प्रश्न 14: कई भाई-बहन पादरियों और एल्डर्स की दिल से आराधना करते हैं। वे यह नहीं समझते कि, भले ही पादरी और एल्डर्स अक्सर बाइबल की व्याख्या करते हैं और बाइबल को गौरवपूर्ण स्थान देते हैं, पर वे अभी भी क्यों सत्य से नफरत करते हैं और देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं। बाइबल की व्याख्या करना और उसे गौरवपूर्ण स्थान देना, क्या प्रभु की गवाही देने और प्रभु की को गौरवपूर्ण स्थान देने के ही समान है?

उत्तर: धार्मिक समुदाय में एक माहौल पहले से ही पनप रहा है। जो लोग बाइबल की बेहतर व्याख्या कर सकते हैं, जिनके पास बाइबल का बेहतर सिद्धांत है उनकी दूर तक प्रशंसा और आराधना होती है। वे लोग जो बाइबल के रहस्य और भविष्यवाणियों की व्याख्या कर सकते हैं, उनकी सबसे अधिक आराधना होती है। इसीलिए, बहुत से लोग कलीसिया में पादरियों और एल्डर्स को पूजते हैं। वे सभी मानते हैं कि बाइबल की व्याख्या करना और उसे गौरवपूर्ण स्थान देना, प्रभु की गवाही देने और प्रभु को गौरवपूर्ण स्थान देने के ही समान है। जब वे पादरियों और एल्डर्स को सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा अंत के दिनोंमें किये गये कार्य का विरोध और निंदा करते देखते हैं तो उनमें से ज्यादातर संघर्ष और असमंजस महसूस करते हैं। एक तरफ, उन्हें लगता है कि पादरियों और एल्डर्स का बाइबल की व्याख्या करने का और उसे गौरवपूर्ण स्थान देने का मतलब ही है कि वे प्रभु की गवाही दे रहे हैं। दूसरी तरफ, वो सब जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर व्यक्त करते हैं, सत्य है, तो फिर क्यों पादरी और एल्डर्स उनका विरोध और निंदा करते हैं? क्या वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि उनका नाम प्रभु यीशु नहीं है? जबकि, वो सब जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर व्यक्त करते हैं, सत्य है, इसलिए उनकी निंदा नही होनी चाहिए! तो क्यों पादरी और एल्डर्स कट्टरता से उन सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध और निंदा करते हैं जो सत्य को व्यक्त करते हैं? बहुत से लोग इसे नहीं समझ पाते। वास्तव में, इस समस्या को समझाना इतना मुश्किल नहीं है। अगर आप अतीत में जाकर सोचें जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आये थे, तो क्या मुख्य यहूदी पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने, इसी तरह कट्टरता से प्रभु यीशु का विरोध और निंदा नहीं की थी? क्या उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर नहीं चढ़ाया था? क्या यह इसलिए नहीं था क्योंकि प्रभु यीशु को मसीहा नाम नहीं दिया गया था? क्या यह इसलिए नहीं था क्योंकि उन्होंने बहुत सारे सत्य व्यक्त किये थे? उन्होंने देखा कि प्रभु यीशु के वचनों में अधिकार और प्रभाव था; उन्होंने देखा कि वे चमत्कारी चीजों को प्रकट कर सकते हैं। उन्होंने देखा कि हजारों लोगों ने उनका अनुसरण किया। इससे पूरी यहूदिया को झटका लगा। अगर उन लोगोंने प्रभु यीशु को अपना कार्य फैलाने दिया होता, तो खुद यहूदी धर्म खत्म हो गया होता। यहूदी धर्म के लिए परिणाम कल्पना से परे होता! इसलिए, उन्होंने प्रभु यीशु से नफरत बढ़ायी और उन्हें मारना चाहा। इस तरह उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा कर उनका अंत कर दिया। उस वक्त, क्या मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों सभी ने बाइबल की व्याख्या नहीं की और उसे गौरान्वित नहीं किया? तो फिर उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर क्यों चढ़ाया? साफ शब्दों में कहें तो, क्या यह इसलिए नहीं था क्योंकि फरीसी सत्य और परमेश्वर के कार्य से नफरत करते थे? अपने खुद के पदों और आजीविका की सुरक्षा के लिए, वे सत्य को व्यक्त करने वाले परमेश्वर के प्रति निर्दयी और विद्वेषपूर्ण थे। जैसा कि आप देख सकते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने के लिए कोई भी बुरा काम करने को तैयार थे! यह देखना मुश्किल नहीं है कि मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों का असली स्वभाव सत्य से नफरत करना और परमेश्वर का विरोध करना है! उन्होंने केवल अपने पद और आजीविका के लिए बाइबल की व्याख्या की और उसे गौरवपूर्ण स्थान दिया। वे परमेश्वर और सत्य के लिए पूरी तरह नफरत से भरे थे। इसलिए, जब प्रभु यीशु ने सत्य को व्यक्त किया और अपना कार्य किया, उनका असली स्वभाव- सत्य से घृणा और परमेश्वर का विरोध- पूरी तरह से उजागर हो गया। जैसा कि आप देख सकते हैं, लोग बाइबल की व्याख्या कैसे भी करें, उस से लोग परमेश्वर का विरोध कर सकते हैं या नहीं, उस बात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता; ऐसा करना उनके स्वभाव पर निर्भर करता है। वे बाइबल की व्याख्या चाहे कितनी अच्छी करते हों, लेकिन जिन लोगों का स्वभाव ही सत्य से नफरत करना और परमेश्वर का विरोध करना है, उनके सत्य से घृणा के स्वभाव और परमेश्वर से विरोध की भावना को बदला नहीं जा सकता। क्या फरीसियों ने प्रभु यीशु की निंदा और विरोध करने के लिए बाइबल की व्याख्या का इस्तेमाल अपने तरीकों से नहीं किया था? यह ऐसी बात है जिसे परमेश्वर ने बहुत समय पहले ही अपने कार्यों के जरिये उजागर कर दिया था। क्या हम वास्तव में अभी तक नहीं देख पाये?

