प्रश्न 13:बाइबल को पढ़ कर, हम सब जानते हैं कि यहूदी फरीसियों ने, प्रभु यीशु की निंदा की और उनका विरोध किया। लेकिन अधिकांश भाई-बहन अभी भी नहीं समझते हैं, कि जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया, तब फरीसियों को मालूम था कि उनके वचनों में अधिकार और प्रभाव है। फिर भी, उन्होंने कट्टरपन से प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। उन्होंने उनको सूली पर चढ़ा दिया। उन लोगों का स्वभाव और सार-तत्व कैसा था?

उत्तर: प्रभु में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति जानता है कि फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध किया। लेकिन उनके विरोध की असली वजह क्या थी? आप कह सकते हैं कि धर्म के 2000 वर्षों के इतिहास में, कोई भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं ढूंढ पाया है। हालाँकि प्रभु यीशु के फरीसियों को शाप देने के बारे में नये विधान में उल्लेख है, लेकिन कोई भी फरीसियों के सार को समझ नहीं पाया है। जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आते हैं, तो वो इस प्रश्न का सच्चा उत्तर प्रकाशित करते हैं। चलिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, "क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन-सत्य का अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर यह बहुत साफ़तौर पर कहते हैं फरीसियों द्वारा प्रभु यीशु के विरोध और निंदा की सारी जड़ ये है कि वे या तो परमेश्वर का आदर नहीं करते या वे सत्य की खोज ही नहीं करते थे। वे अंदर से बहुत ज़िद्दी और घमंडी थे; वे सत्य का पालन नहीं करते थे। फरीसीयों ने परमेश्वर की व्याख्या अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के दायरे में की थी, बाइबल के शाब्दिक वचनों के दायरे में। उन्होंने मसीहा को सिर्फ नाम तक ही सीमित रखा था। प्रभु यीशु के उपदेश चाहे कितने भी गहरे या सही क्यों न हों, उनके वचन कितने भी सच क्यों न हों, या उनके वचनों में चाहे जितना अधिकार या प्रभाव क्यों न हो, चूँकि उनका नाम मसीहा नहीं है, इसलिए फरीसियों ने उनका विरोध किया और उनकी निंदा की। उन लोगों की आस्था के सिद्धांत बिल्कुल वैसे ही हैं जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो।" फरीसियों ने न सिर्फ प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए सत्य को अस्वीकार कर दिया, बल्कि उन लोगों ने उन्हें प्रलोभन देने और उनमें दोष ढूंढने की भी कोशिश की। उदाहरण के लिए, उन लोगों ने प्रभु यीशु को ये पूछ कर लुभाया कि चमत्कार दिखाने के लिए वे किस अधिकार का उपयोग करते हैं और जान-बूझ कर प्रभु यीशु से पूछा कि क्या वे सीज़र को कर दे सकते हैं। उन्होंने प्रभु यीशु से पूछा क्या वो परमेश्वर मसीह आदि के पुत्र हैं। प्रभु यीशु ने उनकी शैतानी योजनाओं का उत्तर सच्चाई और बुद्धिमत्ता से दिया। फरीसियों के पास उनका खंडन करने की कोई शक्ति नहीं थी, फिर भी उन्होंने सच्चाई की खोज नहीं की। फिर भी उन्होंने प्रभु यीशु का कट्टरता से विरोध किया और प्रभु यीशु की निंदा की और उनको गिरफ्तार करवा दिया और मांग की कि उसे सूली पर चढ़ा दिया जाए। यह बिलकुल वैसा ही था जैसा प्रभु यीशु ने उनका पर्दाफ़ाश करते वक्त कहा था, "परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिसने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्‍वर से सुना ...यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्‍वास क्यों नहीं करते?" (यूहन्ना 8:40, 46)। इसलिए, हम यह देख सकते हैं कि कि फरीसी स्वभाव और सार में शैतानी राक्षस थे, परमेश्वर के शत्रु थे, जो सत्य से घृणा करते थे! भाइयो और बहनो, किस प्रकार के लोग मसीह से घृणा और उनकी निंदा कर सकते हैं? फरीसियों की कहानी से एक बात तो साफ पता चलती है; वे सब जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं लेकिन सच्चाई से प्यार नहीं करते,सच्चाई से ऊब चुके और सच से नफ़रत करने वाले लोग हैं। और वे परमेश्वर को जानते तक नहीं हैं। अलावा ये लोग अवश्य परमेश्वर का विरोध करते हैं और उनको अपना शत्रु मानते हैं। क्योंकि मसीह का सार सत्य, मार्ग और जीवन हैं, जो सत्य से घृणा करता है वह मसीह से भी घृणा करता है। बहुत सारे लोग जो सत्य से घृणा करते हैं वे बाहर से अच्छे लगते हैं; वे बाइबल के नियमों का पालन करते हैं और बिल्कुल नहीं लगता कि वे दुष्ट हैं, लेकिन जब मसीह अपना कार्य करने आएंगे, तो परमेश्वर के ये शैतानी दुश्मन पूरी तरह से उजागर हो जाएंगे।

