89. व्यक्ति को सीखना चाहिए कैसे वह अपनी मुश्किलों के बारे में संगति में खुलकर बोले

नैंसी, भारत

जुलाई 2023 में मैंने कई कलीसियाओं के कार्य का पर्यवेक्षण करने के लिए प्रशिक्षण लेना शुरू ही किया था। जब भी मैंने काम में मुश्किलों का सामना किया, मैंने हमेशा उन्हें खुद ही सुलझाने की कोशिश की और कभी भी उच्च अगुआओं से मदद नहीं माँगी। मुझे लगता था कि अगर मैं समस्याओं को खुद सुलझाने के बजाय हमेशा उच्च अगुआओं को रिपोर्ट करती हूँ तो मैं शिकायत कर रही हूँगी और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रही हूँगी। मैं उन्हें दिखाना चाहती थी कि मेरे पास कार्यक्षमता है और मैं खुद ही समस्याएँ सुलझा सकती हूँ, मैं अपने भाई-बहनों के दिलों में अच्छी छाप छोड़ना चाहती थी।

मुझे याद है कि एक समय था जब सिंचन कार्य के नतीजे अच्छे नहीं थे और बहुत से नए लोग बहुत नियमित रूप से सभा नहीं करते थे। कुछ सिंचनकर्ता खेती-बाड़ी और घर के कार्यों में व्यस्त थे, इसलिए वे तुरंत नए लोगों का जायजा नहीं ले सके और उन्हें सहारा नहीं दे पाए, जबकि कुछ कार्य में इतने व्यस्त थे कि वे नए लोगों के साथ सभा करना ही भूल गए। मैंने उस समय इन मुद्दों की रिपोर्ट उच्च अगुआओं को नहीं दी, क्योंकि मैं चाहती थी वे देखें कि मैं ये मुद्दे सँभाल सकती हूँ। मैंने सिंचनकर्ताओं के साथ संगति की और उनकी मनोदशा के बारे में पूछने के लिए उन्हें फोन किया। लेकिन मेरा जीवन अनुभव बहुत उथला था और मैं पर्याप्त सत्य नहीं समझती थी, इसलिए मैं समस्या के मूल कारण की असलियत नहीं देख पाई। मैंने बस उनके साथ संक्षेप में संगति की और उनकी समस्याओं की ओर इशारा किया, उन्हें अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। नतीजतन सिंचनकर्ताओं द्वारा अपने कर्तव्यों में अनमने होने का मुद्दा हल नहीं हुआ और नए लोग अभी भी नियमित रूप से सभाओं में शामिल नहीं हो रहे थे। मैंने सोचा, “क्या मुझे इन समस्याओं के बारे में उच्च अगुआओं को बताना चाहिए ताकि वे मदद कर सकें और उनके बारे में संगति कर सकें?” लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने सच बताया तो अगुआ सोच सकते हैं कि मैं वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हूँ और इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। बाद में नियमित रूप से सभाओं में शामिल नहीं होने वाले नए लोगों की संख्या बढ़ती रही और कार्य में अंतहीन समस्याएँ पैदा हो गईं। मैं बहुत दबाव महसूस कर रही थी और मेरा दिल खासकर पीड़ित था और कमजोर पड़ गया। लेकिन इसके बावजूद मैंने अपनी मनोदशा के बारे में भाई-बहनों के सामने खुलकर बात नहीं की। मैंने सोचा कि अगर मैंने खुलकर अपनी मुश्किलों और कमजोरियों के बारे में संगति की तो मेरे भाई-बहन भी नतीजतन नकारात्मक और कमजोर हो सकते हैं, अगुआ के रूप में मुझे अपने दिल में आस्था रखनी होगी और मजबूत रहना होगा। सिर्फ इस तरह से मेरे भाई-बहनों के पास अपने कर्तव्य करने की आस्था होगी। मैंने यह भी सोचा कि अगर मैंने अपने सच्चे विचारों और कमियों के बारे में खुलकर बात की तो मेरे भाई-बहन मुझे नीची नजरों से देखेंगे। उस दौरान अगुआ अक्सर मुझसे पूछते थे, “क्या तुम्हारे कर्तव्यों में कोई मुश्किल है?” दरअसल कलीसिया में ऐसी बहुत सी समस्याएँ थीं जिन्हें मैं हल नहीं कर पाई थी लेकिन मुझे डर था कि अगर मैंने अगुआओं को बताया तो वे सोचेंगे कि मैं कार्य नहीं कर सकती हूँ। मैं नहीं चाहती थी कि अगुआ सोचें कि मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने में असमर्थ हूँ, इसलिए मैं अपनी मनोदशा और कार्य में समस्याएँ छिपाती रही। दिसंबर में कलीसिया में ऐसे और अधिक नए लोग थे जो नियमित रूप से सभाओं में शामिल नहीं हो रहे थे। वे कभी आते थे तो कभी नहीं आते थे। उच्च अगुआओं ने मुझसे पूछा, “इतने सारे लोग नियमित रूप से सभाओं में क्यों नहीं आ रहे हैं? क्या इसका कारण यह है कि सिंचनकर्ता समय पर उनका जायजा नहीं ले रहे हैं?” मैंने सोचा, “अगर उच्च अगुआओं को पता चल गया कि जिन कलीसियाओं के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, वहाँ के सिंचनकर्ताओं को इतनी सारी समस्याएँ हैं तो वे वास्तविक कार्य न करने के लिए मेरी काट-छाँट कर सकते हैं।” मुझे डर था कि अगुआ मुझे दोषी ठहराएँगे या सोचेंगे कि मैं समस्याएँ नहीं सुलझा सकती, इसलिए मैंने झूठ बोला और कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि नए लोगों के पास कमजोर इंटरनेट है और कुछ के पास सेल फोन नहीं हैं। इसलिए वे नियमित रूप से सभाओं में शामिल नहीं हो सकते।” उच्च अगुआओं ने मुझसे एक और सवाल पूछा, “सुसमाचार कार्य के नतीजे कैसे हैं?” मुझे पता था कि सुसमाचार कार्य धीमी गति से आगे बढ़ रहा है और कुछ संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थे और उनमें समझने की क्षमता की कमी थी। लेकिन मैं अगुआओं को दिखाना चाहती थी कि मैं सुसमाचार कार्य सँभालने में सक्षम हूँ, इसलिए मैंने कहा, “ये लोग बहुत जल्द कलीसिया में शामिल हो जाएँगे।” क्योंकि मैंने सत्य छिपाया, मेरे भाई-बहनों ने इन संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं का जायजा लेने में बहुत समय लगा दिया, बहुत सारा निरर्थक काम करते रहे। इससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा हो गई।

उस समय मेरी मनोदशा बहुत खराब थी और उच्च अगुआ बहन सुजैन ने मेरे साथ परमेश्वर के वचन साझा किए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपना गुरूर और गर्व बरकरार रखना चाहते हैं, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो इससे उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति होगी—फायदे से ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और श्रद्धा खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और रुतबा किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि मसीह-विरोधी अपना भेष बदलने में माहिर होते हैं। वे नहीं चाहते कि दूसरे उनकी नकारात्मकता और कमजोरी देखें, इसलिए वे हमेशा समस्याओं से बचते हैं, अपनी असफलताओं और कमियों के बारे में बात नहीं करते, लोगों के दिल जीतने के लिए दूसरों को सिर्फ अपना सकारात्मक पक्ष दिखाते हैं। मैं बिल्कुल ऐसी ही थी। मैंने जानबूझकर अपनी मुश्किलें, नकारात्मकता और कमजोरियाँ छिपाईं क्योंकि मैं चाहती थी कि खुद एक उत्कृष्ट व्यक्ति का छद्मवेश ओढ़ूँ, लोगों को महसूस कराऊँ कि मैं सभी समस्याएँ सुलझा सकती हूँ और सत्य को किसी से भी बेहतर समझ सकती हूँ और दूसरे लोगों के दिलों में जगह बना लूँ। मैंने एहसास किया कि मैं जो स्वभाव प्रकट करती हूँ वह किसी मसीह-विरोधी के स्वभाव से अलग नहीं है। जब मैं ऐसी समस्याओं का सामना करती थी जो मेरी समझ में नहीं आती थीं, जिन्हें मैं समझ नहीं पाती थी या हल नहीं कर पाती थी तो मैं अपने अगुआओं या सहकर्मियों से सलाह नहीं लेती थी। मैं नहीं चाहती थी कि वे मेरी कमियाँ देखें और कहें, “तुम यह काम भी नहीं कर सकती?” मैं चाहती थी कि हर कोई कहे कि मुझमें कार्य करने की क्षमता है। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि सिंचनकर्ताओं के साथ मेरी संगति से कोई नतीजा नहीं निकला है और उनकी समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन मैंने कभी अगुआओं से मदद नहीं माँगी। नतीजतन मैं सिंचनकर्ताओं की समस्याओं का समय पर समाधान नहीं कर सकी क्योंकि मैं सत्य को नहीं समझती थी, जिससे कार्य प्रभावित हुआ। अपने भाई-बहनों के साथ संवाद करते समय मैं कभी भी अपनी भ्रष्टता के बारे में खुलकर बात नहीं करती थी और अपनी कमियों की चर्चा नहीं करती थी। मैं नहीं चाहती थी कि दूसरे लोग मेरा असली आध्यात्मिक कद जानें। उदाहरण के लिए जब अगुआओं ने मुझसे पूछा कि मेरे कार्य में क्या समस्याएँ हैं और क्या मैंने अपना कर्तव्य निभाने में मुश्किलों का सामना किया तो भले ही स्पष्ट रूप से इतनी सारी समस्याएँ थीं जिन्हें मैं हल नहीं कर सकी थी, मैंने कहा कि मुझे कोई मुश्किल नहीं है ताकि अगुआओं की मेरे बारे में अच्छी धारणा हो। सिंचनकर्ता अपने कर्तव्य अनमने ढंग से कर रहे थे और सुसमाचार कार्य रुक गया था। लेकिन जब उच्च अगुआओं ने कार्य के बारे में पूछा, मुझे डर था कि अगर मैंने सच बताया तो अगुआ सोचेंगे कि मैं समस्याएँ नहीं सुलझा सकती और मुझमें कोई कार्यक्षमता नहीं है। इसलिए मैंने तथ्यों को छिपाया और कहा कि नए लोग नियमित रूप से सभाओं में शामिल नहीं हो सकते क्योंकि उनके पास इंटरनेट नहीं है, ताकि अगुआ सोचें कि असली मुश्किलें तो नए लोगों में है और ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि हमने अपना कार्य ठीक से नहीं किया था। बहुत से संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता थे जो स्पष्ट रूप से सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थे, लेकिन यह साबित करने के लिए कि मैं वास्तविक कार्य कर सकती हूँ, मैंने झूठ बोला और कहा कि ये लोग कलीसिया में शामिल हो सकते हैं, जिसका मतलब था कि मेरे भाई-बहनों ने बहुत सारा निरर्थक कार्य किया था, जिससे कलीसिया के कार्य में देरी हुई थी। मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ। मैं पूर्ण नहीं हूँ। मुझमें बहुत सी कमियाँ और खामियाँ हैं और मैंने कलीसिया का कार्य करने के लिए अभी-अभी प्रशिक्षण लेना शुरू किया है, इसलिए यह पूरी तरह से सामान्य है कि मुझे बहुत सारे कार्य करने का तरीका नहीं पता था। मुश्किलों का सामना होने पर मुझे समय-समय पर उच्च अगुआओं से मदद माँगनी चाहिए थी। लेकिन मैं लगातार यह मानती रही कि चूँकि मैं कार्य के लिए जिम्मेदार हूँ, इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि मुझे यह नहीं पता कि इसे कैसे करना है और मुझे खुद ही सभी समस्याएँ सुलझाने में सक्षम होना चाहिए। मैंने दूसरों का सम्मान पाने के लिए उच्च अगुआओं को भी धोखा दिया और छला। मेरा अहंकारी और कपटी स्वभाव परमेश्वर के लिए इतना घृणास्पद था! मैं बेहद दुखी थी क्योंकि मेरे गलत अनुसरणों ने कलीसिया के कार्य को प्रभावित कर दिया था। मुझे पता था कि मुझे पश्चात्ताप करना होगा और अगर मैं गलत रास्ते पर चलती रही तो मुझे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा निकाल दिया जाएगा।