फरीसी और पादरी व एल्डर्स सभी बाइबल की व्याख्या करते हैं और उसको गौरवान्वित करते हैं। ऐसे में, वे अभी भी देहधारी परमेश्वर का विरोध और निंदा कैसे कर सकते हैं? हमें एक और सत्य को समझना होगा: केवल बाइबल ही परमेश्वर की गवाही है; यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य का एक लिखित दस्तावेज है। परमेश्वर अपने कार्य के प्रत्येक चरण के दौरान कुछ सत्य व्यक्त करते हैं। उनके वचनों से, लोगों को उनके स्वभाव और सब कुछ जो उनके पास है और जो वो स्वयं हैं, का पता लगता है। इसलिए, हर बार जब लोग परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण का अनुभव करते हैं, तो वे कुछ सत्य समझते हैं और परमेश्वर के बारे में और अधिक जानते हैं। अपनी प्रबंधन योजना के तीन चरणों के कार्य के दौरान, परमेश्वर धीरे-धीरे अपने अंतर्निहित स्वभाव, सब कुछ जो उनके पास है और सब कुछ जो वो स्वयं हैं, को प्रकाशित करते हैं। राज्य के युग के दौरान, परमेश्वर अपने अंतर्निहित धर्मी स्वभाव, सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता अधिकार और गौरव को पूरी तरह उजागर करते हैं। अगर हम परमेश्वर को केवल उनके व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान किये गये कार्य के आधार पर जानते हैं, तो यह परमेश्वर का बहुत ही सीमित ज्ञान है। जिस तरह व्यवस्था के युग के दौरान जब विश्वासियों ने परमेश्वर के वास्तविक अस्तित्व और ज्ञानपूर्ण कर्मों को यहोवा परमेश्वर के कार्य के माध्यम से स्वीकार किया। उन्हें पता चल गया कि यहोवा परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। अनुग्रह के युग में, जब विश्वासियों ने प्रभु यीशु के कार्य को देखा, वे जान गए कि वे मानवजाति को पापमुक्त करनेवाले, करुणामय, दयालु परमेश्वर थे। परंतु, वे परमेश्वर के सार या अंतर्निहित धर्मी स्वभाव को नहीं समझ सके थे। वे वास्तव में परमेश्वर के बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाए थे। इसलिए, हम देख सकते हैं कि अगर हम परमेश्वर को केवल उनके व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के कार्य और वचनों के आधार पर जानते हैं, हमारा परमेश्वर का ज्ञान भी बहुत एक तरफ़ा होगा। हम केवल उनके स्वभाव के एक हिस्से और वो क्या हैं को जानते होंगे। हम सही मायनों में परमेश्वर को जानने के स्तर को प्राप्त नहीं कर सकते। जब ऐसे लोग बाइबल की व्याख्या करते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, जब तो इसकी अधिक संभावना होती है कि वे उन्हें परिभाषित करें और उनका विरोध करें। क्या यह सच है? हालांकि, न केवल यहूदी प्रधान पादरी धर्मशास्त्री और फरीसी परमेश्वर को नहीं जानते थे, बल्कि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, वे शैतानी प्रकृति के थे: वे सत्य से नफरत और परमेश्वर का विरोध करते थे। यह उनका घातक दोष था! अगर उनके दिल अच्छे होते, तो परमेश्वर को न जानने के बावजूद उनलोगों ने, मानवजाति के पापमुक्तिदाता, प्यारे प्रभु यीशु को सूली पर नहीं चढ़ाया होता। फरीसियों के दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी। उनके पद और आजीविका बाकी-सभी चीज़ों से अधिक महत्वपूर्ण थी। इसलिए, जब परमेश्वर के कार्य से उनकी स्थिति और आजीविका को खतरा हुआ, वे परमेश्वर के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार करने लगे और उन्हें मार डाला। जैसा कि आप देख सकते हैं, उनके दिल और उनके स्वभाव और सार बहुत विषैले थे! कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ने उनको साँप के सँपोले कहा! हालाँकि धार्मिक समुदाय के अगुवा परमेश्वर को नहीं जानते, फिर भी जो लोग कट्टरता से परमेश्वर की निंदा और विरोध करते हैं, मसीह-विरोधी के रूप में उजागर किये जायेंगे। बेशक, परमेश्वर के कार्य को लेकर कुछ धार्मिक नेताओं की अपनी धारणाएं हैं, लेकिन उनका परमेश्वर से डरने वाला हृदय उन्हें मौखिक रूप से परमेश्वर की निंदा या विरोध करने से रोकता है। उदाहरण के लिए, जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया था, क़ानून के एक अध्यापक, गैमेलियल ने प्रभु यीशु की निंदा नहीं की थी। निकोदिमस रात के समय प्रभु यीशु के बारे में सच्चाई की खोज करने में सक्षम था। ये सभी तथ्य बाइबल में दर्ज हैं। जैसे कि आप देख सकते हैं, अगर लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन उन्हें जानते नहीं हैं या परमेश्वर से डरने वाला हृदय रखते हैं, तो परमेश्वर की सेवा करते समय वे उनका विरोध भी कर सकते हैं। अगर सत्य से घृणा करने वाले और विषैले दिल वाले लोग धार्मिक नेता बन जायें, कभी न कभी वे मसीह-विरोधी के रूप में उजागर होंगे जायेंगे। यह एक सच्चाई है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता है! क्या अब आप सबको इस बारे में स्पष्ट है? उस समय, प्रभु यीशु ने पाखंडी फरीसियों को आलोचनात्मक रूप से उजागर किया और शाप दिया। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने उन पादरियों एवं एल्डर्स को उजागर करने, न्याय और निंदा करने का काम किया जो बाइबल की अपनी व्याख्याओं से दूसरों को गुमराह करने और परमेश्वर का विरोध करने का मसीह-विरोधी सार रखते थे आइए, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के और दो पदों को पढ़ें। "ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)

"ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। ऐसे लोग दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो 'खज़ाना' होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। ... वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने 'पवित्र और अलंघनीय' कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में 'राजा' बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पादरियों और एल्डर्स के मूल स्वभाव को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं: वे बाइबल की व्याख्या करते हैं लेकिन परमेश्वर का विरोध। पादरी और एल्डर्स परमेश्वर को नहीं जानते; इसके बजाय वे उनकी व्याख्या करते हैं और उनका विरोध भी करते हैं। यह ख़ास तौर पर उनके लिए सत्य है जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा या तिरस्कार करते हैं; उनकी प्रकृति और स्वभाव बिल्कुल उन फरीसियों की तरह है जिन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया था। वे सब शैतानी, जहरीले लोग हैं जो सत्य से नफरत करते हैं। वे सभी मसीह विरोधी हैं, जो परमेश्वर के कार्य द्वारा उजागर हुए हैं; वे सब वही हैं जिन्होंने दोबारा परमेश्वर को सूली पर चढ़ाया। वे सभी परमेश्वर द्वारा शापित हैं!

वास्तव में प्रभु की गवाही देना और प्रभु को गौरवान्वित करने का इस बात से कोई संबंध नहीं है कि मनुष्य बाइबल की व्याख्या कैसे करता है। सार यह है कि क्या वे परमेश्वर के वचनों को अमल में ला पाते हैं और उनके कार्यों का अनुभव कर पाते हैं। अगर मनुष्य सच्चाई से प्रेम करते हैंतो उन्हें पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और परमेश्वर के वचन का सच्चा अनुभव और ज्ञान प्राप्त होगा। यह ज्ञान परमेश्वर के वचनों के अमल में लाने और अनुभव करने से उत्पन्न होता है। सही मायनों में परमेश्वर को जानने का मतलब यही तो है। इन वास्तविक अनुभवों और गवाहियों के संवाद का मतलब ही वास्तव में परमेश्वर को गौरवान्वित करना और उनकी गवाही देना है! परमेश्वर का सच्चा ज्ञान, जिसकी चर्चा उनको गौरवान्वित करने वाले और उनकी गवाही देनेवाले करते हैं, वो उनकी खुद की धारणाओं, कल्पना या तर्क से नहीं आता; यह उनके द्वारा परमेश्वर के वचनों की शाब्दिक व्याख्या से तो बिलकुल नहीं आता। वे लोग जो परमेश्वर को गौरवान्वित करते हैं और उनकी गवाही देते हैं वे बाइबल में दर्ज परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर की इच्छा, उनकी लोगों से अपेक्षा, उनके स्वभावउनके पास जो सब-कुछ है, और वे जो है, उस पर ध्यान देते हैं जिससे लोग परमेश्वर की इच्छा और स्वभाव को समझ पाते हैं और सही मायनों में परमेश्वर को जान पाते हैं। इसी तरह से लोग परमेश्वर को सही मायनों में आदर देकर उनकी आज्ञा का पालन कर सकते हैं। इस तरह की बाइबल पर आधारित व्याख्याओं और परमेश्वर के वचनों के बारे में संवाद करके ही वे परमेश्वर को गौरावान्वित कर सकते हैं और उनकी गवाही दे सकते हैं। लेकिन, जब पादरी और एल्डर्स बाइबल की व्याख्या करते हैं, क्या वे वास्तव में परमेश्वर के वचनों के सच्चे सार का संवाद कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर की इच्छा का संवाद कर सकते हैं? क्या वे परमेश्वर के स्वभाव की गवाही दे सकते हैं? क्या वे दूसरों को परमेश्वर को जानने, उनकी आज्ञा का पालन करने या उनका आदर करने के लिए तैयार कर सकते हैं? तथ्यों ने हमें यह दिखा दिया है कि धार्मिक समुदायों में बहुत से पादरी और एल्डर्स सत्य से नफरत और परमेश्वर का विरोध करते हैं; और यही उनका वास्तविक स्वभाव है। वे परमेश्वर के वचनों का पालन या उनके कार्यों का अनुभव नहीं करते। वे उनकी इच्छा और अपेक्षा को बिल्कुल नहीं समझते, और वे निश्चित तौर पर उनके स्वभाव, जो कुछ उनके पास था