य को खोजने की ईमानदार इच्छा रखता है ताकि वह अपनी समस्याओं और कठिनाइयों को हल कर सके, इससे उनके लिए पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करना, सत्य को समझना और वास्तविकता में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह समझने के बाद मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की और यह निर्णय लिया कि मुझे भविष्य में परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना है, अपने अभिमान को त्यागना है, खुलेपन और ईमानदारी के साथ खुद को प्रस्तुत करना है और एक सरल और ईमानदार व्यक्ति बनना है।

बाद में जब मुझे अपने कार्य में ऐसी समस्याएँ आईं जिन्हें मैं समझ या हल नहीं सकती थी या जब मैं किसी विशेष दशा को हल करने का तरीका नहीं जानती थी, मैंने सचेत रूप से परमेश्वर से प्रार्थना की और अपने भाई-बहनों से मदद माँगने के लिए खुलकर बात की। एक बार एक नए विश्वासी ने एक प्रश्न पूछा और हालाँकि मेरे पास कुछ विचार थे लेकिन मैं यह सुनिश्चित नहीं कर पाई कि समाधान के बारे में संगति कैसे करनी है तो मैंने झांग जिंग से चर्चा करने के बारे में सोचा लेकिन फिर यह सोचकर झिझक गई, “मैं काफी समय से नए विश्वासियों की सिंचाई कर रही हूँ। अगर मैं अब भी ऐसे सवालों को लेकर उसके पास जाऊँगी तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी? छोड़ो। मैं उससे नहीं पूछूँगी। मैं खुद इसे समझ जाऊँगी।” इसी समय मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से खुद को छिपाने की ओर ललचा रही हूँ। मैंने सोचा कि कैसे मैंने पहले कई बार खुद को छिपाया और छलावा किया जिससे न केवल मुझे दबाव और पीड़ा महसूस हुई बल्कि कार्य को भी नुकसान पहुँचा। इसलिए मैंने समझा कि मैं अब और दिखावा नहीं कर सकती हूँ। मुझे उन चीजों पर दूसरों के साथ खुलकर संवाद करना चाहिए, जिन्हें मैं समझती नहीं हूँ या जिनके बारे में स्पष्ट नहीं हूँ। फिर मैंने अपने दिल में परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की और उसकी मदद माँगी कि मैं उसके वचनों के अनुसार एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कर सकूँ। इसके बाद मैंने झांग जिंग से अपनी कठिनाइयों और संभावित समाधानों पर चर्चा की और उसने बताया कि परमेश्वर के वचनों का जो अंश मैंने उद्धृत किया था वह उपयुक्त नहीं था और यह भी बताया कि इस प्रकार के मुद्दों पर कैसे संगति करनी चाहिए और कैसे इनका समाधान करना चाहिए। झांग जिंग की सलाह के अनुसार मैंने फिर से परमेश्वर के उपयुक्त वचन खोजे। जब मैंने नए विश्वासी के साथ संगति की तो उसकी उलझन दूर हो गई और मैं बहुत सहज महसूस करने गई। तब मैंने जाना कि परमेश्वर के वचनों के अभ्यास से सहजता और मुक्ति की अनुभूति होती है।

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