92. प्रसिद्धि और लाभ के भँवर से बाहर निकलना

जियान यी, चीन

मैं एक साधारण परिवार में पैदा हुई थी। हम संपन्न नहीं थे। मेरे पिता निठल्ले थे जिनके पास कोई ढंग की नौकरी नहीं थी। वे जुआ भी खेलते थे। हमारे गाँव के लोग हमें नीची नजरों से देखते थे और मैं खुद को बहुत हीन महसूस करती थी। कम उम्र से ही मैंने चुपचाप एक महत्वाकांक्षा पाल ली थी : जब मैं बड़ी हो जाऊँगी तो मैं भीड़ से अलग दिखूँगी और हर किसी को कायल कर दूँगी कि वह मुझे नए सम्मान के साथ देखे। सिर्फ इसी तरह से मैं ऊँची उठ पाऊँगी और लोग मुझे नीची नजरों से नहीं देखेंगे।

स्कूल में मेरे ग्रेड हमेशा बहुत अच्छे रहते थे। बाद में एक गहन कक्षा में होने के दबाव के कारण मुझे अक्सर सिरदर्द होने लगा। मेरे ग्रेड गिरते रहे, आखिरकार मैंने स्कूल छोड़ दिया। मेरा परिवार हमेशा कहता था, “अगर तुम कोई कौशल सीख लेती हो तो तुम दुकान खोल सकती हो, अपनी बॉस खुद बन सकती हो और इस तरह से भी उतनी ही सफल हो सकती हो।” मैंने मन ही मन सोचा, “भले ही मैं पढ़ाई के जरिए लोगों का सम्मान नहीं जीत सकती, मगर चीन में एक कहावत है, ‘तीन सौ साठ तरह के धंधे होते हैं और हर धंधे का अपना एक उस्ताद होता है।’ अगर मैं कड़ी मेहनत से पढ़ाई कर कोई हुनर सीख लूँ तो भविष्य में मैं कोई दुकान खोल सकती हूँ और खुद अपनी बाॅस बन सकती हूँ। फिर मेरे रिश्तेदार और दोस्त निश्चित रूप से मुझे नए सम्मान की नजर से देखेंगे।” बाद में मैंने मेकअप तकनीक का अध्ययन किया। जब मैंने काम करना शुरू किया तो मैं सिर्फ कनिष्ठ सहायक बन सकती थी क्योंकि मेरे पास कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं था। मैं रोज दौड़-भाग करती थी, छोटे-मोटे काम करती थी और मेकअप टीचर मुझ पर चिल्लाती और हुक्म चलाती थी। मैं इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं थी। अधिक तकनीक सीखने और अनुभव पाने के लिए, ताकि मैं जल्द से जल्द एक मेकअप कलाकार बन सकूँ, मैं लगभग हर दिन सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक काम करती थी। कुछ समय तक कड़ी मेहनत करने के बाद मैं आखिरकार मेकअप कलाकार बन गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उसके बाद मेरी जिंदगी और भी दर्दनाक हो जाएगी। हर दिन अपना काम खत्म करने के बाद मुझे अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने के लिए ओवरटाइम करना पड़ता था। मैं शरीर और दिमाग से थक चुकी थी। लेकिन फिर मैंने सोचा, “‘सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।’ जब तक मैं दृढ़ रहूँगी और अपने कौशल में सुधार करूँगी, तब तक मुझे प्रशंसा और आदर पाने के अधिक अवसर मिलेंगे।” इसलिए मैं अब उतनी दुखी नहीं रही। उस समय मेरी माँ अक्सर मुझसे आस्था के बारे में बात करती थीं। मुझे पता था कि परमेश्वर में विश्वास रखना अच्छी बात है, लेकिन मुझे यह भी लगता था कि मैं काम में बहुत व्यस्त हूँ, मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं है और मैं उस चरण में हूँ जहाँ मैं अपना करियर बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ कर रही हूँ। नतीजतन मैंने अपनी आस्था को इतनी गंभीरता से नहीं लिया।

बाद में मैंने दूसरे स्टूडियो में मेकअप कलाकार के रूप में काम किया, जहाँ मैं कई वर्षों तक रही। काफी प्रयास के बाद मैं अपने विभाग की मुख्य स्तंभ बन गई। मेरे कौशल हमेशा उत्कृष्ट होते थे और मैं हर महीने प्रदर्शन के मामले में पहले स्थान पर रहती थी। बॉस अक्सर मेरे सहकर्मियों के सामने मेरी क्षमताओं की प्रशंसा करती थी और उन्हें मुझसे सीखने के लिए कहती थी। इससे मेरे अहंकार को सबसे अधिक संतुष्टि मिलती थी। खासकर मैंने बहुत से ऐसे ग्राहकों से जिनसे मैं पहले कभी नहीं मिली थी, यह कहते सुना, “हमने तुम्हारे बारे में सब कुछ सुन रखा है! मेरे सभी दोस्त कहते हैं कि न सिर्फ तुम अत्यधिक कुशल हो, बल्कि तुम एक बहुत अच्छी इंसान भी हो। हम यहाँ खासकर तुम्हारी वजह से आए हैं।” जब मैंने ऐसी बातें सुनीं तो मुझे अपने आप पर बहुत खुशी होने लगी, प्रसिद्धि और लाभ पाने की मेरी इच्छा और भी बढ़ गई। जब मैं अपने आस-पास के लोगों को यह कहते सुनती थी कि अमुक लड़की यूँ तो बहुत छोटी है पर वह पहले ही अपनी दुकान खोल चुकी है, अपना व्यवसाय चला रही है और बहुत सक्षम है तो मुझे बहुत ईर्ष्या होती थी। मुझे लगा कि मेरे पास भी अच्छे कौशल हैं, लेकिन अभी तक मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मैं अभी उम्र के बीसवें दशक के शुरुआती वर्षों में ही थी, अगर मैं कड़ी मेहनत करती और हर ग्राहक को गंभीरता से लेती, अपनी अच्छी प्रतिष्ठा गढ़ती तो देर-सवेर मुझे दुकान खोलने और खुद अपनी बॉस बनने का मौका मिल ही जाता। जब भी मैं इस बारे में सोचती तो मुझे अपने शरीर में ऊर्जा का एक अंतहीन विस्फोट महसूस होता, मानो मेरे खून में बिजली का संचार हो गया हो। मैं लगातार सोचती रहती कि अपने कौशल और प्रदर्शन को कैसे बेहतर बनाया जाए और अक्सर विभिन्न इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर मेकअप वीडियो देखती ताकि उनसे अच्छी तकनीकें सीख सकूँ। मेरे