या जो कुछ भी वे हैं को नहीं समझते। इसीलिए, वे परमेश्वर के सच्चे ज्ञान का संवाद नहीं कर सकते, और वे प्रभु यीशु' के दिव्य सत्व या मनमोहक विशेषताओं की गवाही नहीं दे सकते। वे सिर्फ बाइबल के ज्ञान और धार्मिक सिद्धांत की या बाइबल में मौजूद कुछ पात्रों की कहानियों की और उनके साथ जुड़ी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें और उनके साथ जुड़ें। सिर्फ यही नहीं, अधिकतर तो पादरी और एल्डर्स मनुष्य के वचनों की व्याख्या करते हैं, जैसे की बाइबल में पौलुस के वचन। पौलुस के अनुसार, "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" वे बाइबल के वचनों को ऐसे मानते हैं जैसे कि वो परमेश्वर के वचन हों। इसने सम्पूर्ण धार्मिक समुदायों को यह मनवा दिया है कि देवदूतों के वचन ही परमेश्वर के वचन हैं और विश्वासियों को इन्हीं पर अमल करने और इन्हीं का पालन करने के लिए कहा। जब वे उपदेश देते हैं, संवाद करते हैं या गवाही देते हैं तो वे प्रेरितों के वचनों का ही अधिक से अधिक बार हवाला देते हैं। जबकि, वे परमेश्वर और प्रभु यीशु का कम से कम हवाला देते हैं। अंत में परिणाम यह हुआ है कि बाइबल के परमेश्वर और प्रभु यीशु के सभी वचनों को बदल कर प्रभावहीन कर दिया गया। लोगों के दिलों में प्रभु यीशु की जगह लगातार कम हो रही है, जबकि पौलुस और दूसरों का स्थान उनके दिलों में लगातार बढ़ रहा है। बाइबल में पौलुस के वचन, और दूसरे लोगों के वचनों के होने से ही, वे लोगो के दिलो में जगह बना पाए हैं। लोग सिर्फ प्रभु यीशु के नाम में विश्वास रखते हैं, लेकिन वास्तव में वे बाइबल में मौजूद मनुष्य के वचनों के साथ ही आगे बढ़ रहे हैं, जैसे कि पौलुस के वचन। वे परमेश्वर में विश्वास के लिए अपने ही मार्ग पर चल रहे हैं। वे लोग जो परमेश्वर में इस तरह विश्वास रखते हैं वे प्रभु के मार्ग से कैसे नही भटक सकते? इस प्रकार की सेवा परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कैसे हो सकती है? उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु ने एक बार स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के बारे में यह कहा था: "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। जबकि, पादरी और एल्डर्स, इसके बजाय पौलुस के वचनों के अनुसार उद्धार और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की बात करते हैं। यह प्रभु यीशु के वचनों के साथ पूरी तरह धोखा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बहुत से विश्वासी जानते ही नहीं हैं कि परमेश्वर कि इच्छा का अनुसरण कैसे करें। यहाँ तक कि उनको यह भी नहीं पता कि किस तरह के लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। लोग पौलुस के वचनों को सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल करते हैं: "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है: भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है ..." (2 तीमुथियुस 4:7-8)। पादरी और एल्डर्स दूसरों को पढ़ाते हैं कि यदि वे पौलुस की तरह प्रभु के लिए मेहनत करेंगे और कष्ट को सहेंगे, तो ही वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। वे परमेश्वर के वचनों के स्थान पर मनुष्य के वचनों को रखते है; वे परमेश्वर के वचनों को बाहर रखते हैं। नतीजा यह है लोग उनकी वजह से गुमराह हो रहे हैं। इस तरह बाइबल की व्याख्या करके, क्या वे परमेश्वर को गौरवान्वित कर रहे हैं या परमेश्वर की गवाही दे रहे हैं? मुझे लगता है वे साफ़ तौर पर परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं! यह समस्या बहुत गंभीर है! धार्मिक पादरी और एल्डर्स, अकसर परमेश्वर के वचनों को बाइबल में मनुष्यों के वचनों से बदल देते हैं। अब हम इसके परिणामों के बारे में स्पष्ट समझ गये होंगे, सही है ना? यह कैसे संभव है कि बहुत सारे लोग इतने वर्षों तक प्रभु में विश्वास तो करें, लेकिन अभी तक उनको जान न पायें? उनको कभी भी प्रभु के वचनों का वास्तविक अनुभव नहीं होता? प्रभु में इस प्रकार विश्वासकरनेवाले कभी भी सत्य या जीवन को कैसे प्राप्त कर पायेंगे? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि पादरियों और एल्डर्स ने बाइबल से लगातार सिर्फ मनुष्यों के वचनों की व्याख्या की और उनके बारे में ही गवाही दी और अपने अनुयायियों से सिर्फ़ इन्हीं वचनों पर अमल करने का अनुरोध किया? वे बाइबल की इस तरह से व्याख्या करके कैसे प्रभु को गौरवान्वित कर सकते हैं या प्रभु की गवाही दे सकते हैं? उस तरह की सेवा कैसे परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो सकती है? उनमे और पाखंडी फरीसियों में कोई फर्क नहीं है; दोनों ही परमेश्वर की सेवा के मार्ग पर चल रहे हैं और उनका विरोध भी कर रहे हैं। अंत के दिनों में, जब देहधारी परमेश्वर प्रकट होते हैं और अपना कार्य करते हैं, तब वे अनैतिकता से परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा करना शुरू कर देते हैं, जो उनके छिपे हुए शैतानी स्वभाव को उजागर करता है: वे सत्य से नफरत करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। अंत में, वे परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित होंगे। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।' देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अनुसरण करना ही परमेश्वर में सच्चे अर्थ में विश्वास करना है')। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने स्पष्टता से पादरियों और एल्डर्स का परमेश्वर विरोधी मूल स्वभाव उजागर किया है। सच्चे विश्वासियों और सत्य को खोजने वालों को सच्चाई समझनी चाहिए: धार्मिक पादरी और एल्डर्स संदर्भ से बाहर बाइबल का हवाला दे देते हैं और परमेश्वर के विरोध में बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं। इस तरह, हम उनके धोखे और नियंत्रण से बचने में और परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने में सक्षम हो जायेंगे।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य ने धार्मिक समुदायों के इन पादरियों, और एल्डर्स, इन मसीह-विरोधी राक्षसों को उजागर कर दिया है। वरना, कोई भी यह नहीं देख पाता कि उनकी बाइबल की व्याख्या और उसको गौरवान्वित करने का काम, वास्तव में लोगों को धोखा देने और नियंत्रित करने के कपटी तरीके हैं, न ही कोई इस सच को देख सकने में सक्षम होगा कि वे परमेश्वर के दुश्मन के रूप में अपने स्वयं के, स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर रहे हैं। उस समय में, फरीसियों ने बाइबल को गौरवान्वित किया और उसकी गवाही दी; उन्होंने परमेश्वर को बाइबल तक ही सीमित रखा। उन्होंने कभी सत्य की खोज या परमेश्वर के पदचिन्हों का अनुसरण करने की कोशिश नहीं की। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने, प्रभु यीशु द्वारा पुराने नियमों का अनुसरण करने से इन्कार करने को अपना तर्क बना कर उन्हें सूली पर लटका दिया, उन्होंने एक बहुत गंभीर पाप किया है! अंत के दिनों में पादरी और एल्डर्स बिल्कुल ऐसे ही थे जैसे कि फरीसी। वे बाइबल को गौरवान्वित कर और उसकी गवाही देते हैं; वे बाइबल के परमेश्वर की व्याख्या करते हैं। उन्होंने यह कहकर भ्रांतियां भी फैलाई कि, "परमेश्वर के कोई भी वचन या कार्य बाइबल से बाहर नहीं हैं," "बाइबल में विश्वास करना ही परमेश्वर में विश्वास करना है। बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करती है; अगर आप बाइबल को छोड़ते हैं, तो आप परमेश्वर में विश्वास नहीं करते।" वे इन शब्दों का इस्तेमाल लोगो को गुमराह करने और उनको सिर्फ बाइबल पर विश्वास और उसकी अराधना करवाने के लिए करते हैं। वे बाइबल को ऐसे ही मानते हैं जैसे कि वही परमेश्वर है। वे परमेश्वर का स्थान बाइबल को दे देते हैं। पादरी और एल्डर्स इस रहस्य का इस्तेमाल, छलकपट के द्वारा लोगो को परमेश्वर से छल से चुराने,से दूर करने और उनको बाइबल के करीब लाने के लिए कर रहे हैं। इससे अवचेतन रूप से लोगों का परमेश्वर के साथ संबंध खत्म होता जा रहा है। जो लोग पहले परमेश्वर में विश्वास किया करते थे अब सिर्फ बाइबल में विश्वास करते हैं। "बाइबल ही उनके दिलों में प्रभु, उनके दिलों में परमेश्वर बन जाती है।" इसलिए, बाइबल में अपने अंधे विश्वास और आराधना के कारण वे बाइबल के विद्वानों, पादरियों और एल्डर्स की आराधना और अनुसरण करने लगते हैं। पादरियों और एल्डर्स की बात लें, तो, वे बाइबल का इस्तेमाल धार्मिक समुदायों को नियंत्रित करने और अपनी खुद की अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए एक साधन की तरह करते हैं। वे लोगों को धोखा देने, फुसलाने और नियंत्रित करने के लिए बाइबल को गौरवान्वित करते हैं और संदर्भ से बाहर इसकी व्याख्या करते हैं। वे अवचेतन मन से लोगों को मनुष्यों की आराधना और अनुसरण करने, परमेश्वर का विरोध करने और उनका दुश्मन बनने के रास्ते पर लोगों की अगुवाई करते हैं। वे लोगों को यह सोचने के लिए गुमराह करते हैं कि बाइबल की आराधना और बाइबल को पास रखना, परमेश्वर में विश्वास करना, और परमेश्वर की मौजूदगी पाना है। इसलिए, ये लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को