प्रश्न 2: प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुए और हमारे लिये एक स्थान तैयार करने स्वर्ग लौटे, इसका अर्थ ये हुआ कि वो स्थान स्वर्ग में है। अगर प्रभु लौट आए हैं, तो उनका आना, हमें स्वर्ग में आरोहित करने के लिये होना चाहिये, पहले हमें प्रभु से मिलवाने, आसमान में ऊपर उठाने के लिये होना चाहिये। अब तुम लोग इस बात की गवाही दे रहे हो कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, वे देहधारी हुए हैं, और धरती पर वचन बोलने और कार्य करने में लगे हैं। तो वो हमें स्वर्ग के राज्य में कैसे लेकर जाएंगे? स्वर्ग का राज्य धरती पर है या स्वर्ग में?
उत्तर: जहां तक सवाल ये है कि स्वर्ग का राज्य धरती पर या स्वर्ग में, पहले तो ये समझना ज़रूरी है कि असल में स्वर्ग का राज्य है क्या? ये तो सब जानते हैं कि "स्वर्ग" का मतलब है स्वर्गिक, परमेश्वर से संबंधित। तो स्वाभाविक है, स्वर्ग के राज्य का मतलब परमेश्वर का राज्य, जहां परमेश्वर की सत्ता है, ये मसीह का राज्य है। तो फिर परमेश्वर का राज्य धरती पर हुआ या स्वर्ग में? आओ पहले देखें कि प्रभु की प्रार्थना क्या कहती है: "हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती 6:9-10)। क्या प्रभु यीशु के वचन एकदम स्पष्ट नहीं हैं? प्रभु चाहते हैं कि हम प्रार्थना करें, कि परमेश्वर का राज्य धरती पर आ जाए, ताकि धरती पर उनकी इच्छा पूरी की जा सके। प्रभु यीशु ने ये नहीं कहा कि परमेश्वर का राज्य स्वर्ग में बनाया जाएगा, और उन्होंने ख़ास तौर से ये नहीं चाहा कि हम उस दिन के लिये उम्मीद और प्रार्थना करें, जब हमें स्वर्गारोहित किया जाएगा। तो क्या हमेशा ये उम्मीद करना कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिये हमें स्वर्ग में ले जाया जाएगा, प्रभु के वचनों और उनकी इच्छा के एकदम विपरीत नहीं है? आइये, प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी पर नज़र डालें। "जब सातवें दूत ने तुरही फूँकी, तो स्वर्ग में इस विषय के बड़े बड़े शब्द होने लगे: 'जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया, और वह युगानुयुग राज्य करेगा'" (प्रकाशितवाक्य 11:15)। "फिर मैं ने पवित्र नगर नये यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्वर के पास से उतरते देखा। वह उस दुल्हिन के समान थी जो अपने पति के लिये सिंगार किए हो। फिर मैं ने सिंहासन में से किसी को ऊँचे शब्द से यह कहते हुए सुना, देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है। वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उनके साथ रहेगा और उनका परमेश्वर होगा। वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं" (प्रकाशितवाक्य 21:2-4)। इन दोनों अंशों में इन दोनों बातों का उल्लेख है: "जगत का राज्य हमारे प्रभु का और उसके मसीह का हो गया।" "नये यरूशलेम को स्वर्ग से परमेश्वर के पास से उतरते देखा।" "परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है।" इसमें धरती पर साकार हो रहे मसीह के राज्य का उल्लेख है। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य धरती पर मसीह का राज्य स्थापित करने के लिये है। इससे पहले कि धरती पर महाविपत्ति आए, परमेश्वर विजेताओं का एक समूह बना लेंगे, और यह समूह परमेश्वर के राज्य का स्तंभ होगा। ये ऐसे लोग होंगे जो मसीह के राज्य में परमेश्वर के साथ-साथ शासन करेंगे। विपत्ति में वे ही परमेश्वर के राज्य के लोग होंगे, जिन्हें परमेश्वर ने पूर्ण किया है। जिन लोगों ने अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं किया है, उन्हें परमेश्वर के द्वारा उजागर किया