सभी सहकर्मी जल्दी काम खत्म करने के लिए बेताब रहते थे, लेकिन अपने ग्राहकों के अनुभव बेहतर बनाने के लिए मैं उनके फोटो लेने या वीडियो बनाने में अतिरिक्त समय लगाती थी। मैं उनसे इन्हें अपने-अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कराती थी ताकि वे मुझे आगे बढ़ाने में मदद करें और जब मैं देखती कि इसे बहुत सारे लाइक और अनुकूल टिप्पणियाँ मिल रही हैं तो मैं मन ही मन बेहद खुश होती। मैं अक्सर काम खत्म करने वाली आखिरी व्यक्ति होती थी और घर लौटने के बाद भी मैं ग्राहकों के साथ अपने रिश्ते बेहतर बनाने के लिए उनसे चैट करती थी। ग्राहकों को खुद से जोड़े रखने के लिए ऐसा लगता था कि मैं हर दिन मुखौटा पहनकर जी रही हूँ और नकली, सुखद लगने वाले शब्द बोल रही हूँ। अगर कोई ग्राहक साफ तौर पर मोटी होती तो मैं उसकी तारीफ करते हुए कहती थी, “तुम्हारा फिगर एकदम परफेक्ट है! अपने कपड़ों का बेहतरीन इस्तेमाल करने के लिए तुम्हें ऐसे ही फिगर की जरूरत है।” कुछ ग्राहक दिखने में बहुत अच्छे नहीं होते थे तो मैं खूब मेहनत से उनकी ऐसी अच्छी खूबियाँ ढूँढ़ती थी जिनकी मैं तारीफ कर सकूँ और मैं उन्हें खुश करने के लिए उनकी खुशामद करती थी। कुछ ग्राहक ऐसे होते थे जिन्हें मनाना और संतुष्ट करना काफी मुश्किल था, भले ही मैं अंदर से उनसे तंग आ चुकी थी, मैं तब तक जबरन मुस्कराती रहती जब तक वे संतुष्ट नहीं हो जाते। मैं वाकई ऐसी बातें नहीं कहना चाहती थी जो मेरी भावनाओं के विपरीत हों, लेकिन प्रसिद्धि और लाभ के लिए मुझे ऐसा करना पड़ता था। भले ही मैं अपने आस-पास के लोगों से प्रशंसा और सराहना पाती थी, लेकिन जब यह संक्षिप्त खुशी बीत जाती थी तो मेरे दिल में और अधिक उदासी और थकावट रह जाती थी। मैं अक्सर सोचती थी : लोगों से सम्मान पाने के लिए मैं हर दिन एक मशीन की तरह काम कर रही हूँ। यहाँ काम के अलावा भी बस और ज्यादा काम था। ये दिन कब खत्म होंगे? क्या मेरी जिंदगी ऐसे ही गुजर जाएगी? मैं भ्रमित और असहाय हो गई। फिर मुझे याद आया कि बचपन से ही मेरी माँ मुझे मुश्किलों में पड़ने पर परमेश्वर को पुकारने के लिए कहती थी। उस दौरान मैं अक्सर अपनी मुश्किलों को परमेश्वर के सामने रखती थी और प्रार्थना करती थी, “हे परमेश्वर, मैं उलझन में हूँ और काम के कारण मुझ पर बहुत दबाव है। मुझे तो ऐसा भी लगता है कि मेरी जिंदगी का कोई मतलब नहीं है। मेरी मदद करो!”

मई 2021 में जो कंपनी साल के इस समय आमतौर पर बहुत व्यस्त रहती थी, इस बार मंदी का सामना कर रही थी। मुझे अक्सर घर पर आराम करने का मौका मिलता था। भाई-बहनों द्वारा मुझे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाने और सभाओं में मेरे साथ संगति करने से मेरे दिल में मौजूद संताप और दमन काफी हद तक कम हो गया। मैंने औपचारिक रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया और कलीसियाई जीवन जीने लगी। सभाओं के दौरान हर कोई बस अपनी अनुभवजन्य समझ के बारे में खुलकर बात और संगति करता था। हर कोई मुश्किलों में फँसे लोगों की मदद करने के लिए संगति करता था। कोई भी किसी को नीची नजरों से नहीं देखता था। जब मैं अपने भाई-बहनों के साथ सभा करती थी तो मेरा दिल सहज और शांत हो जाता था और आखिरकार मुझे पता चल गया कि लोग इतने आराम और मुक्त तरीके से जी सकते हैं। बाद में मैं सभाओं में भाग लेने के लिए अक्सर छुट्टी लेने लगी, इसलिए मेरी बॉस को चिंता होने लगी कि मैं दूसरी कंपनी में चली जाऊँगी और उसने मेरे सहकर्मियों से पूछा कि मेरे साथ क्या चल रहा है। मैंने सोचा कि पिछले कुछ सालों में मैं काम में कितनी मेहनती रही हूँ, कैसे मैंने अपनी बॉस की स्वीकृति हासिल की है मैं कैसे कंपनी में विकसित होने का मुख्य केंद्र थी। अगर बॉस ने देखा कि मैं लगातार छुट्टी ले रही हूँ तो क्या वह समय के साथ मेरे बारे में खराब राय बना लेगी और मुझे विकसित करने पर ध्यान देना बंद कर देगी? मुझे सभाओं में भाग लेने के लिए बार-बार छुट्टी लेने पर पछतावा होने लगा और मैंने फैसला किया कि इसके बाद मैं कभी-कभार ही कुछ सभाओं में भाग लूँगी, बशर्ते कि वे काम में बाधा न डालें। लेकिन फिर मुझे ख्याल आया कि कैसे जब मैं परमेश्वर के वचनों पर संगति करने के लिए भाई-बहनों के साथ सभा करती हूँ तो मेरे दिल को मुक्ति की और दमन से छुटकारे की अनुभूति होती है और इसलिए मैं मन ही मन अभी भी सभाओं में भाग लेना चाहती थी। हर बार जब सभा और काम में टकराव होता था तो मेरा दिल ऐसा महसूस करता मानो उसे दो अलग-अलग दिशाओं में फाड़ा जा रहा हो।