न खोजते न ही उसका अध्ययन करते हैं, और उद्धार के अपने अंतिम मौके को गवां देते हैं। वाकई ये शैतान की बहुत ही कपटी और शातिर योजना है। यह वाकई में हानिकारक है! इसलिए, हम देख सकते हैं कि धार्मिक समुदायों के पादरियों और एल्डर्स, असली फरीसियों और ठगों का गुट हैं! वे झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी हैं, जो परमेश्वर के द्वारा चुने लोगों को नियंत्रित करते हैं! धार्मिक समुदाय, फरीसियों और मसीह विरोधी राक्षसों के एक ऐसे समूह द्वारा नियंत्रित है जो परमेश्वर का विरोध करता है। यह एक ऐसी जगह नहीं रह गयी जहाँ से पहले परमेश्वर अपना कार्य कर सकते थेl यह एक शैतानी लोगों का डेरा बन गया है जो परमेश्वर को अपना दुश्मन मानता है। यह बहुत समय पहले ही महान शहर बेबीलोन बन गया था! धार्मिक बेबीलोन कैसे परमेश्वर के क्रोध का निशाना नहीं बन सकता?

धार्मिक समुदाय का परमेश्वर के विरोध का इतिहास कम से कम व्यवस्था के युग के अंत से शुरू हुआ। जब परमेश्वर ने अनुग्रह के युग के दौरान पहली बार देह धारण की और अपना कार्य किया, उस समय भी धार्मिक समुदाय पर फरीसियों और मसीह विरोधियों ने बहुत पहले से ही कब्जा कर लिया था। यह प्रभु यीशु के पाप मुक्ति के कार्य के लिए विरोधी बन गया था। जब, अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट होते हैं और अपना कार्य करते हैं, वे लोग जो धार्मिक समुदाय में हैं वे अभी भी परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य के सामने एक दुश्मन की तरह खडे हो जाते हैं। वे न सिर्फ पागलपन के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हैं, बल्कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर अत्याचार करने और दमन के लिए शैतानी सीसीपी शासन के साथ मिल जाते हैं। उन्होंने दोबारा परमेश्वर को सूली पर चढ़ाने का घोर पाप किया है! प्रभु यीशु ने न केवल फरीसियों को शापित किया, धार्मिक समुदाय के अंधकार को भी उजागर किया, लेकिन जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपना न्याय का कार्य करते हैं, वे तब भी पादरियों और एल्डर्स के वास्तविक स्वभाव: उनके परमेश्वर के प्रति विरोध को उजागर करते हैं: इसके साथ ही, वह उन मसीह विरोधियों को शापित करते हैं जिन्होंने परमेश्वर को दोबारा सूली पर चढ़ाया। यह वास्तव में सोच ने पर मजबूर कर देता है! दोनों ही बार जब भी परमेश्वर ने देह धारण की, उन्होंने धार्मिक समुदाय को निंदित और शापित किया। यह क्या दर्शाता है? परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोग आखिरकार समज जाते हैं कि धार्मिक समुदाय, महान बेबीलोन का पतन नियत है। धार्मिक समुदाय केवल परमेश्वर के नाम में विश्वास रखता है, लेकिन वास्तव में कभी भी परमेश्वर को गौरवान्वित नहीं करता और उनकी गवाही नहीं देता। वे यकीनन उनकी इच्छा को क्रियान्वित नहीं करते। वे परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोगों को उनके सिंहासन तक नहीं ला सकते। वे वाकई उनका सही मार्ग पर जाने के लिए अगुवाई नहीं कर सकते, जिससे कि वे सत्य को समझें और परमेश्वर को उनके वचनों के पालन और अनुभव से जानें। धार्मिक नेता पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध जाते हैं। वे खुद भी सत्य का पालन नहीं करते, लेकिन वे लोगों को आदर पाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के लिए उनको बाइबल के ज्ञान और धार्मिक सिद्धांत का उपदेश देते हैं। वे विश्वासियों को पाखंडी फरीसियों के मार्ग पर ले जाते हैं। वे परमेश्वर के द्वारा चुने हुए लोगों को ठेस पहुँचाते और बरबाद करते हैं। सभी धार्मिक नेता शैतान के हथियार बन गये हैं, असली मसीह-विरोधी। उनके मानवजाति को बचाने के तीन चरणों के कार्य के दौरान, मानवता को बचाने और मानवता की रक्षा के लिए परमेश्वर ने दो बार देह धारण की। पूरा धार्मिक समुदाय मसीह का दुश्मन है; वे परमेश्वर के उद्धार के कार्य में रुकावटें बन गये हैं। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित किया और परिणामस्वरूप उन्होंने उनको शापित और दंडित किया। यह ऐसे ही है जैसे कि भविष्यवाणियाँ कहती है, "गिर गया, बड़ा बेबीलोन गिर गया है, वह दुष्‍टात्माओं का निवास, और हर एक अशुद्ध आत्मा का अड्डा..." (प्रकाशितवाक्य 18:2)। "गिर पड़ा, वह बड़ा बेबीलोन गिर पड़ा, जिसने अपने व्यभिचार की कोपमय मदिरा सारी जातियों को पिलाई है" (प्रकाशितवाक्य 14:8)। "हे बड़े नगर, बेबीलोन! हे दृढ़ नगर, हाय! हाय! घड़ी भर में ही तुझे दण्ड मिल गया है" (प्रकाशितवाक्य 18:10)