जाएगा और हटा दिया जाएगा, और वे मसीह के राज्य का हिस्सा नहीं बनेंगे। प्रकाशित-वाक्य की पुस्तक की भविष्यवाणियां देहधारी परमेश्वर के अंत के दिनों के कथनों से शुरू होती हैं, और महाविपत्ति के अंत तक जाती हैं जब धरती पर मसीह का राज्य साकार होगा, और फिर वहां से नए स्वर्ग और नई धरती के अनंतकाल तक जाती हैं। जब ये सारी भविष्यवाणियां पूरी हो जाएंगी तो परमेश्वर की प्रबंधन योजना भी पूर्ण हो जाएगी। तो जो लोग अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करते हैं, अगर वे शुद्ध और पूर्ण किये जा चुके हैं, तो वे मसीह के राज्य के लोग होंगे। विपत्ति से पहले, परमेश्वर इन्हीं लोगों से विजेताओं का समूह बनाएंगे। ये वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को सुन पाते हैं, उनका आज्ञापालन करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। महाविपत्ति आने पर, परमेश्वर इनकी रक्षा करेंगे और अपने साथ रखेंगे। लेकिन जो लोग अस्पष्टता और ख़्यालों में खोए रहते हैं, जो सिर्फ़ आसमान में आरोहित होने और प्रभु से मिलने को लालायित रहते हैं लेकिन अंत के दिनों में मसीह के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार नहीं करते, उनसे विपत्ति में निपटा जाएगा। अधिकतर लोगों का विनाश हो जाएगा और थोड़े-से लोग विपत्ति की भट्टी में तपकर परमेश्वर की ओर मुड़ जाएंगे। ये सारे सही काम परमेश्वर बहुत जल्दी करने जा रहे हैं।
प्रभु यीशु ने हमसे वादा किया था: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु के वचनों में वाकई कुछ रहस्य छिपे हैं। अगर इन्हें हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से देखें, तो प्रभु यीशु स्वर्ग लौट गए हैं, इसलिए वे हमारे लिये निश्चित तौर पर कोई जगह बना रहे हैं। लेकिन इस तरह से देखना बहुत बड़ी भूल होगी। परमेश्वर के कार्य के मामले में, हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि इंसान उनके कार्यों की थाह नहीं पा सकता। इन चीज़ों के बारे में हम तभी समझ पाएंगे जब वे उन्हें पूरा कर लेंगे और उन्हें हमारे सामने रख दिया जाएगा। मैं भी इन्हें तब तक नहीं समझ पाई जब तक कि मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार नहीं कर लिया, और उस कार्य की सच्चाई को नहीं देख लिया जो उन्होंने पूरा कर लिया है। प्रभु यीशु का हमारे लिये जगह तैयार करने के लिये लौटना दरअसल, हमारे लिये अंत के दिनों में जन्म लेने, अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने, उनके न्याय की प्रक्रिया से गुज़रने, शुद्ध और पूर्ण किये जाने, और आखिर में मसीह के राज्य में ले जाए जाने के लिए था। इस बारे में सोचिये। परमेश्वर देहधारी हुए हैं और इंसानों के बीच रह रहे हैं, उन्होंने अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिये सत्य व्यक्त किया है, और हमने परमेश्वर की वाणी सुन ली है और हमें उनके सामने खड़ा होने के लिये उन्नत किया गया है। क्या यह उनका हमसे मिलने आना नहीं है? हम परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, हम उनके वचनों का स्वाद लेते हैं, हम उनके कार्य का अनुभव करते हैं, और हम परमेश्वर के साथ भोज में शामिल होते हैं। क्या यह प्रभु से मिलना नहीं है? जब परमेश्वर का कार्य पूरा होने का दिन आएगा, जब हम शुद्ध और पूर्ण कर दिए जाएंगे, तो हमें परमेश्वर के राज्य में लाया जाएगा। परमेश्वर के राज्य में मसीह का शासन है, और हम परमेश्वर के राज्य में उनके लोगों की तरह, उनकी आराधना करेंगे। क्या इससे प्रभु की ये भविष्यवाणी पूरी नहीं होती, "जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो"?