प्रभु यीशु के शैतानी विरोध और निंदा से फरीसियों के राक्षसी तत्व का पता चलता है वे सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। कि जब प्रभु यीशु ने उपदेश दिये और अपना कार्य किया, तो उन्होंने बहुत से सच बताए थे, बहुत सारे चमत्कार दिखाए थे और बहुत से लोगों पर बड़ी कृपा की थी प्रभु यीशु के कार्य ने यहूदी धर्म की जड़ें हिला दीं और यहूदी राज्य को झटका दिया। बहुत सारे लोग प्रभु यीशु के अनुयायी बन गए। फरीसी जानते थे कि अगर प्रभु यीशु निरंतर अपना कार्य करते रहें, तो यहूदी धर्म में विश्वास करने वाले सारे लोग उनके अनुयायी बन जाएंगे; यहूदी धर्म का पतन हो जाएगा, और उनके पद और आजीविका के साधन ख़त्म हो जाएंगे। इसलिए, उन्होंने प्रभु यीशु की हत्या करने का निर्णय लिया। जैसा कि बाइबल कहती है, "इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने महासभा बुलाई, और कहा, 'हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिह्न दिखाता है। यदि हम उसे यों ही छोड़ दें, तो सब उस पर विश्‍वास ले आएँगे, और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।' …अत: उसी दिन से वे उसे मार डालने का षड्‍यन्त्र रचने लगे" (यूहन्ना 11:47, 48, 53)। अपने पद और आजीविका के साधन बचाने और प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिए फरीसियों ने रोमन सरकार के साथ सांठगांठ कर ली उन लोगों ने कहा, "इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!" (मत्ती 27:25)। जैसे की आप देख सकते हैं फरीसी सच्चाई से और मसीह से नफ़रत करते थे। नौबत यहां तक आ चुकी थी कि वे मसीह के साथ एक जगह नहीं रहना चाहते थे! वे यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिये पाप-बलि तक छोड़ सकते थे, वो यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिये भयानक पाप कर सकते थे, परमेश्वर का अपमान कर सकते थे, अपनी औलादों और पोतों के लिये शाप ले सकते थे वे प्रभु यीशु को जिन्होंने पूरी इंसानियत के उद्धार के लिये सच व्यक्त किया था। ये था फ़रीसियों का असली, शैतानी और सच्चाई से नफ़रत करने वाला स्वभाव और सार। जब प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया गया तो, सूरज काला पड़ गया, धरती कांप गयी और आराधनालय का पर्दा खुल गया। प्रभु यीशु पुनर्जीवित होने के बाद, एक बार फिर लोगों के सामने आये। और ये सच्चाई जानने के बाद, लोगों ने अपने पापों का प्रायश्चित किया और प्रभु यीशु की शरण में चले गए। और फरीसियों का क्या हुआ? पश्चाताप करना तो दूर वे प्रभु यीशु के और भी कट्टर शत्रु बन गए। उन्होंने सैनिकों को धन दिया कि झूठी गवाही दें और कहें कि प्रभु यीशु पुनर्जीवित नहीं हुए थे। जब प्रेरितों ने प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाया, फ़रीसियों ने उन्हें कट्टरता से पकड़ लिया और उत्पीडित किया। धार्मिक समुदाय को हमेशा के लिये नियंत्रित करने की अपनी महत्त्वकांक्षा को पूरा करने के लिए, वे प्रभु यीशु के कार्य पर रोक लगाना चाहते थे। फरीसी सिर्फ़ परमेश्वर के नाम में विश्वास करते थे। असल में, वे सत्य से घृणा करते थे और परमेश्वर का विरोध करते थे। प्रभु यीशु के उनके विरोध और निंदा का सार इस प्रकार थे; वे परमेश्वर से बराबरी कर उनकी शक्ति को परखने की कोशिश कर रहे थे;वे परमेश्वर के विरुद्ध लड़ रहे थे। प्रभु यीशु के विरुद्ध उनके क्रोध और घृणा के अहंकार ने उनकी महत्वाकांक्षाओं का पूरी तरह से पर्दाफ़ाश कर दिया था और उनके दुष्ट,शैतानी चेहरे को उजागर कर दिया था। साथ में, उजागर किया था उनकी मसीह-विरोधी राक्षसी प्रकृति को जैसे: पश्चाताप करने से इनकार, सच्चाई से नफ़रत, परमेश्वर से घृणा। कहीं यह वैसा बर्ताव तो नहीं जैसा धार्मिक समुदाय के पादरी और एल्डर्स, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के साथ करते हैं? अगर हम साफ़ देख पायें कि पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा कैसे करते हैं, तो हम निश्चित ही जान जाएंगे कि फरीसियों ने उसी तरह से प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की होगी।

