65. स्वार्थ और नीचता का थोड़ा ज्ञान

नाना, चीन

2020 में मैं दो बहनों ली ना और यांग यांग के साथ पाठ आधारित कर्तव्य पूरा करने में सहयोग कर रही थी। कुछ समय बाद मुझे टीम अगुआ चुन लिया गया। मैंने मन में सोचा, “मैं लंबे समय से पाठ-आधारित कार्य कर रही हूँ और अब मैं टीम अगुआ हूँ, मुझे उनके साथ सहयोग करना होगा ताकि हम अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से कर सकें।” वे युवा थीं, इसलिए मैं अक्सर रोजमर्रा के जीवन में उनके प्रति अधिक सहनशील रहती थी और जब मैं देखती कि वे काम में समस्याओं से जूझ रही हैं या कुछ सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट नहीं हैं, तो मैं ये चीजें हल करने के लिए उनके साथ सत्य खोजती। ली ना और यांग यांग दोनों कहती थीं कि उनका मेरे साथ काम करना आसान था, मैं धैर्यवान थी और अपने कर्तव्यों में जिम्मेदार थी। मुझे भी लगता था कि मैं समग्र कार्य पर विचार करने में सक्षम थी और मुझ में धैर्य था, मैं प्रेमपूर्ण थी और मेरे पास अच्छी मानवता थी। उस समय हर कोई अपने कर्तव्यों में बहुत सकारात्मक था और काम ने कुछ नतीजे दिए। पर्यवेक्षक ने भी मेरी प्रशंसा की, मुझे खुशी हुई और मैंने सोचा कि मुझे भविष्य में और भी बेहतर करना है।

बाद में काम के बढ़ते बोझ और उपदेशों के लंबित रहने के कारण पर्यवेक्षक ने हमारे कर्तव्यों में सहयोग करने के लिए बहन वांग नान की व्यवस्था की। मैंने देखा कि वांग नान धर्मोपदेश छाँटने और उनके लेखन दोनों में काफी तेज थी और मेरी प्रगति उससे धीमी थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर पर्यवेक्षक ने देखा कि वांग नान के आने के साथ धर्मोपदेश छाँटने की प्रगति में स्पष्ट रूप से तेजी आई है, क्या वह सोचेगी कि मेरी कार्य क्षमताओं में कमी है, कि मैं वांग नान जितनी अच्छी नहीं हूँ या मैं वास्तविक काम नहीं कर रही हूँ और यही धर्मोपदेशों के लंबित रहने का कारण है? ऐसे नहीं चलेगा, मुझे धर्मोपदेश छाँटने में जल्दी करनी होगी और वांग नान से पीछे नहीं रहना है।” उस समय यांग यांग को धर्मोपदेशों की छँटाई करते समय कुछ समस्याएँ आईं और मुझे पता था कि मुझे संगति करनी चाहिए और उसकी मदद करनी चाहिए, लेकिन मैंने सोचा, “यांग यांग की समस्याएँ हल करने के लिए उसे धर्मोपदेशों का विश्लेषण और प्रासंगिक सिद्धांत खोजने में मदद करनी होगी और इससे धर्मोपदेश छाँटने की मेरी अपनी प्रगति धीमी हो जाएगी। फिर पर्यवेक्षक कहेगी कि मैंने इतने लंबे समय तक अपने कर्तव्य करने के बाद भी नई बहन की तरह अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। चलो छोड़ो, मैं अभी इसके बारे में चिंता नहीं करूँगी।” इसलिए मैंने यांग यांग की कठिनाइयों के बारे में पूछताछ नहीं की। कुछ दिन बाद मैंने पाया कि धर्मोपदेश छाँटने में यांग यांग की प्रगति धीमी थी और हालाँकि मैं संगति करना और उसकी मदद करना चाहती थी, जब मैंने सोचा कि इसमें कितना समय और ऊर्जा लगेगी, तो मैं चुप हो गई। एक दिन पर्यवेक्षक ने कहा कि यांग यांग को ली ना को कुछ काम सौंप देना चाहिए और मैंने देखा कि यांग यांग ने चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं समझाया, इसलिए मैं उसके साथ विवरणों पर चर्चा करना चाहती थी, लेकिन मुझे लगा कि इससे मेरे उपदेशों की समीक्षा करने में देरी होगी और वैसे भी चूँकि पर्यवेक्षक ने यह कार्य विशेष रूप से मुझे नहीं सौंपा था, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे इसके बारे में नहीं पूछना चाहिए और केवल अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बाद में यांग यांग और ली ना, जिनके काम से अच्छे परिणाम नहीं मिल रहे थे, ने सुझाव दिया कि हम साथ मिलकर समाधान पर चर्चा करें, पर मैं इसमें भाग नहीं लेना चाहती थी क्योंकि मुझे लगा कि इससे देरी होगी, इसलिए मैंने संक्षेप में कुछ विचार साझा किए और फिर जल्दी से अपना ध्यान अपने काम पर लगा दिया।