आइये, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़ें, और देखें कि धरती पर मसीह का राज्य कैसे साकार होगा, राज्य की सुंदरता कैसी होगी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "राज्य मनुष्यों के मध्य विस्तार पा रहा है, यह मनुष्यों के मध्य बन रहा है और यह मनुष्यों के मध्य खड़ा हो रहा है; ऐसी कोई भी शक्ति नहीं है जो मेरे राज्य को नष्ट कर सके। ... अब मैं अपने लोगों के मध्य चल रहा हूँ, और उनके मध्य रह रहा हूँ। आज जो लोग मेरे लिए वास्तविक प्रेम रखते हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। धन्य हैं वे लोग जो मुझे समर्पित हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में रहेंगे। धन्य हैं वे लोग जो मुझे जानते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में शक्ति प्राप्त करेंगे। धन्य हैं वे जो मुझे खोजते हैं, वे निश्चय ही शैतान के बंधनों से स्वतंत्र होंगे और मेरे आशीषों का आनन्द लेंगे। धन्य हैं वे लोग जो अपनी दैहिक-इच्छाओं को मेरे लिए त्यागते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे राज्य की प्रचुरता पाएंगे। जो लोग मेरी खातिर दौड़-भाग करते हैं उन्हें मैं याद रखूंगा, जो लोग मेरे लिए व्यय करते हैं, मैं उन्हें आनन्द से गले लगाऊंगा, और जो लोग मुझे भेंट देते हैं, मैं उन्हें आनन्द दूंगा। जो लोग मेरे वचनों में आनन्द प्राप्त करते हैं, उन्हें मैं आशीष दूंगा; वे निश्चय ही ऐसे खम्भे होंगे जो मेरे राज्य में शहतीर को थामेंगे, वे निश्चय ही मेरे घर में अतुलनीय प्रचुरता को प्राप्त करेंगे और उनके साथ कोई तुलना नहीं कर पाएगा। क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)।
"मेरे वचन ज्यों-ज्यों पूर्णता तक पहुँचते हैं, पृथ्वी पर धीरे-धीरे राज्य बनता जाता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्यता की ओर लौटता है, और इस प्रकार पृथ्वी पर वह राज्य स्थापित हो जाता है जो मेरे हृदय में है। राज्य में, परमेश्वर के सभी लोग सामान्य मनुष्य का जीवन पुनः प्राप्त कर लेते हैं। पाले वाली शीत ऋतु विदा हुई, उसका स्थान वासंती नगरों के संसार ने ले लिया है, जहाँ पूरे साल बहार रहती है। मनुष्य का उदास और अभागा संसार अब लोगों के सामने नहीं रह गया है, और न ही वे मनुष्य के संसार की ठण्डी सिहरन सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ते नहीं हैं, देश एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध में नहीं उतरते हैं, नरसंहार अब और नहीं हैं और न वह लहू जो नरसंहार से बहता है; सारे भूभागों में प्रसन्नता छाई है, और हर जगह मनुष्यों की आपसी गर्माहट से भरी है। मैं पूरे संसार में घूमता हूँ, मैं ऊपर अपने सिंहासन से आनंदित होता हूँ, और मैं तारों के बीच रहता हूँ। और स्वर्गदूत मेरे लिए नए-नए गीत और नए-नए नृत्य प्रस्तुत करते हैं। उनके चेहरों से उनकी क्षणभंगुरता के कारण अब और आँसू नहीं ढलकते हैं। अब मुझे स्वर्गदूतों के रोने की आवाज़ नहीं सुनाई देती, और अब कोई मुझसे कठिनाइयों की शिकायत नहीं करता। आज, तुम सब लोग मेरे सामने रहते हो; कल तुम सब लोग मेरे राज्य में रहोगे। क्या यह सबसे बड़ा आशीष नहीं है जो मैं मनुष्य को देता हूँ?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20)।
