93. धन की दासी को आई जागृति
जब मैं छोटी थी, मेरा परिवार दूरदराज के एक पर्वतीय इलाके में रहता था। मेरे माता-पिता जीवन यापन के लिए खेतीबाड़ी पर निर्भर थे और जीवन काफी मुश्किल था। मेैंने बाहर काम करके लौटने वाले लोगों से सुना था कि शहर में कमाई के बहुत सारे मौके हैं और वहां जीवन काफी बेहतर है। इसलिए मैं किसी बड़े शहर में जीवन जीना चाहती थी और चाहती थी कि किसी दिन पहाड़ों को छोड़ दूँ और बड़े शहर में बस जाऊँ ताकि पैसे कमा सकूँ और अपने परिवार का रहन-सहन सुधार सकूँ और अपने गांव के लोगों में ईर्ष्या पैदा कर सकूँ। मैंने मेहनत से पढ़ाई की और हमेशा अच्छे अंक हासिल किए, लेकिन जब मैं मिडिल स्कूल के प्रथम वर्ष में पहुंची, मेरा परिवार मेरी पढ़ाई की फीस भर नहीं पा रहा था, इसलिए मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। लेकिन पहाड़ों से बाहर निकलने की मेरी चाहत नहीं बदली, अब भी मुझे उम्मीद थी कि मैं शहर में खूब पैसे कमाऊँगी ताकि एक बेहतर जीवन जी सकूँ और सबको ईर्ष्या से भर सकूँ।
2007 में किसी ने मुझे शहर में रहने वाले एक विवाहयोग्य व्यक्ति से मिलाया। मुझे लगा कि उससे शादी करके मेरा जीवन बेहतर हो जाएगा, लेकिन उससे शादी करने के बाद मुझे पता चला कि उसका परिवार इलाके का सबसे गरीब परिवार था। मेरे पति और ससुरालवाले अशिक्षित थे और जीवन यापन के लिए कड़ी मेहनत-मजदूरी पर ही निर्भर रह सकते थे। उन्होंने खुद से घर बनाया था और उसमें पक्की छत तक नहीं थी। दीवारें और फर्श सीमेंट से बने थे और जब तेज बारिश होती थी तब घर में पानी टपकता था। मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात से होता था कि हमारे खराब रहन-सहन के कारण कुछ पड़ोसी हमसे बात तक नहीं करते थे, इससे मुझे अपने मूर्खतापूर्ण फैसले पर अफसोस होता था। लेकिन जब मैंने सोचा कि मेरी शादी एक बड़े शहर में हो ही चुकी है, जहाँ गाँव की तुलना में कमाई के बहुत सारे मौके हैं तो मुझे लगा कि अगर मैं और मेरे पति खूब मेहनत करेंगे तो हमारा जीवन निश्चित तौर पर बेहतर होने लगेगा, और जब हम पैसे कमाने लगेंगे, हमारे पड़ोसी हमसे ईर्ष्या करेंगे।
एक साल बाद मेरे पति की एक हार्डवेयर फैक्ट्री में कड़ी मेहनत-मजदूरी वाली एक नौकरी लग गई और अपनेे बेटे के जन्म के कुछ ही समय बाद मुझे भी हाथ से बुनाई करने की एक नौकरी मिल गई। ज्यादा पैसे कमाने के लिए मैं अक्सर तड़के दो-तीन बजे तक काम किया करती थी और समय बीतने के साथ मुझे बहुत थकान रहने लगी। कई बार मेरे हाथों में इतना दर्द होता था कि मैं उन्हें उठा भी नहीं पाती थी और मेरी दोनों कलाइयां सूज जाती थीं। लेकिन जब मैं यह सोचती कि थोड़ा और काम करने से मैं कुछ और पैसे कमा लूंगी, मुझे लगता था कि ये मुश्किलें झेली जा सकती हैं। खासकर तब जब मैं अपनी गाढ़ी कमाई से खाने का सामान और जीवन स्तर सुधारने की जरूरी चीजें खरीदती थी तो मुझे लगता था कि ये मुश्किलें झेली जा सकती हैं। इसलिए मैं और भी आश्वस्त हो गई कि अगर हम पति-पत्नी ने किसी तरह मुश्किलें सह लीं तो हमारा जीवन यकीनन दूसरों से कमतर नहीं रहेगा।
