74 ओ मेरे प्रिय, मैं तलाश में हूं तुम्हारी
1
तुम कहाँ हो, मेरे प्रिय?
क्या तुम्हें मालूम है मुझे आती है तुम्हारी कितनी याद?
बिना रोशनी, दर्द से भरे और मुश्किल हैं दिन।
अंधेरे में, मुझे तलाश है तुम्हारी।
मुझे निराशा नहीं है, आशा बनी रहती है मेरी,
और ज़्यादा दृढ़ता से तलाश करती हूं मैं तुम्हें।
तुम्हारे फिर से प्रकट होने का है मुझे इंतज़ार,
जब तुम्हारा चेहरा देख पाएंगी मेरी आंखें।
2
तुमने सुना है मुझे पुकारते हुए,
मेरे दिल के दरवाज़े पर देते हुए दस्तक।
मैंने सुनी है तुम्हारी आवाज़, खोलकर दरवाज़ा,
तुम्हारी वापसी का करती हूं स्वागत।
सालों से थी जिसकी मुझे उम्मीद, वो हुआ है अब,
ख़ुशी के आंसू छलकते हैं मेरी आंखों से।
मानव जाति के बीच सच्चाई लाते हो तुम,
मैंने देखी है सच्ची रोशनी।
परमेश्वर, मेरे प्रिय, सबसे सुंदर,
तुम हो उस उज्जवल चंद्रमा की तरह।
परमेश्वर, मेरे प्रिय, तुम बसे हो मेरे दिल में।
तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं है प्यार।
मेरा दिल है तुम्हारा। मेरा दिल है तुम्हारा।
3
रहती हूं मैं तुम्हारे परिवार में,
मेमने की दावत में लेती हूं हिस्सा।
रोज़ आनंद लेती हूं मैं तुम्हारे वचनों का,
मेरे दिल की ख़ुशी ब्यान की नहीं जा सकती।
मेरा हाथ पकड़कर तुम दिखाओ मुझे रास्ता,
तुम्हारे पीछे दौड़ने के लिए करो मुझे तेज़।
तुम्हारी करीबी बनने के लिए हूं मैं प्यासी,
रहना चाहती हूं तुम्हारे साथ हमेशा।
4
तुम्हारे न्याय और ताड़ना से
देखती हूं मैं तुम्हारी पवित्रता और धार्मिकता।
तुम्हारे वचनों ने किया है मुझे शुद्ध,
दिया है मुझे नया जन्म।
मेरे जीवन को देते हो तुम सत्य।
लिया है आनंद मैंने तुम्हारे सच्चे प्रेम का।
मैं करूंगी तुमसे प्यार, करूंगी तुम्हारी सेवा।
मेरा दिल रहेगा हमेशा तुम्हारे करीब।
परमेश्वर, मेरे प्रिय, सबसे सुंदर,
तुम हो उस उज्जवल चंद्रमा की तरह।
परमेश्वर, मेरे प्रिय, तुम बसे हो मेरे दिल में।
तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं है प्यार।
मेरा दिल है तुम्हारा। मेरा दिल है तुम्हारा।