"एक बार जब विजय का कार्य पूरा कर लिया जाएगा, तब मनुष्य को एक सुंदर संसार में लाया जाएगा। निस्संदेह, यह जीवन तब भी पृथ्वी पर ही होगा, किंतु यह मनुष्य के आज के जीवन के बिलकुल विपरीत होगा। यह वह जीवन है, जो संपूर्ण मानव-जाति पर विजय प्राप्त कर लिए जाने के बाद मानव-जाति के पास होगा, यह पृथ्वी पर मनुष्य के लिए एक नई शुरुआत होगी, और मनुष्य के पास इस प्रकार का जीवन होना इस बात का सबूत होगा कि मनुष्य ने एक नए और सुंदर क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। यह पृथ्वी पर मनुष्य और परमेश्वर के जीवन की शुरुआत होगी। ऐसे सुंदर जीवन का आधार ऐसा होना चाहिए, कि मनुष्य को शुद्ध कर दिए जाने और उस पर विजय पा लिए जाने के बाद वह परमेश्वर के सम्मुख समर्पण कर दे। और इसलिए, मानव-जाति के अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करने से पहले विजय का कार्य परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है। ऐसा जीवन ही पृथ्वी पर मनुष्य का भविष्य का जीवन है, पृथ्वी पर सबसे अधिक सुंदर जीवन, उस प्रकार का जीवन जिसकी लालसा मनुष्य करता है, और उस प्रकार का जीवन, जिसे मनुष्य ने संसार के इतिहास में पहले कभी प्राप्त नहीं किया है। यह 6,000 वर्षों के प्रबधंन के कार्य का अंतिम परिणाम है, यह वही है जिसकी मानव-जाति सर्वाधिक अभिलाषा करती है, और यह मनुष्य के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा भी है। किंतु यह प्रतिज्ञा तुरंत पूरी नहीं हो सकती : मनुष्य भविष्य की मंज़िल में केवल तभी प्रवेश करेगा, जब अंत के दिनों का कार्य पूरा कर लिया जाएगा और उस पर पूरी तरह से विजय पा ली जाएगी, अर्थात् जब शैतान को पूरी तरह से पराजित कर दिया जाएगा। शुद्ध कर दिए जाने के बाद मनुष्य पापपूर्ण स्वभाव से रहित हो जाएगा, क्योंकि परमेश्वर ने शैतान को पराजित कर दिया होगा, अर्थात् विरोधी ताक़तों द्वारा कोई अतिक्रमण नहीं होगा, और कोई विरोधी ताक़तें नहीं होंगी जो मनुष्य की देह पर आक्रमण कर सकें। और इसलिए मनुष्य स्वतंत्र और पवित्र होगा—वह शाश्वतता में प्रवेश कर चुका होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)।
"जब मनुष्यों को उनकी मूल समानता में बहाल कर लिया जाएगा, और जब वे अपने-अपने कर्तव्य निभा सकेंगे, अपने उचित स्थानों पर बने रह सकेंगे और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं को समर्पण कर सकेंगे, तब परमेश्वर ने पृथ्वी पर उन लोगों का एक समूह प्राप्त कर लिया होगा, जो उसकी आराधना करते हैं और उसने पृथ्वी पर एक राज्य भी स्थापित कर लिया होगा, जो उसकी आराधना करता है। पृथ्वी पर उसकी अनंत विजय होगी और वे सभी जो उसके विरोध में हैं, अनंतकाल के लिए नष्ट हो जाएँगे। इससे मनुष्य का सृजन करने की उसकी मूल इच्छा बहाल होगी; इससे सब चीज़ों के सृजन की उसकी मूल इच्छा बहाल होगी और इससे पृथ्वी पर सभी चीज़ों पर और शत्रुओं के बीच उसका अधिकार भी बहाल हो जाएगा। ये उसकी संपूर्ण विजय के प्रतीक होंगे। इसके बाद से मानवता विश्राम में प्रवेश करेगी और ऐसे जीवन में प्रवेश करेगी, जो सही मार्ग पर है। मानवता के साथ परमेश्वर भी अनंत विश्राम में प्रवेश करेगा और मनुष्यों और स्वयं के साथ एक अनंत जीवन का आरंभ करेगा। पृथ्वी पर से गंदगी और अवज्ञा ग़ायब हो जाएगी, पृथ्वी पर से सारा विलाप भी समाप्त हो जाएगा और परमेश्वर का विरोध करने वाली प्रत्येक चीज़ का अस्तित्व नहीं रहेगा। केवल परमेश्वर और वही लोग बचेंगे, जिनका उसने उद्धार किया है; केवल उसकी सृष्टि ही बचेगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)।
"मैं सभी मनुष्यों से ऊपर चलता हूँ और हर कहीं देख रहा हूँ। कुछ भी कभी पुराना दिखाई नहीं देता है, और कोई भी व्यक्ति वैसा नहीं है जैसा वह हुआ करता था। मैं सिंहासन पर विश्राम करता हूँ, मैं संपूर्ण ब्रह्माण्ड के ऊपर आराम से पीठ टिकाता हूँ, और मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ, क्योंकि सभी चीज़ों ने अपनी पवित्रता पुनः प्राप्त कर ली है, और मैं एक बार फिर सिय्योन के भीतर शांतिपूर्वक निवास कर सकता हूँ, और पृथ्वी पर लोग मेरे मार्गदर्शन के अधीन शांत, संतुष्ट जीवन जी सकते हैं। सभी लोग सब कुछ मेरे हाथों में प्रबंधित कर रहे हैं, सभी लोगों ने अपनी पूर्व बुद्धिमता और मूल प्रकटन पुनः प्राप्त कर लिया है; वे धूल से अब और ढके नहीं हैं, बल्कि, मेरे राज्य में, हरिताश्म के समान पवित्र हैं, प्रत्येक का चेहरा मनुष्य के हृदय के भीतर पवित्र जन के चेहरे के समान है, क्योंकि मनुष्यों के बीच मेरा राज्य स्थापित हो गया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 16)।
"दुनिया भर में, केवल परमेश्वर और मनुष्य हैं। कोई गुबार या गंदगी नहीं है, सब कुछ नया हो गया है, जैसे कि आकाश के नीचे हरे-भरे चरागाह में लेटा हुआ भेड़ का कोई छोटा-सा बच्चा, परमेश्वर के सभी अनुग्रहों का आनंद ले रहा हो। हरियाली के आगमन की वजह से जीवन की साँस दमकने लगती है, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के साथ सदा-सर्वदा रहने के लिए दुनिया में आता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे परमेश्वर के मुख से कहा गया था कि 'मैं एक बार फिर से सिय्योन के भीतर शांतिपूर्वक निवास कर सकता हूँ।' यह शैतान की हार का प्रतीक है, यह परमेश्वर के विश्राम का दिन है, और सभी लोग इस दिन की प्रशंसा और घोषणा करेंगे और स्मरणोत्सव मनाया जाएगा। जब परमेश्वर सिंहासन पर आराम करता है तभी वह पृथ्वी पर अपना कार्य भी समाप्त कर लेता है, और इसी क्षण इंसान को परमेश्वर के रहस्य भी दिखाए जाते हैं; परमेश्वर और मनुष्य हमेशा सामंजस्य में रहेंगे, कभी अलग नहीं होंगे—ऐसे हैं राज्य के सुंदर दृश्य!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 16)।
"तड़प" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश