297 दुखद दुनिया के लिए एक विलाप
1
समय और जीवन से गुज़रते हुए, एक सपने की तरह साल बदलते हैं।
शोहरत और दौलत के लिए दौड़ते-भागते।
जीवन दैहिक चीज़ों के लिए बीता है।
सच को कुछ भी नहीं दिया गया है।
इसी तरह, गुज़र जाती है उनकी जवानी।
परमेश्वर की पीड़ा, उसकी महान सुंदरता का कोई ख़्याल नहीं।
खाली दिन बस गुज़रते जाते हैं।
परमेश्वर को नहीं दिया जाता है एक भी दिन।
कभी भी परमेश्वर के होंठों को मुस्कुराहट नहीं देते हैं।
खोखले और आम रह जाते हैं।
किसने समझा है परमेश्वर का दिल?
कौन बांट सकता है परमेश्वर के साथ जीवन और मृत्यु?
किसने उसके सभी वचनों को लगाया है दिल से?
किसने किया समर्पित परमेश्वर को अपना सब कुछ?
2
इंसान के पास है अपना घर,
मिलता है सुकून उसे वहां, सुकून उसे वहां।
फिर भी, परमेश्वर के पास नहीं आराम करने की कोई जगह।
कितने लोग करते हैं ख़ुद को समर्पित?
सह चुका है वो बहुत रूखापन,
सह चुका है वो पूरी दुनिया की पीड़ा,
फिर भी है बहुत मुश्किल उसके लिए पाना इंसान की सहानुभूति।
इंसान के लिए चिंतित, परमेश्वर घूमता है उनके बीच,
करता है अथक काम।
मौसम आते हैं, जाते हैं, वो देता है अपना सब कुछ मानवता को।
किसे परवाह है उसकी सुरक्षा की?
किसने पूछा है उसके आराम के बारे में?
इंसान मांगता है बहुत कुछ परमेश्वर से!
कभी उसकी इच्छा पर विचार करता नहीं।
पारिवारिक जीवन का लें आनंद, लेकिन क्यों रुलाते हैं वो उसे?
वसंत के फूल कब बंद करेंगे खिलना?
सच्चा प्यार इस दुनिया में है।
सुख दुख, उतार चढ़ाव। मौसम का चक्र चलता रहता है।
साल-दर-साल परमेश्वर को त्यागा गया है।
कितनी दुखद है यह दुनिया!