बाद में, पर्यवेक्षक काम की जाँच करने के लिए आई और उसने देखा कि ली ना और यांग यांग को मुश्किलें पेश आ रही थीं और उनके कर्तव्यों के नतीजों में गिरावट आई थी, जब उसे पता चला कि मैं बहनों के काम का न मार्गदर्शन कर रही थी, न जायजा ले रही थी, तो उसने मेरी यह कहते हुए काट-छाँट की, “तुम केवल वही काम करती हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो और तुम उन बहनों के काम की प्रगति की बिल्कुल भी परवाह नहीं करती जिनके साथ तुम सहयोग कर रही हो, तुम एक टीम अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी पूरा नहीं कर रही हो!” इस तरह अचानक काट-छाँट को स्वीकार करना मेरे लिए कठिन था और मैंने सोचा, “उनके कर्तव्यों के नतीजे नहीं मिल रहे हैं, इसमें पूरी गलती मेरी नहीं है, हमने काम को विभाजित कर दिया है!” मुझे लगा मेरे साथ गलत हुआ है। पर्यवेक्षक ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और तब मैंने अपनी समस्याओं को पहचानना शुरू किया। परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधियों में कोई जमीर, विवेक या मानवता नहीं होती। वे न केवल शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि उनकी एक और खासियत भी होती है : वे असाधारण रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। उनके ‘स्वार्थ और नीचता’ का शाब्दिक अर्थ समझना कठिन नहीं है : उन्हें अपने हित के अलावा कुछ नहीं सूझता। अपने हितों से संबंधित किसी भी चीज पर उनका पूरा ध्यान रहता है, वे उसके लिए कष्ट उठाएँगे, कीमत चुकाएँगे, उसमें खुद को तल्लीन और समर्पित कर देंगे। जिन चीजों का उनके अपने हितों से कोई लेना-देना नहीं होता, वे उनकी ओर से आँखें मूँद लेंगे और उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे; दूसरे लोग जो चाहें सो कर सकते हैं—मसीह-विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि कोई विघ्न-बाधा पैदा तो नहीं कर रहा, उन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं होता। युक्तिपूर्वक कहें तो वे अपने काम से काम रखते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही है कि इस तरह का व्यक्ति नीच, अधम और दयनीय होता है; हम उन्हें ‘स्वार्थी और नीच’ के रूप में परिभाषित करते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को जिससे लाभ होता है, वे उसके लिए जो भी जरूरी होता है उसे करने या बोलने के प्रयास करते हैं और वे स्वेच्छा से हर पीड़ा सहन करते हैं। लेकिन जहाँ बात परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कार्य से संबंधित होती है, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन के विकास को लाभ पहुंचाने वाले कार्यों से संबंधित होती है, वे पूरी तरह इसे अनदेखा करते हैं। यहाँ तक कि जब बुरे लोग विघ्न-बाधा डाल रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और इसके फलस्वरूप कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं, तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई किसी बुरे व्यक्ति के बुरे कर्मों के बारे में जान जाता है और इसकी रिपोर्ट कर देता है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी रिपोर्ट करता है और यह उजागर करता है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत का अनुसरण करते हैं, तो वे आगबबूला हो जाते हैं। यह तय करने के लिए आनन-फानन में बैठकें बुलाई जाती हैं कि क्या उत्तर दिया जाए, यह पता लगाने के लिए जाँच की जाती है कि किसने गुपचुप यह काम किया, सरगना कौन था और कौन शामिल था। जब तक वे इसकी तह तक नहीं पहुँच जाते और मामला शांत नहीं हो जाता, तब तक उनका खाना-पीना हराम रहता है—उन्हें केवल तभी खुशी मिलती है जब वे अपनी रिपोर्ट करने वाले सभी लोगों को धराशायी कर देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? क्या वे कलीसिया का काम कर रहे हैं? वे अपने सामर्थ्य और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं, और कुछ नहीं। वे अपना कारोबार चला रहे हैं। मसीह-विरोधी व्यक्ति चाहे जो भी कार्य करे, वह कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करता। वह केवल इस बात पर विचार करता है कि कहीं उसके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वह केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचता है, जिससे उसे फायदा होता है। उसकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वह अपने खाली समय में करता है। वह उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। वह केवल तभी हरकत में आता है जब उसे काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करता है जो वह करना पसंद करता है, और केवल वही काम करता है जो उसकी हैसियत और सत्ता बनाए रखने के लिए होता है। उसकी नजर में, परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन-प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपरवाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपरवाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है, तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं, और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? इसके