270 परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हृदय

1

हे ईश्वर! भले ही तेरे लिए मेरा जीवन काम का नहीं,

फिर भी चाहूँ इसे तुझे अर्पित करना।

इंसान भले ही तुझे प्रेम करने योग्य न हो,

हालाँकि उसका प्यार और दिल आख़िरकार बेकार है,

फिर भी तू देख सके नेक इरादे उसके।

हालाँकि इंसानी देह तेरी स्वीकृति के अनुरूप नहीं,

मैं चाहूँ, तू दिल मेरा कबूल करे।


मैं धूल से भी गयी-गुज़री हूँ,

तेरे लिए कुछ न कर पाऊँ, पर अपना वफ़ादार दिल तो

तुझे दे ही सकती हूँ।


2

हे ईश्वर! भले ही तेरे लिए मेरा जीवन काम का नहीं,

मैं अपना दिल तुझे ही दूंगी।

भले ही मैं तेरे लिए कुछ कर न पाऊँ,

तुझे वफ़ादारी से संतुष्ट करने, ख़ुद को अर्पित करुँगी।

मैं जानूँ, तुझे देखना चाहिए दिल मेरा।

मेरे दिल की इच्छा को, तुझसे प्रेम करने के मेरे ख़्यालों को,

तू स्वीकार कर, बस इतना चाहूँ।


मैं धूल से भी गयी-गुज़री हूँ,

तेरे लिए कुछ न कर पाऊँ, पर अपना वफ़ादार दिल तो

तुझे दे ही सकती हूँ।


3

हे ईश्वर! भले ही तेरे लिए मेरा जीवन काम का नहीं,

फिर भी चाहूँ इसे तुझे अर्पित करना।

इतने समय साथ रहकर भी, मैं तुझे जान न पायी।

तुझे कभी न चाहा मैंने, ये सबसे बड़ा कर्ज़ है मुझ पर।

तेरी पीठ पीछे ऐसी बातें भी कहीं—

हे प्रिय ईश्वर, जो कहनी नहीं चाहिए थीं।

इनसे महसूस करूँ, मैं तेरे एहसान तले दबी हूँ।


मैं धूल से भी गयी-गुज़री हूँ,

तेरे लिए कुछ न कर पाऊँ, पर अपना वफ़ादार दिल तो

तुझे दे ही सकती हूँ।

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