अक्टूबर 2021 में मेरे काम में व्यस्तता और भी बढ़ गई। खासकर व्यस्त सीजन में मैं पूरे एक महीने तक किसी सभा में नहीं गई। उस समय मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई, लेकिन जब मैंने देखा कि कंपनी इतनी व्यस्त थी तो मैंने कोई छुट्टी लेने की हिम्मत नहीं की। हर मेकअप कलाकार के पास कंपनी द्वारा पहले से ही ग्राहक आरक्षित थे और इसलिए मेरी जगह काम करने के लिए किसी को ढूँढ़ना बिल्कुल असंभव था। कुछ ग्राहक दूसरे क्षेत्रों से भी विशेष यात्राएँ करते थे, इसलिए मैं निश्चित रूप से उन्हें मना नहीं कर सकती थी। अगर मैं इस समय छुट्टी माँगूँगी तो मेरी बॉस निश्चित रूप से नाखुश होगी। अगर बॉस मुझसे नाखुश होती है तो वह मुझे नौकरी से निकाल सकती है। इस पर विचार करने के बाद मैंने फैसला किया कि काम वाकई ज्यादा महत्वपूर्ण है। उस समय मैं इतनी व्यस्त थी कि मुझे पूरे एक महीने तक ठीक-ठाक आराम नहीं मिला। जब मेरे पास काम के बाद थोड़ा समय होता तो मेरी माँ मेरे लिए परमेश्वर के वचन पढ़ती। मैं अपने दिल को शांत नहीं कर पा रही थी और कुछ वाक्य सुनने से पहले ही मैं ऊँघने लगी। काम का दबाव कम करने की कोशिश में मैं कभी-कभी दोस्तों के साथ बाहर खाने-पीने और मौज-मस्ती करने चली जाती थी और खुद को सुन्न करने के लिए वीडियो और टीवी पर नाटक देखती थी। भले ही उस समय मुझे क्षणिक खुशी महसूस होती थी, लेकिन जब मैं वास्तविकता में लौटती थी और अपनी सारी समस्याओं का सामना करती थी तो मेरे दिल में अभी भी बहुत दबाव होता था और मैं अभी भी शरीर और दिमाग दोनों से थकी हुई महसूस करती थी। इसके बाद जब काम कम होता था तो मैं तभी सभाओं में जाती थी।

जब एक बहन को मेरी मनोदशा के बारे में पता चला तो उसने मेरे पढ़ने के लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश खोजा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का उपयोग करता है ताकि लोग और कुछ नहीं बस इन दो ही चीजों के बारे में सोचें। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते और भारी बोझ उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों पर अदृश्य बेड़ियाँ डाल देता है और इन बेड़ियों में बंधे रहकर, उनमें उन्हें तोड़ देने की न तो ताकत होती है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते रहते हैं और बड़ी ही कठिनाई से घिसटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर मानवजाति भटककर परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इस तरह, एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? शायद आज भी तुम शैतान की कुटिल मंशाओं की असलियत नहीं देख पाते, क्योंकि तुम्हें लगता है कि प्रसिद्धि और लाभ के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं होगा। और तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ ही त्याग देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, और उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और प्रकाशरहित हो जाएगा। परंतु धीरे-धीरे तुम सब लोग एक दिन समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ ऐसी भार-भरकम बेड़ियाँ हैं, जिन्हें शैतान मनुष्य पर डाल देता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का प्रतिरोध करोगे, जिन्हें शैतान तुम्हारे लिए लाता है। जब वह समय आएगा कि तुम उन सभी चीजों से खुद को मुक्त करना चाहोगे जिन्हें शैतान ने तुम्हारे मन में बैठा दिया है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में नफरत करोगे जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी तुम्हारे अंदर परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प पैदा होगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि शैतान लोगों को बाध्य करने और उन्हें परमेश्वर से दूर करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल करता है। मैंने पीछे मुड़कर बचपन के दिनों में अपने परिवार की गरीबी के बारे में सोचा और यह भी सोचा कि कैसे मेरे आस-पास के लोग मुझे नीची नजरों से देखते थे। मैंने बड़ी चीजें हासिल करने और भीड़ से अलग दिखने को अपना लक्ष्य बनाया ताकि हर कोई मुझे नए सम्मान के साथ देखे। भले ही मेरी माँ अक्सर मुझे परमेश्वर में विश्वास के बारे में बताती थी, लेकिन मैंने इसे कभी दिल से नहीं लिया। मुझे लगा कि मैं युवा हूँ और यह मेरे करियर में कड़ी मेहनत करने का समय है। मेकअप कलाकार बनने के बाद मैंने अपने कौशल और प्रदर्शन को बेहतर बनाने के बारे में सोचने के लिए अपना दिमाग खपाया, अक्सर ग्राहकों को खुश करने के लिए उनकी खुशामद की ताकि मैं काम में अपना प्रदर्शन सुधार सकूँ। अपना काम अच्छी तरह से करने और अधिक लोगों से सम्मान पाने के लिए मैं हमेशा कंपनी से जाने वाली आखिरी इंसान होती थी और काम के बाद भी अपने एकमात्र थोड़े से समय में मैं अपना प्रचार करने के लिए ग्राहकों की फोटो और वीडियो संपादित करने में मदद करती थी। मैं कभी-कभी अपने काम से जुड़ी चीजों के बारे में सपने भी देखती थी। मेरा दिल लंबे समय से प्रसिद्धि और लाभ से कसकर बँधा हुआ था। जब काम और सभाओं के बीच टकराव होता था, मुझे चिंता होती थी कि बहुत ज्यादा छुट्टी लेने से मेरी बॉस असंतुष्ट हो जाएगी और भविष्य में मेरे करियर के विकास पर असर पड़ेगा, इसलिए पूरे एक महीने तक मैं सभाओं में नहीं गई और न ही परमेश्वर के वचन पढ़े। मैं शरीर और दिमाग से थकान महसूस करती थी, टीवी पर नाटक और इंटरनेट से वीडियो देखकर अपना तनाव दूर करने की कोशिश करती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा दिल परमेश्वर से और दूर होता चला गया। मेरे दिल को और अधिक खालीपन और संताप महसूस होता था। मैंने देखा कि शैतान मुझे नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का इस्तेमाल कर रहा था। यह मुझसे मेरे काम में पूरा दिल समर्पित करवा रहा था, मुझे सभाओं में जाने या अपना कर्तव्य करने से रोक रहा था, धीरे-धीरे मुझे परमेश्वर से दूर करवा रहा था, मुझसे परमेश्वर से विश्वासघात करवा रहा था और मुझसे उद्धार का मेरा मौका हाथ से निकलवा रहा था। मुझे शैतान की साजिश की असलियत देखनी थी और जितना संभव हो सके सभाओं में जाना था। इसलिए मैंने परमेश्वर से मेरी मदद करने के लिए प्रार्थना की।

