266 इंसान को ज़रूरत है परमेश्वर द्वारा जीवन के पोषण की
1
जब ईश्वर न हो दिल में, मन की दुनिया अंधेरी रहे;
आशा न रहे खोखले जीवन में।
इंसान अपना विकास बनाए रखना चाहे,
लेकिन ईश्वर जो न राह दिखाये, इंसान खोखला ही रहे।
इंसान का जीवन न कोई बन सके,
न कोई सिद्धान्त, न विज्ञान, न ज्ञान, न लोकतंत्र आराम दे सके।
इंसान पाप करता रहेगा, अन्याय पर रोता रहेगा।
खोजने की इच्छा को दबा नहीं सकतीं ये बातें।
इंसान को न्याय-भरे समाज से ज़्यादा चाहिए
जहां सभी हों पोषित, समान और आज़ाद।
इंसान को चाहिए परमेश्वर का उद्धार और जीवन का उसका पोषण।
केवल जब इंसान ईश्वर से ये चीज़ें पाये तभी पूरी हों उसकी ज़रूरतें;
खोजने की इच्छा और आत्मिक ख़ालीपन, इन बातों का हल हो जाये।
2
ईश्वर ने बनाया इंसान को, ये सब है इसीलिए।
अर्थहीन बलिदान और इंसान की खोज लाये बस परेशानी और डर की दशा।
कैसे करना भविष्य का सामना इंसान न जाने,
ज्ञान, विज्ञान, और खोखलेपन से डरे।
किसी आज़ाद देश में कोई रहे या ना रहे, अपने भाग्य से न कोई बच सके।
चाहे हो राजा या हो प्रजा,
मंज़िल और इंसानी राज़ खोजने की इच्छा छोड़ न पाए,
इस खोखलेपन से दूर न जा पाए।
ये सामाजिक बातें आम हैं इंसान के वास्ते,
लेकिन कोई महापुरुष इंसानी मामलों को हल न कर सके।
क्योंकि इंसान तो बस इंसान है,
परमेश्वर का जीवन और जगह कोई इंसान न ले सके।
लोगों और देशों को जो उद्धार न मिले,
वे बढ़ जाएँ अंधेरे की ओर, फिर ईश्वर उन्हें नष्ट करे।
इंसान को न्याय-भरे समाज से ज़्यादा चाहिए
जहां सभी हों पोषित, समान और आज़ाद।
इंसान को चाहिए परमेश्वर का उद्धार और जीवन का उसका पोषण।
केवल जब इंसान ईश्वर से ये चीज़ें पाये तभी पूरी हों उसकी ज़रूरतें;
खोजने की इच्छा और आत्मिक ख़ालीपन, इन बातों का हल हो जाये।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है से रूपांतरित