प्रश्न 1: आप सब गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, और उन्होंने प्रकट होकर चीन में कार्य किया है, मुझे विश्वास है कि यह सच है, क्योंकि प्रभु यीशु ने बाइबल में यह भविष्यवाणी की थी: "क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा" (मत्ती 24:27)। लेकिन हमें लगता है कि प्रभु हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाने के लिए अंत के दिनों में वापस आयेंगे, या कम-से-कम वे हमें बादलों पर ही उठा लें ताकि हम हवा में उनसे मिल तो सकें। जैसा कि बाइबल में पौलुस ने कहा था, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उनके साथ बादलों पर उठा लिए जायेंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें: और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। लेकिन जैसा बाइबल में बताया गया है, प्रभु वैसे क्यों नहीं आये? अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य का हमारे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश से क्या लेना-देना है?

उत्तर: बहुत से लोग मानते हैं कि जब प्रभु का पुनरागमन होगा, तो वे विश्वासियों से मिलने के लिए उनको आकाश में उठा लेंगे। आप सब जो कह रहे हैं, वह पौलुस के कथन पर आधारित है, प्रभु के वचन पर नहीं। हमें कोई अनुमान नहीं कि पौलुस के कथन इंसानी दिमाग की उपज हैं या पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से मिले हैं। अपने पुनरागमन की भविष्यवाणी करते हुए प्रभु यीशु ने यह कहा था: "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता" (मत्ती: 24:36)। प्रभु ने यह साफ़ तौर पर कहा था। जब उनका पुनरागमन होगा, तो कोई नहीं जान पायेगा। परमेश्वर के सिवाय, फ़रिश्तों तक को पता नहीं चलेगा। आप सबके विचार से, प्रभु में विश्वास करने वाले लोगों को, उनसे बादलों में मिलने के लिए आकाश में उठा लिया जाएगा। क्या परमेश्वर के वचन में इसका कोई आधार है? यदि आप सब प्रभु के वचन के बजाय पौलुस के कथन पर भरोसा करते हैं, तो आप सब बिलकुल गलत हैं! पौलुस महज एक मनुष्य थे; वे प्रभु यीशु प्रतिनिधि नहीं थे। उनको यह कैसे पता चला कि प्रभु अपने पुनरागमन के समय अपने विश्वासियों को बादलों पर उठा लेंगे? पौलुस के कथन का आधार क्या था? क्या हमें पौलुस के कहे अनुसार प्रभु के पुनरागमन की प्रतीक्षा करनी होगी? हम प्रभु यीशु के वचन के अनुसार प्रभु का स्वागत क्यों नहीं करते? अपने पुनरागमन की भविष्यवाणी करते हुए प्रभु यीशु ने यह कहा था: "यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा, और तू कदापि न जान सकेगा कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा" (प्रकाशितवाक्य 3:3)। प्रभु में विश्वास की बात पर, प्रभु यीशु के वचन पर भरोसा न कर कोई सिर्फ पौलुस के कथन को माने, तो उसका क्या अर्थ है? क्या इसका अर्थ यह है कि पौलुस ही प्रभु और मसीहा थे? तो आप सब आखिर किनमें विश्वास करते हैं, पौलुस में या प्रभु यीशु में? क्या यह बात हमारे चिंतन के योग्य नहीं है? प्रभु का पुनरागमन स्वर्ग के राज्य में संतों का स्वागत करने के लिए है। यह बिलकुल निश्चित है। लेकिन कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि प्रभु, स्वर्ग के राज्य में अपने अनुयायियों का स्‍वागत कैसे करेंगे। अगर हम इस बात को समझने के लिए मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं का सहारा लें, यह मान कर कि प्रभु उनसे मिलने के लिए उन सबको आकाश में उठा लेंगे, तो यह बहुत अवास्तविक सोच होगी। हम सबने देखा है कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर चीन में प्रकट होकर मनुष्य के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए हर प्रकार के सत्य व्यक्त करते हैं; वे अपने सिंहासन के सामने लाई गयी सभी बुद्धिमान कुवांरियों का शुद्धिकरण कर उनको परिपूर्ण करने के कार्य में लगे हैं। परमेश्वर लोगों के इस समूह को तबाही मचने से पहले विजेता बनाने पर दृढ़ हैं, विजेताओं का समूह बनाने के पश्‍चात्, परमेश्‍वर आपदाएं लाकर इस दुष्‍ट मानवजाति को नष्‍ट कर देता है जो पागलों की तरह परमेश्‍वर का विरोध करती है। तबाही के बाद, परमेश्वर सभी लोगों और राष्ट्रों के समक्ष प्रकट होंगे। प्रभु अपने पुनरागमन के बाद, अपने अनुयायियों को मसीहा के राज्य में कैसे लेकर आयेंगे, क्या यही उनका असली तरीका नहीं है? मुझे लगता है कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य ने प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरी तरह साकार किया है। "मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊंगा; कि जहां मैं रहूँ, वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। चूंकि प्रभु पृथ्वी पर पहले से उपस्थित हैं, फिर भी हम आकाश में ऊपर जाना चाहते हैं, तो क्या हम गलत दिशा में नहीं जा रहे? चूंकि प्रभु पृथ्वी पर आ चुके हैं, परमेश्वर ने हमारे लिए यह भी पहले से तय कर दिया है कि हम अंत के दिनों में जन्म लें, ताकि हमें उनके सिंहासन के सामने लाया जा सके और अंत के दिनों में उनका न्याय का कार्य हम ग्रहण कर सकें, उनके द्वारा हमारा शुद्धिकरण हो सके, हमें पूर्ण बनाया जा सके और अंत में हम मसीहा के राज्य में प्रवेश पा सकें। हमारे लिए प्रभु ने कैसा स्थान तैयार किया है? इसका संदर्भ पृथ्वी पर मसीहा के राज्‍य को साकार करने से हैं, इस भविष्यवाणी को पूरा करते हुए, "कि जहां मैं रहूँ, वहाँ तुम भी रहो।" इससे साबित होता है कि जब अंत के दिनों में प्रभु का पुनरागमन होगा, तो वे अपने राज्य में आयेंगे। परमेश्वर का न्याय का कार्य, जो परमेश्वर के आवास से आरंभ होता है, उसका उद्देश्य बुद्धिमान कुवांरियों में से विजेताओं का एक समूह तैयार करना है, जो परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को ग्रहण करने वाले पहले लोग होंगे और फिर वे एक बादल पर सवार उतरते हुए सबके सामने खुले रूप में प्रकट होंगे। इस प्रकार मसीहा का राज्‍य पृथ्वी पर साकार होगा। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की सच्चाई प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों को पूरी तरह से साकार करती है। परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव कर के ही हम बाइबल की भविष्यवाणियों को साकार होता देख सकते हैं। मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करके भविष्यवाणियों का अंदाजा लगाना मूर्खतापूर्ण और बेतुका है! प्रभु के पुनरागमन पर उनसे मिलने के लिए, हमें परमेश्वर के वचन पर भरोसा करना चाहिए, मनुष्य के कथन पर नहीं। अगर हम मनुष्य की बात पर भरोसा करेंगे, तो हम प्रभु के पुनरागमन पर आरोहण का मौक़ा चूक जायेंगे और उनसे मिल नहीं पायेंगे। तब हम खुद को ही दोष देते रहेंगे!

"स्वर्गिक राज्य का मेरा स्वप्न" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 3: जैसा कि बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी: "हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा" (प्रेरितों 1:11)। प्रभु यीशु के जी उठने के बाद, आकाश में जो आरोहित हुआ, वह उनका आध्यात्मिक शरीर था। जब प्रभु लौटेंगे, तो वह उनका आध्यात्मिक शरीर होना चाहिए, जो एक बादल पर नीचे आयेगा। परंतु आप लोग यह गवाही देते हैं कि अंत के दिनों में न्याय कार्य करने के लिए परमेश्वर पुन: देहधारी – मनुष्य के पुत्र – हो गए हैं। स्वाभाविक रूप से यह बाइबल से असंगत है। पादरी और एल्डर्स अक्सर कहते हैं कि प्रभु के देहधारी हो कर आने के बारे में कोई भी गवाही झूठी है। इसलिए मैं समझता हूँ कि प्रभु के लिए देहधारी हो कर लौटना असंभव है। मैं आप लोगों की गवाही स्वीकार नहीं कर सकता। मैं बस प्रभु के बादल पर उतरने और हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाने की प्रतीक्षा करूंगा। निश्चित रूप से यह गलत नहीं हो सकता!

अगला: प्रश्न 2: प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुए और हमारे लिये एक स्थान तैयार करने स्वर्ग लौटे, इसका अर्थ ये हुआ कि वो स्थान स्वर्ग में है। अगर प्रभु लौट आए हैं, तो उनका आना, हमें स्वर्ग में आरोहित करने के लिये होना चाहिये, पहले हमें प्रभु से मिलवाने, आसमान में ऊपर उठाने के लिये होना चाहिये। अब तुम लोग इस बात की गवाही दे रहे हो कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, वे देहधारी हुए हैं, और धरती पर वचन बोलने और कार्य करने में लगे हैं। तो वो हमें स्वर्ग के राज्य में कैसे लेकर जाएंगे? स्वर्ग का राज्य धरती पर है या स्वर्ग में?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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