मंदी के दौर में मैं अपने काम में तालमेल बिठाने में सक्षम थी ताकि मैं सभाओं में जा सकूँ, लेकिन भीड़ वाले सीजन के दौरान जब काम में व्यस्तता होती थी, मुझे बार-बार छुट्टी माँगनी पड़ती थी, जिससे मेरी बॉस नाखुश हो जाती थी। मुझे लगता था कि छुट्टी लेने के लिए लगातार तमाम तरह के बहाने ढूँढ़ना कोई समाधान नहीं है, लेकिन अगर मुझे नौकरी बदलनी पड़े तो मैं भीड़ से अलग दिखने के अपने सपने को साकार करने का मौका गँवा दूँगी। जैसे ही मैं अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में सोचती, मैं उसे छोड़ने का साहस नहीं जुटा पाती। लेकिन अगर मैं इसी तरह चलती रही तो मैं बस परमेश्वर से और दूर होती जाऊँगी और आखिरकार उद्धार का अपना मौका गँवा दूँगी। हर दिन मेरा दिल ऐसा महसूस करता था मानो उसे दो टुकड़ों में फाड़ा जा रहा हो। मैं व्यथित और पीड़ित थी, नहीं जानती थी कि कैसे चुनना है। जब मेरी माँ को मेरी मनोदशा के बारे में पता चला तो उन्होंने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “अगर तुम सत्य और जीवन पाना चाहते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों पर एक नींव बनानी होगी। इससे तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल पाओगे, जो जीवन का एकमात्र लक्ष्य और दिशा है। अगर तुम परमेश्वर के वचनों और सत्य को अपने हृदय में नींव डालने देते हो तो तुम वास्तव में परमेश्वर के चुने हुए और पूर्व-निर्धारित लोगों में से एक बन पाओगे। इस समय, तुम सबकी नींव अभी कच्ची है। अगर शैतान की ओर से एक छोटा-सा लालच भी सामने आ जाए, तो बड़ी आपदा या परीक्षण की बात तो दूर रही, तुम इसी से डगमगाकर ठोकर खा सकते हो। यह नींव की कमी है, जो बहुत खतरनाक है! बहुत-से लोग उत्पीड़न और क्लेश से सामना होने पर लड़खड़ा जाते हैं और परमेश्वर से विश्वासघात कर देते हैं। कुछ लोग थोड़ा-सा रुतबा हासिल करने के बाद अंधाधुंध दुष्कर्म करने लगते हैं और तब उनका खुलासा कर दिया जाता है और उन्हें हटा दिया जाता है। तुम सभी इन चीजों को बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हो। इसलिए, तुम लोगों को अब पहले उस दिशा और लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए जिसका तुम जीवन में अनुसरण करोगे और जिस पर तुम चलोगे; फिर इस लक्ष्य को पाने के लिए अपने मन को शांत करो, कड़ी मेहनत करो, खुद को खपाओ, भरसक प्रयास करो और कीमत चुकाओ। अभी के लिए अन्य बातों को किनारे कर दो—अगर तुम उन्हीं को लेकर माथा-पच्ची करते रहोगे, तो इसका असर तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन पर पड़ेगा, और यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण और उद्धार के अहम मामले पर भी असर डालेगा। अगर तुम्हें काम खोजने, ढेर सारा पैसा कमाने, और अमीर बनने के बारे में सोचना है, समाज में एक मजबूत पकड़ बनाने और अपनी जगह पाने के बारे में सोचना है, अगर तुम्हें शादी करने और जीवनसाथी ढूँढ़ने के बारे में सोचना है, परिवार चलाने और उन्हें एक अच्छा जीवन देने की जिम्मेदारी उठानी है, और अगर तुम कोई नया कौशल सीखना चाहते हो, उत्कृष्टता प्राप्त करना और अन्य लोगों से बेहतर बनना चाहते हो—तो क्या इन सभी चीजों के बारे में सोचना थकाऊ नहीं होगा? तुम अपने दिमाग में कितना सब कुछ भर पाओगे? एक व्यक्ति के जीवनकाल में कितनी ऊर्जा होती है? व्यक्ति के पास कितने अच्छे वर्ष होते हैं? इस जीवन में बीस से चालीस वर्ष की आयु के लोगों में सबसे अधिक ऊर्जा होती है। इस अवधि में, तुम सबको उन सत्यों में महारत हासिल करनी होगी जिन्हें परमेश्वर के विश्वासियों को समझना चाहिए, और फिर सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के साथ-साथ उसके शोधन और परीक्षणों को स्वीकार कर उस मुकाम तक पहुँच जाना चाहिए जहाँ से तुम किसी भी परिस्थिति में परमेश्वर को न ठुकराओ। यही सबसे बुनियादी बात है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाना बहुत महत्वपूर्ण है)। मेरी माँ ने मेरे साथ संगति की, “परमेश्वर चाहता है कि हमारा जीवन मूल्यवान और सार्थक हो। तुम युवा और ऊर्जा से भरपूर हो और मैं तुम्हें परिवार में कमाऊ सदस्य के रूप में नहीं देखती। मैं सिर्फ यही आशा करती हूँ कि तुम परमेश्वर में उचित तरीके से विश्वास रखोगी, अपने सर्वोत्तम वर्षों का उपयोग परमेश्वर में विश्वास रखने और सत्य का अनुसरण करने में करोगी। यही तुम्हारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं! परमेश्वर में विश्वास के अलावा सब कुछ खोखला है। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो इसे आजमाकर देखो : भले ही तुम अपनी सारी ऊर्जा अपने काम में लगा दो, फिर जब वह दिन आएगा जब तुम कामयाबी और शोहरत हासिल कर लोगी, तुम खुश नहीं होगी। आजकल बहुत से लोग हैं जो अमीर और प्रसिद्ध हैं, लेकिन क्या वे वाकई खुश हैं? लोगों की कामनाएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं। सिर्फ परमेश्वर के वचन ही लोगों को रास्ता दिखा सकते हैं और उनके जीवन को हर दिन आरामदेह और खुशहाल बना सकते हैं।” मैंने मन ही मन सोचा, “लोगों की कामनाएँ सचमुच अंतहीन हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसा मैंने पहली बार काम करना शुरू किया था। मेरे पास अनुभव की कमी थी, मेरा वेतन कम था और मेरी कद्र नहीं की जाती थी। लेकिन लगातार प्रयास के बाद मैं आखिरकार अपने विभाग की मुख्य स्तंभ बन गई। मैंने सभी से सम्मान पाया और मेरा पारिश्रमिक भी बेहतर होता गया, लेकिन मैं अभी भी संतुष्ट नहीं थी। मैं योजना बनाती रही कि कैसे अपने कौशल को बेहतर बनाऊँ और संपर्कों को जुटाऊँ ताकि मैं अपना खुद का करियर बना सकूँ, ज्यादा से ज्यादा लोगों का सम्मान जीत सकूँ। मैंने लगातार प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना समय और प्रयास खपाया। लेकिन इन चीजों को पाने के बाद भी मैं अभी और अधिक चाहती थी, मेरी कामनाएँ बस बढ़ती जा रही थीं। नतीजतन न सिर्फ इन चीजों को प्राप्त करने से मुझे खुशी नहीं मिली, बल्कि इसके बजाय उन्होंने मुझे और भी अधिक दर्द दिया।” मैंने थोड़ा और सोचा और परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद अपने दिल में सहजता और शांति की अनुभूतियों को महसूस किया और समझा कि चाहे कितना ही पैसा, प्रसिद्धि या लाभ हो, इसके बदले थोड़ा सा भी सत्य नहीं खरीदा जा सकता है। सिर्फ अपना कर्तव्य करने से ही हमें परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने के अधिक अवसर मिल सकते हैं, सिर्फ परमेश्वर के सामने लगातार आने, परमेश्वर के वचन खाने-पीने और अपने कर्तव्य करने के दौरान परमेश्वर से प्रार्थना करने से ही हमारी जीवन प्रगति और अधिक तेजी से होगी। मेरी बहनें जो मेरे साथ ही परमेश्वर में विश्वास रखने लगी थीं, वे सभी अब कर्तव्य कर रही थीं और उनकी जीवन प्रगति बहुत तेजी से हो रही थी। वे सत्य भी अधिक से अधिक स्पष्ट रूप से समझ रही थीं। लेकिन फिर जब मैंने खुद को देखा तो मैंने पाया कि मैं हर दिन काम में कैसे व्यस्त रहती थी। मैं सभाओं में नहीं जाती थी, परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ती थी या अपने कर्तव्य नहीं करती थी। मेरे और छद्म-विश्वासियों के बीच बहुत अंतर नहीं था। अगर मैं इसी तरह चलती रही तो मैं कभी सत्य प्राप्त नहीं कर पाऊँगी! एक व्यक्ति में कितनी ऊर्जा हो सकती है? अगर वे एक चीज चाहते हैं, लेकिन दूसरी चीज को छोड़ नहीं पाते हैं तो ऐसा लगता है कि वे एक साथ दो नावों की सवारी करने की कोशिश कर रहे हैं; वे आखिरकार गिर जाएँगे। अगर मैं सही विकल्प नहीं चुन सकी तो मैं सचमुच उद्धार पाने का अपना मौका गँवा दूँगी।

कुछ समय तक अपने दिल में खुद से लड़ने के बाद मैंने कंपनी को इस्तीफा सौंप दिया। मैंने इसे कई बार सौंपा, लेकिन हर बार इसे अस्वीकार कर दिया गया। बॉस ने मुझसे कई बार बात की, “कंपनी तुम्हारे जैसी बेहतरीन कर्मचारी को खोना नहीं चाहती। अगर तुम्हारी कोई माँगें हैं तो कृपया उन्हें बताओ और हम तुम्हें संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करेंगे। अब तक इस पर टिके रहना मुश्किल रहा होगा।” उसने यह भी कहा कि वह मेरा वेतन बढ़ाएगी, मुझे तकनीकी निदेशक के पद पर पदोन्नत करेगी और मुझे मेरे मूल वेतन के अलावा 1,000 युआन की सब्सिडी भी देगी। हालाँकि मैंने मना कर दिया, लेकिन मेरे लिए अपने दिल में इसे छोड़ना मुश्किल था। अगर मैं यहीं रहूँ और काम करना जारी रखूँ तो न सिर्फ मुझे ऊँचा वेतन मिलेगा, बल्कि मुझे तकनीकी निदेशक के पद पर पदोन्नति भी मिलेगी। क्या तब मैं भीड़ से अलग दिखने के अपने सपने के करीब नहीं पहुँच जाऊँगी? इससे मेरा दृढ़ संकल्प, जो दरअसल कभी भी उतना मजबूत था ही नहीं, डगमगाने लगा। इस दौरान मेरे सहकर्मी भी अक्सर कहते थे, “तुम इतने लंबे समय से इस नौकरी में हो; तुम क्यों छोड़ना चाहती हो? अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो मैं किसी भी कीमत पर नौकरी नहीं छोड़ती। कंपनी वाकई तुम्हारी कद्र करती है और ऐसे बहुत से ग्राहक हैं, जिन्हें तुम पसंद आती हो। तुम यह सब ऐसे ही कैसे छोड़ सकती हो?” जब मैंने यह सुना तो मेरा दिल हिचकिचाने और डगमगाने लगा। मैं यहीं रहना चाहती थी और काम जारी रखना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा कि उस जीवन को चुनने का मतलब है कि मेरे पास सभा करने या अपना कर्तव्य करने के लिए कोई अवसर नहीं होगा। मैंने अपने भाई-बहनों के साथ होने वाली सभाओं के बारे में सोचा। हर कोई अपने दिल खोलकर संगति करता था, चाहे वे दर्द, कष्ट या आनंद महसूस कर रहे हों। आत्मा की ऐसी मुक्ति सिर्फ परमेश्वर के घर में ही मिल सकती है!