बाद में मेरे भाई-बहनों ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा और मुझे अपनी समस्याओं के बारे में कुछ समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब लोग हमेशा अपना असली स्वरूप छिपाते रहते हैं, हमेशा अपनी कमियों को ढकते और खुद को सजाते हैं, हमेशा खास होने का ढोंग करते हैं ताकि दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें और उनकी कमियाँ या दोष न देख सकें, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह दुष्टता है। शैतानी शासन के सदस्यों को लें : वे अंधेरे में कितना भी लड़ें-झगड़ें या हत्या तक कर दें, किसी को भी उनकी शिकायत करने या उन्‍हें उजागर करने की अनुमति नहीं होती। वे डरते हैं कि लोग उनका राक्षसी चेहरा देख लेंगे, और वे इसे छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं। सार्वजनिक रूप से वे यह कहते हुए खुद को संवारने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे लोगों से कितना प्यार करते हैं, वे कितने महान, गौरवशाली और अमोघ हैं। यह शैतान की प्रकृति है। शैतान की प्रकृति की सबसे प्रमुख विशेषता धोखाधड़ी और छल है। और इस धोखाधड़ी और छल का उद्देश्य क्या होता है? लोगों की आँखों में धूल झोंकना, लोगों को अपना सार और असली रंग न देखने देना, और इस तरह अपने शासन को दीर्घकालिक बनाने का उद्देश्य हासिल करना। साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और रुतबे की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि लोग उनके बारे में सकारात्मक दृष्टि रखें, उन्हें उच्च मूल्यांकन दें और अपने दिल में उन्हें ऊँचे स्थान पर रखें। यह भ्रष्ट स्वभाव होता है, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के स्व-आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैंने फिर से सोचा कि कैसे मेरी जिम्मेदारी वाली कलीसियाओं में बहुत से नवागंतुक नियमित रूप से सभाओं में भाग नहीं ले रहे थे, मेरे भाई-बहनों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ था और सुसमाचार का कार्य रुक गया था, फिर भी मैंने दिखावा किया कि मैं समस्याएँ सुलझा सकती हूँ। भले ही मैं देख पा रही थी कि कलीसिया के कार्य में देरी हो रही है, फिर भी मैं अगुआओं से मदद लेने की अनिच्छुक थी। जब अगुआओं ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे कार्य में कोई मुश्किल या समस्या है तो मैंने अगुआओं तक को धोखा दे दिया और कार्य में समस्याएँ छिपाईं। मैं लगातार अपने भाई-बहनों को यह आभास देना चाहती थी कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं नहीं कर सकती और मैं सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हूँ। मुझमें आत्म-जागरूकता की पूरी तरह कमी थी! मैंने जो स्वभाव प्रकट किया था वह सीसीपी के स्वभाव के समान था। सीसीपी लोगों के सामने खुद को छिपाना पसंद करती है ताकि लोग उसकी पूजा करें और उसका अनुसरण करें, लेकिन असल में इसके शासन में लोग अत्यधिक दुख में रहते हैं। महामारी, भूकंप, प्राकृतिक आपदाएँ और मानव