एक दिन मेरे पति की चाची मेरे पास सुसमाचार का प्रचार करने आई और बोली, “उद्धारकर्ता आ चुका है और वो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है जो अंत के दिनों में लोगों को बचाने का कार्य कर रहा है। लोग परमेश्वर से उद्धार स्वीकार कर और पाप से मुक्ति पाकर ही उसकी सुरक्षा हासिल कर सकते हैं और महाआपदा से बच सकते हैं। ...” मैं मन ही मन परमेश्वर में विश्वास रखती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैं अब भी एक ऐसे घर में रह रही हूँ जिसकी छत से पानी टपकता है, मेरा बच्चा बहुत छोटा है और मुझे तमाम तरह की चीजों के लिए पैसों की जरूरत है। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ तो इससे मेरी कमाई में रुकावट आएगी। मैंं ऐसा नहीं होने दे सकती। मेरे लिए इस समय सबसे जरूरी चीज पैसे कमाना है और जहाँ तक परमेश्वर में विश्वास रखने की बात है तो जब तक मेरे रहन-सहन के हालात सुधर नहीं जाते, तब तक इससे दूर ही रहना होगा।” इसलिए मैंने अस्वीकार कर दिया।
उस समय मेरे बच्चे ने चलना शुरू ही किया था और मैंंने लोगों से सुना कि फूड फैक्ट्री में काम का बोझ ज्यादा है लेकिन वेतन मेरी मौजूदा कमाई से तीन-चार गुना ज्यादा है। मैं यह सोचकर लालच में आ गई “अगर मैं कष्ट या थकान से न डरूँ तो फूड फैक्ट्री में ज्यादा पैसे कमा सकती हूँ। क्या इससे एक बेहतर जिंदगी नहीं मिलेगी?” इसलिए मैंंने अपने बच्चे की देखभाल का जिम्मा अपनी सास को सौंपा और फूड फैैक्ट्री में काम करने लगी। उस दौरान मेरा पति कभी-कभी कहता था कि उसकी पीठ बहुत दुखती है लेकिन मैं इसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेती थी और मन ही मन सोचती थी, “कड़ी मेहनत नहीं करोगे तो तुम ज्यादा पैसा कैसे कमाओगे? क्या मैं अक्सर तड़के दो-तीन बजे तक काम नहीं करती रहती हूँ? इसी तरह जुटे रहकर हम ज्यादा पैसे कमा पाएँगे।” इसलिए मैं और मेरा पति मिलकर पैसा कमाने के लिए दृढ़ रहे और जुटे रहे। इसके कुछ ही समय बाद मुझे एक हार्डवेयर फैक्ट्री में ग्राइंडर मशीन पर काम करने की नौकरी मिल गई। मैं हर दिन औजारों को पॉलिश करती थी और इसके लिए मुझे जंगरोधक रसायनों भरे पानी में हाथ डालना पड़ता था। चूँकि मैं कई औजारों के लिए दस्ताने नहीं पहन सकती थी, मुझे पूरे-पूरे दिन इस पानी में हाथ भिगोना पड़ता था। इस नौकरी की वजह से मेरे एक सहकर्मी के गुर्दे खराब हो गए, तब भी मैंने वहां आठ-नौ साल काम किया। मैंनेे और मेरे पति ने कड़ी मेहनत की और कुछ पैसे कमाए और जो खाना और कपड़े हम खरीद पाते थे इससे हमारा जीवन पहले से काफी बेहतर हुआ और हमने एक घर की डाउन पेमेंट के लिए पैसे भी बचाए। हमारे पड़ोसी जो हमारी गरीबी की वजह से हमसे बात नहीं करते थे हमसे मेलजोल बढ़ाने लगे, वे आते-जाते समय मुस्कुराहट के साथ हमसे मिलने लगे और ईर्ष्या से भरकर हमारे बारे में बात करने लगे और कहने लगे कि हम एक दंपति के तौर पर कड़ी मेहनत करते हैं और अपनी कोशिशों की वजह से हम बेहतर जीवन जीने लगे हैं। मुझे एक तरह से यह सब सुुनकर गर्व होता था और लगता था कि मेरी सालों की कड़ी मेहनत का आखिरकार फल मिलने लगा है और मुझे इससे ज्यादा खुशी नहीं हो सकती थी। लेकिन एक सुबह जब मैं और मेरा पति काम पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे तो वह अचानक बिस्तर पर दर्द से चिल्लाया और घबराकर बोला कि मुझे अस्पताल ले चलो। डॉक्टर ने उसकी जाँच की और बताया कि रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में कई मनके खिसक गए हैं। डॉक्टर ने सर्जरी की सलाह दी, वरना पति को लकवा होने का खतरा था। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन में एक लाख युआन से ज्यादा का खर्च आएगा। मैं स्तब्ध थी, “एक लाख युआन से ज्यादा? मैंने और मेरे पति ने इतने साल कड़ी मेहनत करके इतने ही तो पैसे कमाए हैं लेकिन ये सब एक बीमारी की वजह से हाथ से चले जाएँगे। क्या इतने वर्षों का कष्ट व्यर्थ में नहीं चला जाएगा? लेकिन अगर उसका इलाज न कराया और उसे लकवा मार गया तो मेरे साथ इस परिवार के लिए कौन लड़ेगा? क्या हमारा जीवन और भी कठिन नहीं हो जाएगा?” मेरा पति भी उतना ही परेशान दिख रहा था और वह अपनी गाढ़ी कमाई को यूँ ही गायब होते नहीं देख सकता था, इसलिए उसने घर जाने और आराम करने का फैसला किया। उस समय मैं घर में अकेली कमाऊ थी, इसलिए मैंनेे और भी ज्यादा मेहनत की और जब मेरी तबीयत खराब होती थी तब भी मैं मजबूती और दृढ़ता से काम करती।
करीब तीन महीने बाद एक दिन जब मैं काम पर जाने के लिए तैयार हो रही थी, तो मेरी गर्दन में एकाएक तेज दर्द हुआ, इतना तेज कि मैं अपना सिर तक नहीं उठा पाई, मुझे सब कुछ धुँधला दिख रहा था और लगा कि मैं अपने हलक से खाना नीचे नहीं उतार पाऊँगी। मेरे पति ने मुझसे तुरंत अस्पताल जाने को कहा। डॉक्टर ने बताया कि मेरी रीढ़ के गर्दन और कमर वाले हिस्सों में तीन गंभीर हर्निया हैं और कमर का हर्निया मेरे बाएँ पैर की नसों को दबाना शुरू कर चुका है। सर्जरी पर दो लाख युआन से ज्यादा का खर्च आएगा और तब भी शायद मेरी बीमारी पूरी तरह ठीक न हो सके। लेकिन इलाज न कराने पर मुझे लकवा मार सकता है। यह सुनकर मुझे लगा कि मैं गिर पड़ूँगी और मैंने मन ही मन सोचा, “मेरा पति अभी भी बीमार हैं और अब मैं भी लकवाग्रस्त हो सकती हूँ। मैंने और मेेरे पति ने इतनी मेहनत से जो पैसे कमाए हैं वह भी हम दोनों के इलाज कराने के लिए काफी नहीं हैं। इन सालों में हमने पैसे कमाने के लिए इतनी मेहनत की लेकिन आखिरकार हमें कोई सुख नहीं मिला और हम दोनों ही बीमारियों का शिकार हो गए हैं। क्या हमने ये पैसे कमाने के लिए फिजूल ही मेहनत की? और इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर हम पैसे खर्च करते भी हैं तो कोई गारंटी नहीं कि मेरी बीमारी ठीक हो जाएगी और जब समय आएगा, पैसे चले जाएंगे और मेरा जीवन भी नहीं बचेगा। क्या इसी के लिए मैं अपना पूरा जीवन जी रही थी?” मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था और मैं अपने दिन उदासी में बिताने लगी। बाद में एक रिश्तेदार की मदद से मुझे और मेरे पति को कम मेेहनत वाली नौकरियां मिल गईं। हमें अपने घर को गिराए जाने की वजह से कुछ पैसे भी मिले और ऐसा लगने लगा कि हमारा जीवन सुधरने लगा है। लेकिन शरीर में अक्सर दर्द के कारण मुझे अनहोनी का डर सताता रहता था और मैं सोचती थी, “कहीं मुझे अचानक लकवा तो नहीं मार जाएगा? अगर मैं असमय मर गई तो क्या होगा?” मैंने इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, मेरा डर उतना ही बढ़ता गया और मुझे अक्सर इस बात का अफसोस होता कि इन सालों में मैंने कितनी बेवकूफी की, बस पैसे कमाने के लिए मैंने अपने शरीर का ध्यान नहीं रखा और अब भले ही मेरे पास थोड़े-से पैसे हैं, लेकिन कितना भी पैसा हो, यह मेरी बीमारी को ठीक नहीं कर सकता। मैं परेशान थी, “मैं आखिर इस तरह कैसे जीऊँगी?”