2,000 साल पहले, प्रमुख यहूदी पादरियों, लेखकों और फरीसियों ने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। 2,000 साल बाद, धार्मिक नेताओं ने दोबारा परमेश्वर को सूली पर चढ़ा कर इतिहास को दोहराया है! ह म सबने देखा है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में परमेश्वर के घर से शुरू करके न्याय का कार्य करते हैं। वे उन सच्चाइयों को व्यक्त करते हैं जो मानवजाति को शुद्ध करती और बचाती हैं। वे परमेश्वर की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को उजागर करते हैं। वे न्याय करते हैं और परमेश्वर का विरोध करने वाले और उनको धोखा देने वाले मानवजाति के शैतानी स्वभाव को उजागर करते हैं। वे उन्हें अपना धर्मी स्वभाव दिखाते हैं जो अपमानित नहीं हो सकता। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं। उनके पास शक्ति और अधिकार हैं और हमें पूरी तरह आश्वस्त करते हैं। ये सत्य मानवता को शुद्ध करते और बचाते हैं। तो आजकल के पादरियों और एल्डर्स के बारे में क्या? उन्हें परवाह नहीं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में कितनी सच्चाई है, उनके वचनों में कितना अधिकार और शक्ति है, कैसे वे मनुष्य को शुद्ध कर सकते हैं और बचा सकते हैं। वे अभी भी जिद्दी होकर अपने भ्रम पर अड़े हुए हैं: "जो कोई बादल पर नहीं उतरता और मुझे स्वर्ग के राज्य में आरोहित नहीं कर सकता तो वह प्रभु यीशु की वापसी नहीं है।" वे सनकी होकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। वे प्रभु यीशु का केवल नाम लेते हैं, मगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कट्टरता से विरोध और निंदा करते हैं। क्या यह उससे अलग है जैसे फरीसी मसीहा का नाम लेते थे लेकिन प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करते थे? क्या उनका मूल स्वभाव फरीसियों जैसा ही नहीं है: जिद्दी, घमंडी, सच्चाई का पालन न करना, सच्चाई से नफरत करना? वे सिर्फ स्वर्ग के अज्ञात परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और देहधारी मसीह को नकारते, उनकी निंदा और विरोध करते हैं; वे मसीह के कट्टर विरोधी हैं। क्या वे सिर्फ मसीह को नकारने वाले, उनकी निंदा और विरोध करने वाले मसीह-विरोधी नहीं हैं? बाइबल कहती है, "जैसा तुम ने सुना है कि मसीह का विरोधी आनेवाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए हैं; इससे हम जानते हैं कि यह अन्तिम समय है" (1 यूहन्ना 2:18)। "क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया; भरमानेवाला और मसीह-विरोधी यही है" (2 यूहन्ना 1:7)। इसलिए, जो देहधारी परमेश्वर को स्वीकार नहीं करते, वे सभी मसीह-विरोधी हैं। वो सभी जो मसीह की निंदा और विरोध करते हैं, मसीह के दुश्मन हैं। इसलिए, प्रभु यीशु के कार्य के द्वारा यहूदी फरीसियों का मसीह-विरोधीयों के रूप में पर्दाफ़ाश हो गया थाl अंत के दिनों में पादरी और एल्डर्स जिन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के द्वारा उजागर किया गया, वे सभी मसीह-विरोधी हैं। देहधारी परमेश्वर का कार्य वास्तव में लोगों को उजागर करता है! अंत के दिनों में मसीह द्वारा व्यक्त सभी कुछ सत्य है। वे न केवल बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों को उजागर करते हैं, वे हर प्रकार के मसीह-विरोधियों और नास्तिकों को उजागर करते हैं। यह सच्चाई है जिसे कोई नकार नहीं सकता!