बाद में एक बहन मुझसे बात करने आई और हमने साथ मिलकर परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के जन्म से लेकर वर्तमान तक के दशकों के दौरान केवल उसके लिए कीमत ही नहीं चुकाता। परमेश्वर के अनुसार, तुम अनगिनत बार इस दुनिया में आए हो, और अनगिनत बार तुम्हारा पुनर्जन्म हुआ है। इसका प्रभारी कौन है? परमेश्वर इसका प्रभारी है। तुम्हारे पास इन चीजों को जानने का कोई तरीका नहीं है। हर बार जब तुम इस दुनिया में आते हो, परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से तुम्हारे लिए व्यवस्थाएं करता है : वह व्यवस्था करता है कि तुम कितने साल जियोगे, किस तरह के परिवार में पैदा होगे, कब तुम अपना घर और करियर बनाओगे, और साथ ही, तुम इस दुनिया में क्या करोगे और कैसे अपनी आजीविका चलाओगे। परमेश्वर तुम्हारे लिए आजीविका चलाने के तरीके की व्यवस्था करता है, ताकि तुम इस जीवन में बिना किसी बाधा के अपना मिशन पूरा कर सको। जहाँ तक यह बात है कि तुम अपने अगले पुनर्जन्म में क्या करोगे, इसकी व्यवस्था और उपाय परमेश्वर इस आधार पर करता है कि तुम्हारे पास क्या होना चाहिए और तुम्हें क्या दिया जाना चाहिए...। परमेश्वर तुम्हारे लिए ऐसी व्यवस्थाएँ कितनी ही बार कर चुका है, और आखिरकार तुम अंत के दिनों के युग में अपने वर्तमान परिवार में पैदा हुए हो। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए एक ऐसे परिवेश की व्यवस्था की है जिसमें तुम उस पर विश्वास कर सको; उसने तुम्हें अपनी वाणी सुनने और अपने पास वापस आने की अनुमति दी है, ताकि तुम उसका अनुसरण कर सको और उसके घर में कोई कर्तव्य निभा सको। परमेश्वर के ऐसे मार्गदर्शन की बदौलत ही तुम आज तक जीवित रहे। तुम नहीं जानते कि तुम कितनी बार मनुष्यों के बीच पैदा हुए हो, न ही तुम यह जानते हो कि कितनी बार तुम्हारा स्वरूप बदला है, तुम्हारे कितने परिवार हुए, तुम कितने युगों और कितने वंशों को जी चुके हो—लेकिन इन सबके दौरान हर पल परमेश्वर का हाथ तुम्हारी मदद करता रहा है, और वह हमेशा तुम पर निगाह रखता रहा है। एक व्यक्ति के लिए परमेश्वर कितना परिश्रम करता है! कुछ लोग कहते हैं, ‘मैं साठ साल का हूँ। साठ साल से परमेश्वर मुझ पर निगाह रख रहा है, मेरी रक्षा और मेरा मार्गदर्शन कर रहा है। बूढ़ा होने पर अगर मैं कोई कर्तव्य नहीं निभा पाया और कुछ करने लायक नहीं रहा—क्या परमेश्वर तब भी मेरी देखभाल करेगा?’ क्या यह कहना मूर्खता नहीं है? ऐसा नहीं है कि परमेश्वर बस एक जीवन-काल के लिए एक व्यक्ति पर नजर रखता और उसकी रक्षा करता और उसके भाग्य पर उसकी संप्रभुता होती है। अगर यह केवल एक जीवन-काल की, एक ही जीवन की बात होती, तो यह प्रदर्शित करना संभव नहीं होता कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और सभी चीजों पर उसकी संप्रभुता है। परमेश्वर किसी व्यक्ति के लिए जो परिश्रम करता है और जो कीमत चुकाता है, वह केवल इस बात की व्यवस्था करने के लिए नहीं है कि वह इस जीवन में क्या करेगा, बल्कि उसके अनगिनत जीवनकाल की व्यवस्था करने के लिए है। परमेश्वर इस दुनिया में पुनर्जन्म लेने वाली प्रत्येक आत्मा के लिए पूरी जिम्मेदारी लेता है। वह अपने जीवन का मूल्य चुकाते हुए, हर व्यक्ति का मार्गदर्शन करते हुए और उसके प्रत्येक जीवन को व्यवस्थित करते हुए बहुत ध्यान से काम करता है। मनुष्य की खातिर परमेश्वर इतना परिश्रम करता है और इतनी कीमत चुकाता है, और वह मनुष्य को ये सभी सत्य और यह जीवन प्रदान करता है। अगर लोग इन अंतिम दिनों में सृजित प्राणियों का कर्तव्य नहीं निभाते और वे सृष्टिकर्ता के पास नहीं लौटते—वे चाहे कितने ही जन्मों और पीढ़ियों से गुजरे हों, अगर अंत में, वे अपना कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाते और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने में विफल रहते हैं—तब क्या परमेश्वर के प्रति उनका कर्ज बहुत बड़ा नहीं हो जाएगा? क्या वे परमेश्वर की चुकाई सभी कीमतों का लाभ पाने के लिए अयोग्य नहीं हो जाएँगे? उनका जमीर इतना कमजोर होगा कि वे इंसान कहलाने लायक नहीं रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर के प्रति उनका कर्ज बहुत बड़ा हो जाएगा। इसलिए, इस जीवन में—यहाँ तुम्हारे पिछले जन्मों की बात नहीं हो रही—लेकिन इस जीवन में अगर तुम अपने मिशन की खातिर बाहरी चीजों या उन चीजों को त्यागने में नाकाम रहते हो जिनसे तुम्हें प्रेम है—जैसे सांसारिक आनंद और परिवार का प्रेम और सुख—अगर तुम उस कीमत के लिए देह-सुख नहीं छोड़ते जो परमेश्वर तुम्हारे लिए चुकाता है या तुम परमेश्वर के प्रेम का मूल्य नहीं चुकाते हो, तो तुम वाकई दुष्ट हो! दरअसल, परमेश्वर के लिए कोई भी कीमत चुकाना सार्थक है। तुम्हारे ओर से परमेश्वर जो कीमत चुकाता है उसकी तुलना में, तुम जो जरा-सी मेहनत करते हो या खुद को खपाते हो, उसका क्या मोल है? तुम्हारी जरा-सी तकलीफ का क्या मोल है? क्या तुम्हें पता है परमेश्वर ने कितनी पीड़ा सही है? परमेश्वर ने जितनी पीड़ा सही है उसकी तुलना में तुम्हारी तकलीफ की बात करना भी निरर्थक है। इसके अलावा, अपना कर्तव्य निभाकर, तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर रहे हो, और अंत में, तुम जीवित रहोगे और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करोगे। यह कितनी बड़ी आशीष है!