मैं पीड़ा और उलझन में थी तो चाची ने एक बार फिर मुझे सुसमाचार सुनाया। उन्होंने मुझे यह भजन सुनाया “मनुष्य की नियति परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होती है।” मैंने भजन के बोल सुने : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंजिल पर ले जाना)। यह गीत तुरंत मेरे दिल को छू गया। इन सभी वर्षों में मैंने पैसे कमाने के लिए इतना अथक कार्य किया और बहुत सारा कष्ट सहा, सिर्फ इसलिए कि ऐसा जीवन जिऊँ जिससे दूसरे ईर्ष्या करें, लेकिन अंत में मैं और मेरा पति दोनों ही बीमार हो गए और लकवे का सामना कर रहे थे। अगर हमारी मौत हो गई तो जो पैसे हमने कमाए हैं वह किस काम के होंगे? जब मैंने इसके बारे में सोचा, मुझे समझ में आ गया कि किसी इंसान की नियति वाकई उसके अपने हाथों में नहीं है। अगले कुछ दिन मेरी चाची मेरे साथ परमेश्वर के वचन खाने और पीने के लिए आई और उसने मेरे साथ मानवजाति की उत्पत्ति, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों के रहस्यों और मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के इरादे के बारे में संगति की। मैंने देखा कि परमेश्वर इतने अधिक सत्य व्यक्त कर चुका है, परमेश्वर के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है और मुझेे यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर सच्चा परमेश्वर है और मानवजाति को बचा सकता है। मैंने अपने पति को भी सुसमाचार सुनाया और हम दोनों ने एक साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार कर लिया।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारने के बाद मैंने परमेश्वर के वचन के बहुत से अंश पढ़े। एक दिन मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “जब लोग नहीं जानते कि भाग्य क्या है या परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझते तो वे अपनी ही इच्छा के आधार पर धुँध में हाथ-पैर मारते हुए और लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ते हैं और यह यात्रा बहुत ही कठिन, बहुत ही हृदयविदारक होती है। इसलिए जब लोग यह एहसास कर लेते हैं कि मनुष्य के भाग्य के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता है तो चतुर मनुष्य भाग्य के विरुद्ध संघर्ष करते रहने और अपने ही तरीके से अपने तथाकथित जीवन लक्ष्यों का अनुसरण करने के बजाय परमेश्वर की संप्रभुता को जानने और स्वीकारने का विकल्प चुनते हैं, और उन दर्द भरे दिनों को अलविदा कह देते हैं जब उन्होंने ‘अपने ही दो हाथों से एक अच्छा जीवन निर्मित करने की कोशिश की थी’। जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के बिना होता है, जब वह उसे नहीं देख सकता है, जब वह स्पष्टता से परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं जान पाता है, तो उसका हर दिन निरर्थक, बेकार और अत्यंत पीड़ादायक होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति कहाँ है और उसका क्या काम है, उसके जीवित रहने के साधन और वे लक्ष्य जिनका वह अनुसरण करता है उसके लिए अंतहीन निराशा और पीड़ा के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आते हैं, इनसे उबरना बहुत कठिन होता है, इस कदर कि वह पीछे अपने अतीत को मुड़कर देखना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। सृष्टिकर्ता की संप्रभुता को स्वीकार कर, उसके आयोजनों और उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर और एक सच्चा मानव जीवन हासिल करने का अनुसरण करके ही कोई व्यक्ति धीरे-धीरे सारी निराशा और पीड़ा से मुक्त हो सकता है और धीरे-धीरे मानव जीवन के सारे खालीपन से खुद को छुटकारा दिला सकता है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि अगर लोग परमेश्वर के सम्मुख नहीं आते तो वे शैतान की चालबाजी के अधीन ही जी सकते हैं और धन, शोहरत और लाभ का अनुसरण करते हैं। केवल परमेश्वर के सम्मुख आकर, उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर और परमेश्वर ने हमें जो मार्ग दिखाया है उसी के अनुसार अनुसरण कर हमें परमेश्वर की सुरक्षा मिल सकती है और हम शैतान के नुकसान से बच सकते हैं। इसके बारे में सोचती हूँ तो मैं एक ऐसी इंसान थी जिसने शैतान के हाथों काफी कष्ट सहा है। मैंने पहले परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं पहचाना था और हमेशा अपने आप पर भरोसा करके मैं पहाड़ों से निकलकर एक बड़े शहर में एक अच्छा जीवन जीना चाहती था, जिससे दूसरे लोग ईर्ष्या करें। लेकिन मेरे पति की पारिवारिक पृष्ठभूमि मेरी इच्छाओं को पूरी नहीं कर सकी, इसलिए मैं चाहती थी कि पैसे कमाने और अपनी दीन-हीन नियति को बदलने के लिए कार्य पर निर्भर रहूँ, अपने हाथों का इस्तेमाल करूँ ताकि एक बेहतर जीवन बना सकूँ और ऐसी धनी इंसान बनूँ जिससे दूसरों को ईर्ष्या हो। मैंने पैसा कमाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की और भले ही काम की वजह से मेरे शरीर को गंभीर क्षति हुई, लेकिन इससेे मेरा धन का अनुसरण नहीं रुका। अंत में खूब पैसे कमाना तो दूर रहा, मैं बेहद थक गई और बीमार पड़ गई और मुझे लकवा मारने का खतरा भी पैदा हो गया। इन दर्दनाक यादों ने मुझे सच में महसूस करा दिया कि लोग खुद अपनी नियति को बिल्कुल भी नियंत्रित नहीं कर सकते। मैं अपनी नियति को बदलने के लिए हमेशा खुद पर निर्भर रहना चाहती थी लेकिन अंत में मैं शैतान के छल-कपट का शिकार हो गई।
बाद में मैंने खुद से पूछा, “मैं क्यों अतीत में पैसों के लिए कष्ट सहने और कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार थी लेकिन परमेश्वर में विश्वास करने और उसके सम्मुख आने को तैयार नहीं थी?” मैंने और मेरे पति ने एक साथ परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “‘दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है’ यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है। यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है; तुम कह सकते हो, यह एक रुझान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है, जिन्होंने पहले तो इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किंतु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो इसे मूक सहमति दे दी, और महसूस करना शुरू किया कि ये वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? शायद लोग इस कहावत को समान रूप से नहीं समझते, बल्कि हर एक आदमी अपने आसपास घटित घटनाओं और अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस कहावत की अलग-अलग रूप में व्याख्या करता है और इसे अलग-अलग मात्रा में स्वीकार करता है। क्या ऐसा नहीं है? चाहे इस कहावत के संबंध में किसी के पास कितना भी अनुभव हो, इसका किसी के हृदय पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है? तुम लोगों में से प्रत्येक को शामिल करते हुए, दुनिया के लोगों के स्वभाव के माध्यम से कोई चीज प्रकट होती है। यह क्या है? यह पैसे की उपासना है। क्या इसे किसी के हृदय में से निकालना कठिन है? यह बहुत कठिन है! ऐसा प्रतीत होता है कि शैतान का मनुष्य को भ्रष्ट करना सचमुच गहन है! शैतान लोगों को प्रलोभन देने के लिए धन का उपयोग करता है, और उन्हें भ्रष्ट करके उनसे धन की आराधना करवाता है और भौतिक चीजों की पूजा करवाता है। और लोगों में धन की इस आराधना की अभिव्यक्ति कैसे होती है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, जोर से बोलते हैं और अहंकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या सत्य प्राप्त करने और बचाए जाने का अवसर खोना लोगों का सबसे बड़ा नुकसान नहीं है? क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है? जैसे-जैसे तुम इस लोकप्रिय कहावत का विरोध करने से लेकर अंततः इसे सत्य के रूप में स्वीकार करने तक की प्रगति करते हो, तुम्हारा हृदय पूरी तरह से शैतान के चंगुल में फँस जाता है, और इस तरह तुम अनजाने में इस कहावत के अनुसार जीने लगते हो” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि लोग स्वयं को परमेश्वर और सत्य से दूर इसलिए कर लेते हैं क्योंकि वे शैतान के बैठाए हुए विभिन्न गलत दृष्टिकोणों से प्रभावित और विषाक्त हो जाते हैं। धन का अनुसरण करने के लिए लोगों को लुभाने के वास्ते शैतान ऐसी कहावतों का इस्तेमाल करता है “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” और “मनुष्य धन के लिए मरता है, जैसे पक्षी भोजन के लिए मरते हैं,” इससे लोग संघर्ष करने को मजबूर होते हैं और अपना पूरा जीवन पैसे कमाने में लगा देते हैं। ऐसा करके मैं कितना ज्यादा दुख भोग चुकी थी! मुझे लगता था कि केवल पैसे कमाकर ही मैं अपना जीवन सुधार सकती हूँ, ठाठ-बाठ से भरे भौतिक जीवन का आनंद ले सकती हूँ, दूसरों से सम्मान हासिल कर सकती हूँ और दूसरों से ईर्ष्या करा सकती हूँ। मजदूरी का काम करते हुए मैं थोड़े और पैसे कमाने भर के लिए हर दिन तड़के दो-तीन बजे तक जगी रहती थी। फूड फैक्ट्री में काम करने के दिनों में मेरी नींद पूरी नहीं होती थी, फिर भी मैंने और ज्यादा पैसे कमाने के लिए ओवरटाइम करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया। ग्राइंडिंग के काम में इस्तेमाल होने वाले रसायन इंसानी सेहत के लिए अत्यंत हानिकारक थे, लेकिन वेतन अच्छा मिलने के कारण मैं यह काम करने के लिए तैयार थी। इन तमाम वर्षोंं के दौरान मैंने केवल यह सोचा कि ज्यादा से ज्यादा पैसे कैसे कमाऊँ। यहाँ तक कि जब घनघोर मेहनत वाले काम के चलते मुझे और मेरे पति दोनों को स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कतें हो गईं, मैं तब भी आराम करने के लिए काम को टालने को तैयार नहीं थी, मैं लगातार खुद से कहती रहती थी, “अगर मैं एक अच्छा जीवन चाहती हूँ तो मुझे कड़ा संकल्प रखना होगा और सहना होगा।” अंंत में अपनी कड़ी मेहनत के जरिए हमने थोड़े पैसे कमा लिए और अपने पड़ोसियों का सम्मान हासिल किया लेकिन मेैंने और मेरे पति ने अपने शरीर को थका दिया था और दुख की बात थी कि जो पैसे हमने कमाए थे वे हमारे ऑपरेशन तक के लिए काफी नहीं थे। मैं शैतान के जहर “दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है” को जी रही थी और लकवाग्रस्त होने की कगार पर आ बैठी थी। मुझेे इस बात का और भी पछतावा था कि जब मेरी चाची परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार लेकर मेरे पास आई थी तो मैंने पैसे कमाने के लिए इसे अस्वीकार कर किया था। अगर परमेश्वर मुझे सुसमाचार सुनाने के लिए एक बार फिर मेरी चाची का इस्तेमाल न करता तो मैं परमेश्वर का अनुसरण करने, सत्य हासिल करने और बचाए जाने का अवसर लगभग खो चुकी होती। मैं सच में बेवकूफ थी! केवल इसी क्षण मुझे एहसास हुआ कि शैतान मेरे विचारों को नियंत्रित करने और मेरे जीवन पर हावी होने के लिए पैसे का इस्तेमाल कर रहा था और मेरे दिल को परमेश्वर से और दूर कर रहा है। लोगों को गुमराह करने की शैतान की चालबाजी सच में घृणित और दुष्टता से भरी है!