निर्मित विपदाएँ लगातार उन पर आती रहती हैं, लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती और लोगों को समय पर बचाव और चिकित्सा उपचार नहीं मिल पाता। लोगों को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता तक से वंचित कर दिया गया है, बहुत से ईसाइयों का उत्पीड़न किया गया है और उन्हें बेघर कर दिया गया है। लेकिन सीसीपी ने कभी भी सार्वजनिक रूप से अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं किया है और जब लोग शिकायतों के साथ सड़कों पर उतरते हैं, तब भी उसे कोई परवाह नहीं होती। उसे केवल दूसरों के सामने अपनी छवि बेदाग करने की परवाह है। मैंने देखा कि उसकी प्रकृति कितनी दुष्ट है! अगर मैंने पश्चात्ताप न किया, हर मोड़ पर खुद को छिपाना और भेष बदलना जारी रखा और वास्तविक कार्य न किया तो अंत में मुझे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा ठुकरा और निकाल दिया जाएगा। फिर मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ईमानदार लोगों से प्रेम करता है और उम्मीद करता है कि हम सत्य का अनुसरण कर सकें, ईमानदारी से खुलकर बात कर सकें और ईमानदार लोग बन सकें। लेकिन मैं लगातार यह दिखावा करना चाहती थी कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं नहीं कर सकती, महान और असाधारण बनने का प्रयास करती रही, ताकि लोग मेरा सम्मान और पूजा करें। मुझे यहाँ तक विश्वास था कि एक श्रेष्ठ और पूर्ण व्यक्ति बनने का मेरा अनुसरण परमेश्वर के लिए प्रसन्नतादायक है। लेकिन तथ्यों ने मुझे गलत साबित कर दिया : मैं यह बिल्कुल भी नहीं समझती थी कि परमेश्वर मनुष्य से क्या अपेक्षा करता है। मैं इतनी मूर्ख और पाखंडी थी!

अगुआओं ने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश भेजा और मुझे उन पर ध्यानपूर्वक विचार करने के लिए कहा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब तुम खुद को कठिनाई में पाते हो या विफलता का अनुभव करते हो तो तुम्हें लोगों पर भरोसा करना चाहिए और उनके सामने अक्सर खुलकर बात करनी चाहिए, अपनी समस्याओं और कमजोरियों पर संगति करनी चाहिए और यह संगति करनी चाहिए कि तुमने कैसे परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था, फिर कैसे इस स्थिति से निकले थे और परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करने में सक्षम रहे थे। और उनसे इस तरह मन की बात कहने का क्या असर होता है? बेशक यह सकारात्मक होता है। तुम्हें कोई भी हीन भावना से नहीं देखेगा—बल्कि शायद उन्हें इन अनुभवों से गुजरने की तुम्हारी क्षमता से ईर्ष्या हो। कुछ लोग हमेशा यही सोचते हैं कि रुतबा होने पर लोगों को अधिकारियों जैसा पेश आना चाहिए और एक खास लहजे में बोलना चाहिए ताकि लोग उन्हें गंभीरता से लें और उनका सम्मान करें। क्या ऐसी सोच सही है? अगर तुम्हें यह एहसास हो जाए कि ऐसी सोच गलत है, तो तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और देह संबंधी चीजों के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए। रौब मत दिखाओ और पाखंड की राह पर मत चलो। ज्यों ही ऐसा विचार आए, तुम्हें सत्य खोजकर इसका समाधान करना चाहिए। अगर तुम सत्य नहीं खोजते, तो यह विचार, यह नजरिया आकार लेकर तुम्हारे दिल में जड़ें जमा लेगा। परिणामस्वरूप, यह तुम पर हावी हो जाएगा, तुम