अंत के दिनों के धार्मिक नेताओं और यहूदियों के मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों का मूल स्वभाव और परमेश्वर के प्रति विरोध की जड़े एक जैसी हैं। जिस तरह से पादरी और एल्डर्स परमेश्वर का विरोध करते हैं वो तो प्रधान पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों से भी बुरे हैं। जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर के घर से अपना न्याय का कार्य करना शुरू किया, हर एक सम्प्रदाय के सभी लोग परेश्वर के सिंहासन के सामने आरोहित किये गये, जब तक कि उन्होंने सच्चाई से प्यार किया और परमेश्वर के प्रकटन का लम्बा इन्तजार किया। पादरियों और एल्डर्स ने अपने पद और आजीविका को स्थिर करने और सभी विश्वासियों को विवश करने की कोशिश में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे अफवाहें फैलाते हैं, झूठी गवाही देते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का तिरस्कार करते हैं; वे कलीसिया को बंद कर देते हैं और विश्वासियों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के अध्ययन से कठोरता से रोकते हैं। वे राज्य के सुसमाचार फैलाने वाले भाई-बहनों को डराते-धमकाते हैं उनका मजाक उड़ाते हैं और मारते हैं। यहाँ तक कि वे उन्हें पकड़ने और प्रताड़ित करने के लिए शैतानी सीसीपी के साथ सांठ-गांठ तक करते हैं, और हजारों भाई-बहनों को इस हालत में छोड़ देते हैं के पास वापस लौटने के लिए घर तक नहीं होता। कम से कम एक लाख लोग सीसीपी के द्वारा बेरहमी से प्रताड़ित हो चुके हैं। यहाँ तक कि बहुत से मारे भी जा चुके हैं …पादरियों और एल्डर्स का सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति विरोध उन फरीसियों के प्रभु यीशु के विरोध से भीज्यादा कट्टर है। परमेश्वर के विरोध में किये उनके अनगिनत बुरे कर्म शामिल हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत समय पहले उनका न्याय किया और उन्हें शापित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "उनमें से कितने सत्य की खोज करते हैं और धार्मिकता का पालन करते हैं? वे सभी जानवर हैं, जो सूअरों और कुत्तों से बेहतर नहीं हैं, वे गोबर के एक ढेर के बीच में बदबूदार मक्खियों के एक समूह के ऊपर दंभपूर्ण आत्म-बधाई में अपने सिर हिलाते हैं और हर तरह का उपद्रव भड़काते[1] हैं। उनका मानना है कि नरक का उनका राजा सबसे बड़ा राजा है, और इतना भी नहीं जानते कि वे खुद बदबूदार मक्खियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। ... अपनी पीठ पर हरे पंख लगाए (जो उनके परमेश्वर पर विश्वास करने के दावे का सूचक है), वे आत्मतुष्ट हैं और हर जगह अपनी सुंदरता और आकर्षण की डींग हाँकते हैं, जबकि वे चुपके से अपने शरीर की मलिनताओं को मनुष्य पर फेंक देते हैं। इतना ही नहीं, वे स्वयं से अत्यधिक प्रसन्न होते हैं, मानो वे इंद्रधनुष के रंगों वाले एक जोड़ी पंखों का इस्तेमाल कर अपनी मलिनताएँ छिपा सकते हों, और इस तरह वे सच्चे परमेश्वर के अस्तित्व पर अपना कहर बरपाते हैं (यह धार्मिक दुनिया में परदे के पीछे चलने वाली हकीकत बताता है)। मनुष्य को कैसे पता चलेगा कि मक्खी के पंख कितने भी खूबसूरत और आकर्षक हों, मक्खी एक अत्यंत छोटे प्राणी से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसका पेट गंदगी से भरा हुआ और शरीर रोगाणुओं से ढका हुआ है? अपने माता-पिता रूपी सूअर और कुत्तों के बल पर वे देश-भर में हैवानियत में निरंकुश होकर अंधाधुंध दौड़ते हैं (यह उस तरीके को संदर्भित करता है, जिससे परमेश्वर को सताने वाले धार्मिक अधिकारी सच्चे परमेश्वर और सत्य से विद्रोह करने के लिए राष्ट्र की सरकार से मिले मजबूत समर्थन पर भरोसा करते हैं)। ऐसा लगता है, मानो यहूदी फरीसियों के भूत परमेश्वर के साथ बड़े लाल अजगर के देश में, अपने पुराने घोंसले में लौट आए हों। उन्होंने हजारों साल पहले का अपना काम फिर करते हुए उत्पीड़न का दूसरा दौर शुरू कर दिया है। पतितों के इस समूह का अंततः पृथ्वी पर नष्ट हो जाना निश्चित है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गये वचन हैं जो बहुत समय पहले सार्वजनिक तौर पर समाचार पत्रों, टीवी, और इंटरनेट के माध्यम से साँझा किये गये थे। विभिन्न प्रकार की सुसमाचार वाली फिल्में और वीडियो परमेश्वर की अभिव्यक्ति और कार्य की पूरे विश्व के सामने खुली गवाही देने के लिए, इंटरनेट पहले ही प्रसारित किये जा चुके हैं। इसने धार्मिक समुदायों और सामान्य मानवजाति के बीच एक बड़ी हलचल मचा दी। धार्मिक समुदायों के पादरी और एल्डर्स पहले ही इस बढ़ते चलन को देख चुके हैं: सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन धार्मिक समुदायों और सामान्य मानवजाति पर विजय हासिल कर रहें हैं। कोई भी व्यक्ति या ताक़त इसे रोक नहीं सकती। वे चिड़चिड़े हो गये हैं और सनकीपन के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा कर रहे हैं। वेकोशिश कर रहे हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को गैर-कानूनी करवा दें और अपने पागलपन के सपने को साकार कर लें: धार्मिक समुदायों पर अनंत नियंत्रण और परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोगों पर अनंत आधिपत्य। ये तथ्य यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि अंत के दिनों के धार्मिक पादरी और एल्डर्स, फरीसियों का पुन: प्रकटन हैं! वे मसीह विरोधी राक्षस हैं, जो परमेश्वर के कार्य को बाधित और खत्म करने के लिए कठिन से कठिन मेहनत करते हैं और मरते दम तक परमेश्वर के दुश्मन बने रहने की कसम खाते हैं! उनके अनगिनत बुरे कर्मों ने परमेश्वर के स्वभाव को पहले ही उकसा दिया है। वे परमेश्वर के धार्मिक न्याय और दंड से कैसे बच सकते है?

