599 अपना कर्तव्य निभाने के लिए जीना सार्थक है
1 परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने वाले लोग सबसे ज्यादा बुद्धिमान हैं। वर्षों तक न्याय और ताड़ना से गुजरने के बाद, वे अचेतन रूप से परमेश्वर के मानवता-प्रबंधन के उद्देश्य को समझने लगते हैं, और साथ ही परमेश्वर द्वारा मानवता के प्रबंधन और उद्धार का रहस्य भी उनकी समझ में आने लगता है। वे परमेश्वर की इच्छा को समझने लगते हैं और उन्हें उसकी प्रभुसत्ता का बोध हो जाता है। वे अपने जीवन में सहज महसूस करते हैं, उनका जीवन समृद्ध और अर्थपूर्ण हो जाता है। परमेश्वर तुम्हें जीने देता है, और अगर तुम परमेश्वर की खातिर और एक सृजित प्राणी के कर्तव्य निभाने की खातिर जी सकते हो, तो तुम एक अर्थपूर्ण जीवन जी रहे हो। अगर तुम एक चलते-फिरते शव का जीवन जीते हो, जिसमें न आत्मा है, न सत्य की स्वीकृति या समझ,सिर्फ देहसुख के लिए जीते हो, तो तुम एक अर्थपूर्ण जीवन नहीं जी रहे हो, क्योंकि तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है।
2 सारी मानवजाति में से, तुम लोग वो हो जिन्हें परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित किया और चुना है; तुम सब इस युग में, बड़े लाल अजगर के देश में पैदा हुए, और परमेश्वर तुम लोगों को अपने वर्तमान कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम होने की अनुमति देता है। तुम लोग परमेश्वर के कृपापात्र हो; तुम उसके द्वारा चुने गए हो। यह एक आशीर्वाद है। परमेश्वर तुम पर कृपा करता है और तुम लोगों को उसकी खातिर खपने की, परमेश्वर के परिवार में कर्तव्यों का पालन करने की, एक सर्जित प्राणी के दायित्वों को पूरा करने की, और तुम्हारी ऊर्जा के एक हिस्से की पेशकश करने की, अनुमति देता है। क्या यह आशीर्वाद नहीं है? अब तुम सभी का हर दिन परमेश्वर की गवाही देने और परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए जिया जा सकता है; यह परमेश्वर द्वारा अनुमोदित है।
3 परमेश्वर तुम्हें इस तरह से जीने का और उसके लिए स्वयं को खपाने का मौका देता है—यह एक सार्थक बात है। तुम सभी को इस सुअवसर को संजोए रखना चाहिए, और गौरवान्वित एवं सम्मानित महसूस करना चाहिए। इस उम्र में, इस माहौल में, और इन परिस्थितियों में इस कर्तव्य को निभा पाना एक बहुत ही दुर्लभ अवसर है! परमेश्वर सावधानीपूर्वक मानवजाति में से चयन करता है, और उसने तुम लोगों को चुना है। यह तुम सभी का सुअवसर है। यह तुम सभी का सबसे महान आशीर्वाद है। यह आशीर्वाद युग-युगों और पीढ़ियों से संतों को मिले आशीर्वादों से भी बढ़कर है!
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित