475 सबसे सार्थक जीवन
1
एक सृजित प्राणी के तौर पर, आराधना करनी चाहिये परमेश्वर की तुम्हें।
एक सृजित प्राणी के तौर पर, बेहद सार्थक जीवन जीना चाहिये तुम्हें।
सही राह पर चलते हैं जो वो इंसान हो तुम।
तरक्की की खोज करते हैं जो वो इंसान हो तुम।
बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हैं जो वो इंसान हो तुम।
धार्मिक कहता है जिन्हें परमेश्वर वो इंसान हो तुम।
क्या यही नहीं है सबसे सार्थक जीवन, सबसे सार्थक जीवन?
2
इंसान के तौर पर, परमेश्वर की ख़ातिर ख़ुद को खपाना चाहिये तुम्हें।
इंसान के तौर पर, हर दुख सहना चाहिये तुम्हें, तुम्हें, तुम्हें।
दुख जो सहते हो थोड़ा-सा तुम, उसे ख़ुशी से स्वीकार करना चाहिये तुम्हें,
पतरस और अय्यूब की तरह,
सार्थक जीवन जीना चाहिये तुम्हें, तुम्हें, तुम्हें।
सही राह पर चलते हैं जो वो इंसान हो तुम।
तरक्की की खोज करते हैं जो वो इंसान हो तुम।
बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हैं जो वो इंसान हो।
सही राह पर चलते हैं जो वो इंसान हो तुम।
तरक्की की खोज करते हैं जो वो इंसान हो तुम।
बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हैं जो वो इंसान हो तुम।
धार्मिक कहता है जिन्हें परमेश्वर वो इंसान हो तुम।
क्या यही नहीं है सबसे सार्थक जीवन, सबसे सार्थक जीवन?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2) से रूपांतरित