245 मैं आजीवन केवल परमेश्वर से प्रेम करना चाहती हूँ
1
बरसों मैंने प्रभु में आस्था रखी,
पर जाना सिर्फ़ उसके अनुग्रह का आनंद लेना।
उससे सच्चा प्यार न किया, बस ईश-राज्य का
आशीष पाने की ख़ातिर, काम किया और दुख झेला।
अब मसीह के वचनों के न्याय से,
जागी हूँ सत्य के प्रति :
भ्रष्ट इंसान शुद्ध होता सिर्फ़ न्याय से;
ये इंसान को बचाता शैतान की ताकतों से।
2
पर शैतान बेहद भ्रष्ट कर चुका था मुझे,
अपना ज़मीर और विवेक गँवा चुकी थी मैं,
मुझे ईश-अनुग्रह का लालच था,
उसके वचनों पर अमल की परवाह न थी मुझे,
अपने दुखों के बदले अनंत जीवन चाहती थी मैं।
कभी ईश-इच्छा का ख़्याल न किया,
कभी उसके वचनों को न जिया।
आस्था में ईश्वर से सौदा करके,
उसे धोखा दे रही थी, विरोध कर रही थी।
ईश्वर धार्मिक और पवित्र है, ये ईश-न्याय से जाना मैंने।
ईश-उद्धार पा लिया मैंने,
बस चाहती हूँ, आजीवन प्रेम करूँ ईश्वर से।
3
ईश-वचनों के न्याय और खुलासे की
मदद से ही, सत्य को जाना मैंने:
अहंकारी, स्वार्थी, कपटी, धोखेबाज़,
घृणा-योग्य हूँ, मैं इंसान नहीं हूँ।
अगर न्याय से न गुज़रती,
तो भ्रष्ट रहकर, कैसे ईश्वर को जानती,
उसका आज्ञापालन करती मैं?
ईश्वर को जाने बिना, उसके प्रति श्रद्धा रखे बिना,
उसके आगे जीने योग्य कैसे बन पाती मैं?
ईश्वर धार्मिक और पवित्र है, ये ईश-न्याय से जाना मैंने।
ईश-उद्धार पा लिया मैंने,
बस चाहती हूँ, आजीवन प्रेम करूँ ईश्वर से।
4
ईश-न्याय से, शोधन और परीक्षण से गुज़रकर,
जान गयी मैं ईश्वर का प्रेम कितना सच्चा है।
भले ही दुख उठाए, पर आख़िरकार
शुद्ध हो सकती है भ्रष्टता मेरी।
ईश-धार्मिकता, पवित्रता को जानकर,
ईश्वर का भय मानने लगा है दिल मेरा।
कर्तव्य-पालन और सत्य पर अमल करके,
अब जीती हूँ मैं इंसान की तरह।
ईश्वर धार्मिक और पवित्र है, ये ईश-न्याय से जाना मैंने।
ईश-उद्धार पा लिया मैंने,
बस चाहती हूँ, आजीवन प्रेम करूँ ईश्वर से।
ईश्वर धार्मिक और पवित्र है, ये ईश-न्याय से जाना मैंने।
ईश-उद्धार पा लिया मैंने,
बस चाहती हूँ, आजीवन प्रेम करूँ ईश्वर से।