"शहर परास्त किया जाएगा" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

फुटनोट :

1. "हर तरह का उपद्रव भड़काते" का मतलब है कि कैसे वे लोग, जो राक्षसी किस्म के होते हैं, दंगा फैलाते हैं और परमेश्वर के कार्य को बाधित करते हैं तथा उसका विरोध करते हैं।

पिछला: प्रश्न 12: हमारे अधिकतर भाई-बहन यह नहीं समझते हैं कि: प्रभु यीशु के आगमन से पहले, फरीसी अक्सर आराधनालयों में दूसरों के सामने बाइबल की व्याख्या करते थे; वे लोगों के सामने खड़े हो कर प्रार्थना करते थे और लोगों की निंदा करने के लिए बाइबल के नियमों का उपयोग करते थे; वे बाहर से बड़े श्रद्धालु दिखाई देते थे उन लोगों की तरह जो बाइबल से कभी विश्वासघात नहीं करेंगे, परंतु, फरीसियों को प्रभु यीशु द्वारा शाप क्यों दिया गया? उन्होंने परमेश्वर का किन तरीकों से विरोध किया? उन्होंने अपना पाखंड किस प्रकार प्रदर्शित किया? उन पर परमेश्वर का कोप क्यों पड़ा?

अगला: प्रश्न 14: कई भाई-बहन पादरियों और एल्डर्स की दिल से आराधना करते हैं। वे यह नहीं समझते कि, भले ही पादरी और एल्डर्स अक्सर बाइबल की व्याख्या करते हैं और बाइबल को गौरवपूर्ण स्थान देते हैं, पर वे अभी भी क्यों सत्य से नफरत करते हैं और देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। बाइबल की व्याख्या करना और उसे गौरवपूर्ण स्थान देना, क्या प्रभु की गवाही देने और प्रभु की को गौरवपूर्ण स्थान देने के ही समान है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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