चलिये देखते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर किस तरह कट्टरता से परमेश्वर का विरोध करनेवाले मसीह विरोधियों और मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित धार्मिक समुदाय की निंदा करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। ... यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते हो जो अंत के दिनों के मसीह के द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिशोध सहना होगा वह सभी के लिए स्वत: स्पष्ट है। ... क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"याद करो कि 2,000 वर्ष पहले यहूदियों द्वारा यीशु को सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद क्या हुआ था। यहूदी इजराइल से निर्वासित कर दिए गए थे और वे दुनिया भर के देशों में भाग गए थे। बहुत लोग मारे गए थे, और संपूर्ण यहूदी राष्ट्र, किसी देश के विनाश की अभूतपूर्व पीड़ा का भागी हो गया था। उन्होंने परमेश्वर को सलीब पर चढ़ाया था—जघन्य पाप किया था—और परमेश्वर के स्वभाव को भड़काया था। उनसे उनके किए का भुगतान करवाया गया था, और उन्हें उनके कार्यों के परिणाम भुगतने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने परमेश्वर की निंदा की थी, परमेश्वर को अस्वीकार किया था, और इसलिए उनकी केवल एक ही नियति थी : परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना। यही वह कड़वा परिणाम और आपदा थी, जो उनके शासक उनके देश और राष्ट्र पर लाए थे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)

"हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)

"किन्तु जब तक पुराने संसार का अस्तित्व बना रहता है, मैं अपना प्रचण्ड रोष इसके राष्ट्रों के ऊपर पूरी ज़ोर से बरसाऊंगा, समूचे ब्रह्माण्ड में खुलेआम अपनी प्रशासनिक आज्ञाएँ लागू करूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करेगा, उनको ताड़ना दूँगा:

जैसे ही मैं बोलने के लिए ब्रह्माण्ड की तरफ अपना चेहरा घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ सुनती है, और उसके उपरांत उन सभी कार्यों को देखती है जिन्हें मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध खड़े होते हैं, अर्थात् जो मनुष्य के कर्मों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन आएँगे। ... ब्रह्माण्ड के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से बाँटा जाएगा और उनका स्थान मेरा राज्य लेगा, जिससे पृथ्वी पर विद्यमान राष्ट्र हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राज्य बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता है; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ब्रह्माण्ड के भीतर मनुष्यों में से उन सभी का, जो शैतान से संबंध रखते हैं, सर्वनाश कर दिया जाएगा, और वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें मेरी जलती हुई आग के द्वारा धराशायी कर दिया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी धारा के अन्तर्गत हैं, शेष सभी को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत-से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीते जाने के उपरांत, भिन्न-भिन्न अंशों में, मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। सभी लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग किया जाएगा, और वे अपने-अपने कार्यों के अनुरूप ताड़नाएँ प्राप्त करेंगे। वे सब जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए हैं, नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कर्मों में मुझे शामिल नहीं किया है, उन्होंने जिस तरह अपने आपको दोषमुक्त किया है, उसके कारण वे पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर अस्तित्व में बने रहेंगे। मैं अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, और अपनी वाणी से, पृथ्वी पर ज़ोर-ज़ोर से और ऊंचे तथा स्पष्ट स्वर में, अपने महा कार्य के पूरे होने की उद्घोषणा करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 26)

"संसार का पतन हो रहा है! बेबीलोन गतिहीनता की स्थिति में है! ओह, धार्मिक संसार! धरती पर मेरे सामर्थ्य से यह कैसे नष्ट न होता? आज भी किसकी हिम्मत है कि मेरी अवज्ञा या मेरा विरोध करे? धर्मशास्त्री? धर्म का हर ठेकेदार? पृथ्वी के शासक और अधिकारी? स्वर्गदूत? कौन मेरे शरीर की पूर्णता और विपुलता का उत्सव नहीं मनाता? कौन है जो अनवरतमेरी स्तुति नहीं करता, कौन है जो शाश्वत रूप से प्रसन्न नहीं है? ... पृथ्वी के राष्ट्रों का विनाश कैसे नहीं होगा? पृथ्वी के राष्ट्रों का पतन कैसे नहीं होगा? मेरे लोग आनंदित कैसे नहीं होंगे? वे खुशी के गीत कैसे न गाएँगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 22)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का हर वाक्य सत्य है; उनमें अधिकार और प्रभाव है; वे पूरी तरह परमेश्वर की धार्मिकता, प्रताप, क्रोध और अपमानित न होने वाले स्वभाव को दर्शाते हैं। वे जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, परमेश्वर के कार्य में रुकावट या बाधा डालते हैं निश्चित तौर पर परमेश्वर से दंड और प्रतिकार पायेंगे। व्यवस्था के युग में सोदोम के निवासियों ने सार्वजनिक रूप से परमेश्वर का खंडन और विरोध किया था। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को क्रोधित किया और वे सभी परमेश्वर द्वारा नष्ट कर दिए गये; उनका एक कण भी नहीं बचा। अनुग्रह के युग में, यहूदियों के मुख्य प्रचारकों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने सार्वजनिक तौर पर प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। उन्होंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिए रोमन सरकार के साथ सांठ-गांठ की। उन्होंने परमेश्वर के स्वभाव को उकसा कर एक घोर पाप किया। पूरे यहूदी राष्ट्र को अभूतपूर्व विनाश के हवाले कर दिया गया था। अंत के दिनों में, धार्मिक नेताओं ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को बेहूदगी से आँका, उनका विरोध और निंदा की। यहाँ तक कि उन्होंने दुष्ट सीसीपी का सहयोग किया और उनके साथ सांठ-गाँठ की उन भाई-बहनों का दमन करने, गिरफ्तार कराने और उन पर अत्याचार करने के लिए जिन्होंने राज्य के सुसमाचार को फैलाया। उन्होंने बहुत पहले पवित्र आत्मा का तिरस्कार करने का और परमेश्वर को दोबारा से सूली पर चढ़ाने का घिनौना पाप किया। यहाँ तक कि उनका बुरा व्यवहार सोदोम के लोगों से भी ज्यादा बुरा था। ये यहूदी फरीसियों की तुलना में बहुत है। वे मसीह विरोधी हैं जिन्हें परमेश्वर के अंत के दिनों में किये गये कार्य के द्वारा उजागर किया गया। वे दुष्ट धार्मिक शक्तियाँ हैं जिन्होंने परमेश्वर का विरोध अत्यंत कठोरता और कट्टरता से किया जैसा इतिहास में कभी नहीं हुआ! धार्मिक समुदाय पूरी तरह से दुष्ट ताकतों से बना है जो परमेश्वर का विरोध करती हैं। यह मसीह विरोधी राक्षसों का झुंड है। यह एक कट्टर गढ़ है जो मसीह के राज्य के साथ बराबरी करने की कोशिश करता है। वो परमेश्वर के कट्टर दुश्मनों का शैतानी गुट है, जो हठपूर्वक उनका विद्रोह करता है! परमेश्वर का धर्मी स्वभाव को अपमानित नहीं किया जा सकता। परमेश्वर की पवित्रता को गंदा नहीं किया जा सकता! अंत के दिनों में किया गया परमेश्वर का कार्य एक नये युग की शुरुआत और पुराने युग का अंत है। धार्मिक समुदाय जो हर तरह के मसीह-विरोधी राक्षसों और साथ ही दुष्ट संसार द्वारा नियंत्रित है जल्द ही अंत के दिनों में परमेश्वर की महाविपति के द्वारा नष्ट हो जायेगा। परमेश्वर का धर्मी दंड पहले ही पहुँच चुका है! यह वैसा ही है जैसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "संसार का पतन हो रहा है! बेबीलोन गतिहीनता की स्थिति में है! ओह, धार्मिक संसार! धरती पर मेरे सामर्थ्य से यह कैसे नष्ट न होता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 22)

"शहर परास्त किया जाएगा" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 13:बाइबल को पढ़ कर, हम सब जानते हैं कि यहूदी फरीसियों ने, प्रभु यीशु की निंदा की और उनका विरोध किया। लेकिन अधिकांश भाई-बहन अभी भी नहीं समझते हैं, कि जब प्रभु यीशु ने अपना कार्य किया, तब फरीसियों को मालूम था कि उनके वचनों में अधिकार और प्रभाव है। फिर भी, उन्होंने कट्टरपन से प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। उन्होंने उनको सूली पर चढ़ा दिया। उन लोगों का स्वभाव और सार-तत्व कैसा था?

अगला: प्रश्न 1: मैं यह नहीं समझ पाया कि अगर चमकती पूर्वी बिजली ही सच्चा मार्ग है, तो सीसीपी सरकार उसका इतना घोर विरोध क्यों करती? धार्मिक अगुआ भी क्यों इस कदर उसकी निंदा करते? ऐसा नहीं है कि सीसीपी की सरकार ने पादरियों और एल्डर्स पर अत्याचार न किये हों। लेकिन जब चमकती पूर्वी बिजली की बात आती है, तो परमेश्वर की सेवा करनेवाले पादरी और एल्डर, सीसीपी सरकार जैसा नज़रिया और रवैया कैसे अपना सकते हैं? भला इसकी वजह क्या है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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