छह महीने बाद मैंने कलीसिया में कर्तव्य निभाने शुरू कर दिए। शुरुआत में मेरा काम अपेक्षाकृत रूप से आसान था और इससे अपनी नौकरी से मेरी कमाई करने पर असर नहीं पड़ा लेकिन बाद में जब मैं एक अगुआ बन गई तो कलीसिया में मेरा कार्यभार बढ़ गया और मेरे पास समय की कमी होने लगी। कई मौकों पर सभाओं के दौरान मेरे बॉस का फोन आने लगा और मुझे चिंता होने लगी कि इस तरह चलता रहा तो इससे मेरी नौकरी और आय पर असर पड़ेगा। आखिरकार यह थकाने वाला काम नहीं था और अगर मेरी नौकरी चली गई तो मैं कोई पैसे नहीं कमा पाऊंगी! लेकिन मुझे पता था कि नौकरी और अपने कर्तव्यों में संतुलन बैठाने की कोशिश करने से कलीसिया के कार्य में देरी होगी। मेरे अंदर उधेड़-बुन चल रही थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरा यह मार्गदर्शन करो कि मैं पैसे के चलते बेबस न होऊँ और अपने कर्तव्य निभाने का मौका न गवाऊँ।”
एक दिन उपदेशक को मेरी दशा समझ में आ गई और उसने परमेश्वर के वचनों का एक अंश मेरे साथ खाया और पिया : “अगर मैं तुम लोगों के सामने कुछ पैसे रखूँ और तुम्हें चुनने की आजादी दूँ—और अगर मैं तुम्हारी पसंद के लिए तुम्हारी निंदा न करूँ—तो तुममें से ज्यादातर लोग पैसे का चुनाव करेंगे और सत्य को छोड़ देंगे। तुममें से जो बेहतर होंगे, वे पैसे को छोड़ देंगे और अनिच्छा से सत्य को चुन लेंगे, जबकि इन दोनों के बीच वाले एक हाथ से पैसे को पकड़ लेंगे और दूसरे हाथ से सत्य को। इस तरह तुम्हारा असली रंग क्या स्वतः प्रकट नहीं हो जाता? सत्य और किसी ऐसी अन्य चीज के बीच, जिसके प्रति तुम वफादार हो, चुनाव करते समय तुम सभी ऐसा ही निर्णय लोगे, और तुम्हारा रवैया ऐसा ही रहेगा। क्या ऐसा नहीं है? क्या तुम लोगों में बहुतेरे ऐसे नहीं हैं, जो सही और ग़लत के बीच में झूलते रहे हैं? सकारात्मक और नकारात्मक, काले और सफेद के बीच प्रतियोगिता में, तुम लोग निश्चित तौर पर अपने उन चुनावों से परिचित हो, जो तुमने परिवार और परमेश्वर, संतान और परमेश्वर, शांति और विघटन, अमीरी और ग़रीबी, हैसियत और मामूलीपन, समर्थन दिए जाने और दरकिनार किए जाने इत्यादि के बीच किए हैं। शांतिपूर्ण परिवार और टूटे हुए परिवार के बीच, तुमने पहले को चुना, और ऐसा तुमने बिना किसी संकोच के किया; धन-संपत्ति और कर्तव्य के बीच, तुमने फिर से पहले को चुना, यहाँ तक कि तुममें किनारे पर वापस लौटने की इच्छा[क] भी नहीं रही; विलासिता और निर्धनता के बीच, तुमने पहले को चुना; अपने बेटों, बेटियों, पत्नियों और पतियों तथा मेरे बीच, तुमने पहले को चुना; और धारणा और सत्य के बीच, तुमने एक बार फिर पहले को चुना। तुम लोगों के दुष्कर्मों को देखते हुए मेरा विश्वास ही तुम पर से उठ गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि तुम्हारा हृदय कोमल बनने का इतना प्रतिरोध करता है। सालों की लगन और प्रयास से मुझे स्पष्टतः केवल तुम्हारे परित्याग और निवृत्ति से अधिक कुछ नहीं मिला, लेकिन तुम लोगों के प्रति मेरी आशाएँ हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती ही जाती हैं, क्योंकि मेरा दिन सबके सामने पूरी तरह से खुला पड़ा रहा है। फिर भी तुम लोग लगातार अँधेरी और बुरी चीजों की तलाश में रहते हो, और उन पर अपनी पकड़ ढीली करने से इनकार करते हो। तो फिर तुम्हारा परिणाम क्या होगा? क्या तुम लोगों ने कभी इस पर सावधानी से विचार किया है? अगर तुम लोगों को फिर से चुनाव करने को कहा जाए, तो तुम्हारा क्या रुख रहेगा? क्या अब भी तुम लोग पहले को