919 परमेश्वर की सृष्टि को उसके अधिकार का पालन करना चाहिये
1
प्रचंड आग है परमेश्वर जो नहीं करता अपराध सहन।
दख़लंदाज़ी करे या आलोचना करे उसके काम और वचन की,
ये हक नहीं है इंसान को, चूँकि उसने बनाया है इंसान को,
उनका पालन करना चाहिये इंसान को, इंसान को।
परमेश्वर प्रभु है, सृजन का प्रभु है,
अपने लोगों पर शासन करने, प्रयोग में लाता है अपने अधिकार को।
हर प्राणी को इसका पालन करना चाहिये,
वो जो कहता है उसे श्रद्धा से करना चाहिये,
कोई तर्क या विरोध नहीं करना चाहिये।
2
हालाँकि निर्लज्ज हो, ढीठ हो तुम,
नाफ़रमानी करते हो परमेश्वर के वचनों की तुम लोग,
तुम्हारी विद्रोहशीलता को सहता है वो,
मल में कुलबुलाते भुनगों से बेपरवाह,
काबू में रखकर अपने क्रोध को,
काम करता रहेगा वो, काम करता रहेगा वो।
3
परमेश्वर की इच्छा की ख़ातिर
अपने कथनों की पूर्णता तक, अपने आख़िरी पल तक,
उन चीज़ों को सहता है, जिनसे नफ़रत करता है परमेश्वर।
परमेश्वर प्रभु है, सृजन का प्रभु है,
अपने लोगों पर शासन करने, प्रयोग में लाता है अपने अधिकार को।
हर प्राणी को इसका पालन करना चाहिये,
वो जो कहता है उसे श्रद्धा से करना चाहिये,
कोई तर्क या विरोध नहीं करना चाहिये, नहीं करना चाहिये, नहीं करना चाहिये।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा से रूपांतरित