(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने उनमें से हर व्यक्ति के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है जिन्हें उसने चुना और पूर्व-नियत किया हुआ है, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की है और उनकी रक्षा की है ताकि वे विभिन्न बुरी प्रवृत्तियों द्वारा निगले न जाएँ। अगर हम अपने जीवनकाल में अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते हैं तो हम वाकई परमेश्वर के ऋणी हैं! परमेश्वर ने मेरे लिए अपने हृदय का रक्त उँडेला है। बचपन से ही मैं अपनी माँ को परमेश्वर में विश्वास के बारे में बात करते हुए सुनती आई हूँ। परमेश्वर ने मेरे लिए इस परिवार की व्यवस्था की, हमेशा मेरी देखभाल और मेरी रक्षा की। जब मैं धन, प्रसिद्धि और लाभ में डूब गई और खुद को बाहर नहीं निकाल पाई, पीड़ित और असहाय हो गई तो यह परमेश्वर का हाथ था जिसने मुझे बचाया और मेरे भाई-बहनों का उपयोग करके मुझे परमेश्वर के सामने लाया। संगति करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से मैंने विभिन्न समस्याओं का सामना करने पर परमेश्वर से चीजों को स्वीकारना सीखा और पहले की तरह अपने भाग्य से असंतुष्ट होना बंद कर दिया। मैं कहीं अधिक आरामदेह और मुक्त ढंग से जीती थी। जब मैं सामान्य रूप से सभाओं में शामिल नहीं हो पाती थी तो चाहे कितनी भी देर हो जाए, बहन बार-बार मेरा काम खत्म होने का इंतजार करती और मेरे साथ परमेश्वर के इरादों की संगति करती। कभी-कभी वह मेरे साथ परमेश्वर के वचनों की संगति करने के लिए पत्र भी लिखती। क्या यह सब परमेश्वर द्वारा शासित और व्यवस्थित नहीं था? परमेश्वर यह देखना सहन नहीं कर सकता था कि मैं प्रसिद्धि और लाभ के अनुसरण में खुद को खो दूँ और अंततः शैतान द्वारा निगल ली जाऊँ। बार-बार उसने मेरा साथ देने और मेरी मदद करने के लिए लोगों, घटनाओं और चीजों को खड़ा किया, वह चुपचाप मेरे पूरी तरह बदल जाने का इंतजार करता रहा। अगर मैं परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाए बिना चलती रही तो फिर मुझमें मानवता की बहुत कमी होगी। परमेश्वर का कार्य जल्द ही खत्म होने वाला है और हम देख सकते हैं कि आपदाएँ और भी बदतर होती जा रही हैं। अगर मैं होश में आने से हठपूर्वक इनकार करती रही तो फिर चाहे मैं कितना ही पैसा कमा लूँ, यह किस काम का होगा? क्या यह मेरे जीवन को बचा सकता है? अगर मैं दूसरों की नजर में शक्तिशाली महिला बन भी गई तो इससे क्या होता? क्या यह मुझे बचा सकता है? मैंने प्रभु यीशु की कही हुई बात याद की : “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?(मत्ती 16:26)। उन वर्षों के बारे में सोचते हुए, जिनमें मैंने अपनी सारी ऊर्जा अपने काम में लगाई, मैंने अपना कर्तव्य निभाने और सत्य हासिल करने के बहुत सारे अवसर गँवा दिए। अब परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से मैंने लोगों को बचाने में परमेश्वर के श्रमसाध्य इरादों को समझा। सिर्फ अपना कर्तव्य निभाने और शैतान द्वारा मुझ पर लगाए गए बंधन और पीड़ा को पूरी तरह से दूर करने से ही मुझे बचाए जाने और जीवित रहने का अवसर मिल सकता था। इसके बाद मैंने इस्तीफे को लेकर रोज परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे विनती की कि वह मेरे दिल की रक्षा करे और इसे डगमगाने से रोके।

बाद में मैंने फिर से अपना इस्तीफा सौंप दिया और बॉस ने कहा, “क्या तुमने वाकई अपना मन बना लिया है? हम एक और स्टूडियो खोलने की तैयारी कर रहे हैं और चाहते हैं कि हमारे सबसे बेहतरीन कर्मचारी इसमें काम करें। तुम पहली इंसान हो जिसके बारे में हमने सोचा है। अगर कोई और होता तो हमारे दिमाग को चैन न आता। तुम बहुत सारे सालों से कंपनी के साथ हो और नए स्टूडियो में हिस्सेदारी के लिए योग्य हो। जरा सोचो, इतनी कम उम्र में अपनी कोई चीज होना बाद में कितना अच्छा रहेगा। तुम पुनर्विचार क्यों नहीं करती हो? मुख्य बात यह है कि हम इतने साल से साथ हैं और अब हमारे बीच भावनात्मक बंधन है।” बोलते-बोलते वह सिसकने और रोने लगी। उसने जो शर्तें प्रस्तावित की थीं, वे बिल्कुल