ही चुनोगे? क्या अब भी तुम मुझे निराशा और भयंकर कष्ट ही पहुँचाओगे? क्या अब भी तुम्हारे हृदयों में थोड़ा-सा भी सौहार्द होगा? क्या तुम अब भी इस बात से अनभिज्ञ रहोगे कि मेरे हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने देखा कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद जब हमें धन और सत्य के बीच चुनाव करने का मौका दिया जाता है तो हम बेहिचक धन को चुनते हैं और सत्य का अनुसरण करने का अवसर त्याग देते हैं। यूँ तो मैं परमेश्वर के घर में आ चुकी थी और परमेेश्वर के वचनों के सिंचन के जरिए मैं कुछ सत्य समझने लगी थी, लेकिन जब कलीसिया के कार्य और मेरे निजी वित्तीय हितों में टकराव हुआ तो मैं हिचकिचा गई और मैंने धन को सत्य से ज्यादा जरूरी समझा, क्या मैं अभी भी शैतान का अनुसरण नहीं कर रही थी? यह एहसास होने पर मैं जान गई कि यह तो परमेेश्वर मुझे फिर से चुनने का अवसर दे रहा है, यह देखने का अवसर है कि क्या मैं शैतान की राह पर चलूँगी और पैसों का अनुसरण करूँगी या परमेश्वर के मार्ग पर चलूँगी और सत्य का अनुसरण करूँगी। जब मैंने अपने आसपास के भाई-बहनों पर नजर डाली तो मैंने देखा कि कलीसिया में अपने कर्तव्यों में प्रशिक्षण लेते-लेते वे ज्यादा से ज्यादा सत्य समझने लगे हैं और मैंने देखा कि कलीसिया मुझे इन उम्मीदों के साथ एक अगुआ के तौर पर अपने कर्तव्य निभाने के लिए तैयार कर रही थी कि अपना योगदान देने के साथ मैं और अधिक सत्य भी हासिल कर सकूँगी। मैं पैसे कमाने के लिए सत्य हासिल करने का अवसर नहीं खो सकती थी और परमेश्वर के नेक इरादे को निराश नहीं कर सकती थी। साथ ही मैंं हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहती थी कि अगर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और पैसे कमाना बंद कर दिया तो हमारा रहन-सहन दूसरों से भी खराब हो जाएगा। लेकिन वास्तव में, भले ही अब मेरे पास एक घर और थोड़े अतिरिक्त पैसे थे, इनमें से कुछ भी मैंने नहीं कमाया था, बल्कि हमारा घर गिराने जैसी परिस्थितियों के जरिए परमेश्वर ने यह हमेंं प्रदान किया था। मुझे सच में एहसास हो गया कि किसी इंसान के पास कितना धन हो सकता है, यह उसके अपने चाहने से तय नहीं होता है, बल्कि यह परेमश्वर के विधान के अधीन है। मैंने देखा कि चाहे मैं अपने भरोसे रहकर कितनी भी कोशिश कर लूँ, मैं उससे ज्यादा पैसा नहीं कमा सकती हूँ जितनी मेरी नियति में है। लेकिन मुझे फिर भी यह चिंता थी कि अगर मैं पैसे न कमा पाई तो मेरा जीवन तंगहाल रहेगा और दूसरे लोग मेरा आदर नहीं करेंगे, इसलिए मैं पैसों और अपने कर्तव्यों के बीच झूल रही थी। क्या मैं उसी दशा में नहीं थी जब मैंने पैसों की खातिर अंत के दिनों का परमेश्वर का सुसमाचार अस्वीकार कर दिया था? मैं पैसे और मौज-मस्ती के पीछे भागकर अपना और समय बर्बाद नहीं कर सकती थी, क्योंकि इसकी वजह से मैं सत्य हासिल करने का अवसर गँवा देती और बरबादी की तरफ चली जाती।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए खुद को बलिदान करना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन का आनंद लेने के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें जीवन भर की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिन को छू लिया और मैं समझ गई कि परमेश्वर के सम्मुख आना और सत्य हासिल करने का अनुसरण करना ही वास्तव में सार्थक और मूल्यवान हैं। पीछे देखती हूँ तो मेरी चाची ने पंद्रह साल पहले मुझे परमेश्वर का सुसमाचार सुनाया