छद्मवेश बनाकर अपनी ऐसी छवि गढ़ोगे कि कोई भी तुम्हारी असलियत न जान सके या तुम्हारी सोच को न समझ पाए। तुम दूसरों से मुखौटा लगाकर बात करोगे जो तुम्हारे सच्चे दिल को उनसे छिपाएगा। तुम्हें यह सीखना होगा कि दूसरे लोग तुम्हारा दिल देख सकें, तुम दूसरों के सामने अपना दिल खोल सको और उनके करीबी बन सको। तुम्हें अपनी देह की पसंदियों के विरुद्ध विद्रोह करना होगा और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार अभ्यास करना होगा। इस प्रकार तुम्हारे दिल को शांति और खुशी मिलेगी। तुम्हारे साथ जो कुछ भी घटे, सबसे पहले अपने मन की समस्याओं पर आत्म-चिंतन करो। अगर तुम अभी भी अपनी कोई छवि गढ़कर छद्मवेश धरना चाहते हो, तो तुम्हें तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए : ‘हे परमेश्वर! मैं फिर से छद्मवेश धरना चाहता हूँ। मैं फिर से छलपूर्वक षड्यंत्र कर रहा हूँ। मैं कैसा असली दानव हूँ! तुम अवश्य मुझे नफरत योग्य मानते होगे! अब तो यहाँ तक कि मुझे खुद से ही घृणा होने लगी है। मेरी विनती है कि तुम मुझे फटकारो, अनुशासित करो और दंड दो।’ तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, अपना रवैया सबके सामने लाना चाहिए, और इसे उजागर करने, विश्लेषित करने और रोकने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, रुतबे के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें)। मैंने परमेश्वर के वचनों की तुलना में आत्म-चिंतन किया। जब से मैंने कलीसियाओं के कार्य की जिम्मेदारी ली थी, तब से मेरा मानना था कि पर्यवेक्षक होने के नाते मुझे जिस तरह से अगुआई करनी चाहिए, उसमें मुझे पर्यवेक्षक की तरह दिखना चाहिए : मुझमें कोई कमी या कमजोरी नहीं होनी चाहिए, मुझे कार्य में सभी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम होना चाहिए, अगर मैं नकारात्मक हो गई तो मेरे भाई-बहन आस्था गँवा देंगे और नकारात्मक हो जाएँगे और कमजोर पड़ जाएँगे। इस तरह के गलत दृष्टिकोण के साथ मैं अपने भाई-बहनों के सामने अपनी कमियों और खामियों के बारे में खुलकर बात करने को तैयार नहीं थी और यहाँ तक कि अगुआओं को यह कहकर धोखा देती थी कि मेरे कर्तव्य में कोई मुश्किल या समस्या नहीं है। मैंने दूसरों को केवल अपना अच्छा पक्ष दिखाया। मैं इतनी पाखंडी थी! परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि पर्यवेक्षक में कमियाँ होना बहुत सामान्य है और अगर मैं अपनी कमियों और कमजोरियों के बारे में खुलकर बात कर पाती तो मेरे भाई-बहन मुझे बिल्कुल भी नीची नजरों से नहीं देखते; अगर कलीसिया के कार्य में मुश्किलें होतीं तो वे भी बोझ साझा करते और उन्हें सुलझाने के लिए मिलकर कार्य करते, क्योंकि वे जानते थे कि मैं अभी प्रशिक्षण के चरण में हूँ। इसके अलावा अगर मैं अपने भाई-बहनों के साथ अपने कर्तव्य करने में अपनी असफलताओं, कमियों और मुश्किलों और यहाँ तक कि अपने नकारात्मक और कमजोर पक्ष के बारे में खुलकर बात करना सीख जाती तो भाई-बहन मेरे साथ संगति करते और मेरी मदद करते, मैं अपने भाई-बहनों के अनुभवजन्य ज्ञान से उन्नति और लाभ प्राप्त कर पाती और अभ्यास का मार्ग खोज लेती। अतीत में मैं छद्मवेश और दिखावटीपन की मनोदशा में रहती थी, जब मैं मुश्किलों का सामना करती तो खुलकर बात करने और खोजने के लिए तैयार नहीं होती थी। इसके