अलावा, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल यही सोचते हैं कि क्या इससे वे सुर्खियों में आ पाएँगे; अगर उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, तो वे यह जानने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हैं कि उस काम को कैसे करना है, कैसे अंजाम देना है; उन्हें केवल एक ही फिक्र रहती है कि क्या इससे वे औरों से अलग नजर आएँगे। वे चाहे कुछ भी करें या सोचें, वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत से सरोकार रखते हैं। वे चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल इसी स्पर्धा में लगे रहते हैं कि कौन बड़ा है या कौन छोटा, कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है, किसकी ज्यादा प्रतिष्ठा है। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कितने लोग उनकी आराधना और सम्मान करते हैं, कितने लोग उनका आज्ञा पालन करते हैं और कितने लोग उनके अनुयायी हैं। वे कभी सत्य पर संगति या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते। वे कभी विचार नहीं करते कि अपना काम करते समय सिद्धांत के अनुसार चीजें कैसे करें, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे निष्ठावान रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी हैं, क्या उनके काम में कोई विचलन या चूक हुई है या अगर कोई समस्या मौजूद है, तो वे यह तो बिल्कुल नहीं सोचते कि परमेश्वर क्या चाहता है और परमेश्वर के इरादे क्या हैं। वे इन सब चीजों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के लिए, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और जरूरतें पूरी करने का प्रयास करने के लिए कार्य करते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। जब मैंने “स्वार्थी”, “नीच” और “दयनीय” शब्द सुने, तो मुझे लगा जैसे मेरा दिल छलनी हो गया हो और केवल तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा व्यवहार बिल्कुल मसीह-विरोधी जैसा था। मसीह-विरोधी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे से जुड़ी चीजों के लिए बहुत प्रयास करने, कष्ट सहने और कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं, लेकिन जब उनके हितों से जुड़ी चीजों की बात न हो, भले ही इससे कलीसिया के काम को नुकसान हो, वे इसे अनदेखा कर देते हैं और आँखें मूंद लेते हैं। वे सचमुच स्वार्थी और नीच हैं। मुझे याद है कि शुरू में मैं ली ना और यांग यांग के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने में सक्षम थी और जब भी उन्हें कोई समस्या या कठिनाई आती थी, तो मैं उनकी मदद करने और उन्हें हल करने की पूरी कोशिश करती थी। लेकिन जब पर्यवेक्षक वांग नान को लेकर आई, तो मुझे डर लगा कि अगर मैं वांग नान से पीछे रह गई, तो पर्यवेक्षक कहेगी कि मैं उसके जितनी सक्षम नहीं हूँ या मैं असली कार्य नहीं कर रही हूँ। इसलिए मैंने अपनी साथी बहनों की परवाह करना बंद कर दिया। जब मैंने यांग यांग को काम में मुश्किलों का सामना करते देखा, तो मैंने यह सोचकर उसकी मदद करने की जहमत नहीं उठाई कि इससे मेरा समय बरबाद होगा और मैंने सिर्फ अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया। पर्यवेक्षक ने यांग यांग से कुछ काम ली ना को सौंपने के लिए कहा और हालाँकि मैंने देखा था कि उनके बीच ठीक से संवाद नहीं हुआ था और मुझे पता था कि इससे काम में देरी होगी, मुझे डर था कि उनके साथ इस बारे में विस्तार से बातचीत करने से मेरा समय बरबाद होगा, इसलिए मैंने आँख मूँद ली और इसमें शामिल न होने का फैसला किया। मैंने अपने निजी हित बचाने के बहाने भी ढूँढ़े, यह सोचा कि चूँकि पर्यवेक्षक ने यह काम मुझे नहीं सौंपा है, तो यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। बाद में ली ना का काम अप्रभावी हो गया और वह मुश्किल में जी रही थी, लेकिन मैंने जान-बूझकर उसके साथ संगति करने और उसकी मदद करने से परहेज किया। चूँकि मैं बहुत स्वार्थी थी, मैंने अपनी साथी बहनों की मदद नहीं की और समग्र काम पर विचार नहीं किया, जिससे प्रगति में देरी हुई। हालाँकि मैं काम पर समय और ऊर्जा खर्च कर रही थी, वास्तव में मैं जो कुछ भी कर रही थी वह अपने गौरव और रुतबे को नुकसान पहुँचने से रोकने के लिए था। एक टीम अगुआ के रूप में मुझे प्रत्येक टीम सदस्य की कार्य प्रगति की निगरानी और उसका जायजा लेना चाहिए था और यदि किसी को अपने कर्तव्यों में कठिनाइयाँ या समस्याएँ आ रही थीं, तो मुझे इसे तुरंत सामने लाना चाहिए था और सत्य सिद्धांतों के आधार पर उनके साथ समाधान ढूँढ़ना चाहिए था। लेकिन इसके बजाय मैंने केवल अपने काम की परवाह की और मुझे बस इसकी चिंता थी कि कहीं मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे को नुकसान तो नहीं पहुँचेगा। मैंने समग्र कार्य पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया और मैं एक टीम अगुआ की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में विफल रही। मैंने देखा कि मैं वास्तव में नीच और दयनीय थी और मैं एक मसीह-विरोधी के समान स्वभाव प्रकट कर रही थी! इसे पहचान कर मुझे लगा कि मेरी काट-छाँट करने वाली पर्यवेक्षक सही थी और मेरे साथ गलत हुआ है, ऐसा लगने का कोई आधार नहीं था, और इसलिए मैंने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया कि मैंने काम को जो नुकसान पहुँचाया है, उसकी भरपाई कैसे करूँ।