था, लेकिन मैंने पैसे कमाने के लिए इसे अस्वीकार कर दिया और परमेश्वर से उद्धार पाने का अवसर पंंद्रह साल तक गँवाए रखा! इन वर्षों में मैंने एक रोबोट की तरह काम किया, दिन-प्रतिदिन कड़ी मेहनत की, खुद को एक पल सुस्ताते हुए साँस लेने तक की इजाजत नहीं दी और लिहाजा लंबी थकान के चलते मुझे तरह-तरह की बीमारियाँ लग गईं। पैसे के लिए पंद्रह साल के संघर्ष ने आखिरकार मुझे पूरी तरह से खोखला कर दिया और मैंने देेखा कि इस तरह से जीना बिल्कुल अर्थहीन है। मैंने अपने एक रिश्तेदार के बारे में सोचा जिसने काफी पैसा कमाया, गाँव में सब उससे ईर्ष्या करते थे और वह एक स्वतंत्र व्यवसायी बन गया, लेकिन वह अक्सर अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ उठते-बैठते हुए शराब पीता था। और आखिरकार शराब का जहर बनने से उसे जिगर की बीमारी हो गई। डॉक्टर ने उससे शराब पीना बंद करने को कहा, लेकिन ज्यादा पैसे कमाने के लिए उसने अपने शरीर को नुकसान पहुँचाने से गुरेज नहीं किया, उसने लोगों के साथ उठने-बैठने के लिए शराब पीना जारी रखा और आखिर में उसे जिगर का कैंसर हो गया और कम उम्र में उसकी मौत हो गई। मुझे प्रभु यीशु की कही बात याद आ गई : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)। परमेश्वर के वचन मुझे बताते हैं कि धन, शोहरत और लाभ से जीवन नहीं खरीदा जा सकता, बल्कि इनसे केवल विनाश ही हो सकता है। अगर मैंने अपने कर्तव्य ठीक से नहीं निभाए और पैसे का अनुसरण करने के मार्ग पर चलती रही तो मेरा शरीर वाकई टूट जाएगा और मेरा जीवन ही बर्बाद नहीं होगा, बल्कि मैं उद्धार पाने का अवसर भी गँवा दूँगी। यूँ तो अब मैं पहले से कम पैसे कमाती थी, लेकिन मैं अक्सर परमेश्वर के वचन खा और पी सकती थी और भाई-बहनों के साथ अनुभवों पर संगति कर सकती थी, जो परमेश्वर का एक अनुग्रह था! मुझे यह बात भी समझ में आ गई कि परमेश्वर ने मुझे कलीसिया में अपने कर्तव्यों का प्रशिक्षण लेने की अनुमति दी है ताकि मैं स्वयं को और अधिक सत्य से सुसज्जित कर सकूँ, उन साधनों का भेद पहचान सकूँ जिनसे शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाता है, अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को जान सकूँ और परमेश्वर के वचनों से जीवन में सही दिशा पा सकूँ। वह सत्य जो मनुष्य परमेश्वर से प्राप्त करता है वह अनन्त जीवन है जिसे कोई भी छीन नहीं सकता। इसकी तुलना पैसों से नहीं की जा सकती और यह जीवन में सबसे बेशकीमती चीज है। यह एहसास होने के बाद मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मैं अपनी नौकरी छोड़ने को तैयार हूँ और परमेश्वर में उचित ढंग से विश्वास करने और आने वाले दिनों में अपने कर्तव्य निभाने को तैयार हूँ।
बाद में मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और खुद को अपने कर्तव्यों के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया। अब मेरा और मेरे पति दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा है और हमें चक्कर आने, पीठ दर्द और बेचैनी के जो लक्षण पहले महसूस होते थे, वे सब गायब हो चुके हैं। मुझे इससे भी ज्यादा खुशी इस बात की है कि अपने कर्तव्यों में प्रशिक्षण पाकर मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव की कुछ समझ आ गई है। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ कि वह मुझे धन, शोहरत और लाभ के बंधन से बाहर निकाल लाया, मुझे अपने सम्मुख लाया और उसने मुझे सत्य हासिल करने के और अधिक अवसर दिए।