बजाय मैं अपने दम पर आगे बढ़ती रही और बहुत दबाव में आ गई। मेरे दिल में शांति और आनंद नहीं था और मेरे कार्य के नतीजे हमेशा खराब होते थे। बाद में जब मैंने अपने भाई-बहनों के साथ अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में खुलकर बात की, अपनी स्वयं की भ्रष्टता और कार्य में समस्याओं के बारे में संगति की तो उन्होंने मेरे साथ परमेश्वर के वचन साझा किए, उच्च अगुआओं ने भी मेरे साथ संगति और मेरी मदद की ताकि मैं समस्याएँ सुलझाने के कुछ तरीके खोज लूँ। बाद में मैंने उन भाई-बहनों से बात की जो नए लोगों का सिंचन कर रहे थे और परमेश्वर के वचन शामिल करके मैंने उनके कर्तव्य करने में अनमने रहने की प्रकृति और नतीजों के बारे में संगति की और उन्हें उजागर किया। उन्हें अपनी समस्याओं का एहसास हुआ और वे अपनी गलत मनोदशाएँ पूरी तरह बदलने के लिए तैयार थे। धीरे-धीरे सिंचनकर्ताओं ने अपने कर्तव्य में बोझ उठाना शुरू कर दिया और कार्य ने नतीजे दिए। मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने पहले इस तरह से अभ्यास किया होता तो मेरा कर्तव्य प्रभावित नहीं होता। इस अनुभव के बाद मैंने अपने भाई-बहनों के साथ खुलकर बात करने और अपने अंतरतम विचार साझा करने की कोशिश की और महसूस किया कि इस तरह से अभ्यास करना बहुत मुक्तिदायक है।

इसके बाद मेरे भाई-बहनों ने मेरे साथ परमेश्वर के वचनों का एक और अंश साझा किया : “कुछ लोगों को कलीसिया द्वारा पदोन्नत किया जाता है और उनका संवर्धन किया जाता है, उन्हें प्रशिक्षित होने का एक अच्छा मौका मिलता है। यह अच्छी बात है। यह कहा जा सकता है कि उन्हें परमेश्वर द्वारा ऊँचा उठाया और अनुगृहीत किया गया है। तो फिर, उन्हें अपना कर्तव्य कैसे करना चाहिए? सबसे पहले जिस सिद्धांत का उन्हें पालन करना चाहिए, वह है सत्य को समझना—जब वे सत्य को न समझते हों, तो उन्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और अगर अपने आप खोजने के बाद भी वे इसे नहीं समझते, तो वे संगति और खोज करने के लिए किसी ऐसे इंसान की तलाश कर सकते हैं, जो सत्य समझता है, इससे समस्या का समाधान अधिक तेजी से और समय पर होगा। अगर तुम केवल परमेश्वर के वचनों को अकेले पढ़ने और उन वचनों पर विचार करने में अधिक समय व्यतीत करने पर ध्यान केंद्रित करते हो, ताकि तुम सत्य की समझ प्राप्त कर समस्या हल कर सको, तो यह बहुत धीमा है; जैसी कि कहावत है, ‘धीमी गति से किए जाने वाले उपाय तात्कालिक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते।’ अगर सत्य की बात आने पर तुम शीघ्र प्रगति करना चाहते हो, तो तुम्हें दूसरों के साथ सामंजस्य में सहयोग करना, अधिक प्रश्न पूछना और अधिक तलाश करना सीखना होगा। तभी तुम्हारा जीवन तेजी से आगे बढ़ेगा, और तुम समस्याएँ तेजी से, बिना किसी देरी के हल कर पाओगे। चूँकि तुम्हें अभी-अभी पदोन्नत किया गया है और तुम अभी भी परिवीक्षा पर हो, और वास्तव में सत्य को नहीं समझते या तुममें सत्य वास्तविकता नहीं है—चूँकि तुम्हारे पास अभी भी इस आध्यात्मिक कद की कमी है—तो यह मत सोचो कि तुम्हारी पदोन्नति का अर्थ है कि तुममें सत्य वास्तविकता है; यह बात नहीं है। तुम्हें पदोन्नति और संवर्धन के लिए केवल इसलिए चुना गया है, क्योंकि तुममें कार्य के प्रति दायित्व की भावना और अगुआ होने की क्षमता है। तुममें यह विवेक होना चाहिए(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि पर्यवेक्षक के रूप में मुझे अपने भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य करना चाहिए और कलीसिया के कार्य की संयुक्त रूप से रक्षा करनी चाहिए। पहले मेरा नजरिया गलत था। मेरा मानना था कि मेरे भाई-बहनों द्वारा मुझे पर्यवेक्षक चुने जाने के बाद मुझे सभी समस्याओं का समाधान करना आना चाहिए, उच्च अगुआओं से लगातार समस्याओं के बारे में बात करने से वे मुझे नीची नजरों से देखेंगे और सोचेंगे कि मुझमें कार्यक्षमता नहीं है। इसलिए जब मुझे ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा जिनकी मैं असलियत नहीं देख पाई या उन्हें सुलझा नहीं पाई तो मैंने उन्हें छिपा लिया और कुछ नहीं कहा, अकेले ही हर माेर्चे पर डटी रही। जब मैं अपना कर्तव्य कर रही थी तो मुझे लगातार बहुत दबाव महसूस होता था और मैंने कलीसिया के कार्य में भी रुकावट डाली। अब मैं समझ गई कि समस्याएँ सुलझाने और कलीसिया के कार्य की रक्षा करने के लिए अगुआओं-कार्यकर्ताओं को मुश्किलों का सामना करने पर उच्च अगुआओं से मदद लेनी चाहिए। एक मानक स्तर का पर्यवेक्षक कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो कलीसिया के कार्य का बोझ उठाता है। भले ही उसमें कुछ कमियाँ और खामियाँ हो सकती हैं, फिर भी वह नियमित रूप से आत्मचिंतन करेगा और सत्य खोजेगा, जब वह ऐसी समस्याओं का सामना करेगा जिनका वह समाधान नहीं कर सकता है तो वह अपना अहंकार त्यागने और भाई-बहनों से सक्रियता से मार्ग खोजने में सक्षम रहेगा, सबके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से कार्य करेगा, उनकी मदद करेगा और मिलकर कलीसिया का कार्य अच्छे से करेगा। जब मैंने यह समझ लिया तो मेरे पास अभ्यास का मार्ग था। इसके बाद जब मुझे कार्य में कोई मुश्किल आती थी जिसे मैं नहीं सुलझा पाती थी तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती थी और अपने भाई-बहनों से सक्रियता से खोजने के लिए अपना अभिमान छोड़ देती थी। सुसमाचार कार्य में मैं बिना कुछ छिपाए उच्च अगुआओं को स्थिति की रिपोर्ट करती थी, इस बात की परवाह नहीं करती थी कि मेरी काट-छाँट की जाएगी या मुझे दूसरों द्वारा नीची नजरों से देखा जाएगा। मुझे इस बात की परवाह थी कि क्या मैं अपना कर्तव्य एक ईमानदार दिल के साथ अच्छी तरह निभा सकती हूँ और किस तरह से काम करूँ जिससे कलीसिया के कार्य को फायदा हो। जब मैंने इस तरह से अभ्यास किया तो मेरा दिल खासकर शांत और सहज हो गया। मैं परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ कि उसने मेरी भ्रष्टता समझने में मेरी मदद की, और यह समझने में मदद की कि कैसे एक ईमानदार व्यक्ति बनना है और अपने भाई-बहनों के लिए अपना दिल खोलना है।

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8. सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे शुद्धिकरण प्राप्त करने का मार्ग दिखाया

लेखक: गांगकियांग, अमेरिकामैं रोज़ी-रोटी कमाने के इरादे से 2007 में अपने दम पर सिंगापुर आया। सिंगापुर का मौसम साल-भर गर्म रहता है। ड्यूटी के...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 9) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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