692 परीक्षण के प्रति इंसान का रवैया
1 जब तुम आज के मार्ग पर चलते हो, तो किस प्रकार का अनुगमन सबसे अच्छा होता है? अपने अनुगमन में तुम्हें खुद को किस तरह के व्यक्ति के रूप में देखना चाहिए? तुम्हें पता होना चाहिए कि आज जो कुछ भी तुम पर पड़ता है, उसके प्रति तुम्हारा नज़रिया क्या होना चाहिए, चाहे वह परीक्षण हों या कठिनाई, या फिर निर्मम ताड़ना और श्राप। तुम्हें इस पर सभी मामलों में सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। मैं इसे इसलिए कहता हूँ, क्योंकि आज जो कुछ भी तुम पर पड़ता है, आख़िरकार, वे छोटे-छोटे परीक्षण हैं जो बार-बार आते हैं; शायद तुम उन्हें मानसिक रूप से बहुत कष्टदायक नहीं समझते, और इसलिए तुम चीजों को बस बह जाने देते हो, और प्रगति की खोज में उन्हें मूल्यवान संपत्ति नहीं मानते। तुम कितने लापरवाह हो! यहाँ तक कि तुम इस मूल्यवान संपत्ति को अपनी आँखों के सामने उड़ते एक बादल जैसा समझते हो, और तुम बार-बार बरसने वाले इन कठोर आघातों को सँजोकर नहीं रखते—आघात, जो कि अल्पकालीन होते हैं और तुम्हें कम भारी लगते हैं—बल्कि उन्हें दिल पर न लेते हुए उन्हें ठंडी अनासक्ति से देखते हो, और उन्हें सिर्फ़ सांयोगिक आघात समझते हो। तुम इतने घमंडी हो!
2 इन बार-बार के आघातों और अनुशासन को बहुत अच्छी सुरक्षा के रूप में देखने के बजाय तुम उन्हें स्वर्ग द्वारा निरर्थक परेशानी पैदा किए जाने के रूप में, या फिर स्वयं से लिए जाने वाले उपयुक्त प्रतिशोध के रूप में देखते हो। तुम कितने अज्ञानी हो! तुम निर्दयता से अच्छे समय को अँधेरे में कैद कर लेते हो; बार-बार तुम अद्भुत परीक्षणों और अनुशासन को अपने दुश्मनों द्वारा किए गए हमलों के रूप में देखते हो। तुम अपने वातावरण के अनुकूल होने में असमर्थ हो; और उसके लिए इच्छुक तो और भी कम हो, क्योंकि तुम इस बार-बार की—और अपनी दृष्टि में निर्मम—ताड़ना से कुछ भी हासिल करने के लिए तैयार नहीं हो। तुम न तो खोज करने का प्रयास करते हो और न ही अन्वेषण करने का, बस अपने भाग्य के आगे नतमस्तक हो जाते हो, चाहे वह तुम्हें जहाँ भी ले जाए। जो बातें तुम्हें बर्बर ताड़ना लगती हैं उन्होंने तुम्हारा दिल नहीं बदला, न ही उन्होंने तुम्हारे दिल पर कब्ज़ा किया है; इसके बजाय उन्होंने तुम्हारे दिल में छुरा घोंपा। तुम इस "क्रूर ताड़ना" को इस जीवन में अपने दुश्मन से ज्यादा नहीं देखते, और तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया है। तुम इतने दंभी हो!
3 शायद ही कभी तुम मानते हो कि तुम इस तरह के परीक्षण इसलिए भुगतते हो, क्योंकि तुम बहुत घिनौने हो; इसके बजाय, तुम खुद को बहुत अभागा समझते हो, और कहते हो कि मैं हमेशा तुम्हारी गलतियाँ निकालता रहता हूँ। आज तक, जो मैं कहता और करता हूँ, तुम्हें वास्तव में उसका कितना ज्ञान है? ऐसा मत सोचो कि तुम एक अंतर्जात प्रतिभा हो, जो स्वर्ग से थोड़ी ही निम्न, किंतु पृथ्वी से बहुत अधिक ऊँची है। तुम किसी भी अन्य से ज्यादा होशियार नहीं हो—यहाँ तक कि यह भी कहा जा सकता है कि पृथ्वी पर जितने भी विवेकशील लोग हैं, तुम उनसे कहीं ज्यादा मूर्ख हो, क्योंकि तुम खुद को बहुत ऊँचा समझते हो, और तुममें कभी भी हीनता की भावना नहीं रही; ऐसा लगता है कि तुम मेरे कार्यों को बड़े विस्तार से अनुभव करते हो। वास्तव में, तुम ऐसे व्यक्ति हो, जिसके पास विवेक की मूलभूत रूप से कमी है, क्योंकि तुम्हें इस बात का कुछ पता नहीं है कि मैं क्या करूँगा, और उससे भी कम तुम्हें इस बात की जानकारी है कि मैं अभी क्या कर रहा हूँ। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम जमीन पर कड़ी मेहनत करने वाले किसी बूढ़े किसान के बराबर भी नहीं हो, ऐसा किसान, जिसे मानव-जीवन की थोड़ी भी समझ नहीं है और फिर भी जो जमीन पर खेती करते हुए स्वर्ग के आशीषों पर निर्भर करता है। तुम अपने जीवन के संबंध में एक पल भी विचार नहीं करते, तुम्हें यश के बारे में कुछ नहीं पता, और तुम्हारे पास कोई आत्म-ज्ञान तो बिलकुल नहीं है। तुम इतने "उन्नत" हो!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो लोग सीखते नहीं और अज्ञानी बने रहते हैं : क्या वे जानवर नहीं हैं? से रूपांतरित