वही थीं जो मैं इतने समय से खोज रही थी और मेरे पास जो पैसा था वह निवेश के लिए बिल्कुल सही रकम था। अगर मैं थोड़ी देर और टिकी रहती तो मैं सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त करती और ज्यादा से ज्यादा लोग मुझसे ईर्ष्या करते। मैं अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने कितनी अच्छी दिखती! जैसे ही मैं अपने मन में अपने शानदार भविष्य के बारे में कल्पना कर रही थी, मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे विचार परमेश्वर के इरादे के अनुरूप नहीं हैं। मैंने जल्दी से परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, मैं जानती हूँ कि यह एक और प्रलोभन है जो मेरे सामने आया है। शैतान फिर से बॉस की कही बातों का इस्तेमाल मेरे दिल को परेशान करने, मुझे प्रसिद्धि, लाभ और प्रतिष्ठा पाने के लिए प्रेरित करने के लिए कर रहा है। लेकिन चाहे कुछ भी हो, इस बार मैं शैतान से हमेशा के लिए नाता तोड़ लूँगी और अपनी गवाही में अडिग रहूँगी ताकि तुम्हारे हृदय को सांत्वना दे सकूँ।” प्रार्थना करते समय मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पहले पढ़ा था : “जब तुम लोगों द्वारा जीवन में अनुसरण किए जा रहे अपने विभिन्न लक्ष्यों और उनके जीने के विभिन्न तरीकों की बार-बार जाँच करोगे और इनका सावधानीपूर्वक गहन-विश्लेषण करोगे तो तुम यह पाओगे कि उनमें से एक भी सृष्टिकर्ता के उस मूल इरादे के अनुरूप नहीं है जिसके साथ उसने मानवजाति का सृजन किया था। ये सारी चीजें लोगों को सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और उसकी देखभाल से दूर करती हैं; ये सभी ऐसे जाल हैं जो लोगों को भ्रष्ट बनने का कारण बनते हैं और उन्हें नरक में ले जाते हैं। इस बात को मान लेने के बाद तुम्हें जीवन के अपने पुराने दृष्टिकोण को त्याग देना चाहिए, विभिन्न जालों से दूर रहना चाहिए, तुम्हें परमेश्वर को तुम्हारे जीवन का नियंत्रण करने देना चाहिए और इसके लिए व्यवस्थाएँ करने देना चाहिए, केवल परमेश्वर के आयोजनों और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए, खुद से कोई चुनाव नहीं करने चाहिए और एक ऐसा इंसान बनना चाहिए जो परमेश्वर की आराधना करता हो(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। शैतान लोगों को पंगु बनाने के लिए सभी प्रकार के विचारों और सोच का इस्तेमाल करता है, उन्हें प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागने के लिए लुभाता है, उन्हें अंदर ही अंदर फँसाता है, ताकि वे परमेश्वर को नकार दें, परमेश्वर को धोखा दें और बचाए जाने का कोई भी अवसर गँवा दें। ये शैतान की भयानक मंशाएँ हैं। अब बॉस ने मुझे आकर्षित करने के लिए ये जो शर्तें पेश की थीं क्या वे एक जाल नहीं थीं, जो मुझे पतन में जाने को लुभा रही थीं? मैं होश में आने से अब और हठपूर्वक इनकार कैसे कर सकती थी? परमेश्वर चाहता है कि हम उसकी संप्रभुता के प्रति समर्पण करें और एक सृजित प्राणी के कर्तव्य निभाएँ। सिर्फ इसी तरह से हम सत्य समझ सकते हैं, मानव के समान जी सकते हैं और आखिरकार परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। इसलिए मैंने अपनी बॉस से दृढ़ता से कहा, “सभी लोगों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएँ होती हैं और मुझे एक नया परिवेश चाहिए।” मेरी बॉस ने सहमति जताई। कंपनी छोड़ने के बाद मैंने दिल में कहीं अधिक सुकून महसूस किया। इसके बाद से मैं भाई-बहनों की तरह सत्य का उचित रूप से अनुसरण कर सकती थी।

इस अनुभव के बाद मैंने शैतान की भयानक मंशाओं को साफ देखा। लोगों से शैतान प्रसिद्धि और लाभ का अनुसरण कराता है, जिसका लक्ष्य लोगों को परमेश्वर से दूर रखना और उसे धोखा देना, पूरी तरह से अपनी शक्ति के अधीन लाना और आखिरकार अपने साथ नरक में ले जाना है। अगर लोग खुद पर निर्भर रहते हैं तो उनके पास शैतान की साजिशों पर विजय पाने का कोई रास्ता नहीं बचता। सिर्फ परमेश्वर के वचन पढ़कर और सत्य समझकर ही लोग चीजों की असलियत देख सकते हैं और उन गलत मार्गों को अलविदा कह सकते हैं जिनमें वे अतीत में जीते थे। सिर्फ सत्य का अनुसरण करके ही हम परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। अपनी नौकरी त्यागने के बाद भले ही मुझे ज्यादा लोगों से सम्मान नहीं मिलता था और मेरा भौतिक जीवन कुछ अभाव में था, फिर भी मेरी आत्मा में जो सहजता और शांति थी उसका लेनदेन कितनी भी मात्रा में धन, प्रसिद्धि या लाभ से नहीं किया जा सकता था। मैंने आखिरकार प्रसिद्धि और लाभ का बंधन तोड़ दिया और कलीसिया में अपना कर्तव्य अच्छे से निभाया। परमेश्वर को उसके उद्धार के लिए धन्यवाद!

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