800 परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है
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"परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना"
और परमेश्वर को जानना अभिन्न रूप से असंख्य सूत्रों से जुड़े हैं,
और उनके बीच का संबंध स्वतः स्पष्ट है।
यदि कोई बुराई से दूर रहना चाहता है,
तो पहले उसमें परमेश्वर का वास्तविक भय होना चाहिए;
यदि कोई परमेश्वर का वास्तविक भय मानना चाहता है,
तो पहले उसमें परमेश्वर का सच्चा ज्ञान होना चाहिए;
यदि कोई परमेश्वर का ज्ञान हासिल करना चाहता है,
तो पहले उसे परमेश्वर के वचनों का अनुभव करना चाहिए,
परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए,
परमेश्वर की ताड़ना, अनुशासन और न्याय का अनुभव करना चाहिए;
2
यदि कोई परमेश्वर के वचनों का अनुभव करना चाहता है,
तो पहले उसे परमेश्वर के वचनों के रूबरू आना चाहिए,
परमेश्वर के रूबरू आना चाहिए,
और परमेश्वर से निवेदन करना चाहिए
कि वह लोगों, घटनाओं और चीजों से युक्त सभी प्रकार के परिवेशों के रूप में
परमेश्वर के वचनों को अनुभव करने के अवसर प्रदान करे;
यदि कोई परमेश्वर और उसके वचनों के रूबरू आना चाहता है,
तो पहले उसे एक सरल और सच्चा हृदय,
सत्य को स्वीकार करने की तत्परता,
कष्ट झेलने का संकल्प,
और बुराई से दूर रहने का संकल्प और साहस,
और एक सच्चा सृजित प्राणी बनने की अभिलाषा रखनी चाहिए...।
इस प्रकार कदम-दर-कदम आगे बढ़ते हुए,
तुम परमेश्वर के और करीब होते जाओगे, तुम्हारा हृदय अधिक शुद्ध होता जाएगा,
तुम्हारा हृदय अधिक शुद्ध होता जाएगा,
परमेश्वर को जानने का अनुसरण करते हुए
तुम्हारा जीवन और जीवित रहने का मूल्य अधिक से अधिक सार्थक और दीप्तिमान होता जाएगा।
परमेश्वर को जानने का अनुसरण करते हुए
तुम्हारा जीवन और जीवित रहने का मूल्य अधिक से अधिक सार्थक और दीप्तिमान होता जाएगा।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, प्रस्तावना