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, कि वे कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते, कभी किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी अन्य लोगों की संपत्ति की लालसा नहीं की। जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे दूसरों का फायदा उठाने के बजाय नुकसान तक उठाना पसंद करते हैं, और बाकी सभी सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड्यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे बुरे लोगों को बुरे कर्म करते हुए देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह किस प्रकार की मानवता है? यह अच्छी मानवता नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वे किसके अनुसार जीते हैं, क्या प्रकट करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय उनका रवैया कैसा होता है, साथ ही उनकी अंदरूनी दशा कैसी है और उन्हें किससे प्रेम है। अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के घर के हितों से बढ़कर है, या अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वे परमेश्वर के प्रति दर्शाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों में मानवता है? वे मानवता वाले लोग नहीं हैं। उनका व्यवहार दूसरों के द्वारा और परमेश्वर द्वारा देखा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए सत्य को हासिल करना बहुत कठिन होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। अतीत में मैं हमेशा सोचा करती थी कि मेरे पास अच्छी मानवता है कि मैं अपने भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम करने और समग्र कार्य पर विचार करने में समर्थ हूँ और मैं अपने भाई-बहनों की मदद करने में भी सक्षम हूँ। लेकिन तथ्यों के खुलासे के साथ मुझे एहसास हुआ कि मैं अच्छी मानवता वाली इंसान नहीं थी। मुझे लगा कि वांग नान के आने से मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे को खतरा है, और पर्यवेक्षक यह न कह सके कि मैं वांग नान जितनी अच्छी नहीं हूँ, मैंने अपना सारा ध्यान अपने काम को अच्छी तरह से करने पर लगा दिया। जब मैंने देखा कि यांग यांग और ली ना को अपने काम में कठिनाइयाँ आ रही हैं और उन्हें मदद चाहिए, तो मैंने उनकी उपेक्षा की। मैंने सोचा कि उनकी मदद करने से मेरे काम की प्रगति प्रभावित होगी, इसलिए मैंने उन्हें बस अनदेखा कर दिया और खुद को इससे अलग रखा। नतीजतन, काम में नुकसान हुए। तभी मुझे एहसास हुआ कि पहले मैं अपनी बहनों की मदद करने और समग्र कार्य पर विचार करने में सक्षम थी क्योंकि यह मेरी प्रतिष्ठा और रुतबा से जुड़ा नहीं था। लेकिन अब जब मेरा अभिमान और रुतबा दाँव पर लगे थे, तो मेरा असली चेहरा उजागर हो गया था और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के लिए मैंने कलीसिया के हितों की उपेक्षा कर दी। मेरे पास किस तरह से अच्छी मानवता थी! वास्तव में अच्छी मानवता वाले व्यक्ति में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा होती है और जब परमेश्वर के घर के हित निजी हितों से टकराते हैं, तो वे परमेश्वर के इरादों पर विचार कर सकते हैं और परमेश्वर के घर के हितों को पहले रख सकते हैं। लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, जब मैंने कलीसिया के काम को नुकसान होते देखा, तो मैं अपनी बहनों की मदद करने के लिए अपने निजी हितों को अलग रखने के लिए तैयार नहीं थी। किस तरह से मेरे पास कोई मानवता थी! यह महसूस करके मुझे वास्तव में अपराध-बोध महसूस हुआ और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे एहसास है कि मैं सचमुच स्वार्थी हूँ और मैं बदलने और अपनी बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने के लिए तैयार हूँ। चाहे किसी को भी अपने कर्तव्यों में समस्याओं का सामना करना पड़े, मैं समस्याएँ हल करने के लिए उनके साथ सत्य की खोज करने को तैयार हूँ।” आगे बढ़कर मैंने सक्रिय रूप से ली ना और यांग यांग से पूछा कि उन्हें अपने काम में क्या समस्याएँ आ रही हैं और अगर वे मुद्दे उठाते, तो हम संगति करते और साथ मिलकर समाधान तलाशते। इसके बाद चाहे काम में कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, मैं हमेशा अपनी बहनों के साथ काम की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए समय निकालती थी और साथ मिलकर हम इन मुद्दों को हल करने के लिए संगति करते थे। समग्र कार्य को धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में बढ़ता देखकर हम सभी को बहुत खुशी हुई।

कुछ समय बाद अगुआ ने मेरे और बहन यांग जेन के पाठ-आधारित कर्तव्यों पर सहयोग करने की व्यवस्था की। हम आम तौर पर एक साथ काम पर चर्चा करते थे, लेकिन बाद में काम में बदलाव के कारण हमने जिम्मेदारियाँ बाँट ली थीं। कभी-कभी यांग जेन को भाई-बहनों के साथ सामग्रियाँ सत्यापित करने की जरूरत होती थी। इस दौरान अगुआ उसके काम के बारे में पूछताछ करने के लिए पत्र भेजते थे और भाई-बहन भी उससे सवाल पूछने के लिए पत्र भेजते थे। इन सभी को तुरंत जवाब देने होते थे। पहले तो मैं इनमें से कुछ कार्यों में मदद करने में सक्षम थी, लेकिन कुछ समय बाद मैंने सोचा, “यह यांग जेन की जिम्मेदारी है, अगर मैं उसकी मदद करती रही, तो मेरा समय बरबाद होगा और अगर मैं जिस काम के लिए जिम्मेदार हूँ, उसके नतीजे यांग जेन के नतीजे जितने अच्छे नहीं हुए, तो अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? मैं फिर से अपना चेहरा कैसे दिखा पाऊँगी?” लेकिन फिर मुझे याद आया कि कैसे मैंने सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया था और अपनी बहनों के काम को नजरअंदाज कर दिया था, जिससे कलीसिया का काम प्रभावित हुआ था और मुझे पता था कि इस बार मैं फिर से ऐसा नहीं कर सकती। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास का मार्ग दिया। चाहे वह कार्य हो जिसके लिए यांग जेन जिम्मेदार थी या वह जिसके लिए मैं जिम्मेदार थी, यह सब कलीसिया का कार्य था और मुझे अपने अभिमान और रुतबे के बारे में नहीं सोचना चाहिए। यदि यांग जेन के कार्य में देरी होती, तो कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचता। मुझे कलीसिया के समग्र कार्य की रक्षा करनी थी। इसके बाद जब यांग जेन बहुत व्यस्त होती, तो मैं उसके कुछ कार्यों में उसकी मदद करती, साथ ही मैं कार्यों में प्राथमिकता देखती और जरूरत के अनुसार काम करती थी। इस तरह से अभ्यास करने से मुझे सहज महसूस हुआ।

अतीत में मुझे हमेशा लगता था कि मेरे पास अच्छी मानवता है, कि मैं अपने कर्तव्यों में कष्ट सह सकती हूँ और कीमत चुका सकती हूँ और मैं अपने भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग भी कर सकती हूँ। लेकिन यह सब करने के बाद मैंने देखा कि मैं वास्तव में स्वार्थी थी और मेरे सभी कष्ट और बलिदान अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के लिए थे। मैं परमेश्वर को उसके वचनों के न्याय और प्रकाशन के लिए धन्यवाद देती हूँ, जिसने मुझे खुद को जानने और कुछ बदलाव करने की अनुमति दी।

पिछला: 64. समझने का दिखावा करने के परिणाम

अगला: 67. दौलत, शोहरत और लाभ के पीछे भागने से क्या मिलता है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

26. अपने हृदय का द्वार खोलना और प्रभु की वापसी का स्वागत करना

योंगयुआन, अमेरिका1982 के नवंबर में, हमारा पूरा परिवार संयुक्त राज्य अमेरिका जाकर बस गया। मेरे दादा की पीढ़ी से ही हम सभी को परमेश्वर पर...

38. परमेश्वर मेरे साथ है

गुओज़ी, संयुक्त राज्य अमेरिकामेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था, और जब मैं एक वर्ष की थी, तो मेरी माँ ने लौटे हुए प्रभु यीशु—सर्वशक्तिमान...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

कृपया खोज-बॉक्स में खोज का शब्द दर्ज करें।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें
विषय-वस्तु
सेटिंग
किताबें
खोज
वीडियो